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सुखी हो गया। बहुत-कुछ पास होने पर भी गृहस्थ की आकांक्षा नहीं मिटती। वह सात पीढ़ियों तक के लिए धन बटोरने का प्रयत्न करता है,भाग-दौड़ करता है। दूसरी तरफ संतजन कल की भी चिंता नहीं करते। साधु और गृहस्थ के सुखी और दुखी होने का यही राज है। इसलिए यदि तुम भी सुखी होना चाहते हो, शांति का अनुभव करना चाहते हो तो संतोष की दिशा में प्रयाण करो, त्याग की दिशा में प्रस्थान करो।' ___कपिल मुनि का उपदेश सुनकर राजा-सहित सारी परिषद संतोष और त्याग की धारा में प्रवाहित होने लगी। अणुव्रत : जीने की सच्ची कला
बंधुओ! यह कपिल की नहीं, संतोष और त्याग के चमत्कार की कहानी है, शांति को उपलब्ध होने का दर्शन है। आप भी इससे प्रेरणा लें और संतोष व त्याग का पथ स्वीकार करें। आप कहेंगे, कपिल तो मुनि बन गए, पर हम तो मुनि नहीं बन सकते, दीक्षा स्वीकार नहीं कर सकते। ठीक है, आप मुनि नहीं बन सकते, दीक्षा स्वीकार नहीं कर सकते, पर अपना जीवन नरक तो न बनाएं; एक सीमा तक तो अपनी लालसा को नियंत्रित रखें। संतोष की दिशा में चरण तो गतिशील करें; त्याग-संयम की आंशिक साधना तो करें। अणुव्रत संतोष के साथ जीने का रास्ता है, त्याग और संयम की साधना का उपक्रम है। इसके छोटे-छोटे व्रत अंगीकार कर आप अपना जीवन सुख-शांतिमय बना सकते हैं, मानव-जीवन की सार्थकता प्राप्त कर सकते हैं। अणुव्रत के छोटे-छोटे व्रत आप सुनें
• निरपराध प्राणी की हत्या नहीं करूंगा। • अमानत में खयानत नहीं करूंगा । • किसी को धोखा नहीं दूंगा। • बेमेल मिलावट नहीं करूंगा। • नकली को असली बताकर नहीं बेचूंगा। • तौल-माप में कमी-बेशी नहीं करूंगा। • परस्त्री और वेश्यागमन नहीं करूंगा। • जुआ नहीं खेलूंगा। • मद्य-मांस का उपयोग नहीं करूंगा। • धूम्रपान नहीं करूंगा।
शांति का सही मार्ग
११.
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