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रूप में भी कह सकते हैं कि अध्यात्म को जीकर ही व्यक्ति आत्म-शांति को उपलब्ध हो सकता है। अणुव्रत अध्यात्म को जीने की सीधी और सरल प्रक्रिया है। हालांकि इसके व्रत छोटे-छोटे हैं, तथापि इनका प्रभाव बहुत गहरा है। गीता में कहा गया है स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य, त्रायते महतो भयात्। अणुव्रत के संदर्भ में इसे इस भाषा में कहा जा सकता है-अणुरपि व्रतस्यैष, त्रायते महतो भयात्। मैं गांव-गांव और शहरशहर में अणुव्रत की चर्चा करता हूं। इसका एकमात्र उद्देश्य यह है कि अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्पों के आधार पर जन-जन अध्यात्म के मार्ग पर चलना सीखे, आत्मशांति का अनुभव करे। निर्विशेषण धर्म
भादरा में मैं लंबी प्रतीक्षा के बाद आया हूं। यहां आने का भी मेरा यही उद्देश्य है कि आपको अणुव्रत का कार्यक्रम समझाऊं, उस पर चलने की प्रेरणा दूं। अणुव्रत आज निर्विशेषण धर्म के रूप में जन-जन को अपनी
ओर आकर्षित कर रहा है। मैं मानता हूं, वास्तव में तो धर्म निर्विशेषण ही है, पर धर्म के प्रवक्ताओं की विभिन्नता के कारण उसके भी विभिन्न नाम हो गए हैं। मूलतः धर्म तो सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, करुणा, मैत्री आदि तत्त्व हैं। आप ध्यान दें, संसार के सभी धर्म इन्हें एकमत से स्वीकार करते हैं। जो धर्म इन्हें स्वीकार नहीं करता, वह मेरी दृष्टि में वास्तव में धर्म है ही नहीं। धर्म और संप्रदाय
___ धर्म और धर्म-संप्रदाय का भेद आप लोगों को बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए। हर-एक संप्रदाय में धर्म हो सकता है, पर संप्रदाय धर्म नहीं है। धर्म की सुरक्षा और साधना के लिए संप्रदाय भी उपयोगी है, तथापि संप्रदाय धर्म नहीं है। धर्म का संबंध तो जीवन की पवित्रता से है
और वह सत्य, अहिंसा आदि तत्त्वों के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है। अणुव्रत के छोटे-छोटे संकल्प इन्हीं तथ्यों पर आधारित हैं। धर्म : परम वैज्ञानिक तत्त्व
बंधुओ! धर्म एक परम वैज्ञानिक तत्त्व है। मेरी दृष्टि में धर्म से बढ़कर दूसरा कोई वैज्ञानिक तत्त्व हो नहीं सकता। इसमें रूढ़ि को कोई स्थान नहीं है। जो लोग धर्म के क्षेत्र में रूढ़िवाद को प्रोत्साहन देते हैं, वे भयंकर भूल करते हैं। मेरा स्पष्ट अभिमत है कि इस वैज्ञानिक युग में वे धर्म टिक
आगे की सुधि लेइ
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