Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Aryarakshit, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

Previous | Next

Page 482
________________ श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य षष्ठं परिशिष्टम् १२८ वायुः समुत्थितो ... ... हे०३१०| सज्जादि तिधा गामो,... ... चू०३०६,हा०३०८, वायुः समुत्थितो नाभे... ... हे०३१३ विज्ञप्ति: फलदा पुंसां, ... ... हा०६३०,हे०६३८| सत्त य सुत्तणिबद्धा,... ... चू०३०५,हा०३०८ विविहा विसिट्ठगा... ... ___ हा०४४८ सद्दहण जाणणा खलु ...[आवश्यकनि० ७५३] विशेषणं विशेष्येण बहुलम् [पा०२।१।५७] हे०६१५ ___ हा०३४३) सप्तमीपञ्चम्यन्ते जनेर्ड: [कातन्त्र० ४।३।९१] । वीसुं न सव्वहच्चिय ... ... हे०३४८ [विशेषावश्यकभा० १६४] हे०६४१ | सप्तम्यां जनेर्ड: [पा०३।२।९७] हा०३४२,हे०३५० शप आक्रोशे [पा०धा०१०६९,१२४४] ... ... | समयावलियमुहुत्ता...[अनुयोगद्वारे सू०३६५, हा०६२९,हे०६३४ आवश्यकनि०६६३] हे०१८४ शिल्पम् [पा० ४/४/५५] हा०३४३| समानः सवर्णे दीर्घाभवति परश्च लोपमापद्यते... शूर वीर विक्रान्तौ...[का०धा०९।२१५] हे०३२६] [कातन्त्र० ११२।१] चू०हा०२७४,हे०२७५ शृङ्गार-हास्य-करुणा ... ... हे०३२६| समुदाएणुभताणं,... ... चू०२८,हा०२९ श्रेयांसि बहुविघ्नानि भवन्ति हा०३) सम्बन्ध[द्धामुपक्रमत:... ... हा०११३ श्लेष्माणमरुचिं पित्तं ... ... हे०२७० | सम्मत्तचरणसहिया सव्वं ... षट् सहस्राणि युज्यन्ते, ... ... हे०५८४| | [आवश्यकनि० ८५९] हे०६१७ संख्यापरिमाणे हा०४९५ | सम्मत्तदेसविरया पलियस्स... संख्यापूर्वो द्विगुः[पा०२।११५२] हा०३४३,हे०३५० | [आवश्यकनि० ८५६]... हे०६१७ संघिया य पदं... ... [कल्पभा० ३०२] हे०२१ सम्मत्त-देसविरया पलियस्स असंखभागमेत्ता उ संज्ञायां कन्... ... [आवश्यकनि०८५०]हे०६१६ [पा० ५/३७६,८७] हा०५४,हे०५६ | सम्मत्तस्स सुयस्स य... [आवश्यकनि० ८४९] संझाछेदावरणो तु ...[आवश्यकनि० १३५] । हे०६१६ हा०२९०,हे०२९८ सम्मद्दिट्ठि अमोहो सोही... संति पंच महब्भूता,... ... [सूत्रकृ० ११११७] | [आवश्यकनि० ८६१] हे०६१७ चू०५७६,हा०५७७,हे०५७८/ सरफलमव्वभिचारिं,... ... चू०३०६,हा०३०८ संबंध-ऽभिधेय-पओयणाई... ... हे०७| सरूपाणामेकशेष एकविभक्तौ [पा०१।२।६४] संयोगसिद्धीए फलं वयंति... हा०३४३ [आवश्यकनि० १०२] हे०६४१ सर्वं क्षणिकमित्येतद् ज्ञात्वा... ... हा०५८१, संहिता च पदं चैव ... ... हे०१४३ हे०५८४ स एव प्राणिति ... ... हे०३३१] सर्वं पश्यतु मा ...[प्रमाणवा०१/३३-३५] हे०९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560