Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-१
सन्नोवउत्ता?
गोयमा ! आहारसण्णोवउत्ता वा, असीती भंगा। [दारं २०]
[२५ प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव आहारसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, या भयसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, अथवा मैथुनसंज्ञा के उपयोग वाले हैं या परिग्रहसंज्ञा के उपयोग वाले हैं ?
__ [२५ उ.] गौतम ! वे आहारसंज्ञा के उपयोग वाले हैं, इत्यादि (लेश्याद्वार के समान) अस्सी भंग कहना चाहिए।
[-२० वाँ द्वार] २६. ते णं भंते ! जीवा किं कोहकसायी, माणकसायी, मायाकसायी, लोभकसायी? गोयमा ! असीती भंगा।[दारं २१] [२६ प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव क्रोधकषायी हैं, मानकषायी हैं, मायाकषायी हैं अथवा लोभकषायी
[२६ उ.] गौतम ! यहाँ भी पूर्वोक्त ८० भंग कहना चाहिए।
[-२१ वाँ द्वार] विवेचन—संज्ञाद्वार और कषायद्वार—उत्पलजीवों में चार संज्ञाओं और चार कषायों के लेश्याद्वार के समान ८० भंग होते हैं। २२ से २५-स्त्रीवेदादि-वेदक-बन्धक-संज्ञी-इन्द्रिय-द्वार
२७. ते णं भंते ! जीवा किं इत्थिवेदगा, पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा? गोयमा ! नो इत्थिवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंसकवेदए वा नुपंसकवेदगा वा।[दारं २२] [२७ प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेदी हैं, पुरुषवेदी हैं या नपुंसकवेदी हैं ?
[२७ उ.] गौतम ! वे स्त्रीवेद वाले नहीं, पुरुषवेद वाले भी नहीं, परन्तु एक जीव भी नपुंसकवेदी है और अनेक जीव भी नपुंसकवेदी हैं।
२८. ते णं भंते ! जीवा किं इत्थिवेदबंधगा, पुरिसवेदबंधगा, नपुंसगवेदबंधगा ? गोयमा ! इत्थिवेदबंधए वा पुरिसवेदबंधए वा नपुंसगवेदबंधए वा, छव्वीसं भंगा।[दारं २३]
[२८ प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव स्त्रीवेद के बन्धक हैं, पुरुषवेद के बन्धक हैं या नपुंसकवेद के बन्धक हैं ?
[२८ उ.] गौतम ! वे स्त्रीवेद के बन्धक हैं, या पुरुषवेद के बन्धक हैं अथवा नपुसंकवेद के बन्धक हैं। यहाँ उच्छ्वासद्वार के समान २६ भंग कहने चाहिये।
[-२२ वाँ, २३ वाँ द्वार] २९. ते णं भंते ! जीवा किं सण्णी, असण्णी? गोयमा ! नो सण्णी, असण्णी वा असण्णिणो वा। [दारं २४] [२९ प्र.] भगवन् ! वे उत्पल के जीव संज्ञी हैं या असंज्ञी ?