Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Aryarakshit, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 422
________________ श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य तृतीयं परिशिष्टम् मूलशब्दः । सूत्राङ्कादि | मूलशब्दः सूत्राङ्कादि | मूलशब्दः १५८[१-३] पगडीणं २३५,२४३ पजत्ता । पएसदिट्ठतेणं ४७३ | पगतीए २३० पज्जवणामे ०पएसा ३९७ पगास २० पज्जवसंखा ०पएसिए ६३,९९,१३६, पच्चक्खाणं ७४/०पज्जवसाणा १३७,२१६[१९],२४९ / पच्चक्खे ४३६,४३७,४३९ पज्जवा ०पएसिया ९९,११६,४०३ पच्चभिजाणेजा ४४१गा.११५, पजवाणं ०पएसोगाढा ४५० ०पज्जवेहि ०पएसोगाढे १४३,१७७,१७८ +पच्चय ६०४गा.१३३ / ०पज्जवेहिं पओयणं १००,१०२,११७, पच्चुप्पण्ण ४६९ पज्जाओ ११९,१४६,१४७,३१७, पच्चुप्पण्णं ६०६गा.१३८ | पज्जाया ३१९,३२१,३२५,३२७, पच्चुप्पन्नग्गाही ६०६गा.१३८ पज्झात० ३२९,३३६,३४६,३६०, पच्छा २० पटू ३७३,३७५,३८०,३८२,३९८ पच्छाणुपुव्वी १३१,१३३,१३५, पटो २६२[८]गा.७६ १३७,१६०,१६२,१६४, ०पटो ३६५गा.१०३ १६८,१७०,१७२,१७४,१७६, पट्ट० २६२[२]गा.६५ | १७८,२०१४१,३],२०२[१,३], | पट्टकारे ३६७ २०३,[१,३],२०४[१,३], | पट्टणपक्खालण २०/२०५[१,३],२०६[१,३],२०७[१,३] पट्टसाडियं पक्खित्तं ५०९,५११,५१३, पच्छिम० . ६४ | पट्टसाडियाए ५१५,५१७,५१९ पज्जत्तए २१६[४] पट्टे पक्खित्ता ३९७ पज्जत्तग० ३५१[३], पट्ठवणं पक्खित्ते ५०८ - ३८३[२],३८७[४] पड पक्खित्तेहिं ४२३[१] पज्जत्तगाणं ३४९[२] पड० पक्खिप्पमाणे ५०८ पजत्तय २१६[१३,१८] पडसाडियं पक्खिप्पमाणेहिं ५०८|पज्जत्तय० २१६४६,७,९-१२]. | पडसाडिया पक्खी २७१गा.८३ /३५१[२],३५२[३],३८५[१-५], पडसाडियाए पक्खीणं ३८७[५]गा.१११ | ३८६[२],३८७[२-४],३८८[३] | पडस्स पक्खीसु ३५१[५]गा.१०२ पज्जत्तयाण ३८५[१,४-५] पडत पक्खे २०२[२],५३२ पज्जत्तयाणं ३४९[१-२], | पडतं पक्खो ३६७ ३५०[१-३],३५१४२-४], पडिक्कमणं पगडी ५३३गा.१२४ ३८५[२-३],३८६[१,३] | पडिग्गहाणं ६८ सूत्राङ्कादि २१६१०] २१७,२२५ ४९४,४९५ ४७५ ५१गा.४ २०९गा.१७ ४७१ ४७१ ५९९गा.१३० ७२गा.५ २६२४९]गा.७९ २३० २२९,२९७ २९७ ३६६ पकास० पक्ख ३०४ पक्खा २६७,४७५ ३६६ ३६६ ४३ ३,४,५ २२,३२५,४७१ ३६६ ३६६ ३६६ ३६६ ४४४ ४९२[४]गा.१२० ४९२[४]गा.१२१ ७४ ५७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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