Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Aryarakshit, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 394
________________ ३६६ कारणं श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य तृतीयं परिशिष्टम् मूलशब्दः सूत्राङ्कादि | मूलशब्दः सूत्राङ्कादि | मूलशब्दः सूत्राङ्कादि काम० २६२[२]गा.६५ ३८५[५],४९६,६०४गा.१३४ | कित्तइस्सामि ७४गा.७ +काय ७२गा.५ ०कालं ३८३[२-४], किन्नरखंधे कायव्वयं २९गा.३ ३८४[१],३८५[१], किमिरागे कायाणादे०] ८० ३८७[३-४],३८८[१], | किर ३४३[५]गा.१०० काये ३८९,३९१[२-४,७-९] | ०किलामिययं २६२[९]गा.७९ +कारण ६०४गा.१३३ | कालाणुपुव्वी ९३,१८०,१८३, | किसल० ४९२[४]गा.१२२ कारणं १९८ तः २०१[१],२०२[१,४] | किसलयाणं ४९२[४]गा.१२१ ४४४ कालाणुपुव्वीए १८६,१९४,२०० किं ३तः६,९तः११,१३,१४, कारणेणं ४४२,४४४ | कालियसुयपरिमाणसंखा ४९३, | १६तः२८,३०तः३२,३४तः३९, +काल २६१गा.६२, ४९४ ४१तः५०,५२तः५४,५६तः६४, ६०४गा.१३३ | कालियस्स ६६तः७१,७६,७८तः९१, काल ४५०तः४५७|काली २६०[११]गा.५५ ९३,९५,९८तः१०२,१०४ ०कालए २२५ | काले २०६[२]गा.१६, तः १०९[१],११२४१-२], कालओ ११०[१],१२७, २६०[३]गा.२९,३६६ ११३[१],११५तः१२६,१२९, ४१३,४१४,४१६,४१८[२], काले १८,३८,६०, १३१तः१३४,१३६तः१३९, ४२१४१],४२२[२],४२३[१],४२६[२] ४८६,५४२,५८६ १४२तः१५२१],१५३,१५९ ०कालगहणं ४५६,४५७ | कालेणं ३६६,३७२,३७४, तः१६३,१६५तः१६७,१६९ कालतो १११[१-३], ३७९,३८१,३९४,३९६, तः१७१,१७३तः१७५,१७७ १२८,१५४,१५५,१९५[१-३], ४२०[३],४२३[२] | तः१८०,१८३,१८४,१८६तः१९३, १९६[१-२],४१६,४१९[२], कालो १०५गा.८,१२२ २००तः२१२,२१४,२१५,२१७ ४२४[२],४८८तः ४९० गा.९,१४९गा.१० तः२२५,२२७तः२५१,२६०[१], कालनाणी ४९६ कालोय १६९गा.११ २६१,२६२[१],२६२[४] कालप्पत्तं ४९२[४]गा.१२० | कालोवक्कमे ७६,८६ गा.६९,२६३तः३१८,३२०, कालप्पमाणे ३१३,३६३,४२६[४] | कावालियए २८८ ३२२,३२४,३२६,३२८,३३० कालवण्णनामे २२० काविलं तः३३४,३३९,३४०,३४२,३५८, कालसमोयारे ५२७,५३२/किकिरि ३६०,३६३तः३६६,३६८तः३७०, कालसंजोगे २७२,२७८ | किच्चिरं ६०४गा.१३४ ३७३तः३७५,३७७,३८०तः३८२, कालस्स८६ किट्टिसे ३९२,३९५,३९६,३९८,४०३, कालं ११०[१],१११[१-३], | किण्णरे २१६[१४] ४०४,४२७तः४५३,४५५त:४६९, १५४,१५५,१९५[१], | किण्ह० २९७ ४७१तः४७९,४८१,४८२, १९६[२-३],३८३[१-२], | किण्हो ४८४तः४९२[१],४९३तः५०६, ४९ ३२१ २९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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