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वर्तमान आकार
___ व्याख्याप्रज्ञप्ति का जो वर्तमान आकार आज प्राप्त है वह समवायांग व नन्दीसूत्र में वर्णित आकार से भिन्न है। वर्तमान में इसमें मुख्य रूप से 41 शतक हैं। व्याख्याप्रज्ञप्ति की समाप्ति पर इक्कचत्ताली सइमं रासी जुम्मसयं समत्त पद प्राप्त होता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति के उपसंहार में इसके वर्तमान आकार का निरूपण किया गया है
सव्वाए भगवतीए अट्ठत्तीसं सयं सयाणं ( 138)। उद्देसगाणं एगूणविंसतिसताणि पंचविंसइअहियाणि ( 1925 )।। चुलसीतिसयसहस्सा पयाण पवरवरणाण-दंसीहिं। भावाभावमणंता पण्णत्ता एत्थमंगम्मि।।- (उपसंहार, 12)
अर्थात् सम्पूर्ण भगवतीसूत्र में कुल 138 शतक हैं और 1925 उद्देशक हैं। प्रवरज्ञान-दर्शन धारक महापुरुषों ने इस अंग सूत्र में 84 लाख पद कहे हैं तथा विधि-निषेध रूप भाव तो अनन्त कहे हैं। 138 शतकों का परिमाण इस प्रकार है; प्रथम बत्तीस शतक स्वतंत्र हैं, तेतीसवें शतक से लेकर उनतालीसवें शतक तक सात शतकों में बारह-बारह अवान्तर शतक हैं, चालीसवां शतक इक्कीस शतकों का समवाय है, इकतालीसवां शतक स्वतंत्र है। इस प्रकार सभी शतकों को मिलाने से 32+ (12x7=84)+21+1=138 शतक होते हैं।
उद्देशक की संख्या उपसंहार में 1925 बताई गई है जबकि शतकों के प्रारंभ में दी गई संग्रहणी गाथाओं के अनुसार उद्देशकों की संख्या 1923 ही होती है। इसका कारण स्पष्ट करते हुए मधुकर मुनि ने लिखा है कि बीसवें शतक के 12 उद्देशक गिने जाते हैं, किन्तु प्रस्तुत वाचना में पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजस्काय इन तीनों का एक सम्मिलित (छठा) उद्देशक ही उपलब्ध होने से दस ही उद्देशक होते हैं। इस प्रकार दो उद्देशक कम हो जाने से गणनानुसार उद्देशकों की संख्या 1923 होती है। व्याख्याप्रज्ञप्ति के वर्तमान आकार, शतक, उद्देशक व अक्षर परिमाण का निरूपण मधुकर मुनि द्वारा व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (भाग-4) में तथा आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा भगवई खण्ड-1 में प्रस्तुत किया गया है। शतक व उद्देशक संख्या तो समान है परन्तु अक्षर परिमाण संख्या कुछ भिन्न है। 4 विभाग-अवान्तर विभाग
व्याख्याप्रज्ञप्ति के अध्ययन शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह शत (सय) का ही रूप है। शतक का शाब्दिक अर्थ सौ होता है, किन्तु यहाँ शतक शब्द से सौ संख्या का कोई सम्बन्ध नहीं है। यह संभवतः अध्ययन शब्द के लिए ही रूढ़ है।
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन