________________
I
पर्याय दोनों दृष्टियों से किये गये हैं । द्रव्यात्मा का वर्णन द्रव्य दृष्टि से है शेष सात आत्माओं का वर्णन यहाँ पर्याय दृष्टि से है।7
द्रव्य व पर्याय के भेद व अभेद को समझाते हुए पंचास्तिकाय " में आचार्य कुंदकुंद ने कहा है कि पर्यायरहित द्रव्य नहीं है तथा द्रव्यरहित पर्याय भी नहीं है, श्रमण द्रव्य व पर्याय को अभेद रूप कहते हैं। आगे उन्होंने द्रव्य व पर्याय की भिन्नता को समझाते हुए कहा है कि मनुष्य नष्ट होकर नारक देव आदि में उत्पन्न होता है यहाँ उसकी संसारी पर्याय का नाश व उत्पत्ति हुई है, जीव भाव न उत्पन्न होता है न नष्ट होता है । इस संबंध में डॉ. मोहन लाल मेहता लिखते हैं- द्रव्य व पर्याय दोनों परस्पर एक दूसरे से मिले हुए हैं। एक के बिना दूसरे की स्थिति संभव नहीं है । द्रव्यरहित पर्याय की उपलब्धि जैसे असंभव है, वैसे ही पर्यायरहित द्रव्य की उपलब्धि भी संभव नहीं है । जहाँ द्रव्य होगा वहाँ पर्याय अवश्य होगा। 19 यहाँ जैनदर्शन का दृष्टिकोण आपेक्षिक रहा है। जैन दर्शन में द्रव्य व पर्याय में विशेषण व विशेष्य की दृष्टि से भेद माना जाता है। संज्ञा की अपेक्षा उनमें भेद है, किन्तु सत्ता की दृष्टि से दोनों अभेद हैं। द्रव्यों की संख्या
1
भगवतीसूत्र 20 में लोक में पाये जाने वाले सभी द्रव्यों को मुख्य रूप से छः स्वतंत्र भागों में विभक्त किया गया है । इन छः स्वतंत्र द्रव्यों में चेतन - द्रव्य जीव तथा पाँच अचेतन द्रव्य - धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल व काल को सम्मिलित किया गया है। यद्यपि इन छः द्रव्यों में जीव, पुद्गल और काल द्रव्य के अन्य अवान्तर अनेक स्वतंत्र भेद हैं परन्तु उन्हें सामान्य गुण की अपेक्षा से एक में अन्तर्भाव करके स्वतंत्र द्रव्यों की संख्या छः ही मानी गई है। उत्तराध्ययन" में भी लोक को छ: द्रव्यों का समूह कहा गया है।
तत्त्वार्थसूत्र में भी आचार्य उमास्वाति ने अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः - (5.1) धर्म, अधर्म, आकाश व पुद्गल को अजीव कहकर द्रव्याणि, जीवाश्च - (5.2) सूत्र द्वारा जीव को भी द्रव्य मानकर पाँच द्रव्य स्वीकार किये हैं । किन्तु, पश्चात् में कालाश्चेत्येक - (5.38) सूत्र द्वारा काल को भी द्रव्य मानते हुए द्रव्यों की संख्या छ: मान ली है। आधुनिक युग में जैन आचार्य तुलसी ने अपनी पुस्तक जैन सिद्धान्त दीपिका 22 में द्रव्यों की संख्या छः ही मानी है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय व काल ।
द्रव्य
79