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भगवतीसूत्र का महत्त्व
अर्धमागधी जैन आगम साहित्य में भगवतीसूत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नंदीसूत्र' में इसकी महत्ता को प्रतिपादित करते हुए कहा गया है कि व्याख्याप्रज्ञप्ति का अध्येता तदात्मरूप एवं ज्ञाता-विज्ञाता बन जाता है।
आज विज्ञान की अनेक शाखाओं ने जीवन के हर क्षेत्र में नये-नये रहस्यों का उद्घाटन किया है, किन्तु अगर इस आगम को गहराई से देखें तो हमें ऐसा प्रतीत होता है, मानो इन सभी रहस्यों का उद्घाटन श्रमण भगवान् महावीर ने भगवतीसूत्र के माध्यम से बहुत पहले ही कर दिया था। प्रस्तुत ग्रंथ में न केवल लोक-परलोक, तत्त्वविद्या या आचार का चिन्तन हुआ है अपितु विज्ञान, मनोविज्ञान व सांस्कृतिक मूल्यों को भी यह अपने में समाहित किये हुए है। इसे विद्वानों द्वारा ज्ञान का महासागर व शास्त्रराज कहकर सम्बोधित किया गया है।
भगवतीसूत्र का मूल नाम 'व्याख्याप्रज्ञप्ति' है, किन्तु अपनी विशालता व महत्त्व के कारण जन-सामान्य में अति आदरणीय यह ग्रंथ भगवती के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। 'इयं च भगवतीत्यपि पूज्यत्वेनाभिधीयते।' समवायांग में इसके महत्त्व को बताते हुए कहा है कि 'द्रव्य, गुण, क्षेत्र, काल, पर्याय, प्रदेशपरिमाण, यथास्थिति-भाव, अनुगम, निक्षेप, नय, प्रमाण, सुनिपुण-उपक्रमों के विविध प्रकारों के द्वारा प्रकट रूप से प्रकाशित करने वाले, लोकालोक के प्रकाशक, विस्तृत संसार-समुद्र से पार उतारने में समर्थ, इन्द्रों द्वारा संपूजित, भव्यजनपदों के हृदयों को अभिनन्दित करने वाले, तमोरज का विध्वंस करने वाले, सुदृष्ट दीपक स्वरूप, ईहा, मति और बुद्धि को बढ़ाने वाले पूरे छत्तीस हजार व्याकरणों (प्रश्नोत्तरों) को दिखाने से यह व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्रार्थ के अनेक प्रकारों का प्रकाशक है, शिष्यों का हितकारक है और गुणों से महान् अर्थ से परिपूर्ण है।'
तत्त्वविज्ञान, आचार विज्ञान, जीव विज्ञान, राजनैतिक विज्ञान, आर्थिक विवेचन, धर्म-दर्शन आदि विविध विषयों को समाहित करने वाला यह ग्रंथ निःसन्देह
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन