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स्वतंत्र स्थान नहीं देकर इन्द्रियप्रत्यक्ष में ही मानस प्रत्यक्ष का समावेश कर लिया गया है। नोइन्द्रियप्रत्यक्ष प्रमाण में तीन प्रत्यक्ष ज्ञानों का समावेश किया गया है1. अवधि-ज्ञानप्रत्यक्ष, 2. मन:पर्यव-ज्ञानप्रत्यक्ष, 3. केवल-ज्ञानप्रत्यक्ष। ये तीनों प्रत्यक्ष इन्द्रियजन्य नहीं होकर आत्मसापेक्ष हैं अत: नोइन्द्रियप्रत्यक्ष कहलाते हैं। अनुमान
अनुमान प्रमाण के तीन भेद किये गये हैं- 1. पूर्ववत्, 2. शेषवत्, 3. दृष्टसाधर्म्यवत्। पूर्ववत् अनुमान
पूर्ववत् की व्याख्या करते हुए अनुयोगद्वार में कहा गया है कि पूर्व परिचित किसी लिंग के द्वारा पूर्व परिचित वस्तु का ज्ञान करना पूर्वगत् अनुमान है। जैसे माता बाल्यकाल से गुम हुए और युवा होकर वापस आये हुए पुत्र को किसी पूर्व निश्चित चिह्न (घाव, लांछन, मस, तिल आदि) से पहचानती है कि यह पुत्र मेरा है। शेषवत् अनुमान
शेषवत् अनुमान पाँच प्रकार का है- 1. कार्येण, 2. कारणेन, 3. गुणेन, 4. अवयवेन, 5. आश्रयेण।
कार्येण- कार्य से कारण का अनुमान करना। जैसे- शंख या भेरी के शब्द को सुनकर शंख व भेरी का अनुमान करना।
कारणेण- कारण से कार्य का अनुमान करना। जैसे- तंतु, पट का कारण है। पट तंतु का कारण नहीं है।
गुणेण- गुण से गुणी का अनुमान करना। यथा- गंध से पुष्प का, कसौटी से स्वर्ण का अनुमान करना।
अवयवेन- अवयव से अवयवी का अनुमान करना। जैसे सींग से महिष का, शिखा से कुक्कुट का, दाँत से हाथी का आदि।
आश्रयेन- आश्रित वस्तु से आश्रय का अनुमान। यथा- धूम से अग्नि का, बकपंक्ति से पानी का आदि। दृष्टसाधर्म्यवत्
दृष्टसाधर्म्यवत् अनुमान के दो भेद किये गये हैं। 1. सामान्यदृष्ट, 2. विशेषदृष्ट ।
सामान्यदृष्ट- किसी एक पुरुष से बहुत से पुरुषों का ज्ञान इसी प्रकार बहुत से पुरुषों से एक पुरुष का ज्ञान सामान्यदृष्ट अनुमान है। दूसरे शब्दों में किसी एक वस्तु के दर्शन से सजातीय सभी वस्तुओं का तत्साधर्म्य करना या बहुवस्तु देखकर किसी विशेष में तत्साधर्म्य का ज्ञान करना सामान्यदृष्ट है।
ज्ञान एवं प्रमाण विवेचन
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