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लोक की लम्बाई का मध्य भाग 2
भगवतीसूत्र में पहले सम्पूर्ण लोक की लम्बाई के मध्यभाग का तथा उसके पश्चात् त्रिलोक (ऊर्ध्व, अधो व तिर्यग्लोक) के मध्य भाग का निरूपण किया गया है। लोक की लम्बाई का मध्य भाग रत्नप्रभा पृथ्वी के अवकाशान्तर के असंख्यातवें भाग का अवगाहन (उल्लंघन करने पर आता है । अधोलोक की लम्बाई का मध्य भाग चौथी पंकप्रभापृथ्वी के अवकाशान्तर के कुछ अधिक अर्द्धभाग का उल्लंघन करने के बाद आता है। सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोकों के ऊपर और ब्रह्मलोक कल्प के नीचे रिष्ट नामक विमानप्रस्तट में ऊर्ध्वलोक की लम्बाई का मध्य भाग है। जम्बूद्वीप के मन्दराचल (मेरुपर्वत) के बहुसम मध्यभाग में इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर वाले और निचले दोनों क्षुद्रप्रस्तटों में, तिर्यग्लोक के मध्य भाग रूप आठ रूचक- प्रदेश कहे गये हैं, वही तिर्यग्लोक की लम्बाई का मध्यभाग है । लोक- अलोक का क्रम
जिज्ञासु शिष्य रोह द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर कि पहले लोक है या पहले अलोक ? भगवान् महावीर द्वारा उत्तर दिया गया कि लोक व अलोक दोनों ही शाश्वत भाव हैं, इन दोनों में 'यह पहला और यह पिछला' ऐसा क्रम नहीं है । इसे समझाने के लिए मुर्गी व अण्डे का उदाहरण भी दिया गया है कि जिस तरह मुर्गी व अण्डे में पहले पिछले का क्रम नहीं है, दोनों ही शाश्वत हैं, उसी तरह लोक अलोक का क्रम है।
अवकाशान्तर
भगवतीवृत्ति 34 में कहा गया है कि चौदह रज्जु परिमाण पुरुषाकार लोक में नीचे की ओर अधोलोक में सात पृथ्वियाँ हैं । प्रथम पृथ्वी के नीचे 'घनोदधि' उसके नीचे ‘घनवात' व उसके नीचे 'तनुवात' है । उस तनुवात के नीचे आकाश है, इसे अवकाशान्तर या आकाशान्तर कहते हैं । यह क्रम सातों पृथ्वियों के साथ है। ये सातों अवकाशान्तर आकाश रूप होने के कारण अगुरुलघु हैं । यहाँ यह प्रश्न अवश्य विचारणीय है कि यदि प्रत्येक पृथ्वी के नीचे घनोदधि, घनवात, तनुवात व अवकाशान्तर है तो फिर सातवीं पृथ्वी ही लोक का अन्त नहीं हो सकती। इसके नीचे भी तो घनोदधि, घनवात, तनुवात व अवकाशान्तर होना चाहिए । लोकान्त व सप्तम अवकाशान्तर के क्रम को स्पष्ट करते हुए भगवतीसूत्र' में कहा गया है कि लोकान्त व सप्तम अवकाशान्तर पहले भी है और पीछे भी है । इन दोनों में पहला- पिछला क्रम नहीं है ।
लोक-स्वरूप
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