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व्याख्या साहित्य
भगवतीसूत्र मूल में ही इतना विस्तृत ग्रंथ है कि इस पर मनीषी आचार्यों ने व्याख्याएँ कम ही लिखी हैं । इस पर लिखा कोई प्राचीन भाष्य उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में विस्तृत भाष्य सहित भगवई विआहपण्णत्ती के भिन्न-भिन्न खण्डों का प्रकाशन जैन विश्व भारती लाडनूँ से हो रहा है।
निर्युक्ति - नंदीसूत्र'" में उपलब्ध ग्यारह अंगों के विवरण में सभी अंगों में संख्येय निर्युक्तियों का उल्लेख है । व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के वर्णन में भी संख्यात निर्युक्तियों का उल्लेख मिलता है । यथा 'संखिज्जाओं निज्जुत्तीओ' लेकिन इस बात का यहाँ कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि ये नियुक्तियाँ आगम के साथ जुड़ी हुई थीं या स्वतंत्र व्याख्या ग्रंथ के रूप में थीं । प्रस्तुत आगम में कुछ निर्युक्त शब्द मिलते हैं
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जम्हा आणइ वा, पाणमइ वा, उस्ससइ वा, नीससइ वा तम्हा पाणे त्ति वत्तव्वं सिया (2.1.8)
जम्हा भूते भवति भविस्सति य तम्हा भुए त्ति वत्तव्वं सिया (2.1.8) जम्हा जीवे जीवति जीवत्तं आउयं च कम्मं उवजीवति तम्हा जीवे त्ति वत्तव्य सिया (2.1.8)
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जे लोक्कड़ से लोए - (5.9.14)
निक्षेप निर्युक्ति का स्थान-स्थान पर प्रयोग मिलता है । यह उदाहरण दृष्टव्य है
दव्वओ लोए असंते,
खेत्तओ लोए सअंते
कालओ लोए अणं
भावओ लोए अनंते - (2.1.24)
चूर्णि - व्याख्याप्रज्ञप्ति पर विस्तार से चूर्णि नहीं लिखी गई है। किन्तु, जिनदास महत्तर कृत एक अति लघु चूर्णि इस पर लिखी मिलती है, इसका विवरण आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भगवई खण्ड - 132 में इस प्रकार दिया है'उसकी पत्र संख्या 80 है । उसका ग्रंथमान 3590 लोक परिमाण है । उसके प्रारंभ में मंगलाचरण नहीं है और अन्त में प्रशस्ति नहीं है । रचनाकार और रचनाकाल का कोई उल्लेख नहीं है। चूर्णि की भाषा प्राकृत प्रधान है।' इसे प्राकृत प्रधान चूर्णियाँ; नंदीचूर्णि, अनुयोगद्वारचूर्णि, दशवैकालिकचूर्णि, आचारांगचूर्णि सूत्रकृतांगचूर्णि और जीतकल्पचूर्णि की कोटि में रखा जा सकता है।
भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन