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इच्छा व्यक्त करते हैं। किन्तु, रास्ते में उन्हें यह विचार आता है कि पुत्र अभीचि कुमार को राज्य देना उसके लिए अकल्याणकारी होगा। काम भोगों से मूर्च्छित होकर वह इस संसार में परिभ्रमण करता रहेगा। अतः वे अपने पुत्र को राज्य न सौंपकर अपने भानजे केशी कुमार को राज्य सौंप देते हैं। इसके पश्चात् राजा उदायन संयम व तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए अंत में मोक्ष पद को प्राप्त करते हैं। इधर अभीचि कुमार पिता के इस निर्णय से अपने को अपमानित महसूस करता है। एक दिन वह वितिभय नगर को छोड़कर चम्पा नगरी में कूणिक राजा के पास आश्रय ग्रहण कर वहीं रहने लगता है। अभीचि कुमार बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन करता हुआ अन्तिम समय में संलेखना मरण प्राप्त करता है। किन्तु, उदायन राजा के प्रति वैर के अनुबंध से युक्त होने के कारण असुरकुमार देव बनता है। इसके पश्चात् आगे भवों में उसके सिद्ध-बुद्धमुक्त होने का वर्णन हुआ है।
महाबल का कथानक- (11.11) भगवान् महावीर सुदर्शन श्रेष्ठी को यह कथानक सुनाते हैं- 'हस्तिनापुर के राजा बल व रानी प्रभावती के पुत्र महाबल कुमार का लालन पालन बड़े लाड़ प्यार से होता है। युवा होने पर आठ कन्याओं से उनका विवाह किया जाता है। धर्मघोष अनगार के हस्तिनापुर पधारने पर महाबल कुमार उनसे धर्मदेशना सुनने जाते हैं। वहीं उन्हें वैराग्य हो जाता है। माता-पिता के बहुत आग्रह पर वे एक दिन के लिए राज्याभिषेक करवाते हैं। बारह वर्ष श्रमण पर्याय का पालन कर देव योनि में उत्पन्न होते हैं।' इसके पश्चात् वे श्रेष्ठीकुल में सुदर्शन के रूप में उत्पन्न होते हैं। भगवान् महावीर द्वारा अपने पूर्वभव का वृत्तांत सुनकर सुदर्शन श्रेष्ठी श्रमण पर्याय का पालन कर अन्त में सर्व दुःखों का अन्त करते हैं।
ईशानेन्द्र- (3.1) भगवतीसूत्र में तृतीय शतक में ईशानेन्द्र का प्रकरण वर्णित है। वह महावीर के राजगृह में पधारने पर 32 प्रकार के नाटक करता है। तब गणधर गौतम द्वारा पूछने पर भगवान् महावीर बताते है कि यह दिव्य देवऋद्धि उसे साठ हजार वर्ष की कठोर तपस्या से प्राप्त हुई है। पूर्वभव में वह तामली नामक तापस था। लेकिन उसकी साधना विवेक के आलोक में नहीं हुई इसलिए वह ईशानेन्द्र हुआ अन्यथा उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती।
अतिमुक्त कुमार का कथानक- (5.4) अतिमुक्त कुमार भगवान् महावीर के समय के सबसे लघु श्रमण थे। एक दिन नाले के बहते पानी में पात्रों की नौका
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