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श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य अष्टमं परिशिष्टम् - विश्वप्रहेलिकानुसारेण १६२ इन मानों को हम प्रकाश-वर्ष में भी व्यक्त कर सकते है । क्योंकि १ प्रकाश वर्ष = ५.८८ x १०१२ माईल है, अतः
{ (१.४७ x १०१९६) + ८ } (१) १ रज्जु = २.९१ x २० प्रकाश वर्ष ।
___{ (१.४५ x १०१९६) + ८ } (२) १ रज्जु = १.४५ x १० प्रकाश वर्ष
इस प्रकार से रज्जु का न्यूनतम माप माईल तथा प्रकाश-वर्ष में व्यक्त करने से समग्र विश्व का घनफल हम आधुनिक मापों में व्यक्त कर सकते है। उपरोक्त मूल्यांकनों को स्वीकार करने पर विश्व का घनफल, जो ३४३ घन रज्जु है, घन माइलों में और घन प्रकाश-वर्षों में क्रमशः निम्न प्रकार आता है :
{ (४.४१ x १०१९६) + ६५ } (१) ११.३५ x १० घन माईल ।
{ (४.४१ x १०१९६) + ६५ } (२) १.४२ x १० घन माईल प्रकाश वर्षों में
{ (४.४१ x १०१९६) + २७ } (१) ८.४५ x १० घन प्रकाश वर्ष
{ (४.४१ x १०१९६) + २७ } (२) १.०५ x १० घन प्रकाश-वर्ष २. तिर्यग् लोक के द्वीप-समुद्रों के परिमाणों का उपयोग
रज्जु के अंकीकरण करने का दूसरा प्रकार उसकी निम्न व्याख्या पर आधारित है :
"प्रमाणांगुल से निष्पन्न जो योजन होता है, उस प्रकार के असंख्य कोटाकोटि योजनों का १ रजु होता है। स्वयंभूरमण समुद्र की पूर्व और पश्चिम वेदिकाओं के बीच में जो अन्तर है, वह १ रज्जु है।" जैन दर्शन के अनुसार समग्र लोक के मध्य में 'तिर्यग्-लोक' है, जिसमें असंख्य द्वीपसमुद्र हैं। ये द्वीप-समुद्र वलय के आकार में एक दूसरे को परिवृत्त करते हैं। सबके मध्य में १ लाख योजन प्रमाण व्यास वाला जम्बूद्वीप है और सबसे अन्तिम असंख्य योजन व्यास वाला स्वयंभूरमण समुद्र है। प्रत्येक द्वीप के बाद समुद्र और समुद्र के बाद द्वीप है। प्रत्येक वलय का बाहल्य पूर्व वलय के १. प्रमाणांगुलनिष्पन्नयोजनानां प्रमाणतः । असंख्यकोटाकोटिभिरेका रजुः प्रकीर्तिता॥
स्वयम्भूरमणाब्धेर्ये पूर्वपश्चिमवेदिके । तयोः परान्तान्तरालं रज्जुमानमिदं भवेत् ।। - लोक प्रकाश, १-६४-६५ ।
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