Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Aryarakshit, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 449
________________ ९५ श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य तृतीयं परिशिष्टम् सूत्राङ्कादि २० मूलशब्दः सूत्राकादि | मूलशब्दः संखेजतिभागे १२९,१५२२२], | संगहस्स १९३ संखेजपएसिए ६३,९९ संखेजपएसोगाढा १४३ | संगह संखेजपदेसोगाढे ३३१ संगहिय० संखेजयस्स ५०८ | संगहे संखेजय ५०७,५०८ संगहो संखेजसमयट्ठिईए १८४ | संगोवंगा संखेजसमयट्टितीए २०१२] | संघतण संखेजसमयद्वितीयाओ १८४ | संघाइमे संखेज्जा ३६१,४०३, संघाए ४०४,४२३[१-२] संघात संखेज्जाई १०७[१],१२४, संघाताणं १५१,१९२ | संघाते संखेज्जाओ ३६७,४२३[१] संघाय संखेज्जाणं ३६६ +संघाय संखेजे १०९[१-२], | संघायसंखा १२६,१५३[१] संचारसमं संखेजेणं ४२३[२] संजणणो संखेज्जेसु १०५,१०८[१-२], संजमे ११२[१-२],१२५, संजूहनामे १२९,१५२[१-२] संजूहे संखो २६०[४]गा.३०/०संजोएणं ४९१ +संजोग ६०६गा.१३७ संजोग संगहकत्तारो २६०[५]गा.३६ | संजोगसंगहणिगाहा ५३३ | संजोगनामे संगहणिगाहाओ २८५,२८६, ०संजोगा __३५१[५],३८७[५] संजोगे । संगहस्स १५[३],५७[३], संजोगे ९७,११५तः१२१,१४१,१५९, संजोगेणं सूत्राङ्कादि | मूलशब्दः १८२,१९९,२००, संझा २४९गा.२४,४५३गा.११८ ४७४,४७५, संठाण २२४,३५८ ४८३[३],५३९ संठाण ४२९,४३४ ४७६ | संठाणगुणप्पमाणे ४३४ ६०६गा.१३७| संठाणनामे २१९,२२४ ६०६ संठाणाणुपुव्वी ९२,२०५[१-४] ४७६ ०संठिए . ३५८ ४९,४६८ संड २४४ संतएण ४९२[१] ११,४७९ संतएहिं ४९२[२] ३६६ संतपयपरूवणया १०५गा.८, २४४ १२२गा.९,१४९गा.१०, ३६६ १५०,१९०गा.१५ ३६६ संतयं ४९२[२-३] २४४ संतरं ६०४गा.१३४ ७२गा.५ संता ४९२२] ४९४ संताई ४९२[३] २६०[१०]गा.५० |संती २०३[२] २६२[३]गा.६६ संथार० १७,३७,४७५ ५९९गा.१२७|संदट्ठ-० २६२[५]गा.७१ ३०८ संदमाणिय ३०२गा.९२ | संपतिसद्दणओ ४७६ २५१ संपयं समभिरूढं ४७६ ३०२गा.९२ संपयावणे २६१गा.५७ २६२[७]गा.७४/ संभम २६२[५]गा.७० २६२[३]गा.६६ संभम- २६२[९]गा.७८ __ ३०६ संभवंति २६०[१०]गा.४३, २५१,२५२ २६०[१०]गा.४४ २७२ संभवे २०३[२] २५१/०संभवे २६०[३]गा.२९ __ २६३,२७२ ०संभवो २६२४१०]गा.८० ३३६ संगह संगह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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