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श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य अष्टमं परिशिष्टम् - विश्वप्रहेलिकानुसारेण
१७०
में
समचतुरस्राकार माना गया है । यहाँ समचतुरस्राकार को मान्य रख कर घनफल निकाला जा रहा है। यह स्पष्ट है कि अधोलोक की लम्बाई-चौड़ाई में ऊपर से नीचे तक क्रमिक वृद्धि हुई है, अर्थात् ऊपर से नीचे तक जो समचतुरस्र हैं, वे उत्तरोत्तर बड़े-बड़े हैं। दूसरे शब्दों में सबसे ऊपर वाला समचतुरस्र एक रज्जु लम्बाई-चौड़ाई वाला और नीचे का सात रज्जु लम्बाई-चौड़ाई वाला है, जबकि बीच के समचतुरस्र एक के नीचे एक अधिकाधिक लम्बाई-चौड़ाई वाले हैं । बीच के समचतुरस्रों के परिमाण हमें ज्ञात नहीं है; अतः ऊपर के समचतुरस्र और नीचे के समचतुरस्र को जोड़ने वाली रेखा के अनेक विकल्प बन जाते हैं। वह सीधी भी हो सकती है और वक्र भी । आधुनिक समाकलन गणित ( इण्टिग्रल केल्क्युलस)
आधार पर इस प्रकार की आकृति के आयतन को निकाला जा सकता है, यदि जोड़ने वाली रेखा के समीकरण का हमें पता हो अथवा यदि आयतन का पता हो, तो उस रेखा का समीकरण निकाला जा सकता है, जिससे लोकाकृति का निश्चित रूप ज्ञात हो सकता है । हम यदि अधोलोक के आयतन को १९६ घन रज्जु मान लेते हैं, तो इसकी आकृति का ज्ञान हमें हो जाता है । समाकलन गणित की विधि का हिन्दी भाषा में अधिक प्रचलन नहीं होने के कारण इसकी चर्चा अंग्रेजी भाषा में करना ही उपयुक्त रहेगा ।
Let ox, oz represent the axes, AB is the curve joining the corressponding points on the squares. Let x = f(z) be the equation of such a curve. Then the volume of the solid figure bounded by such curves and squares is given by
v = 4 J x±dz
between proper limits. Out of the infinite number of curves passing through A, B, we have to find out the required curve. One of the possibilities is that it is a conic. Let the conic be represented by the equation,
Ax 2 = Bxz + Cz 2 + Dx + Ez = 1
Then, because the curve is symmetrical about the z axis, the co-efficients B & D will be equal to zero. Thus, the equation of conic is-
Ax 2 + Cz2 + Ez = 1
Cz2
x2
Ez)
The points (1⁄2, 0, 0) & ( 1/2, 0, 7 ) lie on the curve.
2
=
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(1
... When x =
-
-
글
Also when x = 12, z = 7
49. 4 + C.49 + E.7 = 1
z = 0, i.e. A = 49
"
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