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के अतिरिक्त धर्म, अधर्म, आकाश व काल द्रव्य को स्वीकार किया गया है। गति सहायक तत्त्व के रूप में धर्मास्तिकाय की जो मान्यता महावीर ने प्रस्तुत की है, उसे बाद में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में कई जगह 'ईथर' के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
खगोल विज्ञान के कई तथ्यों का भी इस ग्रंथ में निरूपण हुआ है। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र व तारागणों को ज्योतिष्क देवों के रूप में मान्यता प्रदान की गई है। चन्द्रग्रहण के कारणों पर वैज्ञानिक दृष्टि से प्रकाश डाला गया है। इसके अतिरिक्त अंधकार, प्रकाश, तमस्काय, कृष्णराजियों, दिशाओं आदि के विषय में भी विवेचन प्राप्त होता है। गणितशास्त्र की दृष्टि से पार्थापत्य के अनुयायी गांगेय के प्रश्नोत्तर महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रस्तुत ग्रंथ विज्ञान ही नहीं मनोविज्ञान व कला की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। स्वप्रविद्या, गर्भशास्त्र आदि पर भी इसमें विचार किया गया है। 42 स्वप्रों व 30 महास्वप्नों का उल्लेख हुआ है। भगवान् महावीर द्वारा छद्मस्थ अवस्था में देखे गये 10 स्वप्नों का अर्थ सहित विश्लेषण प्रस्तुत ग्रंथ में मिलता है।” कला की दृष्टि से भी इस ग्रंथ में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। स्थापत्यकला, नृत्य, नाटक, विभिन्न वाद्यों आदि का इसमें उल्लेख है। इसके अतिरिक्त और भी कई ऐसे विषय हैं जिनका इस ग्रंथ में कहीं ना कहीं उल्लेख अवश्य हुआ है। इसके महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए मधुकर मुनि18 ने लिखा है- 'अन्य जैनागमों की तरह न तो यह उपदेशात्मक ग्रंथ है और न केवल सैद्धान्तिक ग्रंथ है। इसे हम विश्लेषणात्मक ग्रंथ कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में इसे सिद्धान्तों का अंक गणित कहा जा सकता है।' संदर्भ 1. 'से एवं आया, एवं नाया, एवं विण्णाया एवं चरण-करणपरुवणा आघविजइ'- नंदीसूत्र,
सम्पा. मुनि मधुकर, 87, पृ. 179 2. समवायांग, सम्पा. मुनि मधुकर, 527, पृ. 179
व्या. सू. (भाग-4), प्रस्तावना, पृ. 22 विशेषावश्यकभाष्य, गा. 9 वही, गा. 8
व्या. सू. (भाग-4), प्रस्तावना, पृ. 21-26 7. भगवई (खण्ड-1), भूमिका, पृ. 16 8. व्या. सू.7.10.8 9. वही, 30.1.1 10. वही, 14.9.17
भगवतीसूत्र का महत्त्व