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स्कन्ध सार्द्ध, अमध्य एवं सप्रदेश होते हैं । त्रिप्रदेशी-स्कन्ध अनर्द्ध, समध्य एवं सप्रदेश होते हैं । इस प्रकार संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी व अनन्तप्रदेशी स्कन्धों में सभी समसंख्यक परमाणु-स्कन्धों की स्थिति द्विप्रदेशी - स्कन्धों के समान तथा विषमसंख्यक परमाणु - स्कन्धों की स्थिति त्रिप्रदेशी-स्कन्ध के समान होती है। पुद्गल की चार प्रकार की स्थिति
भगवतीसूत्र 28 में पुद्गल द्रव्य की चार प्रकार की स्थिति बताई गई है। 1. द्रव्य स्थानायु, 2. भाव स्थानायु, 3. क्षेत्र स्थानायु, 4. अवगाहना स्थानायु द्रव्य स्थानायु- परमाणु का परमाणु रूप में तथा स्कंध का स्कंध रूप में अवस्थित रहना द्रव्य स्थानायु कहलाता है ।
क्षेत्र स्थानायु - जिस आकाश प्रदेश में परमाणु या स्कंध द्रव्य अवस्थित रहते हैं, वह क्षेत्र स्थानायु है
अवगाहना स्थानायु- परमाणु व स्कंध का नियत परिमाण में जो अवगाहन होता है, वह अवगाहना स्थानायु है ।
भाव स्थानायु- परमाणु और स्कंध के स्पर्श, रस, गंध, वर्ण की परिणति भाव स्थानायु है ।
शाश्वतता व अशाश्वतता
पुद्गल द्रव्य को भगवतीसूत्र में शाश्वत व अशाश्वत दोनों ही रूपों में स्वीकार किया है- सिय सासए सिय असासए ( 14.4.8 ) । इसे स्पष्ट करते हुए कहा है - द्रव्य दृष्टि से पुद्गल द्रव्य शाश्वत है परन्तु स्पर्श, वर्ण, रस, गंधादि पर्यायों की दृष्टि से अशाश्वत है। वस्तुतः द्रव्यदृष्टि से पुद्गल परमाणु को शाश्वत इस कारण से माना गया है कि वह भूतकाल में था, वर्तमान में है व अतीत में रहेगा । स्कंधों के साथ मिलने से उसकी सत्ता नष्ट नहीं होती वरन् वह उस स्कंध का प्रदेश कहलाता है । परन्तु उसकी वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि पर्यायें निरन्तर बदलती रहती हैं, एक गुण काला पुद्गल एक समय बाद ही दो गुण काला पुद्गल बन जाता है अतः पर्यायों में निरन्तर होने वाले परिवर्तनों के कारण उसे अशाश्वत रूप में भी स्वीकार किया है। पुद्गल की कथंचित् शाश्वतता व कथंचित् अशाश्वतता का भाव ही उसे सत् के रूप में प्रतिष्ठित करता है क्योंकि आचार्य उमास्वाति 29 ने सत् को उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य गुणों से युक्त माना है I पुद्गलपरिवर्त्त
पुद्गल द्रव्यों के साथ परमाणु का मिलना पुद्गलपरिवर्त कहलाता है। भगवतीसूत्र में यह स्पष्ट किया है कि परमाणु- पुद्गलों के संघात व भेद के
भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
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