Book Title: Bhagwati Sutra Ka Darshanik Parishilan
Author(s): Tara Daga
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 258
________________ सत्य- क्रोध, हास्य, लाभ या भय के मौजूद होने पर भी झूठ नहीं बोलना, सदा सावधानीपूर्वक हितकारी सार्थक व प्रिय वचन बोलना, सत्य - महाव्रत है। अचौर्य व्रत - तुच्छ से तुच्छ वस्तु को भी अदत्त नहीं ग्रहण करना अचौर्यव्रत है। अचौर्य व्रत भी मन-वचन-काय से कृत- कारित-अनुमोदित होना चाहिये। इसके अतिरिक्त जो वस्तु ग्रहण की जाय वह निर्दोष व एषणीय हो । ब्रह्मचर्य - देव, मनुष्य और तिर्यंच संबंधी मैथुन का मन-वचन व काया से त्याग करना, ब्रह्मचर्य व्रत है । अपरिग्रह - धन्य-धान्य एवं प्रेष्यवर्ग - दास-दासी आदि से संबंधित परिग्रह का त्याग अपरिग्रह व्रत है । श्रमण परिग्रह को मन, वचन और कर्म से न स्वयं संग्रह करता है, न दूसरों से करवाता है और न करने वाले का अनुमोदन ही करता है। श्रमण का एक पर्याय निग्रंथ है, जिसका अर्थ है - ग्रंथि रहित । अर्थात् जिसके परिग्रह की ग्रंथि नहीं होती है, वह निग्रंथ है । समिति व गुप्ति (अष्टप्रवचनमाता ) I महाव्रतों की सुरक्षा के लिए समिति व गुप्ति का विधान है। समिति व गुप्ति का सम्मिलित नाम 'प्रवचन माता' है ।' उत्तराध्ययन" में कहा गया है कि जिनदेव प्रणीत सिद्धान्त 12 अंगग्रंथों में समाविष्ट हैं । गुप्ति व समिति का सम्यक् रूप से पालन करने वाला साधु ही गुरु परम्परा से प्राप्त द्वादशांगी के ज्ञान को सुरक्षित रख सकता है अतः माता की तरह जिनदेव प्रणीत सिद्धान्तों की सुरक्षा करने वाली समिति व गुप्ति को प्रवचनमाता कहा है। समिति - श्रमण की चारित्र में जो सम्यक् प्रवृत्ति होती है, वह समिति है । भगवतीसूत्र " में आठ समितियों का उल्लेख हुआ है 1. ईर्यासमिति, 2. भाषासमिति, 3. एषणासमिति, 4. आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणसमिति, 5. उच्चार-प्रस्रवण- खेलजल्ल-सिंघाणपरिष्ठापनिका समिति, 6. मनसमिति, 7. वचनसमिति, 8. कायसमिति । स्थानांगसूत्र'' में भी इन आठ समितियों का उल्लेख हुआ है। इन आठों को समिति कहा गया है, इसको स्पष्ट करते हुए उत्तराध्ययन टीका में कहा गया है कि गुप्तियाँ केवल निवृत्त्यात्मक ही नहीं होती, प्रवृत्त्यात्मक भी होती हैं । इस दृष्टि से उन्हें भी समिति कहा गया है। गुप्ति - आचार्य उमास्वाति 14 ने गुप्ति को परिभाषित करते हुए कहा है कि मन, वचन व काय का प्रशस्त निग्रह गुप्ति है । भगवतीसूत्र' में तीन गुप्तियों का उल्लेख हुआ है; 232 भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन

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