Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ३५ एगयओ परमाणुगोग्गले, एगयओ छप्प एसिए खंधे भवई' द्विधा क्रियमाणः एकत:-एकभागे परमाणुपुदगलो भाति, एकत:-अपरभागे षट्प्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयो दुप्पएसिए खंधे भवइ, एगयओ पंचएएसिए खंधे भवइ, अथवा एकत:-एकभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकत:-अपरे भागे पश्चप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, "अहवा एगयो तिप्पएसिए, एगयो चउप्पएसिए खंघे भवई' अथवा एकता-एकभागे त्रिपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः-अपरभागे चतुष्पदेशिक: स्कन्धो भवति, 'तिहा कज्जमाणे एगयो दो परमाणुपोग्गला, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवई' सप्तप्रदेशिकः स्कन्धविधा क्रियमाणः, एकत:एकभागे द्वौ परमाणुपुद्गलौ भवतः एकत:-अपरभागे पञ्चपदेशिकः स्कन्धो भवति, "अहवा एगया परमाणुपोग्गले, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयओ चउ. प्पएसिए खंधे भवई' अथवा एकतः-एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः अपरविभाग हो सकते हैं-'दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगघओ छप्पएसिए खधे भवा' जब इसके दो विभाग किये जाते हैंनब एक विभाग में परमाणुपुद्गल होता है और दूसरे भाग में षट्प्रदे. शिक स्कंध होता है 'अहवा एगयओदुप्पएसिए स्कंधे भवई' एगयो पंचपएसिए खंधे भवइ ' अथवा-एक विभाग में द्विप्रदेशिक स्कन्ध होता है और दूसरे विभाग में पंचप्रदेशिक स्कन्ध होता है | "अहवा एगयो तिप्पएसिए, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवइ" अथवा-एक विभाग में त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है और दूसरे विभाग में चतुष्पदे शिक स्कंध होता है, तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ पंच पएसिए खंधे भव' जय इस सप्तप्रदेशिक स्कन्ध के तीन विभाग किये जाते हैं-तर एकभाग में दो परमाणु पुद्गल होते हैं और एकभाग में पंचप्रदेशिक स्कंध होता है । 'अहवा-एगयओ परमाणुपो. गगले, एगयओ दुप्पएसिए खंधे, एगयो चउप्पएसिए खंधे भवइ' सात विHIN 5 श. छ. "दहा कज्जमाणे एगयओ परमाणपोग्गले. एगयओ छप्पएसिए खंधे भवइ" च्यारे तेना मे विमा ४२वामां आवे छ, ત્યારે એક વિભાગમાં એક પરમાણુપુદ્ગલ હોય છે અને બીજા વિભાગમાં છે प्रशि: २४५ डाय छे. “ अहवा - एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ, एगयो पंच पएसिए खंधे भवइ " ५२१ मे विनामा द्विप्रशि: २४ सय छ भने भी विभागमा ५यशि २४ाय छे “अहवा-एगयओ तिप्पएसिए, एगयओ चउप्पएसिए खंधे भवइ" अथवा से विभागमा प्रशि२४ હોય છે અને બીજા વિભાગમાં ચાર પ્રદેશિક સ્કંધ હોય છે.
__“तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपोग्गला, एगयओ पंच पएसिए खंधे भवइ" न्यारे सतप्रशि: २४ घना विमा ४२वामा भावे છે, ત્યારે એક પરમાણુ પુદ્ગલ રૂપ એક વિભાગ, એક પરમાણુ પુદ્ગલ રૂપ जी विमा भने पायप्रशि१४५३५ श्री विलास थाय छे. “ अहवाएगयओ परमाणुपोगाले, एगयओ दुपएसिए खंधे, एगयो चउप्पएसिए खंधे मवई"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦