Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Aryarakshit, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 448
________________ मूलशब्दः सव्व० सव्व० सूत्राङ्कादि मूलशब्दः १०८[१२], सव्वासिं १०९[१],१२५,१२६, सव्वे १९३,२४४, २८५, २८९, ३५७,३६२,४१६,४२०[२], सव्वेसिं ४५९, ४६२, ४६६, ४७१, ५३०[१],५३३,५३३गा. १२४, सव्वेसु ५९९गा.१२८,५९९गा. १२९, सव्वेहिं सव्व-० सव्वग्गं सव्व सिद्धए ६०६गा. १३७,६०६गा. १४१ | ससमए १२७ | ससमयपयं सव्वसिद्धे सहिं सव्वत्थ सव्वथोवाई सव्वत्थोवे सव्वदरिसीहिं सव्वदंसी सव्वदुक्ख सव्वद्धा श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य तृतीयं परिशिष्टम् सूत्राङ्कादि मूलशब्दः ३४७[५] सहस्साइं १०१, २५१, ४९२[२]गा.११९०सहस्साइं २१६[१३,१७-१८], सहस्सारए ५९९गा. १३०,६०६गा. १४१ सहस्सारे ४७५ सहारे ३६७गा. १०६ | ०सहस्सारेसु ५२२,५२४० सहस्से सव्वन्नूहिं सव्वलोए सव्वलोगं सव्ववेहम्मे सव्वसाहम्मे सव्वा सव्वागाससेढी Jain Education International ६०६गा. १४२ ससमयपरसम२१६[१८] | यवत्तव्वयं ३९१[९] | ससमयपरसमय४६९ वत्तव्वया २६० [१०] गा. ५२ ससमयवत्तव्वयं ११४[१-३], ससमयवत्तव्वया १५८[१-३] ३३८,३५७, ३६२ | ससमयं ५०, ४६९ | ससविसाणं १९५[१-३],२०२[२-३] ०सहस्स सव्वद्धाए ५३२ सव्वनयविसुद्धं ६०६गा. १४१ सहस्सगुणं २४४ ससुरए २४४० सस्सं १२७,१५४, सस्सामिवायणे ५५४ सहस्सा ६०५ संकमणं | संका० ५२५[१] संकिलिस्समाणयं संख ५२१,५२४,५२५[३] संखगइनाम - गोत्ताइं ५२५[१-३] संखप्पमाणे ५२१, संखं ५२२,५२५ [२-३] संखा ५० सहसपुहत्तं १५२[१-२] | सहस्सरस्सिम्मि १५३[१] सहस्सं ४६३, ४६६ ० सहस् ४५९, ४६२ ५२५[३] सूत्राङ्कादि ३८७ [५] गा.१११, ९४ ५०८ २०४[२] २१६[१६] १७३ ३९१[७] ३५५[३] २०२[२],५३२ ६०६गा. १३९ २६२ [६]गा. ७२ ४७२ ३२९,५६८ ५२० ४२७,४७७, ५२० ४४३,४९१ ४७८, ४७९,४८२, ५२५ [२] ४९२[५] ० संखा ३०६ | संखिज्जपएसिए ४५१,४५५ संखिज्जपएसिया २६१गा. ५८ | संखिज्जपएसोगाढे ३५१[५]गा. १०१, संखेज्ज० ३५१[५]गा. १०२ | संखेज्जइ० ३५८ ४८५, ४८६ ४९४तः ४९७ १३६, १३७ ११६ १४३ ४२४[२] १०८[१-२], १०९[१-२] ४१५,४२३[३] | संखेज्जइभागं १५३[१], ३४७[१३,५-६],३४८[१],३५५ [१] २० २०४[२],३२६ | संखेज्जइभागे ३४९[२], संखेज्जए ३५१[१-३], संखेज्जएणं ३५१[५]गा.१०२,५०८ संखेज्जति० १२५, १२६,१५३[१] ३६७गा. १०६ संखेज्जतिभागं ३४७[४] For Private & Personal Use Only १५२[१],१९३ ४९७,४९८, ५०९ ३६० www.jainelibrary.org

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