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1. पर्याप्त सूक्ष्मतेजस्कायिक 2. अपर्याप्त सूक्ष्मतेजस्कायिक 3. पर्याप्त बादरतेजस्कायिक 4. अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक
वायुकायिक जीव- वायु ही जिन जीवों का शरीर है, वे वायुकायिक जीव कहलाते हैं। यथा पूर्ववायु, पश्चिमीवायु, ऊर्ध्ववायु, अधोवायु, झंझावत, तनुवात, घनवात, शुद्धवायु आदि। वायुकायिक के भी चार प्रकार हैं
1. पर्याप्त सूक्ष्मवायुकायिक 2. अपर्याप्त सूक्ष्मवायुकायिक 3. पर्याप्त बादरवायुकायिक 4. अपर्याप्त बादरवायुकायिक
वनस्पतिकायिक- लतादि रूप वनस्पति ही जिनका शरीर है वे वनस्पतिकायिक जीव कहलाते हैं। यथा वृक्ष, गुल्म, लता, वल्ली, तृण, कुहण आदि। वनस्पतिकायिक जीवों के भी चार भेद प्राप्त होते हैं
1. पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक 2. अपर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक 3. पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिक 4. अपर्याप्त बादरवनस्पतिकायिक पर्याप्त बादरवनस्पतिकायिक को दो भागों में बांटा गया है। 1. साधारण शरीर 2. प्रत्येक शरीर
साधारण शरीर- जिनके शरीर में एक से अधिक जीवों का निवास रहता है और एक के आहार से सबका पोषण होता है, वे साधारण शरीर जीव कहलाते हैं। जैसे आलू, मूली, अंगबेर, हरिली, सिरिली आदि।
निगोद7- साधारण वनस्पतिकाय का शरीर निगोद कहलाता है। इस विश्व में असंख्यक गोलक हैं। एक-एक गोलक में असंख्यात निगोद हैं और एक-एक निगोद में अनन्त जीव हैं। इनका आयुष्य अन्तर्मुहर्त का होता है। निगोद के दो भेद किये गये हैं- 1. निगोद 2. निगोद जीव। निगोद के पुनः दो भेद किये गये हैं- 1. सूक्ष्मनिगोद 2. बादरनिगोद ____ असंख्य शरीर इकट्ठे होने पर भी जो आँखों से दिखाई न दे, वे सूक्ष्म-निगोद तथा जिनके असंख्य शरीर इकट्ठे होने पर आँखों को दिखाई दे जाते हैं वे बादरनिगोद कहे जाते हैं। जीवाजीवाभिगमसूत्र में इसका विस्तृत विवेचन है।
प्रत्येक शरीर- जिनके शरीर में एक ही जीव का निवास रहता है या जिनके शरीर का स्वामी एक ही जीव होता है वे प्रत्येक शरीर कहलाते हैं। जैसे वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, चम्पा, वल्ली आदि। भगवतीसूत्र के इक्कीसवें, बाइसवें व तेइसवें शतक में वनस्पति के विविध प्रकारों पर अवगाहना, आहार, लेश्या, ज्ञान समुद्घात आदि विभिन्न दृष्टियों से विचार किया गया है।
जीव द्रव्य
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