Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Aryarakshit, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 459
________________ १०५ श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य चतुर्थं परिशिष्टम् (२) विशेषनाम पृष्ठाङ्कः | विशेषनाम पृष्ठाङ्कः | विशेषनाम पृष्ठाङ्कः ऋग्वेद __ हे०९४ | तन्दुलविचारणादि हे० १५ | भरह चू०३९३,हा०३७८ ओघनियुक्ति हे०२५५ | तमःप्रभा हे०२१९ भारत हा०हे०७५, ७६, ८४ औपपातिकादि हे० १५ तमा हे०२१९ भाष्यकार हे०५९२,हा०६२७ उत्तरज्झयणादि चू०७,हा०१० दशवैकालिकादि हे० १९ भाष्यसुधाम्भोनिधि हे०६२३ उत्तराध्ययनटीकादि हे०१९० द्वादशारं नयचक्रम् हे०६३७ | भौत हा० ६७ उत्तराध्ययनादि हे० १४, १९ / देवदत्त चू० २८ | मघा चू०हे०२१८ उलूय हा० ४७,६२७ धूमप्रभा हे०२१९ | मलयविषय हे०८९ उ(ओ)ववादियादि चू०७,हा०१० नंदि चू० २२ | मलयविसय चू० ८७ कणाद हा० ६२७ नंदिचुण्णी चू० २ | महाडंडय चू०४६५,४८८ कप्पपेढ चू० २३ नन्दीविशेषविवरण हा० ९३ | महादंडय हा०४६५,४८९,४९३ कल्प हे०२५५ नन्द्यध्ययन हा०३,हे०२४,४९८ | महातमःप्रभा हे०२१९ कुणाल हा० ४१ नन्द्यध्ययनटीका हा० ३ महादण्डक हे०४८९,४९१ गायत्री चू० ७४, हे०७६ निशीथ हे०२५५ महामति हे०५९२ गिरिणगर __ हा० ६८ पइण्णग हा० ११ महावीर हा०४०हे०३७४,३९९, गिरिनगर हा०३४४,हे०७२,३५२ पइन्नय चू०८, हा०११ ४००, ५२१ गोयम हे०१६८,२२३,४१२ पङ्कप्रभा हे०२१९ माघवती चूल्हे०२१८ गौतम चू० ६६, हा० ४,६७ | पण्णवणा चू०हा०२०८ | माषतुष हा० २३ घम्मा चू०हे०२१८ पनवणा हे०१९९ | मुनिचन्द्रसूरि हे०६४३ चंदगुत्त हा०४०, ४१ पाडलिपुत्त हा० ४० | मोरियवंस हा० ४१ चीणविसय चू० ८७ | पाण्डुराङ्ग हे०३४९ यजुर्वेद हे०९४ चीनविषय हे०८९ पार्श्वनाथ ५२१ | याज्ञवल्क चू० ६६ चर्णि हे०५,२२२,२३३ पुरुषचन्द्र हा०५०२,हे०५०५ याज्ञवल्क्य हे०६९ चूर्णिकार हे० १५ प्रज्ञापना हे०२०९ युगादिदेव हे०३९९,चू०४४५ जयसिंहसूरि हे०६४३ प्रज्ञापनामहादण्डक हे०४६६ रत्नप्रभा हे०२१९ जिणभद्दखमासमण चू०४९२, प्रज्ञापनासूत्र हे०१६८ राजगृह हे०४५ (जिणभद्दगणिखमासमण) ४४५ प्रश्नवाहनकुल हे०६४२ रामायण हा०हे०७५, ७६ हा०४९३ | बिंदुसार हा० ४०, ४१ रायगिह हा० ४० जिनभट हा० ६३२ बुद्धसासण चू० ६६ | रिट्ठा चू०हे०२१८ टीको हे०५,२२१,२३३ | बौद्ध हे०६२० | वंसा चू०हे०२१८ तंदुलवेयालियादि चू०८,हा०११ भरत हे०३१३,३७३,३७४,३९९ | वद्धमाणसामि चू०३६९,हा०३७१ १. जिनदासगणिविरचिता अनुयोगद्वारचूर्णिः । २. हरिभद्रसूरिविरचिता अनुयोगद्वारटीका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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