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एकता की भावना तथा संघीय शक्ति विकसित होती है । उत्तराध्ययन23 में दस प्रकार की समाचारी का वर्णन हुआ है। भगवतीसूत्र में समाचारी के दस प्रकार निम्न बताये गये हैं ।
1. इच्छाकार, 2. मिथ्याकार, 3. तथाकार, 4. आवश्यकी, 5. नैषेधिकी, 6. आपृच्छना, 7. प्रतिपृच्छना, 8. छन्दना, 9. निमंत्रणा, 10. उपसम्पदा
इच्छाकार- इस समाचारी के अनुसार एक साधु दूसरे साधु की इच्छा जानकर कार्य करे, अथवा दूसरा साधु अपने गुरु या बड़े साधु की इच्छा जानकर कार्य करे। इससे संघीय अनुशासन बना रहता है ।
मिथ्याकार- संयमपालन करते हुए यदि कोई विपरीत आचरण हो गया हो तो ‘मिच्छा मि दुक्कडं' अर्थात् मेरा यह दुष्कृत मिथ्या हो, यह कहकर साधु प्रायश्चित करता है I
तथाकार - गुरुजन के निर्देश, उपदेश या व्याख्यान श्रवण से शिष्य के मन में अपूर्व आह्लाद होकर यह शब्द फूटना कि जो आपने कहा है वह पूर्णरूप से सत्य है।
आवश्यकी - आवश्यक कार्य के लिए उपाश्रय से बाहर निकलते समय 'आवस्सइ आवस्सइ' कहना ।
नैषेधिकी- बाहर लौटकर उपाश्रय में प्रवेश करने पर निसीहि - निसी हि कहना । अर्थात् जिस कार्य के लिए मैं बाहर गया था, उस कार्य से निवृत्त होकर आ गया हूँ ।
आपृच्छना- किसी कार्य में प्रवृत्त होने से पूर्व गुरुदेव से पूछना 'भगवन् मैं यह कार्य करूँ?' आपृच्छना समाचारी है।
प्रतिपृच्छना - पहले गुरु ने अगर किसी कार्य का निषेध किया हो, किन्तु आवश्यक होने के कारण उस कार्य में प्रवृत्त होने के लिए पुन: गुरु को पूछना प्रतिपृच्छना समाचारी है ।
छन्दना - लाये हुए आहार के लिए दूसरे साधुओं को आमंत्रण देना छन्दना समाचारी है।
निमंत्रणा - आहार लाने के लिए दूसरे साधुओं से पूछना निमंत्रणा समाचारी है। उपसम्पदा - ज्ञानादि प्राप्त करने के लिए गुरु की आज्ञा प्राप्त कर अपना गण छोड़कर विशेष आगमज्ञ गुरु के या आचार्य के सानिध्य में रहना, उपसम्पद
समाचारी है।
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन