Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ को प्रायु वाले नागकुमार जाति के देव इनके अधिष्ठायक होते हैं। हरिवंशपुराण के अनुसार ये नौ निधियां कामवृष्टि नामक गृहपतिरत्न के अधीन थीं और चक्रवर्ती के सभी मनोरथों को पूर्ण करती थीं। 15 . हिन्दुधर्म शास्त्रों में इन नवनिधियों के नाम इस प्रकार मिलते हैं-१. महापद्य, 2. पद्म, 3. शंख, 4. मकर, 5. कच्छप, 6. मुकुन्द, 7. कुन्द,८. नील और 9. खर्व / ये निधियाँ कुबेर का खजाना भी कही जाती हैं। __ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में बहुत ही विस्तार के साथ दिविजय का वर्णन है, जो भरत के महत्त्व को उजागर करता है / भरत चक्रवर्ती के नाम से ही प्रस्तुत देश का नामकरण भारतवर्ष हुआ है। वसुदेवहिण्डी' में भी इसका स्पष्ट उल्लेख हुआ है / वायुपुराण'६७ ब्रह्माण्डपुराण,१६६ आदिपुराण 66 वराहपुराण, 200 वायुपुराण'' लिंगपुराण, 203 स्कन्दपुराण,२०3 मार्कण्डेयपुराण 204 श्रीमद्भागवत पुराण, 205 आग्नेयपुराण,२०६ विष्णुपुराण,२०० कूर्मपुराण,२०८ शिवपुराण, नारदपुराण"० प्रादि ग्रन्थों से भी स्पष्ट है कि प्रस्तुत देश का नामकरण भगवान् ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम से ही हुमा। पाश्चात्य विद्वान् श्री जे० स्टीवेन्सन' तथा प्रसिद्ध इतिहासज गंगाप्रसाद एम० ए०२१२ और रामधारी सिंह दिनकर"३ का भी यही मन्तव्य है / कतिपय विद्वानों ने दुष्यन्त-तनय भरत के नाम के प्राधार पर 'भारत' नाम का होना लिखा है, वह सर्वथा असंगत एवं भ्रमपूर्ण है। ऋषभपुत्र चक्रवर्ती भरत के विराट् कतत्व और व्यक्तित्व की तुलना में दुष्यन्तपुत्र भरत का व्यक्तित्व-कृतित्व नगण्य है। सर्वप्रथम चक्रवर्ती भरत ने ही एकच्छत्र साम्राज्य की स्थापना करके भारत को एकरूपता प्रदान की थी। 194. त्रिषष्टि शलाका पु. च. 1141574-587 195. हरिवंशपुराण-जिनसेन 11 / 123 196. वसुदेवहिण्डी, प्रथमखण्ड पृ० 186 197. वायुपुराण 45575 198. ब्रह्माण्डपुराण, पर्व 2014 199. प्रादिपुराण, पर्व 15 / 158-159 200. वराहपुराण 74149 201. वायुमहापुराण 33 / 12 202. लिंगपुराण 43323 203. स्कन्दपुराण, कौमार खण्ड 37 // 57 204. मार्कण्डेयपुराण 50 // 41 205. श्रीमद्भागवतपुराण 14 206. प्राग्नेयपुराण 107.12 207. विष्णुपुराण, अंश 2, अ. 1528-29 / 32 208, कूर्मपुराण 41138 209. शिवपुराण 52155 290. नारदपुराण 4815 211. Brahmanical Puranas....took to name 'Bharatvarsha'-Kalpasutra Introd. P. XVI 212. प्राचीन भारत पृष्ठ 5 213. संस्कृति के चार अध्याय पृ. 139 [43] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org