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१४७, श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य अष्टमं परिशिष्टम् - विश्वप्रहेलिकानुसारेण समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल = {३ (५ x १) x ७}
- २१ वर्ग रज्जु · अतः प्रत्येक समलम्ब-चतुर्भुज समपार्श्व का घनफल = २१ x ७
= १४७ घन रज्जु अतः समग्र ऊर्ध्व लोक का घनफल = २ ( १४७)
___ = १४७ घन रज्जु । इस प्रकार ऊर्ध्वलोक का घनफल १४७ घन रज्जु है। अधोलोक और ऊर्ध्व लोक के घनफलों को मिलाने पर समग्र लोक का घनफल निकलता है; अतः
समग्र लोक का घनफल = १९६ + १४७ = ३४३ घन रज्जु
श्वेताम्बर-परम्परा
_श्वेताम्बर-परम्परा के आगम-साहित्य में यद्यपि लोक के आयाम, विष्कम्भ आदि के विषय में विस्तृत गाणितिक विवेचन उपलब्ध नहीं है, फिर भी उत्तरवर्ती ग्रन्थो में 'जो विवेचन किया गया है, उसके आधार पर यहाँ लोक का गाणितिक विवेचन किया जा रहा है। इन ग्रन्थों के अनुसार : 'लोक की ऊँचाई १४ रज्जु है। दूसरा परिमाण (चौडाई) और तीसरा परिमाण (लम्बाई) विभिन्न ऊँचाइयों पर भिन्न-भिन्न है और समान ऊँचाई पर समान है। अर्थात् लोक का यदि कहीं से भी तिर्यक् छेद किया जाये, तो वह समचतुरस्र (Square) होगा (देखें, चित्र नं.८) । भिन्न-भिन्न ऊँचाइयों पर लम्बाई
और चौडाई क्या है, उसे नीचे दिये गये कोष्ठक में बताया गया है (देखें चित्र नं.९) । यहाँ पर लम्बाईचौडाई ‘खण्डूक' नामक मान में व्यक्त की गई है । खण्डूक का अर्थ है – रज्जु का चतुर्थांश :
१. विनयविजयजीकृत लोकप्रकाश, सर्ग १२ में वह विवेचन उपलब्ध होता है। इसके सदृश विवेचन का उल्लेख जर्मन • विद्वान् फोन ग्लैसनहाप द्वारा लिखित देर जैनिजिमुस पुस्तक में पाया गया है । ग्लेसनहाप ने 'लोक-स्त्री' (Weltfrau) का एक चित्र चन्द्रसूरि के संग्रहणी-सूत्र से उद्धृत किया है। इस चित्र में लोक के आयाम, विष्कम्भ और आयतन आदि का किया गया गाणितिक वर्णन लोक-प्रकाश के गणितिक वर्णन से अधिकांश समान है। संग्रहणी का उल्लेख लोक-प्रकाश में बहुत स्थलों पर किया गया है। अतः यह अनुमान है कि उससे ही आचार्य विनयविजयजी ने सारा विवेचन लिया हो । बृहत-संग्रहणी जैसे प्राचीन ग्रन्थों में भी गाणितिक विवेचन मिलता है। २. लोक-प्रकाश, सर्ग १२ श्लोक ८ से १११ तक; तथा देखें, देर जैनिजिमुस पृ० २३२ ।
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