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इन सातों नारक भूमियों व उनमें रहने वाले नरक के जीवों की स्थिति, लेश्या, आहार, कर्मबंध, आयु पर विभिन्न दृष्टियों से विचार किया गया है। नैरयिकों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष व उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की बताई है। नैरयिकों का आहार दो प्रकार का बताया है (1) आभोगनिर्वर्तित (खाने की बुद्धि से किया जाने वाला) (2) अनाभोगनिर्वर्तित (आहार की इच्छा के बिना भी किया जाने वाला)। परलोक खण्ड में सिद्ध के स्वरूप का भी विवेचन मिलता है। सिद्धों में ऊर्ध्व गति की प्ररूपणा की गई है।7 कथानक प्रकरण
प्रस्तुत ग्रंथ में कई प्रकरण कथानक शैली में लिखे गये हैं। इन कथानकों में श्रमण भगवान् महावीर के सम्पर्क में आने वाले तापसों, परिव्राजकों, श्रमणों तथा अन्य दर्शनों के मतावलम्बी यथा गोशालक, जमालि आदि के पूर्वजीवन एवं उत्तर जीवन का वर्णन हुआ है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
जमालि-(9.33) जमालि क्षत्रियकुण्डग्राम में वैभव व भोगपूर्ण जीवनयापन करने वाला क्षत्रिय कुमार था। वह नगर में भगवान् महावीर के पदार्पण का समाचार सुनकर दर्शन हेतु वहाँ जाता है। महावीर के प्रवचन सुनकर उसे वैराग्य हो जाता है। बहुत ही प्रयत्नपूर्वक माता-पिता से अनुमति प्राप्त कर दीक्षा ग्रहण करता है। कुछ समय बाद भगवान् महावीर की आज्ञा लिए बिना ही वह 500 श्रमणों के साथ अन्यत्र विहार कर जाता है। उग्र तप एवं नीरस आहार के कारण उसके शरीर में पित्तज्वर हो जाता है। किसी समय बिछौना बिछाते हुए श्रमणों द्वारा यह कहने पर कि 'बिछौना बिछा नहीं, बिछाया जा रहा है' जमालि भगवान् महावीर के इस सिद्धान्त के विरुद्ध हो जाता है कि 'चलमान चलित नहीं है, अचलित है।' इसके पश्चात् स्वस्थ व हृष्टपुष्ट होकर जमालि चम्पानगरी में भगवान् महावीर के पास जाकर अपने केवली होने का दावा करता है। तब गौतम गणधर उससे 'लोक व जीव शाश्वत है या अशाश्वत' ये दो प्रश्न पूछते हैं। जमालि मौन हो जाता है। तब भगवान् महावीर उसे लोक व जीव की शाश्वतता व अशाश्वतता दोनों समझाते हैं। फिर भी जमालि भगवान् की बात पर श्रद्धा न करता हुआ वहाँ से चला जाता है। श्रमण पर्याय का पालन करता हुआ किल्विषिक देवरूप में उत्पन्न होता है। इसके पश्चात् जमालि के भविष्य के पाँच भवों का वर्णन व अन्त में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का उल्लेख हुआ है।
विषयवस्तु