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अर्थात् स्वकृत होते हैं। जीवों के आहार, शरीर, कलेवर आदि रूपों से संचित किये हुए पुद्गल उस रूप में परिणत हो जाते हैं इसलिए वे अचेतनाकृत नहीं होते हैं। इसी प्रकार प्राणातिपात आदि की जाने वाली क्रियाओं को आत्मकृत कहा गया है परकृत नहीं 28 प्राणातिपात आदि क्रियाओं में वर्तमान जीव व जीवात्मा की भिन्नता का निराकरण करते हुए ग्रंथ में कहा गया है- प्राणातिपातादि में वर्तमान जीव और जीवात्मा पृथक्-पृथक् नहीं है वरन् वही जीव व जीवात्मा है अर्थात् जीव ही प्राणातिपातादि क्रियाओं का कर्ता है। भगवतीसूत्र में जीव को जहाँ एक ओर कर्मों के कर्ता के रूप में स्वीकार किया है वहीं दूसरी ओर इन स्वकृत कर्मों के भोक्ता के रूप में भी स्वीकार करते हुए जीव को कामी व भोगी दोनों ही माना है- जीवा कामी वि भोगी वि - (7.7.13)। कामभोग जीवों के होता है, अजीवों के नहीं।
भगवतीसूत्र में एक स्थान पर यह कहा गया है कि जीव स्वकृत कर्मों में से कुछ भोगता है कुछ नहीं। यहाँ इसका तात्पर्य यही है कि उदीर्ण को भोगता है तथा जो कर्म उदीर्ण नहीं हुए हैं उन्हें नहीं भोगता है, उन्हें उदीर्ण होने पर भोगेगा।" कृत कर्म भोगे बिना मोक्ष नहीं इस सिद्धान्त का निरूपण करते हुए कहा है कि नारक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य या देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना मोक्ष नहीं होता है। चारों गतियों में कृत कर्म को अवश्य ही भोगता है परन्तु किसी कर्म को विपाक से भोगता है किसी कर्म को प्रदेश से भोगता है। बांधे हुए कर्मों के अनुसार (यथा कर्म), निकरणों (यथा निकरण) के अनुसार जैसा-जैसा भगवान् ने देखा है वैसा-वैसा वह विपरिणाम पाएगा। जीव अपने कर्मों से ही इस भव को छोड़कर अन्य भव को प्राप्त करते हैं । अर्थात् जीव किसी भी भव में अपने कर्मों के फल से ही उत्पन्न होता है किसी अन्य के कर्मों से नहीं। वे जीव अपने अध्यवसाय योग से निष्पन्न कर्मबंध के हेतु द्वारा परभव की आयु बांधते हैं। जीव के भोक्ता भाव को स्पष्ट करते हुए ग्रंथ34 में यह भी कहा गया है कि जीव भोक्ता है अतः अजीव द्रव्य, जीव द्रव्य के परिभोग में आते हैं। जीव-द्रव्य, अजीव-द्रव्यों को ग्रहणकर औदारिक, वैक्रियादि पांच शरीरों श्रोत्रेन्द्रियादि पांच इन्द्रियों, मन, वचन, काय-योग, श्वासोच्छ्वास आदि रूप में परिणमाते हैं।
उत्तराध्ययन5 में भी जीव को कर्मों का कर्ता व भोक्ता दोनों ही रूपों में स्वीकार किया गया है। उत्तराध्ययन में कहा है कि आत्मा नानाविध कर्मों का कर्ता है। भोक्ता के रूप में वह अनेक जाति व योनियों में जन्म लेता है तथा कुत कर्मों
जीव द्रव्य