Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Aryarakshit, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 362
________________ श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य प्रथमं परिशिष्टम् ७२. 'यणं उव्वेहेणं तं मुद्रिते ॥ ७३. जावइयेणं कालेणं से पल्ले जाव निट्ठिए से तं वावहारिए [खेत संवा०] जाव पण्णवणा कज्जइ । से तं वावहारिए खेत्त [सू० ३९५] संवा० वी० ॥ ७४. सिया जाव असंखे संवा० वी० ॥ ७५. °यामेणं जाव भरिए वाल सं० ॥ ७६. कीरति जाव सरीरोगा सं० ॥ ७७. ते णो वि अग्गी दुहेजा जाव नो पूतित्ताते हव्व सं० ॥ ७८. "जा जाव हव्व' संवा० ॥ ७९. खीणे जाव णिट्ठिए सं० ॥ ८०. ३९७. एवं वयंतं पण्णवर्ग चोयए एवं वयासी संवा०॥ ८१. "मते मंचे सिया खं० जे० वा०॥ ८२. णं गुम्मा पक्खि खं०॥ ८३. माया, एवं बिल्ला आमलगा बयरा चणगा [मुग्गा] सरिसवा गंगावालुया पक्खि संवा० वी० ॥ ८४. माया, एवमेव संवा० ॥ ८५. तं सुहुमखेत्तसागरस्स उ एगस्स संवा० वी० ॥ ८६. सुहुमखेत्त संवा० ।। ८७. °वमेहिं दिट्ठिवाए संवा० वी० ॥ ८८. हा दव्वा पन्न' संवा०॥ ८९. अत्रेदमवधेयं धीधनैःमुद्रितक्रमानुसारी पाठः केवलं सं० आदर्श एव वर्त्तते, शेषप्रतिषु पुनः प्रथमं जीवसूत्रं तदनन्तरं च अजीवसूत्रं लिखितमास्ते । अपि च श्रीहरिभद्रसूरिभगवता श्रीमलधारिपादैश्च स्वस्ववृत्तौ सं० आदर्शवत् प्रथममजीवसूत्रं तदनन्तरं च जीवसूत्रं व्याख्यातमस्ति, किन्तु भगवता चूर्णिकृता शेषप्रतिगतपाठवद् जीवसूत्रव्याख्यानानन्तरमजीवसूत्रं विवृतमस्तीति । अपि च वी० आदर्शे-“जीवदव्वा णमित्यादि जीवदव्वा णं नो संखेज्जा नो असंखेज्जा अणंता इत्येतदन्त आलापकः अजीवदव्या णं भंते! इत्यादि ते णं णो संखेजा नो असंखेजा अणंता इत्यन्तालापकानन्तरं दृश्यः, वृत्तौ तथैव दर्शनात् ।" इति टिप्पण्यपि वर्त्तते॥ ९०. अरूवीअ संवा० वी० विना ॥ ९१. रूवीअ संवा० वी० विना ॥ ९२. अरूवीअ संवा० वी० विना॥ ९३. देसे धम्मत्थिकायस्स पदेसे, एवं अधम्मत्थिकाए ३ आगासत्थिकाए ३ अद्धा संवा० वी० ॥ ९४. खंधा देसा पदेसा पर खं० ॥ ९५. वुच्चइ जाव अणंता संवा० ॥ ९६. जाव दसपएसिया खंधा संखिजपए० असंखिजपए० अणंतपए० संवा० वी० ॥ ९७. से तेणट्टेणं गो० सं० संवा० ॥ ९८. जा जाव अणंता सं० संवा० ॥ ९९. व्वा जाव अणंता संवा० ॥ १००. रा असंखेजा णागकुमारा असंखेजा सुवण्णकुमारा असं० विजुकु० असं० अग्गिकु० असं० दीवकु० असं० उदहिकु० असं० दिसाकु० असं० वायुकु० असं० थणियकुमारा असंखेजा पुढविकाइया असंखेजा आउक्काइया असंखेजा तेउक्काइया असंखेजा वाउक्काइया अणंता वणस्सइकाइया असंखेजा बेंदिया असंखेजा देया असंखेज्जा चउरिदिया असं० पंचेंदियतिरिक्खजोणिया सं०॥ १०१. जाव थणि संवा०॥ १०२. °या, एवं आउ० तेउ० वाउ०, अणंता वणस्सइकाइया जाव असंखिज्जा बेंदिया तेंदिया चउरिंदिया पंचिंदिय[तिरिक्खजोणिया] मणुस्सा असंखेजा वाणमंतरा, एवं जोइसिया वेमाणिया, अणंता सिद्धा से तेणटेणं संवा० वी० ॥ सू० ४०५-४१३] १-२. सरीरगा सं० संवा० ॥ ३-४. सरीरगा सं० ॥ ५. कम्मए । एवं असुरकुमाराणं । पुढविकाइयाणं पुच्छा, गो० ! ततो सरीरगा पं० । तं०- ओरालिए तेयए कम्मए। एवं वाउक्कायवजाणं जाव चउरिंदियाणं । वाउक्कातियाणं पुच्छा, गोयमा ! वाउकातियाणं चत्तारि सरीरगा पं० तं०- ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए । एवं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण वि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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