________________
पोतज कहलाते हैं जैसे- चमगादड़। माता-पिता के संयोग के बिना उत्पन्न होने वाले जीव संमूर्छिम कहलाते हैं। जैसे- मेंढ़क आदि। इन जीवों के विषय में जीवाजीवाभिगमसूत्र में विस्तार से विवेचन किया गया है। इनमे छः लेश्या, तीन दृष्टि, तीन ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन योग व दो उपयोग पाये जाते हैं। सामान्यतया ये चारों गतियों से आकर जन्म लेते हैं इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है।
मनुष्य- मनुष्य गति नाम कर्म के उदय से जीव मनुष्य जन्म को प्राप्त करता है। मध्यलोक के अढ़ाई द्वीप प्रमाण क्षेत्र में मनुष्य जाति का निवास माना गया है। यद्यपि मनुष्यों के सुखादि वैभव देवों की तुलना में अनन्तगुणा हीन माने गये हैं, किन्तु अन्य सभी गतियों से मनुष्य गति को श्रेष्ठ व दुर्लभ माना गया है।13 प्रत्येक जीव का चरम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है और मनुष्य गति को प्राप्त करके ही जीव आत्मा के शुद्ध रूप को प्राप्त कर सकता है। मनुष्य गति की प्राप्ति पुण्य विशेष अर्जन करने पर होती है।
मनुष्य के दो प्रमुख भेद किये गये हैं- 1. संमूर्च्छिम, 2. गर्भज। गर्भज के तीन भेद किये गये हैं- 1. कर्मभूमिक, 2. अकर्मभूमिक, 3. अन्तरद्वीपक
देव- देव गति जीवों के प्रशस्त पुण्यों के कारण प्राप्त होती है। उत्तराध्ययन में कहा गया है कि सामान्यतया पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए जीव देवपर्याय को प्राप्त करते हैं। कभी-कभी मिथ्या तपादि के प्रभाव से भी देवपर्याय की प्राप्ति होती है। संभवतः उनकी स्थिति मनुष्य से भी निकृष्ट होती है। इस कारण ये निम्न श्रेणी के देव कहे जाते हैं। सर्वसामान्य देवों की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है; जो उपपात जन्म वाले तथा जन्म से ही इच्छानुकूल शरीर धारण करने की सामर्थ्य वाले (वैक्रियक शरीरधारी) स्त्री और पुरुष हैं वे देव कहलाते हैं। यद्यपि नारक जीव भी उपपात जन्म वाले तथा जन्म से ही वैक्रियक शरीरधारी होते हैं, किन्तु वे नपुंसक ही होते हैं। अतः देवों को उपपात जन्मवाले स्त्री या पुरुष इस रूप में परिभाषित किया जा सकता है।14 देवों के विशेष गुण इस प्रकार हैं- देव अजर होते हैं, किन्तु अमर नहीं होते हैं, एक निश्चित आयु के पश्चात मनुष्य या तिर्यंचगति में जन्म लेकर अपने शेष कर्मों का फल अवश्य भोगते हैं। गीता15 में भी इसका समर्थन करते हुए कहा गया है कि पुण्यकर्म के क्षीण हो जाने पर देव विशाल स्वर्गलोक से मनुष्यलोक में प्रवेश करते हैं। मनुष्यलोक में आकर विशुद्ध आचार व धर्म का पालन करने से मोक्ष प्राप्ति संभव
जीव द्रव्य
109