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पाँचवीं शती के हैं तो कुछ सन्दर्भ ईसा की छठी शताब्दी के भी हैं। अतः इस ग्रंथ की रचनाकाल की अवधि ईसा पू. 500 से ईसा की छठी शती अर्थात् लगभग 1,000 वर्ष की है। डॉ० शुब्रिग आदि विदेशी विद्वानों ने रचना के आधार पर इसके मूल पाठ व परिवर्धित पाठों के रचनाकाल के निर्धारण का प्रयास किया है, किन्तु यह अभी भी शोध का विषय है। इसके विभिन्न पाठों का रचनाकाल निकालने के लिए भाषा, साहित्य, इतिहास, दर्शन और रचनाशैली आदि अनेक साक्ष्यों के गहन विश्लेषण की आवश्यकता है। रचना शैली
प्रस्तुत आगम की रचना प्रश्नोत्तर शैली में हुई है। नन्दीसूत्र के चूर्णिकार ने इसका उल्लेख करते हुए बताया है कि गौतमादि शिष्यों द्वारा पूछे गये तथा नहीं पूछे गये जो प्रश्न थे, इसमें उसका व्याकरण है। राजवार्तिक में भी व्याख्याप्रज्ञप्ति में इसी प्रकार की प्रश्नोत्तर शैली होने का उल्लेख मिलता है। उपलब्ध व्याख्याप्रज्ञप्ति में भी यही प्रश्रोत्तरशैली विद्यमान है, जो संभवतः प्राचीन ही प्रतीत होती है। ___ ग्रंथ की रचनाशैली में एक प्रमुख बात सामने आती है कि इस ग्रंथ में विषयों का विवेचन अन्य ग्रंथों की तरह क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित ढंग से नहीं मिलता है। पूरे ग्रंथ में विषयवस्तु बिखरी-बिखरी सी लगती है। संभवतः इसका कारण यह रहा होगा कि प्रश्नोत्तर शैली में लिखे गये इस ग्रंथ में प्रश्नकर्ता गौतम गणधर, माकन्दिपुत्र, रोह अनगार, अग्निभूति, वायुभूति, स्कन्दक परिव्राजक,पार्श्वपरम्परा के अनगार, जयन्ती श्राविका आदि थे। कभी-कभी अन्यधर्मतीर्थावलम्बी भी अपनी शंका समाधान हेतु महावीर से प्रश्न करते थे। इन सभी प्रश्नकर्ताओं के मन में जब कोई जिज्ञासा उत्पन्न होती, तभी वे भगवान् महावीर से उसका समाधान प्राप्त करने पहुँच जाते । गणधर सुधर्मास्वामी द्वारा संकलन करते समय उन प्रश्नोत्तरों को उसी क्रम में उसी रूप में ग्रथित कर लिया गया। अतः विषयों की अक्रमबद्धता प्रस्तुत आगम की प्रामाणिकता को पुष्ट करती है।
इसकी प्रश्नोत्तर शैली की कुछ मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं(1) कहीं कहीं प्रश्न व उत्तर दोनों की भाषा संक्षिप्त है
तिरियलोए णं भन्ते! पुच्छा।
गोयमा! असंखेजइभागं फुसइ। - (2.10.15) (2) कहीं प्रश्न विस्तृत है और उत्तर संक्षिप्त है। अतः प्रति प्रश्न भी किया गया है।
प्रति प्रश्न ‘से केणढेणं भंते' से प्रारंभ होता है।
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भगवतीसूत्र का दार्शनिक परिशीलन