Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Aryarakshit, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 415
________________ ६१ श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य ततीयं परिशिष्टम् ४७६ मूलशब्दः सूत्राङ्कादि | मूलशब्दः सूत्राङ्कादि | मूलशब्दः सूत्राङ्कादि दव्वओ __ ४१३,४१६ | दव्वसंखाओ ४८३[१,३] | ५७४,५८७ दव्वखंधाई ५१[१] दव्वसंजोगे २७२,२७३,२७६ / ०दव्वाण ११४[१],१५८[१], दव्वखंधाणि ५७[३] | दव्वसामाइए ५९३,५९५,५९६ २०९गा.१७ दव्वखंधे ५२, | दव्वसुयं ३०,३४,३५, दव्वाणं ३२३,३२५,३२७,३२९ ५३[३-४],५६गा.६५, ३६,३९,४५ दव्वाणं १११[१] ५७१-५],५८,६१, दव्वस्स ४७६ | ०दव्वाणं १०९[२],१११४२-३], ६३,६५,६८ | दव्वं १०९[२],११०[१], ११२[१-२],११४[१], ०दव्वखंधे ११४१-३],१५२[२], १२९,१५२[२],१५६, दव्वजाए १५३[१],१५५, १५८[१],१९६१-३],१९७ दव्वज्झयणाई ५३९ १९५[१,३],२३८ / ०दव्वाणं १५५ दव्वज्झयणे ५३६,५३८तः५४०, ०दव्वं १०८[१-२], ०दव्वाणि १०८[३],१०९[३], ५४३,५५०,५५२,५५३, १०९[१],१५२[१],१५४, ११२[३],११३[२], ___ ५६३,५८३,५८५ | १९३,१९५[२],१९६[१-२] | १५२[३],१५३[२],१९३ दव्वज्झवणा ४९१,५८०, दव्वं- १४,४८२,५६१ दव्वाणुगमेणं १८८ ५८२,५८४,५८७ | दव्वा ३९९ दव्वाणुपुवि० १४५,१४७,१८६ दव्वज्झीणे ५४७,५४९,५५०, ०दव्वा ३९९तः४०२, | दव्वाणुपुव्वी ९३,९५,१३०, ५५१,५५४ ४०४,५३०[१], १३१,१३५,१३६,१३८ दव्वट्ठ-पएसट्टयाए ११४[१-३], ५३३गा.१२४ | दव्वाणुपुव्वीए १५६ १५८[१,३] | दव्वाई ३९८ | दव्वाया ५६१ दव्वट्ठयाए ११४[१,३], ०दव्वाई १०४[१-३], | दव्वावस्सए १५[३],१९,२० १५८[१,३] १०६[१-३],१०७[१], | दव्वावस्सयं ९,१३,१४, दव्वणामे २१७,२१८ १०८[१-२],१०९[१-२], १५[१,३-५],१६,२०,२१,२२ दव्वपमाणं १०५गा.८,१२२गा.९, ११०[१],१११[१-३], | दव्वावस्सयाई १५[१],२०,२१ १४९गा.१० ११२[१-२],११३[१], | दव्वावस्सयाणि १५[३] दव्वप्पमाणे २८२,२९२,३१३, ११४[१-३],१२१, दव्वे २१६[२]] ३१४,३२९ १२३तः१३०,१४८[१],१५०, ०दव्वे २१६[२,१९] दव्वसमोयारे ५२७,५२९, १५१,१५२[१], | दव्वेसु ४७१ ५३०[१-२] १५३[१-२],१५४,१५६, ०दव्वेसु ५३३ दव्वसंखा ४७७,४८१,४८२, १५७,१५८[२-३],१८९, ०दव्वेसुं ६०६गा.१३७ ४८३[१,३-५],४८४, १९१तः१९५,१९७ ०दव्वेहिं १०४[१-३],१२१, ४८७,४९१ | दव्वाए ५५८,५६०तः५६२, | १४८[१],४७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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