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किया जाने वाला आहार ) अनाभोगनिर्वर्तित (आहार की इच्छा के बिना खाया जाने वाला आहार) । उत्तराध्ययन 110 में कहा गया है कि नैरयिक; जीवों के दुःख मनुष्यों के दुःखों की अपेक्षा बहुत अधिक हैं तथा नीचे-नीचे के नरकों के दु:ख पूर्व-पूर्व के नरकों की अपेक्षा कई गुने अधिक हैं ।
तिर्यंच जीव - एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक के जीव तथा पंचेन्द्रियों में पशुI - पक्षी आदि तिर्यंच के जीव कहलाते हैं । नारक, मनुष्य व देव को छोड़कर सभी जीव तिर्यंच के अन्तर्गत आते हैं । तिर्यंच जीवों का विस्तार बहुत अधिक हैं । भगवतीसूत्र में इनके अनेक भेद-प्रभेद किये गये हैं । एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के जीवों की चर्चा की जा चुकी है। यहाँ पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों के भेद - प्रभेदों का विवेचन प्रस्तुत है
पंचेन्द्रिय तिर्यंच- पंचेन्द्रिय तिर्यंच के तीन भेद किये गये हैं 111
1. जलचर, 2. स्थलचर, 3. खेचर
1. जलचर तिर्यंच - जल में चलने-फिरने के कारण इन्हें जलचर कहते हैं। इनके पाँच भेद हैं- मत्स्य, कच्छप, मगर, ग्राह और सुंसुमार ।
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2. थलचर तिर्यंच - जमीन पर रहने वाले जीव थलचर कहलाते हैं। इनके तीन भेद किये गये हैं- 1. चतुष्पद, 2. उर:परिसर्प, 3. भुजपरिसर्प
चतुष्पद - चतुष्पद जीव से तात्पर्य है चार पैर वाले जीव । इनमें एक खुर वाले (अश्व), दो खुर वाले ( गवाद), गोल पैर वाले (गंडीपद) तथा सनखपद अर्थात् नखयुक्त पैर वाले ( सिंह आदि) सम्मिलित किये गये हैं।
उरपरिसर्प - पेट के बल रेंगने वाले जीव उरपरिसर्प कहलाते हैं । इनमें सर्प, अजगर, आशालिका, महारोग आदि को सम्मिलित किया गया है ।
भुजपरिसर्प- भुजाओं व वक्षस्थल के सहारे से रेंगने वाले जीव भुजपरिसर्प कहे जाते हैं- छिपकली, गोंह, नकुल, सरट ( गिरगिट ) आदि ।
नभचर तिर्यंच- आकाश में उड़ने वाले जीव नभचर या खेचर कहलाते हैं इनके चार भेद हैं। 1. चर्मपक्षी ( चमड़े के पंख वाले जैसे - चमगादड़ ) 2. लोमपक्षी (हंस, चकवादि) 3. समुद्रगपक्षी (जिनके पंख अविकसित होते हैं और डब्बे के आकार सदृश्य सदा ढके रहते हैं ) 4. वितत पक्षी (जिसके पंख सदा खुले रहते हैं)। योनि संग्रह की दृष्टि से खेचर जीवों के तीन भेद किये गये हैं 1. अंडज, 2. पोतज, 3. सम्मूर्च्छिम ।112 अंडे से उत्पन्न होने वाले जीव अंडज कहलाते हैं। जैसे - मोर, कबूतर, हंसादि । जरायु बिना उत्पन्न होने वाले जीव
भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
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