Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ है। स्थानांग,१७. समवायांग,१७ जम्बूदीपप्रज्ञप्ति," निशीथ और बृहत्कल्प 81 में गंगा को एक महानदी के रूप में चित्रित किया गया है। स्थानांग,८२ निशीथ'८३ और बृहत्कल्प 84 में मंगा को महार्णव भी लिखा है। प्राचार्य प्रभयदेव ने स्थानांगवति'८५ में महार्णव शब्द को उपमावाचक मानेकर उसका अर्थ किया है कि विशाल जलराशि के कारण वह विराट् समुद्र की तरह थी ! पुराणकाल में भी गंगा को समुद्ररूपिणी कहा है। दैदिक दृष्टि से गंगा में नौ सौ नदियां मिलती हैं। जैन दृष्टि से चौदह हजार नदियां गंगा में मिलती हैं, जिनमें यमुना, सरयू, कोशी, मही प्रादि बड़ी नदियाँ भी हैं। प्राचीन काल में गंगा नदी का प्रवाह बहुत विशाल था। समुद्र में प्रवेश करते समय गंगा का पाट साढ़े बासठ योजन चौड़ा था, और वह पाँच कोस गहरी थी। 10 वर्तमान में गंगा प्राचीन युग की तरह विशाल और महरी नहीं है / गंगा नदी में से और उसकी सहायक नदियों में से अनेक विराटकाय नहरें निकल चुकी हैं, तथापि वह अपनी विराटता के लिये विश्रुत है / वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार गंगा 1557 मोल के लम्बे मार्ग को पार कर बंग सागर में गिरती है। यमुना, गोमती, सरयू, रामगंगा, मंडकी, कोशी और ब्रह्मपुत्र प्रादि अनेक नदियों को अपने में मिलाकर वर्षाकालीन बाढ़ से गंगा महानदी अठारह लाख घन फुट पानी का प्रस्राव प्रति संकण्ड करती है।"' बौद्धों के अनुसार पांच बड़ी नदियों में से गंगा एक महानदी है। दिविजय यात्रा में सम्राट् भरत चक्ररत्न का अनुसरण करते हुए मागध तीर्थ में पहुंचे। वहां से उन्होंने लवणसमुद्र में प्रवेश किया और बाण छोड़ा / नामांकित बाण बारह योजन की दूरी पर मागधतीर्थाधिपति देव के वहाँ पर मिरा / पहले वह क्रुद्ध हुआ पर भरत चक्रवर्ती नाम पढ़कर वह उपहार लेकर पहुंचा। इस तरह चक्ररल के पीछे चलकर वरदाम तीर्थ के कुमार देव को अधीन किया। उसके बाद प्रभासकुमार देव, सिन्धुदेवी, वैताठ्यगिरि कुमार, कृतमालदेव प्रादि को अधीन करते हुए भरत सम्राट ने षट्खण्ड पर विजय-वैजयन्ती फहराई। 177. स्थानाङ्ग 5 / 3 178. समवायाङ्ग 24 वां समवाय 179. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार 4 180. निशीथसूत्र 12342 181. बृहत्कल्पसूत्र 4132 152. स्थानाङ्ग 221 183. निशीथ 12142 184. बृहत्कल्प 4 / 32 185. (क) स्थानाङ्गवत्ति 5 / 2 / 1 (ख) बृहत्कल्पभाष्य टीका 5616 186. स्कन्दपुराण, काशीखण्ड, अध्याय 29 187. हारीत 17 185. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार 4 189. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार 4 190. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार 4 191. हिन्दी विश्वकोश, नागरी प्रचारिणी सभा, गंगा शब्द [ 41] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org