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३ : अध्यात्म की खोज
आज संसार में भौतिक विकास अपनी चरम सीमा पर है। पर इसके बावजूद मनुष्य अशांत है, यह एक सचाई है। शांति की खोज में वह चारों ओर भटक रहा है। पहाड़, गुफा, जंगल, आकाश, समुद्र "सब उसने छान डाले हैं, फिर भी उसे शांति नहीं मिली। अब तो वह चंद्रलोक में भी पहुंचने की चेष्टा में है, पर वहां भी शांति नहीं हो। वह मिल भी नहीं सकती। यह बहुत सीधी-सी बात है कि जो चीज जहां नहीं है, वह वहां खोजने से नहीं मिल सकती। शांति बाहर है नहीं, वह है अपनी आत्मा के भीतर । इसलिए शांति की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को बाहर से भीतर की ओर मुड़ना होगा, अपने अंतः स्थल में उसे खोजना होगा ।
शांति की खोज का अर्थ
अंतः स्थल में शांति की खोज का अर्थ है आत्मस्थ होना, अध्यात्म को जीना । हमने अध्यात्म को जीकर शांति का अनुभव किया है। आज के इस सुविधावादी एवं साधनबहुल युग में भी हम साधु लोग अनेक प्रकार के अभावों में जीते हैं। हालांकि पदयात्रा करना, नंगे पांव चलना, भिक्षा से अनिवार्य अपेक्षाओं की पूर्ति करना आदि हमारी जीवनचर्या के अनिवार्य अंग हैं, तथापि इन चर्या - नियमों को निभाते हुए हमें अनिर्वचनीय शांति की अनुभूति होती है । हमारी शांति इनसे कहीं बाधित नहीं होती । अणुव्रत : अध्यात्म को जीने का उपक्रम
मैं ऐसा मानता हूं कि शांति की चाह सार्वकालिक है, सार्वजनीन है। भौतिक आविष्कारों से चमत्कृत करनेवाले वैज्ञानिक भी आज अध्यात्म की खोज में अभिरुचि ले रहे हैं। शांति की चाह उन्हें भी है। आप निश्चित मानें, कोई व्यक्ति जीवन के किसी क्षेत्र में चाहे कितनी ही ऊंचाई को क्यों न छू ले, आत्मशांति की चाह उसकी भी रहेगी। जैसाकि मैंने अभी कहा, शांति की खोज का अर्थ है - अध्यात्म को जीना। इसे उलटकर हम इस
अध्यात्म की खोज
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