Book Title: Agam 45 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02
Author(s): Aryarakshit, Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 380
________________ श्री अनुयोगद्वारसूत्रस्य द्वितीयविभागस्य तृतीयं परिशिष्टम् २६ ५६९ +अय मूलशब्दः सूत्राकादि मूलशब्दः सूत्राङ्गादि मूलशब्दः सूत्राशादि अभिमुहणामगोत्ते ४८७ अलभमाणं ४५६ अवत्थू १५[५],५७[५], अभिमुहनामगोतं ४९१ | अलंकार २६०[५]गा.३३ ४७६,४८३[५] अभिमुहनामगोत्ते ४९० अलंकियं २६०[१०]गा.४८ / ०अवमाणेसु ५९९गा.१३२ अभिलावो २०० २६०[१०]गा.५१ अवयवेणं २६३,२७१ -अभिलास २६२[३]गा.६६ / ०-अलंकियाणं ४४२,४४६ अभीरू २६०[८]गा.४० अलाउए २६७ अवरण्हे -अमच्च ९० अलालं २६५ / ०अवरविदेहाणं ३४४ अमातिवाहए . २६५ अलिंद ३१९ अवरविदेहे ४७५ अमिलियं १४,६०५ अलोए २५०,५३१ अवव० ३६७ अमुग्गो २६५ अलोगे ३३२गा.९५ अववंग० ३६७ अमुद्दो २६५ अवकरए २९० अववंगे २०२[२],३६७,५३२ अमोहा २४९ अवचओ ५४६गा.१२५ अववे २०२४२,३६७,५३२ अमोहे २४४ अवचिते अवसा ३३४गा.९८ अम्हे ४९२४]गा.१२१ अवचनामे ३१० अवसाणे २६०[१०]गा.४५ २८६गा.९० अवच्चामेलियं १४ | अवस्स० २९गा.[२-३] अयणं ३६७ / ०-अवच्चेण ३०२गा.९२/+अवस्सकरणिज्ज २९गा.२ अयणाई ३६७ अवणय २६१गा.६१ | अवहाय ३७२,३७४,३७९ अयणे २०२[२],५३२ अवत्तव्वए ९९,१०१,१०३, | ३८१,३९४,३९६ १७,१८,३७,३८,६० | ११८,१२०,१४३,१४५,१४७, अवहिया ४२०[३],४२३[२] ४५०,४८५,४८६ | १८४,१८६,१८८ अवहीरइ ४२१[१] ५४१,५४२,५८६ अवत्तव्वग १०६[३],१०८[३], अवहीरति ४२३[१] अरहंत० ४६२ १०९[३],१११[३],११[३] अवहीरमाणा ४२०[३],४२३[२] अरहंता ४९२[२] ११४[३],१५२[३],१९६[३] अवहीरंति ४१३,४१४,४१६, अरहतेहिं ५०,४६२,४६९ अवत्तव्वगाई ९९,१४३,१४७ ४१८/२],४१९[२] अरहा २४४ अवत्तव्वय १९३ ४२०[३],४२१[१], अरिट्ठणेमी २०३[२] अवत्तव्वय० १०४[१-३], ४२२[२],४२३[१-२], अरुणवरे १६९गा.११ ११४[१-२],१२१,१४८[१]/ ४२४[२],४२६[२] अरूवि० ४००,४०१ १५३[२],१५८(१-३] अविकार० २६२[१०]गा.८० अरे २०३[२] अवत्तव्ययाइं १०१,१०३,१८४, |-अविघुटुं २६०[१०]गा.४८ अलत्तए २६७ १८८ अविच्चामेलियं ६०५ अवत्) ६०६गा.१३९ अविरए २३७ अयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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