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गोशालक- (15.1) भगवतीसूत्र के 15वें शतक में आजीविक सम्प्रदाय के संस्थापक गोशालक का जीवन चरित्र वर्णित है। गोशालक भगवान् महावीर के छद्मस्थ अवस्था में ही प्रार्थना कर उनका शिष्य बन जाता है। वह चिरकाल तक भगवान महावीर के साथ विचरण करता है। एक दिन वह तिल के पौधे के भविष्य को लेकर भगवान् को मिथ्यात्वी सिद्ध करने का प्रयत्न करता है लेकिन सफल नहीं होता है। तदन्तर वैश्यानन बालतपस्वी के साथ छेड़छाड़ करने पर वैश्यानन कुपित होकर उस पर तेजोलेश्या छोड़ देते हैं तब भगवान् द्वारा उस तेजोलेश्या का शमन किया जाता है। तेजोलेश्या की विधि जानने के कुछ समय पश्चात् ही गोशालक भगवान् से पृथक् विचरण करने लगता है और छः मास में ही तेजोलेश्या प्राप्त कर वह स्वयं को 'जिन' शब्द से प्रसिद्ध करने लगता है। भगवान् द्वारा उसे 'अजिन' कहने पर क्रुद्ध गोशालक तेजोलेश्या द्वारा भगवान् महावीर को मारने का प्रयास करता है, लेकिन वह तेजोलेश्या उसी के लिए घातक सिद्ध होती है। अपने अन्तिम समय में गोशालक को सम्यक्त्व उत्पन्न होता है। इसके पश्चात् के कथानक में उसके भावी भवों व अन्त में मोक्ष प्राप्ति का वर्णन हुआ है।
शिवराजर्षि का कथानक- (11.9) राजा शिव हस्तिनापुर के राजा थे। एक दिन अपनी अपार समृद्धि को पूर्वकृत पुण्यों का फल मानकर नवीन पुण्योपार्जन करने के उद्देश्य से अपने पुत्र का राज्याभिषेक कर दिशाप्रोक्षकतापसप्रव्रज्या ग्रहण कर लेते हैं। निरन्तर बेले बेले की तपश्चर्या से दिक्चक्रवाल का प्रोक्षण करने से एक दिन उन्हें विभंग ज्ञान उत्पन्न होता है और वे यह घोषणा करते हैं कि इस विश्व में सात द्वीप व सात समुद्र ही हैं। आगे द्वीपों व समुद्रों का अभाव है।' तब श्रमण भगवान् महावीर द्वारा इस मान्यता का खंडन कर असंख्यद्वीप व असंख्य समुद्र की प्ररूपणा की जाती है। भगवान् की मान्यता सुनकर शिवराजर्षि के अज्ञान का पर्दा हट जाता है। वे भगवान् महावीर के पास आकर धर्मोपदेश सुनकर प्रव्रज्या ग्रहण करते हैं। ग्यारह अंग शास्त्रों आदि का अध्ययन करते हुए अंत में सिद्ध पद को प्राप्त करते हैं।
राज उदायन का कथानक- (13.6) राजा उदायन वितिभय नगर के राजा थे। एक दिन श्रमण भगवान् महावीर के नगर में पधारने पर राजा उदायन अपने पुत्र का राज्याभिषेक कर भगवान् महावीर के पास दीक्षा अंगीकार करने की
भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन
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