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*राउस्मान पुरातन नाममाला ।
प्रधान सम्पादक - पद्मश्री जिनविजय मुनि, पुरातत्त्वाचार्य
[सम्पान्य सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठाम, जोधपुर]
ग्रन्थाङ्क ६७
कविया करणीदानजी चारण कृत
सूरजप्रकास
भाग ३
सध्यानाकयविधातीटर
EGOR.
BUDD69
प्रकाशक
राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
जोधपुर (राजस्थान) RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR Jain Education Interational
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राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला
[ सम्मान्य सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ]
ग्रन्थाङ्क ६७
कविया करणीदानजी चारण कृत
सूरजप्रकास
भाग ३
प्रकाश क राजस्थान राज्य संस्थापित
राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
जोधपुर ( राजस्थान )
RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR
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राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला
राजस्थान राज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यत: अखिल भारतीय तथा विशेषतः राजस्थानदेशीय पुरातनकालीन संस्कत. प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी ग्रादि भाषानिबद्ध
वैविध वाङ्मयप्रकाशिनी विशिष्ट ग्रन्थावलि
प्रधान सम्पादक पद्मश्री जिनविजय मुनि, पुरातत्वाचार्य सम्मान्य संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर;
ऑनरेरि मेम्बर ऑफ जर्मन ओरिएन्टल सोसाइटी, जर्मनी; निवृत्त सम्भान्य नियामक (ऑनरेरि डायरेक्टर ), भारतीय विद्याभवन, बम्बई; प्रधान सम्पादक,
सिंघी जैन ग्रन्थमाला, इत्यादि
ग्रन्थाङ्क ६७ कविया करणीदानजी चारण कृत
सरजप्रकास
भाग ३
प्रकाशक
राजस्थान राज्याज्ञानुसार सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
जोधपुर ( राजस्थान )
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कविया करणीदानजी चारण कृत
सूरजप्रकास
भाग ३
सम्पादक
श्री सीताराम लालस वृहत् राजस्थानी शब्दकोशके कर्ता
प्रकाशनकर्ता
राजस्थान राज्याज्ञानुसार सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान
जोधपुर ( राजस्थान )
विक्रमाब्द २०२० ) प्रथमावृत्ति १०००)
भारतराष्ट्रीय शकाब्द १८८५
(ख्रिस्ताब्द १९६३ ( मूल्य- ६.७५
मुद्रक- श्री हरिप्रसाद पारीक, साधना प्रेस, जोधपुर ।
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RAJASTHAN PURATANA GRNATHAMALA
PUBLISHED BY THE GOVERNMENT OF RAJASTHAN
A series devoted to the Publication of Samskrit, Prakrit, Apabhramsa, Old Rajasthani-Gujarati and Old Hindi works pertaining to
India in general and Rajasthan in particular,
GENERAL EDITOR PADMASHREE JINVIJAYA MUNI, PURATATTVACHARYA
Honorary Director, Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur; Honorary Member of the German Oriental Society, Germany; Retired Honorary Director, Bharatiya Vidya Bhawan, Bombay;
General Editor, Singhi Jain Series etc. etc.
No. 67 SOORAJPRAKAS:
Kaviya Karnidanji
Published
Under the Orders of the Government of Rajasthan
By
The Hon. Director, Rajasthan Prachya Vidya Pratisthana
( Rajasthan Oriental Research Institute )
JODHPUR ( RAJASTHAN )
V. S. 2020 ]
All Rights Reserved
( 1963 A.D.
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सञ्चालकीय वक्तव्य
कविया करणीदानजी कृत "सूरजप्रकास" नामक महाकाव्य के प्रथम और द्वितीय भाग क्रमशः सन् १९६१ और १६६२ में राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला के ५६वें एवं ५७वें ग्रन्थाङ्कों के रूप में प्रकाशित किए जा चुके हैं । प्रस्तुत प्रकाशन के रूप में "सूरजप्रकास" का तृतीय एवं अन्तिम भाग उत्सुक पाठकों के सम्मुख पहुँच रहा है । ___"सूरजप्रकास" के प्रस्तुत भाग में जोधपुर के महाराजा अभयसिंह
और सरबुलन्दखां के मध्य हुए अहमदाबाद के युद्ध का विस्तृत और काव्यात्मक वर्णन है । सरबुलन्द ने युद्ध के प्रारम्भ में तीन दिन पर्यंत नगर में रहते हुए महाराजा की सेना पर भयंकर गोलाबारी की । तदुपरान्त चौथे दिन वह मैदान में आ कर महाराजा की सेना से लड़ा और उसी दिन अपनी पराजय जान कर पुन: नगर की ओर भाग गया। महाराजा ने तुरन्त ही सरबुलन्द का दमन कर अपनी विजय-घोषणा की । कवि ने युद्ध में भाग लेने वाले अनेक प्रमुख योद्धाओं का नामोल्लेख करते हुए उनकी वीरता का ओजस्वी वर्णन किया है जिससे काव्य का इतिहास की दृष्टि से भी महत्त्व हो गया है। ___"सूरजप्रकास" के निम्नलिखित छन्द से प्रकट होता है कि महाराजा अभयसिंह की अहमदाबाद-विजय संवत् १७८७ की विजयदशमी, शनिवार के दिन हुई थी और युद्ध में प्रत्यक्ष दर्शन एवं अनुभव के आधार पर महाकवि ने एक ही वर्ष में इस महाकाव्य को पूर्ण कर लिया था और ग्रन्थ का परिमाण साढ़े सात हजार अनुष्टुप् श्लोकात्मक है।
सत्रेस समत सत्यासिय, विजेदसमी सनि जीत । यदि कातिक गुण वरणियो, दसमी वार प्रदीत ।। वणियौ गुण इक वरस विच, उकति प्ररथ अणपार ।
छद अनुस्टुप करिउ जन, सत पंच सात हजार ॥ 'प्रभा'तणी सुभ नजर अति, वधि छक सुकधि विधान । कुरव दान लहियो अधिक, कहियो करणीदान ॥
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[
२
]
वृहत् राजस्थानी शब्द-कोष के कर्ता विद्वद्वर्य श्री सीतारामजी लाळस ने "सूरजप्रकास" जैसे महाकाव्य का सम्पादन विशेष मनोयोग एवं परिश्रमपूर्वक किया है । विद्वान् सम्पादकजी ने परिशिष्ट और भूमिका में ग्रन्थ सम्बन्धी आवश्यक ज्ञातव्य भी विस्तार से पाठकों की सुविधा के लिए लिखे हैं तदर्थ सम्पादकजी को हम हार्दिक धन्यवाद देते हैं।
राजस्थानी भाषा के प्रस्तुत महाकाव्य का प्रकाशन भारत सरकार के वैज्ञानिक और सांस्कृतिक मन्त्रालय के आर्थिक सहयोग से आधुनिक भारतीय भाषा विकास योजना के अन्तर्गत हुआ है । तदर्थ हम भारत सरकार के प्रति आभार प्रकट करते हैं। . __इस ग्रन्थ में प्रकाशनार्थ कविया करणीदानजी का चित्र महाराजा साहिब जोधपुर के निजी ग्रन्थ-भण्डार पुस्तक प्रकाश में से ठाकुर श्री जयकृतसिंहजी, एडमिनिस्ट्रेटर के सौजन्य से और महाराजा अभयसिंहजी का चित्र राजस्थानी-शोध-संस्थान जोधपुर, से इसके सञ्चालक श्री नारायणसिंहजी भाटी के सौजन्य से प्राप्त हुआ है जिसके लिए हम दोनों ही महानुभावों को धन्यवाद देते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, । सं० २०२०, जोधपुर।
मुनि जिनविजय सम्मान्य सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान,
जोधपुर।
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विषय - सूची
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४४ ०.'
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१ भूमिका २ जुधरौ वरणण ३ हाथियांरा वखांण ४ घोड़ारा वखांण ५ महाराजा अभयसींघजीर निज सवारी घोड़ा सूरज पसावरी
वरणण ६ तोपांरो वरणण ७ जोधारांरौ वरणण . महाराजा अभैसींघजीरौ वरणण ६ सर बुलंदरा जोधारांरो वरणण १० जुप्रिय देवारौ वरणण ११ सेनारी वरणण १२ जुधरौ प्रारंभ १३ सर बुलंदरी जोधारांनू वकारणी १४ जुध-वरणण १५ जुधमें महाराजा अभैसीधजीरो वरणण १६ महाराजा अभैसींघजीरा जुधरौ वरणण १७ महासिंह चांपावत १८ कुसळसिंह चांपावत १६ करणसिंह चांपावत २० जुधौ परातरी तुलना २१ फेर दूजौ रूपक २२ जोधा राठौड़ २३ उदावत राठोड २४ जैतावत राठौड़ २५ करणोत राठौड़ २६ करमसोत राठौड़ २७. चौहान २८ सोनंगरा २६ कछवाह ३० देवड़ा ३१ मांगळिया ३२ पुरोहित केसरीसिंह
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३३ चारणांरौ जुध करणो
३४ ब्राह्मण
[ २ ]
३५ भण्डारी
३६
३७ चांपावत
३८ शेखावत
३६ उदावत
४० करमसिहोत
४१ चौहान
४२ जादव वंस
४३ विजयराज
४४ परिशिष्ट १ नामानुक्रमाणिका
४५ परिशिष्ट - २ छन्दानुक्रमणिका
४६ परिशिष्ट - ३ भौगोलिक टिप्पणिया
४७
राजाधिराज बखतसहजीरा जुधरौ वरणण
परिशिष्ट - ४ ऐतिहासिक पौराणिक और साहित्यिक व्यक्तियों पर टिप्पणियां
४८ परिशिष्ट - ५ यवनराज्य की कुछ विशेष बातें ४६ परिशिष्ट - ६ वंश-वृक्ष
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भूमिका
"सूरज प्रकास' की रचना जोधपुर-नरेश महाराजा अभयसिंह राठौड़ के दरबारी कवि कविराजा करणीदान ने ऐतिहासिक दृष्टिकोण से की । ग्रन्थ में भारत की प्राचीन परम्परा को ध्यान में रखते हुए मध्यकालीन संस्कृति के अन्तर्गत वीरता आदि का राजस्थानी भाषा के आकर्षक छंदों में अनूठा प्रदर्शन है । संपूर्ण ग्रंथ में वर्णन ऐसा धाराप्रवाह चलता है कि जिससे पाठकों की उत्कण्ठा निरन्तर अग्रसर होती जाती है। कवि महोदय ने यत्र-तत्र अपने पाण्डित्य का प्रदर्शन ऐसी दक्षता से किया है कि प्रायः कहीं पर भी मूल कथा से कम नहीं टूटा है।
कथानक सर्व प्रथम मंगलाचरण में गणेश, सरस्वती, शिव, सूर्य तथा विष्णु की स्तुति की है । चूंकि राठौड़ सूर्यवंशी हैं, अतः ग्रंथारम्भ में सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु से वंशावली प्रारम्भ करके राजा दशरथ के पश्चात् रामायण का संक्षिप्त वर्णन किया तदनन्तर श्रीराम के पुत्र कुश से राजा पुंज तक की वंशावली का वर्णन करने के पश्चात् राजा पुंज के तेरह पुत्रों का विवरण दिया है जिनसे राठौड़ों की तेरह शाखाएँ निकली हैं । पुंज के ज्येष्ठ पुत्र धर्मबिम्ब की चौथी पीढ़ी में कन्नौज के राजा जयचंद राठौड़ का उल्लेख किया है जो इतिहास-प्रसिद्ध पृथ्वीराज चौहान का समकालीन था, तथा इसी जयचंद की चौथी पीढ़ो में राव सीहा हुआ । सीहा के पुत्र आसथान ने गोहिलों को पराजित करके खेड़ (मारवाड़) पर अधिकार कर लिया था।
तत्पश्चात् रचयिता ने प्रासथानजी के वंशजों का क्रमशः इतिवृत्त लिखा है जिसके अन्तर्गत कई वीरता की घटनायें हैं । इसो वंश मे राव चूंडा, राव रिड़मल, राव जोधा (जोधपुर नगर का संस्थापक), राव सूजा, राव गाँगा, राव मालदेव तथा राजा उदयसिंह के संक्षिप्त वर्णन के साथ उसके वंशज सवाई राजा सूरसिंह, महाराजा गजसिंह तथा महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) का अपेक्षाकृत विस्तृत हाल दिया है।
काबुल में महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) के देहान्त के उपरान्त उनकी गर्भवती रानी से महाराजा अजीतसिंह का जन्म लाहौर में होता है, किन्तु इस समय जोधपुर राज्य पर बादशाह औरंगजेब का अधिकार हो जाता है । यहाँ पर ग्रन्थ में स्वामि-भक्त दुर्गादास राठौड़ के सतत प्रयत्नों द्वारा महाराजा अजीतसिंह
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[ २ ] का गुप्त रूप से पालन-पोषण, रक्षा तथा पुन: जोधपुर राज्य पर अधिकार करने का रोचक वर्णन है। ____ ग्रंथ के उत्तरार्द्ध में महाराजा अभयसिंह के जीवन की दो प्रमुख युद्ध-घटनाओं का वर्णन है, जिसमें प्रथम नागौर के युद्ध का संक्षिप्त तथा दूसरा अहमदाबाद विजय का विस्तृत हाल है। इस युद्ध के वर्णन के साथ ही ग्रंथ की समाप्ति हो जाती है।
चरित्र-चित्रण ... कविराजा करणीदान जोधपुर-नरेश महाराजा अभयसिंह के आश्रित थे। उसका प्रस्तुत 'सूरजप्रकास' काव्य महाराजा की अहमदाबाद-विजय का युद्ध-वर्णन करने के ध्येय से लिखा गया था किन्तु कवि ने अपने इतिहास-ज्ञान का प्रदर्शन करने के लिये लगभग आधे ग्रंथ में महाराजा के पूर्वजों का वर्णन किया है । सर्यवंश में होने वाले प्रथम राजा इक्ष्वाकु से कन्नोज-नरेश जयचन्द राठौड़ तक की वंशावली और रामायण तथा राजा पुंज के तेरह पुत्रों का वर्णन इतना संक्षिप्त है कि किसी भी पात्र का चरित्र पूर्ण रूप से मुखरित नहीं हुआ है।
जयचन्द राठौड़ से महाराजा अभयसिंह के पितामह महाराजा जसवंतसिंह (प्रथम) तक का इतिवृत्त ऐतिहासिक दृष्टिकोण से लिखा गया है जिसमें कई पात्रों का संक्षिप्त तथा कई पात्रों का विस्तार से चित्रण किया है, किन्तु हम उन पात्रों के सर्वांगीण चरित्र-चित्रण पर विचार नहीं कर सकते । उसमें प्रायः उनके युद्ध-चातुर्य, दान, वीरता आदि पर ही प्रकाश डाला गया है; यथा, महाराजा अजीतसिंह तथा कवि के आश्रयदाता महाराजा अभयसिंह के युद्ध-कौशल, राजनीति, दान, वीरता प्रादि का विशिष्ट चित्रण है। .: प्रतिपक्षियों का चरित्र-चित्रण करते समय कवि ने शत्रुओं की शक्ति, राजनीति, युद्ध-चातुर्य तथा अवसर पड़ने पर प्रात्म-समर्पण अथवा रण से भाग जाने का सजीव वर्णन किया है । कुछ पात्रों के चरित्र नीचे दिये जाते हैं। महाराजा सूरसिंह :
कवि ने सूरसिंह का चरित्र एक कुशल और वीर राजा के रूप में चित्रित किया है । बादशाह अकबर के दरबार में जब गुजरात के शासक मुजफ्फर के ज्येष्ठ पुत्र बहादुर (इसने गुजरात में लूट-मार शुरू कर दी थी) का दमन करने के लिये बीड़ा घुमाया जाता है तब किसी भी राजा की हिम्मत उस बीड़े को ग्रहण करने की नहीं होती है, केवल महाराजा हो जोशीले शब्दों में सम्राट अकबर को धैर्य देते हुए उस बीड़े को उठा लेते हैं।
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[ ३ ]
भा सोह उमराव ब दीवांण नाही |
"
पांन फेरे पतिसाही ॥
मीर त्रुजक ज्यां मांहि, स्रब नटिया तिर सम
अवर उमराव काजा ।
1
'सूर' पांन साहरा जुड़रण लीधा महाराजा ॥
"
ग्रहि पान एम कहियो अगंज, झट खग बौह बाहू झलूं ।
पकड़ मदर मिलक, मुदफर रौ सिर मोकळं ।
[ सू. प्र. भाग १, पू. २६३ ]
इनकी वीरता के आगे गुजरात के लुटेरे भाग जाते हैं । इसी प्रकार दक्षिण में अमर चम्पू की बढ़ती हुई शक्ति से भयभीत होकर बादशाह अकबर महाराजा सूरसिंह को ही उसके विरुद्ध भेजते हैं और वे बड़ी कुशलता से अमर चम्पू को परास्त कर के स्वदेश लौटते हैं । सम्राट् अकबर के पश्चात् बादशाह जहाँगीर सिंहासनारूढ़ होते ही इन्हें अपने दरबार में बुलाता है और इनके गुणों की प्रशंसा करते हुए जालोर का परगना भेंट करता है । इन सब घटनाओं से इनका वीरश्रेष्ठ होना प्रकट होता है ।
कवि ने सूरसिंह को एक श्रेष्ठ योद्धा के साथ कुशल राजनीतिज्ञ और प्रतिशोध की भावना रखने वाला भी बताया है। इसका उदाहरण हमें इनके गुजरात की ओर जाते समय सिरोही के राव सुरताण से चन्द्रसेन के पुत्र रायसिंह को धोखे से मारने का प्रतिशोध लेने से मिलता है । इसके विपरीत इनके प्रमुख अमात्य गोविन्ददास भाटी ने इनके भाई के लड़के को मार डाला था, किन्तु गोविन्ददास के अत्यधिक गुणवान् होने के कारण उसको दण्ड नहीं देते और उसको प्रमुख अमात्य के पद पर बनाये रखते हैं । इस प्रकार उनमें अत्याचारियों और दुष्टों को दण्ड देने की और गुणवान की त्रुटि को भी क्षमा कर के उसके गुणों का सम्मान करने की भावना थी ।
इन गुणों के साथ कवि ने महाराजा को दानवीर और उदार भी बताया है । जब वे गुजरात से लुटेरों का दमन कर के अतुल धन राशि के साथ लौटते हैं तो अपने आश्रित कवियों और सामन्तों को धन और जागीरें देकर पुरस्कृत करते हैं । महाराजा गजसंह :
ग्रंथकर्ता ने महाराजा सूरसिंह के ज्येष्ठ पुत्र महाराजा गजसिंह को भी अपने पिता के समान श्रेष्ठ योद्धा, युद्धविद्या में दक्ष और राजनीति कुशल बताया है । इसके अतिरिक्त कवि ने महाराजा का एक पितृभक्त, महान् शक्तिशाली आत्माभिमानी, धैर्यवान्, सहनशील, आत्म-विश्वासी तथा शाही खानदान के प्रति स्वामि-भक्त के रूप में भी चित्रण किया है ।
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[ ४ ] महाराजा को पितृ भक्ति :
जब महाराजकुमार गजसिंह को यह संदेश मिला कि उनके पिता दक्षिण में रोग-ग्रसित हो गये हैं तो उन्होंने जोधपुर की शासनव्यवस्था, जो उस समय बड़ी जिम्मेदारी का कार्य था, छोड़ कर तुरन्त ही दक्षिण की ओर रवाना हो गये किन्तु दुर्भाग्यवश सवाई राजा सूरसिंह का देहावसान इनके वहां पहुंचने के पूर्व ही हो जाने के कारण ये पिता के अन्तिम दर्शन नहीं कर सके । इनका राज्याभिषेक भी उस समय दक्षिण में ही हुआ ।
महाराजा गजसिंह अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजा थे। बादशाह जहांगीर ने सिंहासनारूढ़ होते ही जब महाराजा सूरसिंह का सम्मान करने के लिये उन्हें अपने दरबार में बुलाया तो महाराज कुमार गजसिंह भी उनके साथ थे। बादशाह महाराज कुमार से बहुत प्रभावित हुआ और जालोर उन्हें इनायत कर दिया, अर्थात् जालोर पर अपनो अधिकार करने की इनको छूट दे दी। जालोर पर उन दिनों बिहारी पठानों का अधिकार था । महाराजकुमार गजसिंह ने दिल्ली से लौटते ही जालोर पर धावा बोल दिया। जिस जालोर को फतह करने में अल्लाउद्दीन को बारह वर्ष लगे थे तथा अत्यधिक सैन्य शक्ति व छल-कपट से काम लिया गया था उसी जालोर को महाराजकुमार गजसिंह ने केवल तीन मास में ही अपने अधिकार में कर लिया। कवि ने निम्न पंक्तियों में इस बात को प्रकट किया है
लड़ि बारह बरस अलावदी, लखां दळां छळहूं लियौ । त्रण मास मांय गजबंध तिकी, 'जालंधर' गढ़ जीपियौ ।।
सू. प्र. भाग १., पृ. २६६ यही नहीं, कई घटनाओं में कवि ने इनके असाधारण शौर्य का भी चित्रण किया है । जहांगीर के पुत्र शाहजादे खुर्रम ने, जो आगे चल कर शाहजहां के नाम से तख्त पर बैठा, विद्रोह कर दिया और उसने दक्षिण में बड़ी भारी सेना तैयार की। उसने महान् शक्तिशाली भीम सीसोदिया को अपनी ओर मिला लिया और स्वयं बादशाह बनने के लिये दिल्ली की ओर बढ़ा। बादशाह जहांगीर ने उसका मुकाबला करने के लिये शाहजादे परवेज के साथ आमेर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह को उनके पास अधिक सेना होने के कारण फौज में आगे रखा गया । यह बात स्वाभिमानी गजसिंह को अपमानजनक लगी और वे अपनी टुकड़ी को अलग कर के एक ओर खड़े हो गये, तथा दूर से ही युद्ध के परिणाम की प्रतीक्षा करने लगे। इस प्रकार कवि ने यह प्रकट किया है कि महाराजा कितने स्वाभिमानी थे।
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भीम सीसोदिया के पराक्रम से आमेर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह और शाहजादे परवेज की संयुक्त सेना में भगदड़ मच गई । कवि कहता है
जाडां थंडां जियार, लोह पाडां भड़ लागा । जेरण वार 'जैसाह' भिड़े, हरवळ दळ भागा ॥
सू. प्र. भाग २., पृ. ६ महाराणा प्रताप का पौत्र भीम भयंकर मार-काट करता हुआ आगे बढ़ा, शाहजादे खुर्रम की विजय निश्चित थी। उसी समय भीम सीसोदिया ने दूर से युद्ध का कौतुक देखने वाले रण-केसरी महाराजा गजसिंह को ललकारा । महाराजा ने बड़े धैर्य और आत्म-विश्वास के साथ अपने तीन हजार राजपूतों से खुर्रम और भीम सीसोदिया की विशाल वाहिनी का मुकाबला किया। शाहजादे खुर्रम को विजय पराजय में बदल गई और भीम सीसोदिया वीर गति को प्राप्त हुआ। इस विषय में कवि की निम्न पंक्तियां देखिये
पाडियो भीम खागां पछटि, गयौ खुरम लसि कुरंग गति । गहतंत एम जीती 'गजण', पूरब धर जोधाण पति ।।
सू.प्र. भाग २., पृ.७ इस प्रकार कवि ने महाराजा गजसिंह को महान् धैर्यवान, सहनशील और आत्म-विश्वासी प्रकट किया है, क्योंकि भीम सीसोदिया के ललकारने पर ही उन्होंने अपनी छोटी सी सेना से उसको पराजित किया-इसके विपरीत भीम शाहजादे परवेज और पामेर नरेश मिर्जा जयसिंह की विशाल सेना से भी पराजित नहीं हुआ था।
इसी प्रकार महाराजा गजसिंह ने दक्षिण में अमर चम्पू को परास्त किया तथा दक्षिण के खिड़की गढ़, गोलकुण्डा, पाहोर, सितारा आदि को विजय कर के बादशाही राज्य में मिला कर अपने पराक्रम और शाही खानदान के प्रति स्वामिभक्त होने का परिचय दिया तथा बादशाह द्वारा 'दळथंभण' की उपाधि से सम्मानित हुए। महाराजा अजीतसिंह :__ ग्रन्थ में महाराजा अजीतसिंह का विशद वर्णन किया गया है, जो पुस्तक के सौ पृष्ठों से भी अधिक में पाठकों के समक्ष है। चूंकि बचपन में इनका पालन-पोषण वीर दुर्गादास राठौड़ की देख-रेख में गुप्त रूप से होता है, अतः इनकी बाल्य-क्रीड़ाओं का चित्रण नहीं किया गया है।
जब महाराजा कुछ योग्य हुए तो राजपूतों ने इनको अपना अग्रणो बनाया, अतः इससे इनका युद्ध विद्या में चतुर होने का प्रमाण मिलता है। उस समय
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जोधपुर पर औरंगजेब का अधिकार था। महाराजा अपने सरदारों के साथ इधर-उधर लूट-खसोट करते थे। मुगलों को हर प्रकार से तंग करते, उनकी रसद तक लूट लेते, गांवों से कर आदि वसूल करते । औरंगजेब के मरने पर इन्होंने जोधपुर पर अधिकार कर लिया, किन्तु इनका मुगलों से जूझना जारी रहा । इन्होंने अपने जीवन काल में सांभर, डीडवाना तथा कुछ दिनों के लिये अजमेर पर भी अधिकार कर लिया था। अतः कवि ने स्पष्ट कर दिया कि महाराजा आजीवन युद्ध करते रहे। मुगलों के प्रति तीव्र वैमनस्य :
इन पर मुगलों ने बहुत अत्याचार किये । महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) का काबुल में देहावसान होने के लगभग तीन महीने बाद लाहौर में इनका जन्म हुमा । औरंगजेब ने जोधपुर राज्य को शाही सल्तनत में मिलाने तथा इनको मुसलमान बनाने के लिये दिल्ली बुला लिया किन्तु स्वामिभक्त वीर राठौड़ दुर्गादास की चतुराई से ये बचा लिये गये। इस समय इज्जत बचाने के लिये दिल्ली में दुर्गादास ने उनकी माताओं को तलवार के घाट उतरवा कर यमुना में बहा दिया । गुप्त रूप से बड़े होने के बाद कई लड़ाइयाँ लड़ कर उन्होंने अपना पैतृक राज्य मुगलों से पुनः प्राप्त किया। इन सब कारणों से वे मुगल सल्तनत को मटियामेट कर देना चाहते थे। सैयद बन्धुओं और बादशाह फर्रुखशियर में वैमनस्य हो जाने के कारण ये भी अपने सरदारों सहित दिल्ली पहुंचे। यहाँ पर कवि ने महाराजा की इस भावना का अच्छा चित्रण किया है। दिल्ली में प्रवेश करते समय इन्होंने अपनी शैशवावस्था में रक्षा करने वाले उन वीरों के समाधि-स्थान देखे जो इनकी रक्षार्थ मुगलों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए थे तथा इन्हें अपनी जन्मदात्री मां का भी स्मरण हो आया जिनका समाधि स्थान भी यहीं पर था। इनके हृदय में प्रतिशोध की भावना भड़क उठी और अपने मन में मुगलों का नाश करने की ठान ली। देखिये :
समै जेण पतिसाह, दुगम बुद्धि काळ दबायो। 'सैद' ग्रहण पतिसाह, आप भय चूक उठायौ। . खेध पड़े चित खांन, खोद उज्जीर हुवा खळ । सांभलि अलीहुसेन, दखिरण हूँ आयो सझै दळ । पतिसाह ग्रहण जोधाण पति, पेखै मोसर पावियो । दइवांण 'अजौ' दळ सझि दिली, आप मुरादौ प्रावियो ।।
सू. प्र. भाग २, पृ.७६. ७७
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। ७ ] प्राइ दिली ईखिया, जोध चौतरा 'जसारां'। सुजि 'अवरंग' सजी (...) इता खटकै उण वारां। जूना भड़ां जियार, कहै इण भांत हकीकत । माति आदि जादम्म, मात अनि अठ खगां प्रत । आइठाण देखि कथ सुणि 'अजै' धिखै क्रोध इम चित धरी । असपति मारि मांडू अठ, एक कबरि असपत्तिरी॥ धख इम चख (...)धिखै, तांण मूछां खग तोले । भडा हूंत भूपाळ बहसि नाहर जिम बोले । खत्री खांडा धार, एह वायक अबखारण। जिको विरद उजवाळि, खूद पलटी खुरसारण । महि वैर वंस गोहरि मंडप, अवरंग' बहु कीधा इसा । ताबूत (रा) वैर भूलै तिक, कहै 'अजौ' राजा किसा।
सू. प्र. भाग २, पृ. ७७, ७८ अपने समय के सब से शक्तिशाली :
इनके दिल्ली पहुँचने पर सैयद बन्धुओं और बादशाह फर्रुखशियर ने इनका अलग-अलग स्वागत किया। वे जानते थे कि जिधर शक्तिशाली महाराजा झुक जायेंगे वही पक्ष मजबूत हो जायगा। किन्तु महाराजा मुगलों से कभी प्रसन्न न थे अतः उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से सैयद बन्धुओं का ही पक्ष लिया जो हिन्दुओं के पक्षपाती थे । फलस्वरूप बादशाह फर्रुखशियर मारा गया। अतः कवि ने यह प्रमाणित कर दिया कि महाराजा उस समय में सब से शक्तिशाली थे। धर्म रक्षक :
यवनों के समय में राजपूत राजाओं ने जी जान से हिन्दू धर्म की रक्षा की थी। कवि ने महाराजा का एक कुशल धर्म-रक्षक के रूप में चित्रण किया है । सैयद बन्धुत्रों का पक्ष उन्होंने इस शर्त पर कर लिया कि बादशाह फर्रुखशियर को हटाते ही हिन्दुओं पर से जजिया कर हट जाना चाहिये, हिन्दू तीर्थ-स्थानों पर से कर हट जाना चाहिये, गो-वध बन्द होना चाहिये तथा मन्दिरों में होने वाली नियमित पूजा में किसी प्रकार की बाधा नहीं पड़नी चाहिये।
हम रहै नौकर होय, दिल आप बांधव दोय । पलटां न वायक पेस, नहिं तजां हुकम नरेस । महाराज विच रहमाण, करि सौंस छिबी कुरांण । तदि धरै दिल परतीत, इम बोलियो 'अगजीत' । हिंदवाण तीरथ होय, कर जठ न लगै कोय । साळग्गरांम सिलाह, दै नहीं प्रासुर दाह । जिग होय दुज जप जाप, प्रासुर करे न उथाप। जिण मोह महि दुर जाय, ग्रहै त? मन गाय ।
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असुरांण सीस उपाड़ि, परसाद न सके पाड़ि। प्रासाद नव नवा प्रमेस, हिंदवाण सझे हमेस । प्रागै जु दियो छुडाय, जेजियो सुज मिट जाय । पर साह दरगह आइ, मह पूजहूँ महमाय । मिळ लाल कोट मझार, झालरां ह्र झणकार । परमळा धूप प्रकास, उदियात रवि अंब-खास । -सू.प्र भाग २, पृ. ८१, ८२
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xxx पा मिटण न दूं अनादि, मो थकां हिंदु प्रजादि ।
सुरिण कहै इम सयदाण, पर हुकम सरव प्रमाण ।
सझि एम तरह सलाह, दहुं गये 'सयद' दुबाह । - सू.प्र. भाग २, पृ. ८३ इसी प्रकार अपने पैतृक राज्य जोधपुर पर अधिकार करते ही उन्होंने उन मसजिदों को तुड़वा डाला जो मंदिरों के स्थान पर बनाई गई थीं और वहाँ पुनः मंदिर बनवा दिये।
जब उन्होंने अजमेर पर अधिकार किया तो वहां पर गो-वध रोक दिया हिन्दू धर्मग्रन्थों के पाठ शुरू करवा दिये तथा मंदिरों में नियमित पूजा शुरू करवा दी। राजस्थान के तत्कालीन नरेशों के सहायक :
बादशाह बहादुरशाह ने आमेर नरेश जयसिंह से राज्य छीन लिया था। महाराजा अजीतसिंह ने अपने पैतृक राज्य मारवाड़ पर अधिकार करते ही तुरन्त सांभर और डीडवाना को विजय करते हुए आमेर पर अधिकार कर लिया और जयसिंह को पुनः वहाँ का राजा बना दिया। ____ बादशाह मुहम्मदशाह के समय में आमेर नरेश जयसिंह ने ईरानी यवनों को प्रेरणा देकर आगरे में अपनी ओर से निकोशियर को बादशाह घोषित कर दिया था। इस पर सैयद बन्धु और महाराजा अजीतसिंह ने दिल्ली से प्रागरे जा कर ईरानी मुगलों को मार भगाया और निकोशियर को कैद कर लिया। सैयद बन्धु जयसिंह से बहुत नाराज थे। उन्होंने आमेर पर चढ़ाई करने की ठान ली।
गढ लीध करि गज गाह, सुजि गहै नेकह साह।
'जैसाह' दिस जमराण, खळ चढे दळ खुरसाण ॥-सू.प्र. भाग २, पृ. ८५ राजा जयसिंह ने अपनी लज्जा बचाने के लिये महाराजा अजीतसिंह को पहले से ही पत्र लिख दिया
सझि थाट कुरब सुथाळ, मो राखियो 'अजमाल' । वरियांम तीजी बार, अब नको अवर अधार ॥-सू.प्र. भाग २, पृ. ८६
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यद्यपि सैयद बन्धु बदला लेना चाहते थे किन्तु महाराजा प्रजोतसिंह की
सलाह के कारण वे उधर नहीं बढ़ सके
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सुरण बयर इम यदांग, उर धिखै क्रोध उफांरण | दिल मांहि लागो दाह, 'अजमाल' कुरब उथाह ! सो लोप न सके सैद, कथ कोध पहलां कैद । कथ कहै तजै करूर, जो हुकम पह मनजूर ।
सू.प्र. भाग २, पृ. ८७,८८
मेवाड़ के महाराणा जयसिंह और उनके पुत्र अमरसिंह में परस्पर गृहकलह होने के कारण महाराणा भयभीत होकर मारवाड़ की ओर मा गये और महाराजा अजीतसिंह के पास सहायता का पत्र भेजा । उस समय जोधपुर पर श्रीरंगजेब का अधिकार था और महाराजा अपने पैतृक राज्य के लिए जूझ रहे थे, किन्तु राणा की सहायता करना अपना कर्त्तव्य समझ कर दुर्गादास राठौड़ की अध्यक्षता में २५ हजार सशक्त सेना भेज कर पिता-पुत्र में संषि करवा दी और महाराणा को पुनः मेवाड़ के सिंहासन पर आसीन किया ।
रांग राज तिल वार, जुगति धर वेध लगे जदि । 'अमर' कुमर मुरड़ियाँ, तंत ऊथ दियो तदि । जदि आयो जैसिंघ, सरण कमधां तदि सब्बळ । रांग मदति महाराज, दीघ 'अगजीत' सबळ दळ | तदि रांग 'जसौ' चाढ़ तखति, कंवर नमे बांध करां । 'जसराज ' तर कीधो 'श्रजे', प्रांक एह उदिया पुरां ।
सू.प्र. भाग २, १.३६ इस प्रकार कवि ने महाराजा को किसी के संकट के समय में सहायता देने वाला बताया है ।
कुशल राजनीतिज्ञ :
नागौर के राव इन्द्रसिंह का पुत्र मोहकमसिंह महाराजा अजीतसिंह के विरुद्ध बादशाह फर्रुखशियर को बहकाता था, अतः महाराजा ने भाटी अमरसिंह के साथ कुछ सरदारों को गुप्त रूप से मारवाड़ से दिल्ली भेजा और मोहकमसिंह को मरवा डाला । इसके अतिरिक्त दिल्ली के तख्त पर जितने भी बादशाह सैयद भाइयों ने बैठाये, उनके लिए उन्होंने महाराजा की मंत्रणा ली, अतः ये कुशल राजनीतिज्ञ सिद्ध होते हैं ।
स्पष्ट है कि कवि ने महाराजा अजीतसिंह का चित्रण अपेक्षाकृत अधिक सफलता के साथ किया है ।
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महाराजा अभयसिंह . इस ग्रन्थ की रचना महाराजा अभयसिंह के समय में ही हुई थी, अतः कवि ने महाराजा के जन्म-काल से लेकर अहमदाबाद की विजय तक इनके जीवन की विभिन्न घटनाओं का चित्रण बड़ी कुशलता से किया है । जन्म-कुंडली, नक्षत्रों, हस्तरेखाओं तथा अन्य ज्योतिष-सम्बन्धी विषयों का वर्णन करके महाराजा के भावी जीवन पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। बाल-चरित्रः -
चूंकि इनके पिता महाराजा अजीतसिंहजी ने अपने समय में कई बादशाहों को बदल दिया था, अतः बालक अभयसिंह भी इन बातों से प्रभावित हुआ। कवि ने इनके द्वारा खेले जाने वाले खेलों में इनका बादशाह बनाना, फिर हटाना, किले जीतना, युद्ध करना आदि बातों का वर्णन करके इनके बाल-चरित्र में उदीयमानता के लक्षण व्यक्त किए हैं। इसके लिए निम्न पंक्तियां देखिये
तेजपुंज नप सुतण, हुवी जस वेस झळाहळ । सांईनां साथियां, मिळं खेले मझि मंडळ । हुवै बाळ हेक सा', बिखम गढ़ कोट बणावै । प्रोप साह ऊपरा, 'अभी' दळ बळ सझि पावै । सझियास कोट गढ़ साहरा, धूम लूटि धन ऊधमै । ऊगती भांण बाळक 'अभी' राय प्रांगण इण विध रमै ।
सू.प्र. भाग २, पृ. ४६, ५० सिसु उथापि इक साह, साह सिसु अवर सथप्पै । सिसु सुभड़ां हित सझ, पट गढ देस समप्पै । सिसु इक मंत्री सरूप, धार दफतर भर धार।
सिसु दुज करै सरूप, एक सिसु कथा उचारै। कवि होय एक सिसु गुण कहै, सांसण गज दै तिण सम। ससि वेस 'प्रभो''अगजीत' सुत, राय प्रांगण इण विध रमै ।
सू.प्र. भाग २, पृ. ५१ युवावस्था के प्रारम्भ में पराक्रम दिखाना :
बादशाह मुहम्मदशाह महाराजा अजीतसिंह की बढ़ती हुई शक्ति से बहुत घबराया, क्योंकि उन्होंने अजमेर पर भी अपना अधिकार कर लिया था। अतः बादशाह ने उनका दमन करने के लिए तीस हजार यवन-दल के साथ मुदफर खाँ को भेजा । महाराजा अजीतसिंह ने राजकुमार को उसका सामना
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करने के लिए भेजा। वे अपने पिता को पूर्ण विश्वास दिला कर रवाना हुए। कवि ने यहाँ पर अभयसिंह के शौर्य का सुन्दर चित्रण किया है
रही भठे महाराज, आप पाणंद उपाए । बीड़ी मो बगसिज, जड़ मुदफर हूँ जाए। जुड़े त मारू जवन, भांति बळ काय भजाऊं।
करि झट खंड कराळ, चाक खंड खंड चढ़ाऊं। पुर नारनौळ साहिजा पुरां, दळि लूटूं दस देसनूं । अजमेर सोच दियूं उवर, दिल्ली सोच दिलेसनूं ।
सू.प्र. भाग २, पृ.६८ राजकुमार अभयसिंह अपनी सेना के साथ तूफान की भाँति आगे बढ़ते हैं और मुदफर खां यवन दल के साथ भाग जाता है ।
भजि गया बिण गज भार, हय थाट तीस हजार । मिट लाज छाडि गुमान, खड़ि गयो मुदफर खांन ।
सू.प्र. भाग २, पृ. १०२ महाराज कुमार ने बादशाही गांवों को लूट लिया और उनमें आग लगा दी। लोग भय से घबराने लगे
आवस धक अमास, उडि जाय गढ़ असि हास । लूटंत संपति लाख, सरदाण घण साख ।
सू.प्र. भाग २, पृ. १०३
प्रै सहर को ऊफांण, 'अभमाल' घेरे प्राण । चहुं तरफ थाट चलाय, लगाय वळ वळ लाय ॥ धुबि झाळ झळ हळ धोम, हणमंत लंक जिम होम । जाळीस सबळ पट जागि, आलीस आलिय प्रागि।
सू.प्र. भाग २, पृ. १०३ यहाँ पर कवि ने महाराज कुमार की युवावस्था में होने वाली अपरिपक्व बुद्धि की ओर संकेत किया है, क्योंकि लूट-खसोट करना, गांव जला डालना प्रादि वीरोचित कार्य नहीं हैं। इस प्रकार के कार्यों के कारण इनका नाम धोकळसिंह पड़ा। सबको भयभीत करके तथा बहुत धन-माल लेकर ये अपने पिता से आकर मिले
धन लूट कीधौ धारण, वधि नारनौळ विनाण। चंड नयररा परचंड, दो नगर में भुजदंड ।।
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[ १२ ] भांजिया जिकै भुजाळ, 'प्रभमाल' विरद उजाळ । मंडियौ न धर्क मुगकळ, इम जीपियौ प्रभमल्ल ॥ धर साह धोकळ धींग, सो कहैं धोकळ सींग । सझि साह मुलक सरद्द, मोसरां पहल मरद्द । कुळ भांण विरद कहाय, जुध जीत तबल वजाय । इम हले थाट अथाह, छिल उरस छिब 'प्रभसाह'।। गाजतां गयंद गहीर, वाजतां नौबत वीर । प्रावियो थाट अथाग, रंग हुवां उच्छब राग ॥ 'अजमाल' सजि उच्छाह, गह-महत भड़ दरगाह । उणवार 'भमल' प्राय, पह कीध वंदरण पाय ॥ सुत तात मिळं सनेह, दो जांणि सूरज देह । अति पूर छक अमराव, पति करत वंदण पाव ॥
सू.प्र. भाग २, पृ. ११०, १११ अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजा :-- ___महाराजा अभयसिंह भी सवाई राजा सूरसिंह, गजसिंह आदि अपने पूर्वजों के समान ही शक्तिशाली राजा थे। बादशाह मुहम्मदशाह ने सर बुलन्द को गुजरात का सबेदार बना कर भेजा था। उसने वहाँ जाकर अपनी शक्ति बढ़ाई और स्वयं वहाँ का अधीश्वर बन बैठा। बादशाह बहुत चितित हुआ और उसने एक बहुत बड़ा दरबार किया जिसमें बड़े-बड़े राजा, महाराजा, सामन्त, नवाब, अमीर आदि उपस्थित थे। बादशाह ने सर बुलन्द का दमन करने के लिये सभा में पान का बीड़ा घुमाया। सर बुलन्द की शक्ति का मुकाबिला करने के लिये कोई भी तैयार नहीं हुआ, आखिर महाराजा अभयसिंह ने ही बीड़ा उठा कर यह प्रतिज्ञा की कि मैं सर बुलन्द को झुका कर रहूँगा। इस प्राशय को कवि ने निम्न पंक्तियों में चित्रित किया है
फिर पांन साहरा, कितां ह्र ज्यांन थरत्थर । फिर पांन साहरा, कितां निजरां न धरै कर । तुजक मीर कर तांन, केइक मसतांन कहावै । अांन ांन कथ कहै, पान नह कोय उठावं । 'अभमाल' विनां हिंदू असुर, दिल अंब खास दबावियो, मेर गिर भार पानां महीं, उण दिन निजरां प्रावियो।
नी लिये खांन निबाब, प्रांन न लियै प्रधपत्ती । तुजक भोर कर हूंत, पान लीधा असपत्ती।
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[१३] प्रहे पनि निज करग, नजर कमज्ज निहार। रहै एक प्रोसरा, एम पतिसाह उचार। तद मुसलमान हिंदू तणी, प्रासंग किणहि न प्राविया । दईवाण देखि असपति दुचित,'अभमल' पान उठाविया ।
सू.प्र. भाग २, पृ. २४५, २४६ बीड़ा ले बोलियो, कमध धात मुंछां कर। उछब करी असपती, सोच मति धरौ दिलेसुर । मारि सीस मोकळ, काय पकड़े पोहचाऊं।
अजळ भाजि ऊबरै, मुगळ दळ गिरद मिळाऊं। अहमदाबाद हूँता असुर, एक दिवस मझि ऊथल । बिण पत्रां रूख जिम सिर विलंद, कर दिली दिस मोकळं।
सू.प्र. भाग २, पृ. २४७ स्वाभिमानी :
यद्यपि महाराजा अजीतसिंह ने बादशाह मुहम्मदशाह से संधि कर ली थी और उसके अनुसार महाराजकुमार अभयसिंह दिल्ली गए थे। किन्तु वे पूर्णरूप से स्वाभिमानी थे । एक समय जब ये बादशाह मुहम्मदशाह के दरबार में गये और बादशाह के बिलकुल समीप पहुंचे तो बादशाह के एक अमीर ने इन्हें रोक दिया, इस पर इन्होंने अति कोधित होकर अपने स्वाभिमान की रक्षक कटार निकाली। उसी समय बादशाह ने तुरन्त आगे बढ़ कर अपने गले का मोतियों का हार इन्हें पहना दिया और बड़ी कठिनाई से इनके क्रोध को शान्त करने में सफल हुा । यदि वह ऐसा नहीं करता तो वही दृश्य उपस्थित होता जो बादशाह शाहजहाँ के दरबार में अमरसिंह राठौड़ द्वारा हुआ था। कवि ने उनके इस गुण का चित्रण इस प्रकार किया है
एक समै 'अभमाल', एम प्रावियो पुजाए। दुझल वार दूसरी, चढ़ण कटहड़े चलाए। अनवह चढं अमीर, साहजादां नह मौसर ।
उठ चढ़ धर धोम, बहसि 'अभमाल' बहादर । गज तजे डाण अन पह गुमर, तेज साह इसड़ो तठे। प्रकियो असुर तिण पर 'प्रभ', जमदढ़कर धरियो जठं ।। पेखि रोस पतिसाह, माळ मोतियां समप्पं । बगसी भेजि सताब, प्रांरिण माळा सुज अप्पं ।। मीर तुजक मारिवा, धिक्ष जमदढ़ कर धार। दुझल खांन दौरांस, पटाझर जिम पूतार ।।
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[ १४ ] असतूत कर बह करि अरज, जोड़े हाथ जुहारियो । असपती मौहर प्राणं 'प्रभो' इण विध क्रोध उतारियो॥
सू.प्र. भाग २, पृ. १२६ महाराजा की भाषण-शक्ति :
सर बुलन्द पर आक्रमण करने के लिए महाराजा ने सरस्वती के किनारे अपने सुभटों के समक्ष बड़ा जोशीला भाषण दिया। उन्होंने बताया कि ऋषिमहात्माओं को अपेक्षा वीरों को सहज ही में मोक्ष मिल जाता है। अपने लम्बे भाषण में उन्होंने कई ज्ञान की बातें बताई और युद्ध में जीत की बाजी लगाने के लिए सरदारों को प्रोत्साहित किया। अतः कवि ने यह प्रमाणित कर दिया कि महाराजा भाषण-शक्ति में दक्ष होने के साथ साथ विद्वोन भी थे
इम रिख सिख हैं ताम उचारा । धुर सत्र मारग खांडा धारा। विधि सिख सुरिण रिज कहै करू विध। सूर जोड़ न हुवै तपसी सिध ॥
सू.प्र. भाग २,५.३३६
कळहणि सूर सांमरे कारण। ऽवै सुख तर्ज पलक मझि प्रारण । सूरां तेज इसौ दरसावै। इण विध तपसी जोड़ न पावै ।।
सू.प्र. भाग २, पृ. ३४०
इम सरी पति धरम इरादा। जोगेसरां सिधा हूँ जादा। लड़े नचित लोह नह लागे । जिको सूर तपसी सम जाग ।।
सू.प्र. भाग २, पृ. ३४३ शरणागतवत्सल और क्षमाशील :___ सर बुलन्द को परास्त करने में महाराजा के कई राजपूत योद्धा वीरगति को प्राप्त हुए, जिनका उन्हें बहुत शोक था, फिर भी सर बुलन्द महाराजा की शरण में आ गया तो उन्होंने क्षमा करके उसे छोड़ दिया और वह करारी हार से लज्जित होकर आगरा की ओर रवाना हो गया
पड़े पाय सिर विलंद, जाणं सरणाय सधारा । . म्हैं बंदा हुकम का, एम कहियो उण वारी ।
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[ १५ ] प्रवर रखत अरबां, किले वंचिया अधिकारां ।
जिक किया सही निजर, किला सहित कोठारां । जदि होय रूख पतझड़ जिही, सुभड़ा विणि दुख सालियो। प्रागरा दिसि सिर विलंद इम, हीण माण होय हालियो।।
• सू.प्र. भाग ३, पृ० २६४ इस प्रकार कवि ने महाराजा अभयसिंह का एक आदर्श राजा के रूप में चित्रण करने का सफल प्रयत्न किया है। प्रति नायक :
नायक की श्रेष्ठता प्रति नायक के बल का यथेष्ट वर्णन कर उस पर विजय प्रदर्शित करने से ही सिद्ध होती है। कवि ने अपने इस उत्तरदायित्व को ग्रंथ में यत्र तत्र पूर्ण रूप से निभाया है । सर बुलन्द :
अहमदाबाद का स्वतःसृष्ट नृपति सर बुलन्द, जिसको बादशाह . गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया था, बहुत शक्तिशाली था। उसने विद्रोहियों से मिल कर गुजरात में बहुत अत्याचार किये, लूट-मार की जिससे कि वहाँ की प्रजा बहुत दुखी हो गई। बादशाह के दरबार में गुजरात के एक संदेशवाहक की आर्तनाद को कवि ने निम्न कवित्त में प्रकट किया है
ईरांनी अतपाक, दखिरण मिळ किया दुबाहां । मंडिया जठ गनीम, जठं सहनक पतिसाहां। माठ पहर रइयत्त, जहर पीधा समजावै।
लूट कहर करि लियै, सहर विवराळा गावै । धन लियै मारि नांखै धणी, साथ होण न दिय सती। असपती सोच वधियो अधिक, इसड़ी सुण प्रजाजती ॥
सू.प्र. भाग २, पृ. २४२ सर बुलन्द का दमन करने के लिए बादशाह के दरबार में पान का बीड़ा घुमाया जाना और वहाँ पर उपस्थित सभी राजा, महाराजा, सामन्त, नवाब, अमीरों आदि का सर बुलन्द के विरुद्ध बीड़ा उठाने की हिम्मत नहीं करने का वर्णन कर के ग्रंथकर्ता ने उसके अत्यन्त शक्तिशाली होने की ओर संकेत किया है। इसके लिए पुस्तक के द्वितीय भाग पृष्ठ २४५-२४६ तथा २४७ के कवित्त दृष्टव्य हैं। इसके अतिरिक्त ग्रंथ की निम्न पंक्तियाँ भी देखिये
बिहूं तांम बोलिया, साह अपखास सझावी । नरिंद खांन करि निजर, फिजर बीड़ा फिरवावी । फट निसा फजरांन, अंब - दीवारण वणाया। तखत बैठ सुरताण, पान हाजर पधराया।
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- [ १६ ] सिर विलंद खांन 'साहू' सहित, प्रासंग हुवे सु प्रावसी । असमान पड़े थांभै अडर, प्रो नर पान उठावसी ।
सू.प्र. भाग २, पृ. २४२ सर बुलन्द की सेना में बारह हजार सैनिक तो यूरोपियनों की देख-रेख · में ही थे तथा तोपें दागने का काम भी यूरोपियन करते थे। चार हजार 'सुतर नालें', तीन हजार 'रेहकले', तथा शक्तिशाली सेना के वर्णन से उसका बहुत चतुर और विजयाकांक्षी होने का प्रमाण मिलता है।
पहले तीन दिन तक सर बुलन्द राठौड़-वाहिनी के समक्ष नहीं आया और गोलाबारी करता रहा । अत: वह युद्ध-विद्या में दक्ष सिद्ध होता है।
नगर के प्रत्येक द्वार पर तोपें और सैनिकों का प्रबन्ध करके उसने अपनी नगर-रक्षा की भावना को प्रमाणित किया है ।
अवसर पड़ने पर वह युद्ध-स्थल से भाग जाता था। इस प्रकार वह हिन्दुनों की तरह एक ही स्थान पर लड़ते-लड़ते प्राण गंवा देना बुद्धिमानी नहीं समझता था । अपनी हार होते हुए देख कर उसने महाराजा अभयसिंह से संधि कर ली तथा उनकी शरण में आ कर आत्मसमर्पण कर दिया। तत्पश्चात् वह आगरे की
ओर रवाना हो गया। इस भाव का चित्रण कवि ने निम्न पंक्तियों में किया है:
पड़े पाय सिर विलंद, जाणं सरणाय सधारां । म्हैं बंदा हुकम का, एम कहियो उपवारां। अवर रखत प्रारबां, किलै वंचिया 'अधिकार' । जिक किया सही निजर, किला सहित कोठारा। जदि होय रूख पतझड़ जिही, सुभड़ा विरिणदुख सालियो। प्रागरा दिसी सिर विलंद इम, हीण माण होय हालियो।
सू.प्र. भाग ३, पृ. २६४ प्रतः सर बुलन्द इतना शक्तिशाली और स्वाभिमानी होने के साथ-साथ अवसरवादी भी था। अन्य चरित्रः___ कवि ने राजनीतिज्ञ, युद्ध-विद्या में चतुर और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त करने वाले अनेक वीरों का परिचय भी ग्रंथ के अन्तर्गत यथा-स्थान यत्र-तत्र दे दिया है । पाठकों की सुविधा के लिये उनमें से कुछ का उल्लेख सूरजप्रकास की ऐतिहासिकता के अन्तर्गत करने का प्रयत्न किया गया है। सम्पूर्ण ग्रन्थ में स्त्रीपात्रों का अभाव ही है। केवल महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) की रानियों
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[ १७ ] का प्रसंगवश उल्लेख मात्र है जिनकी इज्जत बचाने के लिये दिल्ली में वीर दुर्गादास राठौड़ ने उन्हें तलवार के घाट उतरवा कर यमुना में बहा दी थीं।
कवि ने अपनी काव्यगत परम्परा के अनुसार सम्पूर्ण ग्रंथ में वीर रस तथा .इसके मित्र वीभत्स, भयानक तथा रौद्र का अच्छा चित्रण किया है । वीर रस के अन्तर्गत युद्धवीर, दानवीर, दयावीर, धर्मवीर तथा प्रणवीर सभी का निर्वाह हुआ है। वीर रस का निम्न उदाहरण देखिए
बीड़ा ले बोलियो, कमध घात मंछां कर । उछब करौ असपती, सौच मति करौ दिलेसुर ।
मारि सीस मोकळं, काय पकड़े पोहचाऊं। अहमदाबाद हूंता असुर, एक दिवस मझि ऊथ। विण पत्रांरूख जिम सिर विलंद.करे दिलीदिस में
सू.प्र. भाग २, पृ. २४७ यत्र-तत्र प्रसंगवश शृंगार, शान्त तथा करुण रस का भी वर्णन मिलता है । साहित्यिक दृष्टि से कवि का ध्यान रसों की ओर न जा कर ग्रंथ में ऐतिहासिकता को ध्यान में रखते हुए वर्णनात्मक इतिवृत्त लिखने की ओर ही रहा है। अत: सभी रस पूर्ण रूप से परिपाक नहीं हुए हैं। शृंगार रस का निम्न उदाहरण देखिये
सोळह मझि सिणगार, सोळह बीस प्राभरण सुंदरि । वाजंत्र सझि विसतार, गांन संगीत करण मिळ गाइण । मुगघा वेस प्रमाण, लखि अति रूप उर-वसी लज्यत । पय घूघर बंध पाणं, सझिया नमसकार सारदा । ताल मृदंग तंबूर सुर वीणा, वीणा धरि सुंदरि । हरखत नपत हजूर, सझे सलाम प्रलाप कीघ सुर ॥
सू.प्र. भाग २, पृ. १५०
अलंकार कवि ने जान-बूझ कर अलंकारों को लादने की चेष्टा नहीं की है, किन्तु स्वाभाविक रूप से अलंकारों का प्रयोग होता रहा है। अतः ग्रंथ में अलंकारों का अभाव भी नहीं है। कवि की वंश-परम्परा के अनुसार समूचे ग्रंथ में 'वयण सगाई का भली भाँति निर्वाह हुया है। इसी प्रकार अनुप्रास की झलक भी प्राय: मिल ही जाती है। वीप्सा भी यत्र-तत्र मिल जाता है। अर्थालंकारों के अन्तर्गत-उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि का प्रयोग ग्रन्थ में होता रहा है। अतः स्पष्ट है कि ऐतिहासिक ग्रंथ होते हुए भी कवि द्वारा अलंकारों का प्रयोग
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स्वाभाविक रूप से बराबर होता रहा है। निम्न उदाहरणों से उक्त कथन की पुष्टि करने का प्रयत्न किया जा रहा है ।
शब्दालंकार :
वीप्सा - लघु लघु सर कर धनक लघु, लघु वय बाळक लार ।
सू.प्र. भाग १, पृ. २३
वयण सगाई - सम्पूर्ण ग्रंथ में इसका निर्वाह हुआ है । अनुप्रास - ग्रन्थ में प्रायः सभी जगह किसी न किसी रूप में मिल जाता है | प्रर्थालंकार :
उपमा - क्रीड़ा विलास विध- विध करं, 'अभौ' इंद आडंबरां ।
उत्प्रेक्षा - 'अजमलं' जुहार बैठो 'प्रभौ', सनमुख तेज समीपियौ । रघुनाथ जांणि रवि वंस रवि, दसरथि आगळ दीपियौं । छंद
ग्रंथ में संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी तथा हिन्दी के विभिन्न छंदों का प्रयोग प्रायः प्रसंगानुकूल किया गया है । युद्ध के लम्बे वर्णन के लिये त्रोटक, मोतीदाम, पद्धरी और कवित्त (छप्पय ) को अधिक अपनाया गया है। निम्न छंदों का प्रयोग ग्रंथ में किया गया है
१. प्रत गति ( अमृत गति ) - यह राजस्थानी और हिन्दी दोनों में प्रयुक्त होने वाला छंद है । राजस्थानी के छंदशास्त्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'रघुवरजसप्रकास' व हिन्दी के 'छंदप्रभाकर' अनुसार इसके प्रत्येक चरण में नगण, जगण, नगण तथा अंत में गुरु होता है । समूचे ग्रन्थ में केवल एक स्थान पर ही इस छंद का प्रयोग हुआ है जिसकी संख्या भी एक ही है, किन्तु इसमें उक्त लक्षण पूर्ण रूप से लागू नहीं होते हैं । इस छंद का दूसरा नाम त्वरित गति ( त्वरित गति : ) है ।
२. श्ररध नाराच (अर्द्ध नाराच ) - ग्रन्थ के प्रथम भाग में इसकी संख्या १४ है ।
३. इकतीसा - समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या एक है जो ग्रन्थ के दूसरे भाग में आया हुआ है ।
४. कलहंस - इस छंद के लक्षण भिन्न-भिन्न प्राचार्यों ने भिन्न-भिन्न दिये हैं । ग्रन्थ के प्रथम भाग में इसकी संख्या सात है ।
५. कवित्त कुंडलियों - यह एक मात्रिक छंद है । रघुवरजसप्रकास के अनुसार इसमें प्रथम कुंडळिया की छः पंक्तियां जो क्रमशः १३-११, १३-११, १११३, ११-१३, ११-१३, ११-१३ मात्रात्रों की होती हैं। अंतिम दो पंक्तियां
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[ १६ ]
उल्लाला की होती हैं जिनमें क्रमशः १५-१३, १५ - १३ मात्राएँ होती हैं । कुंडलिया के प्रथम चरण को उलट कर उल्लाला के अंतिम चरण में रखा जाता है। किन्तु ग्रंथकर्त्ता ने कुंडलिया के प्रथम चरण को उल्लाला के अंतिम चरण में नहीं रखा है । ग्रंथ में इसकी संख्या एक है जो ग्रंथ के दूसरे भाग में है ।
६. कवित्त दौढौ - केवल राजस्थानी का ही एक मात्रिक छंद है । राजस्थानी के प्राप्य छंदशास्त्रों में लक्षण नहीं देखे गये हैं किन्तु स्वर्गीय श्री हरिनारायणजी पुरोहित, जयपुर के मतानुसार इसमें छः पद रोला के तथा अंतिम दो पद उल्लाला के होते हैं । अतः इसमें साधारण छप्पय ( कवित्त ) से दो चरण अधिक होने के कारण यह कवित्त दौढ़ौ कहलाता है । समूचे ग्रंथ में इसकी संख्या आठ है ।
७. कुस विचित्रा - यह एक अनिश्चित छंद है । छंदप्रभाकर में कुसुम - बिचित्रा छंद दिया हुआ है किन्तु उससे इसके लक्षण मेल नहीं खाते हैं। समूचे ग्रंथ में इसकी संख्या केवल एक है ।
८. गाथा ( गाहा ) - यह संस्कृत का आर्या छंद है । समूचे ग्रंथ में इसकी संख्या १२ है |
६. गाथा चौसर ( गाहा चौसर ) - यह राजस्थानी का एक मात्रिक छंद है । समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या केवल एक है जो ग्रन्थ के पहले भाग में है ।
१०. गीत त्रकुटबंध - डिंगल ( राजस्थानी ) का एक गीत ( छंद ) विशेष । समूचे ग्रंथ में आठ द्वालों का एक गीत है जो ग्रन्थ के पहले भाग में है ।
११. गीत सांगोर - राजस्थानी का एक गीत ( छंद) विशेष । समूचे ग्रंथ में चार द्वालों का एक गीत है जो ग्रंथ के दूसरे भाग में है ।
१२. चंचली ( चंचला ) - एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में रगण, जगण, रगण, जगण, रगण व लघु के क्रम से १६ अक्षर होते हैं । इसका दूसरा नाम चित्रा है । ग्रन्थ में उक्त लक्षण नहीं मिलने के कारण छंदोभंग दोष है ।
यथा
151
झळाळ सूज पूजै भुजः पतिसाह
SS S । ऽ । ऽ । S S IS संपेखे
ISSI 11 S S SIS ISI
SI
दिलीहूत घर दावो, उससे पठाण एक ॥।
समूचे ग्रंथ में इसकी संख्या ५ है जो ग्रन्थ के प्रथम भाग में है ।
१३. छप्पय ( षट्पद) - इसको राजस्थानी में कवित्त कहते हैं समूचे
ग्रन्थ में इसकी संख्या ३६४ है ।
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[ २० ]
१४. पताळ ( झपताल ) एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १४ मात्राएं होती हैं और अंत में गुरु होता है । समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या १८ है जो ग्रन्थ के प्रथम भाग में 1
१५. भूलणा - यह एक मात्रिक छंद है । यह कई प्रकार का होता है । ग्रन्थ में प्रयुक्त छंद के अनुसार इसके प्रत्येक चरण में ( १३+१०) =२३ मात्रायें होती हैं । ग्रन्थ में इसकी संख्या २४ है जो ग्रन्थ के प्रथम भाग में है ।
१६. तारक - यह एक वर्ण वृत्त है । रघुवरजस प्रकास के अनुसार इसके प्रत्येक पद में चार सगण और अंत में गुरु होता है । ग्रंथ में प्रयुक्त इस छंद में छंदोभंग दोष है । यथा
S 1 SI 11 '' SS
वर बंधिय कुंभ घरण तिरण वारा
ग्रंथ में इसकी संख्या चार है जो ग्रन्थ के प्रथम भाग में है ।
11
१७. त्रोटक - प्रत्येक पद में चार सगण वाला एक वर्णवृत्त है। समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या १४५ है ।
१८. दंग - इस छंद के लक्षण अस्पष्ट हैं । ग्रंथ में इसकी संख्या २५ है ।
१६. दवावेत - यह एक प्रकार का गद्य है जो दो प्रकार का होता हैएक शुद्ध-बंध अर्थात् पद-बंध जिसमें अनुप्रास मिलाया जाता है और दूसरा गद्य-बंध जिसमें अनुप्रास नहीं मिलाया जाता है ।
२०. दूहा - समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या ९४ है ।
२१. नाराच - एक वर्णवृत्त । इसका दूसरा नाम पंचचामर भी है । ग्रंथ में इसकी संख्या ५७ है ।
२२. निसिपालिका - यह एक वर्णवृत्त है । समूचे ग्रंथ में इसकी संख्या
है
२३. नीसांरगी - राजस्थानी का एक मात्रिक छंद जिसका दूसरा नाम शुद्ध जांगड़ी गरवत नीसांणी भी है । ग्रन्थ में इसकी संख्या २६ है ।
२४. नीसांणी हंसगति - राजस्थानी का एक मात्रिक छंद जिसका दूसरा नाम रूपमाला है । ग्रंथ में इसकी संख्या १४ है ।
२५. पद्धरी - एक मात्रिक छंद । ग्रंथ में इसकी संख्या २०० है ।
२६. बे-अक्खरी ( द्वैक्षरी) - एक मात्रिक छंद जिसका प्रयोग कवि ने अन्य छंदों की अपेक्षा अधिक किया है । ग्रंथ में इसकी संख्या ६५४ है ।
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[ २१ ] २७. भुजंगी - संस्कृत का भुजंगप्रयात वर्णवृत्त जिसकी संख्या ग्रन्थ में
२८ मछिक, मछिका - संस्कृत का मल्लिका वर्णवृत्त जिसकी संख्या ग्रन्थ में २० है।
२६. मत-मातंग लीलाकर दंडक - एक वर्णवृत्त जिसकी संख्या समूचे ग्रंथ में एक है। ___ ३०. मालती - संस्कृत का एक वर्णवृत्त जिसकी संख्या ग्रन्थ में ११ है ।
३१. मोतीदाम - चार जगण का एक सम वर्णवृत्त जिसको संख्या ग्रंथ में ५८२ है।
३२. रसावला - एक मात्रिक छंद जिसकी संख्या समूचे ग्रंथ में १५ है ।
३३. रूपमाला - यह एक मात्रिक छंद है । इसमें १४ और १० को यति से कुल २४ मात्राएँ होती हैं और अन्त में गुरु लघु होता है ।
यह निसांणी हंसगति से भिन्न है। इसकी संख्या ग्रन्थ में तीन है।
३४. रोमकंद - डिंगल (राजस्थानी) का एक वर्णवृत्त। इसके प्रत्येक चरण में ८ सगण होते हैं जिसमें ६, ६, ८ और ६ वर्गों की यति से कुल ३२ वर्ण होते हैं । इसका प्रत्येक चौथा चरण समान होता है जिसके अंतिम प्राधे भाग की पुनरावृत्ति होती रहती है। राजस्थानी के प्राप्त छंद-शास्त्र के ग्रन्थों में इसका उल्लेख नहीं मिला है । ग्रंथ में इसकी संख्या ६ है। .
३५ विरवेखक - एक वर्णवृत्त जिसको हिन्दी में विशेषक, नील, अश्वगति और लीला भी कहते हैं । समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या एक है।
३६. विराज - एक वर्णवृत्त जिसको हिन्दी में शंखनारी और सोमराजी भी कहते हैं । ग्रंथ में इसकी संख्या २५ है ।
३७. वैताळ - एक मात्रिक छंद जिसको हिन्दी में कामरूप कहते हैं । ग्रंथ में इसकी संख्या एक ही है ।
३८. सवैया - एक वर्णवृत्त जो समूचे ग्रंथ में एक ही है।
३६. सारसी - प्रत्येक चरण में १६ और १२ की यति के कुल २८ मात्राओं का एक राजस्थानी मात्रिक छंद जिसके मध्य में तीन बार अनुप्रास की आवृत्ति होती है तथा चरण के प्रारम्भ में और अंत में चार मात्राएँ होती हैं किन्तु ग्रंथ में प्रयुक्त छंद के चरण के प्रारम्भ में और अंत में प्रायः ५ मात्राएँ हैं । ग्रंथ में इसकी ३६ संख्या है।
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[ २२ ] ४० सोरठा - यह एक मात्रिक छंद है। समूचे ग्रंथ में इसको संख्या १२ है। ४१ हणूफाल - यह एक मात्रिक छंद है। ग्रंथ में इसकी संख्या २५५ है ।
प्रकृति - चित्रण मध्य युग में कवियों का ध्यान प्रबन्ध काव्यों के रचने की ओर नहीं गया। वीर काव्य-धारा के जो नाम मात्र प्रबन्ध काव्य रचे गये उनमें प्रकृति प्रायः उपेक्षित रही है। इन ग्रन्थों में इतिवृत्तात्मकता, युद्ध-वर्णन, युद्धसामग्री, शौर्यचित्रण, योद्धाओं तथा अन्य वस्तुओं की लम्बी सूचियाँ ही अधिक मिलती हैं । साज-सज्जा, राजसी ठाठ-बाट आदि की ओर ही कवियों का झुकाव अधिक रहा है। प्रकृति का थोड़ा बहुत रूप मिलता है, वह एक परम्परागत शैली का अनकरण मात्र है। इस ग्रन्थ के रचयिता कविराज करणीदान भी प्रकृति का बिम्ब ग्रहण करने में असमर्थ रहे हैं ।
उद्यानों का वर्णन करते हुए कवि ने अनेक वृक्षों के नाम दिये हैं। निम्न उदाहरण से स्पष्ट है
अंगूर सरदं फळी अनेक बेलि | बेदांन दाखां बेदांन प्रनार । चिलकोचे बेह और सेबूका विस्तार । स्रीफळ विदांम ।
और नींबू के लूंब । कमळा रेसमी नारंगी पैबंदूका हूनर अदभूत । उक्त वर्णन से कवि की असावधानी प्रकट होती है । सेव, नारियल, बादाम आदि का जोधपुर के उद्यानों में होना असम्भव था और इस समय भी ये वृक्ष यहां नहीं पाये जाते हैं । अतः यह परम्परागत शैली के अनुकरण करने का परिचायक है । यहां पर कवि वृक्षों की नामावली न देकर प्रकृति के स्वाभाविक दृश्य अंकित कर सकता था । कई स्थानों पर कवि ने अतिशयोक्तिपूर्ण चित्रण भी किया है। यथा
अभै सागर, बाळ समंद दोऊ, मान सरोवर जैसे। अम्रित के समुद्र तसे लहरूं के प्रवाह छाजे ॥
जिनका रूप देखे से छीर समुद्र का गुमर भाज। इन छोटे तालाबों की तुलना क्षीर सागर से करदी है जो अतिशयोक्तिपूर्ण है। यह सब होते हुए भी कवि ने कहीं-कहीं प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण भी किया है। यथा
सघन गंभीर प्रारांमूं का पार नहीं प्राव । माफताफ का तेज जिसको छांह भेद जमीन लग न जावै।
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[ २३ ] ऐसे ही जोधाण तसे बगीचे। मंडोवर के बीच निवास ! जहां स्त्री महाराज के खड़ग जैतकारी, काळे गोरे महाबीरू भेरू का बास ।
ऐसे बगीचू का सिंगार सोभा का अथाग । यहां पर वृक्षों की सघनता के कारण सूर्य की किरणों का जमीन तक नहीं पहुँचना, उद्यानों की सुन्दरता आदि का वर्णन कर के कवि ने वास्तविकता को प्रकट करने का प्रयत्न किया है जो सराहनीय है। अतः यह स्पष्ट है कि कवि में बहुत सूझ-बूझ थी। यदि वह यथास्थान इस ओर बढ़ने का थोड़ा-सा यत्न
और करता तो इस दृष्टि से भी ग्रंथ महत्वपूर्ण हो सकता था । कवि का मुख्य विषय इतिहास लिखना व महाराजा का युद्ध-वर्णन करना था, किन्तु ग्रंथ में कई स्थान ऐसे भी हैं जहां परम्परागत शैली को न अपना कर स्वाभाविक चित्रण किया जा सकता था ।
शैली और भाषा कवि ने ग्रंथ में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है, क्योंकि उसका प्रधान लक्ष्य ही महाराजा अभयसिंह के पूर्वजों का इतिवृत्त लिखना और महाराजा द्वारा अहमदाबाद-विजय के युद्ध का वर्णन करना था। पात्रों के संवादों का समावेश कर के तथा विभिन्न प्रकार के छंदों व गद्यवत दवावैत का प्रयोग कर के ग्रंथ को रोचक बनाने का प्रयत्न किया है । ___ ग्रंथ में नादात्मक एवं संयुक्ताक्षर-शैली का प्रायः बहिष्कार हुआ है। भाषा में अलंकारों को लादने का प्रयास नहीं किया गया है। अलंकार स्वाभाविक रूप से काव्य-प्रवाह में आते गये हैं । अतः नीरसता नहीं आ पाई है। अोज गुण की प्रधानता के साथ प्रसाद और माधुर्य का भी आभास होता है । कवि ने पात्रों के अनुरूप भाषा का रूप बदलने का प्रयत्न किया है, जैसे मुगल बादशाह का वर्णन या उसके द्वारा कुछ संवाद कहलाना है तो उसमें फारसी, अरबी और तुर्की के शब्दों का प्रायः प्रयोग किया गया है जो प्रशंसनीय है। निम्न उदाहरण हैं
दसकत कर न मिळ दिवाणां, परजी फरज मतालब ऊपर ।
X
रबिल पाल मीनां रहे।
मुनसफ खावी मुलक, उतन जावो सब रावत ।
X
ईसफहां प्रासफो इलम फातमा उचारै। महमंद इमाम कहि कहि मुगळ ।
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{ २४ ] दूसरो कई भाषाओं का प्रयोग भी अलग-अलग उदाहरण के रूप में किया है, जो कवि के पाण्डित्य-प्रदर्शन का द्योतक है । मुख्यतः ग्रंथ की भाषा राजस्थानी ही है, जिसमें संस्कृत के तत्सम और तद्भव दोनों प्रकार के शब्दों का प्रयोग हना है । साथ ही राजस्थान के समीपवर्ती क्षेत्रों जैसे पंजाबी, सिंधी, मराठी आदि के शब्द भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होते हैं।
जिस खड़ी बोली का परिमार्जित रूप आज हमारे समक्ष है, चारण कवि ने उसकी झलक दवावैत के अन्तर्गत दे दी है जो महत्त्वपूर्ण है । निम्न उदाहरण देखिये
सिकार की चढ़ाई। जिस बखत हवालगीरू नै सलाम बजाय असवारी का सराजांम सब हाजर किया। किस किस तवह के कहि बताय । घोड-बहलि माफे इक्के खासे सुखपाळ, मेघाडंबर होदूं मैं गजराज । सामू मैं झळस अनेक खास-वरदारू नै धारि परिपंखी सजि पाए । मीर-सिकारी तिस बखत स्री महाराज सबज पौसाक पहरि । आखेट व्रत के प्रावध धारे तीसरे नगारे के डंके रकेब पाव धारे । बाज राज पारोह कैसे दरसावै । सूरज सपतास का सा सरूप नजर प्राय ।
कवि ने प्रसंगानुसार वस्तुओं की लम्बी सूची तथा नामों की आवृत्ति भी की है। कहीं-कहीं ग्रंथ में पात्रों के नामों के स्थान पर उनके नाम के पर्यायवाची रख दिये गये हैं, जैसे समुद्रसिंह के नाम के स्थान पर समुद्र के पर्यायवाची रतनागर (रत्नाकर) शब्द रख दिया गया है
___ जुड़े 'रतनागर' भीम सुजाव, सुमेरसिंह के लिये सुमेरु पर्वत का पर्याय 'गिरमेर' शब्द का प्रयोग कर दिया
विढे 'गिरमेर' समोभ्रम 'वैरण' इसी प्रकार चन्दनसिंह के लिये मलियागिर (मलियागिरी) प्रयुक्त हआ है।
सुत 'मलियागिर' 'ऊदल' साह कई स्थानों पर नाम के केवल आधे भाग का ही प्रयोग किया है, या नाम उलट कर रख दिया गया है जैसे उदयभांण नाम के स्थान पर केवल भांण शब्द ही लिख दिया है
भटी इम 'भाण' बखांणत भाण
सू. प्र., भाग २, पृष्ठ १६६ से २०४ तक
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। २५ ] निम्न उदाहरण में सुरतांणसिंह के लिये केवल 'सुरतांन' और पदमसिंह के लिये केवल 'पदम' ही रख दिया है-- 'जुड़े 'सुरताण' 'पदम' सुजाव'
सू.प्र.भाग ३, पृ. १४५ निम्न उदाहरण में 'उमेदसिंघ' के स्थान पर उसका उलटा 'सींघ उमेद' प्रयुक्त हुआ है
जुड़े खग गैद जहीं तळ जोड़। 'अनावत' 'सींघ उमेद' अरोड़ ॥
सू. प्र. भाग ३, पृ. १२२ अल्पार्थ का प्रयोग अवज्ञा, मान-प्रतिष्ठा व प्रेम-प्रदर्शन के लिये होता है, जिसका प्रयोग कवि ने बाहुल्यता से किया है, जैसे केसरीसिंह पुरोहित के लिये कवि ने 'केहरियौ' लिख दिया है जो अवज्ञासूचक नहीं है
सज सिवड़ां पति दारण सूर , पिरोहित 'केहरियो' रस पूर ।
सू. प्र. भाग ३, पृ. १६१ अल्पार्थ के साथ ही महत्त्ववाची नामों का प्रयोग भी बराबर मिलता है, जैसे इसी केसरीसिंह के लिये ही 'केहर' महत्त्ववाची के रूप में प्रयुक्त हुआ है-- ___ददौ इण 'केहर' रौ दइवाण ।
सू. प्र. भाग ३, पृ. १६१ इसी प्रकार अन्य व्यक्तिवाचक शब्द के भी महत्त्ववाची शब्द प्रयुक्त हुए हैं, जैसे राजसिंह-राजड़, कुसळसिंह-कुसळेस, पृथ्वीसिंह-पीथल, प्रतापसिंह-पातल आदि।
ग्रंथ में नामों की अत्यधिक तोड़-मरोड़ हुई है, चाहे वे किसी मनुष्य के नाम हों अथवा किसी स्थान विशेष के। एक ही नाम के अनेक रूपभेद प्रयुक्त हुये हैं, जैसे महाराजा अजीतसिंह के लिये कवि ने निम्न रूपभेदों का प्रयोग किया है
अगजीत, अजण, अजन, प्रजन्न, अजमल, अजमलि ,
अजमल्ल, अजमाल, अजा, अजीत, अज अजी। इसी प्रकार महाराजा अभयसिंह के लिये--
अभपत, अभपति, अभयपती, प्रभमल, अभमल्ल, अभमाल, अभरज, अभसाह, प्रभा, अभियौ, प्रभ, अभपति, अभैमल, अभमाल, अभयसिंह, प्रभसाह अभसिंघ, अभैसींघ, प्रभो। उक्त विवरण से स्पष्ट है कि ऐसे स्थलों को राजस्थानी भाषा-विज्ञान, व्याकरण, राजस्थानी संस्कृति आदि के पूर्ण ज्ञान के बिना समझना दुरूह हो जाता है।
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[ २६ ] पादपूर्ति के लिये ग्रंथ में प्रायः 'ह', 'स', 'क' और 'य' अक्षरों का प्रयोग हुआ है । वेदों एवं संस्कृत साहित्य में भी 'ह' पादपूर्ति के रूप में प्रचुर मात्रा में
आया है' । ग्रंथानुसार निम्न उदाहरण में 'क' अक्षर पादपूर्ति के लिये प्रयुक्त हुआ है :'उमेदक प्रागळि पांण अछेह'
सू. प्र. भाग ३, पृ. १२० निम्न उदाहरण में 'य' अक्षर प्रयुक्त हुआ है_ 'पतावत' गोपिय नाथ प्रचंड।
सू. प्र. भाग ३, पृ. १४७ इसी प्रकार निम्न उदाहरण में 'ह' अक्षर प्रयुक्त हुआ है-- 'उमेदहवार लई भड़ ओप'
सू. प्र. भाग २, पृ. १६१ । कवि ने यथास्थान मुहावरों व लोकोक्तियों का प्रयोग कर के भाव को अधिक स्पष्ट और भाषा को सरस बनाया है• जिको करू ऊजळी, जंग करि लूंण 'जसा' रौ।
सू. प्र. भाग २, पृ. २७ यहां पर 'लूण ऊजळी करणो' मुहावरा है । दिली झोला खाए दळ ।'
सू. प्र. भाग २, पृ. ४८ यहाँ पर 'झोला खाणौ' मुहावरा है। 'दीवो कर देख इसी नह लाय अकारी'
सू. प्र. भाग २, पृ. २४१ यहाँ पर 'लायनै दीवौ कर देखणी' लोकोक्ति है।
अंत में यह कहना होगा कि ग्रंथ में वर्णन की विशदता है । प्रायः सरल और स्वाभाविक शैली द्वारा भावों का समुचित उत्कर्ष दिखलाने में कवि महोदय पूर्ण रूप से सफल हुए हैं। ग्रंथ में राजस्थानी भाषा का अधिक निखरा हुआ तथा सरस रूप दिखलाई देता है।
५ (अ) नैव चक्रे मनः स्थाने वीक्षमाणो महाबलो।
कपेः परमभीसस्य चित्तं व्यवससाद ह॥ सुग्रीवस्तु शुभं वाक्यं श्रुत्वा सर्व हनूमतः । ततः शुभतरं वाक्य हनूमन्तमुवाच ह॥
-बाल्मीकि रामायण, किष्किन्धा काण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक ३.१६ । (प्रा) अमरकोश में भी इसका उल्लेख है
तु हि च म ह वै पादपूरणे इत्यमरः'। बाल्मीकि रामायण के बाद संस्कृत ग्रंथों में प्रायः इस प्रकार के प्रयोग नहीं मिलते।
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[ २७ ]
सूरजप्रकास का ऐतिहासिक महत्त्व
कवि ने ग्रंथारम्भ में सूर्य वंश के प्रारंभिक राजा इक्ष्वाकु से महाराजा अभयसिंह के वंशसम्बन्ध को पुष्ट करने के लिये लम्बी कुल तालिका दे दी है। इसके अन्तर्गत संक्षिप्त रामायण का वर्णन भी कर दिया है । तत्पश्चात् क्रम से चलते हुए आगे राजा पुंज के तेरह पुत्रों का वर्णन किया है और उसके बड़े पुत्र की चौथी पीढ़ी में कन्नौज नरेश जयचन्द राठौड़ का वर्णन किया है ।
उक्त कुल तालिका को ऐतिहासिक दृष्टि से देखने से हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि कवि ने केवल पुराणों का आश्रय लेकर ही यह सब कुछ लिख डाला है । अत: यह वर्णन सत्य है अथवा असत्य इसका निर्णय करना उक्त घटनामों की पूर्ण ऐतिहासिक सामग्री के प्राप्त हुए बिना कठिन है । कवि ने कन्नौज के राजा जयचन्द राठौड़ का जो वर्णन किया है वह ऐतिहासिक दृष्टिकोण से प्रायः ठीक है । इसी जयचन्द राठौड़ का समकालीन पृथ्वीराज चौहान था । यहाँ पहले हमें ग्रन्थ में दी हुई तिथियों की सत्यता के बारे में विचार करना है, यद्यपि कवि ने तिथियों का उल्लेख बहुत कम किया है ।
सर्व प्रथम कवि ने राव जोधाजी द्वारा जोधपुर के किले के निर्माण की तिथि ( श्रावणादि) वि० सं० १५१५ की ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी (१२ मई १४५६ ई० ) का उल्लेख किया है जो ऐतिहासिक दृष्टि से ठीक है ।
तत्पश्चात् कवि ने महाराजा अजीतसिंह के जीवन चरित्र के अन्तर्गत जालोर में ( श्रावणादि) वि० सं० १७५६ मार्गशीर्ष वदि १४ शनिवार ७ नवम्बर १७०२ ई०) को महाराजा अभयसिंह का जन्म होना लिखा है । यह तिथि भी सत्य है ।
अहमदाबाद- युद्ध के अन्तर्गत कवि ने एक स्थान पर केवल सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी का उल्लेख किया है। इनके साथ मास एवं संवत् नहीं दिया है किंतु आगे युद्ध विजय करने की तिथि से इनका सही अनुमान लगाया जा सकता है । सर बुलन्द ने पहले तीन दिन तक गोलाबारी की, उसने चौथे दिन मैदान में श्र कर युद्ध किया और सायंकाल तक बहुत वीरता से लड़ा, फिर भी उसकी हार निश्चित हो गई । अतः वह युद्ध-स्थल छोड़ कर शहर की ओर चला गया । यह महाराजा की विजय का दिन था । इस तिथि को कवि ने स्पष्टतया ग्रंथ में अंकित किया है, यथा
'सत्र से संमत सत्या सिये विर्ज दसमी सनि जीत '
सू. प्र. भाग ३, पृ. २७३
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[ २८ ] स्पष्ट है कि (श्रावणादि) वि० सं० १७८७ की विजयादशमी शनिवार (१० अक्टूबर सन् १७३० ई०) को महाराजा विजयी हुए। अत: यह भी स्पष्ट हो गया कि उक्त तीन तिथियां वि० सं० १७८७ की आश्विन शुक्ला सप्तमी, अष्टमी और नवमी ७, ८ और ६ अक्टूबर सन् १७३० ई० हैं अर्थात् दोनों ओर से इन तीन दिनों में गोलाबारी हुई। चौथे दिन विजयादशमी थी। उसी दिन खुल्लमखुल्ला लड़ाई हुई और महाराजा विजयी हुए।
डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा' और पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ ने महाराजा की विजय कार्तिक वदि ५ वि० सं १७८७ तदनुसार २० अक्टूबर सन् १७३० ई० लिखा है, किन्तु 'सूरजप्रकास' के ही समकालीन ग्रंथ 'राजरूपक' में महाराजा द्वारा अहमदाबाद विजय की तिथि विजयादशमी वि० सं० १७८७ (१० अक्टूबर सन् १७३० ई०) दी है । यथा--
"सतर समत सत्यासियो, आसू उज्जळ 'पक्ख ।
विजं दसम भागा विचित्र, अभै प्रतिग्या अक्ख ॥" इस प्रकार स्पष्ट है कि 'राजरूपक' की उक्त पंक्तियां 'सूरजप्रकास' में दी हुई महाराजा के विजय के दिन की तिथि को सत्य प्रमाणित करती हैं। _ 'राज-रूपक' के रचयिता कवि वीरभाण रतनू और 'सूरजप्रकास' के रचयिता कविराजा करणीदान दोनों युद्ध में मौजूद थे और उन्होंने प्रांखों देखा हाल लिखा है, अतः डॉ० अोझा और रेऊ की अपेक्षा यह तिथि अधिक विश्वसनीय है। इसके अतिरिक्त प्रसिद्ध इतिहासकार कविराजा बाँकीदास ने भी वि० सं० १७८७ की विजयादशमी (१० अक्टूबर सन् १७३० ई०) को ही महाराजा अभयसिंह की अहमदाबाद पर विजय होना लिखा है, अतः अब इस तिथि की सत्यता के बारे में किसी प्रकार के सन्देह को स्थान नहीं दिया जा सकता है।
महाराजा द्वारा अहमदाबाद विजय के एक वर्ष बाद कवि ने इस ग्रंथ को सम्पूर्ण कर दिया था। इस ग्रंथ-पूर्णता की तिथि को भी कवि ने महाराजा की
• डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द प्रोझा द्वारा लिखित 'जोधपुर राज्य का इतिहास' भाग २, पृष्ठ
६१५ तथा पृष्ठ ६१७ का फुटनोट । २ पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित 'मारवाड़ का इतिहास भाग १, पृष्ठ ३३८ । ३ देखो राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में संग्रहीत हस्तलिखित 'राजरूपक' की
प्रति संख्या १५६३० पृष्ठ ३६३ तथा गुटका संख्या १३७७६ पत्र सं. १७४ । ४ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मंदिर जयपुर के ग्रन्यांक २१ 'बांकीदास री ख्यात' पृष्ठ ३६ ।
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[ २६ ] विजय को तिथि के साथ ही अंकित कर दिया है। यथा
सत्रेस समत सत्यासिय, विजे दसमी सनि जीत । वदि कातिक गुण वरणियो, दसमी वार प्रदीत । वरिणयौ गुण इक बरस विच, उकति अरथ प्रणपार । छंद अनस्टुप करिउ जन, सत पंच सात हजार । "अभा' तणी सुभ नजर अति, वधि छक सुकवि विधांन । कुरव दांन लहियो अधिक, कहियो करणीदांन ।
सू. प्र. भाग ३, पृ. २७३ । उक्त छप्पय से स्पष्ट है कि कवि ने महाराजा के विजय-संवत् १७८७ की विजयादशमी (ई० सन् १० अक्तूबर १७३०) से लगभग एक वर्ष बाद कार्तिक कृष्णा दशमी रविवार को ग्रंथ लिख कर सम्पूर्ण किया । अतः यह वि० सं० १७८८ तदनुसार ई० सन् १७३१ ही हो सकता है।
घटनामों की ऐतिहासिक प्रामाणिकता जयचन्द के वंशज सीहा के पुत्र आसथान (जिसने मारवाड़ में राज्य स्थापित किया था) से लेकर कवि ने अपने आश्रयदाता महाराजा अभयसिंह के पिता महाराजा अजीतसिंह तक की वंश-तालिका के अन्तर्गत कई राजाओं का विस्तार से वर्णन किया है, जिसमें अजीतसिंह का वर्णन बहुत विस्तृत है।
यह वर्णन ऐतिहासिक दृष्टि से प्रायः ठीक जान पड़ता है। किन्तु, कुछ छोटी-मोटी घटनाओं के बारे में कहीं कहीं कवि की असावधानी भी प्रकट होती है । जैसे, राव जोधा के बाद उसका पुत्र राव सातल गद्दी पर बैठा । उसने (श्रावणादि) वि० सं० १५४५ से १५४८ तदनुसार ई० सं० १४८६ से १४६२ तक तीन वर्ष राज्य किया । वि० सं० १५४८ (ई० सं० १४६२) में मुसलमानों ने गांव पीपाड़ से कुछ औरतों (तीजरिणयों)' का अपहरण किया। जब राव सातल को पता चला तो उसने गांव कोसाणे में उन मुसलमानों को परास्त करके 'तीजणियों' को छुड़ाया। इस युद्ध में मीर घडूला नामक मुसलमान मारा गया। युद्ध में राव सातल बहुत घायल हो गया था। अत: कुछ दिन बाद वह भी मर गया और उसके कोई पुत्र नहीं होने के कारण जोधाजी का एक पुत्र राव सूजा गद्दी पर बैठा । यद्यपि राव सूजा ने राव सातल के साथ मुसलमानों से युद्ध किया किन्तु मीर घडूला को मारने की घटना का सम्बन्ध राव सातल के राज्य
१ डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा द्वारा लिखित 'जोधपुर राज्य का इतिहास', भाग १, पृष्ठ
२६१ का तीसरा फुट नोट। . • डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द प्रोझा द्वारा लिखित 'जोधपुर राज्य का इतिहास', भाग १, पृष्ठ
२६१-२६२ ।
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[ ३० ] काल से ही है। इस में कवि ने जोधाजी के बाद राव सूजा का ही राजा होना लिखा है और मीर घडूला' के मारे जाने की घटना का सम्बन्ध उसी से जोड़ दिया है । ग्रंथ में राव सातल का बिलकुल उल्लेख नहीं किया गया है, जिसका कारण कवि की असावधानी ही हो सकती है । आगे महाराजा अजीतसिंह तक का वर्णन इतिहास से प्रायः ठीक मेल खाता है।
महाराजा अभयसिंह के राज्याभिषेक के बाद से उनके द्वारा अहमदाबाद विजय तक का वर्णन करना ही कवि का मुख्य उद्देश्य था । अतः हम आगे इन्हीं घटनाओं की ऐतिहासिक विवेचना करने का प्रयत्न करेंगे।
महाराजकुमार प्रभसिंह को दिल्ली भेजना जब महाराजा अजीतसिंह ने नागौर के राव इन्द्रसिंह के पुत्र मोहकमसिंह को दिल्ली में मरवा डाला तो बादशाह फर्रुखशियर ने हुसेनअली के साथ महाराजा के विरुद्ध बहुत बड़ा यवन-दल भेजा। महाराजा ने हुसेनअली से संधि करली, जिसके अनुसार महाराजकुमार अभयसिंह को उसके साथ दिल्ली भेजा गया। बादशाह ने महाराजकुमार का समुचित स्वागत किया। यह घटना इतिहास-सम्मत है। महाराजकुमार अभयसिंह को मुजफ्फरअली खां का सामना करने भेजना
ग्रन्थानुसार महाराजा अजीतसिंह की बढ़ती हुई शक्ति को दबाने के लिये बादशाह मुहम्मद शाह ने मुजफ्फरअली खां को शाही सेना के साथ भेजा। उस समय महाराजा अजीतसिंह अजमेर में बादशाह की तरह शान से रहते थे। महाराजा ने मुजफ्फरअली खाँ का सामना करने के लिये राजकुमार अभयसिंह को राठौड़वाहिनी के साथ भेजा । राठौड़ों के भय से मुजफ्फर खां भाग गया।
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वि० सं० १७७८ (ई० सं० १७२१ में बादशाह महम्मदशाह ने मुजफ्फर अली खाँ को अजमेर की सूबेदारी दी। महाराजा अजीतसिंह का दमन करने के लिये छ: लाख रुपये सेना के व्यय स्वरूप तय हए, किन्तु उस समय उसे दो लाख ही मिले । बादशाह ने सोचा कि शाही सेना का अपने विरुद्ध आना सुन कर अजीतसिंह अजमेर छोड़ देगा किन्तु जब महाराजा ने ऐसा नहीं किया तो बादशाह ने मुजफ्फरअली खाँ को मनोहरपुर में ही ठहर जाने का फरमान भेजा । वहाँ वह तीन मास तक पड़ा रहा और उसके पास सेना आदि पर किया जाने वाला व्यय समाप्त हो गया। बादशाह
१ देखो सूरजप्रकास भाग १, पृष्ठ २५२ का फुटनोट ।
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। ३१ ] की ओर से भी सैनिकों के लिये वेतन वगैरह नहीं पहुँच सका। उसके सिपाही उसे छोड़ कर जाने लगे। आमेर नरेश जयसिंह ने उसे अपने पास बुला लिया। कुछ दिनों बाद उसने अजमेर की सूबेदारी का फरमान बादशाह के पास लौटा कर स्वयं फकीर बन गया ।' ___ ग्रंथ में कवि ने महाराजकुमार अभयसिंह के भय से उसके भाग जाने का उल्लेख किया है। 'सूरजप्रकास' के साथ ही बने ग्रन्थ 'राजरूपक'' से भी इस कथन की पुष्टि होती है, किन्तु इस घटना के कुछ ही दिनों बाद महाराजा अजीतसिंह ने बादशाह के पास एक अर्जी भेजी जिसमें उन्होंने लिखा "मुजफ्फरअली खाँ मेरे पास पहुंचा ही नहीं, मैं उसे अजमेर सौंप देता तथा राजकुमार अभयसिंह को मेवातियों से झगड़ा हो जाने के कारण नारनौल आदि पर भेजा था" अतः स्पष्ट है कि मुजफ्फरअली खाँ अभयसिंह के भय से नहीं भागा था।
महाराजा अजीतसिंह बहुत बड़े राजनीतिज्ञ थे। अत: यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्होंने बादशाह को खुश करने के लिए ही ऐसी अर्जी लिखी हो। मुजफ्फरअली खाँ के सामने धनाभाव की समस्या के साथ ही मुख्य कारण राठौड़ों का भय था। अत: 'सूरजप्रकास' और 'राजरूपक' पर अधिक विश्वास किया जा सकता है।
तत्पश्चात् महाराजकुमार अभयसिंह द्वारा नारनौल और शाहजहाँपुर आदि लूटे जाने की घटनायें इतिहास-सम्मत हैं।
महाराजकुमार अभयसिंह का दिल्ली जाना नाहर खाँ के मारे जाने पर वि०सं० १७८० (ई०स० १७२३) में बादशाह ने शरफुद्दौला इरादतमंद खाँ के साथ आमेर नरेश जयसिंह तथा अन्य कई अमीरों का एक बहुत बड़ा यवन-दल महाराजा के विरुद्ध भेजा। इसमें लगभग बाईस बड़े-बड़े अमीर और राजा थे। महाराजा अजमेर के किले की रक्षा का भार नीबाज ठाकुर ऊदावन अमरसिंह पर छोड़ कर स्वयं जोधपुर आ गये। अमरसिंह ने कई दिन तक सामना किया। बाद में आमेर नरेश सवाई जयसिंह ने महाराजा और शाही सेनाध्यक्ष के बीच संधि करवा दी जिसमें महाराजकुमार
१ डॉ. गोरीशंकर हीराचन्द प्रोझा द्वारा लिखित 'राजपूताने का इतिहास', भाग २, पृष्ठ ५६३ २ 'राजरूपक' पृष्ठ ५३४ 3 डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा द्वारा लिखित 'राजपूताने का इतिहास', भाग २, पृष्ठ
५६४-५६५
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[ ३२ ]
सिंह का दिल्ली जाना तय हुआ । यह घटना भी इतिहास सम्मत है ।
महाराजकुमार अभयसिंह का बादशाह के दरबार में कुपित होना
एक समय दिल्ली में महाराजकुमार अभयसिंह बादशाह मुहम्मदशाह के दरबार में गये । वहाँ बैठे हुए सभी बड़े बड़े उमरावों और अमीरों को पीछे छोड़ते हुए वे बादशाह के बिलकुल निकट पहुँच गये । उस समय वहाँ के एक अमीर ने इन्हें रोक दिया । इस पर उन्होंने क्रोधित होकर कटार निकाल लो। बादशाह मुहम्मदशाह, जो यह सब कुछ देख रहा था, तुरन्त सिंहासन पर से उठा और उसने तुरन्त अपने गले में पहना हुआ हीरों का हार इनको पहना दिया तथा अनुनय-विनय करके बड़ी कठिनाई से इनका क्रोध शान्त किया ।
इस घटना का उल्लेख टॉड साहब ने भी किया है । " यद्यपि बहुत कम इतिहासकारों ने इस घटना का उल्लेख किया है किन्तु यह घटना असत्य प्रतीत नहीं होती है। राठौड़ राजकुमार के इस कार्य से हमें राठौड़ अमरसिंह द्वारा घटित बादशाह शाहजहाँ के दरबार की घटना का स्मरण हो जाता है ।
महाराजा श्रजीतसिंह का मारा जाना
टॉड', प्रोझा', रेउ तथा अन्य इतिहासकारों के अनुसार दिल्ली में महाराजकुमार अभयसिंह ने बादशाह के षड़यंत्र में फंस कर तथा आमेर नरेश जयसिंह के सिखाने से अपने पिता महाराजा अजीतसिंह को मारने के लिये अपने भाई बखतसिंह को लिखा । उसने ( चैत्रादि) वि० सं० १७८१ आषाढ़ सुदि १३ तदनुसार २३ जून १७२४ ई० को जनाने में सोते हुए महाराजा को मार डाला ।
'सूरजप्रकास' और 'राजरूपक' में केवल महाराजा के देहावसान का ही उल्लेख करके कवि मौन हो गये हैं । सम्भवतया राज्याश्रित होने के कारण इन ग्रंथों में ये कवि अपने इस कर्तव्य का पूर्ण रूप से पालन न कर के निष्पक्षता से पराङ्मुख रहे।
महाराजा अभयसिंह का राजतिलक
महाराजा अजीतसिंह की मृत्यु के समय राजकुमार अभयसिंह दिल्ली में थे । उनका राजतिलक भी दिल्ली में ही हुआ । इस अवसर पर बादशाह
१ टॉड राजस्थान, अनुवादित, पं० बलदेवप्रसाद मिश्र, मुरादाबाद, भाग २, पृष्ठ १५७ - १५८ टॉड राजस्थान, अनुवादित, पं० बलदेवप्रसाद मिश्र, मुरादाबाद, भाग २, पृष्ठ १५८ - १५६ ३ डाँ० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा द्वारा लिखित राजपूताने का इतिहास, भाग २, पृष्ठ ६०० ४ मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृष्ठ ३२७, पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ ।
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राजस्थान पुरातन ग्रन्थ-माला ]
[ ग्रन्थाङ्क ६७
चरित्रनायक महाराजा अभयसिंहजी (वि० सं १७८१ से १८०६)
(राजस्थानी शोध-संस्थान, जोधपुर के संचालक श्री नारायणसिंह भाटी के सौजन्य से प्राप्त चित्र)
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[ ३३ ] मुहम्मद शाह ने इन्हें उपहार भेंट किये और नागौर आदि परगने, जो महाराजा अजीतसिंह से ले लिये थे, इन्हें पुनः लौटा दिये । ऐतिहासिक दृष्टि से यह घटना ठीक है। महाराजा अभयसिंह का नागौर पर आक्रमण करना और अपने अनुज
बखतसिंह को वहाँ का स्वामी बनाना . नागौर पर उस समय राव इन्द्रसिंह का अधिकार था। महाराजा अभयसिंह ने उसको हरा कर अपने अनुज बखतसिंह को वहाँ का राजा बनाया। ___ ऐतिहासिक दृष्टि से महाराजकुमार अभयसिंह ने दिल्ली से जो पत्र लिखा था उसमें अपने अनुज बखतसिंह को यह प्रलोभन दिया था कि यदि तुम अपने पिता महाराजा अजीतसिंह को मार डालो तो मैं तुम्हें नागौर दे दूंगा। उसी के अनुसार बखतसिंह को वि० सं० १७८२ (ई० स० १७२५) में 'राजाधिराज' के खिताब के साथ नागौर का स्वामी बनाया गया।
महाराजा का बादशाह के दरबार में पान का बीड़ा उठाना जब बादशाह मुहम्मद शाह को यह मालूम हुआ कि सर बुलन्द गुजरात में दक्षिणियों से मिल गया है और स्वयं गुजरात का अधीश्वर बन गया है तो वह बड़ा भयभीत हुआ और एक दरबार किया जिसमें उस समय के बड़े-बड़े उमराव, नवाब, अमीर, राजा-महाराजा उपस्थित थे। बादशाह ने सर बुलन्द के विरुद्ध अपने दरबार में पान का बीड़ा घुमाया। सर बुलन्द की शक्ति का मुकाबिला करने के लिये किसी को भी हिम्मत बीड़े को छूने की नहीं हुई। महाराजा अभयसिंह ने बड़े उत्साह से बादशाह को धैर्य बँधाते हुए बीड़े को ग्रहण किया।
'राजरूपक' से भी इस घटना की पुष्टि होती है। टॉड' साहब के अतिरिक्त किसी अन्य इतिहासवेत्ता ने इस घटना का उल्लेख किया हो, ऐसा देखने में नहीं आया है। यद्यपि टॉड साहब ने 'सूरजप्रकास' और 'राजरूपक' के आधार पर ही लिखा है, किन्तु यह घटना सत्य प्रतीत होती है, क्योंकि उस समय पान का बीड़ा घुमाये जाने की प्रथा थी।
' टॉड राजस्थान, अनुवादित, पं० बलदेवप्रसाद मिश्र, भाग २, पृष्ठ १७१ २ राजरूपक, पृष्ठ ६५८,६५६ 3 टॉड राजस्थान, अनुवादित, पं० बलदेवप्रसाद मिश्र, मुरादाबाद, भाग २, पृष्ठ १७४,१७५,
१७६ ।
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[ ३४ ] महाराजा का बादशाह से बिदाई लेकर जोधपुर लौटना दिल्ली से विदा होते समय बादशाह ने इन्हें कीमती उपहारों के साथ सेना के लिये व्यय आदि भी दिया।' महाराजा वहाँ से जयपुर आये। जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने इनका समुचित स्वागत किया। कुछ दिन जयपुर में ठहरने के पश्चात् ये मेड़ते आये और अपने अनुज बखतसिंह से मिले। तत्पश्चात् बखतसिंह को साथ लेकर जोधपुर आये।
इस बात की पुष्टि 'राजरूपक' से भी होती है किन्तु कुछ इतिहासकारों ने महाराजा का दिल्ली से अलवर होते हुए अजमेर जाना और वहाँ का प्रबन्ध करके मेड़ते होते हुए जोधपुर जाना लिखा है । अधिकांश इतिहासकारों ने इनका वि० सं० १७८६ में दिल्ली से जयपुर और वहाँ से मेड़ते होते हुए जोधपुर जाना ही लिखा है । अतः कवि का यह कथन इतिहाससम्मत है ।
महाराजा का जोधपुर से गुजरात की ओर प्रयाण दिल्ली से लौटने के पश्चात् महाराजा अभयसिंह अपने अनुज बखतसिंह के साथ जोधपुर में युद्ध की तैयारी करने में लग गये। सभी सामन्तों को फरमान भेज कर बुलाया गया। अश्वारोही सेना तैयार की गई। जब युद्ध की पूर्ण सामग्री के साथ सेना तैयार हो गई तो जोधपुर से रवाना हो कर कुछ विद्रोही जागीरदारों को दण्ड देते हुए सिरोही आये। सिरोही के राव उम्मेदसिंह देवड़ा ने महाराजा की अधीनता स्वीकार नहीं की थी, अतः महाराजा मे सिरोही को लूटने की आज्ञा दे दी। अन्त में राव उम्मेद ने अपनी पुत्री का डोला भेज कर संधि की। वहाँ से महाराजा सेना सहित पालनपुर आये। वहाँ का अधिकारी करीमदाद खां इनसे मिल गया। ये सब घटनायें इतिहाससम्मत हैं ।
महाराजा का सर बुलन्द के पास पत्र भेजना पालनपुर से महाराजा ने सर बुलन्द को एक पत्र लिखा जिसमें उसे समझाया कि बादशाह ने अहमदाबाद के सूबे पर मुझे नियुक्त किया है। अत: तुम शाही आज्ञा के अनुसार मुझसे मिलो, सारी शाही सम्पत्ति मेरे हवाले करो और किले तथा शहर से अपने डेरे उठा लो, यथा
'बादशाह ने महाराजा को सेना के व्यय स्वरूप कितना रुपया दिया इसकी विवेचना हम
प्रागे सेना के आंकड़ों के अन्तर्गत करेंगे। . राजरूपक, पृष्ठ ६५९ से ६६४ । 3 पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृष्ठ ३३६ ।
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[ ३५ ]
खत लिखिया दिस खांन, डकर धारै वजराई। कहर गरीबों करण, मकर छाडो मुगळाई । काम फैल मति करो, स्यांम ध्रम धरौ सिपाही । सराजांम दौ सरब, तोपखांनां पतिसाही । अहमदाबाद दीधो अम्हां, सुणो हुकम पतिसाह रौ। मामलौ तजौ आवौ मिळो, किलो सहर खाली करो।
सू. प्र. भाग २, पृ. २७६ टॉड साहब के अतिरिक्त किसी भी इतिहासवेत्ता ने इस पत्र का उल्लेख किया हो ऐसा देखने में नहीं पाया है। अन्य इतिहासकारों के रुपये की हुण्डी व उसको नायब हाकमी की आज्ञा के साथ लिख दिया कि सम्भव हो सके तो अहमदाबाद पर अधिकार करलो। इस पर मुहम्मद खां ने गुजरातियों की सेना इकट्ठी की और मौका देखने लगा, किन्तु सर बुलन्द के आदमी नगर रक्षा के लिये अधिक सतर्क रहने लगे। उन्होंने दरवाजे वगैरह ईंटों से चुनवा दिये । अतः मुहम्मद खां सफल नहीं हो सका।' इस पत्र का उल्लेख कवि ने ग्रंथ में नहीं किया है। महाराजा अभयसिंह का सर बुलन्द से युद्ध, सर बुलन्द का प्रात्म-समर्पण
यूद्ध का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है कि पहले तीन दिन तक दोनों ओर से गोलाबारी होती रही, यथा
मोरचा राड त्रण दिन मंडे, सूरां धरम सबाब रा । प्रांम सम्हां कठठि चौड़े उरड़ि, नरियंद भूळ नबाब ।।
सू. प्र. भाग ३, पृ. २६ तत्पश्चात् मैदान में लड़ाई हुई। दोनों तरफ के सुभट जम कर लड़े। आखिर सर बुलन्द की सेना के पांव उखड़ गये । दूसरे दिन सर बुलन्द ने महाराजा अभयसिंह के डेरे में उपस्थित होकर आत्म-समर्पण कर दिया। नींबाज ठाकुर अमरसिंह ने इस संधि में विशेष भाग लिया।
उपरोक्त वर्णन कुछ प्रशंसात्मक अवश्य है परन्तु ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार सर बुलन्द को महाराजा अभयसिंह के सामने आत्म-समर्पण करना पड़ा
. (अ) पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृ० ३३७ । (प्रा) डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द प्रोझा द्वारा लिखित राजपूताने का इतिहास, भाग २,
पु० ६१३ ।
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[ ३६ ]
था । बहुत से इतिहासकारों ने इस अवसर पर महाराजा और सर बुलन्द का परस्पर पगड़ी -बदल भाई बनने का उल्लेख किया है ।
महाराजा द्वारा कंथाजी श्रादि मरहठों को परास्त करना
उज्जैन, सूरत श्रादि के शासक कंथाजी, पीलूजी प्रादि गुजरात में चौथ वसूल करने के लिये अहमदाबाद की ओर बढ़े, किन्तु महाराजा की सेना से परास्त होकर कंथाजी भाग गया ।
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार कवि के इस कथन की पुष्टि होती है और यह जाना जाता है कि महाराजा ने पीलूजी को, जो कंथाजी के स्थान पर चौथ वसूल करने के लिये अहमदाबाद की ओर बढ़ रहा था, अपने एक योद्धा लखधीर ईंदा को भेज कर धोखे से मरवा डाला ।
बादशाह की प्रोर से महाराजा को उपहार भेजना
बादशाह मुहम्मदशाह के दरबार में महाराजा का वकील अमरसिंह भंडारी रहता था । उसने बादशाह को सर बुलन्द के परास्त होने और गुजरात पर महाराजा द्वारा पुनः शाही हुकूमत कायम करने की खबर सुनाई। इस पर बादशाह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने भरे दरबार में वाह-वाह शब्दों के साथ महाराजा की प्रशंसा की तथा महाराजा का मनसब आदि बढ़ाने के साथ उनके राज्य की वृद्धि की ।
कवि के उक्त कथन की पुष्टि भी ऐतिहासिक दृष्टि से होती है । बादशाह असदुल्ला खां गुर्ज़बर्दार के साथ महाराजा के लिये उपहार स्वरूप रत्नजटित सिरपेच, कलंगी, एक हाथी तथा खिलत आदि भेजे । '
सेनाएँ
कविराजा करणीदान ने ग्रंथ में सेनाओं के प्रांकड़े बहुत कम दिये हैं । महाराजा अभयसिंह और उनसे सम्बन्धित पात्रों की सेनाओं के आंकड़े यत्र-तत्र दिये हैं । उनकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता के बारे में आगे विचार किया जायगा । मुज़फ्फर अली खां की सेना
वि० सं० १७७८ ( ई० स १७२१ ) में महाराजा अजीतसिंह बादशाह के समान शाही ठाट-बाट से अजमेर में रहने लगे, यथा
१ डॉ० गोरीशंकर हीराचन्दं श्रोझा द्वारा लिखित राजपूताने का इतिहास, भाग २, पृष्ठ ६२८ ।
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[ ३७ ] गजसिंघ हरी भारी गुमर, सरब करै प्रसपक सुरंग । पतिसाह हुवो 'अजमाल' पह. दिली जेम तारा दुरंग ॥
सू. प्र. भाग २, पृ. ६६ कवि के कथनानुसार बादशाह मुहम्मदशाह ने मुजफ्फरअली खां को तीस हजार शाही सेना के साथ महाराजा का दमन करने के लिये अजमेर की ओर भेजा था, यथा
मंगळ क्रोध महमंद, साह प्रजळ दळ सब्बळ । खेधक मुदफरखांन, मुगळ तेड़ियौ महाबळ । तोरा फील तुरंग, बगसि पारबां खजांनां ।
तीस सहस ताबिन, असुर दळ दीघ अमांनां । मुरतबो , हजारी हफत महि, पान ग्रहतां पावियो । इम विदा होय मुदफरअली, 'अजण' भूप दिस प्रावियो ।
सू.प्र. भाग २. पृ.६७ कवि ने आगे फिर संकेत किया है कि मुजफ्फरअली खां के साथ तीस हजार की सेना थी, यथा
भजि गया बिण गज भार, हय थाट तीस हजार । मिट लाज छाडि गुमांन, खडि गयो मुदफरखांन ॥
सू. प्र. भाग २, पृ. १०२ इतिहासकारों के मतानुसार मनोहरपुर पहुँचते-पहुँचते मुजफ्फरअली खां के पास केवल बीस हजार सेना जमा हो पाई थी।'
बादशाह द्वारा महाराजा अभयसिंह को सेना के लिये व्यय प्रादि देना
ग्रंथानुसार महाराजा अभयसिंह को सर बुलन्द के विरुद्ध दिल्ली से विदा होते समय बादशाह मुहम्मदशाह ने उन्हें ताज, खंजर, तलवार, घोड़ा, हाथी तथा तोपखाने के साथ सेना के व्यय के लिये इकतीस लाख रुपये दिये। ___ अन्य इतिहासकारों के अनुसार वि० सं० १७८६ में बादशाह मुहम्मदशाह ने महाराजा को अन्य उपहारों के अतिरिक्त सेना के व्यय के लिये १८ लाख रुपये और छोटी-बड़ी पचास तोपें दी ।
9 (प्र) डॉ. गौरीशंकर हीराचंद प्रोझा द्वारा लिखित राजपूताने का इतिहास, भाग २,
पृष्ठ ५६३ । (मा) पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृष्ठ ३२१ । २ (अ) Orient Longman : History of Gujrat (Commassariat).
[शेष टिप्पणी पृष्ठ ३८ पर]
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[ ३८ ] टॉड साहब ने 'सूरजप्रकास' के ही आधार पर इकतीस लाख रुपये दिये जाने का उल्लेख किया है।'
यहां पर यह विचार करना है कि कवि का ३१ लाख रुपये दिये जाने का कथन वास्तविक है या अतिशयोक्तिपूर्ण ।
ग्रंथ में कवि ने पहले गुजरात के सूबेदार हमीद खां के विद्रोही होने का उल्लेख किया है। बादशाह मुहम्मदशाह ने सर बुलन्द खां को गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया और पचास हजार शाही सेना के साथ उसे हमीदखां के विरुद्ध भेना । उस समय उसे सेना के व्यय-स्वरूप एक करोड़ रुपये दिये जाने का हुक्म हुग्रा, यथा
वाका सुरिण असपती, कहर कोपियो भयंकर । विदा कीध सिरविलंद, दूठ समसेर बहादर । दीध कीड़ हिक दरब, दीघ पच्चास सहंस दळ । सुजड़ खाग सिरपाव, 'मुसक' असि दीध मदग्गळ ॥
सू प्र. भाग २, पृ. २३८,२३६ इतिहासवेत्ताओं के अनुसार भी सर बुलन्द को शाही सेना के साथ एक करोड़ रुपये दिये जाने का हुक्म मिलता है । अतः सर बुलन्द को हमीद खां के विरुद्ध सेना के व्ययस्वरूप एक करोड़ रुपये का कवि का कथन अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है । जब यह बात ठीक है तो सर बुलन्द के गुजरात में विद्रोही हो जाने पर महाराजा अभयसिंह को उसके विरुद्ध सेना के व्यय-स्वरूप इकतीस लाख रुपये दिये जाने का कथन अतिशयोक्तिपूर्ण कैसे हो सकता है । अतः इस दृष्टि से कवि का कथन ठीक प्रतीत होता है ।
(आ) इविन; लेटर मुगल्स, पृष्ठ २०५। (इ) डॉ. गौरीशंकर हीराचंद अोझा द्वारा लिखित राजपूताने का इतिहास, भाग २,
पृष्ठ ६१२। (६) पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृष्ठ ३३६ ।
(3) जोधपुर की ख्यात के अनुसार १५ लाख रुपये सेना के व्यय स्वरूप मिले । १ टॉड राजस्थान, अनुवादित, पं० बलदेवप्रसाद मिश्र, मुरादाबाद, भाग २, पृष्ठ १७६ । । २ (अ) Orient Longman : History of Gujrat (Commassariat).
(आ) इविन : लेटर मुगल्स, पृष्ठ १८५-१८५ ।
(इ) टॉड राजस्थान, अनुवादित, पं० बलदेवप्रसाद मिश्र, मुरादाबाद, भाग २, पृष्ठ १७३ । 3 पं० गौरीशंकर हीराचंद प्रोझा द्वारा लिखित राजपूताने का इतिहास, भाग २, पृष्ठ ६१२
का प्रथम फुटनोट जिसमें 'सूरजप्रकास' के कथन को अतिशयोक्तिपूर्ण बताया है।
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. [ ३६ ]
महाराजा प्रभसिंह को सेना बादशाह ने व्यय के अतिरिक्त महाराजा के साथ कुछ शाही सेना भेजी या नहीं इसका पूर्ण स्पष्टीकरण ग्रंथ से नहीं होता है, यथा
ताज कुलह सिरपेच, जरी तोरा जर कंबर । खंजर जमदढ़ खड़ग, पमंग सिर पाव पटाझर । 'तई लोक ताबीन', तोपखांनां गजबांणां ।
सझ साह बगसीस, लाख इकतीस खजांनां । अहमदाबाद दीधौ उतन, असपति सोच उथालियो । ईखतां दोई राहां 'अभी', होय विदा इम हालियो ।
सू. प्र. भाग २, पृ. २४८ उक्त छप्पय में 'तई लोक ताबीन' से सेना के दिये जाने की कुछ ध्वनि अवश्य निकलती है किन्तु अस्पष्ट है ।
सर बुलन्द खां से युद्ध करते समय महाराजा के पास कितनी सेना थी, ग्रंथ में इसका आंकड़ा नहीं मिलता है किन्तु कवि ने महाराजा की सेना का विस्तृत वर्णन किया है जिसके अन्तर्गत विभिन्न स्थानों की सेनाओं का महाराजा की सेना के साथ होना पाया जाता है। बादशाह से विदा होते समय महाराजा कुछ शाही सेना लेकर चले होंगे इसकी अस्पष्ट ध्वनि उक्त वर्णन के अनुसार ग्रंथ से निकलती है। महाराजा के भाई बखतसिंह
और मारवाड़ के लगभग सभी सामन्तों की सेनाएँ भी महाराजा की सेना के रूप में साथ थीं। सिरोही के राव की भी एक टुकड़ी महाराजा के साथ हो गई थी। पालनपुर का अधिकारी करीमदाद खां भी महाराजा से मिल गया था । सिद्धपुर के निकट पहुँचने पर जवांमद खां और सफदर खां बाबी भी सर बुलन्द की कृपाओं को भुला कर महाराजा से मिल गये थे। वहीं पर 'कसबातो' मुसलमान और स्वर्गीय मोमिन खां का पुत्र मोहम्मद बाकिर भी गुप्त रूप से इनसे मिल गया था। सरदार मोहम्मद खां गोरनी को गुजरातियों की सेना भी बाद में इनके साथ शामिल हो गई थी। इन सब का उल्लेख कवि ने यथास्थान किया है किन्तु इनकी सेनाओं की संख्या नहीं दी गई है ।
इविन 'लेटर मुगल्स' और लोंगमेन्स 'हिस्ट्री ऑफ गुजरात' के अनुसार महाराजा अभयसिंह ने जोधपुर और नागौर से बीस हजार कुशल अश्वारोही लेकर अहमदाबाद की ओर प्रयाण किया था । ग्रंथ में भी महाराजा की सेना के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के अश्वों का अलग-अलग वर्णन मिलता है। 'सहरुल
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[ ४० ] मुताखरीन' के अनुसार अभयसिंह ४०-५० हजार सेना लेकर गुजरात की ओर चले थे ।'
अतः अनुमान लगाया जा सकता है कि महाराजा बीस सहस्र अश्वारोही लेकर चले होंगे। कुछ सहस्र अन्य सैनिक भी होंगे तथा अहमदाबाद पहुँचतेपहुँचते उनके पास लगभग ४०-५० सहस्र सेना हो गई होगी।
महाराजा की सेना के १२० बड़े-बड़े योद्धा और ५०० अश्वारोही सैनिक मारे गये तथा ७०० सिपाही घायल हुए, यथा
भड़ पयदळ गज भिड़ज पड़े 'विलंद' रा अपारां। न को पार घायला, हुवा लोह में सुमारां । उला भड़ एक सौ वीस, पड़िया जिण वारां ।
पमंग पड़े पंचस, धमक सेलां खग धारा । सात से हुवा घायल सुभट, लई 'अभै' जस वद लियो। आजरा वार मझि पोही अवर, जुध इम किणं न जीपियो ।।
सू. प्र. भाग ३, पृ. २६१ सर बुलन्द की सेना ग्रंथ में सर बुलन्द की सेना के प्रांकड़े कई स्थानों पर भिन्न-भिन्न दिये हुए हैं किन्तु उनसे स्पष्ट नहीं कहा जा सकता कि सर बुलन्द के पास कुल कितनी सेना थी ?
सर्व प्रथम कवि ने सर बुलन्द की सेना का उल्लेख उस स्थान पर किया है जब बादशाह मुहम्मदशाह द्वारा विद्रोही हमीद खां का दमन करने के लिये पचास सहस्र सेना और उसके व्यय के लिये एक करोड़ रुपया देना तय कर के सर बुलन्द को गुजरात भेजा गया, यथा
वाका सुरिण असपती, कहर कोपियो भयंकर । विदा कीध सिरविलंद, दूठ समसेर बहादर । दोध कोड़ हिक दरब, दीध पच्चास सहंस दळ । सुजड़ खाग सिरपाव, मुसक असि दीध मद्दगळ । कत्ताबम मुरजल-मुलकका, दोध अराबा घण मुदित। ईरांन विरद उजवाळ पान दीध तूरांनपति ।।
सू. प्र. भाग ३, पृ. २३८,२३६
१ पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृ. ३४१ का फुटनोट ।
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[ ४१ । एक स्थान पर कवि ने बारह हजार सेना का उल्लेख किया है जिसके अन्तर्गत अलग-अलग टुकड़ियों के साथ यूरोपियन भी थे, यथा
जुदा मिसल जंग हंत, असल्ल विल्लायत वाळा । इसड़ा बार हजार, चूंच चढ़िया कळिचाळा ॥
सू. प्र. भाग ३, पृ. २७ एक स्थान पर कवि ने लिखा है कि सर बुलन्द की सेना में शीशा, बारूद, दो हजार तो आदि युद्ध की सामग्री के साथ चार हजार सुतर नालें, तीन हजार रेहकले, बारह हजार बंदूकें अथवा बंदूकधारी तथा तो चलाने वाले अंगरेज थे, यथा
सीसा जांमंग सोर, भार गाडा बांणां भर । चव हज़ार सुत्रनाळ, हबस उसताज बहादर । पण हजार रहकळा, अरब उसताज अचूकां।
सुकर नरां बगसरां, बार हज्जार बंदूकां । बि हजार तोप कठठी बडी, गोळमदाज फिरंगरा । करि अजर क्रोध कीधा किलम, जबर मसाला जंगरा ॥
सू. प्र. भाग ३, पृ. २८ ग्रंथ में एक स्थान पर पाया जाता है कि सर बुलन्द ने नगर के बारह दरवाजों के प्रत्येक द्वार पर दो-दो हजार बंदूकधारी तथा दस-दस तोपें रख दी थीं। इनके अतिरिक्त प्रत्येक बुर्ज़ और कंगूरे पर सैनिक तैनात कर दिये, यथा
दुय दुय सहस बंदूक, सहति बगसरा सकाजां। ते दस दस भरि तोप, डहै बारह दरवाजां । भुरज भुरज पारबा, दुगम जुथ गोळदाजां।
मतिवाळां मेलिया, कंगुरे कंगुरे सकाजां। फिरणिया चहूतरफां फिरै, काळ रूप अरबा चकां। काढ़िया खगां किलकां कर, डका ढोल तबलां डकां ॥
सू. प्र. भाग २, पृ. ३५० उक्त छप्पय के अनुसार प्रत्येक द्वार पर दो-दो हजार के हिसाब से बारह दरवाजों पर २४ हजार तो बंदूकधारी ही थे तथा तोपें चलाने वाले, बुों व कंगूरों पर तैनात सैनिक उनसे अलग थे ।
कवि के कथनानुसार सर बुलन्द के एक सौ पालकीनशीन, पाठ हाथीनशीन और तीन सौ ऐसे जो दीवाने-ग्राम नामक सभा में जाते समय सम्मान के अधिकारी थे, मारे गये। साथ ही ४४६३ सैनिक भी मारे गये। इनके अतिरिक्त युद्ध में कितने ही घायल हुए । यथा
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[ ४२ ] इम जीतो 'प्रभमाल' वार नब जाए । लूटि आरबां लिया लूटि, असि गज बही लाए । 'विलंद' तणा बाढ़िया, रूक झाटां रवदायण । च्यार सहस च्यारस, असी तेरा असुरायण । जिण मझि विवरौ जुदौ, मुगळ पड़ि रूप मयंदा। सौ पालखीनसीन पाठ असवार गयंदा । अ पड़े साह जाण इसा, प्रावै अाम दीवांणमें। ताजीमतणा भड़ तीनस, घणा अवर घमसांण में । भड़ पयदळ गज भिड़ज, पड़े विलंद रा अपारा । न को पार घायला, हुवा लोह में सुमारां ।
__ सू. प्र. भाग ३, पृ. २६१ महाराजा द्वारा वि० सं० १७८७ को कार्तिक वदि २ को शाही दरबार में स्थित अपने वकील के नाम लिखे गये पत्र से प्रकट होता है कि सर बुलन्द के हजार-बारह सौ आदमी मारे गये और सात-आठ सौ घायल हुए ।
इसी पत्र में पहले यह भी उल्लेख है कि सर बुलन्द ने दशमी के दिन ८ हजार सवारों और १० हजार पैदल सिपाहियों से अर्थात् कुल १८ हजार से महाराजा की सेना पर हमला किया था।'
अतः हम इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि सर बुलन्द के पास लगभग ५० सहस्र सेना होगी। २४ हजार तो उसने केवल दरवाजों पर ही तैनात कर दी। कछ सहस्र बुों और कंगूरों पर तथा १८ सहस्र से महाराजा पर आक्रमण किया । अत: इस प्रकार कुल ५० सहस्र के लगभग सेना हो जाती है। कवि ने भी सर्व प्रथम यही उल्लेख किया है कि सर बुलन्द पचास सहस्र सेना लेकर हमीद खां के विरुद्ध दिल्ली से गुजरात की ओर चला था। इस प्रकार ग्रंथ में दिये हुए अांकड़े विश्वसनीय जान पड़ते हैं ।
'सूरजप्रकास' ऐतिहासिक और साहित्यिक दृष्टि से अपने ढंग का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। जोधपुरनरेश महाराजा मानसिंह इस ग्रंथ से इतने प्रभावित हए कि उन्होंने इस ग्रंथ में उल्लिखित सभी घटनाओं के चित्र बनवा दिए, जिनमें से अधिकांश जोधपुर महाराजा साहिब के 'पुस्तकप्रकाश' में आज भी उपलब्ध होते हैं ।
'पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ द्वारा लिखित, मारवाड़ का इतिहास, भाग १, पृष्ठ ३३६-३४०
का फुटनोट ।
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इस ग्रंथ का इतना प्रचार हुआ कि मारवाड़ के अधिकांश जागीरदारों और चारणों के पास तथा जैनसंग्रहालयों में इसकी अनेक हस्तलिखित प्रतियां मिलती हैं ।
महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस ग्रंथ का रचयिता कविराजा करणीदान महाराजा अभयसिंह का राज-कवि था। उसने अहमदाबाद युद्ध में स्वयं भी भाग लिया था।
हम कह सकते हैं कि पाठकों को सही इतिहासज्ञान कराने में यह ग्रंथ बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।
सूरजप्रकास के ऐतिहासिक पात्र पात्रों की दृष्टि से जब ग्रंथ की जांच की जाती है तो ज्ञात होता है कि कवि ने ग्रंथ में अत्यधिक पात्रों का उल्लेख किया है। कई मुख्य पात्र तो ऐसे हैं जिनका सम्पूर्ण विवरण इतिहास में प्राप्त होता है किन्तु कई ऐसे भी हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, किन्तु उनकी जानकारी अभी तक प्राप्त नहीं हो सको है। यद्ध के अन्तर्गत कवि ने कई योद्धाओं के केवल नाम गिना दिये हैं, उनमें से कई ऐसे हैं जो उस समय अवश्य प्रसिद्ध होंगे किन्तु इस समय उनके बारे में प्रकाश डालना तब तक दुर्लभ हो गया है जब तक उनसे सम्बन्धित ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में नहीं आ जावे । इतना अवश्य कहा जा सकता है कि पौराणिक वंश-तालिका के अलावा कवि ने जितने भी पात्रों का उल्लेख किया है वे ऐतिहासिक दृष्टि से ठीक जान पड़ते हैं। स्त्री पात्र सम्पूर्ण ग्रंथ में नहीं के बराबर हैं। नीचे ग्रंथ में आये हुए खास-खास पात्रों का संक्षिप्त परिचय दिया जाता हैअम्बर चंपू
यह बड़ा पराक्रमी शासक हुआ। इसका पूरा नाम मलिक अम्बर था। यह जाति का हब्शी था । यह अहमद नगर राज्य का प्रधान मन्त्री था। अहमद नगर का राज्य मुगल सम्राट अकबर के अधिकार में जाने पर यह उस राज्य के बहुत से भाग का स्वतन्त्र शासक बन बैठा और उपद्रव करने लगा। ग्रंथानुसार बादशाह अकबर ने जोधपुर नरेश सवाई राजा सरसिंह को इसका दमन करने के लिये दक्षिण में भेजा और इन्हें अपने कार्य में सफलता मिली।
जहांगीर के शासन-काल में अम्बर को दबाने के लिये पुनः महाराजा गजसिंह को भेजा गया । उन्होंने भी इसका दमन कर के शान्ति स्थापित की। वृद्धावस्था
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[
४४ ]
में इसने मुगलों से लिये हुए प्रदेश शाहजहाँ को सौंप दिये । यह वि.सं. १६८३ (ई.स. १६२६) में अस्सी वर्ष की अवस्था में मृत्यु को प्राप्त हुआ।
अकबर (बादशाह)
जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर का जन्म ई.स. २३ नवम्बर १५४२ को हुमायूं की पत्नी हमीदाबानू के गर्भ से अमरकोट में हुआ था और ई.स. १५५६ में कालानर में इसका राज्याभिषेक हुआ। उस समय भारत की स्थिति सोचनीय थी और अकबर के अधिकार में पंजाब का थोड़ा सा भाग था। इसने अपनी बुद्धिमानी से बैरामखाँ के पंजे से निकल कर अपने राज्य की स्थिति को दृढ़ बनाने का प्रयत्न किया। ई.स. १५५६ में पानीपत के दूसरे युद्ध के बाद हेमू का अंत हो गया और दिल्ली में मुगल सत्ता स्थापित हो गई। उसके बाद ही आगरे पर भी अकबर का प्राधिपत्य हो गया । अकबर एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट था और सम्पूर्ण भारत में अपनी सत्ता कायम करने की कामना करता था। इसी कामना से अकबर ने राजपतों के साथ अपना सम्बन्ध जोड़ा और जोधपुर के स्वामी सवाई राजा सूरसिंह को गजरात की रक्षा का भार सौंपा । गजरात पहुँच कर इन्होंने मुजफ्फर के उपद्रव को दबाया और वह गुजरात छोड़ कर भाग गया । दक्षिण के उपद्रवों को भी दबाने के लिये अकबर ने सवाई राजा सूरसिंह को भेजा था । इन्होंने अम्बरचम्पू को भगा कर दक्षिण में शान्ति स्थापित की थी। अकबर विद्वानों का आदर करता था। इसकी सभा के नवरत्न इतिहास-प्रसिद्ध हैं। सम्राट अकबर अपनी योग्यता के कारण ही इतिहास में अकबर महान् के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अकबर (शाहजादा)
औरंगजेब उत्तरकालीन मुगल सम्राट था। उसके कुल पांच पुत्र थे । इन्हीं पुत्रों में सबसे बड़ा सुल्तानमुहम्मद था। अकबर औरंगजेब का चौथा पुत्र था। यह मारवाड़ पर आक्रमण करने वाली शाही सेना का सेनापति था। दुर्गादास ने मारवाड़ के उद्धार के लिये अपनी चतुराई से शाहजादा अकबर को अपनी ओर मिला लिया और नाडोल में राठौड़ सरदारों ने उसका बादशाह होना घोषित कर दिया। किन्तु बाद में औरंगजेब की चालाकी से वह असफल रहा और अपने कुटम्ब और माल असबाब को लेकर राठौड़ों की शरण में चला गया। कई दिन मारवाड़ में रहने के बाद अकबर अपने परिवार सहित हज करने चला गया। हज करके ईरान आ गया और वहीं पर ईस्वी सन् १७०६ में उसका देहान्त हो गया ।
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श्रज
[ ४५ ]
राव सीहाजी का सबसे छोटा पुत्र और सोनग का छोटा भाई था । अज ने अपनी सेना सहित द्वारिका की यात्रा की, वहाँ पहुँचने पर शंखोद्धार के चावड़ा राजा ने इसका बहुत स्वागत किया और अमूल्य वस्तुएँ भेंट कीं ।
जौ ( श्रर्जुन गौड़ ) -
यह मारोठ के स्वामी विठ्ठलदास गौड़ का पुत्र था और बादशाह शाहजहाँ के प्रमुख दरबारियों में था । वि. सं. १७०१९ में राव अमरसिंह राठौड़ ने बादशाह के प्रमुख 'दरबारी सलावत खाँ को अपशब्द कहने पर आम दरबार में कटार से मार डाला। उसी समय अर्जुन गौड़ ने तथा अन्य व्यक्तियों ने अमरसिंह पर आक्रमण कर उसे मार दिया किन्तु अमरसिंह ने भी वार कर के इसका कान काट लिया । धरमत के युद्ध में महाराजा जसवन्तसिंह के साथ रह कर इसने अपने अतुल शौर्य का परिचय दिया और वीरता के साथ युद्ध करता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ ।
अनोपसिंह (भण्डारी अनोपसिंह ) -
यह राय भण्डारी रघुनाथसिंह का पुत्र था । यह बड़ा बहादुर, रण-कुशल तथा नीतिज्ञ था । संवत् १७६७ में महाराजा अजीतसिंह द्वारा जोधपुर का हाकिम नियुक्त किया गया। उस समय हाकिम पर सिविल और मिलिटरी (Civil and Military) दोनों कामों का उत्तरदायित्त्व रहता था, जिसको इसने पूरी तरह से निभाया । वि.सं. १७७२ में इसको नागौर का मनसब मिला, तब महाराज ने इसको व मेड़ते हाकिम भण्डारी पेमसिंह को नागौर पर अमल करने के लिये भेजा। राठौड़ इन्द्रसिंह दोनों हाकिमों का मुकाबिला करने के लिये आगे बढ़ा | घमासान युद्ध हुआ । फलस्वरूप इन्द्रसिंह की फौज भाग गई और भण्डारी अनोपसिंह की विजय हुई । इन्द्रसिंह को अब नागौर खाली कर बादशाह के पास दिल्ली जाना पड़ा । वि.सं. १७७६ में फर्रुखशियर के मारे जाने के बाद फौज के साथ अहमदाबाद भी इसको भेजा था । वहाँ भी इसने बड़ी बहादुरी दिखाई थी ।
अफगान खां
यह बादशाह मुहम्मद शाह की राज्य सभा के अमीर-उमरावों में था। इसके पूर्व शाही सेना का सेनापति था । मुगल साम्राज्य के शत्रुओंों का दमन करने के लिये यह अनेक युद्धों में भाग ले चुका था । नादिरशाह के आक्रमण के समय
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[ ४६ ]
अफगान खां सिन्ध का सूबेदार था । तदनन्तर बादशाह की राजसभा के राजमंत्रियों में सम्मिलित कर लिया गया था । सर बुलन्द खां के विरुद्ध अहमदाबाद युद्ध में जाने का निमन्त्रण इसे भी दिया गया था, किन्तु इसने स्वीकार नहीं किया ।
अभयकरण
यह राठौड़ वीर दुर्गादास का पुत्र था और सर बुलन्द खाँ के विरुद्ध ग्रहमदाबाद के युद्ध में महाराजा अभयसिंह के साथ था । यह सेना की एक टुकड़ी का नायक था । भद्र के किले पर लगाये गये पाँच मोर्चों में से एक मोर्चे पर अभयकरण ( कर्णोत ) चांपावत महासिंह तथा भागीरथदास प्रादि थे । ई. सन् १७३० ता. १० अक्टोबर को शेरसिंह मेड़तिया ( सरदार सिंहोत ) के मोर्चे पर भयंकर आक्रमण होने पर अभयकरण उसकी सहायता को गया था और इसने अतुल साहस और वीरता का परिचय दिया था। इसो मोर्चे पर यह घायल हो गया था किन्तु बचा लिया गया था ।
भरांमकुली ( इब्राहीम कुली खां ) -
यह शाही सेना के मुख्य सेनापति सुजात खाँ का भाई था, और महाराजा अभयसिंह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से एक था। यह मालवा, सूरत और अहमदपुर का सूबेदार ( गवर्नर ) था । बड़ा योग्य राजनीतिज्ञ तथा रणकुशल व्यक्ति था, किन्तु किन्हीं प्रान्तरिक कारणों से हमीद खाँ इससे शत्रुता
रखता था ।
पेशवा ने अपनी छः हजार सेना के साथ मालवा पर आक्रमण कर दिया तो इब्राहीम कुली खाँ ने बड़ी वीरता से पेशवा की सेना से मुकाबिला किया । किन्तु हमीद खाँ की चालाकी से इसी युद्ध में पेशवा व हमीद खाँ के व्यक्तियों ने इब्राहीमकुली खाँ की हत्या कर डाली ।
अमरसिंह (महाराणा अमरसिंह द्वितीय ) -
यह अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् वि.सं. १७५५ में गद्दी पर बैठा । इसका जन्म वि.सं. १७२६ में हुग्रा था । यह बहुत तेज स्वभाव का था । गद्दीनशीनी के समय डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ के राजाओं ने महाराणा को नजरें नहीं भेजीं। अतः कुपित होकर महाराणा ने उन पर चढ़ाई करके १ लाख ७५ हजार रुपया वसूल किया। यह आबू पर कब्जा करना चाहता था परन्तु जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह को मदद से यह स्थान देवड़ों से नहीं ले सका । पिता
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[ ४७ ] पुत्र की अनबन हो जाने से यह अपने पिता से अलग रहता था। पहले ये एकदूसरे के विरोधी थे किन्तु महाराजा अजीतसिंह ने पिता-पुत्र का मेल करवा दिया।
इसने अपने राज्य में अनेक सुधार किये। इसके एक राजकुमार और एक राजकुमारी थी । इसकी मृत्यु वि.सं. १७६७ में हुई। अमरसिंह (राव अमरसिंह राठौड़)
यह जोधपुर के महाराजा गजसिंह का ज्येष्ठ पुत्र था। इसका जन्म वि.सं. १६७० पौष सुदि ११ (ई.सं. १६१३ ता. १२ दिसम्बर) को राणी सोनगरी के गर्भ से हुआ था। हठी और उद्दण्ड होने के कारण महाराजा इससे अप्रसन्न रहता था और अपने छोटे पुत्र जसवन्तसिंह पर अधिक प्रेम रखता था। महाराजा अपने छोटे पुत्र को ही राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहता था। इसलिये वकील भगवानशाह जसकरण ने बादशाह को कह कर अमरसिंह के नाम मनसब और नागौर की जागीर लिखवा लो। इस पर वह राजसिंह कुंपावत और पन्द्रहसौ सवारों के साथ बोदशाह की सेवा में चला गया। बादशाह शाहजहाँ के समय में इसने अनेक युद्धों में शाही सेना के साथ रह कर अपनी वीरता का परिचय दिया, किन्तु वि.सं. १७०१ में इसने बादशाह के प्रमुख दरबारी सलावत खां को मार डाला और उसी समय इसे भी 'अर्जुन गौड़ तथा बादशाह के अन्य व्यक्तियों ने आक्रमण कर के मार डाला । अमरसिंह (ऊदावत ठाकुर अमरसिंह)
यह वि.सं. १७६७ में गद्दी पर बैठा । यह महाराजा अजीतसिंह के समय में महावीर पुरुषों की गणना में था। बादशाह मुहम्मदशाह को भी इसके सामने मुंह की खानी पड़ी। इसी बीच अहमदाबाद का सूबेदार सर बुलन्द खां स्वतन्त्रता से शासन करने लगा और बादशाह की आज्ञा की अवहेलना करने लगा। उसका दमन करने के लिए बादशाह ने महाराजा अभयसिंह को गुजरात का सूबेदार नियत किया । अतः महाराजा ने अहमदाबाद के लिये प्रस्थान कर दिया और ठाकुर अमरसिंह पीछे सेना लेकर पहुंचा। रास्ते में ईडर विजय किया। अहमदाबाद पहुंचते ही भयंकर युद्ध हुअा। सर बुलन्द के बहुत से मनुष्य मारे गये, बहुत से पकड़े गये, इससे नबाब का बल घट गया और उसने अपना प्रतिनिधि भेज कर महाराजा से अमरसिंह को अपने पास भेजने के लिए कहा। अमरसिंह सर बुलन्द से मिला और महाराजा से उसकी संधि करवा दी। अमरसिंह (भंडारी)
इसके पिता का नाम खींवसी भंडारी था जो कि महाराजा श्री अजीतसिंह
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तथा महाराजा श्री अभयसिंह के समय जोधपुर का दीवान था। यह भी महाराजा अभयसिंह के शासनकाल में (वि.सं. १७६६ से १८०१ तक) जोधपुर का दीवान रहा था। अहमदाबाद के युद्ध के समय यह दिल्ली में महाराजा अभयसिंह का वकील था। यह बहुत बुद्धिमान, चतुर और अपने समय का महान् राजनीतिज्ञ था। अमीर उलउमरा
यह बादशाह मुहम्मदशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से था और जोधपुर के महाराजा अभयसिंह का मित्र था तथा बादशाह के बारह हजारी मनसबदारों में था। इसने महाराजा अभयसिंह को सर बुलन्द खां के विरुद्ध अहमदाबाद पर
आक्रमण करने के लिये उत्साहित किया था और गुजरात (अहमदाबाद) की सूबेदारी की सनद महाराजा अभयसिंह के नाम लिखवा दी गई थी। अली मोहम्मद खां
यह अहमदाबाद के सूबेदार सर बुलन्द खां के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था। यह एक अनुभवी योद्धा तथा सेना के प्रमुख सेना-नायकों में था। सर बुलन्द ने इसे शहर के रेशम के प्रमुख व्यापारी गंगादास के पास एक लाख रुपया वसूल करने के लिये भेजा। इसने गंगादास से १ लाख और कुशालचन्द से साठ हजार रुपया वसूल किया। इस प्रकार अली मोहम्मद खां ने सर बुलन्द के लिये रकम वसूल की। यह महाराजा अभयसिंहजी के साथ युद्ध होने के समय पश्चिमी भाग की सेना का प्रमुख योद्धा था और उसी युद्ध में काम आया। अली बरदी खां___ यह बादशाह मुहम्मदशाह के दरबार के प्रमुख उमरावों में से एक था । यह बड़ा बहादुर, रण-कुशल एवं कुशल राजनीतिज्ञ था। इसकी वीरता और नीतिज्ञता से प्रसन्न होकर बादशाह बहादुरशाह ने इसको लाहौर का सूबेदार बना दिया था। बाद में बंगाल की व्यवस्था सुधारने के लिये इसे बंगाल का गवर्नर (सूबेदार) बना दिया गया था। इसके पूर्व यह शाही सेना का सेनापति था और अनेकों युद्धों में भाग लेकर अपनी वीरता का परिचय दे चुका था।
यह जोधपुर के महाराजा अभयसिंह का मित्र था। इसने बंगाल में अपना स्वतन्त्र शासन स्थापित कर लिया था। आबिद अली खां (प्राबद अली खां)
यह अहमदाबाद के सूबेदार सर बुलन्द खां के विश्वासपात्र सेना-नायकों में
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[ ४६ ] था। यह घुड़सवार सेना को एक टुकड़ी का सेनापति था। यह हाथी पर सवार हो कर अपने भाई जमाल खां के साथ युद्ध-भूमि में बड़ो वीरता से लड़ा। इसने युद्ध में ऐसी बहादुरी दिखाई कि मारवाड़ी सेना पीछे हटने लगी। किन्तु समय ने पलटा खाया और इन दोनों भाइयों को, जो एक ही हाथी पर सवार थे, घेर लिया गया और आबिद अली खां को मार डाला। इतमादुल्ल (इतमादुद्दौला)
यह बादशाह मुहम्मदशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था। रफीउद्दौला की मृत्यु के उपरान्त सैयद बन्धुओं की सहायता से रोशनअख्तर मुहम्मदशाह के नाम से ई.सं. १७१६ में दिल्ली का बादशाह बना। सिंहासन पर बैठते ही इसने सैयद भाइयों के चंगुल से निकलने का प्रयास आरंभ कर दिया और इतमादुद्दौला की मदद से षड़यन्त्रकारियों द्वारा हुसेनअली का वध करवा दिया व उसके भाई अब्दुल्ला को युद्ध में परास्त कर इसने बन्दी बना लिया। इसके बाद इसको बादशाह ने अपना वजीर बनाया । परन्तु वह अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहा और ई.सं. १७२२ में मृत्यु को प्राप्त हो गया। इरावतमंद खां
- इसका पूरा नाम शकुँद्दौला इरादतमंद खां था। यह बादशाह महम्मदशाह के विश्वासपात्र सेवकों में था। बादशाह ने इसको महाराजा अजीतसिंह पर चढ़ाई करने के लिये नियुक्त किया। इसको प्रसन्न करने के लिये इसका मनसब ७००० जात और ६००० सवार का कर दिया। ई.सं. १७२३ में इसको प्रस्थान की आज्ञा मिल गई और शाही खजाने से खर्च के लिये दो लाख रुपये दिये गये। ___ महाराजा जयसिंह, मुहम्मद खां बंगस, राजा गिरधारी आदि शाही अमीरों को भी इसके साथ शरीक होने की आज्ञा मिली । शाही सेना के आगमन से पूर्व ही महाराजा अजीतसिंह अजमेर से रवाना होकर सांभर होते हुए जोधपुर चले गये । जून सन् १७२३ में इरादतमंद खां ने अजमेर में प्रवेश किया। इन्द्रसिंह (राव इन्द्रसिंह, नागौर)___ इसका जन्म वि.सं. १७०७ की जेठ सुदि १२ को दक्षिण में बुरहानपुर में हुआ था। वि.सं. १७३३ में अपने पिता रायसिंह की मृत्यु के बाद यह नागौर का अधिकारी बना। बादशाह औरंगजेब ने इसको पाँच हजारी जात और दो हजार सवारों का मनसब दिया था। महाराजा जसवंतसिंह की मृत्यु के बाद अपने पुराने बैर का बदला लेने के लिये राव इन्द्रसिंह को बादशाह ने राजा के खिताब
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[ ५० ] के साथ जोधपुर का शासन-भार सौंप दिया था। परन्तु महाराजा के स्वामिभक्त नोकरों व सरदारों के आगे इन्द्र सिंह की एक न चलो। वि.सं. १७७३ में महाराजा अजीतसिंह ने इन्द्रसिंह से नागौर छीन लिया। किन्तु वि.सं. १७८० में बादशाह ने नागौर का अधिकार पुनः इन्द्रसिंह को दे दिया । महाराजा अभयसिंह ने वि.सं. १७८२ में इन्द्रसिंह पर हमला कर के नागौर अपने छोटे भाई बखतसिंह को दे दिया। इन्द्रसिंह दिल्ली चला गया, जहाँ बादशाह ने उसे सिरसा, भटनेर, पूनिया और बैहणी-वाल के परगने जागीर में दिये । वि.सं. १७८६ में दिल्ली नगर में इन्द्रसिंह का देहान्त हो गया। उम्मेदसिंह
राव छत्रसाल के बाद मानसिंह सिरोही का राजा बना। गद्दी पर बैठते ही इसने अपना नाम उम्मेदसिंह रख लिया। अहमदाबाद विजय को जाते हुए महाराजा अभयसिंह सिरोही ठहरा और सिरोहो को लूटने की आज्ञा दे दी। इसके सिपाही सिरोही को लटने लगे तब सिरोही के राव उम्मेदसिंह ने अपनी पूत्री का विवाह महाराजा से कर उससे संधि कर ली और अपनी फौज महाराजा के साथ भेज दी। औरंगजेब (बादशाह)
यह बादशाह शाहजहाँ का पुत्र था। इसका जन्म २४ अक्टूबर १६१८ ई. को मुमताज महल के गर्भ से दाहद में हुआ था। इसने उज्जैन के युद्ध में महाराजा जसवन्तसिंह राठौड़ को पराजित किया, धौलपुर के पास शाहशुजा को हराया, ईश्वर को साक्षी कर के मुराद से मित्रता की और उसे मरवा डाला, पिता को बन्दीघर में डाल दिया और ऐसे ही अनेक काम कर के बादशाही प्राप्त की। यह अातंकवादी बादशाह था । इसने हिन्दुनों पर मनमाना अत्याचार किया। जजिया कर लगाया । मन्दिर तुड़वाये। हिन्दूओं को मुसलमान बनाया। महाराजा जसवन्तंसिंह को मरवाने के लिये षड़यंत्र रचे । इसने महाराजा जसवन्तसिंह के पुत्र अजीतसिंह के साथ दुर्व्यवहार किया। इसी के कारण अजीतसिंह को लम्बे समय तक इधर-उधर भटकना पड़ा। यह जोधपुर राज्य पर अधिकार करना चाहता था। किन्तु उसकी यह इच्छा पूर्ण नहीं हुई। ई.सं. १७०७, ३ मार्च में इसका देहावसान हो गया। कंठराज (कंथाजी)
यह मरहठों की सेना का सेनानायक था। इसका पूरा नाम कथाजी कदम बाँडे था । मरहठों द्वारा गुजरात पर आक्रमण करने के समय इसने साहसपूर्ण भाग
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[ ५१ ] लिया था। महाराजा अभयसिंह का अहमदाबाद पर अधिकार होने के समय कंठ चांपानेर (उज्जैन) का शासक था। इसने विजय की कामना से अहमदाबाद पर आक्रमण किया। इसके साथ पील और आनंदराव की सेनाएं भी थीं। किन्तु महाराजा अभयसिंह की विजय हुई और कंठा भाग कर दक्षिण में निजामुलमुल्क के पास चला गया । कनीराम (कूपावत ठाकुर कनीराम)___ यह ठाकुर रामसिंह के बाद अपने पिता का उत्तराधिकारी हुा । बागी चांदावत दौलतसिंह को मार कर महाराजा अभयसिंह द्वारा प्रासोप बहाल करवाई। वि.सं. १७८७ में अहमदाबाद में सर बुलंद खां से युद्ध हुआ जिसमें कुंपावत कनीराम साथ था। महाराजा अभयसिंह को इस पर पूर्ण कृपा थी । महाराजा अभयसिंह की मृत्यु के बाद रामसिंह गद्दी पर बैठा किन्तु इनमें छिछोरपन होने के कारण कनीराम जोधपुर से प्रासोप चला गया। वि.सं. १८०८ में बखतसिंह ने जोधपुर पर अधिकार कर लिया। वि.सं. १८०६ में ही महाराजा बखतसिंह का विष-प्रयोग से जयपुर राज्य के गाँव सींधोली में देहान्त हो गया। तब उनका पुत्र विजयसिंह जोधपुर के राज्यसिंहासन पर बैठा। इसी वर्ष इन्हीं महाराजा ने ठाकुर कनीराम को बीकानेर से बुलाया । कनीराम ने आजन्म महाराजा विजय. सिंह की सेवा की । वि.सं. १८३२ में जोधपुर में ही इसका स्वर्गवास हो गया । दाह-संस्कार कागा बाग में हुप्रा । कागा में इसकी छत्री बनी हुई है। कमरुद्दीन खां
यह बादशाह मुहम्मदशाह के प्रधान सलाहकारों में से एक था। यह बादशाह के प्रधान वजीर निजामुल-मुल्क का विश्वासपात्र व्यक्ति था। यह योग्य तथा अनुभवी व्यक्ति था। बादशाह ने जिस समय सर बुलन्द खां के विद्रोही हो जाने पर उसके विरुद्ध विद्रोह को दबाने और उसको पदच्युत करने का प्रस्ताव रक्खा उस समय कमरुद्दोन खां भी राजसभा में मौजूद था। यह जोधपुर के महाराजा अभयसिंह के हितैषियों में था और उनसे मित्रता का व्यवहार रखता था। करण (महाराणा करणसिंह)
यह महाराणा अमरसिंह का पुत्र और राणा प्रताप का पौत्र था। इसका जन्म वि.सं. १६४० श्रावण शुक्ला १२ (ई.स. १५८३ ता० १ अगस्त को) हुआ था। उस समय दिल्ली का बादशाह जहाँगीर था। उसने शाहजादे खुर्रम को मेवाड़ विजय के लिये सवाई राजा सूरसिंह के साथ भेजा और राजकुमार गजसिंह को सादड़ी का थाना सौंपा गया। शाही सेना ने मेवाड़ को चारों तरफ से घेर
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[ ५२ ]
लिया, राणा ने विजयी होना असंभव जान कर संधि प्रस्ताव रखा। इस पर वि० सं० १६७१ (ई० सन् १६१४ ) में महाराजकुमार गजसिंह राजकुमार करण को लेकर अजमेर प्राये | बादशाह जहांगीर, जो उस समय अजमेर में ही था, से मिला दिया और सुलह करवा दी। महाराणा करणसिंह वि०सं० १६७६ ( ई० सन् १५२० ) में गद्दी पर बैठा और वि० सं० १६८४ ( ई० सन् १६२७) में इसका देहान्त हो गया ।
करणसिंह (चांपावत)
यह पाली के ठाकुर राजसिंह का पुत्र बड़ा वीर, पराक्रमी तथा युद्ध · कुशल व्यक्ति था । यह महाराजा अभयसिंह की सेना की एक टुकड़ी का सेनानायक था । महाराजा ने अहमदाबाद के युद्ध के समय शहर पर गोलाबारी करने के लिये ५ मोर्चे कायम किये थे, जिनमें पहले मोर्चे पर यह था । वि० सं० १७८७ प्राश्विन सुदि १० ( ई० सं० १७३० ता० १० अक्टूबर) शनिवार को सर बुलन्द ने शेरसिंह ( सरदारसिंहोत के मोर्चे पर आक्रमण किया । प्रभयकरण और चांपावत करण उसकी (शेरसिंह) सहायता को गये । घमासान युद्ध हुआ जिसमें मुसलमानों के ३०० आदमी और महाराजा की सेना के चांपावत करण, मेड़तिया भोपसिंह, जोधा हठीसिंह, धांधल भगवानदास और पुरोहित केसरीसिंह लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए । करणीदान (बारहठ करनीदान) -
यह बारहठ केसरीसिंह का छोटा पुत्र था । यह बड़ा बुद्धिमान था । जब महाराजा अभयसिंह ने नागौर का राज्य राव अमरसिंह के पोते इन्द्रसिंह से छीन कर अपने भाई बखतसिंह को दे दिया तब यह अवसर पाकर महाराजा बखतसिंह के पास चला गया। कुछ दिनों बाद गुजरात के नबाब सर बुलंद खां पर महाराजा अभयसिंह ने चढ़ाई की तो उस समय करनीदान महाराजा बखतसिंह के साथ था । युद्ध में अत्यधिक पराक्रम दिखाने पर महाराजा बखतसिंह ने इसको रामस्या गांव दे दिया । वि०सं० १८०८ में जब महाराजा बखतसिंह महाराजा रामसिंह को जोधपुर से निकाल कर मारवाड़ के अधिपति हो गये तब करनीदान को मूंदियाड़ का पट्टा दिया और सिरायत सरदारों के बराबर मान दिया।
करीमदाद खां
यह बादशाह मुहम्मदशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था । इसे पहले पालनपुर का फौजदार बना कर भेजा गया था । इसकी महाराजा
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[ ५३ ]
भयसिंह से मित्रता थी । महाराजा अभयसिंह ने अहमदाबाद पर चढ़ाई करने के लिये अपनी सेना सहित जोधपुर से कूच किया, जिस समय वे पालनपुर के पास पहुँचे तो इसने उनका खूब स्वागत किया । यही करीमदाद खां बाद में पालनपुर का स्वतंत्र शासक बन कर नबाब बन गया । इसने महाराजा अभयसिंह की सहायता के लिए अहमदाबाद के युद्ध में अपनी सेना को सर बुलंद खां के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजी थी ।
किशनसिंह ( महाराजा किशनसिंह ) -
यह मोटा राजा उदयसिंह का ८ वां पुत्र था। इसने ई० सन् १६६६ में अपने नाम से किशनगढ़ राज्य की स्थापना की। यह बड़ा वीर, रणकुशल और अपनी धुन का पक्का थ। इसके तीन पुत्रों में से भारमल के पुत्र रूपसिंह ने रूपनगर बसाया था । भाटी 'गोयन्ददास' ने, जो महाराजा सूरसिंह का विश्वासपात्र था व जोधपुर राज्य का दीवान था, किशनसिंह के भतीजे गोपालदास का वध कर दिया था । उसका बदला लेने के लिए किशनसिंह ने अजमेर की हवेली पर हमला कर के भाटी गोयंददास को मार दिया। इससे नाराज होकर राजकुमार गजसिंह ने भी पीछा कर के किशनसिंह को उसके साथियों सहित
मार डाला ।
कुभा (महाराणा कुंभा ) -
यह महाराणा मोकल का पुत्र था और उसकी मृत्यु के बाद वि०सं० १४६० में राजगद्दी पर बैठा। इसके बालिग होने तक राज्य कार्य की देखभाल मंडोवर के स्वामी रणमल्ल राठौड़ करता था । यह महाराणा बड़ा यशस्वी, वीर, विद्वान् और प्रतापी हुआ जिसने कुंभलगढ़ और आबू पर अचलगढ नामक स्थान बनवाये और मालवा के बादशाह मुहम्मद तुगलक को युद्ध में पराजित कर के पकड़ लिया व ६ मास कैद में रख कर उससे दंढ लेकर छोड़ा । इसका स्मारक चित्तौड़ के किले में विद्यमान है | वि०सं० १५२५ में यह अपने ज्येष्ठ पुत्र ऊदा के हाथ से
मारा गया ।
कुससंह (ऊदावत कुंवर कुशलसह ) -
इसका स्वर्गवास पिता की मौजूदगी में ही हो गया था । यह अपने पिता के साथ महाराजा अजीतसिंह की सेवा में रहा करता था । कुंवर कुशलसिंह दिल्ली में भी महाराजा के साथ था । इसने कुंवर पद में ही अनेकों वीरता के काम किये थे । जब अजमेर का सूबेदार जगरामगढ़ और ब्यावर पर कब्जा करने की नियत से सेना लेकर प्राया तो कुंवर कुशलसिंह ने उसका सामना किया ।
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[. ५४ ] महा घोर संग्राम हुआ जिसमें अनेक मुगल वोरों को मार कर बड़ी वीरता से लड़तो हुआ वह वीरगति को प्राप्त हुआ। केशरीसिंह पुरोहित___ यह जोधपुर राज्य के खेड़ापा का महापराक्रमी जागीरदार था। इसने अपनी योग्यता से ही यह जागीर प्राप्त की थी । इसके पूर्वज तिवरी के जागीरदार थे। यह पुरोहित दलपत का पौत्र था जो महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) के साथ धरमत (उज्जैन) के युद्ध में औरंगजेब के विरुद्ध लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ था। इसके पिता का नाम अखंसिंह था। पुरोहित केशरीसिंह गुजरात (अहमदाबाद) के युद्ध में महाराजा अभयसिंह के साथ था । अहमदाबाद नगर तथा भद्र के किले पर पांच मोर्चे लगाये गये। केसरीसिंह दूसरे मोर्चे पर था। सर बुलन्द खां ने ई० सं० १७३० ता० १० अक्टूबर को दूसरे मोर्चे पर आक्रमण किया। घमासान लड़ाई हुई जिसमें सर बुलन्द के ३०० आदमी और महाराजा की सेना के पुरोहित केसरीसिंह, हठीसिंह, भोमसिंह, करण, भगवान आदि वीर युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। केशरीसिंह बारहठ
__ यह गुरड़ाई का जागीरदार था। यह गांव इसको महाराजा जसवन्तसिंह प्रथम द्वारा प्राप्त हुआ था। महाराजा जसवन्तसिंह को मृत्यु के बाद जब मारवाड़ पर मुगलों का आधिपत्य हो गया तब इसका गाँव भी मुगलों के अधिकार में चला गया । यह महाराजा अजीतसिंह के दल में शामिल हो गया तथा आजन्म महाराजा की सेवा करता रहा । जब जोधपुर पर महाराजा का अधिकार हो गया तब इसको अपना गाँव गुरड़ाई भी वापिस मिल गया। इसके गोरखदान और करणीदान दो पुत्र थे जो महाराजा अभयसिंह के साथ अहमदाबाद के युद्ध में शामिल हुए थे। खान दौरान
यह बादशाह मुहम्मद शाह के समय में मीर बक्शी के उच्च पद पर आसीन था और महाराजा अभयसिंह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था। इसने दिल्ली में महाराजा का शानदार स्वागत किया था। इसी की सलाह से बाहशाह ने महाराजा को गुजरात का सूबेदार बनाया था। नादिरशाह के आक्रमण के समय खानदौरान अपनी सेना सहित कर्नाल के युद्ध में शरीक हुआ। भीषण संग्राम हुआ जिसमें मुगल सेना बुरी तरह पराजित हुई और यह अपने ८००० सैनिकों सहित वीरगति को प्राप्त हुआ।
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[ ५५ ] खींवसी भंडारी
यह महाराजा अजीतसिंह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से था। मुगल सम्राट फर्रुखसियर पर इसका बड़ा प्रभाव था। ग्रन्थ सूरजप्रकास के अनुसार हिन्दुओं पर से जजिया कर छुड़वाने में इसने महत्त्वपूर्ण सहयोग दिया था। यह जोधपुर राज्य की तरफ से वर्षों तक मुगल दरबार में रहा था। फर्रुखसियर की हत्या के बाद इसने दिल्ली पहुँच कर नबाब अब्दुला खां की सम्मति से मुहम्मदशाह को दिल्ली के तख्त पर बैठाया । महाराजा अभयसिंह के शासनकाल में भी यह जोधपुर का दोवान रहा था। इसका पुत्र अमरसिंह अहमदाबाद के युद्ध के समय दिल्ली में जोधपुर महाराजा की ओर से वकील था। खुरम (शाहजादा खुर्रम)
यह जहाँगोर का तीसरा पुत्र था। इसका जन्म १५९२ ई० में लाहौर में हुआ था। खुर्रम बड़ा ही योग्य तथा प्रभावशाली व्यक्ति था । जहाँगीर उसे प्राणों से अधिक प्रिय समझता था। जब ई० स० १६०६ में जहाँगीर खुसरो के विद्रोह को शान्त करने के लिए गया तब खुर्रम को ही राजधानी की सुरक्षा का भार सौंपा गया। खुर्रम ने अनेक अच्छे कार्य किये। उसी के परिणामस्वरूप जहाँगीर ने इसे शाहजहाँ की उपाधि दी । शाहजहाँ ने दक्षिण की स्थिति को, जो बिगड़ चुकी थो, सम्भालने में सफलता प्राप्त की। इससे प्रसन्न होकर उसे उच्चतम शाही सेना का सेनापति बना दिया। उसे बहुत उत्तम जागीर प्रदान की। इसने महावत खां को अपनी ओर मिला लिया और शहरयार का अन्त कर के बादशाह बन गया । बादशाह बनते ही इसने संदिग्ध व्यक्तियों को हटा दिया और अपने विश्वसनीय व्यक्तियों को राजसेवा में नियुक्त किया। ऐसे योग्य शासक की मृत्यु ७४ वर्ष का होने के बाद १६६६ ई० में हो गई। गोयंददास (भाटी गोविंददास)
मारवाड़ के इतिहास में इसका नाम उल्लेखनीय है । यह नागार के पास गांव भांडवे के भाटी मानसिंह का पुत्र था। सुरतांण मानावत इसका सहोदर था। भाटी गोविंददास ने प्रधान के पद पर आसीन होकर राज्य का प्रबन्ध शाही ढंग पर कर दिया। इससे मारवाड़ के नरेशों और सरदारों का संबंध स्वामी-सेवक सा हो गया। शादी-गमी के समय ठकुरानियों के अंत:पुर में आने जाने की प्रथा उठ गई । इन्होंने रणमल्ल के वंश के जागीरदारों के लिये दाईं तरफ और जोधाजी के वंश के जागीरदारों के लिए बाईं तरफ का स्थान नियुक्त किया। राज कार्य के लिए दीवान, बख्शी, हाकिम, दरोगा और पोतेदार आदि नियुक्त किये। मेवाड़-दमन के समय राजकुमार गजसिंहजी के साथ जा कर
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[ ५६ ) भाटी ने महाराणा को बादशाह से संधि करवाई । एक समय भाटी गोविंददास अजमेर में महाराजा सूरसिंहजी के साथ था जहाँ किशनसिंहजी ने अपने भतीजे गोपालदास का बदला लेने के लिए इसकी हवेली में घुस कर इसको मार डाला। गोरखदान (बारहठ गोरखदान)
यह बारहठ केसरीसिंह का ज्येष्ठ पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद यह रूपावास में रहा। यह महाराजा अभयसिंह के कृपापात्रों में था और अहमदाबाद के युद्ध के समय महाराज के साथ था। इसको सेवाओं से प्रसन्न होकर महाराजा अभयसिंह ने इसको पाली परगने का केरला गांव प्रदान किया। इसके एक हो पुत्र अमरसिंह था जो महान् प्रतिभासंपन्न व्यक्ति था। गोरधनसिंह (कूपावत राठौड़ गोरधनसिंह)
. यह चंडावल ठाकुर चांदसिंह का पुत्र था। यह ठिकाना महाराजा सूरसिंह ने इसके पिता चांदसिंह को वि० सं० १६५२ में इनायत किया था। जिस समय महाराजा गजसिंह ने भोमसिंह सीसोदिया को युद्ध में मारा था उस समय यह महाराजा गजसिंह का प्रमुख योद्धा था । वि० सं० १७१४ में उज्जैन के पास फतियाबाद के मुकाम पर शाहजादा मुराद और औरंगजेब बादशाहत के लोभ से पा खड़े हुए। उस समय शाही सेना के सेनापति कासिम खां और महाराजा जसवन्तसिंह थे । कासिम खां बदल कर औरंगजेब के पक्ष में हो गया। इस पर भी महाराजा जसवन्तसिंह ने औरंगजेब के साथ घोर संग्राम किया जिससे शत्र ओं के नाकों दम हो गया। इस युद्ध में कपावत राठौड़ गोरधनसिंह चांदसिंहोत ने घोर संग्राम किया और कई शत्रुओं को मार गिराया और अपनी सेना को रक्षा की । अन्त में यह स्वयं भी इसी युद्ध में लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुआ। चाचा और मेरा
ये दोनों भाई महाराणा खेता की पासवान एक खातण के गर्भ से पैदा हए थे। ये दोनों भाई बड़े वीर, पराक्रमी और रणकुशल योद्धा थे । एक बार महाराणा मोकल द्वारा किसी वृक्ष का नाम और गुण पूछने पर बहुत क्रोधित हो गये, और अवसर पाकर महाराणा मोकल को मार डाला। उस समय राव रणमल्ल मंडोवर में थे। मोकल के मारे जाने का समाचार सुनते ही राव ने पगड़ी उतार कर साफा बाँध लिया और प्रतिज्ञा की कि चाचा और मेरा को मार कर ही पगड़ी बांधूगा । इसके बाद ५०० सवारों के साथ पई के पहाड़ों पर आक्रमण किया किन्तु उनको काबू में नहीं ला सका । बाद में गमेती भील के
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[ ५७ ]
पुत्रों की सहायता से इन पर आक्रमण किया । चाचा और मेरा मारे गये और चाचा का पुत्र इक्का भाग कर माँडू के बादशाह महमूद की शरण में चला गया । जगरामसिंह (ऊदावत )
इसका जन्म वि० सं० १६६६ में रास ठिकाने में हुआ था । इसका पिता विजयराम सवाई राजा सूरसिंह की सेवा में रहता था । यह बड़ा महत्त्वाकांक्षी था । युवावस्था में इसे नया ठिकाना स्थापित करने की प्रबल आकांक्षा हुई । विक्रमी सं० १७३५ में बर के पूर्व में जगरामगढ़ नामक दुर्ग बनाया और अजमेर के शाही खालसे को तंग करने लगा । इससे तंग होकर अजमेर के सूबेदार
संधि कर के अपने पास बुला लिया। अजमेर में रह कर इसने मेरों व मेवों के उपद्रव को शान्त किया । तत्पश्चात् दिल्ली चला गया। वहां कुछ दिन रहने के बाद मयूर के मारने की शिकायत में एक यवन का हाथ काट डाला और दिल्ली को छोड़ कर उदयपुर चला श्राया । तत्कालीन महाराणा ने इसको जागीर देनी चाही परन्तु इसका ध्यान मारवाड़ के बालक महाराजा अजीतसिंह की तरफ आया, अतः यह मारवाड़ में श्रा गया और महाराजा अजीतसिंह की सेवा में रहते हुए अनेक युद्धों में भाग लिया । वि० सं० १७६५ में महाराजा अजीतसिंह ने इसको नीमाज का ठिकाना इनायत किया। वि० सं० १७६७ में इसका देहावसान हो गया ।
जफरजंग ( खानखाना जफरजंग ) -
यह बादशाह मुहम्मदशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था और उस समय पंजाब और लाहौर का सूबेदार था । सर बुलन्द खां के विरुद्ध गुजरात ( अहमदाबाद ) पर आक्रमण करने का प्रस्ताव बादशाह ने इसके सम्मुख भी रखा था किन्तु इसने अपनी असमर्थता प्रकट कर अस्वीकार कर दिया । जफरयारबर खां
यह शाही दरबार का मुखिया था । जिस समय सर बुलन्द खां के विद्रोह को दबाने की वार्ता खास दरबार में चली, यह भी खास दरोगा के पद पर था और दरबार में उपस्थित था । बादशाह ने सर बुलन्द खां के विरुद्ध अहमदाबाद पर आक्रमण करने का इसको आदेश दिया, किन्तु इसने अस्वीकार कर दिया ।
जमालअली खां ( जमाल खां ) -
यह सर बुलन्द की सेना का सेनापति था । श्रहमदाबाद के युद्ध में, जो महाराजा अभयसिंह के साथ हुआ था, इसने बड़ी वीरता दिखाई थी । यह
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[ ५८ ] इतनी वीरता से लड़ा कि मुसलमानों का पलड़ा भारी दिखने लगा तथा महाराजा की सेना पीछे हटने लगी और सर बुलन्द खां की सेना उन्हें पीछे ढकेलती गई । परन्तु कुछ समय बाद महाराजा अभयसिंह की सेना आगे बढ़ने लगी और सेनापति जमाल खां के हाथी को घेर लिया, जहाँ वह लड़ता. लड़ता वीर गति को प्राप्त हुआ। जयसिंह (मिर्जा राजा)
यह जयपुराधोश राजा मानसिंह का प्रपौत्र था। इसका जन्म ई० स० १६११ में हुआ था और ई० स० १६२१ में केवल १० वर्ष की अवस्था में राज्याभिषेक हुआ । ई० म० १६२८ में सम्राट शाहजहाँ ने इसका विशेष आदर किया। मुगल साम्राज्य की वृद्धि के लिये विविध स्थानों पर युद्धों में अपनी वीरता का परिचय दिया। शाहजहाँ ने खुर्रम के विरुद्ध परवेज के साथ मिर्जा राजा जयसिंह को सेनापति बना कर भेजा था । यह बात स्वाभिमानी महाराजा गजसिंह को बुरी लगी । अतः वह एक अोर खड़े होकर युद्ध का परिणाम देखने लगे। जयसिंह की सेना भीम सीसोदिया के सामने टिक नहीं सकी और भाग गई। उस समय गजसिंह ने उसका मुकाबला करके भीम सीसोदिया को मार डाला। ई० स० १६६७ ई० में बुरहानपुर में इसकी मृत्यु हुई । जसिंह (महाराणा)
इसका जन्म वि० सं० १७१० पौष वदि ११ को हुआ था। यह अपने पिता की मत्यू के बाद वि० सं० १७३७ में मेवाड़ का स्वामी हुआ। महाराणा राजसिंह की मत्यु के समय से मेवाड़ मुगल दल से घिरा हुआ था। महाराणा जयसिंह ने मारवाड़ के महाराजा अजीतसिंह से मिल कर भेद नोति का अनुसरण किया और शाहजादा मुअज्जम को अपनी ओर मिला लेना चाहा किन्तु सफलता नहीं मिली। इसके बाद इसने अकबर को अपनी ओर मिलाया। शाहजादा अकबर ने जब महाराणा से मिल कर अपने को बादशाह घोषित किया तब महाराणा ने मांडलगढ़ को पुनः अपने अधिकार में कर लिया। वि० सं० १७३८ में महाराणा ने बादशाह औरंगजेब से संधि कर ली। इसके बाद
औरंगजेब दक्षिण में चला गया और लगातार २५ वर्ष मरहठों से लड़ता रहा । इसी बीच महाराणा जयसिंह और उनके पुत्र अमरसिंह द्वितीय में गृह-कलह हो गया। उस समय महाराजा अजीतसिंह ने बीच-बचाव कर के पितापुत्र में परस्पर मेल करवा दिया। ठीक इसी समय महाराणा जयसिंह ने अपने छोटे भाई गजसिंह को पुत्री का विवाह मारवाड़ के महाराजा अजीतसिंह से
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[ ५६ ] कर दिया । महाराणा ने कई तालाब प्रादि बनवाये, जिनमें जयसमुद्र उल्लेखनीय है । ऐसे सुयोग्य राणा की मृत्यु वि० सं० १७५५ में हुई। जयसिंह (महाराजा सवाई जयसिंह)___ यह आमेर का राजा बड़ा यशस्वी और भाग्यशाली हुआ है। इसका जन्म वि० सं० १७४५ और राज्याभिषेक वि० सं० १७५६ में विष्णुसिंह के मरने के पश्चात काबुल में हुआ था। यह काबुल में राज्य-सिंहासन-संस्कार से सम्पन्न होने के पश्चात् भारत में आकर दक्षिण में बादशाह औरंगजेब के पास गया तो
औरंगजेब ने इसके दोनों हाथ पकड़ लिए और इससे कहा कि तू अब क्या कर सकता है ? उस समय यह बाल्यावस्था में ही था, फिर भी अपनी प्रत्युत्पन्न बुद्धि से बादशाह से कहा कि मैं अब सब कुछ करने में समर्थ हैं, क्योंकि मर्द जब स्त्रो का एक हाथ पाणिग्रहण के समय पकड़ता है तो वह उसे जोवन भर निभाता है और उसे बहुत से अधिकार देता है, और जहांपनाह ने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए हैं, इससे मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं अब अन्य राजामहाराजाओं से बढ़ कर हूं। इस पर बादशाह बहुत प्रसन्न हुया और इसको सवाई राजा की उपाधि से विभूषित किया।
इसी सवाई राजा जयसिंह की पुत्री से महाराजा अभयसिंह ने अपना विवाह मथुरा में जाकर किया था जिससे जोधपुर के सामन्त-गण · महाराजा से नाराज होकर जोधपुर की तरफ आ गये थे। जिस समय महाराजा अभयसिंह ने सर बुलन्द को परास्त करने का बीड़ा बादशाह के दरबार में उठाया था और बाद में जब मारवाड़ की तरफ रवाना हुए थे तो मारवाड़ आते समय ये जयपुर होकर सवाई जयसिंह से मिल कर आये थे। ___ महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने नाम से वि० सं० १७८४ में जयपुर नगर बसाया । हिन्दी का प्रसिद्ध कवि बिहारी इसी के दरबार का रत्न था। इस महाराजा का देहावसान खून के बिगड़ जाने के कारण वि० स० १८०० को हुग्रा। जहांगीर (बादशाह)
इसका जन्म वि० स० १६२६ तदनुसार ई० सन् १५६६ में आमेर के राजा भारमलजी की पुत्री के गर्भ से फतहपुर सोकरी में महात्मा शेखसलीम चिश्ती के मकान पर हुआ । कहते हैं कि बादशाह अकबर को यह पुत्र महात्मा शेखसलीम चिश्ती के आशीर्वाद से ही प्राप्त हुआ था, अतएव महात्मा शेखसलीम चिश्ती के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए शाहजादे का नाम
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[ ६० ] मुहम्मद सुल्तान सलीम रखा गया। इसकी शिक्षा बैराम खां के पुत्र अब्दुलरहीम खानखाना के द्वारा हुई।
यह न्यायप्रिय, उदार तथा वोर था परन्तु साथ ही इसमें क्रूरता, भीरुपन आदि विरोधी गुण भी थे । ई० स० १६०५ में यह ३६ वर्ष की अवस्था में नूरुद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी की उपाधि को धारण कर के आगरे में सिंहासनारूढ़ हुआ।
दक्षिण में जब मलिक अम्बर स्वतंत्र हो गया था तब बादशाह जहाँगीर ने जोधपुर के महाराजा गजसिंह को अम्बर के बढ़ते हुए प्रभाव को दबाने के लिए भेजा था। उसमें महाराजा गजसिंहजी विजयी हुए। मलिक अम्बर पराजित हुआ। इस विजय से प्रसन्न होकर बादशाह जहांगीर ने महाराजा गजसिंह को दल-थंभन की उपाधि से विभूषित किया । जहाँदारा शाह
ई० स० १७१२ में मुईजुद्दीन बहादुर शाह का सबसे बड़ा पुत्र जहाँदारा शाह के नाम से जुलफिकार खां व महाराजा अजीतसिंह की सहायता से गद्दी पर बैठा। यह बड़ा ही अयोग्य, आरामतलब, विलासी तथा व्यभिचारी शासक था। इसने जुलफिकार खां को अपना प्रधान बनाया। बादशाह लाहौर से दिल्ली पहुँच कर लाल कुंवर के प्रेम में अनुरुक्त हो गया। नूरजहाँ की तरह लालकुंवर ने भी शासन की बागडोर अपने हाथ में रखने का प्रयास किया। किन्तु उसी समय बंगाल के गवर्नर फर्रुखसियर ने महाराजा अजीतसिंह व सैयद बन्धुओं की सहायता से जहाँदाराशाह व जुलफिकार खां की हत्या करवा कर दिल्ली का शासन अपने हाथ में ले लिया और सिंहासन पर बैठ गया । जाफर खां
यह बादशाह मुहम्मद शाह की राज्यसभा का उमराव था। बादशाह ने इसे सर बुलन्द खां के विरुद्ध अहमदाबाद को सूबेदारी देने के लिए कहा, किन्तु इसने मंजूर नहीं किया। इसने महाराजा अभयसिंह से अनुनय-विनय कर के
अहमदाबाद की सूबेदारो का परवाना महाराजा के नाम लिखवा दिया। यह . लाहौर का सूबेदार भी रह चुका था। यह महाराजा अभयसिंह का विश्वासपात्र मित्र था, किन्तु महाराजा की वीरता व निर्भयता के कारण उससे सशंकित भी रहता था। जुलफगार (जुलफिकार खां)
यह बादशाह जहांदारा शाह का विश्वासपात्र व्यक्ति था। यह ईरानी था। बादशाह जहांदार शाह धन और सेना के अभाव में भी महाराजा अजीतसिंह
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[ ६१ ] जोधपुर तथा इस जूलफिकार खां को सहायता तथा सहानुभूति के कारण अजीमुश्शान को युद्ध में पराजित कर सका और बाद में अजीमुश्शान को मार कर दिल्ली के तख्त पर बैठा । इसने जुलफिकार खां को अपना मंत्री बनाया किन्तु कुछ दिनों के बाद ही सैयद भाइयों की सहायता से जहांदार शाह और जुलफिकार खां मारे गए और फर्रुखसियर बादशाह बना जो बंगाल का गवर्नर था। तरीन खां (तरियन खां)___ यह अफगान सरदार था और इसके साथ ही एक अफगान सरदार और । था जिसका नाम सैयद कयूम था। ये दोनों बड़े वीर तथा रण-कुशल थे। ये दोनों अपने अरबी घोड़ों पर सवार हो कर अहमदाबाद के युद्ध में लड़ रहे थे जहाँ वीर गति को प्राप्त हुए। जमालअली खां इनके शवों को शहर में ले आया। तरीन खां महाराजा अभयसिंह के विरुद्ध अहमदाबाद में फौज की एक टुकड़ी का सेनापति था। इसने अहमदाबाद के युद्ध में अपनी प्रबल वीरता का परिचय दिया था। तुरराबाज खां (तुराबाज बक्श)
यह बादशाह मुहम्मद शाह के बारहहजारी मनसबदारों में था और बड़ा वीर, उत्साही, नीतिज्ञ तथा कुशल व्यक्ति था। यह शाही सेना का सेनापति था और अनेक युद्धों में अपना रण-कौशल दिखा चुका था, फिर भी सर बुलन्द खां की शक्ति के सन्मुख यह भयभीत हो गया और अहमदाबाद पर आक्रमण करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया । दलेल खां
यह लाहौर का सूबेदार था तथा शाही दरबार के मीर उमरावों में यह मुख्य था । बादशाह ने मर बुलन्द खां के विरुद्ध अहमदाबाद पर जाने का प्रस्ताव इसके सम्मुख रखा पर इसने अस्वीकार कर दिया। दांनयाल (शाहजादा)
यहसम्राट अकबर का छोटा पुत्र था । शाहजादा मुराद की मृत्यु के बाद इसे दक्षिण का सूबेदार बना कर भेजा था और उसकी सहायता के लिये सवाई राजा सूरसिंह को साथ भेजा था, किन्तु थोड़े ही समय बाद इसकी मृत्यु हो गई। दारासाह (दारा शुकोह)
यह बादशाह शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। यह इलाहाबाद, पंजाब, मुल्तान आदि सूबों का शासक रह चुका था । अनेकों प्रांतों
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का शासन कर उसने पर्याप्त अनुभव प्राप्त कर लिया था और अधिकतर शाहजहाँ के पास ही रहता था । ई० स० १६५८ के उत्तराधिकार युद्ध में पराजित होकर भागा किन्तु श्रौरंगजेब के सहयोगियों द्वारा पकड़ा जाकर कैद कर दिया गया और अन्त में उसकी हत्या कर दी गई ।
दुरगादास ( राठौड़ वीर दुर्गादास ) -
राठौड़ वंश के इतिहास में वीर दुर्गादास का नाम अमर रहेगा । इस वोर ने मुगल सम्राट औरंगजेब के द्वारा मारवाड़ का राज्य खालसे किये जाने पर औरंगजेब से कई युद्ध कर मारवाड़ का राज्य सुरक्षित रख कर अपनी असामान्य वीरता और रण चातुरी के अतिरिक्त प्रादर्श स्वामिभक्ति और देशप्रेम का परिचय दिया। इसका पिता ग्रासकरण महाराजा जसवन्तसिंह की नौकरी करता था । इसकी माता से प्रेम न होने के कारण दोनों मां-बेटे श्रासकरण से पृथक् लुणावा गांव में रहते थे । कुछ दिन बाद महाराजा ने दुर्गादास को भी अपनी सेवा में रख लिया । यह जसवन्तसिंह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र जीतसिंह को शाही सेना के घेरे से निकाल कर मारवाड़ ले आया और समय ग्राने पर अजीतसिंह को मारवाड़ राज्य का अधिकारी बनाया ।
वीर दुर्गादास की मृत्यु उज्जैन में क्षिप्रा नदी के किनारे पर हुई । दौलत खां
यह नागौर का शासक ( नबाब ) था । राव गाँगा के चाचा शेखा ने इसकी ( खाँजादा दौलत खां ) सहायता से वि. सं. १५८५ ( ई० सन् १५२६) में जोधपुर पर चढ़ाई की । इसका समाचार मिलते ही गांगा ने सेवकी (गांव) तक आगे बढ़ कर उसका सामना किया। युद्ध होने पर 'शेखा' मारा गया और दौलत खां भाग कर नागौर चला गया ।
द्वारकादास दधवाड़ियौ
प्रसिद्ध कवि माधोदास दधवाड़िया का पुत्र तथा जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह का कृपा पात्र और राज्य में प्रतिष्ठित मुसाहिब भी था । इसने पिता की भांति डिंगल के श्रेष्ठ कवियों में स्थान प्राप्त किया था। इसने महाराजा श्रजीतसिंह के जीवनकाल में ही वि. सं. १७७२ में 'महाराजा अजीतसिंह री दवावेत' नामक ग्रंथ की रचना की । इससे प्रसन्न होकर महाराजा ने इसको जैतारण तहसील का बासनी गांव प्रदान किया। इसकी अन्य फुटकर रचनाएँ भी प्राप्त होती हैं । यह जैसा कवि था वैसा ही वीर भी । यह अहमदाबाद के युद्ध में महाराजा अभयसिंह के साथ था और वहां युद्ध में बड़ी बहादुरी के साथ लड़ा और घायल हो कर बच गया ।
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[ ६३ ] नाहर खान
यह बादशाह मुहम्मद शाह के विश्वासपात्र आदमियों में से था। फर्रुखसियर के समय में यह साधारण व्यक्ति था । किन्तु परिश्रम के बल से यह दीवानगी के पद तक पहुँच गया था। ई. स. १७२१ में यह सर्व प्रथम सांभर का फौजदार बना कर भेजा गया था। इसके बाद ई. स. १७२२ के अन्त में सांभर को फौजदारी के साथ ही अजमेर का दीवान नियुक्त कर दिया गया। भंडारी खींवसी इसको साथ लेकर अजमेर गया । नाहर खां के साथ इसका भाई रुहेल्ला खां भी था। इन्होंने अजमेर के निकट पहुँच कर राठौड़ों के डेरों के निकट ही अपना डेरा दिया। ये राठौड़ों को अपना मित्र समझते थे। दूसरे दिन ही राठौड़ों ने आक्रमण कर दोनों भाइयों को मार डाला और उनका बहुत-सा सामान लूट लिया। निकोसियर___ यह औरंगजेब का पौत्र और अकबर का पुत्र था और आगरे के किले में कैद था। रफीउद्दौला की मृत्यु के बाद महाराजा अजीतसिंह और सैयद भाइयों की सहायता से दिल्ली में मुहम्मद शाह बादशाह बना दिया गया। उस समय आगरे में सेन नामक नागर ब्राह्मण ने निकोसियर को कैद से निकाल कर महाराजा जयसिंह, राजा भीम हाडा, चूड़मन जाट, छबीले राम नागर आदि की सहायता से ई० सन् १७१६ में आगरे में बादशाह घोषित कर दिया और उसके नाम का सिक्का जारी किया। इसके कुछ दिन बाद हुसेनअली खां ने इसके विरुद्ध आगरे की तरफ प्रस्थान किया। वहाँ पहुँच कर उसने घेरा डाल कर मोर्चे लगाये और कुछ ही दिनों के बाद निकोसियर को पकड़ कर कैद कर लिया गया। निजामुल-मुल्क
यह बादशाह मुहम्मद शाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में प्रमुख था। ई० सन् १७२० में बालापुर के निकट होने वाले युद्ध में इसने अपनी वीरता का अच्छा परिचय दिया था, इसीसे इसको निजामुलमुल्क की उपाधि मिली। उस समय सैयद भाइयों का पतन प्रारम्भ हो गया था और उनके स्थान पर निजामुलमुल्क की धाक स्थापित हो गयी थी। वह दक्षिण के ६ सूबों का शासक बना दिया गया । वह बड़ा ही चालाक तथा उच्चकोटि का कूटनीतिज्ञ था । यह मरहठों में फूट उत्पन्न करना चाहता था। ऐसे व्यक्ति की चालों को निष्फल बनाने की क्षमता बाजीराव पेशवा में ही थी। जब महीपतराव को चौथ वसूल करने से मना कर दिया तब बाजीराव ने नये मुगल सम्राट से चौथ
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वसूल करने का अधिकार प्राप्त कर लिया। इस प्रकार निजाम की सारी चाल विफल हो गई। बाद में मराठा सरदारों को शाहू के विरुद्ध भड़काना शुरू किया पर इसमें भी निराश होना पड़ा। इसने धीरे-धीरे दक्षिण में अपना राज्य स्थापित कर लिया। पिल (पिलाजी)__यह मरहठों की सेना का सेनापति था और खांडेराव दाभाड़े का प्रतिनिधि था। यह सोनगढ़ का शासक और भीलों एवं कोलियों का मददगार था। इसने बड़ौदा
और डमोई पर भी अपना अधिकार कर लिया था। खांडेराव की विधवा पत्नी उमाबाई ने चौथ उगाहने के लिए पीलाजी को नियुक्त किया । यह बड़ी भारी सेना लेकर चौथ उगाहने के लिए डाकोर नामक स्थान में पहुँचा। यह सुन कर महाराजा अभयसिंह भी सेना के साथ उससे लड़ने के लिए चला किन्तु प्रकट, रूप से छल-कपट करने में प्रवीण व्यक्तियों को सन्देश देने के बहाने पीलाजी के पास भेजा और अवसर पाकर मारने की प्राज्ञा दी। इसी के अनुसार ईंदा लखधीर ने डाकोर पहुँच कर पीलाजी को धोखे से मार डाला। फरखसेर (फर्रुखसियर)
बहादुरशाह के बाद उसका पुत्र मुईजुद्दीन जहांदारशाह के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठा । इसके केवल ग्यारह माह के निन्दनीय शासन के बाद फर्रुखसियर, जो बहादुरशाह के पुत्रों में मुईजुद्दीन जहांदारशाह के छोटे भाई अजोमुश्शान का पुत्र था तथा बहादुरशाह के शासनकाल में बंगाल का गवर्नर था, सैयद बन्धुत्रों की मदद से जहांदारशाह की हत्या करवा कर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। यह भी बड़ा अयोग्य निकला। इसमें न बुद्धि थी न चरित्र-बल । यह बड़ा भीरु तथा दुर्बल शासक था । दृढ़ संकल्प का इसमें सर्वथा अभाव था। यह सैयद बन्धुओं के परामर्श पर कार्य करता था और इन्हीं के हाथ की कठपुतली हुआ था। राजपूतों, सिखों, मरहठों, जाटों और मुसलमानों के साथ भी इसका सम्बन्ध ठीक नहीं था। यहाँ तक कि कालान्तर में सैयद बन्धुत्रों से भी इसका संबंध खराब हो गया और वे एक दूसरे के शत्रु बन गये । फलस्वरूप मरहठों की सेना के साथ सैयद हुसेनअली का दिल्ली पर आक्रमण हुआ और फर्रुखसियर कैद कर लिया गया। ई० सं० १७१६ में उसकी हत्या करवा दी गई। इस प्रकार फर्रुखसियर की जीवनलीला समाप्त हुई। बखतसिंह (महाराजा)
यह महाराजा अजीतसिंह का पुत्र और महाराजा अभयसिंह का छोटा भाई था। इसका जन्म वि० सं० १७६३ की भादों वदि ७ को हुआ था। वि० सं०
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१७८२ में महाराजा अभयसिंह ने इसको 'राजाधिराज' की पदवी देकर नागौर का स्वामी बना दिया। इसने मारवाड़ में उत्पात करने वाले प्रानन्दसिंह, रायसिंह और किशोरसिंह आदि का दमन किया था। अपने भ्राता अभयसिंह को गुजरात अहमदाबाद की सूबेदारी मिलने पर सर बुलन्द खाँ के विरुद्ध २० हजार की सेना के साथ अहमदाबाद के युद्ध में सम्मिलित हुआ और युद्ध में अतुल शौर्य का परिचय दिया। यह बड़ौदा युद्ध में महाराजा अभयसिंह के साथ था । इसके अलावा बीकानेर, मेड़ता, जयपुर आदि के अनेक युद्धों में भाग लेकर इसने अपनी वीरता का परिचय दिया था। वि० सं० १८०६ में अपने भ्राता महाराज अभयसिंह की मृत्यु के बाद वि० सं० १८०८ में अपने भतीजे महाराजा
रामसिंह को हरा कर जोधपुर की गद्दी पर अधिकार कर लिया। । बलू (वीरवर बलू चांपावत)
यह पाली ठाकुर गोपालदास का पुत्र था। इसके ८ पुत्र थे। भिन्न-भिन्न स्थानों पर पाठों भाई जाति, मान-मर्यादा, स्वधर्म और स्वदेश-रक्षा के लिए युद्धों में काम आये। राव अमरसिंह को देश-निकाला होने पर यह उनके साथ रहा । बाद में नागौर और नागौर से बीकानेरनरेश कर्णसिंह के पास आ गया। यहाँ भी दुष्ट पुरुषों के कारण टिक नहीं सका और उदयपुर चला गया। वहाँ से यह दिल्ली आ गया। बादशाह ने इसका खूब आदर किया और इसको पांच सौ घोड़ों का नायक बना दिया और वहां सुख से रहने लगा। कुछ समय बाद आगरे में राव अमरसिंह के शव को लाने के लिए अपने ५०० सवारों को लेकर पहुँचा और अमरसिंह का शव लाकर हाड़ी रानी को दिया व उसे सती होने में सहायता दी। इसी युद्ध में यह काम पाया। बुधसिंह (राव बुसिंह)
यह बंदी के राव अनिरुद्धसिंह का ज्येष्ठ पुत्र था। लाहौर में अनिरुद्धसिंह की मृत्यु हो जाने के बाद बुधसिंह को बूंदी का राज्य सिंहासन प्राप्त हुप्रा । बुधसिंह कुछ दिन बादशाह औरंगजेब के बीमार पड़ने पर औरंगाबाद चला गया। बादशाह औरंगजेब की इच्छानुसार इसने बहादुरशाह को बादशाह बनाने का विचार कर के उसका पक्ष लिया। राव बुधसिंह शाह आलम की प्रधान सेना का नेता था। धौलपुर के युद्ध में इसने अतुलनीय साहस और शूरवीरता का परिचय दिया। उसी के फलस्वरूप बादशाह ने इसको रावराजा की पदवी के साथ अपना परम मित्र बना लिया। अन्त तक यह मित्रता अचल रही। बादशाह बहादुर शाह की मृत्यु के बाद आमेर का महाराजा जयसिंह, जोधपुर का
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महाराजा अजीतसिंह और सैयद बन्धुनों की चाल से बुधसिंह को गद्दी से उतारने का प्रयत्न रहा और वे सफल हुए ।
विनोद के अनुसार बुधसिंह का वि० सं० १७६६ वैशाख कृष्णा तृतिया को बेगूं से तीन कोस की दूरी पर बाघपुरा में देहावसान हो गया ।
बुरहानुलमुल्क
यह बादशाह मुहम्मद शाह के खास व्यक्तियों में था और शाही दरबार का खास दरोगा था । यह बड़ा वीर, नीति- कुशल व्यक्ति था । वीरम गांव (झालावाड़) के युद्ध में यह शाही सेना का प्रधान सेनापति था । वीरम गांव का परगना खालसा होने पर बुरहानुल-मुल्क की सिफारिश से ही यह परगना इसके प्रीति-भाजन बहराम खाँ के नाम कर दिया गया । यह अनेकों युद्धों में भाग ले चुका था ।
भाऊ कूं पावत
यह कान्हसिंह ( किसनसिंह) का पुत्र और गजसिंहपुरा के ठाकुर मुकनसिंह का छोटा भाई था । कूंपावत भावसिंह राव अमरसिंह राठौड़ के विश्वासपात्र सेवकों में था । राव अमरसिंह की मृत्यु के बाद इसके सैनिकों ने बादशाही सेना से मुकाबला किया, जिसमें मुख्य तीन थे—
(१) कूंपावत राठौड़ भावसिंह । (२) चांपावत बलू राठौड़ । ( ३) व्यास गिरधर पोहकरणा ब्राह्मण जिनमें से बलू राठौड़ और व्यास गिरधर तो काम आ गये और कूंपावत भावसिंह घायल होकर बच गया । अमरसिंह का सारा सामान इसके पास रहता था । इसने सारा सामान राव अमरसिंह के छोटे बेटे ईसरसिंह के पास पहुँचा दिया । इसी भावसिंह का पुत्र इन्द्रभाण वि० सं० १७३७ में अजमेर से ७ मील दूर पुष्कर में तहवरखांन की सेना के साथ राठौड़ों के युद्ध में वीर गति को प्राप्त हुआ ।
भीम सीसोदिया
यह महाराणा प्रताप का पोता था । इसके पिता राणा अमरसिंह के हाथ से उदयपुर निकल जाने के कारण चावंड के प्रभेद्य पहाड़ों में परिवार सहित यह विपत्ति के दिन बिता रहा था। एक दिन राणा ने शत्रु को हाथ बताने की बात भीम से कही । सुनते ही आज्ञाकारी भीम उसी दिन अपने दो हजार सवारों को लेकर ठीक अर्द्ध रात्रि के समय शत्रु सेना को चीरता हुआ सदर ड्योढी पर जा पहुँचा और ऐसी तलवार बजाई कि सैकड़ों तुर्कों को घास की तरह काट डाला । जहाँ शाही थाने लगते वहीं पर संग्राम करता । जब राणा की
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[ ६७ ] बादशाह से संधि हो गई तब भीम शाही दरबार में रहने लगा। जहाँगीर ने खुश होकर इसको टोडे का परगना जागीर में देकर 'राजा' की उपाधि दी। भीम शाहजादा खुर्रम के साथ रहने लगा। खुर्रम से बादशाह के नाराज हो जाने पर भीम खुर्रम की सेना के हरावल में रहता था। वि० सं० १६८१ में हाजीपुर में खुर्रम और परवेज के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इसमें भीम शत्रु दल को चीरता हुआ परवेज के हाथी तक पहुँच गया। परवेज की सेना में भगदड़-सी मच गई, किन्तु उसी समय जोधपुर नरेश महाराजा गजसिंह से इसका युद्ध हुआ और यह वीर गति को प्राप्त हुआ। महासिंह चांपावत (माहवसिंह)____ यह पोकरण का ठाकुर था। अहमदाबाद के युद्ध के समय वि० सं० १७८७ आश्विन सुदि ७ को महाराजा अभयसिंह ने अहमदाबाद तथा भद्र के किले पर पाँच मोर्चे लगाए। उनमें से एक मोर्चे पर अभयकरण (कर्णोत) चांपावत महासिंह (पोकरण का) तथा भागीरथदास आदि थे । इसने इस मोर्चे पर महान् वीरता का परिचय दिया और शत्रुसेना के छक्के छुड़ा दिये । यह महान् वीर, साहसी और रण-कुशल व्यक्ति था । मुकनदान दधवाडियो
'सूरजप्रकास' के रचयिता के कथनानुसार यह केसोदास दधवाड़िया का पुत्र था। यह महाराजा अभयसिंहजी का कृपा-पात्र था। यह कवि भी था और महान् वीर भी। सर बुलन्द खां के साथ जो अहमदाबाद का युद्ध हुआ उसमें मुकनदान महाराजा अभयसिंह के साथ था। इसने उस युद्ध में अपनी महान वीरता का परिचय दिया जिससे प्रसन्न होकर महाराजा अभयसिंहजी ने इसको बिलाड़ा तहसील का कूपड़ावास गांव दिया जो अब भी इसके वंशजों के अधिकार में है। मुजफर खां
यह पराक्रमी, नीतिज्ञ और रणकुशल व्यक्ति था। मुजफ्फर खाँ अनेकों बार युद्धों में अपनी वीरता का परिचय दे चुका था। यह बारह हजारी मनसबदार था। बादशाह ने इसके सामने सर बुलन्द के विरुद्ध जाने का प्रस्ताव रक्खा किन्तु इसने अस्वीकार कर दिया। मुजफ्फर खाँ अजमेर का शासक भी रह चुका था। यह पहले तो जोधपुर के महाराजा अभयसिंह से नाराज सा रहता था किन्तु फिर महाराजा की वीरता व रण-कुशलता के कारण मित्र बन गया था।
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[ ६८ ] मुजफ्फरअली खां
यह बादशाह मुहम्मदशाह के योग्य सेनापतियों में था । जब महाराजा अजीतसिंह से अजमेर का सूबा हटाया गया तब सर्व प्रथम यही सूबेदार बनाया गया। उसने अजमेर आने का विचार किया किन्तु धन की कमी के कारण नहीं आ सका । इसको छ: लाख रुपये मिलने की आज्ञा हुई किन्तु उस समय दो लाख से अधिक नहीं मिल सके । पर इसने उतने ही में २०००० सैनिक एकत्रित कर लिये। इसी में रुपया समाप्त हो गया। महाराजा अजीतसिंह ने अजमेर खाली नहीं किया और अपने ज्येष्ठ पुत्र अभयसिंह को मुजफ्फरअली खां का सामना करने के लिए भेजा। इसी समय ई० स० १७२१ में दिल्ली से यह आज्ञा पहुँची कि यह मनोहरपुर से आगे न बढ़े। यह यहाँ तीन मास पड़ा रहा । रुपया न मिलने से सिपाही भाग खड़े हुए। मुजफ्फरअली खां प्रांबेर पहुँच कर सारे शाही फरमान व खिलअत आदि लौटा कर फकीर हो गया। मुरशिदकुली खां
यह बड़ा वोर, साहसी तथा नीति-कुशल व्यक्ति था। यह शाही सेना का सेनापति तथा लाहौर का सूबेदार रह चुका था। बादशाह मुहम्मदशाह ने इसके सामने सर बुलन्द के विरुद्ध अहमदाबाद पर आक्रमण करने का प्रस्ताव रक्खा, किन्तु इसकी हिम्मत नहीं हुई । मुराद (शाहजादा)
यह शाहजहाँ का सबसे छोटा पुत्र था। इसका जन्म ई० स० १६२४ में हुआ । यह गुजरात तथा मालवे का सूबेदार रहा । यह बड़ा वीर तथा साहसी था। इसमें सिंहासन प्राप्त करने की इच्छा तो थी किन्तु उसको पूर्ण करने के लिये कूटनीतिज्ञता तथा सतर्कता न थी। इसने भी उत्तराधिकार के लिये प्रयत्न प्रारम्भ किया और ई० स० १६५७ में अहमदाबाद में अपने आपको सम्राट घोषित कर दिया। उस समय औरंगजेब बड़ी सावधानी तथा सतर्कता से कार्य कर रहा था। उसने मुराद के पास एक पत्र भेज कर उसको अपनी ओर मिला लिया । उसने लिखा कि पंजाब, अफगानिस्तान, काश्मीर तथा सिन्ध के प्रान्त तुम्हें मिलेंगे और शेष पर औरंगजेब शासन करेगा । धरमत के युद्ध ने मुराद और औरंगजेब की शक्ति को दृढ़ बना दिया। औरंगजेब ने मुराद को बादशाह बनाने का लालच दिया। सामगढ़ के युद्ध के उपरान्त मुराद बादशाह घोषित कर दिया गया। किन्तु ई० सन् १६६० में मुराद को एक दावत में शराब पिला कर कैद कर लिया और ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया जहां उसका वध करवा दिया ।
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[ ६६ ] मुहम्मदशाह (बादशाह)
इसने १७१६ से १७४८ ई० तक शासन का कार्य किया। यह सैयद भाइयों और महाराजा अजीतसिंह की सहायता से गद्दी पर बैठा । इसका पूर्व का नाम रोशन अख्तर था । इसे मुगलसाम्राज्य का विनाश अपनी प्रांखों से देखना पड़ा। सिंहासन पर बैटते ही इसने षड़यंत्र रच कर सैयद भाइयों का वध करवा दिया। निजामुलमुल्क जैसे योग्य दीवान को पद से हटा कर अयोग्य व्यक्तियों को अपना दीवान बनाया। यह अनुभवशून्य, विलासप्रिय तथा निकम्मा शासक था। यह अपने योग्य तथा अनुभवी सेवकों के परामर्श की उपेक्षा कर चाटुकारों तथा चापलूसों की बातों का विश्वास करता था । इसके समय में शासन का कार्य इस प्रकार चलने लगा मानो यह बच्चों का खेल हो । साधारण जनता भूखों मरने लगी। इसके कुशासन से सूबों के गवर्नर अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने लगे। मुगलसाम्राज्य पर चारों ओर से विपत्तियों के बादल उमड़ने लगे। विदेशी आक्रमणों की आँधियाँ चलने लगीं। मुगलसाम्राज्य का दीपक बुझने लगा। ई० स० १७४८ में मुहम्मदशाह की मृत्यु हो गई । मोकल (महाराणा)___ यह वि० सं० १४५४ में गद्दी पर बैठाया गया। कुछ समय तक राज्य का प्रबन्ध चूंडा करता रहा किन्तु चुंडा के मेवाड़ से चले जाने पर राज्य का समस्त कार्य राव रिड़मल (रणमल्ल) राठौड़ को सौंप दिया गया। रावजी ने वहाँ राठौड़ों को सभी उच्च पद प्रदान कर दिये । बालिग होने पर राज्य का कार्य मोकल ने अपने हाथ में लिया और जहाजपुर (मेवाड़) के पास फीरोजशाह से युद्ध हुआ जिसमें फिरोजशाह पराजित होकर भागना पड़ा : यह महाराणा वि० सं० १४९० में महाराणा लाखा के पासवानिये पुत्रों चाचा और मेरा के द्वारा धोखे से मारा गया । मोहकसिंह___ यह नागौर के राव इन्द्रसिंह का पुत्र था। यह बादशाह फर्रुखसियर के पास उसके सिंहासनारूढ होने पर दिल्ली गया और महाराजा अजीतसिंह के विरुद्ध उसको भड़काया। इसने जोधपुर का राज्य प्राप्त करने के लिये ही यह प्रयत्न किया था । इसकी सूचना दिल्ली रहने वाले जोधपुर के वकीलों ने महाराजा को दी । महाराजा ने अपने विश्वासपात्र सामन्तों को भेष बदलवा कर मोहकमसिंह को मारने के लिये दिल्ली भेजा । वे दिल्ली पहुंचे और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे। एक दिन सायंकाल को मोहकमसिंह किसी नवाब के यहां
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[ ७० ] से मातमपुर्सी कर के लौट रहा था तो रास्ते में ही उसे मार डाला। यह घटना वि० सं० १७७० भाद्रपद सुदि ५ की है । मोहम्मद खां बंगस
यह बादशाह मुहम्मदशाह के विश्वासपात्र सेवकों में था। यह मालवा का गवर्नर था । यह योग्य व्यक्ति था और कुशल राजनीतिज्ञ था। निजाम के लिखने के अनुसार यह नरबदा के किनारे अपने सेनापति के साथ मरहठों का मुकाबिला करने के लिए अपनी सेना सहित प्रा डटा । जब महाराजा अजीतसिंह ने आमेर पर अधिकार कर लिया और शाही शान-शौकत से रहने लगा तो बादशाह मुहम्मदशाह ने इरादतमंद खां को शाही फौज देकर महाराजा का दमन करने भेजा। उसके साथ कई अमीरों को भी भेजा जिसमें मोहम्मद खां बंगस भी शामिल था। इसने अहमदाबाद के युद्ध में भी अपनी सेना सहित महाराजा अभयसिंह के साथ भाग लिया था। रघुनाथसिंह (भंडारी)___ यह महाराजा अजीतसिंह के शासनकाल में एक महाशक्तिशाली पुरुष हो गया है । यह दीवानगी के उच्च पद पर प्रतिष्ठित था । इसमें शासन-कुशलता और रण-चातुर्य का अद्भुत संयोग था। इसने गुजरात में महाराजा की ओर से अनेक युद्धों में भाग लिया था और बड़ी कुशलता से सेना का संचालन किया था । महाराजा अजीतसिंह ने इसको सेवाओं से प्रसन्न होकर इसे कई प्रमाणपत्र प्रदान किये थे। इसके अतिरिक्त इसने शाही दरबार में महाराजा की ओर से बड़े-बड़े कार्य किये । महाराजा अजीतसिंह को इसकी योग्यता पर बड़ा विश्वास था । इसने महाराजा की अनुपस्थिति में कुछ समय तक मारवाड़ का शासन भी किया था जो निम्न दोहे से प्रकट होता है
करोड़ा द्रव्य लुटायौ, हौदा ऊपर हाथ ।
अजौ दिली रौ पातसा, राजा तूं रघुनाथ ॥ रतनसी भण्डारी
यह महाराजा अभयसिंह के विश्वासपात्र सेनानायकों में था । यह बड़ा वीर, राजनीतिज्ञ, व्यवहारकुशल और कर्तव्यपरायण सेनापति था । मारवाड़ राज्य के हित के लिये इसने बड़े-बड़े कार्य किये । वि० सं० १७६३ में महाराजा अभयसिंह रतनसी भंडारी को गुजरात की गवर्नरी का कार्यभार सौंप कर दिल्ली चले गये थे । तब इसने बड़ी योग्यता के साथ इस कार्य को किया । इसको अनेक युद्ध करने पड़े थे । देश में चारों ओर अशान्ति छाई हुई थी।
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[ ७१ ] मरहठों का जोर दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था। ऐसी विकट परिस्थिति में सफलता प्राप्त करना रतनसिंह जैसे चतुर और वीर योद्धा ही का काम था। रफीउद्दाराजात
बादशाह फर्रुखसियर की हत्या करवा देने के बाद महाराजा अजीतसिंह और सैयद भाइयों की सहायता से इसको दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया गया। यह शाही खानदान का साधारण व्यक्ति था और सैयद भाइयों के हाथ की कठपुतली बना हुआ था। सिंहासनारूढ़ होने से पूर्व ही राजयक्ष्मा रोग से पीड़ित था । ई० स० १७१६ में केवल दो मास शासन करने के बाद ही यह गद्दी से उतार दिया गया और इसके एक सप्ताह बाद ही इसका देहान्त हो गया। रफी-उद-दौला
यह रफी-उद-दाराजात का बड़ा भाई था। उसको सिंहासन से उतार देंने के बाद सैयद भाइयों और महाराजा अजीतसिंह की सलाह से रफी-उद-दौला को शाहजहाँ द्वितीय के नाम से सिंहासन पर बैठा दिया गया। यह नाम मात्र का ही बादशाह था। राज्य की वास्तविक सत्ता सैयद भाइयों के हाथ में थी। सिंहासन पर बैठने के कुछ ही दिन बाद पेचिश की बीमारी से इसका भी परलोकवास हो गया परन्तु सैयद भाइयों की मिलावट से सम्राट की मृत्यु को नौ दिनों तक गुप्त रखा गया। राजसिंह बारहठ
यह रूपावास का जागीरदार था। यह महाराजा गजसिंह की सेवा में रहता था। वि० सं० १६७४ में जिस समय जालोर का किला बिहारी पठानों से फतह किया था उस समय यह भी साथ था। इसकी वीरता से प्रसन्न होकर महाराजा ने इसको गांव रूपावास प्रदान किया था। इसके बाद नागौर के राव अमरसिंह ने भी एक गांव, जिसका नाम बाइली था, अपनी जागीर नागौर में से दिया था परन्तु यह गांव थोड़े दिन तक ही रहा । बारहठ राजसिंह के चार बेटे थे- (१) नाराजी (२) भीमसिंह (३) मुकंददास और (४) विजराम । रायसिंह___ यह जोधपुर नरेश राव चन्द्रसेन का ज्येष्ठ पुत्र था। इसका जन्म वि० सं० १६१४ की भादों सुदि १३ (ई० स० १५५७ की ६ सितम्बर) को हुआ था। पिता की मृत्यु के समय यह काबुल में था । इसके अनुज उग्रसेन और आसकरण चौसर खेलते हुए मारे गए, तब सरदारों ने इसको पैतृक राज्य
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[ ७२ ]
सम्भालने के लिए लिखा । राव रायसिंह बादशाह की आज्ञा पाकर वि० सं० १६३६ ( ई० स० १५८२ ) सोजत पहुँच कर गद्दी पर बैठा। साल भर बाद वि० सं० १६४० में बादशाह अकबर की प्राज्ञा से सिरोही के राव सुरतान पर आक्रमण कर दिया । सुरतान भाग कर श्राबू के पहाड़ों में चला गया, परन्तु कुछ दिन के बाद शाही सेना के गुजरात की प्रोर चले जाने पर राव सुरतान ने बची हुई सेना पर रात को अचानक आक्रमण कर दिया और निःशस्त्र राव रायसिंह चारों ओर से घिर जाने के कारण युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुआ । इसका बदला सवाई राजा सूरसिंह ने गुजरात की ओर जाते हुए सिरोही के गांवों को लूट कर और सुरतान से बहुत-सा रुपया वसूल कर के लिया ।
रुस्तम अली खां -
यह बादशाह मुहम्मदशाह का छोटा भाई था और बड़ा ही वीर और नीतिज्ञ था । यह सूरत का शासक तथा बड़ौदा व पीपलाद का फौजदार था । हमीद खां के बागी होने पर उसको काबू में लाने के लिए सेना तैयार करने का बादशाह ने हुक्म दिया । हुवम पाते ही रुस्तम अली खां ने १५००० घुड़ सवार और २०००० अन्य सेना तैयार की। उसी समय मरहठों का हमला गुजरात पर हो गया । पिलाजी हमीद खां से मिल गया । किन्तु रुस्तमाली खां ने ४००० पैदल सेना के साथ आक्रमण कर दिया। हमीद खां बुरी तरह से हारा। उसकी सारी जायदाद रुस्तमअली खां ने अपने कब्जे में करली । शान्ति स्थापित करने व शहर की देखभाल हेतु एक टुकड़ी मुहम्मद बाकिर के आधिपत्य में लगा दी । किन्तु मरहठों की मदद से हमीद खां ने पुनः रुस्तमअली खां को घेर लिया । यहीं बसू गांव के पास लड़ता हुआ यह मारा गया । रुस्तम अली खां का सिर अहमदाबाद ले जाया गया और धड़ बसु गांव में ही जला दिया गया । रुस्तम जंग
यह दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के उच्चकोटि के उमरावों में से एक था । जिस समय महाराजा अभयसिंह को अहमदाबाद की सूबेदारी मिली थी उस समय यह शाही अफसर था और वहीं बादशाह की सभा में मौजूद था । इससे भी बादशाह ने सर बुलन्द के विरुद्ध अहमदाबाद जाने का अनुरोध किया था पर इसकी हिम्मत नहीं हुई और इसने उस बात को टाल दिया । तब महाराजा अभयसिंह ने सर बुलन्द को बादशाह के चरणों में झुकाने का प्रण कर वहां से प्रस्थान किया ।
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[ ७३ ] रोशनउद्दौला
यह एक शाही अफसर था। कारणवश महाराजा अभयसिंह पर इसकी नाराजगी हो गई थी, जिससे उसने महाराजा को मारने का निश्चय किया, किन्तु बादशाह ने महाराजा को बुला कर समझा दिया था। यह वीर, बुद्धिमान, चतुर और राजनीतिज्ञ था। अहमदाबाद की सूबेदारी के समय हैदरकुली खाँ के मनमाने आचरण से बादशाह नाराज हो गया था। उस समय रोशनउद्दौला ने बादशाह को समझा कर हैदरकुली खाँ को माफी दिलवा दी और उसे अजमेर की सूबेदारी तथा सांभर की फौजदारी दिलवा दी। रोहिल्ला खां
यह अजमेर के नये सूबेदार नाहर खां का भाई था। नाहर खां बादशाह मुहम्मदशाह की सेना की एक टुकड़ी का फौजदार था। यह महाराजा अजीतसिंह के विरुद्ध फौज लेकर अजमेर पर पाया था। किन्तु महाराजा के दीवान भंडारी खींवसी की चतुराई से इसने राठौड़ों के डेरों के पास ही अपना डेरा लगाया जहाँ अचानक राठौड़ों ने आक्रमण कर इसे ई० स० १७२३ के जनवरी मास में नाहर खां के साथ मार डाला । विजयराज (भण्डारी)- यह भण्डारी खेतसी का पुत्र था। यह उन ओसवाल मुत्सद्दियों में विशेष स्थान रखता है जिन्होंने जोधपुर राज्य के इतिहास को अपनी सेवाओं द्वारा गौरवान्वित किया। पहले-पहल यह जोधपुर नरेश महाराजा अजीतसिंह द्वारा मेड़ते का हाकिम नियुक्त किया गया। दिल्ली के उत्तराधिकारयुद्ध में इसने महाराजा की आज्ञा से जोधपुर से ससैन्य जाकर शाहजादे फर्रुखसियर का पक्ष लिया था।
बादशाह मुहम्मदशाह ने महाराजा अभयसिंह को गुजरात का सूबेदार बना कर सर बुलन्द का दमन करने के लिए भेजा । महाराजा अपने दल-बल सहित जोधपुर से रवाना हुआ। उस समय महाराजा की फौज के तीन भाग किए हुए थे। एक महाराजा अभयसिंह के अधिकार में, दूसरा महाराजा के भाई राजाधिराज बखतसिंहजी के अधिकार में और तीसरा भण्डारी विजयराज के अधिकार में था। इसने अहमदाबाद के युद्ध में अपनी बुद्धि और रणकुशलता का अच्छा परिचय दिया। यह हमेशा महाराजा का कृपा-पात्र रहा । विजयसिंह
यह अांबेर के महाराजा विष्णुसिंह का द्वितीय पुत्र और भामेरपति सवाई
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७४ ]
जयसिंह का सौतेला भाई था। महाराजा सवाई जयसिंह ने अत्यन्त उपजाऊ बसवा का प्रदेश अपने भाई विजयसिंह को दे दिया था। किन्तु सौतिया डाह के कारण विजयसिंह की माता अपने पुत्र को राजा बनाना चाहती थी, अतः उसने बादशाह के प्रधान मंत्री कमरुद्दीन खाँ को अपनी ओर मिला लिया । इसने बादशाह को समझा-बुझा कर आमेर की सनद विजयसिंह के नाम लिखवा दी। परन्तु खान दौरान के द्वारा यह सूचना जयसिंह को मिल गई। इस पर सवाई जयसिंह ने अपनी चतुराई से विजयसिंह को आमेर के किले में बुला कर कैद कर लिया। विष्णुसिंह (महाराजा)
राजा रामसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पौत्र विष्णुसिंह आमेर की गद्दी पर बैठा। इसके पिता कृष्णसिंह की मृत्यु दक्षिण के युद्ध में पहले ही हो चुकी थी। इसका जन्म वि० सं० १७२८ में और राज्याभिषेक वि० सं० १७४६ में हुआ था। उस समय यह अपने दादा रामसिंह के साथ काबुल में था। वहाँ से यह बादशाह को आज्ञा पर अपने देश को लौट आया। कुछ दिन यहाँ रहने के बाद यह पुनः वि० सं० १७५५ को शाहजादा मुअज्जम के साथ काबुल गया। वहाँ पहुँचने पर पठानों के साथ भयंकर युद्ध हुआ। इसने युद्ध में बड़ी बहादुरी दिखलाई। वि० सं० १७५६ में काबुल में हो इसका देहावसान हो गया । इसके दो पुत्र थे-बड़ा जयसिंह और छोटा विजयसिंह । वीकमसी__यह राव सीहा का पौत्र और अज का पुत्र था । यह अपने पिता के साथ द्वारिका की ओर गया। वहाँ का स्वामी चावड़ा विक्रमसेन था। ग्रंथ सूरजप्रकास के अनुसार जलदेवी ने वीकमसी को स्वप्न दिया कि मैं यहाँ की भूमि तुझे देती हूँ, तूं चावड़ा विक्रमसेन का सिर काट कर मुझे चढ़ा । इसके अनुसार वीकमसी ने चावड़ा राजा वीक्रमसेन का सिर काट कर देवी को चढ़ा दिया और उस प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया । उसका सिर काटने के कारण इसके वंशज वाढेल राठौड़ कहलाये । सादत खाँ
यह बादशाह मुहम्मद शाह के समय में गोलन्दाज दल का सेनापति था। महाराजा अभयसिंह ने जिस समय सर बुलन्द को हरा कर बादशाह के चरणों में झुकाने की प्रतिज्ञा की थी उस समय यह सादत खां सभा-स्थान पर मौजूद था । इसने ही महाराजा को अहमदाबाद की चढ़ाई के समय शाही
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[ ७५ ] तोपखाना से तोपें और गोलन्दाज दिये थे। यही बाद में अवध का सूबेदार बना कर भेज दिया गया। समादत खाँ ने मुहम्मदशाह के समय में ही पूर्व में अपनी स्वतन्त्र सल्तनत कायम कर ली थी और अवध का नबाब बन गया। सफदर जंग
नादिरशाह के आक्रमण के बाद अमीरों तथा सरदारों में पारस्परिक संघर्ष प्रारंभ हो गया था। उस समय बुरहानुलमुल्क बादशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था । यह महाराजा अभयसिंह से भयभीत रहता था और उसकी खिलाफत भी करता था। यह बुरहानुलमुल्क नादिरशाह के आक्रमण के समय मारा गया और इसके स्थान पर इसका पुत्र सफदर जंग अवध का सूबेदार घोषित कर दिया गया। यह बड़ा योग्य व्यक्ति था। बाद में यही सफदर जंग अवध का स्वतन्त्र शासक बन गया और मुहम्मदशाह की आज्ञाओं का उल्लंघन करने लगा। सम-साम-उद्दौला (शम्सामुद्दौला)
यह बादशाह के विशेष विश्वासपात्रों में था। यही राज्य का मीरबक्सी था जो कि समस्त राजकीय कर्मचारियों और सैनिकों को वेतन बांटता था। यह स्वयं भी बड़ा ही वोर, नीतिकुशल व कट्टर मुसलमान था। जोधपुर के महाराजा अभयसिंह से उसकी वीरता के कारण मित्रता रखता था। जिस समय महाराजा ने सर बुलन्द के विरुद्ध पान का बीड़ा उठाया उस समय बादशाह की आज्ञा के अनुसार जो रकम महाराजा को देनी निश्चित हुई थी वह अठारह लाख रुपये इसी सम-साम-उद्दौला द्वारा दिये गये थे। यह महाराजा की प्रतिज्ञा के समय सभा-स्थान पर मौजूद था। सर बुलन्द खाँ
यह बादशाह मुहम्मद शाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था। इसकी वीरता से प्रसन्न होकर बादशाह ने इसे मुबारिजुमुल्क की उपाधि दी और उसी समय गुजरात (अहमदाबाद) की सूबेदारी निजामुलमुल्क से हटा कर सर बुलन्द खाँ के नाम लिख दी। उस समय निजामुलमुल्क का चाचा हमीद खाँ सहायक के रूप में अहमदाबाद में कार्य करता था। सर बलन्द वीर, राजनीतिज्ञ और चतुर व्यक्ति था । कुछ समय के बाद यह अहमदाबाद का स्वतन्त्र शासक बन बैठा और धन एकत्रित करने के लिय मनमाना अत्याचार करने लगा जिसकी खबर फरियाद के रूप में बादशाह के पास पहुंची। इस पर बादशाह ने अहमदाबाद का सूबा सर बुलन्द से हटा कर महाराजा अभयसिंह को दे
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दिया । महाराजा अपने दल-बल सहित अहमदाबाद पहुँचा । घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सर बुलन्द ने अपनी पराजय का अनुमान लगा कर आत्मसमर्पण कर दिया और नागरे की ओर रवाना हो गया। गुजरात से जाने के साथ ही इसका जगत में नाम लुप्त हो गया । यह चुस्त और साहसी भी था किन्तु उसे हमेशा अपने में कमी महसूस होती थी । वह खर्चे के मामले में बहुत लापरवाह तथा अधिक खर्चीला था । इसीलिये दिल्ली पहुँचने पर इसे अपने कर्जदाताओं से बचने के लिये मकान की चहारदीवारी में ही बन्द रहना पड़ा । इसकी मृत्यु १९ जनवरी १७४७ को ६६ वर्ष की आयु में हो गई । सलावत खाँ
यह बादशाह शाहजहाँ का प्रमुख दरबारी था और बादशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से था । यह नागौर के राव अमरसिंह राठौड़ से द्वेष रखता था । इसने राव श्रमरसिंह को आम दरबार में 'गंवार' कहा था। अमरसिंह जैसे स्वाभिमानी और सत्यप्रिय राठौड़ को यह शब्द अप्रिय लगा जिससे उसने तत्क्षण ही 'सलावत' पर कटार का वार कर मार डाला ।
साहजहाँ (शाहजहाँ) -
यह बादशाह जहांगीर के पुत्रों में सब से अधिक बुद्धिमान, चतुर और योग्य था । इसका पितामह सम्राट अकबर महान् इसको सब से अधिक प्यार करता था तथा सदा अपने पास रखता था । उत्तराधिकार के लिये इसको भी अपने भाइयों से संघर्ष करना पड़ा था ।
शाहजहां ६ फरवरी १६२= ई० में आगरे में अबुल मुजफ्फर शिहाबउद्दीन मुहम्मद साहिब-ए-किरान शाहजहां बादशाह गाजी के नाम से सिंहासनारूढ़ हुआ ।
इसके समय में पूर्ण शान्ति थी । कई इतिहासकार इसके समय को मुगल साम्राज्य का स्वर्णकाल मानते हैं। शाहजहाँ को इमारतें बनवाने का बहुत ही शौक था । इसने कई सुन्दर इमारतें बनवाईं जिनमें ताजमहल जगतविख्यात है । यह अपनी बेगम मुमताजमहल से बहुत प्रेम करता था और उसी की स्मृति में इसने ताजमहल बनवाया ।
शाहजहाँ को अपने अंतिम समय में बहुत कष्ट झेलना पड़ा। इसके पुत्रों में उत्तराधिकार के लिये संग्राम छिड़ गया । यह अपने बड़े पुत्र दारा को सम्राट बनाना चाहता था । दारा उस समय दिल्ली में ही था । इसका दूसरा पुत्र शूजा बंगाल का गवर्नर था, तीसरा औरंगजेब दक्षिण में और चौथा मुराद गुजरात
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[ ७७ ] में गवर्नर था। इन सबने अपने को अलग अलग सम्राट घोषित कर दिया । औरंगजेब ने चालाकी से मुराद को फुसला कर अपनी तरफ मिला लिया। बादशाह ने शुजा को रोकने के लिये जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह को भेजा तथा औरंगजेब और मुराद दोनों का सामना करने के लिए जोधपुर नरेश महाराजा जसवन्तसिंह (प्रथम) को भेजा । उज्जैन के पास धरमत नामक स्थान पर जसवन्तसिंह और दोनों शाहजादों में युद्ध हुआ। शाही फौज के सेनापति कासिम खां ने, जो औरंगजेब को चाहता था, महाराजा को धोका दिया। इस प्रकार विजयी औरंगजेब आगे बढ़ा और उसने दारा को परास्त कर के शाहजहां को अपने महल में कैद कर दिया। औरंगजेब अपने तीनों भाइयों का खातमा कर के दिल्ली के तख्त पर बैठा । शाहजहां को साढ़े सात वर्ष तक कारागार में कठोर यातनाएं सहनी पड़ीं। बुढ़ापे में उसकी पुत्री जहांनपारा ने उस की सेवा कर के उसके भग्न हृदय को शान्त्वना दी। अन्त में २२ जनवरी १६६६ ई० को शाहजहां की जीवन-लीला समाप्त हो गई और वह अपने पुत्र के बंधनों से मुक्त हो गया। शाहजहाँ को मुमताजमहल के पावं में ताजमहल में दफनाया गया। साहू ___ यह महाराष्ट्र के निर्माणकर्ता वीर शिवाजो का पोता व शम्भाजी का पुत्र था। इसका शासनकाल ई० सन् १७०८ से ४६ तक रहा। शाहू अपनी माता तथा अन्य सम्बन्धियों के साथ १६८६ ई० में कैद कर लिया गया। मई सन् १७०७ में आजम के द्वारा मुक्त कर दिया गया। अब शाहू अपने पितामह के राज्य पर मुगल सम्राट के सामन्त के रूप में शासन करने लगा । शाहू के महाराष्ट्र में प्रवेश करते ही बहुत से मरहठे सरदार इससे प्रा मिले किन्तु ताराबाई ने विरोध किया। शाहू के व्यक्तित्व में एक विचित्र आकर्षण था। इसका स्वभाव कोमल तथा दयालु था। इसमें उच्चकोटि की आचार-व्यवहार की सभ्यता थी। शाहू ने सन् १७०८ में ताराबाई की सेना को पराजित कर सतारा पर अपना अधिकार कर लिया। इसने ४१ वर्ष तक शासन किया और पेशवाओं के नेतृत्व में मरहठा साम्राज्य की द्रुतगति से अभिवृद्धि हुई । अतः शाह की गणना महाराष्ट्र के महान् शासकों में होती है । सन् १७४६ में शाहू की मृत्यु हो गई और सारी मराठा शक्ति पेशवा के हाथ में आ गई। सुजात खां (शुजात खां)
यह गुजरात के सूबेदार शेख मुहम्मदशाह फारूखी के प्रमुख अधिकारी 'काजिमबग' का पुत्र था और बड़ा वीर तथा नीतिज्ञ था। ई० सन् १७२० में
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हैदरकुली खां गुजरात का शासन सुजात खां को सौंप कर चला गया था । उसके स्थान पर निजाम स्वयं गुजरात का सूबेदार बन गया और हमीद खां को गुजरात में अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया किन्तु सुजात खां ने शाही दरबार में हमीद खां का पक्ष कमजोर देखा तो उस पर चढ़ाई कर दी और अपनी सेना को अलग-अलग टुकड़ियों में विभक्त कर दिया। जब वे शहर के निकट पहुँचे तो बिखरी हुई टुकड़ियों पर मरहठों ने प्राक्रमण कर दिया जिससे सुजात खां की सेना तितर-बितर हो गई । सुजात खां ने एक तरफ अपना मोर्चा लिया किन्तु हमीद खां मौका पाकर ऊपर आ धमका और सुजात खां पर तीरों और भालों से वार करने लगा । इस प्रकार सुजात खां को मार डाला
गया ।
सुरतांन ( सिरोही के राव सुरतान ) -
यह राव लाखा का प्रपौत्र तथा भारण का पुत्र था । राव मानसिंह के बाद सिरोही की गद्दी पर बैठा, किन्तु कुल अधिकार बीजा देवड़ा के हाथ में था । इसने सुरतान के काका सूजा रणधीरोत को मरवा डाला। बीजा स्वयं सिरोही का राजा बनना चाहता था पर उसका मनोरथ पूर्ण नहीं हुआ और कल्ला राजा बना दिया गया किन्तु कुछ दिन बाद ही सरदारों ने कल्ला को हटा कर दुबारा सुरतान को सिरोही का राजा बनाया । इसने चन्द्रसेन के पुत्र रायसिंह को रात्रि के समय अचानक आक्रमण कर मार डाला था । गुजरात जाते समय महाराजा सूरसिंह को रायसिंह के मारे जाने का खयाल आ गया और उन्होंने बदला लेने के लिए सिरोही और उसके गाँवों को लूटने की आज्ञा दे दी । यह देख सुरतांन घबराया और बहुत-सा रुपया महाराजा की भेंट कर उनसे सन्धि कर ली ।
सूजा ( शाह शुजा ) -
यह बादशाह शाहजहां का द्वितीय पुत्र और बंगाल का सूबेदार था । बंगाल में विद्रोह कर देने पर आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को इसके विरुद्ध भेजा । उसने जाकर शाहजादे शुजा को परास्त कर दिया। बाद में राज्य प्राप्ति के लिए गरे पर अधिकार प्राप्त करने की कामना से बंगाल चल पड़ा । पर इस उत्तराधिकार युद्ध में पराजित होकर अराकान की ओर भाग गया और वहीं पर आराकानियों द्वारा मारा गया ।
सूरजमल
यह सांदू गोत्र का चारण और नाथा का पुत्र था । यह महाराजा जसवन्तसिंह के साथ काबुल में था, किन्तु महाराजा की मृत्यु के बाद औरंगजेब बादशाह
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[ ७६ ] की आज्ञा से महाराजा जसवंतसिंह के दल के साथ दिल्ली आ गया। इसी दिल्ली के युद्ध में महाराजा अजीतसिंह की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ। शेखमल्लाह यार
यह अहमदाबाद के सूबेदार सर बुलन्द खां के विश्वासपात्र सेवकों में से था। युद्ध के समय यह किले का रक्षक बनाया गया था। शेखअल्लाह यार ने अपने साथियों की सलाह से फाटकों को चुनवा दिया और स्थान-स्थान पर रक्षक नियत कर दिये और घेरे के लिये सामान एकत्रित करने लगा। शेखअल्लाह यार, जिसको शहर की चौकसी व रक्षा का भार सौंपा था, पूरी सतर्कता व सावधानी से कार्य करता था। यह बड़ा वीर, नीतिज्ञ तथा रण-कुशल व्यक्ति था और अहमदाबाद के युद्ध में राजाधिराज बखतसिंह से लड़ता हुआ मारा गया। सेखा (राव शेखा)____ यह राव सूजा का द्वितीय पुत्र था । अपने भाई बाघा की इच्छानुसार शेखा ने अपना अधिकार छोड़ बाघो के ज्येष्ठ पुत्र वीरम को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने को अनुमति दी थी। परन्तु सरदारों ने चुपचाप गांगा को गद्दी पर बैठा दिया। इसीसे राव शेखा बहुत नाराज हुमा और जोधपुर का राज्य प्राप्त करने के लिये नागौर के नबाब दौलत खां और हरदास ऊहड़ की सहायता से वि० सं० १५८५ (ई० स० १५२६) में जोधपुर पर चढ़ाई की। राव गांगा और बीकानेर के राव जैतसी भी अपनी सेना सहित युद्ध-क्षेत्र में आ डटे । घमासान युद्ध हुआ। दौलत खां भाग गया और शेखा लड़ता हा वीर-गति को प्राप्त हुआ । शेखा महान् वीर, त्यागी और साहसी व्यक्ति था। सैयदउद्दीन (ख्वाजा सैयदउद्दीन)
बादशाह महम्मदशाह के प्रधान मंत्री निजामुलमुल्क के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था। निजामलमुल्क के दक्षिण में चले जाने के बाद इसने अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयत्न किया और यह प्रधान राज-मंत्रियों की श्रेणी में आ गया। किन्तु यह अधिक दिनों तक शाही दरबार में टिक नहीं सका, और बादशाह मुहम्मदशाह के कुप्रबन्ध से नाराज होकर दक्षिण में निजामुलमुल्क के पास चला गया। सैयद बन्धु
भारतीय इतिहास में हसनअली खां तथा हुसेनअली खां सैयद, सैयदबन्धु (भाइयों) के नाम से पुकारे जाते हैं। ई० सन् १७१२ से १७२० तक के
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समय को मुगलकाल में सैयद बन्धुनों का समय कह सकते हैं। इस समय में सम्राटों को बनाना, बिगाड़ना इनके बायें हाथ का खेल था। इनका पिता सैयद अब्दुल्ला खां मियाँ श्रीरंगजेब के शासनकाल में बीजापुर तथा अजमेर का सूबेदार रह चुका था । फर्रुखसियर ने इन्हीं की सहायता से सिंहासन प्राप्त किया था, अतः हसन ( अब्दुल्ला) को प्रधान मंत्री और हुसेन को प्रधान सेनापति नियुक्त किया । इस प्रकार सेना तथा शासन दोनों पर इनका नियंत्रण हो गया । ये बड़े ही वीर, योग्य तथा दृढ़प्रतिज्ञ थे । हिन्दुस्तानियों के साथ इनकी अधिक सहानुभूति थी । ये हिन्दू विरोधी नीति के घोर विरोधी थे । रतनचन्द नामक हिन्दू व्यापारो को इन्होंने अपना दीवान नियुक्त किया । दुर्ग के सेनाध्यक्षों तथा पदाधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार भी इन्हें था । इस प्रकार इन्होंने उत्थान की सीमा पार कर ली थी। अब इनको नीचा दिखाने के लिये सम्राट ने कूटनीति से काम लेना प्रारम्भ किया और इनके विरुद्ध षड़यन्त्र रचने लगा, जिसका पता इनको लग गया और इन्होंने जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह से मित्रता कर उसको अपनी ओर मिला लिया तथा फर्रुखसियर की सत्ता को समाप्त करने का निश्चय कर लिया । फलतः वह पकड़ लिया गया और प्रन्धा करके कारागार में डाल दिया गया और कुछ दिन बाद ई० सन् १७१६ के अप्रेल मास में उसका वध कर दिया गया । उसके बाद संयद भाइयों और महाराजा अजीतसिंह ने रफी-उद-दाराजात और रफी उद्दौला को क्रमशः नाम मात्र का सम्राट बनाया । इनके बाद सैयद भाइयों ने मुहम्मदशाह को सिंहासन पर बैठाया । इसी के समय में इनका पतन हो गया और ई० सन् १७२० में कुछ षड़यंत्रकारियों ने हुसेनली का वध कर दिया। भाई की मृत्यु का समाचार पाते ही हसनअली ( अबदुल्ला) बदला लेने के लिये सेना एकत्रित करके चला परन्तु बादशाह की सेना से युद्ध में पराजित होकर कैद कर लिया गया । कारागार में ही ई० सन् १७२२ में उसकी मृत्यु हो गई ।
सोनग
राव सीहाजी का दूसरा पुत्र और ग्रासथान का छोटा भाई था । इसने अपने बड़े भाई प्रसथान की सहायता से ईडर (गुजरात) के ( कोली जाति के ) राजा सामलिया सोड़ को मार कर ईडर राज्य प्राप्त किया था। ईडर का राजा होने के कारण ही सोनग के वंशज ईडरिया राठौड़ कहलाये । हमोद खां
यह बादशाह मुहम्मद शाह के वजीर निजाम-उल मुल्क का चाचा था । बादशाह मुहम्मदशाह ने जोधपुर नरेश महाराजा अजीतसिंह को गुजरात की
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सूबेदारी से हटा कर हैदरकुली खां को वहाँ का सूबेदार बनाया। हैदरकुली खां बादशाह के वजीर निजाम से शत्रुता रखता था। जब वह गुजरात का स्वतंत्र शासक बनने का प्रयास करने लगा तो निजाम को उसे वहां से हटाने में सफलता प्राप्त हुई। निजाम स्वयं गुजरात का सूबेदार बन गया और अपने चाचा हमीद खां को गुजरात में अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया।
निजाम बादशाह मुहम्मदशाह से प्रसन्न नहीं रहता था, अतः उसने दक्षिण में जाकर हैदराबाद को अपने अधिकार में कर लिया और वहां का स्वतंत्र शासक बन बैठा और उसका चाचा हमीद खां भी गुजरात का स्वतंत्र शासक बन गया।
हमीद खां ने अहमदाबाद में बहुत अत्याचार किये । वह कंथाजी, पीलाजी प्रादि मरहठों से मिल गया। इसका दमन करने के लिये बादशाह ने शुजाअत खां, इब्राहीमकुलो खां, रुस्तमअली खां आदि मुगलों को सेना सहित भेजा किन्तु हमीद खां बड़ा चालाक, बुद्धिमान, नीतिज्ञ व दूरदर्शी था। उसने मरहठों की सहायता से एक एक कर के बादशाह के भेजे हुए सब मुगलों को मार डाला और उनकी सेनाओं को भगा दिया। अन्त में बादशाह मुहम्मदशाह ने एक विशाल दल के साथ सर बुलंद खां को गुजरात का सूबेदार बना कर भेजा। हमीद खां ने उसका मुकाबिला किया किन्तु अपनी पराजय का अनुमान कर के अहमदाबाद को छोड़ कर दक्षिण को ओर चला गया। हरदास ऊहड़ (ऊड़)__ यह मोकलोत के २७ गांवों सहित कोढणा (कोरणा) का स्वामी था। यह जोधपुर राज्य की लक्कड़ चाकरी नहीं करता था, केवल आकर मजरा कर जाता था, इसलिये कुंवर मालदेव इससे अप्रसन्न रहता था, अत: हरदास का पट्टा जब्त कर लिया। इस समाचार को सुन कर वह सोजत में वीरमदेव के पास चला गया और गांगा का साथ छोड़ कर रायमल से जा मिला । यह जोधपुर का राज्य वीरम को दिलाने के पक्ष में था, अत: यह शेखा से जा मिला । यह बड़ा ही वीर, स्वाभिमानी और निर्भीक व्यक्ति था। यही नागौर के नबाब दौलत खां को शेखा की सहायतार्थ लाया था। इसी युद्ध में राव शेखा और हरदास ऊहड़ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। हैदर कुली खाँ__ यह बादशाह बहादुर शाह, फर्रुखसियर और मुहम्मद शाह के समय में शाही सल्तनत का वफादार रहा । इन बादशाहों के शासनकाल में सर्व प्रथम ई. सन् १७१५ से १७१८ तक सूरत बन्दरगाह का शासक रहा । हैदर कुलोखां
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[ २ ] बादशाह मुहम्मदशाह के विश्वासपात्र सेनापतियों में था। इसके कार्यों से प्रसन्न होकर बादशाह मुहम्मद शाह ने हैदर कुलीखां को भी छः हजारी जात व सवार दो अस्पहसि अस्पह का मनसब और नासिर जंग का खिताब भी दिया और हरावल व तोपखाना का अफसर बनाया। जब हसनपुर के पास अबदुल्ला खां की फौज से मुकाबला हुआ तो हैदरकुली खां ने तोपखाने से ऐसे गोले बरसाये कि अब्दुल्लाह खां की फौज में खलबली-सी मच गई और बहुत से आदमी जान बचा कर भागे। पिछली रात तक एक लाख सवारों में से कुल सतरह अठारह हजार सवार अब्दुल्ला खां के साथ बाको रह गये। इस विजय से हैदर कुली खां का प्रभाव बढ़ गया । इसके बाद इसे जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह पर भी चढ़ाई के लिये तैयार किया किन्तु. महाराजा अजीतसिंह ने अहमदाबाद की सूबेदारी का इस्तीफा भेज कर अजमेर को अपने कब्जे में रखा, अहमदाबाद की सूबेदारी हैदर कुलीखां को मिल गई।
जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है कि ग्रंथ में कवि महोदय ने कई पात्रों के नामों का आधा भाग अथवा उनके नामों को भिन्न-भिन्न रूपों में अंकित किया है । ग्रंथ में उनका केवल उल्लेख मात्र ही है। अतः ग्रंथ के आकार को ध्यान में रखते हुए ऐसे पात्रों का पूर्ण परिचय न दे कर केवल नामावली ही नीचे दी जाती है। सूरज प्रकास, भाग ३, में आये हुए महाराजा अभयसिंह की सेना के प्रमुख योद्धाओं को नामावली प्रखमाल अनावत १५०
अजो केहरी का पुत्र १४८ अखमाल करमसोत महोक का पुत्र १३३ अजो जगमाल का पु. १५० अख (प्रखौ) चेली १६४
अजौ सिवदांन का पु. १४८ प्रखो १४७
अजो हरिनाथ का पु. १४६ प्रखौ अरणदावत ११०
अज्जब्ब जगावत ६३ अखौ उदावत बछराज का पु. १२०
अणंद गहलोत १६१ प्रखो धनराज का . १४३
अणंद राम का पु. ११६ अखी धांधल १८६
अणंदेस हररूप का पु. ७१ अखौ प्रिथीराज का पु. १५०
अगदेस भोज का पु. १३७ अचळेस सांवळ का पु. ८९
अणदौ करणोत तेज का पु. १२७ अजबेस उदावत रूपसिंह का पु. १२८ अणदौ बारी १९५ अजबेस वैरण का पु. ६३ |
अनपाळ सांवतसाह का पु. ६५ अजबेस चौहान १५३
अनोप किसनेस का पु. ६० अजब्ब राजड़ का पु. १४६
अनोप जोधा बद्रीदास का पु. ११२ अजो करमसोत जसावत १३२ । अनोप द्वारावत १०६
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[ ८३ ]
अनोप मेघ का पुत्र १३७ अनोप हुल अजबावत १६१ अनी उगरावत १५१ । अनी जगरांम का पु. ६३ अनी देवड़ो जैत का पु. १६० अनी रूप का पु. १४७ अनौ सहसावत १४० अन्नपाळ किसोर का पु. १३० अभमल लाल का पु. ६५ अभी (प्रभ, प्रभा, अभमाल) करणोत
दुरगावत १२३, १२५, १२६ प्रभी जैत का पु. ७३ अमरेस रूप का पु. १५३ अमरेस लखधीर का पु. ५८ अमरेस सोनगरा मोहण का पु. १५७ अमांन मनोहरदास का पु. १३३ अम्मर अनावत ६४ अम्मर धनावत ५८ अम्मरसिंघ गोयंद का पु. ६२ अम्मरसींग पातल का पु. १५१ अम्मरसींघ सोनगरा सतावत १५७ प्ररिज्जण साह रतनेस का पु. ८६ पाणंद फतावत ६४ प्राणंदरांम घासी का पु. १८४ मारणंदसिंघ राघावत ६५ प्राणंदसी वाघावत ६३ प्रासकरन्न १०५ प्रासई (डी) चेली १६४ इंदो देवड़ो १५९
भाण करमसोत गजसींघ का पु. १३४ इंद्रभांण जोध (सिंघ) का पु. १३६ इंद्रसाह जैतावत जयसाह का पु. १२२ इंद्रसिंघ हरियंद का पु. ६३ इनतुल्ला १६४ ईस झंझावत ७१ ईसर माधावत ७६ उगरेस प्रताप का पु. १५३
उदय नाथ का पुत्र १२.६ उदेचंद व्यास ७३ उदैसींघ रावत १८४ उदो ५६ उदो करमसोत प्रणदेस का पु. १३३ उमेद ७४ उमेद अणदावत ११८ उमेदक ६७ उमेद करणोत १२८ उमेद व्रजपाळ का पु. १४६ उमेदसींघ अनावत १२८ उमेदह करमसोत १३ उमेद ५७ उरजण सादल का पु. १२३ उरज्जरणसिंघ ७५ ऊद चेलो १६४ ऊदभाण रणछोड़ का पु. १४३ ऊद लखावत १३१ ऊद सूजा का पु. ५३ ऊदल ६७ ऊदल करमसोत १२६ ऊदल जोगावत १६१ ऊदल देवड़ो मलियागिर (चंदनसिंह) का
पु. १६० ऊदलसाह मलियागिर (चंदनसिंह) का
ऊदल हठि का पु. १२३ करन्न उदावत परताप का पु. ११८ करन पीथावत ११० करीम पड़दार १६५ कलियांण गोवरधन का पु. ६१ कलियांण जेतमालोत १३५ कलियांण माला का पु. ५३ कलो उदावत हरनाथ का पु. ११६ कलौ दलसाह का पु. ६१ कलो सिवदान का पु. कसमीर खांन २५६
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[ ८४ ]
कांन, कान्ह, कुंपावत रांम का पुत्र ६६,
काजम २५१ कायम खां ३ किसन चेली १६४ किसनेस ५५ किसनेस करणोत तेज का पु. १२८ किसनेस सोनगरा दलसाह का पु. १५६ किसन्न ५४ किसन्न करमसोत गोरधनोत १३३ किसोर ऊदल का पु. ६० कीरतसिंघ जगावत १४ कुजरक बंग २५६ कुसळेस कछवाह चंद्रभांण का पु. १५८ कुसळेस चांपावत नाथ का पु. ५०, ५१ कुसळेस भूम (भोमसिंह) का पु. ८६ कुसळेस मेघ का पु. १३७ कूप रामसिंह का पु ५८ कुंभ साहिब का पु. ६१ केहर भगवान का पु. १५२ केहर वीठल का पु. ११० केहर हरी का पु. ९७ केहरी ५८ केहरी ५६ केहरी हरी का पु ११६ क्रन (किसनसिंह या करणसिंह) ५७ कन्न रसा(रासा)वत १४६ क्रन्न विजावत १३५ खगेस नाहर का पु. ६१ खड़गेस जसकरण का पु. १३१ खड़गेस जसकरण का पु. १३१ खांन बहलोल २५६ खीम करमसोत गिरद्धरदास का पु. १३२ खीम मांगळियो १६० खीवकरन देवकरण का पु. १४७ खेतल गूजर १९३ खेम १३५
खेम (खीम) फतावत ७५, ७६ ख्युसाळचंद पंचोळी १८२ ख्वाजा बगस १६४ गंग १३७ गजसाह करन का पु. ६७ गजसाह भोज का पु. ७४ गजसाह साहिब भांण का पु. १५२ गजो अनावत १४७ मजो हरियंद का पु. ६६ गाजी साह केहरी का पु ११० गाहड़मल व्यास १७३ गिरमेर (सुमेरसिंह) देव का पु. ४६ मुरणदास विहारी का पु. १४३ गुमान करमसोत हठी का पु. १३४ गुमांन कुसळे स का पु. ६० गुमान जोध का पु. १०० गुमांन विहारी का पु. १०३ गुमानसिंह करमसोत १३४ गुमान हठीसिंह का पु. १०६ गुलमीर सयद ३ गुलहुसन २५६ गोकळ करमसोत गिरद्धरदासका पु. १३१ गोकळदास मेहता १८३ गोपाळ महता १०३ गोपियनाथ पतावत १४७ गोपीनाथ करमसोत १३२ गोपीनाथ जैतावत पतावत १२३ गोप(पौ) चेली १६४ गोयंददास १८ गोवरधन्न चौहान हरिनाथ का पु. १५५ च्यांन माहव का पु. १०६ चंद (देवीचंद) मुहणोत १७८ चंद जोगावत ६६ चंद विहारियदास का पु. १५० चंद स्यांम का पु. १४३ चत्रभुज चंद का पु. ७१ चूहड़खांन १
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[ ८५ ] चनकरन करणोत दुरगावत १२७ जीवणदास सिरदार का पुत्र ८८ चन पिराग कछवाह का पु. १५८
जीवण हठी का पु. ६६ छतो नरसिंघ का पु. ६२
जीवणी वारी (बारी) १६५ छतौ राम का पु. ७०
जुझार हरियंद का पु. १४७ जग-जोधा सांवळ का पु. ११२
जुरावर उदावत जोग का पु. १२० जगतेस अजबेस का पु. १४७
जुरावर उदावत रण का पु. ११६ जगतेस देवड़ा जैत का पु. १६०
जुरावर कछवाह तेज का पु. १५६ जगतेस भाऊ का पु. ८६
जुरावरसिंघ (जुरा) जोधा कुसळावत जगनाथ भोज का पु. १३६
११२
जैत अनावत ९७ जगरांम राम का पु. ६१
जंत उदावत १०४ जगराज साहिब खां का पु. ६५
जंत करमसोत लखधीर का पु. १३१ जगरूप केहर का पुत्र ६८
जैत गहलोत १६१ . जगसाह नाहर का पुत्र ६०
जंत देवड़ो जगावत १५६ जगौ मधावत १५१ जमसेरखांन २६४
जैत सूर का पु. ८५
जैमल साह राजड़ का पु. १२३ जमान मेघ का पु. १३७
जोध उदावत अजबावत ११८ जयदेव सुभावत १९२
जोध उदावत लाखा का पु. ११६ जयरांम वीठू (चारण) १७२
जोध करमसोत कलावत १३३ जयसाह कछवाह केहर का पु. १५८ जलाल नगारची राजू का पु. १६५
जोरावर ऊदल का पु. ६८
जोरावर रामचंद्रेस का पु. ६६ जल्लाल १६४
जोरावर साह रासावत ५६ जवान जोगावत १०४
जोरावर सिंघ अरणंद का पु. ६३ जवान सोनगरा दुज्जणसींघ का पु. १५७
जोरावरसिंघ जसावत ६१ जसवन्न साहिब खां का पु. ६५
जोरावरसिंघ फतावत १०८ जसराज गोयंद का प. १४०
जोरावरसिंह पदम्म का पु. ६६ जसराज पड़िहार १६१
जोरी अणदावत जसराज मुक देस का पु. ८५ जसा जैत का पु. ८६
जोरी हरनाथ का पृ. १८
झंझार मेघ का पु. १४८ जसावत जीवणदास १५१ जसो उदावत ११५, ११६
झंझार वीरम का पु. ६२
झूझ फतावत १४८ जसौ सिवदान का पु. १४६
ठाकुरसीह गुजर सांमावत १८५ जालिमसाह भगवंत का पु. ६७
डूंगर नाहर का पु. १४६ जीवण उदावत १४५
डूंगर सेज वदार १६४ जीवणदास अनावत ५१ जीवरणदास जसावत १५१
डूंगरसिंह हिमतसिंह का पु. ७४ जीवदास सांवळ का पू. ६४
ताज मुसलमान १६४ । जीवणदास सिंधल वीठल का पु. १४३ - तिलोक भाउ का. पु. ६४
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तुलछियदास १९२
तेज केही का पु. १३७ तेज (हरणूमत जाति) जेठवो १९३
तेज जेतावत सादल का पु.
१२१
तेज परताप का पु. ११२
तेज लाल का पु. १००
तेज सबळ ेस का पु. ५७ तेजो करमसोत लाल का पु. १३१
थांन भाखर का पु. १३६ दयाळ खीची पाल का पु. १८४ दळक्रन करणोत जसक्रन्न का पु. १२८
[ ५६ ]
११७
दळसाह कान्ह का पु. ७७ दळसाह भंडारी यांन का पु. दळसाह सोनगरा हरि का पु. १५५ दलो ५२
दलो र देस का पु. ६३
दलौ भ्रमरावत १०७
दलौ करमसोत कांन्ह का पु. १४१ दलौ जयसींघ का पु. १४६ दलौ परताप का पु. ६० दांणिदास बहादुर का पु. ६२
दांत सांगत का पु. ६८ दुरंग कुसळे स का पु. ७४ दुरजसींग चौहान सबळावत १५५
दुरज्जरण नाहर का पु. १४१ दुज्जरण सबस का पु. १०६ देवल देवड़ी करणावत १६० देवकरन्न जगतावत ६६ देवकरन्न बिहारी का पु. ६४ देव कुसळेस का पु. ६५ देव सुरतात १४६
देवीचंद उदावत गोयंददास का पु. ११८
देवीचंद मुहणोत १७८
दौलत साह पंचोळी
दौलतसिंघ देवड़ी जसावत १५६ दौलतसींघ ईसर का पु. ६५ द्वरी ( द्वारो) मुकंदावत १४०
धनरूप भंडारी १७७ धनियौ चेलो १६४
धनौ उदावत गोवरधनोत १२०
धींग साहिब का पु. ६१ नदलाल रिणछोड़ का पु. १८१
नथम्मल १९१
नरायणदास कुसळे स का पु. ६० नरो बांधल १८६
नरौ जैतमालोत मुकनेस का पु. १३५
नरो विजयपाल का पु. ६० नवलखांन २६४
नाथ उदावत दीपावत १२०
नाथ चौहान प्रजावत १५४
नाथ जसावत ९६
नाथो श्रमरावत १४५
नाहर ऋन का पु. १०४ नाहर खां १६१
नाहरखांन करमसोत १३३ नाहरखांन चारण उदावत १६६ नाहरखांन नरावत १३६ नाहरखांन जैतावत जोरावरसींघ का पु. १२१
नाहर फतावत ५६
नाहरसाह जैत का पु. १५२
नाहरसाह जैतमालोत मोहरण का पु. १२१
नाहरी नगारची १६५
निजरू पड़दार १६५
पती इंद्रभांरण का पु. १४५
पती (परताप) जोधी भीम का पु.
१००, १०२, १०३
पती महरांण का पु. १११ पदम जोरावर उत ७३
पदमेस ८३
पदमेस चंद का पु. १४०
पदमेस दुरज्जणसींघ का पु. १२३
पदमेस साहिब खां का पु. ५ε पदमेस सूर का पु. १५२
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पदम्म १६२
पदम्म दलावत १०७
पदम्म सगतावत ५७, ५६
परियाग सूर का पु. ९१
पातल वैणावत ६५
पातल साह गोकळ का पु. १४६ पातो १०३
पाहड़सींघ उदावत कुसळावत १९८
पीथल भाऊ का पु. ६३
पीथल मांन का पु. ६०
पीथल सरदारसिंह का पु. ७०
पीर सा, १६५ पीरोज.....
पूरणसींघ १३६
पेम कन्हावत ९६
म जुगावत ११६
पेम जैतावत रांम का पु. १२१ पेम राजड़ का पु. ५७
पेम सदावत ६५
प्रताप गहलोत १६१
प्रथिसिंघ कूंपावत फतावत ७०
फकीर जोधदास का पु. ८८
फतमाल १४८
फतमाल उग्रसेरण का पु. १५३
फतमाल नाथ का पु. ६३ फतेचंद दिपावत १७३ फती जैतावत गोरधनोत १२१
फती भावत १०४
फतौ देवियसींध का पु. ५६
फतो परताप का पु. ५६ फैजुला १९४
कीदास १४२ देखो वंकी, वांको ऊहड़
१४१
बखत भाऊ का पु. ६६
बखतसी मधावत १५१
बखतावर ८२
बखतेस ६१, ६३, ६५
[
८७ ]
बखतेस विड़ियो चारण भ्रमरा का पुत्र
१७१
बखतेस दलावत ७३
बखतेस पड़िहार १६२
बखतेस पीथल का पु. ४६
बस बहादुर का पु. ७२ बछराज मुहणोत १७८ बद्रियसिंघ देवावत ७१
बद्री १८
बद्रीदास १४०
बलूखांन १९४
बहादुर जीवण का पु. १२०
दादुर जैतावत तावत १२२
बहादुर पीथलउत ६५ बहादुर सबळेस का पु. ६२ बहादुरसाह जोग का पु. १५२ बहादुर साह सिवावत ६५ बहादुरसींघ ६१ बहादुर सेजदार १९४
बाघ तेज का पु. १४७
बालकिसन पंचोळी ( बगसी) हरियंद का
पु. २१
बिहारीदास ब्रोकम का पु. १६१
भगवंत कन्न का पु. ७६ भगवान करमसोत लाल का पु. १३३
भगवान धांधल १८६
भव (भाऊ) जैतावत गोरधनोत १२१
भांग १०८
भांग जैत का पु. ६०
भोग जैतावत हरि का पु. १२३
भांरण बाघ को पु. १०६
भांग महवेचा रावल १३५ भागवंत ८३
भागवंत किरतेस का पु. ६१
भारथ कछवाह सूर का पु. १५६ भीम १३६
भीम धवेचा अमरावत १३४
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[ ८८ ]
भीमाजळ मोकल का पुत्र ८५ भैरव नाहर का पु. ५० भोम मेड़तियौ ८७ मदन ऊद का पु, ६४ मधो करणोत १४६ मनूप देव कनोत १४८ मनौ १६३ मवातीखांन १६५ महकन्न करणोत जैत का पु. २१५ महपति चेली १६५ महम्मद सेख का पु. १६६ महरांण १६६, १७० महिकन्न भाखर का पु. १५१ महिरांण कछवाह १५६ महोकमसींघ स्याम का पु. १०० मांडण करमसोत जसावत १३३ मांन उदावत ११७ मांनड़ खां ८१ मांन पड़दार १६२ मांन फतावत १५० माधव जसावत ७३ माधवदास हुजदार १८४ माधव साह चौहान मुरारिय का पु. १५४ माधवसींग ऊद का पु. १११ माधव सोनगरा सतावत १५७ माल कछवाह जगावत १५८ मालनाथ का पु. १०८ माल पड़िहार १६२ माल सतावत १४६ माहव क्रन का पु. ११० १३७ माहव चांपावत ४६ माहव जसावत १४८ माहव पंचोली १८२ माहव मान का पु. ८८ माहव साह केहरी का पु. १०६ माहव साह परसावत १३७ माहियदास १७७
मुकंद उदावत ११८ मुकंद कचरावत १२८ मुकंद धांधल १८६, १६० मुकंदेस चौहान सूर का पु. १५४ मुकदेस मधावत ६४ मुकंदौ १५१ मुकनेस जोग का पु. १३६ मुकन्न कुंभ का पु. ७४ मुकुंद सहसावत १५१ मुजायद खां १६४ मुरळी चेलो १६५ मुहकम भारमलोत भूपति का पु. १३६ मेघ किसन्न का पु. १३६ मोकमसींघ जगावत १४७ मोहकम जगन्नाथ का पु. ५७ मोहणसींघ उदावत १२० . मोहणसींघ कछवाह अखावत १५६ मोहनदास ऊद का पु. १०८ मोहक्कम रतनसेन का पु. ६१ रघुनाथ करमसोत जसावत १३२ रघुनाथ धवेचा ७८ रघुनाथ रूप का पु. १२१ रघुनाथ रोहड़िया बारहठ जसराज का
पु. १६८ रघू खड़गेस का पु. ७ रतन चौहान कुजावत १५४ रतनागर (रत्नाकर= समुद्रसिंह) भीम का रतनस मोहोकम उत ६६ रसो (रासी) चौहान अजबेस का पु. १५४ रहम तुल्ला २५६ रांम कलावत ६६ रांम कुंपावत ५८ रामचंद्र स व्यास राम जगराम का पु. १३६ रांम तिलोक का पु. ६. रांम नाहर का पु. १५२
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[ ८६] राम भाऊ का पु. १५२
वखत चौहान कुसळावत १५४ राम माधावत ६३
वखत सूर का पु. ६३ राम विजावत ८८
वखतावर ७६ रांमौ सगतेम का पु. ७२
वखतेस करनेस का पु. ६५ रांमी सबळावत ६८
वखतेस जैत का पु. १४६ राज खां १६५
वखतेस माहप का पु. ५६ . रायसिंघ ६६
वखतेस बीठळदास का पु. ९६ रायसिंघ घीध का पु. ६५
वनराज झूझ का पु. ८६ रासी करमसोत कलियांण का पु. १३१ वनिराज कन्ह का पु. ८६ रूप राजड़ का पु. ६६
वछराज दीप का पु. ६५ रासो खेतल का पु. १५०
वछौ वारी (बारी) १६५ रासौ माहव का पु. ७३
वांको ऊहड़ १४१ रिणछोड़ चोहान सूर का पु. १५४ विजपाळ नरपाळ का पु. १३७ रिणछोड़ घांधू १६३
विजपाल माहव का पु. १४८ रुघौ ईसर का पु. १३१
विजपाळ रूप का पु. १४१ रूप तेजावत ५६
विजौ १६३ रूपनरावत १५०
विजौ पदमेस का पु. १४६ रूप ऊदावत राजड़ का पु. ११३
विजो वारी (बारी) १६५ रूप विजावत १५०
विरमाण जसावत १४८ रैण राजड़ का पु.
विसनेस सकतेस का पु. १३४
विसन्न ५८ रैण विजावत १३५
विहारीय दूद का पु. १५१ रेण रेणायर प्रोसवाल १८६
विहारी खां १६३ रैणायर जगनाथ का पु. ५७
विहारीदास वाघ का पु. १०४ रोसन अलाह
विहारी वारी (बारी) १६५ लखधीर ठाकुरसी का पु. १७७ लखो १६३
वीठळदास आणंद का पु. १३३ लखी उदावत १२०
वीर सबळावत १५३ लखो हरियंद का पु. १४६
बैण गिरमेर (सुमेरसिंह) का पु. १३५ लाल १५३
वैरियसाल सोनगरा हठी का पु. १५७ लाल अगदावत १५०
वंदावनदास १३८ लाल किसनावत ७२
संगी (सांगो) परताप का पु. १३३ लाल जगावत १५०
संगो (सांगो) भगवान का पु. १३८ लाल जैत का पु. १००
संग्रांम साहिब का पु. १४५ लाल पड़िहार १६२
सकतेस ६२ लाल व्यास १७३
सकत्त करमसोत वीठलऊत १३३ लालो सगतावत ५४
सगतेस ५२ वंको उहड़ १४१
सगतेस खेम का पु. ६४
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[ ६० ] सगतेस भगवान का पुत्र १४८
सिंघ संग्राम (संग्रामसिंघ) जैतावत दलासगतेस सांमत का पु. १५३
वत १२२ सगतेस हरनाथ का पु. १०५
सिंभू कुसळावत ६६ सतिदान खिड़ियो चारण १७१
सिधक्रन करणोत प्रभयकरण का पु. १२८ सत्रसाल गोरधन्न का पु. १२२
सिरदार उदावत भाउ का पु. १२१ सत्रसाल सदावत ६२
सिरदार कुसळेस का पु. १५२ सदी कुसळावत १४३
सिरदार जैतावत गरीबदास का पु. १२३ समेळ सुरोवत ६०
सिरदार जोध का पु. ६६ सरदार जोध का पु. ६६
सिरदार रूप का पु. १०७ सरदार फतमाल पु. ७०
सिरदार सेर का पु. ७७ सरदार रूप का पु. ८५
सिरदार सेर का पु. ६८ सरफखां (निधी) १६५
सिरदार हरियंद का पु. ७६ सरूप समितसिंघ का पु. ७६
सिवक्रन खेम का पु. १२७ सलेम (सलीम) १०३
सिव खेतल का पु. १४६ सवाइय अम्मरसिंघ का पुः ११०
सिवदान इंद्रमाण का पु. १२२ सवाइय उदावतमांन का पु. ११६
सिवदांन उदावत सबळेस का पु. ११० सवाइय माहव का पु. ११०
सिवदान करमसोत केसव का पु. १३२ सवाइयसिंघ उदावत विजावत का पु. ११६ सिवदान जसावत १०६ सवाइयसींघ (सींघ सवाइ) जोधो जसावत सिवदांन हरियंद का पु. १४२ ११२
सिवसाह करमसोत माहव का पु. १३१ सवाइसिंघ प्रभावत ६६
सिवी करमसोत परियाग का पु. १३४ सांम कुसळेस का पु. ७२
सिवी चंद का पु. ७३ सांमत माहव का पु. १३२
सिवी वारी (बारी) १६५ सांमत सदावत १००
सीदक्क १६५ सांमत सूर का पु. १४८
सुंदर गूजर १६३ साम मोहकावत- ६४
सुंदरदास प्रणदावत १०६ सांवळदास पड़िहार १६१
सुजाण भायल रतनागर का (समुद्रसिंह) सांवळदास भगवान का पु. ७६ साहब विहारी का पु. १३६
सुभरांम उदावत जगरांम का पु. ११६ साहसमल पतावत ५६
सुभो (सुभक्रन, सुभसाह) जसावत चारण साहिब खांन १३६ साहिबखान अजावत ७४
सुभौ पड़िहार १६१ साहिबखांन मांगकियो अमरावत १६१ सुरत कुसळेस का पु. ७७ साहिबखांन सजावत १४१
सुरताण पदम का पु. १४५ साहिबखान सोनगरौ दलावत १५७ साहिबसिंघ जोधावत १०४
सुरतारण सांमत का पु. ७२ साहिबसींध अजावत १६१
सुरतेस दलसाह का पु. ७४ सिंघ उमेद (उमेदसिंघ) प्रजावत १२२ । सुरतेस रघुनाथ का पु. ६०
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सुरतेस रूप का पुन १३ सुरेस (इंद्रसिंह) ७४
सुरौ श्ररणदेस का पु. ६१ सूजड़ (ड़ो) चेलो १९४ सूर श्राणंद का
६१
सूरजमल बारहठ १७१
सूरजमाल अखावत १४६
सूरजमाल जैतावत फतावत १२३
सूरजमाल पीथावत १३६
सुरजमाल सुंदर का पु. १४६
सूरज वाघावत ६२
सूर नाहर का पु. १४५
सूर मुकंद का पु. ५३
सूर राजड़ का पु. १४६
सूरतसिंघ जसावत १४६
सूरतसींघ श्रनावत १३८
सूरतसींघ उदावत सबळावत १२० सूरतसींध जगावत १४०
सेख १६५
सेर ७६, ८०, ८१, ८३
सेर जोध का पु. ७६
सोभ विजावत ६२ हठमाल किसोर का पु. १०५
हमाल सुरतांग का पु. ६५ हठी कलियांण का पु. ६४ हठीखांन १९४
हठी चत्रभुज का पु. ८६
हठी मांडण का पु. ६४ हठी रिछोड़ का पु. ६२ हठी सबळेस का पु. ७४
हठी सूर का पु. १४४
हदी उदावत ११३
हृदो मांगळियो गोरधनोत १६०
[१]
हमीर वारी (बारी) १६५
हर किसन मांन का पु. ६०
हरदास मांगळियो १९३
हरनाथ अबदार १६३
हरनाथ उदावत जीवणदास का पु. १२० हरनाथ केसरी का पु. ५८
हरनाथ भगवान का पु. ७१
हरनाथ साहव का पु. ११० हरसींघ हरिनाथ का पु. ७७ हरि ६३
हरि चेलो १६४
हरिभांग भगवान का पु. ७१ हरियंद १९३
हरियंद प्रखमाल का पु. ६६ हरियंद पंचोळी १८२
हरियंद लाल का पु. १५३ हरिराम महवेची माहव का पु. १२० हरि सबळेस का पु. १६०
हळवाह (बलभद्रसिंह ) १४६
हळवाह (बळरांम) रिगछोड़ का पु. १६२ हळिराम (बळरांम) द्वरावत १५०
हिंद भाउ का पु. १५८
हिंद सिंघ पतावत ६० हिंदाळ दीप का पु. ७७ हिंदाळ नाथ का पु. ८६ हिंदाळ पेम का पु. १६०
हिंदाळ भागचंदोत १३८
हिंदाळ हरि का पु. १५२ हिमतसोंघ चौहांन दलावत १५४ हिमतेस अब्ब का पु. ६०
हिमतेस सोनगरी दुरज्जरणऊत १५७ हिम्मत सुजावत १५२
हिरदयराम मांगळियो भागचंदोत १६०
सूरज प्रकास भाग ३ में श्राये हुए राजाधिराज बखसिंह की सेना के प्रमुख वीरों को नामावली.
अखो भोज का पु. २०४ अगदी अमरावत २०६
श्रदो दुरगावत २२६
रणदी गहलोत देवराज का पु.. २३४
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[
२ ]
प्रणदौ वनराज का पुत्र २२६ अनपाळ माहव का पु. २०२ मलपाळ सगत का पु. २१३ अभी नाथ का पु. २१६ अभी मंडळी भारहमल का पु. २२५ अभी सेखावत अरणदावत २१६ अमांन जोग का पु. २१० इंद्रसींघ चौहान लाल का पु. २२७
सर किसनावत २१६ ईसर चौहान तेजलऊत २२८ ईसर दौढियदार २३४ उसिंघ वैण का पु. २०८ ऊद उदावत प्रताप का पु. २२१ ऊदल २०६ ऊदल कलावत २२३ ऊदल किसनावत २२३ ऊदल दौलतसाह का पु. २०० कनको रूप का पु. २१२ करणी अगदावत २१६ करणी सेखावत हरिनाथ का पु. २२० करन जोधो झुझार का पु. २१५ करनौ अनपाल का पु. २१७ करन्न तेज का पु. २०१ कलौ नरपाल का पु. २३३ कल्याण धांधल २३३ काबिलसींघ पीथल का पु. २१० कासिम २२१ कुसळी सांवळदास का पु. २२८ केहर ऊद का पु. २२६ केहरियो प्रजावत २२२ केहरी इंद का वंशज २३२ खीम प्रचळावत २१० खीम कान्ह का पु. २२३ खीम क्रन उदावत किरतेस का पु. २२२ खेम करग्नि जादव जगमाल का पु. २२८ । गिरधीर पडिहार २३४ गिरमेर (सुमेरसिंह) दलावत २१०
गुमान कंपावत खड़गावत २१५ गुमान जादव जसावत २२६ गुमान जैत का पु. २१० गुमान जोग का पु. २१० ग्यांन सेखावत दलावत २१८ चतुरेस पतावत २०२ चैन उदावत सुभरांम का पु. २२१ जगतो जैत का पु. २१५ जगतो मुकंदावत २२४ जगतो लखधीर का पु. २१४ जवान कुंपावत. सांमत का पु. २२४ जसावतसिंह चौहान २२६ जसो ईसर का पु. २०७ जसो पंचमुख (पंचायण) का पु. २११ जसो सहारिणय २३३ जसौ सेखावत २१६ जोवरण जोगीदास का पु. २०२ जुरावर कुंपावत २१३ जैत अखा का पु. २०७ जैत गोकुळदास का पु. २११ जैत सेखावत भाऊ का पु. २२० जोध जगरूप का पु. २२४ जुझार जादव गिरमेर (सुमेरसिंह) का पु.
२२८ भुझार वरसींघ का पु. २११ झूझ सेखावत चंद्रभाण का पु. २१८ तेज चांपावत अचळावत २१२ तेज सेखावत हरिनाथ का पु. २२० तेज चौहान राम का पु. २२७ दल क्रन्न प्रताप का पु. ११७ दलसाह जोधौ जगतेस का पु. २१५ दलो करणोत २१७ दलो मुकंदावत २०२ दलो कहड़ सुंदरउत २२५ दांन सुजाण का पु. २१२ दूज सेखावत २१९ देवकनोत २०१
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देवकनोत रांम का पुत्र २११ देवियसींघ कुंपावत सांमतऊत २१४ धनी पंचोळी २३३ धनो सेखावत नधलऊत २१८ धीर चौहान दलावत २२७ धीरज लाल का पु. २१७ नंदलाल व्यास २३३ नरसींघ फताबत २१८ नवलौ हिरदेस का पु. २२३ नाथ सहारिणय २३३ नाहर जादव भीम का पु. २२६ पतौ चांपावत नादलऊत २१३ पतौ नाहरऊत २०२ पतौ महकन्न का पु. २०१ पतो सेखावत राजड़ऊत २२० पदमेस किरतेस का पु. २०८ पदमौ चांपावत अनपाल का पु. २१२ पदमौ दलावत २२२ पदमी रतनावत २०८ पदम्म दलसाह का पु. २०६ पाहड़ २२३ पीथ सांदू शाखा का चारण सबळावत २३१ पेम मछरीक (चौहान) मधावत २०२ फतमाल जयतेस का पु. २१० फतो सोनंगिरी हरि का पु. २३२ बखतेस करणेस का पु. २१६ बखतौ सदमाल का पु. २२३ बखतो सांमळऊत २१० बगसो दूद का पु. २१७ बदरौ धावड़ २३३ बहावर चांपावत सुजाण का पु. २१३ बहादर चौहान हीदव सींघावत २२८ बाघ अनोप का पु. २१२ बाघ सेखावत २१९ बुधौ बखतावत २०६ भवांनियदास रूप का पु. २२७ भारतसींघ २१६
भीम कुंपावत हठावत २१४ भूप करमसोत मेघ का पु. २२४ भोप सेखावत सजांण का पु. २१६ मधो (माधौ) करणोत २२२ मनरूप २०७ महरांण हरी का पु. २१६ महिकन पंचोळी २३३ महिरांण २०८ महो लाल का पु. २२७ माहव चारण २३१ मोहव ऊहड़ सुंदरऊत २२५ माहव सेखावत पीथल का पु २१६ मुहको चवांण २२६ मोकम कांन्ह का पु. २०६ मोड उदावत गिरमेर (सुमेरसिंह) का पु.
२२१ मोहण चौहान सूर का पु. २०६ रघुनाथ कुंपावत राम का पु. २१४ राम जैत का पु. २०४ रांम सहसावत २०७ राम सेखावत किसोर का पु. २१८ राम सेखावत सूरजमाल का पु. २१६ राजड़ चौहान अजब का पु. २२७ रूप चौहान कुसळावत पूरबिथो २२६ रूप सेखावत रतनावत २१६ लखधीर सेखावत सुजांण का पु. २१६ लखो ऊहड़ हरियंद का पु. २२५ लाल जसकत का पु. २१४ लाल रामचंदोत २०८ लाल सेखावत झूझ का पु. २१८ लाल हरीद का पु. २३३ विजपाल सुजाण का पु. २३२ विमल पुरोहित माहव का पु. २२६ विसनेस २०१ विसनो चांपावत रघुनाथ का पु. २१२ विहारियदास करमसोत २२४ सगतेस अणदेस का पु. २०१
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[ ६४ ]
सरदार लखधीर का पु. २११
सुरतारण जोध का पु. २१५ सरदार सांमत का पु. २१६
सुरनाथ २१७ सलो कान्ह का पु. २०८
सरता कन्न का पू. २०२ सवाइय २१७
सुरतो हरियंद का पु. २११ सवाइय मान का पु. २१४
सूर मधावत २२६ सांगण सबलावत २२२
सूर मुकंदावत २१३ सांवळ जादव सर का पू. २२८
सूरज मांगळियो २३४ साहिबखां चौहान प्रबदार २३४
सूरजमाल मेड़तियो सिरदार का पु. साहिब नाथ का पु. २०६
२०३, २०४ साहिब मांगळियो २३२
सूर हरीद का पु. २२७ सिंभू उदावत हरनाथ का पु. २२४
सूरिजमाल २०१ सिरदार अनपाळ का पु. २१०
सेर सोढ़ का पु. २१८ सिरदार नवलावत
हरिद भवसिंघ का पु. २०४ सिवदांन गिरमेर (सुमेरसिंह) का पु. २०४ हरियंद जैत का पु. २२६ सिवदांन मनरूप का पु. २०६
हरियो २०५ सिसिंघ सेखावत रामसिंघ का पु. २२० हरिलाल व्यास २३३ सिबसींघ जादव २२६
हिमतेस बखतेस का पु. २०१ सिवी सेखावत भाऊ का पु. २२०
हिमतेस सदावत २१२ सिवो हरनाथ का पु. २११
हिमतौ कूपावत बाघ का पु. २१४ सुजाण धांधल २३३
हिमती मांडणोत २१३ सुद्रसेण जादव कला का पु. २२८
हिमतो राम का पु. २२२ सुद्रसेण सेखावत सूर का पु. २१६
हिमतो सहाणिय २३३ सुभसाह जैत का पु. २२४
हिम्मतसींघ जादव जगमाल का पु. २२६ सूरज प्रकास भाग ३ में आये हुए विजयराज भण्डारी की सेना के मुख्य योद्धाओं की नमावली प्रखौ मान का पु. २४४
जोध इंद्रसिंह का पु. २३८ अभमल दांन का पु. २४४
तेज गोकुळदास का पु. २७१ किसनों प्रथिराज का पु. २४१
दलो पदमावत २३८ केहरी भीम का पु. २४२
देवी कान्ह का पु. २४४ केहरी सुख राज का पु. २४२
धीरजसींघ अमर का पु. २४१ क्रन कुंपावत
नाथ रघुनाथ का पु. २४५ गजण सवाइ का पु. २३८
पदम (पदम) कछवाह २४७ गजबंध लाल का पु. २३८
पातल चौहान प्रभा का पु. २४५ गुलाब हठमाल का पु. २४०
बुध राम का पु. २४४ जगपति अरजण का पु. २४२
भगवंत केहरी का पु. २४१ जसो संभव का पु. २४२ जालम (जालमो जालिमां) केहरी का पु..
भगोत भावसिंघ का पु. २४२ २३७
भूपाल देवीसींघ का पु. २४२
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[
६५
]
महिरांण भागवत का पु. २४७
सांमत (सांमतसींघ) २३६ मान अनोप का पु. २४४
सांमत किसन का पु. २४४ मांनड़ कान्ह का पु. २४५
सांमत गोकुळदास का पु. २४१ मोहकम अमर का पु. २४४
सादूळसी २४२ रतन राम का पु. २४१
सालिम बहादुर का पु. २४० राजड़े (राजड़ो) किसन का पु. २४४ सालिमी सरदार का पु. २३६ लाल किसनेस का पु. २४५
सिंभूसिंघ २३८ विसनेस कछवाह अना का पु. २४६, २४७ सिवपति हठी का पु. २३८ वैरी भैरव का पु. २४३
सुरतेस सेर का पु. २३८ सकतौ विंदाधन का पु. २४५
सुरतेस अखमाल का पु. २४१ सगतेस गोकळ दास का पु. २४०
सेरसाह २४१ सत्रसाल इंद्रसिंध का पु. २३७
हरकिसन प्रभमल का पु. २४५ सरूप २४२
हिंदव बहादर का पु. २४३ सवाइय राजसी का पु. २४५
हिम्मतसिंघ राम का पु. २४४ सवाई सुरत का पु. २४०
हींदुव प्रखमल का पु. २४३ । __ ग्रंथ की भूमिका को समाप्त करने के पूर्व में राजस्थान प्राच्य-विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर के सम्मान्य संचालक पद्मश्री जिन विजयजी मुनि, पुरातत्त्वाचार्य के प्रति आभार प्रदर्शित करता है कि उन्होंने साहित्य की इस अमूल्य निधि का जो ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, सम्पादन करने की सत्प्रेरणा दी।
ग्रंथ-सम्पादन में राजस्थान प्राच्य-विद्या-प्रतिष्ठान, जोधपुर के उप-संचालक श्री गोपाल नारायणजी बहरा, एम. ए. ने समय समय पर मार्ग-निर्देशन कर सहायक ग्रन्थों के अध्ययन में सहयोग देकर तथा ग्रंथ में कविराजा करणीदान व महाराजा अभयसिंह के चित्र प्राप्त करने में जो सहयोग दिया उसके लिये मैं पूर्ण कृतज्ञ हैं। साथ ही श्री पुरुषोत्तमलाल मेनारिया को भी धन्यवाद देता है कि उन्होंने ग्रंथ के प्रूफ-संशोधन में सहयोग दिया।
~~सीताराम लालस
रोडला भवन जोधपुर श्रावणी तीज, सं० २०२०
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सहायक ग्रंथों की सूची
१ श्रासोप का इतिहास - पं० रामकरण ग्रासोपा |
२ उदयपुर राज्य का इतिहास - डॉ० गौरीशंकर हीराचंद ओझा, भाग १-२ ।
३ श्रौरंगजेबनामा - मुंशी देवीप्रसाद ।
४ जोधपुर राज्य का इतिहास - डॉ० गौरीशंकर हीराचंद श्रोझा, भाग १-२ ।
५ जोधपुर राज्य की ख्यात - हस्तलिखित, हमारे संग्रह की ।
६ टॉड राजस्थान, हिन्दी अनुवाद - पं० बलदेवप्रसाद मिश्र ।
७ तवारीखे - पालनपुर - सैयद गुलाब मियां कृत ।
८ नीमाज का इतिहास - पं० रामकरण आसोपा ।
६ नैणसी की ख्यात - काशी नागरी प्रचारिणी सभा ।
१०
भारत का बृहद इतिहास, द्वितीय भाग (द्वितीय खंड ) - प्रो० श्रीनेत्र पाण्नेय, एम ए.,
एल. एल. बी.
११ मारवाड़ का इतिहास - महामहोपाध्याय पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ, प्रथम भाग । १२ मारवाड़ का संक्षिप्त इतिहास - पं० रामकरण सोपा |
१३ राज रूपक - वीरभारण रतनू कृत ।
१४
राज विलास - मान कवि कृत, नागरी प्रचारिणी सभा, बनारस । १५ लेटर मुगल्स - इर्विन ।
१६ वंश भास्कर - कविराजा सूरजमल मीसा ।
१७ वीर विनोद - महामहोपाध्याय कविराजा श्यामलदास कृत भाग १-२ । १८ हिस्ट्री श्रॉफ प्रोरंगजेब - यदुनाथ सरकार ।
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राजस्थान पुरातन ग्रन्थ-माला ]
[अन्यात ५७
गणपति श्रीपति गवरिपति, सुमिरि शारदा भान ।
पञ्चदेव पूजा निरत, कविया करणीदान ।। (महाराजा साहिब जोधपुर के निजी ग्रन्थ-भण्डार “पुस्तक प्रकाश" में से ठाकुर जयकृतसिहजी, एडमिनिस्ट्रेटर के सौजन्य से प्राप्त चित्र)
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कविया करणीदांनजी विजैरांमोतरौ कह्यौ
सूरजप्रकास
भाग ३
जुधरौ वरणण कवित्त- 'अभमल' जयधुंद प्रेम, सबळ दळ लियां' सकाजा।
सहर नदी उपरास, मँडे डेरा महाराजा । विदा किया जिण वार, जोध करि वीर जगाया।
किलां सिरै कमधजां, लड़ण मोरचा लगाया। विकराळ तोप चोळां-वदन, छट' धूवा रव छावियौ । जुध पड़े रीठ अोळां ज्युही', गोळां - अंबर - गाजियौ'२ ॥ १
ग्रीव ३ पड़े सिर गुडे, भड़ां धड़ पड़े भिड़ज्जा' । कोट पड़े कंगुरां१५, भूक हुय'६ पड़े भिड़ज्जां । छाजा पड़े अछेह, मँडप उडि पड़े महल्लां । मुगळोणियां'६ अमाप, पडै आधांन दहल्लां'।
१ ख. ग. लीयां। २ ख. माहाराजा। ग. महाराजां। ३ ख. कीया। ४ ख. किरि । ग. किर। ५ ग. दोप। ५ ख. ग. छुटि। ७ ख. धूवां । ग. धुवा। ग. रवि । ६ ख. छाजीयो । १० ख. ग. गडे । ११ ख. ग. जही। १२ ख. गाजीयौ। १३ ख. ग. ग्राव । १४ ग. भिडझं । १५ ख. ग. कांगुरां। १६ ख. ग. होय। १७ ख भुरज्जां। ग. भुरझ्झां। १८ ग. महिलां । १६ ख. मुगलांणीयां । २० ग. पड़ि। २१ ग. दहलां।
१. चौळां-वदन - जोशमें लाल मुख किए हुए । छट - शीघ्र । रव - रवि, सूर्य ।
छावियो - पाच्छादित हो गया। २. ग्रीव -गर्दन । भिड़ज्जा - घोड़ों। भूक - चूर्ण,नाश। अमाप -- अपार । प्राधान -
गर्भ । दहल्लां - आतंक।
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सूरजप्रकास पनँगेस' पड़े कँध कोम पर, धोम पाराबां धड़हडै । तड़फड़े पड़े' मछ' नीर तिम', पड़े दमँग गोळा पड़े ।। २
राकस जिम रवदाळ, कमँध कपिराज सकाजा । वीर 'अभौ' बखतेस, राम लछमण जिम राजा * । विध रावण सिरविलँद, उहिज' चित धरै इरादौ ।
जुड़े पहल इंद्रजीत, जेणि'१ विध' साहिबजादौ । लंक जिम' वाद अहमँद लियण', लख गोळां झड़ लागियो । वमरीर अभायण जुध विखम, जुध रामायण जागियौ ॥ ३
सातम" निसा सरब्ब', अनै निसदिन असटम्मी' । अमासमा२ घण उडै, ज्वाळ गोळा नभ जम्मी । नमि तिथ कड़क निहाव, धोम सौगुणां अँधारां ।
अोळां जिम मँडि उरड़, असण४ गोळां अणपारां५ । अडडाट ६ नाद वैराट" अज, घट्ट८ जांणि दूजौ२६ घडै । वरसाळ झाळ गौळां. वहनि, प्रळे काळ छौळां३१ प. ॥ ४ १ ख. ग. पनगेस। २ ग. प्रतिमें यह शब्द नहीं है। ३ ख. मछि। ४ ग. जहांनीर । ५ ख. ग. तपि। ६ ग. राज। *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। ७ ख. ग. विधि। ८ ख. वोहीज । ग. बोहीज। ६ ख. धरे। १० ख. अरादौ । ११ ग. जेण। १२ ख. ग. विधि। १३ ख. ग. जेम। १४ ख. ग. लीयण। १५ ख. ग लागीयो। १६ ख. जागीयो । ग. जागीयो। १७ ख. सातिन । ग. सातीम। १८ ख. सरव्व । १६ ख. ग. असदमी। २० ख. अम्हांसम्हां । ग. अम्हसम्हां। २१ ख. जमी। २२ ख. तिथि । २३ ख. मझि। २४ ख. ग. असणि। २५ ख. उणपारां। २६ ख. अडडाट । ग. उडदाट। २७ ख. वैराज। २८ ख. ग. जद । २६ ग. दूजो। ३० ख. गोला। ३१ ग. छोळां ।
२. पनँगेस - शेषनाग । कोम - कूर्मावतार, कच्छपावतार। धड़हडै - अावाज होती है।
मछ – मत्स्य । दमग-- अग्नि करण । ३. कपिराज - हनुमान, सुग्रीव । इरादौ - विचार । साहिबजादौ - शाहजादा । वाद
अहमद - अहमदाबाद । वमरीर - जबरदस्त । अभायण - वह ग्रंथ जिसमें महाराजा
अभयसिंहका चरित्र-वर्णन है। ४. अमासमा - एक दूसरेके सम्मुख । नभ-पाकास । कड़क - जोर । निहाव -
प्रहार, प्रहारकी ध्वनि । असण - तीर, बाण। अडडाट - ध्वनि विशेष। अजब्रह्मा, कुम्भकार । वरसाळ - वर्षा । वहनि - अग्नि ।
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सूरजप्रकास
[ ३ . धिकतां' इम' रिण' धोम, 'अभै' विलँद कहाए । जिम तै' लिखे जबाब', अम लड़ि चौड़े पाए। चाक पहल चाढ़िया , जुड़ण चौगांन जमीरां ।
अबै कोट लैं प्रोट, अह' नह सरत' अमीरां । सुणि एम वचन प्रजळे असुर, इसौ'५ तेज दरसावियौ१६ । वमरीर वाघ बतळावियौ', जांण नाग खिजावियौ ।। ५
जमरूपी जिणवार, एक गोळी ६ गढ़ि पाए । तन बगसी तन तोड़ि, अळग ले गयौ १ उडाए । दरह हुवो *खळ दळां, भांण विण जेम तपोभ्रम ४ ।
गरद हुवौ* 'गुलमीर', 'सयद'२५ 'कायम्म'१६ समोभ्रम । सिर विलँद एह कथ सांभळी, खबरदार दक्खी ८ खड़े२६ । गुलमीर खांन उड्डे • गयौ, साहि निवाजस' सांकड़े ॥६
सुत बगसी साधियो, पाप सुत सुणे डरायौ । मण हजार सोरमै, जांणि सुरमुक्ख ४ जगायौ ५ ।
१ ख. धिषतां । २ ख. ग. यम। ३ ख. ग. रण। ४ ख. ग. ते। ५ ग. लिषे । ६ ख. ग. जुवाव। ७ ग. चोडै । ८ ख. ग. चाकि । ६ ख. चाढ़ीया । १० ख. लोय । ग. लीये । ११ ख. येह । १२ ख. सरति । ग. रीत। १३ ख. समीरां। १४ ग. प्रजलै। १५ ग. इसो। १६ ख. दरसादीयौ। १७ ख. वतलावीयौ। १८ ख. पोजावीयो। १६ ख. गोलो। २० ख. वगसी। २१ ख. ग. गयो। २२ ख. उडाए । ग. उडायै।
*... *चिन्हांकित पंक्तियाँ ख. प्रतिमें नहीं हैं। २३ ग. भोंण। २४ ग. तमोभ्रम । २५ ख, ग. सैद। २६ ख. ग. कायम । २७ ख. विलं । २८ ख. दष्पी । ग. दषी। २६ ख. पडै । ३० ख. उडे । ग. उडे। ३१ ग. निबाजस । ३२ ख. ग. वगसी। ३३ ख. साझीयौ। ग. साझियौ। ३४ ग. सुरमष । ३५ ग. जगायो। ....चिन्हांकित पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं ।
५. धिकता - क्रोधाग्निमें प्रज्वलित । अभै - महाराजा अभयसिंह। चाक चाढ़िया
उत्तेजित किए। जुड़ण - भिड़ना, टक्कर लेनेको, युद्ध करनेको। दरसावियौ - दिखाई दिया। खिजावियो - कुपित किया। ६. बगसी - ( ? ) गरद - ध्वंस, संहार । गुलमीर - गुलमीरखां नामक सर बुलंदका
योद्धा । सांभळी - सुनी। दक्खी - कही। सांकड़े - संकटमें । ७. साधियौ - ( ? ) । सोरम - बारूदमें । सुरमुक्ख - अग्नि, भाग।
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सूरजप्रकास
'विलँद' ताम वीफरे', धूत दाढ़ी' कर धारै'।
ईसफहां' प्रासफां', 'इलम फातमा उचारै । महमँद इमाम कहि कहि मुगळ, असिमर ग्रहि करिमुख अरण । ताकीद कीध सांजति करण", किलम'' राड़'' चौड़े' करण॥ ७
सुणे कीध 'अभसाह', किलम'ताकीद'५ हुकम्मां । बिहुवै फौज नकीब, तांम फिरिया'६ हमतम्मां । खुरासांण हिंदवांणा', करै साजित'६ अँग कारण ।
तदि किसड़ा गज तुरंग, दुझल सुर अासुर दारण । करि' चाळ२२ वीर सांजति करै, घणा जोमहूंता२४ घणा । किण भांति तरफ दहुंवां कहूं, तिकै रूप चहुंवा तणा ॥ ८
१ ग. वाफर। २ ग. डाढ़ी। ३ ख. धारे। ४ ग. इसफंहां। ५ ख. ग. प्रासपां । ६ क. फातणं। ७ ख. उचारे। ८ ख. मुषकरि । ग. मुषकर। ६ ख. ताकीत । १० ख. ग. तणी। ११ ग. कलम। १२ ख. प. राडि । १३ ख. चोडे । १४ ख. रा. कलह । १५ ख. ताकीत । १६ ख. फरीया । ग. फिरिक । १७ ख. हमतम्मा । ग. हमत्तमा। १८ ख. हीदवांण। १६ ख. ग. साजति । २० ख. ग. दारुण। २१ ख. ग. कलि। २२ ख. चारु। २३ ग. साजनि । २४ ख. ग. जोमहुंता। २५ ख. दहुंवौं। ग. दहूंव। २६ ख. ग. तिके। २७ ख. चहुवां । ग. चहूवां ।
७. वीफरे - कुपित होता है। धूत - धूर्त, दुष्ट । दाढ़ी 'धार - जिस प्रकार हिन्दू अपनी
श्मश्रु पर ताव देते हैं उसी प्रकार मुसलमान युद्धादिके समय अपनी दाढ़ी पर हाथ धरते हैं। ईसफहां - ( ? )। आसफां - ( ? )। इलम - इल्म, साना। फातमां - मुहम्मद साहबकी कन्या जो हजरतअलीकी पत्नी और हसन तथा हुसेनकी माता थी। महमद - इस्लाम धर्मके प्रवर्तक, अरबके प्रसिद्ध पैगम्बर मुहम्मद । इमाम – मुसलमानोंमें धर्मशास्त्रका ज्ञाता और विद्वान, धार्मिक नेता, पथ-प्रदर्शक । असिमर - तलवार ।
प्ररण - अरुण, लाल । सांजति - ( ? )। ८. बिहुँदै - दोनों । साजित - तैयारी। दहुंवां - दोनों। चहुंवां - चारों ओरसे ।
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सूरजप्रकास
सालांणरा सुचंग, सिंघल * महा' चीन मुलकरा, रजे रैवा तटि बींझरा* *, रांन
1
केक ६ मुळावाररा ँ, केक" पारा समुदां ।
उंजरा'" । कुंजरा ॥ ६
१४
बहगिरा फिरँग पूरब्बरा", आरकट्ठरा पंच गजी पीठरा धीठ पिंड, काळ रूप घण'
१३
छंद पद्ध: हाथियांरांरा वखांण
१०
१ ख. ग. माहा ।
५ ख. ग. रंग
ग. समदां ।
ग. वूंजरा ।
१७ ख. ग.
चोळ |
।
२२ ग. क्रीळा
ललचल । ग. ललवल ।
दीपरा सकाजा । राजा ।
कजळीवनि रूपरा गिरंदां ।
दळ मैंगळ इसा
दहुं विण
१५
" पठा मद छौळ १६
घण पावस नीझर गिरँद परनाळ १७ व है" मद पंच पाट || १०
19
ह
२०
.२१
चख प्रारण े धिग्वता रूप चोळ क्रीड़ा ** करंत मधुकर कपोळ पोगरप४ रागरा
२. स्व. ग. कजलीवन । ३ ख तट
*...*
• * चिन्हांकित पंक्तियां ख. प्रतिमें दुबारा आई हुई हैं ।
६ ख. केयक । ७ ग. मलावार । ८ख. ग. केयक ।
१० ख. बौहौगिडा । ग. बौहौगिडा ।
१३ ख घणा । १४ ख. कूंजरा । पंडनाळ ।
-
२
दूठ ।
वूठ |
घाट ।
.२३
लाग लळवळ १५ अनूप । रीभिया नाग
रूप ।। ११
४ . ग. विंभरा ।
६. सुचंग - श्रेष्ठ सिंघल दीपरा एक द्वीप जो भारतवर्ष के दक्षिरण में हैं, सिंहलद्वीप । कजळीवनि एक प्राचीन वनका नाम जहां पर हाथी बहुतायत से पाये जाते थे । बींझरा - विध्याचल पर्वतके ।
११ ख. पूरव्व । ग. पूरब ।
ख. समुदां । १२ ख. १५ ख. ग. श्रव । १६ ग. छोळ ।
१८ ग. बहै । १६ ख. पांच / २० ग. श्ररण । २१ क. २४ ख. पौगलप । ग. पोगरप ।
।
२३ क. कपौळ ।
२५ ख.
२६ ख. रोझीया ।
[ ५
१०. मैंगळ - हाथी । बूठ - जबरदस्त । पठा- युवा । छौळ - धारा, प्रवाह । वूठ - वर्षा (?) 1 पावस- वर्षा ऋतु । नीकर - भरना । घाट मकान की छत से पानी नीचे गिरनेका नाला ।
बनावट । परनाळ -
११. खिता - प्रज्वलित । चोळ-लाल । क्रीड़ा खेल ।
हाथी की सूंड पर । लळवळ - मुड़ती है। रीझिया - खुश, हर्षित ।
-
मधुकर - भौंरा । पोगरप
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सूरजप्रकास गातरा जिके तम सिखर गात । जातरा अमोलक भद्रजात । दंतरा ठिलां ढाहिक' दुरंग । ऊधरा चाचरा मसत अंग ।। १२ तन रूप घटा भाद्रवतणास । घेरिया फौजदारां' घणास* । प्पूतारै मारै गडां पांण । इण विध बैसारै नीठ प्रांण ॥ १३ झाटकि रूमालां गिरद झाड़ि' । पैछौळ कीध जिम घण पहाड़ि' । मसळंद' करां हाथळ मळेस'४ । जांमळे पाक तत्ते जळेस ।। १४ औ'पहल१५ तेल फेरे१६ अरोह' । बह ८ दीध प्रांमलांतणा'६ बौहरे । सभि किया'' इंद्र धानख२२ सरीस ।
सिंदूर अँगालां तिलक सीस ।। १५ १. ख. ढाहक । २ घेरीया । ३ ग. फोजदारां।
*यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। ४ ख. पौतारे। ग. पोंतारे। ५ ख. मारं । ६ ख. गणां । ७ ख. विधि ! ख. वैसारै । ग. वेसारे। ६ ख. प्राणि। १० ख. ग. रूमालां। ११ ख. ग. झाड। १२ ख. पहाड़ । ग. पाहाड़। १३ ख. ग. मसरूद। १४ ख. मसेल । १५ ख. ग. रूपहल । १६ ख. ग. फेरे । १७ क. प्ररोहे । १८ ख. ग. वौहौ । १९ ग. आलमांतणा । २० ख. वोह । ग. बोह। २१ रू. ग. कीया। २२ ग. धानेष ।।
१२. तम - अंधेरा, श्यामता। तम सिखर - काला पहाड़। भद्रजात - श्वेत रंगका हाथी।
ठिला- टक्कर । ढाहिक - गिराने वाला। ऊधरा - ऊंचा उठा हुआ। चाचरा
भाल, ललाट। १३. भाद्रवतणास - भादों मासके। फौजदारां - महावतों। पूतारे - जोश दिलाते हैं ।
गडां - गंडस्थल । पांण - हाथ । बैसारै - बैठाते हैं । १४. गिरद - गर्द, धूलि । मसळूद – मसल कर। करा- हाथों, सूंडों। जांमळे - एक
साथ कर दिये। १५. बौह - सुगंध, महक ।
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सूरजप्रकास
a
वूठाळू' रूपकंध ।
किलावा
चमरबंध ।
कंठळ
बंधिया
.५
तहमद्द* झूल कसि जंगी धरि हवदां आरांम राड़ियां ®
तां ।
जांम ॥ १६
छक
उपाट ।
घण भीड़ नाड़ियां चंड" घाट ।
घण लोह भार पक्खर १ घुमाय । आय ॥ १७
प्रोपै जिम पाहड़ पंख
द्रावर तणा घण १४ के
१२
3
पाल ।
ढळकाय चाचरां भमर ढाल ।
गड़ सिलह ससत्र कसियां २ गरूर ।
719
घंट
पूठि
६
सिर चढ़िया " महावत महासूर" ।। १८
धर फरर चढे नीसांण धार ।
१६
परचंड मही मुरतब कसि नौबत ' अन हौद मेघडंबर
१
-
अपार ।
धारक चढ़े " केक ।
अनेक ॥। १६
३ ख. वांधिया । ग. वाधिया ।
१ ग. वूगलूं । २ ख. रूपकांधि | ग. जिम रूपकांधि । ४. वांधि । ग. बांधि । ५ ख. ग. तहनमंद | ६ ग. धर । ७ ख. ग. राड़ीयां । ८ख. ग. भीडि । ख. नाडीयां । १० ख. ग. प्रचंड । ११ ख. ग. पष्यर । १२ ख. श्रद्राण | ग. श्रोद्राण | १३ ख. ग. तवा । १४ ख. ग. षड । १५ ख. ग. कसीयां । १६ ख. चढ़ीया । ग. चढ़ि । १७ ख. ग. माहावत । १८ ख. माहासुर । १६ ख. ग. नौवति । २० ग. चढ़ि । २१ ख. ग. श्रनि ।
१६. कंठळ - हाथी के कंठका आभूषण | किलावा - कलाप । चमरबंध - ( ? ) । तहद्द - कमर से लपेटनेका कपड़ा या अंगोछा, लूंगी, तहमद ।
१७. नाड़ियां - हाथीकी अम्मारी कसनेका मोटा रस्सा विशेष ।
पक्खर - हाथीका कवच |
१८. श्रद्राव तणा- आतंक के भयके । सिलह - कवच । गरूर - जबरदस्त ।
१६. नीसांण - झंडा । मेघडंबर - मेघाडंबर, छत्रविशेष ।
[ ७
चंड प्रचंड, महान ।
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८]
सूरजप्रकास
मगरूर हौद ' जँगियां मझार । धुर चढ़े अरब हथिनाळ धार | सादा केयक बंध साधि |
बह' वीजळ' सूंडाडंड बांधि ॥ २० तै भारण बारह मण
सतोल 1 खोल ।
खंभारण लंगर दीध
०
११
दाल बोलं " विरद जांम |
13
१४
तपसी जिम खोलै पलक तांम ॥ २१ तरियलां नजर श्रांण" तयार । दौड़िया " हाक करि डाकदार । लंगरां खळकतां हले लार । दोळा गिलौळ गड चरखदार ।। २२ एहड़ा गयँद खुटहड़' रोड़ |
जोड़ |
19
१६
919
१२
जमदूत भूत प्रबधूत'
१८
धावंत खुन कज्यूं' ` उरड़ धाव । नख तांम गिलोळां पड़ि निहाव || २३
३ ख. ग. मंभार ।
१ ग. हौदा । २ ख. ग. जंगियां । ४ ख. हथनालि । ग. हथनाळ ! ५ ख. वहौ । ग. बहु | ६ ग. बीजळ । ७ ग. सूंडादंड । ८ख. मस । ख. णतोल । १० ख. थापलि । ग. हाथल । ११ ख. ग. बोले । १२ ग. धीरज । १३ ख. ग. बोले । १५ ग. दोडिया । १६ ख. घुटहक । ग. घुटहड | १७ ख. ग. श्रबधूत | १६ ख. ग. कजि ।
१४ ख. ग. प्रांणे ।
१८ ख. ग. बूंन ।
२०. धुर - प्रथम । हथिनाळ - तोप विशेष । वीजळ - तलवार । सूंडाडंड - हाथीको सूंड ! २१. खूंभारण - हाथीके बांधनेका स्थान । लंगर - हाथीको पैरसे बांधने की जंजीर ।
२२. तरियां ( )। डाकदार - मस्त हाथीको राह पर लाने वाले घुड़सवार जिनके
हाथमें साथ होता है । खळकता - ध्वनि करते समय । दोळा - चारों ओर । गड भाला विशेष जिसे मस्त हाथीको सीधा करनेके लिए डाकदार हाथी पर मारते हैं । चरखदार - मस्त हाथीको सीधा करनेका चरख नामक उपकरण रखने वाला । २३. खुटहड़ - जबरदस्त, उद्दंड । श्ररोड़ न रुकने वाला । जोड़ - समान, तुल्य | निहाव - प्रहार, चोट ।
-
i
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सूरजप्रकास
रौद्रांण भचक' भालां
गरोठ ।
धारक्क बहै गज बाज '
धीठ ।
.५
धड़ड़े धोमां रव चरख धोम | aff धोम अंधारव गोम बोम ।। २४ कत्तक्क" हार कळहळ क्रहाक । हुतात" धत वीर" हाक नब्बाब अनै दरगह नरंद । गहतंत एम प्रांणे गयंद ।। २५
१२
कवित्त - खळळ सँकळ मद खळळ, मसत घूमंत मदग्गळ'
-
४
६
मेघ डमर " नीसांण, मही मुरतबां झळाहळ । प्रचंड लोह पाखरां, चोळबोळां" चखचोळां' जँगी हवद जकड़िया, तवा खळकिया कपोलां । हथनाळ दगण प्रारब हसम, माहुत चढ़िया मैंगळां । देवळां तरा धर करि" दुगम, जंगम जूथ वोभाजळां
१८
.१६
२०
२१
२३
२४
५
॥ २६
-
२४. रौद्रांण - भयंकर । भचक - प्रहार, प्रहारकी ध्वनि । - ध्वनि करते हैं। धोमां-रव- धुंएकी आवाज । २५. कळहळ - कोलाहल । ऋहाक - ध्वनि ।
3
1
५. ख.
१ क. भबक । २ ख. धारक्व । ग. धारक ! ३ ख. ग. बाग ! ४ ख. दीठ । ग. धड़हड़ । ६ ख. ग. वणि । ७ ख. ग. वोम । ८ख. ग. कौतक्क । ख. ग. होय । १० ख. धताधता । ग. धत्ताधत्ता । ११ ख. ग. धत वीर । १२ ख. नव्वाव । ग. नबाब | १३ ग. मदगाळ । १४ ख. ग. डंबर | १५ क. चौळबौळां १६ क. चौळां । जडकीया । ग. जडिकया । १८ ग तथा । १६ ख. षडकीया । ग. षडकिया । ग. हथनालि । २१ ख. आरव । ग. अरब । २२ ख. ग. हमस । २३ ग. मावत । २४ ग. तरां । २५ ख. ग. किर । २६ क. वीजाजळां ।
१७ ख.
२० ख.
[
गरीठ- जबरदस्त, हाथी । धोम - प्रग्नि ।
२६. खळळ - जंजीरके हिलनेकी ध्वनि या जल-प्रवाहकी ध्वनि । मदग्गळ = मत्कल - हाथा । मेघ डमर - मेघाडम्बर नामक छत्र । चोळबोळां - पूर्ण लाल । चखचोळां - जोशमें लाल नेत्र किये हुए ।
तवा - हाथीको हथनाळ - बंदूक
ललाट पर युद्ध के समय धारण कराया जाने वाला उपकरण । दगण - दागने पर, दागनेको । प्रारब- तोप इसम - सेना, फौज । मैंगळां - हाथियों । जंगम - चलने वाला | वीझाजळां - विध्याचल पर्वत ।
सकळ - श्रृंखला | नीसांण - फंडा ।
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१० ]
सूरजप्रकास
घोड़ारा वखांण
छंद पद्धरी- ऊपना असिल अराक अंग ।
तै बलख खेत पारब तुरंग । अन्नेकम' को तेजह अथाहि । मोमना* चेचि' कहि तुरँग माहि ॥ २७ रुमहरी हुसेना बाद राति । जिण अरब मांहि वळि नौख जाति । खंधारी उतन खंधार खेत । लख लख मुलवारी मोल लेत ॥ २८ बेखता ताव मुज नस्सबाज । बह डसिय' दंत तन गुरज बाज'' । खित तुरकी आलातीन खेत । बाला'३ मुसैद रोसनी'३ बेत । २६ चह्नई हरेवी रूप चंग । तारीफ रंग तौफा ४ तुरंग । दुरकेबा१५ केयक'६ जमी दोज । चितरांम लिखीजै इसा चोज ८ ॥ ३०
.
१ ख. ग. अनेकम । २ ख. मोमता। ३ ख. ग. चेच । ४ ख. ग. वाद। ५ ग, जिन । ६ ग. बलि। ७ ख. मूल । ८ ख. वेषता । ग. भेषता। ६ ख. वौहो। ग. बौहो । १० ख. ग. उसीय। ११ ख. ग. वाज। १२ ख. ग. वाला। १३ ग. रोसवी। १४ ख. ग. तोफा। १५ ख. ग. दुरकेवा। १६ व. ग. केइक । १७ स्व. दौज। १८ ग. चौज ।
२७. ऊपना - उत्पन्न हुए। प्रेराक - तेज । खेत - उत्पत्ति-स्थान । प्रारब- अरब देश ।
२६. भिन्न २ थोड़ोंके उत्पत्ति स्थानोंके नाम हैं।
२६. बेखता - दिखाई देता है।
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सूरजप्रकास
साल ।
सोवनरा ताजी च्यार पँच दोक' दिनां पौरस
पाल ।
धुर केक माळवी सरस धज्ज ।
भीमड़ाथ थळी वाळा भिड़ज्ज ।। ३१
कूदणा
कछी छेकै
कुरंग ।
तुरंग |
तत्ता * स्रब तुरंगांहूं भुजनगर
कठियांण
खेतकाज ।
बेखता तता कपिहूत बाज" || ३२ घण घाव घटै नह पांण घाट । धुर खेत ऊपना" जिके घाट " । उण धाट खेत मझि बळि आधि ३
१२.
1
४
.१५
१६
बप तेज बगारा" तुरंग' " बाघि तुरियंद" जिसा रथ श्रापताप मुरधरा खेतरा बळ अमोप ।
1
२.१
अन माहेव रासि
२४
1
राह बहु" मोल रूप बळवंत
३५
हुबासि ।। ३४
19
3
१ ख. दोय । २ ख. विना । ३ क. भिभड़ाय । थव । ६ ख. कठीयांण । ७ ख. ग. वेखता । उपना । ११ ख. घाट । १२ ख. ग. बळ । वप । १५ ख. ग. बंगारा । १६ ग. तुरंगि १६ ख. ग. जसा | २० ख. ग. श्राफताप । महिए । ग. सहि । २४ ख. ग. वरास ।
।
१३
२०
७
॥ ३३
[ ११
४ ख. ग. ताता । ५ ख श्रव । ग. ८ख. वाज । ६ ख. ग. धाव | १० ग. १३ ख. ग. प्रसाधि । १४ ख. वर्ष । ग.
१७ ख. ग. वाधि ।
१८ ख. ग. तुरीयंव |
२१ ख. वल । २२ ख. राउद्रह । २३ ख. २५ ख. बौहौ । ग. वोहो ।
३१. ताजी - घोड़ा | भीमड़ाथ - रंग विशेषका घोड़ा । थळी - मारवाड़ राज्य । भिड़ज्ज -
घोड़ा ।
३२. कछी - कच्छी घोड़ा । तत्ता - बहुत तेज । कठियांण - काठियावाड़ी घोड़ा । बाज़ -
घोड़ा ।
३३. पांण - प्राण, शक्ति, बल । घाट - कम । घाट -
ऊमरकोट प्रान्तका नाम ।
३४. तुरियंद - घोड़ा । श्रापताप - आफताब, सूर्य । श्रमाप- अपार । राद्रह - मारवाड़ राज्यांतर्गत एक प्रान्तका नाम । माहेव - बाड़मेर जिलेका प्राचीन नाम । हुबासि -
घोड़ा ।
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१२ ]
सूरजप्रकास
लाखौरी' सुरंग अजूब- लैत । किसमसी साह ज्यांनू कुमैत । तेलिया' मुहा संदळी तुरंग । सोसनी सबज हंसा सुरंग ॥ ३५ रोसनी बिदामी" पेस रूंद । कागड़ा हंस चकवा कबूंद । गुलजार बौज' अबलक्ख' गात । सिँदळी'' अनै सरंगा सुभात ॥ ३६ बह' ने अबरस१३ मुसकी अर सँजाब । बौरता१४ केहरी पेस बाब'५ ।
१ ग. लाखेरी। २ ख. अजूव । ३ ख. जानूं । ग. मूजानु । ४ ख. ग. तेलीया। ५ ग. संदनी। ६ ग. हजा। ७ क. विदांनी। ८ ख. ग. कवंद । ख. वोज । ग. बोज । १० ख. ग. अबलष्य । ११ ख. ग. सुदली। १२ ख. ग. वहौ। १३ ख. ग. अवरस । १४ ख. वोरता । ग. बोरता। १५ ख. वाव ।
३५. लाखौरी - रंग विशेषका घोड़ा। सुरंग - लाल रंगका घोड़ा। अजूब - ( ? ) ।
किसमसी - किश्मिशके रंगका घोड़ा जो शालिहोत्रके अनुसार शुभ माना जाता है। कुमैत - एक प्रकारका शुभ रंगका घोड़ा। तेलिया - तिलके तेल के रंगका घोड़ा। संदळी - हल्के पीले चंदनके रंगका घोड़ा । सोसनी - बैंगन के रंगसे मिलते रंगका घोड़ा, जो शुभ माना जाता है। सबज - हरे घासके रंगसे मिलते रंगका घोड़ा, सब्ज, यह अति शुभ माना जाता है। हंसा-सुरंग - सफेदी लिए हुए हल्के लाल रंगका घोड़ा
जो शुभ माना जाता है। ३६. रोसनी-घोड़ेका रंग विशेष । बिदामी - बिदामके रंगका घोड़ा। पेस रूंद -
( ? )। कागड़ा - सफेदी लिए हुए हल्की श्यामताके रंग वाला घोड़ा विशेष (?) । हंस - सफेद रंगका घोड़ा। चकवा - चक्रवाक पक्षीके रंगका घोड़ा जो अत्यन्त मांगलिक व शुभ माना जाता है। कबूंद - ( ? ) । गुलजार - रंग विशेषका घोड़ा । बौज - शुभ रंगका घोड़ा, इसका दूसरा नाम बौजलखी भी है। अबलख - चितकबरा घोड़ा, इसका दूसरा नाम बौजलायी भी है। सिंदली – शुभ रंगका घोड़ा । सरंगा -
(?)। ३७. अबरस - शुभ रंगका घोड़ा। मुसको - मुश्कके रंगका घोड़ा। संजाब - संजाफ -.
आधा लाल, आधा सफेद या प्राधा लाल, आधा सब्ज घोड़ा। बौरता- शुभ रंगका धोड़ा। केहरी- सिंहकेसे रंगका घोड़ा।
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सूरजप्रकास
कासनी ताफता पंच सूलहरी' चंपा पट जिलहरी प्राबनूंसी मुरहरी हरी सेली
आवै न पार कहता
.५
रँगजीत
कबूतरतणा
१ ख. सुलहरी । ग. सुनहरी । ५ ख. रंगजिता । ग. रंगिजिता । ग. वाजुवां । ६ ग. बलाक |
वळाक ।
नखउलट कटोरा सम अनोप | अँग नळी नोकळी चित्र प्रोप । बाजुव सुछट तायक चाकां दुनाब पींडा " सुजि ताम्र तुंड कंधा बाजोट उवर ग्रइयाळ "
सचाक ।। ३६
कल्यांण ।
सिचांण ३ ।। ३७
जमंद |
समंद ।
अभंग |
रंग ॥ ३८
४ ख. हरी हरी ।
२ स्व. ग. पट्टी | ३ ग. सीचांण । ६ ख. ग. नीसळी
।
७ ख. वोप । ग. वोय । ८ ख. ११ ख. ग. ईयाल ।
१० ख. ग. पीडा ।
३७. कासनी - कासनी के फूलोंके रंग वाला घोड़ा। ताफता - चमकदार रेशमी कपड़े जैसे रंगका घोड़ा । पंच कल्यांण - मांगलिक घोड़ा जिसका शिर ( माथा ) और चारों पैर सफेद हों और शेष शरीर लाल, काला या किसी अन्य रंगका हो । सूलहरी - यहां सुनहरी शब्द होना ठीक अर्थ बैठता है, रंग विशेषका घोड़ा । चंपा - चंपा फूलके से रंगका घोड़ा । सिचांण - सिंचान नामक पक्षीके समान रंगका घोड़ा ।
-
-
समाथ ।
बाथ ।
३८. जिलहरी - रंग विशेषका घोड़ा । श्राबनूंसी - प्राबनूस वृक्ष की लकड़ीके समान प्रत्यन्त श्याम रंगका घोड़ा । जमंद - जामुनके रंगका घोड़ा | मुरहरी - ( ? ) । हरी - रंग विशेषका घोड़ा सेली समंद एक प्रकारका शुभ घोड़ा । अथंग - अपार, असीम |
३६. अनोप - अनुपम । बाजुवां पार्थ्यो। चाकां
--
(?) 1 पैरका ऊपरी भाग । सचोक - चक्र के समान गोलाईयुक्त ।
-
[ १३
४०. ताम्रतुंड - ( ? ) । समाथ - समर्थ, मजबूत । बाजोट - काठ या पत्थर की बन हुई चौकी जिस पर भोजनका थाल रखते हैं । उवर - वक्षस्थल । अइयाळ - घोड़ेकी
गर्दन के बाल । बाथ - बाहुपाश ।
पींडा - पशुप्रोंके पिछले
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१४ ]
सूरजप्रकास
केहास बिहूं'
धजरंग
कन्न े ।
प्रतहास गौसरिप चहर पन्न ॥ ४०
४
दुजराज नयण ससि बीज डाच । मल्लूक पसम मुखमल कुमाच । झमरूख" चमर सिखराळ भाट ।
०
सुजि छ पड़छ आसण
9
दै ११ उवर टकर ढा
तदि
दुहू दळ इसड़ा
१२
प्रति लीण लोह पतिभ्रमी लहि ठांम ठांम चाढ़े "
१४
सुघाट ।। ४१
दुरंग |
तुरंग ।
3
प्रांण । लगांण ॥ ४२
पांडवां खुरहरां झपट पाय । तदि मिळ' हाथळां प्रोप ताय ।
१६
१८
.१७
ग्रोपै" दुसमाजां तन उतंग | आरसी भळक
१६
काढ़ियां "
अंग ॥ ४३
४ ग.
८ ख.
१ ख. ग. बिहू 1 २ ख. कंस । ग. कंन्ह । ३ ख. प्रतिसाह । ग. प्रतिसाद | गोसरिप | ५ ख. ग. चौहौर । ६ ख. पंन । ७ ख. भंम्मररुष । ग. भमरुरुष । चंम्मर चमर । रा. वाल चंमर । ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह शब्द नहीं है । १० ख. ग. प्रोछ । ११ ग. दे । १२ ख. लाण । ग. लोयण । १३ ग. प्रतिभ्रमी । १४ ख. ग्रहि । ग. ग्रहो । १५ ख. ग. चाढ़े । १६ ख. ग. मिले । १७ ख श्रोपे। ग. श्रौष । १८ ख. ग. दुमालां । १६ . काढ़ीया ।
कर्ण, कान | प्रतहास
४० केहास - कैसा । धजरंग - ध्वजा के समान नोंकदार । कन्न (?) 1 गौसरिप - ( ? ) । चहर - ( ? ) । पन्न ?) I ४१. दुजराज - द्वितिया के । ससि - चन्द्रमा । मल्लूक- कोमल । पसम - बाल । मुखमल
भमरूख - घने बालों वाला । चमर -
।
कपड़ा विशेष । कुमाच - कपड़ा विशेष । पूंछ ( ? ) । सिखराळ - ( ? ) चाल विशेष । प्रासण- घोड़ेकी पीठका वह सुघाट - सुन्दर, दृढ़ ।
-
-
-
श्रोछ – कम, छोटा ।
-
पड़छ - - घोड़ेकी
स्थान जहां पर सवार बैठता है ।
४२. ढा- गिरा देते हैं । पतिभ्रमी स्वामीभक्त । लगांण - लगाम ( ? ) ।
४३. पांडवां- शरीर ( ? ) । खुरहरां - घोड़े की पीठ या शरीरका मैल उतारनेका उप
करण | हाथळां - हथेलियां । दुसमाजां - ( ? ) '
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सूरजप्रकास
तहदार गादियां' धरे तां ।
•
२
जग जोतिम दाखल जूळ जांम । कळबूत' रजत सोनन सकाज । सिकळात मुखम्मल फिरँग साज ॥ ४४ तै पीठ धार तांणस तंग | रेसमी जोड़ अणपार रंग |
२
नाग जांणि ।। ४५
ऊकड़ा भीड़ि" दुहुं कड़ा प्रणि । जड़किया" मलै तर बँध जोट दीध कसि जेर बंध । सभि पेसबंध कमसार १३ लोहाळ रिछाईपै घण घूघराळ पाखर घुमाय ॥ ४६ कस सिरी गड़द " निस संघ की 1
93
संघ १४ ।
.१५
लगाय । .१६
.१८
१
२१
डोरियां बांधि गजगाह दीघ ।
२०
१ ख. गीयां ।
२ ख. ग. फूल । ३ ख. ग. कळवूत | ४ ग. काज । ५ ग. सकलात | ६ ख. ग. मुषमल । ७ ख धारि । ८ख. ग. तांणेस । ६ ख ऊकड़ा। ग. ऊकटा । १० ग. भीड । ११ ख जडकोया । १२ ख. तदि । ग. तरि । १३ ग. कमसिर । १४ ग. सभि । १५ ख. ग. रिछालीये । १६ ख. घुमाय । ग. धुमाय । १७ ख. प्रतिमें यह शब्द नहीं है । ग. गरद । १८ ख. ग. नीस । १६ ख दिट । ग. दढ़ | डोरीयां । २१ ग. बांध ।
२० ख.
४६. जेर बंध -
रजत
४४. तहदार - मोटी ( ? ) । जोतिम - ( ? ) । जूळ - ( ? ) । चांदी, रौप्य । सोवन - सोना । सिकळात - कीमती ऊनी वस्त्र विशेष, सिक्लात | फिरंग साज - जीनके उपकरण जो युरोपियन ढंग के थे ( ? ) ।
४५. ऊकड़ा - जीनके साथ कसा जाने वाला चमड़े का फीता । मलं तर - चंदनका वृक्ष । जांणि - मानों ।
( ? ) । पेसबंध - ( ? )। घूघराळ - घुंघरूयुक्त ।
(?) 1
४७. सिरो- ( ? ) । गड़द
[ १५
―
-
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सूरजप्रकास
वीखां भर' लंबी माळ वीख । तै घांम एविया चूच' तीख ॥ ४७ ऐबियां मझै लागति उदार । दुति तीर वेग के राहदार । औदकै निजर निज छांह प्राय । जुड़तां गज चाचर चढ़े जाय ॥ ४८ मझि खगां' झाट खेल्हे मलंग । आफळे अणी पर धार अंग । पवन रा कुटंबी'. वेग पांण'' । उहुँड'२ सिध गुटका जिम उडांण ॥ ४६ बंग' सहज्ज ४ मझि डांण खाय । अदफरां गिरां५ ठहरंत प्राय । बाजां' दळ दहवे. जेण८ वार । ऐसा'६ कीया. हाजर तयार ।। ५०
१ ग. भरि। २ ख. एवीयां। ग. ऐबीवां। ३ ख. वूच । ग. वूच । ४ ख. एवीयां । ग. एंवीयं । ५ ग. मंडे । ६ ख. ग. चाचरि। ७ ख. खगि। ८ ग. लै । ६ क. मजंग । १० ख. ग. कुटंवी। ११ ग. षांण । १२ ख. ग. उडंड। १३ क. खैरू । १४ ख. ग. हज । १५ ग. प्रतिमें यह शब्द नहीं है। १६ ख. ग. वाजिंद। १७ ख. ग. दुईवे । १८ ख. जेणि। १६ ख. ग. एरसा। २० ग. किया।
४७. वीखां - घोड़े की चालोंमेंसे एक चाल, इसे संस्कृतमें वीखा कहते हैं। माळ वीस्व -
घोड़े की एक चाल । चूच - ( ? ) । ४८. तीर वेग - तीरके समान तेज चलने वाला । राहदार - राह नामक चाल विशेषसे
चलने वाला । प्रौटक - चौंकते हैं। जुड़तां - भिड़ने पर, टक्कर लेने पर ।
चाचर - भाल, ललाट । ४६. मलंग - छलांग, कुदान। पवन पांण - तेज गतिसे चलनेसे घोड़े वायुके कुटुम्बी जैसे
मालूम होते हैं। उड्ड उडांण - घोड़े मानों सिद्धि-प्राप्त महात्मानोंके गुटके हैं, जिन्हें
हाथमें लेते ही तुरन्त ही अभीष्ट स्थान पर पहुंच जाते हैं। ५०. खैग - घोड़ा। अदफरां गिरी- पहाड़ोंके मध्य भाग तक । बाजा - घोड़ा ।
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सूरजप्रकास
[ १७ दुहौ' – ईसा' बाजि दहुँवै वळां', सो कवि कहै सकाज ।
असवारी कजि प्रांणियौ', बरण कियौ इक वाज ।। ५१
महाराजा अभयसींघजीरै निज सवारीरै घोड़ा सुरजपसावरौ धरणण छप्पै- नख अहिरण धज नळी, कळी बाजू पीडा चक ।
बजै नास बांसळी, ताव वीजळी छळी तक । प्रौछ' पड़छ रवि अंग, चंमर झमर सुर' चंम्मर ।
केकी ग्रीव कसस्सि', तिकर लंकी कब्बूतर'५ । सिख दीप स्रवण मुख बीज ससि, चूर" स्यांम मूरति चसम । . सुखपाळ चाल उर ढाल सम, पनँगयाळ मुखमल पसम ।। ५२
१ ख. कवित्त छप्पै ॥ प्रथम दूहो। ग. कवित छप्पै प्रथम दुहो। २ ख. ग. यसा। ३ ख. दुहुंदै । ग. दुहूवै । ४ ख. दलां। ग. दल । ५ ख. कहे । ६ व. ग. प्रांणीयौ । ७ ख. ग. वरण। ८ ख. ग. किसौ। ६ ख. ग. अहरणि। १० ख. ग. वंसली। ११ ख. ग प्रोछ। १२ ख. प्रतिमें यह शब्द नहीं है। १३ ख. ग. कसीस । १४ ख. ग. तिकरि। १५ ख. ग. कबूतर । १६ ख. ग. चुरस । .
५१. बाजि - घोड़ा। कजि - लिए । प्राणियो - लाया गया। ५२. अहिरण - लौहका चौकोर खंड जिस पर लोहार या सोनार गर्म धातुको रख कर पीटते
हैं। यहां घोड़े के सुमोंकी दृढ़ता व कठोरताके लिए कविने प्रयोग किया है। धज - ध्वज, ध्वजा डंड। नळी-परके घुटनेके नीचेका सीधा भाग । कळी - समान । चक - चक्र, गोल, वर्तुल । नास - नाक | बांसळी - बांसुरी, मुरली। ताव - तेजी। वीजळी- विद्युत । पड़छ' 'अंग - ( ? )। चमर - पूंछ । झमर - घने बालोंयुक्त। सुर चंम्मर - सुरा गायके पूंछ के बालोंका बना हुआ चंवरके समान। केकी - मयूर, मोर। ग्रीव - गर्दन । तिकर - समान । लंकी कब्बूतर - कबूतर जो बहुत चंचल होता है और कुलांचे अधिक खाता है, इसकी घोड़ेकी चंचलतासे उपमा दी जाती है। स्रवण - श्रवण, कान । वि० वि०-घोड़ेके कानोंको दीपक शिखाकी उपमा दी जाती है। बीज - द्वितीया । चूर स्याम - शालिगरामकी मूर्ति जिसकी घोड़ेकी प्रांखसे उपमा दी. जाती है । चसम - चश्म, नेत्र । सुखपाल चाल - चलनेमें घोड़ा ऐसा आराम देने वाला है मानों सुखपाल नामक वाहन में बैठे हों। उर ढाल-धोड़ेके वक्षस्थलका भाग ढालके समान चौड़ा है। पनगयाळ'"पसम - घोड़े के गर्दनके बाल नागके समान और शरीरके । बाल मखमलके समान कोमल हैं।
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१८ ] .
सूरजप्रकास निज सरीक पवनरौ, धाव धखपँख जिम धावै । कमठ पूठि' अहि कमळ, धमक चवबँधा धुजावै । पड़े कोट उर टकर', पडै गज धकै अपारां ।
जळ धारां मछ जेम, धसै सामौ' खग धारां । हमगीर जिको वागां हकां, सिंधुर ऊपर सेर सौ । सूरज पसाव भैराक सुध', सूरज तुरंगा एर सौ ॥ ५३
लोह डाच धरि लीण'', मळे हाथळ दुसमालां । फिरँग साज झड़फियौ'', पॅडव' छोडियां अपालां । उछटिडोर ऊपरा, बेव' करतौ' बिसतारै'८ ।
पै उठाय दांहिणौ'६, अंग दांहिणौ निहारै । .. सपतास नहीं इण सारिखौ२०, जोय सूर'' इम२२ जांणियौ । सूरजपसाव साकति सजे४, इण विध२५ हाजर आणियौ२६ ॥ ५४
१ ग. पूठ। २ गं. टकरि। ३ ग. षडै । ४ ख. ग. सांम्हौ। ५ ख. जिको। ६ ख. ग. सींधुर । ७ ग. उपर। ८ ग. पसा। ग. सूध। १० ग. लीन । ११ ख. झडफीयो। १२ ग. पंडवि । १३ ख. ग. छोडीयौ। १४ ख. उछट । ग. ऊछट । १५ ग. डौर । १६ ख. ग. वेव। १७ ग. करतो। १८ ख. विसतारै। ग. विस्तारै। १९ ग. दांहो । २० ग. सारीषो। २१ ख. सूरिज । ग. सूरज । २२ ग. ईम। २३ ख. जांणीयौ । २४ ख. ग. सझे। २५ ख. ग. विधि । २६ ख. प्राणीयो।
५३. धाव - गति, दौड़। धख पंख - गरुड़। कमठ'' कमळ - इस घोड़ेकी पीठ कच्छपा
वतारकी पीठके समान है और शिर शेषनागके शिरके समान है । धमक - चलनेसे पैरकी होने वाली पाहट। चवबंधा - चारों ओर, चारों दिशाओंमें। पड़े"खग धारां - इस घोड़ेकी वक्षस्थलकी टक्कर लगने से बड़े बड़े गढ़ ढह जाते हैं और बड़े बड़े हाथी गिर जाते हैं । युद्धस्थल में तलवारोंके प्रहारों के सम्मुख इस प्रकार टूट पड़ता है मानों मत्स्य जलमें तेजीसे गिरता हो। सिंधुर - हाथी। औराक - घोड़ा । हमगीर'. "एरसौ- यह घोड़ा हल्ला होने पर युद्ध भूमिमें सदैव आगे रहने वाला है और हाथियोंके टक्कर मारनेमें सिंहके समान है। यह महाराजा अभयसिंहजीका घोड़ा
सूरज-पसाव सूर्य भगवानके घोड़े सप्ताश्वके समान है। ५४. डाच - मुख । फिरंग साज - यूरोपियन ढंगकी घोड़ेकी जीन आदि । पॅडव -( ? )।
अपालां-बेरोक। डोर - लगाम । बेव-वेग, गति (?)। साकात - घोड़ेकी जीन ।
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सूरजप्रकास
[ १६
तोपांरी वरणण
जळां धोय ऊजळां, काट काढ़िया' अराबां । बळि भैंसा बाकरां, रंग चाढ़िया' सराबां । चडे चडे कहि चरच', मँडे चित्रांम सिंदूरां ।
डंडे सोर थेलियां', भरे गोळां भरपूर । अति खेवि धूप आसावरी, रूप सकति वायण' रुखो। धमजगर अगर तोपां धरी, मगर सूर* नाहर मुखी ॥ ५५
जोधारांरौ वरणण करि सनांन ध्रम करै', धरे'' प्रम'' ध्यान स्यांमध्रम । काया जोग अनेक, भोग माया तजि विभ्रम । अचवि गंग जळ उजळ', उजळ'४ पौसाक अधारे ।
सझे झळाहळ सार, ईस'५ निज मंत्र उचारे । भाराथ रमायण भागवत, कथा पवित्र धरि धरि करां । धरि मरण नेम सिर परि'८ धरां, तुररा तुळसी'° मंजरां ॥ ५६
एक ताछ इण भांति'', नीमणायत भड़ निड्डर' । तपसी सिध भड़त्रइह४,तियां धरि अंगां बगतर२६ ।
१ ख. काढ़ीया। ग. काटिया । २ ख. चाढोया। ३ ख. ग. चरचि । ४ ख. लोयां । ग. थेलियां। ५ ग. षेव । ६ ख. वायणि । ग. वयणि । ७ ख. प्रति में यह गब्द नहीं है।
ख. सूर सूर । ६ ख. करे । १० ग. धरै ! ११ ख. ध्रम । १२ ख. वीभ्रम। १३ ग. उझल। १४ ख. ऊजळ । १५ ख. ग. इसट। १६ ग. उचारे। १७ ख ग. पत्र । १७ ग. पर। १६ ख. ग. धरे। २० ख. तुरसी। २१ ग. भांत । २२ ख. ग. निडर । २३ ख. तथा ग. प्रतिमें यह शब्द नहीं है । २४ ख. ग. सवत्रएहै । २५ ख. तीयां । २६ ख. वग्गतर ! ग. वगतरां ।
५५. काट - जंग। अराबां - तोपों। बाकरां - बकरों। रंग ( ? ) । चरच - पूजा ___ कर के । थडे - घुसेड़ कर, दबा कर। धमजगर - युद्ध । ५६. प्रम - परम, विष्णु, ईश्वर । विभ्रम - भ्रममें डालने वाला । अचवि - प्राचमन कर के।
अधारे - धारण कर के। झळाहळ – देदीप्यमान, तेजस्वी । सार - अस्त्र-शस्त्र, तल
वार । ईस - महादेव । भाराथ - महाभारत ग्रन्थ । ५७. एक ताछ - एक ही प्रकारका। नीमणायत - मजबूत, दृढ़
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२० ]
सूरजप्रकास झले' टोप सिर झलम', राग मौजा कर हाथळ ।
श्रावध' कसि करि अमल, झले साबळ झाळाहळ । बजरंग घाट काळा विकट, दुरत थाट जमदूत सा । कर" जोम गयण औघस करै, धोम नयण अबधूत' सा ।। ५७
बीज बचां'१ बांणिकां, भरे तीरा भूथारण । खर जमदढ़ खग खरा', दुगम बांधै भड़ दारण'५ । जकड़ि छुरा खंजरा, कसै वह' साज बंदूकां ।
ढळक" अलीबँध ढाल, अरण' मुख वणिक अचूकां । बरबरै रोस चढ़िया २ बिखम, परबँड चांमँड" पूत सा । करि जोम अाभ प्रौघस करै, धोम नयण अबधूत सा ॥ ५८
रछिक ६ गऊ२७ दुजराज'८, सील गंगेव कहावै । एक लखां प्रांगमै, एक लख अँगम२६ न पावै ।
१. ख. झटे। २ ख. सिरि। ३ ख. झिलम । ४ ख. मौजा। ग. मोजां ५ ग. पावधि । ६ ख. ग. वजरंग। ७ ख. ग, करि । ८ ख. गय। ६ ख. प्रौपस । रा. प्रोधस । १० ख. ग. अवधूत। ११ ख. ग. वचां। १२ ग. भोथारण। १३ ख. ग. पर। १४ ख. ग. परा। १५ ग. दारुण। १६ ख. ग. वहौ। १७ ग. बांदूकां । १८ ख. ढलिक । ग. ढळकि । १६ क. अणिक । २० ख. मुषि । ग. मुषो। २१ ख. ग. वरवरै। २२ ख. चढ़ीया। २३ ख. ग. विखम। २४ ग. चामुंड। २५ ख. ग. वोम। २६ ग. रक्षिक । २७ ख. गउ। २८ ग. द्विजराज। २६ ग. मन अंग ।
५७. झले - धारण कर के । टोप..... झिलम - युद्धके समय धारण करनेका टोप ।
राग'... हाथळ - पैरोंमें लौहके बने मोजे तथा हाथोंमें लौहके बने दस्ताने धारण किये। बजरंग = वज्र+अंग – मजबूत । दुरत - भयंकर । गयण - प्राकास । प्रोधस - धर्षण । धोम - अग्नि, आग, लाल ।
५८. बांणिकां - प्राकार, प्रकार । भूथारण - तर्कश, तूणीर । जमदढ़ - कटार विशेष ।
दुगम - दुर्गम्य, भयंकर। दारण - जबरदस्त । अलीबंध - पीठ पर ढाल बांधनेका बंधन जो वक्षस्थल पर कसा जाता है। प्ररण - अरुण, लाल। बरबरं-जोशमें
ना। चांमॅड-भूत-सा - भैरवदेव के समान । पाभ -आसमान ।
५६. रछिक - रक्षक । गंगेव - गाङ्गव, भीष्म पितामह । प्रांगमै - पराजित करता है,
वशमें करता है । अंगम - वशमें होना, पराजित होना।
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सूरजप्रकास
[२१ साच वीव' जुध समै, मोह धारै नह माया।
करै टूक पति कांम, काच सीसी जिम काया। नरनाह नटै पलटै नहीं, मेरग्गिर मजबूत -सा । करि जोम वोम प्रौघस' करै, धोम नयण अबधूत-सा ।। ५६
तीन पहर रवि तपै, जियां ऊपर जग जांणें । स्यांम'' सुछळि म्रत सझिण', अधिक उच्छब' चित आणे*। खग झाटां५ खेल्हबा'६, राव जम ऊपरि रूठे ।
माथै त्रण'८ मेल्हतां', आगि° झाळां बळि ऊठ । नेहड़ा जोड़ अछरां'' नयण, जुध हणमत पथं जेहड़ा। नवसहँस तणा कर बहसि नर, उरस छिबै३ भड़ एहड़ा ॥ ६०
इम त्रिहुवै घड़ अडर, भीच मगरूर 'अभा'रा। फतै करण ऊफणै४, उरै५ बंब ₹२६ वरारा । तुरां चढ़े तिण वार, वडी फौजरा ८ बहादर । हाजर पैदल हुवा, धिकत' तोडा धूमंगर' । .
१ ख. ग. वाच । २ ग. भट। ३ ख. ग. मेरगिर। ४ ख. ग. मजवूत । ५ ख. ग. कर। ६ ग. प्रोधस । ७ ख. ग. अवधूतसा। ६ ख पौहौर । ग. पोहर । ९ ख. जीयां । १० ग. उपरि । ११ ग. साम । १२ ग. मा। १३ ग. सझण । १४ ग. उछव ।
*यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। १५ ग. जाटा। १६ ख. ल्हवा । ग. लवा। १७ ग. माथे। १८ ख. त्रिण। ग. तुण। १६ ग. मेलतां। २० ग. प्राग। २१ ग. अपछर। २२ ख. ग. जुधि। २३ ख. ग. छिव। २४ ख. ऊफत। २५ ख. ग. वरै। २६ ख. वंव। २७ ग. चढ़े। २८ ग. फोज । २६ ख. वाहा । ग. वाहादर। ३० ख. ग. धषत। ३१ ख. ग. धूमंधर ।
५६. वोम - व्योम, आसमान ।
६०. स्यांम - स्वामी। सुळि - लिए, युद्धमें। सझिण - सिद्ध करने वाला। नेहड़ा -
स्नेह । हणमत - हनुमान। पथ - पार्थ, अर्जुन । नवसहँस तणा - महाराजा अभयसिंह ।
६१. भोच - योद्धा । मगरूर - गर्वीला, अभिमानी । प्रभा - महाराजा अभयसिंह ।
तोडा - बंदूक या तोप छोड़नेका पलीता । धूमंगर - अग्नि, पाग।
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२२ ]
सूरजप्रकास दरगाह थाट गह मह दुरति', लोह घाट' जुध जै लभै । सोळ प्रकार मँत्र पढ़ सकति, उण वेळा पूजी 'अभै' ॥ ६१
सिलै ससत्र कसि सूर, विडंग" चढ़ियौ 'विजपाळौ' । तुरां चढ़े तिणवार, लोक पौरस लंकाळौं । सात सहँस'' असवार, च्यार सहँस'' पैदल चलि१२ ।
गाढ़पूर दरगाह अयौ', जांणै१४ दधि ऊझळि'५ । काळरी निजर'६ किलमांण' परि', तेज जोर अणताळरी । झाळरी बूंग' पौरस झळळ १, विकटफौज ४ विजपाळरी ।। ६२
महाराजा अभैसींघजीरौ वरणण पूजि सकति 'अभपती'२५, सुरँग चिलतह साधारै२६ । हटा७ जडे१८ हूंडियां ६, वीर पौरस वाधार । झले टोप सिर झिलम, पेच यक'' पेच २ करै पर । धूप र किर* धारियौ ५, सिहर भम्मर सहस्सकिर ।
१ ख. ग. दुरत । - २ ख. ग. झाट । ३ ख. ग. जय। ४ ख. ग. सोलह । ५ ख. ग. पढ़ि। ६ ख. ग. सिलह । ७ ख. ग. सस्त्र । ८ ग. विडंगि। ६ ख. ग. पौरसि । १० ख. ग. सहस । ११ ख. ग. सहस । १२ ख. चली। १३ ग. प्रायो। १४ ख. जाणे। १५ ग. उझळि । १६ ख ग नजर। १७ ख. ग. किलमां। १८ ख. ग. परा। १९ ख. जोम । ग. जोण। २० ख. अणताजरी। २१ ख. ग. दूंग। २२ ग. झलल । २३ ग. बिकट । २४ ग. फोज। २५ ग. अभपति। २६ ख. साधारे। २७ ख. ग. हठां । २८ ग. जडे । २६ ख. हूडीयां। ग. हूडियां। ३० ख. ग. वाधारे। ३१ ख. ग. इक । ३२ ग. पेट। ३३ ख. ग. कसे। ३४ ख. ग. किरि। ३५ स्व. धारीयो। ३६ ख. सहसक्कर। ग. सहसक्कर।
६१. दरगाह - दरबार । गह मह - भीड़। अभै - महाराजा अभयसिंह।
६२. सिल - सिलह, कवच । विडंग - घोड़ा। विजपाळी -विजयराज भंडारी । तुरा -
घोड़ों। लंकाळो-वीर। गाढ़पूर - समर्थ, शक्तिशाली। ऊझळि - उमड़ कर । किलमांण - यवन, मुसलमान । प्रणताळ - असीम । बूंग - ( ? ) । झळळ -
तेजपूर्ण । ६३. चिलतह – कवच । धूप - तलवार । सिहर - शिखर । सहस्सकिर - सूर्य ।
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सूरजप्रकास
[ २३
बुगलार' भीड़ वाढ़ौ बहसि, जमदढ़ खग साजां जकड़ि । भूयांण कसे भुह मूंछ भिड़ि, पांण तांण सांकळ पकड़ || ६३ हाळबोळ" छकहूंत, हले ग्रसि चढण झळाहळ |
१०
इम दीसै उण वार, समँद मथसी साहँसबळ " ।
4
११
१२
बिय सामँद' "" बंधसी", काय लेसी लँक" जुध कर ।
१४
१५
.१६
२०
.२१
३२
२५
काय हणमंत जिम कमँध, ग्रहे लेसी द्रोणागिर । द्रगपाळ कैद करसी दुझलि, इसौ" तेज दरसावियो' सिहर गहु जेण खड़ 'अभमल' बाहर?' प्रावियौ ॥ ६४ खमा खमा बोलता 3, लोक लारां अणपारां । आप गयण तोलतो, भुजां पौरस छक भारां । सभे तांम सल्लांम, वंस" खटतीस वरग्ग" । सिध जांण सँकरनूं, करें" आदेस करग्गां पय धरि रकेब चढ़ियों पमँग ३, 'अभमल' छक इसड़े उरड़ । सपतास" चढ़े" किर" सहँसकिर, गोविंद करि चढ़ियौ गुरड़ ३ ॥६५
ह
१८
.३६
३२
3
भूथांन ।
१ ख. बुलगार । ग. बुलगार । २ ख. भीड । ३ ग. वाढ़ो । ४ ख. ग. बहसि । ५. ग. ६ ख भौंह । ग. भौह । ७ ख सांवल । ग. साबल । ८ख. हलावोल । ६ ख. ग. यम । १० ख. सहंसव्वल । ग. सहसबळ । ११ ख. ग. काय ! १२ ख. ग. समंद। १३ ख. ग. बांधसी । १४ ख क । १५ ख. दिगपाल । १६ ख.
ग. दिगपाल ।
होय । २० ख. रुष ।
ग. दुझल । १७ ग. इसो । १८ ख. दरसावीयौ । १६ ख. ग. ग. रूष । २१ ख. ग. बाहरि । २२ ख प्रावीयौ । श्रावियो । बोलतो । २४ ग. तोळतो । २५ ग. पोरस । २६ ख. ग. सलांम । २७ ख. वंग । २८ ग.
२३ ग. बोलतो । ग.
३१ ग. करगां ।
वरगां । २६ ख. जांणे । ग. जांण । ३० ग. करे । ३२ ख. चढ़ीयौ । ग. चढ़ियो । ३३ ख. पमंग | ३४ ख सयतास । ३५ ग चढ़े । ३६ ख. ग. किरि । ३७ ख. सहसकर । ग. सहसकरि । ३८ ख चढ़ीयौ । ३६ ग. गरुड ।
६३. बुगलार - ( ? ) । भूयांण - तर्कश । भुह - भौहों । भिड़ि - स्पर्श कर के ।
६४. हळाबोळ - पूर्ण । छकहूंत जोशसे, उमंगसे । बिय - दूसरा । सांमँद- समुद्र । काय - या, अथवा । दुझलि - वीर योद्धा । सिहर – शिखर बद्दल । खड़-घोड़ा
चला कर ।
६५. श्रादेस - नमस्कार, प्रणाम । करग्गां हाथोंसे । पथ - पैर, चरण । रकेब - घोड़े की काठी के साथ बांधा जाने वाला पावदान । पमँग - घोड़ा। साहस, बल । सपतास - सप्ताश्व । किर- मानों । सहँसकर सूर्य, भानु ।
इसड़े - ऐसे । उरड़
-
१८
-
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२४ ] .
सूरजप्रकास होय सिंधू' दळ हले, तूर वाजतां बाळां । बेलां' कठठे बिकट, तोप हमलां दंताळां । करि* बँदूक पायकां, ज्वाळ धिकता जांमंगां ।
पांति जजर पेडियो', भांति'• छेड़िया" भुजंगां । वरियांम सिलह पोसां' विच, भुजां 'अभै' नभ भेटियौ' । तदि जांणि भांण'५ ग्रीखम तणौ'६, काळी घटा लपेटियौ ॥ ६६
चिलतह झिलम चढ़ाय'८, ससत्र' अँग कसे सचेळा । चढ़ि रैवंत° पसाव', 'वखत' २२ आयौ जिण 3 वेळा । तिलक छाप तुलिछिका ४, माळ धारियां महाबळ ।
हरवळ लखमण हुवौ ८, 'अभा' रघुपति च प्रागळ । मुख मूंछ" अणी मुंहार मिळ', अरण वदन छक ऊफण' । व्रजराज उपासक जिण३४ वखत, दीठां (हिज) आवै देखणे ।। ६७ १क. सिध्ध । ग. सीधू । २ ख. वेला । ग. बळा। ३ ख. कठटे। ४. ख. ग. विकट । ५ ख. ग. कर ६ ख. ग. वंदूक । ७ ख. विषतां । ग. धिषता। ८ ख. जामंगा । ग. जामंगां। ४ ख. ग. पेडीयां । १० ग. भांत । ११ ख. छेडीयां। ग. छोटियां । १२ ग. पोस। १३ ख. भेटीयां । ग. भेटियो। १४ ग. तदे। १५ ख. भांणि । १६ ग. ग्रीखमतणो। १७ ख लपेटीयो। १८ ख. वढ़ाय। १६ ख. ग. सस्त्र । २० ख. रेबंत । ग. रेवंत । २१ ख. ग. पसाय । २२ ग. बषत। २३ ख. ग. तिण । २४ ख. ग. तुळसिका। २५ ग. माळा । २६ ख. धारीयां । २७ ख महावल । २८ ख. हवो। २६ ख. ग. चं। ३० ख. मुंछ। ३१ ख. ग. मिळि। ३२ ख. उफणे । क. ख. ऊजणे। ३३ ख. ग. उपासिक । ३४ ख. ग. तिण।
६६. तूर - वाद्य विशेष । त्रंबाळां - नगाड़ों। बेलां - तरंग, हिलोर। हमला - हमलों,
टक्करों। दंताळा - हाथियों। जांमंगां - पलीतों। जजर - यमराज। वरियांम - वीर, योद्धा। सिलह पोसां - अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित । अभ- महाराजा अभयसिंह।
नभ - आकाश । भेटियौ - स्पर्श किया। लपेटियो - प्रावेष्ठित किया । ६७. चिलतह - कवच । झिलम - युद्धके समय शिर पर धारण करनेका टोपं । सचेळा -
श्रेष्ठ, बढ़िया। रेवंत - घोड़ा। पसाव - ( ? ) । वखत - महाराजा बखतसिंह । लखमण - लक्ष्मण। रघुपति - श्री रामचन्द्र भगवान । आगळ – आगे। अणीनोंक। भंहार-भौहों। अरण : अरुण- लाल । छक-जोश, उत्साह। ऊफणे- उबाल खाता है। बजराज - श्रीकृष्ण । वि० वि०-महाराज बखतसिंहजीके वजराजका इष्ट था।
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सूरजप्रकास
[२५ पखरैतां ध्वज पूर, सिलह ससत्रां' रिण साजा । उभै सहँस आपरा, साथि सामंत सकाजा । त्रिय सहंस ताबीन, दीध महाराज' पायदळ ।
उभै सहँस उमराव, बँधव जतनेत सहँसबळ । अगिवांण हुवा चक्र आक्रखे, रमा कंथ चढ़ि गुरड़ रथ । हरवळां मुहर' हरवळ हुई, वाघ अरोहक' वीसहथ ।। ६८
'गिरधर' 'रतन' गरूर, वणे' हरवळ 'विजपाळौ । कड़ाजूड़ कठठियौ, ऐम दळ 'अभमल' वाळौ । .
सर वुलंदरा जोधारांरी वरणण उठो'५ 'विलँद' दळ असुर, बंधि' मुगरबां जनेबां ।
पेसकबज खंजरां, जकड़ वणिया' रणजेबां' । सझि अलीबंध सिलहट सपरि, धिख चख गिड़कँध धांखिया । पाघडाबंध अोळा ४ प्रचड, अंध जेम'५ उपड़ांखिया६ ॥ ६६ १ ख. ग. सस्त्रां। २ ग. साथ। ३ ख. त्रए । ग. त्रण। ४ ख. ग. तावीन । ५ ख. ग. माहाराज। ६ ख. ग. जतनैत । ७ ग. प्राक्रः । ८ ख. ग. गरुड। ६ ख. ग. रथि । १० ख. मोहोरि । ग. मोहर। ११ क. प्ररोहक। १२ ख. ग. वीसहथि । १३ ख. वले। १४ ख. कठटीयौ। ग. कठटियो। १५ ग. उठि। १६ ख. ग. वांधि । १७ ख. जकडि । १८ ख. वणीयां । १६ ख. रणजेवां । ग. रणजोवां। २० ख. श्रलीबंध । २१ ख. सपर । ग. सफर। २२ ख. धिसि । २३ ख. धाषीया। २४ ख. प्रौला। २५ ख. ग. जोम। २६ ख. ग. उपडांषीया।
६८. पखरैतां - कवचधारी घोड़ा। ध्वज - ( ? ) । उभ- दो। सहस - सहस्त्र ।
त्रिय - तीन । ताबीन - प्राधीन, मातहत । पायदळ - पदाति, पंदल सेनः। अगिवांग - अगाड़ी, अग्र। चक्र - विष्णुका शस्त्र, सुदर्शन चक्र । आऋखे - धारण किए हुए। रमा कंथ - विष्णु । वाघ अरोहक - सिंह पर सवारी करने वाली। वीसहथ -
बीस भुजा वाली, देवी, दुर्गा। ६६. गिरधर - गिरधरदास भंडारी। रतन - रत्नसिंह भंडारी । मुगरबां - विशेष प्रकारकी
तलवारें। जनेबां - तलवारों। रणजेबां - तलवारें विशेष । सिलहट - एक खास प्रकारका कपड़ा जिसकी ढालें बहुत बढ़िया और मजबूत बनती हैं। सपरि - ढाल । गिड़कँध - प्रचंड शरीरधारी, शक्तिशाली। पाघड़ाबंध - ( ? ) । पोळा - श्रेष्ठ, उत्तम । अंध - अंधकासुर नामक दैत्य जो दिति और कश्यपका पुत्र था। इसके सहस्त्र शिर थे, यह अंधक इसलिए कहलाया कि देखते हुए भी मदके मारे अंधोंके समान चलता था। उपड़ांखिया - जोशीला, गर्वोन्मत ।
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२६ ]
सूरजप्रकास
२
इक भाटी' श्रावखी, पियै दुब्बार सराबां ।
भैंसा आधा भखै, बोट
कबाबां
नुकळ मैं
रवद काचा पळ रौळे ।
1
डंड' सहत" करि दुरत", मण बारह मुदगरां, त्रणा जेही " ऊ तोलै "
१२
भोळं परत्र" जम" भूप, पिंड " जां हि पांखिया " । विण सुरसंबंध" भक्खी" विखम, अंध कंध उपड़ांखिया ** ॥ ७०
१६
મેં
१०
२३
२४
.२६
कितां कसे ३ औराक, ऊंच पौसाकां ऊपर । अरि प्रोळा" पाघड़ां", कुलंग जूंगा" बहु " जब्बर । सिलह कितां नखसिक्ख, करे जवनां कळिचाळां । इम कसिया औराक, मगजवदळां" मतिवाळां । करि करि कुरांण पांना करग, रवद जांणि जद" रूठिया " बे बे कबांण'' भूथांण" बँध, आसमांण" छिब" ऊठिया ॥ ७१
३४
३६
२७
४३
મ
०
२
१ ख. ग. भाठी । २ ख. पीये । ३ ख वोट । ६ ख. ग. दंड । ७ ख. ग. सहस । ग. बारह । ११ ख. जैही । १२ ग. उतोले १५ ख. ज । १६ ख दूतरं । ग. भूतरे । विधि । २० ख. सूरसवध । ग. सूरसबंध । २३ ख कसै । २४ ख. ग. पर । २५ ख. श्रौला । जुग्गा । २८ ख. वहु । २६ ख. भवर । ग. जबर । मगजवालां । ३२ ग. पना | ३३ ख. ग. करगि । ३६ ख. रूठीया । ३७ ख. ग. कवांण । ४० ग. श्रासमणि । ४१ - ख. ग. छवि |
दुव्वार । ४ ख. ग. सरावां ।
५. ख. ग.
८ख. दुरित । ६ ख. ग. रोले । १० ख.
।
१३ ख. ग. भोलें । १४ ख. ग. पड़ंत । ख. पंड । १८ ख. पाषीयाँ | १६ ख.
१७
२१ ख. ग. भषी ।
२२ क. वपडांषिया । २६. ख. पाषडां । २७ ख. ग. ३० ख. कसीया । ३१ ख. ग. ३४ ग. रबद | ३५ ग. जम । ३८ ग. भूथांनि । ३६ ख. वधि । ग. बंधि । ४२ ख. ऊठीया । ग. उठिया ।
बोट- टुकड़ा, खंड | नुकळ मै
७०. भाटी - शराब निकालनेकी भट्टी । श्रावखी पूर्ण शराबके साथ खाने की चीज, गजक | दुरत - जबरदस्त, भयंकर ! पळ - मांस । रौळं - हजम कर जाते हैं । मुदगरां मुग्दर। भोळे पांखियां उनके देखने से भ्रम में यमराज जैसे दिखाई देते हैं और वे श्याम शरीर के ऐसे प्रतीत होते हैं मानों बिना परों वाले कृष्ण - सर्प हों ।
-
७१. क - घोड़ा ( ? ) । कुलंग - कुलाह, मुकुट । जूंगा - जोंगा, बड़ा । कळिचाळा -
योद्धा, वीर । रवद - यवन ।
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सूरजप्रकास
[ २७ चढ़े' एम कळिचाळ, पूर पखराळ पमंगां । अति झड़त्त' अणताळ, दुवै चख झाळ दमंगां । नजर ठाळ करि निहँग, समळ ऊताळस उड्डी ।
पडै चोट पंखाळ, बाळ बंधीयक'' बड्डी' । विकराळ जोम छकिया वहै. देव मनिख' अहि नह'४ डरै । रिणताळ'५ प्राळ माटै ६ रवद, काळ चाळ' पकड़े८ करै ।। ७२
जुदा मिसल२° जगहूंत १, असल२२ विल्लायत वाळा। इसड़ा बारहजार, चूंच चढ़िया कळिचाळा । चहचहती चीवरी, जेम वांणी मुख जंपै ।
दळ जाहर देखतां, करी नाहर उर कंपै । जमरूप केस भूरा जरद, रुख सिचांण५ सांमळ ६ रुखा । चख चोळ नजर कहरी चुगल, मुगळ' बाज'८ बहरो' मुखा ॥ ७३
गहि बँक • फिरँगांन', मेघ डंबर २ मझि मंडे । च्यार कबांण33 मुसैद, च्यार तरगस ४ चवडंडे ।
१ ख. ग. चढ़े। २ ख. ग. झडतां। ३ क. छख । ४ ग. झाळा । ५ ख. ग. दुमंगां । ६ ग. निजर। ७ ख. वाल । ग. बाळ । ८ ख. ग. पाडै । ६ ख. ग. वाळ । १० ख. वंधीयक । ग. बंधियक। ११ ख. वड्डी। ग. व्वडी। १२ ख. छकीया। १३ ख. ग. मनषि । १४ ख. ग. नह । १५ ख. ग. रणताल। १६ ग. मट। १७ स्व. वाळ । १८ ख. पकडे । १६ ख. ग. जुदो। २० ग. निसल । २१ ख. गजहूंत । ग. जमदूत । २२ ग. असलि । २३ ख. विल्लायति । ग. विलायति । २४ ख. चढ़ीया । २५ ग. सोचांण। २६ ख. संम्मल । ग. सम्मल । २७ ख. मुषल। २८ ख. वाज। २६ ख. ग. वहरी। ३० ख. वंदूक । ग. वंदूष। ३१ ख. फिरगांन । ग. फिरंगान। ३२ ख. ग. डंवर। ३३ ख. कवाण । ३४ ख. ग. तरकस ।
७२. पखराळ - कवचधारी घोड़ा । अणताळ - अपार । दमंगां - अग्निकण । टळ -
देख कर। निहंग - आकाश । जोम - जोश । रिणताळ - युद्ध । प्राळ माटै - कौतुकमें,
खेलमें । चाळ - वस्त्राञ्चल । ७३. चंच - पूर्ण। चीबरी- एक पक्षी विशेष जो रात्रिमें ही बोलता है जिसकी बोली
भयावह समझी जाती है। सिचांण - बाज, एक शिकारी पक्षी। सांमळ - चील ।
कहरी - भयावह, आफत पैदा करने वाला । बहरी- एक शिकारी पक्षी। ७४. मुसद - ( ? ) । तरगस - तर्कश।
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२८ ]
टोप सबज' फजर पढ़े कसम से घाट अहि कोम कँध, चढ़ रीस जाणि रावण' चढ़े,
सूरजप्रकास
२
चिलत है, धरै समसेर जमंधर । फातिया, असुर चढ़िया गज ऊपर । भोम पाट लग्गो भवण' । रांमहूत धमचक करण" ।। ७४ गाडा बांणां भर । * उसताज बहादर " ।
सीसा जांमँग सोर, *भार
चव हजार सुत्रनाळ", हबस
४
१८
त्रण" हजार रहकळा, अरब उसताज अचूकां । सुकर नरां बगसरां", बार" हज्जार"" बँदूकां ! बि' हजार तोप कठठी बडी, गोळमदाज " फिरंगरा । करिअर क्रोध कीधा किलम, जबर मसाला जंगरा ।। ७५
२०
२१
२३
५
४ गोळज " गौळां ।
पाठांण
हरोळां ।
चढ़े सेख चंदवळां, मुगळ वर रचे गोळ राफजी ६, सयद मँडे अब मुहर, वीर नीसांण अली अली कहि असुर, एम सांमुहा
२६
वजाया ।
चलाया ।
२
७
ख. ग. रमण ।
प्रतियोंमें- ' भार वांरणां गाडा भर ।'
१ ख. सवज । २ ख. ग. घरे । ३ क चढ़े । ग. पढ़े । ४ ख फातीया । ५. ख. चढ़ीयौ । ग. चढ़ियो । ६ ख. लगा । ग. लगो । ७ ख. ग. भ्रमण । ८ ग. जांण । ६ ख. ग. रांमण । १० *ख तथा ग. ११ ख. ग. सुत्रनाळि । १२ ख. ग. हवस १३ ख. ग. वहावर । १४ ख. ग. त्रिण | १५ ख. ग. वगसरां । १६ ख. ग. वार | १७ ग. हजार । १८ ख. वंदूकां । ग. बंदूषां । १६. ग.वि । २० ख. कठटे । ग. कठठे । २१ ख. गोलंदाज । २२ ख. अरज । २३ ख. ग. जजर । २४ ख. ग. वरं । २५ ख. गौजल । ग. गौळज । २७ ख. सरावा । २८ ख. मौहोरि । ग. मौहौरि । २६ ख. निसांण ।
1
२६ ग. राषजी । ३० ख. सातुहां।
७४. सवज - उत्तम, श्रेष्ठ, सब्ज । चिलत है - कवच । फातिया - प्रार्थना, फाता । श्रहि - शेषनाग । कोम - कच्छपावतार । भवण - भ्रमित । धमचक - युद्ध ।
७५. सुत्रनाळ - ऊँट पर रख कर चलाई जाने वाली बंदूक जो साधारण बंदूक से बड़ी होती है । त्रण - तीन । बगसरां - मुसलमानों । बि= द्वि-दो ।
७६. चंदवळां - सेनाका पीछेका भाग, चंदावल । गौळज- सेनाका मध्य भाग । राफजी - शीया मुसलमान | वि०वि० - शीया मुसलमानोंका वह दल जिसने हजरत अली के लड़के जैदका साथ छोड़ दिया था--- सिर्फ इसी कारण से शुन्नी लोग इस लोगोंके लिए उपेक्षापूर्वक करते हैं। हरोळां - सेनाका अग्र भाग, अगाड़ी, आगे । अली - ईश्वरका एक नाम। असुर - यवन । सांमुहा सम्मुख, सामने ।
शब्दका प्रयोग शीया हरावल । मुहरि
G
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सूरजप्रकास
[ २६ मोरचां राडि त्रण' दिन मँडे', सूरां धरम सबाबरा । प्रांमसम्हा' कठठि' चौड़े उरडि', नरिद झूळ नबाबरा ॥ ७६
जुधप्रिय देवारौ वरणण साकणि डाकणि सकति, सकति चवसठी समोसरि । समळ महा सिध सकति, सकति वायणी' सिकौतरि''। मँगळ धमळ१३ उदमाद", करै नाचे किलकारै ।
जैत जैत 'जोधांण', एम मुख'४ वचन उचारै'। 'अभमाल' ल.१६ 'सिर विलँद'ह१७, घणा मगळ खग'८ घावसी। जचंद जिमाड़ी अटक जिम, जीमण आज जिमाडसी' ॥ ७७
वीरभद्र गणराज, सहत पारबती संकर। खिल२४ नारद खेचरा, भूत भूचरा भयंकर । त्रहकै५ तूर त्रंबाळ६, चंड कळि चाळ" कहक्कै८ ।
बकै२६ वीर-वैताळ, ग्रीध' बेताळ३२ गहक्कै । .१ ख. ग. त्रिण। २ ग. मंडे । ३ ख. ग. अमसम्हां। ४ ख. ग. कटि। ५ ख. चोडे । ६ ख. ग. उरड। ७ ख. नवावरा । ग. नबावरा। ८ ख. ग. समौसर । ६ ख. माहा । १० ख, ग. वायण । ११ ख. ग. सीकोतर । १२ ग. धवल । १३ ग. उदमदा। १४ ख. मुषि। १५ ख. उवारे । १६ ख. ग. लडे। १७ ख. सीरविलंदूंहूं। १८ ख.
गि। ग. षल। १६ ख. ग. जयचंद । २० ग. जिमाडि । २१ ग. जीमाडसी। २२ ग. सहित। २३ ख. संकरि। २४ ख. लिषि । ग. षिलि। २५ ख. ग. त्रहके । २६ ख. वाल । ग. तंबाळ । २७ ग. कळिकाळ । २८ ख. चहक्के । ग. चहक । २६ ख. ग. वके। ३० ख. वेताळ । ३१ ग. गीध । ३२ ख. विकराल । ग. वकराळ। ३३ ख. गहक्के । ग. गहक ।
७६. सबाबरा- किसी वस्तुके मध्यका वह भाग जिसमें वह बहुत उत्तम जान पड़े;
प्रारम्भका, श्रेष्ठताका । प्रांमसम्हा - परस्पर एक दूसरेके सम्मुख । भूळ - समूह । ७७. समोसरि - समान, तुल्य । समळ - साथ। वायणी - ( ? ) । मंगळ धमळ -
मांगलिक गायन । उदमाद - हर्ष, आनंद । किलकार - तेज आवाज करती है। जैत 'जैत - विजय हो, विजय हो। ७८. खेचरा - आकाशचारी। भूचरा- भूमि पर चलने वाले । बहक्कै - वाद्य बजते हैं।
तूर - वाद्य विशेष । त्रंबाळ - नगाड़ा। चंड - रणचंडी, दुर्गा । कळिचाळ - योद्धा, युद्ध तथा युद्धप्रिय देवगण । वीर - युद्धप्रिय देव विशेष जिनको संख्या राजस्थानी में ५२ मानी जाती है। बेताळ - देव विशेष ।
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३० ]
सूरजप्रकास
झणणाट' नाद नूपर' भर, सुर वाजँत्र सैतीसमौ । रँभ हूर रथां ढँकियौ प्ररक, मँडि ब्रहमँड' बावीसमौ ॥ ७८ हैदळ पैदळ हसत, हले दळ बळ ही लोहळ । उदध सात उलटियां, जांणि बारह घण वद्दळ " ।
C
१०
१२
।
११६
रज झांखौ किरणाळ, कमळ जहराळ लटक्कै चोळ भाळ चापड़े, कमँध रवदाळ कटक्कै बाळ नाद रौद्रव तदिन, विखम दहूं" दळ १६ वाजिया स िछपन कोड़ि जांण सघण, एकणि साथ ग्राजिया ३ ।। ७६
१८
।
२१
२२
13
3
सेनारी वरणण
૪
भुजंगी - इसा थाट ईरांन" नौ कोटवाळा
२७
२६
3 a
चढ़े श्राविया " चापड़े बंधि चाळा' छक ऊफणै बूग" लोहां छछोहां' । धिखै” कैरवां'" पांडवां जेम " धौहां " ॥ ८०
3
३६
1
८. हिलोहल ।
१ ग. टणणाट । २ ख. नूपुर । ग. भूपर । ३ ग. भझ । ४ ख टंकीयो । ग. ढ़ंकियौ । ५. गं. ब्रह्मांड | ६ ख. ग. हसति । ७ ख. ग. वळ । ६ ख. उलटीयां । १० ख. ग. वाह रह । ११ ख. ग. वादळ । १२ ग. रजं । १३ ख. भंषौ । ग. ढ़ंको । १४ ख. किरनाळ । ग. निणनाळ । १५ ख. लट्टके । ग. लटके । १६ ख. कटुके । ग. कहके । १७ ख. ग. तदनि । १८ ख. दुहं । ग. दुहू | बल | २० ख. वाजीया । ग. वाझिया । २१ ख. ग. जांणे । २३ ख श्रग्राजीया । २४ ख. ईसा । २६ ख. वाला । ग. वाळां । २८. ख. ग. श्रावीया । २६ ख. धांधि । ग. वाधि
१६ ख. चल । ग.
२५ ग. इरान ।
।
३२ क. छछौहां । ३३ ख. ग. धिषे ।
ग. वालां । ३१ ख. ग. मूंग । ३५ ख. प्रतिमें यह शब्द नहीं है
।
३६ ख प्रतिमें यह शब्द नहीं है ।
२०
-
७८. झर - पैरोंमें धारण करनेका स्त्रियोंका आभूषण विशेष । श्ररक - सूर्यं । ७९. हैदळ - घुड़सवार हसत - हस्ती, हाथी । हीलोहळ - समुद्र ।
झांखौ - धूलि - श्राच्छादित जो स्पष्ट नहीं दिखाई देता हो । किरणाळ - सूर्य, भानु । कमळ - शिर । जहराळ - शेषनाग | लटक्के - लचक रहे हैं। चापड़े - युद्धस्थलसे । रवदाळ - मुसलमान । रौद्रव भयंकर |
२२ ग. एकण । कौट । २७ ख.
८०. नौऽवाळा - नवकोटी मारवाड़ के अधिपतिके । चाळा उत्पात, युद्ध । बुग - ( ? ) ।
..
छछोहां- तेज ।
३० ख वाला । ३४ ग. केरवां ।
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सूरजप्रकास
[३१ अहंकार नब्बाब' दज्जोण' अहौ । जठे हिंदवां' नाथ पोराथ जेहौ । हुबेवा' चढ़े जांणि क्रोधाळ होवै । दसेकंध बांणावळी राम दोवै ॥८१ किलम्मेस राजा तणा भीच'' कोपै । इसी रीस बेवै११ दळां मांहि प्रोपै । झिगे जांणि सामंद्ररी हेफ झाळी । अनै' ने दूसरी तीसरी नैण ऽवाळी'४ ॥ ८२ उठो धू 'विलंदेस' आयौ अछायौ । अठी हूंत राजा अभैसिंघ पायौ । किलम्मेस वाळा उठी झूल काळा । अठी आवळा - झूळ भूपाळ वाळा ।। ८३ ढळक्कै५ गजां चम्मरां क्रीब ढालां । भळक्कै ८ अणी भम्मरात्रीछ भालां । खळक्कै सिलै' पाखरां राडि खंगी ।
जळक्कै २३ विचै धोम-सी दीठ जंगी ॥८४ १ ख. नवाव । ग. नबाब । २ ख. दइझेण । ग. दजोण । ३ ख. एहो। ४ ख हींदुवा । ग. हीदवो। ५ ख. हुवेवा। ग. हुवैवी। ६ ख. दसैकंध । ग. दसकंध । ७ क. बांणवळी। ८ ग. दौवै । ६ ख. किलमेस । ग. किलमेस। १० ख. ग. जोध । ११ ख. वेवै । ग. बेवै । १२ ग. अना। १३ ख. तीसरां । ग. तीसरा। १४ ख. ग. वाळी । १५ ख. झलक । ग. ढळक। १६ ख. चंमरां । ग. चमरां। १७ ख. ग. कोछ। १८ ख. भल्लकै । ग. भळके। १६ ख. भंमरां । ग. भमरां। २० ग. षळक । २१ ख. ग. सिल्है । २२ ख. जल्लकै । ग. जलूकै ।
८१. दज्जोण - दुर्योधन । वसेकंध - रावण । बांणावळी - धनुर्विद्या में प्रवीण, बाणोंकी पंक्ति । ५२. किलम्मेस - बादशाह । भीच - योद्धा। ८३. उठी धू - उस तरफसे । विलंदेस - सर बुलंद। अछायो - जोशपूर्ण। भूल-दल । ___काळा - वीर, योद्धा । प्रावळा-भूळ - सुसज्जित । ८४. चम्मरां- ( ? ) । क्रीब - ( ? ) । ढाला - हाथियोंके ललाट पर युद्धके
समय धारण कराया जाने वाला उपकरण । भळक्कै - चमकते हैं। त्रीछ - तीक्ष्ण । खळक्कै - खलखलकी ध्वनि करते हैं । सिल - कवच, सिलह । धोम-सी- अग्नि जैसी।
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३२ |
सूरजप्रकास,
लळक्कै गजां पोगरां' नाळ भळक्कै मुखां सूरमां भांण गुड़ै बे दळां आगळा
तोप
जठै बांण गोळां सराजांम
लोभा ।
सोभा
गाडा ।
जाडा ।। ८५
भारू ।
भयाणंख गाडा किता जंग दळां गोळियां पूर सांमांन जळाबोळ" हीलोळ हालत जाड़ा ।
दारू ।
अणी आरबां अरोहै है" कितां जूंग बेछाड़ अंगा १४ चखां चोळबोळां हथां" " रांम चंगां
१५
६
१७
-१६ तोड़ां ।
तठे दूंग" तूटै धिखै प्राग घणूं नाळ ताळां वजै नास घोड़ां ॥ ८७
२०
०
१२
पूरबां थाट आडा ।। ८६
भड़े फण घोड़ां मुखे सेत भारा । तिकै जांणि ऊगा धरा वीज" तारा ।
५ ख. वे ।
ग. जूग ।
१ ख. ग. लळके । २ ग. पौगरां । ३ ख. ग. नाग । ४ ख. ग. भळकें । ग. वैदळां । ६ ख. श्रागला । ग. श्रगळा । ७ ख. ग. वांण । ८ख. गुंज ६ ख. ग. गोलीयां । १० ख. सामान । ग. सामान । ११ ख. जलावोल । श्रारवां । ग. श्रारंवां । १३ ख. ग. अरोहे । १४ ग. अंगी । १५ ख. चोलबोलां । १६ ख. ग. हथा । १७ ग. चंगी । १८ ख. दोग । ग. दौंग । १६ ख. ग. आगि । २० ख. नाग | २१ ख. वीचि ।
१२ ख.
८५. लळक्कै लोभा - हाथियोंकी सूंडें ( पोगरां ) कोमलता के कारण इधर-उधर लचकती या मुड़ती है, भौंरे इसे कमलकी नाल समझ कर लोभायमान हो रहे हैं । सराजांम सामान ! जाडा - घना, बहुत ।
८६. जुंग - ऊँट । भारू - वजनी, भार ढोने वाले । बारू - बारूद । जळाबोळ - समुद्र । हीलोळ - तरंग, लहर |
107
८७. बेछाड़ - चंचल, उद्दण्ड । चखां चंगां - उन योद्धानोंके नेत्र जोशमें लाल हैं और हाथों में बड़ी-बड़ी बंदूकें ( रामचंगा ) हैं । दूंग - अग्निकरण । धिखै प्रज्वलित हो रहे हैं । श्राग-तोड़ां - बंदूकें या तोपें छोड़नेके पलीते । नास- नाक, नाकका रंध्र । ८८. फण - फेन । सेत- श्वेत । भारा- बूंद, करण ।
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सूरजप्रकास
ऊपरा धज्ज उड्डी' ।
उठे हाथियां' गिरां ऊपरा ऊछळे* जांणि' गुड्डी' ॥ ८८
थटै" सांर्मेंद्रां" हाथियां
.१२
उभै जम्मरी " जांणि
१४
धरां गुजरां देववा" दुवै धूमरां फील नीसांण
पाळि " थाई । १३ आई |
क्रोध धीठा ।
जम्मात '
१६
उठी राफजी ग्राविया १५ च्यार यारी | अठी ६ बैसनां" साखतां" अग्रकारी । परा ऊचरै ६ नांम चौवीस पीरां 1 धरै ध्यान श्रौतार" चौवीस धीरां ॥ ६०
२०
२. ३
उठे
ईसफां ग्रासफा २४ नांम आखै । दुवै काळिका चंडिका ग्रह दाखै । कतेबां" कलम्मां" उचारै" कुरांणां । पढ़े भारथां" भागवंतां पुराणां ॥ ६१
दीठा ॥ ८६
V
५. ग. जांण ।
१ ख. ग. हाथीयां । २ ग. धज । ३ व. ग. ऊडी । ४ . ऊछळे । ६ ख. ग. गुडी । ७ ख थटां । ग. थट ८ख. सामंद्रां । ग. सामंद्र । ६ ख. ग. हाथीयां । १० ग. पाळ । ११ ग. जासरी । १२ ग. जांण । १३ ग. जमात । १४ ख.. दाविवा । ग. दोविवा । १५ ख. श्रावीया । १६ ग. उठी । १७ व. वसनां । ग. वैसना | १८ ख. साकेत । ग. साकता । १६ ख. ऊच्चरे । ग. उच्चरे । २० ख. पीर । २१ ग. श्रोतार | २२ ख. धीरं । २३ ख. ग. उवै । २४ ख. प्रासपां आसां । ग. श्रीसपां । २५ ख. कतेवां । २६ ख. कल्लंमाँ । ग. कल्लौमां । २७ ख. ग. उच्चारे । २८ ग. भारथं ।
८८. धज्ज - ध्वजा । गिरां - गिरों, पर्वतों । गुड्डी - पतंग |
८. धरां गूजरां - गुजरातकी भूमि । धूमरां समूह । फोल - हाथी ।
६०. श्रौतार - अवतार |
[ ३३
१. कतेबां - धर्म - शास्त्रों, किताबों । कलम्मां - वे वाक्य जो मुसलमान धर्मके मूल मंत्र हों,
कलमा । भारयां - महाभारत ग्रंथ ।
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३४ ]
सूरजप्रकास
विवांणां परां ता', चलां' सौख वागी । लखे हूर रंभा वहै वादि' लागी । उपाड़े किता मारका बैंग' आगा । लड़ेवा जिकां सीस गैणाग लागा ।। ६२ असीला रसी रेहियां हाथ प्राणै । तसीसां करै जोस काबांण तांण । सरीखां अमीरां तणा जोध सूरा । पिय प्राकला राडि नूं'' क्रोध पूरा ॥ ६३ वहै हैमरां'' सौख २ जांणे' विवाणै१४ । जुझाऊ५ घटा भाद्रवा जेम जांण'६ । दखै नाम अल्लाह'८ दे हाथ दाढी । चवै राम मूंछां वळे भ्रूह' चाढ़ी ।। ६४ किलम्मां२ अनै वाद लागौ२' कनौजां । फबै प्राय चाकै चढ़ी दोय फौजां ।। ६५
१ ख. ग. रा। २ ख. ग. तलां। ३ ग. ल । ४ ख. ग. वाद। ५ ख. ग. बंग। ६ ग. लडेवा। ७ ख. गे। ग. गणागि । ८ ख. रोहीयां । ग. रोहियां। ६ ख. पीए। ग. पिए। १० ग. नौ। ११ ग. हेमरां । १२ ख. ग. सोक। १३ ख. जाणे । १४ ख. विवाणे । ग. विवाणे। १५ ख. जोझाउं। ग. जोजावू । १६ ख. जांणे । १७ ख. दथे। १८ ग. अलाह। १६ ख. ग. भौंह। २० ख. किलंमा । ग. किलमा । २१ ग. लागो। २२ ख. फवे । ग. फवै ।
६२. विर्वाणां - विमानों, वायुयानों। सौख - पशुओं, वायुयानों प्रादिके तेज चलनेसे होने
वाली ध्वनि । लखे - देख कर। खेंग -- घोड़ा। गंणाग - प्राकाश, गगनांगण । ६३. असीलां - एक प्रकारका शस्त्र । तसीसां - हाथों । कानांण - कमान, धनुष ।
प्राकला-तेज। ६४. हैमरा -हयवरों, घोड़ों। जुझाऊ - वीररस पूर्ण । दक्ष - कहते हैं। चव - कहते हैं। ६५. किलम्मा - मुसलमानों। वाद - युद्ध । कनौजां - राठौड़ों।
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सूरजप्रकास
जुधरो प्रारंभ कवित्त-धर अंबर क्रम' धोम, घटा डंबर रज घुम्मट' ।
हाक वीर है हींस', भूल नेवर झणणाहट । भाला बह भळहळे, जेण* वेळा जुध जीपक ।
जाणै घर घर जगै, दीपमाळा मझि दीपक । दहुं वळा' तोप लग्गी दगण, रूप काळ डाचा रुखी। रवि प्रळे काज'१ जांण रसम, ज्वाळ' झाळ ज्वाळामुखी ।। ६६
धुबै पारबां धोम, गाज रौद्रव गमगम्मै । प्रथमी गयण पताळ, धमक प्रौद्रव'५ धमधम्मै । उदधि सुजळ ऊझलै, हेम प्रघळे'६ जळ हल्लै ।
दइत' लाग नर देव, दसै द्रगपाळ'८ दहल्लै । ऊडता'६ भिड़े छूट उडै, असण जेम गोळा अखत । अनेक जांण छूटै अरक", नवेलाख तूटै नखत ।। ६७
दगै नाळ रवदाळ, जडै विकराळ जंजीरां । कमँध दळां कळिचाळ, उडै झळ नाळ अँगीरां ।
१ क.ख. कह । २ ख. धूमट । ३ ख. हैसीस । ग. हैहोस । ४ ख. वौहौ । ग. बोहो । ५ ख. जेणि। ६ ख. वेलां। ७ ग. घरि घरि । ८ ख. सझि। ६ ख. दुह । ग. दुह । १० ख. वलां । ग. बला। ११ ख. ग. काल । १२ ग. ज्वाळा । १३ ख. ग. धुवै। १४ ख. पारवां। १५ ग. प्रोद्रव ।
*यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं हैं । १६ ख. प्रयल । १७ ख. दईत । १८ ग. द्विगपाळ । १६ ग. उडता। २० ग. अनेक । २१ ख. जूट। २२ ख. अंगिरा ।
६६. डंबर - समूह । है - हय - घोड़ा। हींस - घोड़ेकी दिनहिना हटकी ध्वनि। नेवर -
घोड़ेके घुटनेके ऊपर धारण कराया जाने वाला प्राभूषण। भळहळे - चमकते हैं।
जीपक - जीतने वाला, विजयी। डाचा - मुख । रसम - रश्मि, किरण। ६७. धुबै - छूटती हैं । आरबां - तोपों । रौद्रव - भयंकर । गमगम्मै - इधर - उधर,
चारों ओर । प्रौद्रव - भयंकर। हेम - हिमालय पर्वत । दहल्लै - भयभीत होते हैं ।
असण-वज्र । अखत - अक्षत । ६८. नाळ - तोप। रवदाळ - मुसलमान ।
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३६ ]
सूरजप्रकास धर अंबर धड़हडे', छिपां धूमर भर छाए।
रज अंबर' अरड़ाव', जेठ रति जिम चढ़ि जाए । विचि तिमर घोर गोळा वहै, जाजुळ' मंगळ' जोतिरा । अम्हसम्हां जांणि लागा उडण, सिखर मुकति साजोतिरा ॥ ६८
प्रळकाळ घण परै', असण घण घोर अँगारां । सुणिजै नह अनि सबद, निसह रिण'' तूर नगारां । दुगम'' वळां' दारुवां, दुहूं तरफां दरसाई ।
जांणै घर घर१४ ज्वाळ, लंक हणमंत लगाई१६ । पखरैत जरद घटका पड़े, रटकां गोळां रीठरा । हाथियां सीस कुटका' हुवै ६, मटका जांण मजीठरा || ६E
रांमबॅगा रहकळां, चलै गोळा कळिचाळक । कबडी२१ जांणिक करै, कुंवर पावकरा बाळक' । गडा जेम गोळियां२५, रीठ वाजै धोमारव । खेलै १६ जोण खिदौत८, भळक करि करि निज ६ भाद्रव ।
१ ख. धरहडे। २ ख. डंवर । ग. डंबर। ३ ख. अरडावै। ४ ग. जाये। ५ ग. जाजुलि। ६ ग. मंगलि । ७ ग. जाण । ८ ख. ग. पडे । ६ ख. ग. सुणजे । १० ख. ग. रण। ११ ग. दुरम। १२ ख. ग. झलां। १३ क. ख. दारावां । ग. दारवां । १४ ग. घरि घरि । १५ ग. हनुमंत । १६ ग. लगाइ। १७ ख. हाथीयां। १८ ख. गुटका। १६ ग. हुवा। २० ख. जांणि । २१ क. कडवी। २२ ख. जाणे । ग. जांण। २३ ख. ग. कुवर । २४ ख. ग. वाळक । २५ ख. गोलीयां । २६ ख. खेल्है। २७ ख. जांणि। २८ ख. ग. षिदोत। २६ ख. ग. निस।
६८. धडहड़े - कंपायमान होता है, ध्वनित होता है । छिपां - रात्रि। धूमर - धुंगा ।
परड़ाव - ध्वनि विशेष । मंगळ - अग्नि, रक्त वर्ण । अम्हसम्हां - आमने-सामने।
मुकति साजोतिरा - सायुज्य मुक्ति जिसमें जीवात्मा परमात्मामें लीन हो जाता है। ६९. निसह - रात्रि । दारुवा - बारूदों। पसरत - कवचधारी घोड़ा। जरद - कवच ___ या कवचधारी योद्धा । रटकां - टक्करों। रीठरा- प्रहारोंके । मटका - मिट्टीका बना
बड़ा पात्र । १००. राम चेंगा - एक प्रकारकी बड़ी बंदूक । कबडी - एक प्रकारका खेल । गड़ा - गिरते
हुए वर्षाके जमे हुए गोले, पोला। धोमारव - ( ? )। खिदौत - खद्योत, जुगनू । भळक-चमक-दमक ।
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सूरजप्रकास समसेर बांण छूटै समर, प्रो अोपम इण नाचनै'। परियांण' जांण' छूटै पनँग, जावै चंदण बावनै ।। १००
उण मौसरि 'अभमाल', सूर हाकले सकाजा। अणी कढ़ा टाळिया, रांम जाणै'' कपिराजा । सीह जांण' सादूळ, एक साथै २ बह पाया।
जटी वीरभद्र जिसा, जांणि बह१४ वीर जगाया। काढ़ियां खगां मुजरा'६ करै, भौंह मूंछ'८ अणियां भिड़ी। सूरजपसाव प्रागै सझे, इम त्रिहुं वागां ऊपड़ी ॥ १०१
धमकनाळ धर धसकि, थाट परबत थरसल्ले । कमळ सेस भिड़ कमठ, दाढ़ दाढ़ाळ दहल्ले४ । परां सौक ५ पक्खरां१६, धमक' वागी धजराजां । अनळ पंख उड्डिया२८, गिलण जांण ६ गजराजां ।
१ ख. भावने। २ ख. ग. परप्राय। ३ ख. जांणि। ४ ख. ऊडे । ग. ऊडे। ५ ख. ग. जाए। ६ ख. चंदणि । ७ ख. वांवन । ग. वावने । ८ ग. काढ़। ६ स्व. टालीया। १० ख. ग. जांणे। ११ ख. जाणि। १२ ख. ग. साथे । १३ ख. वहौ। ग. बहो। १४ ख. वहो। ग. बहाँ। १५ ख. काढ़ीयां। १६ ग. मुंरा। १७ ख. ग. भौह । १८ ख. ग मूछ। १६ ख. ग. अणीयां । २० ख. सूरिजपसाव । ग. सूरजिपसाव । २१ ग. सझ। २२ ग. थरसले। २३ ख. ग. भिडि। २४ ख. दहक्के । ग. दहलै । २५ ख. ग. सोक। २६ ख. ग. पाषरां। २७ ख. ग. धमस। २८ ख. ऊडीया। ग. ऊडिया। २६ ख. ग. जांणे ।
१००. परियांण - पंखधारी । पर्नेग - सर्प । १०१. मौसरि - अवसर पर। हाकले - जोश दिलाता है, उत्तेजित करता है। सादूळ -
शार्दूलसिंह । जटी- जटाधारी। सूरजपसाव - महाराजा अभयसिंहके निज' सवारीके
घोड़ेका नाम । १०२. थरसल्ले - कम्पायमान हो गये । कमळ - शिर । दाढ़ाळ - वराहावतार । सौक
पक्षियोंके या तीरों, बाणों आदिके तेज चलने पर होने वाली ध्वनि । धजराजांघोड़ों। अनल पंख - एक प्रकारका बड़ा पक्षी विशेष जिसके विषय में कहा जाता है कि यह सदैव आकाशमें उड़ा करता है और वहीं अंडे देता है। इसका अंडा पृथ्वी पर गिरनेके पूर्व ही फूट जाता है और बच्चा निकल कर आकाशमें उड़ता हुआ अपने मां-बापसे जा मिलता है। इसकी खुराक हाथी मानी जाती है। यह हाथीको चोंच में पकड़ कर आकाशमें उड़ जाता है। गिलण-निगलनेके लिए।
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३८ ]
सूरजप्रकास धुबि' नास फड़ड़ रज धूसरड़, रथ अछरां मग रोकिया। नाळां निहाव गोळां निहसि', झाळां दिसि असि झोकिया ॥१०२ मोतीदांम- दहूं वळ घोर त्रंबागळ डाक ।
हुवै रिणताळ' दहूं' वळ' हाक । धुवां रज डंबर अंबर'४ धार । अमावस भाद्रव जेम अँधार ॥ १०३ उडै झळ मंगळ चाळ अँगार'५ । प्रळे घण बांण कुहक्क'६ अपार । पड़े घड़" तूट'८ अधौअध पाट । घड़तौइ जांणि भुले विध'६ घाट ॥ १०४ कसी सत बांण जुवांण कबांण" । बिहूने वळ छूटत फूटत बांण । उठे अँग नारंग छींछ अपार । फिरंगिय२४ जांणि ५ पतंग फुहार ।। १०५ उठ२६ घण सायक मेघ 'विलंद' । अयौ२७ किर गोकळ ऊपरि इंद ।
१ ख. ग. धुवि । २ ग. फरड । ३ ग. धूसरडि। ४ ख. रोकीया। ५ ख. ग. निहस । ६ ख. झोकीया। ७ ख. दुहुँ । ग. दुहू। ८ ग. बल। ६ ख. वागल। १० ख. ग. रणताळ । ११ ख. दूहु । ग. दुहू। १२ ग. बल। १३ ख. डंव्वर । १४ ख. अंव्वर। १५ ग. अंधार । १६ ख. ग. बांण कहौक। १७ ख. घट । ग. धड। १८ ख. तूटि। १६ ग. विधि । २० ख. ग. पाण। २१ ख. ग. कवांण। २२ ख. विहूं । २३ ख. छाछ । ग. वीछ । २४ ख. फिरंगीया। ग. फुरंगीय । २५ ग. जांण। २६ ख. उठे। २७ ख. प्रायो।
१०२. निहाव - तोपकी ध्वनि । १०३. बागळ - नगाड़ा। डाक - ध्वनि । वळ - पोर, तरफ। भाद्रव - भादों मास । १०४. बांण कुहक्क - एक प्रकारकी तोप। १०५. जुवांण - जवान । नारंग - रक्त, खून । छींछ - फव्वारा । फिरंगिय - फिरंगी
देशकी बनी तलवार (?) । पतंग - सूर्य (?) । १०६. सायक - तीर, बांण ।
'
'
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[ ३६
सूरजप्रकास झरां मैंगरां' वजि पावक झौंक । सरां वजि तीड' परां जिम सौक ॥१०६ चलै सर* वेधि सिलै घट चोळ । झिणे पट जांणि समीर झकोळ । घणा सर पार हुवै बरघल्ल । सौ सौ सर गात रहै अधसल्ल ॥ १०७ झुकै धर हैमर सूर झंझार' । भमै किर साख तिडां'२ दळ भार । इसी' सर'४ सौक नक्यूं अटकाय । आयौ 'अभपत्तिय'१६ बाज उडाय ॥ १०८ इती कहतां गुण लग्गिय" वार । इती नह वार लगी उणवार ॥ १०६
सरबुलंदरी जोधारांनूं वकारणी छप्पै'-बार हजार बँगाळ', 'विलँद' तिण वार वकारे ।
करि कबांण १ टंकार, धाव सांमापग धारे ।
....
१ ख. झिगरां। ग. झीगरी। २ ख. ग. झोक। ३ ग. टीड। ४ ख. ग. सोक । ५ ख. सिर । ६ ख. सल्है। ग. सिल्है । ७ ख. ग. झीण। ८ ग. पटि। १ ख. ग. वरघल्ल। १० ख. भूकै । ११ ख. जुझार। १२ ख. ग. तोडां। १३ ख. इस । १४ ख. सिर । १५ ग. नक्यो। १६ ख. अभपतीय । १७ ख. लग्गीय । ग. लगीय । १८ ख. ग. छपे । १६ ख. ग. वार । २० ख. वंगाल । २१ ख. ग. कवाण । २२ ख. साम्हां। ग. सम्हा। २३ ग. धारै।
१०६. झरा भैगरी - झाड़ी समूह । पावक – अग्नि । झौंक – ध्वनि, आवाज विशेष ।
सरां- बाणों, तीरों । सौक - पक्षियोंके तीरों आदिके तेज चलनेकी ध्वनि । १०७. सर - तीर। सिल = सिलह - कक्च । घट - शरीर । समीर - हवा । झकोळ -
झोंका । बरघल्ल-बड़ा छेद । अघसल्ल - मध्यमें, बीच में । १०८. मुक....."भार - युद्धस्थलमें सैकड़ों घोड़े (हैमर) और योद्धागण इस प्रकारसे भिड़
रहे हैं मानों खड़ी फसल पर टिड्डी दल मंडरा रहा है। बाज - घोड़ा। ११०. गाळ - मुसलमान । धकारे - उत्साहित किये। धाव - आक्रमण ।
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४० ]
सूरजप्रकास
चढ़ि हाथी चालियो', सयद' कायम्म' सरीनह ।
चढ़ि हाथी चालियौ, तांम पठाणा* 'तरोनह' । बारहां तणा सैयद बिहूं, चढ़ि हाथियां चलाविया । अल्लोजनाद'' प्रावधअली, अली अली करि प्राविया'३ ।। ११० ___ बंकि पटां फुलहथां"५, 'सोरि" खिलकार'" कुसत्री'८।
तस' कसीस लेजमां', जजर गत्ती जाजत्री । ज्यांन मढ़ी बज्जरं, भूर-दाढ़ा चव ४ फेरां ।
भौंह चढ़ी मौसरां, हाथ कड्ढ़ी समसेरां । इलमा कुरांण कहि कहि अली, वदै५ वींद हरां वरण । हाबस्स२७ खेल जैहीं हरख, मुसलमान बहसे ८ मरण ।। १११
कोट ६ तोप कमधजां, जिकै° लोपै' जमरांणां । कोट लोप३२ रहकळां, बोह 3 लोपै३४ झड़ बांणां । सौक ५ पड़े३६ सायकां, सेल धमरोळ सताबां । मिळे लोह मारकां, नरिंद ८ हरवळा नबाबां ।
१ ख. चालीयौ। २ ख. ग. सैद। ३ ख. ग. कायम । ४ ख. चालीयो। ५ ख. ग. पाठांण। ६ ख. वारहा। ७ ख. ग. सईयद । ८ ख. विहूं। ग. वहूं। ९ ख. हाथीयां। १० ख. चलावीया। ११ ख. ग. अलीजमाल। १२ ख. प्रवादअली । ग. प्रावदलो। १३ ख. प्रावीया। १४ ख. वांकि । ग. चांक । १५ ख. फुलहतां । १६ ख. ग. सेर। १७ ख. ग. षिल्हार । १८ ख. ग. कस्सती। १९ क.कतीस । २० क.लेनमा । २१ ख. जाजती। ग. जाइझती। २२ ख. वझरां। ग. वजरां। २३ ख. ग. भूर दढ्ढ़ी। २४ ग. चवां । २५ ख. वरणे। ग. वणे। २६ ख. वाद । २७ ख. ग. हावस । २८ ख. ग. वहसे । २६ ग. कोटि । ३० ख. ग. जिके । ३१ ख. लोपे। ३२ ग. रोप। ३३ ख. वोह । ग. वोहो। ३४ ख.ग. लोपे । ३५ ख. ग. सोक। ३६ ख. पडे। ३७ ख. सतावां। ३८ ग. निरंद । ३६ ख. नवावां । ग. नबाबां।
११०. अली- ( ? )। १११. वंकि – एक प्रकारकी तलवार । पटां- तलवारें विशेष । फूल हथां - तलवारें।
खिलकार = खिल्हार - खेलाड़ी। तस - हाथ । कसीस-प्रत्यंचा चढ़ाना। लेजमां - एक प्रकारकी कमान । वि. वि.-फारसी में धनुष चलाने के निमित्त अभ्यास करनेके निमित्त बनी हुई नरम और लचकदार कमानको लेज़म कहते हैं, कविने यहां कमानके अर्थमें प्रयोग किया है। जजर-वज्र, भयंकर। भूर-दाढ़ा-यवन, मुसलमान ।
चव फेरी-चारों ओर । मौसरी - श्मश्रु, मूंछ ।। ११२. धमरोळ - प्रहार । सतावां - तेज, शीघ्र ।
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सूरजप्रकास
[ ४१ समसेर सिलहपोसां सिरै, उडि रत वहै अचप्पळो' । जुध जांणि पतंग वरसंत जळ, वसँत रमै घण वीजळां ॥ ११२
जुध वरणण दौढ़ौ - समँद 'विलँद' दळ सबळ, अथग आवियौ 'अभैमल' ।
उण वेळा सुर असुर, झळळ लोहां भिड़ ऊजळ । पमंग भांण-पसाव', पर्मंग पखरैतां पाई। मुगळां खगि 'अभमाल'', झिलम सहिता सिर झाड़े। अंत खुरां' उळझतां, दियै'२ असिपाव दतूंसळ ।
'अभौ'१३ खाग आछट, कहर विहरै कुंभाथळ । अम्हसम्हा४ हजारां५ श्राहुरे', धोम पड़े खागां धजर । घड़ियाळ" जांणि वज्जै१८ घणी, गढ़ लंका फज्जर' गजर ।। ११३ छप्पै-इम लड़ता ऊमरां", अरज कीधी जिण वारां' ।
वाग थंभ'२ इकवार, हाथ देखिजे हमारां । भड़ परखण भूपाळ, तांम ऊभौ3 असि तांणै ।
रामायण रघुनाथ, जोध परख कपि जाणे १५ । सैं फळे लड़े भड़ असुर सुर, जड़े सेल खागां जरक । कौतक्क ८ जेण ६ देखै कळह, *ऊभौ रथ थांभे अरक ॥ ११४
ख. अच्चपला। ग. अचपळा । २ ग. जांण। ३ ग. दोढौ। ४ ख. कमंद। ग. समता ५ ख. प्राविणे। ग. प्रावीयौ। ६ ख. ग. भिडि। ७ ख. कमल । ग. उभल । ८ ख. ग. पम्मग। ६ ग. भाणपस्साव । १० ख. अभमाल । ग. अभिमाल । ११ ख. परा। १२ ख. दीये । १३ ख. प्रभ । ग. प्रभो। १४ ख. अम्हासम्हां। १५ ख. हजरां। १६ ग. प्राडे। १७ ख. घडीयाल। १८ ग. वजे। १६ ख. ग. फजर । २० ख. ग ऊबरां। २१ ख. ऊणवारां। ग. उणवारां। २२ ख. ग. थांभि। २३ ख. उभौ । २४ ख. ग. रुघनाथ । २५ ख. जांणे । २६ ख. संपर्ड। २७ ग. संल। २८ ख. ग. कौतग। २६ ख. ग. तेण ! *ख. तथा ग. प्रतियोमें- रथ थांभ ऊभी अरक।
११२. सिलह पोसां-जिरहबस्तरसे सुसज्जित । रत - रत्त, खून । अचप्पळां-तेज ।
पतंग - ( ? )। वोजळां - तलवारों। ११३. भांण पसाव - सूरजपसाव नामक महाराजा अभयसिंहका घोड़ा। झाड़े-काटता है।
अंत - प्रांतें । दतूंसळ - हाथीके बाहर निकले हुये दांत । कहर - कोप। विहरै - विदीर्ण करता है, काटता है । अम्हसम्हा - एक दूसरेके अभिमुख । धोम -प्रहार, तेज
प्रहार । धजर - भाला। फज्जर - प्रातःकाल । गजर - प्रातःकालके घंटेकी आवाज । ११४. सैफळे - अस्त्र-शस्त्रों सहित ( ? ) । जरक - प्रहार, चोट । प्ररक - सूर्य। .
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४२ ]
सूरजप्रकास रसावला- जूडिए' जूंगरा', धरै ध्रोहं धरा ।
जांणिजै जम्मरा', भड्ड रौसं भरा ॥ ११५ करब्बाहै करा, साबळा सौंसरा । तन्न'' बग्गत्तरा, पंजरा सप्परा ।। ११६ आछटै अज्जरा'', करिमाळक्करा'२ । फूटरा फूटरा, चाचरा फाचरा ॥ ११७ डाडरा वीहरा', स्रोणरा डल्हरा । गूंदरा मांसरा, अंतरा'४ गरा ॥ ११८ झूलपै झंझरा, पंक्खणे'५ सप्परा । धुब्बि'६ धोमध्धरा, बक्करा'बीफरा।। ११६ कटीए कल्लरा, लूडता लालरा । भौमि हौदब्भरा', गज्ज२२ नारंगरा ।। १२०
१ ख. जूडीए। ग. जूडिये। २ ख. ग. गूजरां। ३ ख. ग. धर। ४ ख. ग. ब्रोह । ५ ख. जांणजे। ग. जांणज। ६ ग. जमरा। ७ ख. ग. भड। ८ ख. रोस्स । ग. रोस । ६ ख. वाहै। ग. बौहौ। १० क. तंत्र। ११ ग. अजरा। १२ ख. करमालकरा । १३ ख. विहरा। १४ ख. प्रांतरा। १५ ख. ग. पंषणे। १६ ख. धुच्चि । ग. धुवि । १७ ख. धोमंधरा । ग. धोमधरा। १८ ख. वकरा। १६ ख. कट्टीय । ग. कटिए । २० ग. लाडता। २१ ख. ग. भरा। २२ ख. ग. गज ।
११६. करा- कृपान, तलवार । साबळा- भाला विशेष । सौंसरा- ( ? )। तन्न -
शरीर । सप्परा- ( ? )। ११७. प्रज्जरा -- जबरदस्त । करिमाळकरा - तलवारके । फूटरा - ठीक, सुन्दर ।
चाचरा- मस्तक । फाचरा-खंड, टुकड़ा । ११८. डाडरा - वक्षस्थल । वोहरा -- विदीर्ण होकर। स्रोणरा - शोणितका, रक्तका।
डाल्हरा- ( ? )। गूंदर। - चर्बीके, मांसपिंडके । अतरा - प्रांतोंके । गरा - ढेर । ११६. झंझरा- ( ? )। पंक्खणे - ( ? )। सप्परा- ( ? )। धुब्बि - तेज
होकर, जोशमें पाकर । धोमध्धरा- युद्ध । बक्करा- ( ? )। चीफरा-( ? )। १२०. फटीए - कटे ए अथवा कटिके (?)। कल्लरा - जबड़ेके। लूडता - लड़खड़ाता
हया (?)। गज = गंज - ढेर । नारंगरा - रक्तके ।
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सूरजप्रकास
[ ४३ पिंड' नाळप्परा, भब्भकै भंभरा। रत्र पत्रब्भरा, चौसटी' चंडरा ॥ १२१ त्रक्ख' मेटत्तरा, पिवै नीरंपरा । बीरन्या तब्बरा, किल्लकारक्करा ॥ १२२ उड्डि'सीसं उरा' २, पिडं चक्काफरा। धरि फूलध्धरा', जांणि पंकज्जरा ॥ १२३
आवता अधंरा', सीस लै सँक्करा' । जोग१ अइज्जरा, कंठ हारक्करो ॥ १२४ सूरमां3 चौसरा, आवरैः४ अच्छरा२५ । आसुरा अड्डरा'", वरां हूरं वरा ॥ १२५
१ ख. ग. पड। २ ख. भभ्भक । ग. भभक। ३ ख. ग. भरा। ४ ग. चौसठी। ५ ख. ग. त्रष। ६ ख. ग. पीय। ७ ख. ग. नीरप्परा। ८ ख. वीरन्य। ६ ख. त्यवरा । ग. नत्यवरा। १० ख. ग. किलक्वारकरा। ११ ख. ग. उडि। १२ ख. ग. परा। १३ क. फिड । ख. पिंड । ग. फिड । १४ ख. ग. चक्वफरा। १५ ख. ग. धर। १६ ख. ग. फूलधरा। १७ ख. पंक्वजरा । ग. पक्वजरा। १८ क. अधरा । १६ ख. ग. सिर । २० ख. सि संकरा । ग. ले संकरा । २१ ख. जोग्यद । ग. जोग्यइं । २२ क. फज्जरा । ग. अजरा। २३ ख. ग. सूरिमा। २४ ग. अबर। २५ क. प्रज्जरा। २६ ख. ग. असुरा। २७ ख. ग. अडरा। २८ ख. ग. घर। २६ ख. हरव्वरा । ग. हरवरी ।
१२१. नाळप्परा- (?) । भन्भक - उमड़ते हैं । भंभरा - शस्त्र-प्रहारसे होने वाले
बड़े-बड़ घाव । रत्र - रक्त, खून । पत्रभरा - देवियोंके खप्पर भर रही हैं। १२२. त्रक्स - तृषा, प्यास । बीरन्या - युद्धप्रिय देव। तब्बरा-पात्र विशेष । किलकार
करा - हर्षध्वनि । १२३. उड्डि"पंकज्जरा - शस्त्र-प्रहारोंसे शिर कट कर खंड-खंड होकर भूमि पर गिर रहे हैं ।
वे गिरे हुए शि-रखंड इस प्रकार शोभायमान हो रहे हैं मानो कमलकी पंखुड़िएँ
गिरी हों। १२४. प्रावता""हारक्करा- युद्ध-भूमिमें तलवारोंके प्रहारोंसे शिर कट रहे हैं। उन्हें भगवान
रुद्र ऊपर ही ऊपर भूमि पर गिरनेके पहिले ही उठा कर अपनी मुंडमाला कर
लेते हैं। १२५. चौसरा- पुष्पहार । प्रासुरा- मुसलमान । हूरं- अप्सरा, परी।
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४४ 1
सूरजप्रकास
कढ़ि' धूबक्करा', धड़ नत्तधरा । करी' घावक्करा, विडा रूपव्वरा ।। १२६ केतरा राहरा, केयः रूखक्करा । छक्किया' छोहरा", लग्गिया'२ लोहरा ।। १२७ घूमवै' घूमरा, मंत्र ज्यू मद्दरा । कँध पाव उई कर कोपरा धुकै छकै लौटे धरा।। १२८ वरियांम 'प्रभा' 'सिर विलँदरा',
एम'६ करै जुध ऊमरा ॥ १२६ दुहा-इम धिकतां३रिण४ ऊमरा ५, धड़ छंट ६ खळखगधार। सौ पावडा' नरेस हूं, वधि पहुंता जिण वार ॥१३०
जुधमें महाराजा प्रभैसींघजीरौ वरणण मोतीदांम- वधे' छक पौरस दूजियः वार ।
झडै ४ नर तूजिय५ वाग झलार । १ ख. वढ़ि । ग बढ़ि। २ स्व. ग. धूवक्करा। ३ ख. ग. नतिधरा। ४ ख. ग. करि। ५ ख. घाकक्क । ६ ख. ग. विडि। ७ ख. ग. बरा। ८ ख. ग. केई। ४ ख. ग. रूषक्करा। १० ख. छकीया । ग. छक्कीया। ११ ख. ग. छोहरा। १२ ख. लग्गीयां । ग. लगीया। १३ ख धूमवै । ग. धूमवै। १४ ख. घंमरा। ग धूमरा। १५ ख. मन । ग. मत। १६ ख. ज्यौं । ग. ज्यौ। १७ ग. उडे। १८ ख. ग. कोप। १६ ख. एक । २० ख. ऊंवरा । ग. उवरा। २१ ख. दूहा। ग. दोहो। २२ ख. ग. यम । २३ ख. ग. धिषतां। २४ ख. ग. रण । २५ ख. ऊंवरा । ग. ऊबरा। २६ ख. ग. छत । २७ ख. पावडा । ग. पांवडा। २८ ख. विधि। २६ ख. पौहोता। रा. पोहोता। ३० ख. ग. उणवार । ३१ ग. धध। ३२ ख. ग. दूजीय। ३३ ग. वारा। ३४ ख. झाडे । ३५ ख. ग. तूजीय।
१२६. कढ़ि - निकाल कर। धूबकरा - हाथमें तलवार लेकर अथवा शिर कट जाने पर।
धड़ रूपव्वरा - धड़ भूमि पर नृत्य करता है । इस प्रकार घावोंसे परिपूर्ण शरीर
भयावह प्रतीत होता है। १२७. केतरा - केतुके । राहरा- राहुके । १२८. घूमरा - समूह । कोपरा - कुर्पर, कूपर, कोहनी, घुटना। १२६. ऊमरा- सरदार, योद्धा। १३०. धिकता -- क्रोधमें प्रज्वलित होते हुए। छैट - कट कर । १३१. छक - जोश, उत्साह । झड़े - वीर-गति प्राप्त होते हैं। तूजिय - धनुष अथवा घोड़ा।
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सूरजप्रकास
[ ४५
राजा गयणाग छिबै चढ़ि रोस । 'जोधा' हर सूर भयंकर जोस ।। १३१ उगा' मुख बारह दीत उदार । भिड़े तिणवार मुंछार मुंहार । जोए जुध रीस चढ़ी वरजागि । उठी घ्रत सींचिय' जांणिक आगि ॥ १३२ 'विलंद' निबाब परा वरियांम' । रुठौ'१ किर रावण ऊपर राम । अयौ कस ऊपर'२ केसव एम । जाळंधर सीस जटाधर जेम ॥ १३३ धरे असुरां दळ ऊपर धंख । पेखे जिम नाग कुळां धखपंख । इय१४ असुरां दळ क्रोध उफांण'५ । जुए'६ गज जूथ कठीरव जांण'" ॥ १३४ 'अजावत' साबळ हाथ उपाड़ि । फबै१८ नरसिंघ जिसौ खंभफाडि ।
-
१ ख. उग्ग । ग. ऊगा। २ ख. ग. वारह। ३ ग. भिडे । ४ ख. सुछार। ५ ग. जोये। ६ ख. जुधि । ७ ख. वढ़ी। ८ ख. ग सोचीय । ६ ख. नवाव । ग नबाब । १० ख. वरीयाम। ११ ख. रूठौ । ग. रूठो। १२ ख. ऊपरि। १३ ख. ऊपरि । १४ ख ईथे । ग. ईथे। १५ ख. उफाणि । ग. ऊफांण। १६ ख. ग. जूए। १७ ख. ग. जांणि। १८ ख. फवे । १६ ग खंभफारि ।
१३१. गयणाग - आसमान । जोधा- जोधपुर नगरके संस्थापक राव जोधा । हर
वंशज। १३२. दीत - आदित्य, सूर्य । मुंछार - श्मश्रु। मुंहार - भौहें। वरजागि = (वजा+
अग्नि - वज्राग्नि। १३३. जालंधर - एक पौराणिक असुरका नाम । जटाधर - महादेव । १३४. धंख - क्रोध, गुस्सा। पेखे - देखे । धनपंख - गरुड़। कठोरव - सिंह । १३५. नरसिंघ – नृसिंहावतार ।
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४६ ]
सूरजप्रकास
सुरांगुर रूप इसे 'प्रभसाह' । निलागर थापलियौ नरनाह ।। १३५ 'चौंडा' हर तांम करें चख चोळ | गाढ़ांगुर वाग उपाड़िय' गोळ | औराकिय धावत खाग उपाड़" । परां लगि जांणि उडंत पहाड़ ॥ १३६ बहै" अंतरिक्ख" प्ररोहक बाज |
खड़े
हरि जांणि चढ़े खगराज |
पमंग अफाळि सुरज्ज" - पसात्र ।
१५
६
919
रोळा मभि" मेलियौ " मारवै राव ॥ १३७
9 3
.१२
महाराजा अभैसींघजीरा जुधरौ वरणण दिये कपि डांण उडांण" दमंग |
१८
१६
पड़े उर चोट" मतंग पतंग " ।
करें धज साबळ वाह कमंध | कड़ाधड़
२२
फूट पड़े गिड़कंध ।। १३८
५ ख. ग.
१. सूरांगुर । २ ख. ग. नीलांगर । ३ ख थापलीयौ । ४ ग. करि । उपाडीय । ६ ख. भैराकीय | ७ ख वाग । ग. वागि । ८ ग. उपाड़ि ।
६ ख. जांण । १० ख. ग. वहै । ११ ख. ग. अंतरीष । १२ ग. रोहिक । १३ ख. ग. पडे । १४ ख. सूरिज्ज । ग. सूरज पसाव । १५ क. तभि । १६ ख. मेलीयौ । ग. मेलियो । १७ ख. मारुव । ग. मारवा । १८ ख. ऊफांण । १६ ख. ग. पाडे । २० ग. चोट । २.१ ख. ग. पमंग । २२ ख. फूठि ।
१३५. सुरांगुर - प्रार्याधिपति, यह शब्द महाराजा अभयसिंह के लिए विशेषण रूपसे प्रयोग किया गया है । निलागर - महाराजा अभयसिंहका घोड़ा । थापलियो - उत्साहित किया । १३६. चौंडा - राव चूंडा । तांम - तब गोळ - सेना । श्रशकिय - घोड़ा । १३७. अंतरिक्ख - अन्तरिक्ष आसमान विष्णु | खगराज - गरुड़ । फाळि सिंहके घोड़ेका नाम । रोळा - युद्ध अभयसिंह ।
।
-
श्ररोहक - सवार । बाज - घोड़ा । हरि - • झौंक कर । सुरज्ज-पसाव - महाराजा प्रभयमारखं राव - मारवाड़ के अधिपति महाराजा
-
१३८. कपि डांण - वानरके समान छलांग | दमंग - अग्निकण । मतंग - हाथी । पतंग SEOT (?) 1 धज - भाला विशेष । वाह - प्रहार | कड़ाधड़ - कवचधारी । गिड़कंध - प्रचंडकाय, गिरिस्कंध, पहाड़ के शिखर के समान ।
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सूरजप्रकास
सिल्हे अँग पाखर बाज दुसार ।
चवधार'
1
धरा मभि जाय गडै जड़े इम काढ़त सेल पड़े रत छौळ चढ़े दिन धकधक' स्रोण चॅडी' पत्र
3
कडक पीवत लेत
तवै रिख हास प्रदोत सँपेखत" वाग कसे डोहै रवदाळ भकोळि कढ़ी खिज भाळ जिसी किरमाळ' अड़े चहुंवै " दळ" मीर प्रभाग । खिवै 'अभमाल' चहूवळ ३
1
१३
भुजां दुय४ च्यारि भुजां बळ भूप ।
रूप ।
१८
रचै गज ग्राह" स्त्रियावर वहै खग साबळ " तांत कट जरदांण १६
विनांण ।
जुवांण
केकांण ॥ १४२
जरूर ।
पूर ॥ १३६
धार |
डकार ।
तमास ।
सपतास ।। १४०
डँडाळ |
१०
खाग ।। १४१
३ ख धक्कधक । ग. धकधक । ७ ख तव्वै ।
८ख. ग. सपेषत ।
१ ख. ग. जवधार । २ ख. ग. नदि । ५ क. रल । ६ ख. ग. डक्कडक । गडोहे । १० ख. ग. करिमाल । ११ ख. चिह्नवै बळ । १४ ख. ग. दोय । १५ ख. ग. गाह । १६ ख. ग. श्रीयावर | सावण । ग. साबण | १८ ख. ग. तंत ।
।
१२ ख. ग. वल ।
१६ ग. जरदांन ।
[ ૪૭
४ ख. चंडि ।
६ ख. डोले ।
पत्र - देवीका
१३६. सिल्है - कवच | दुसार - आर-पार रत - • रक्त, खून । छौळ - धारा । १४०. धकध्धक - तेज द्रव प्रवाहकी ध्वनि । स्रोण - शोणित, रक्त । खप्पर, पात्र । डकड्डुक - द्रव पदार्थ पीने से होने वाली ध्वनि । डकार -: उद्गार । तब - कहता है । रिख - नारद ऋषि । सँपेखत देखता है । सपतास - सूर्यका सप्ताश्व नामक घोड़ा ।
१३ ग. चहूँ
१७ ख.
१४१. डोह - विलोड़ित करता है, रौंदता है । रवदाळ - यवन, मुसलमान । झकोळि (झकझोर कर ? ) । डँडाळ - वह शस्त्र जिसको पकड़ने के लिए डंडा लगाया जाता है, यथा : भालादि । खिज झाळ - कोपाग्नि किरमाळ - तलवार ।
१४२. च्यारि भुजां चतुर्भुज, विष्णु । त्रियावर - सीतापति श्रीरामचन्द्र । विनांण - समान, तुल्य । जरदांण - कवच, कवचधारी योद्धा । जुवांण - जवान । केकांण- घोड़ा ।
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४८ ]
सूरजप्रकास
नरां सिंणगार धरै जुध नेत' । करै खळ राहतणी परि केत । वहै खग एम फबे वरियांम । रामायण मांहि फबै जिम रांम ॥ १४३ 'अभैमल' आगळ * जोध अपार । वधै" वध खाग " वहै जिणवार |
६
कटै सिलहक्क कड़ा कसणक्क । भभक्क डबक्क'' स्रोणक्क भभक्क ।। १४४
१०
कटक्क काटक्क झटक्क ।
खै गक्क उचक्क" काटक्क१४ बिजक्क " बळक्क रक्क' "जरक्क । धमक्क भचक्क सहक्क || १४५ फौजक्क रोसक्क फारक्क फरक्क । हूरक्क वरक्क हुवै खळ हक्क ।
सेलक्क
.१६
१८
१ ग. नैत । २ ख. पण । आगळि । ७ ख. ग. वधे । ग. उवक्क | ११ ग. उच्चक । काटक । १५ ख. ग. वोजक्क । फोजक्क । १६ ग. हुवे ।
93
'खाटक्क खगक्क 1
.१६
३ ग. पर ।
४ ख. ग. वाहै । ५ ग. ऐम । ६ ग.
८ ख. ग. घाव | ख. ग. करें 1 १० ख. डवक्क । १२ ग. घाटक | १३ ख. ग. षटक्क । १४ ग. १६ ख. ग. वलक्क । १७ ख. जुरक । १८ ख.
१४४. सिलहक्क - कवच । कसणक्क - बंध । भशक्क उभड़ना क्रियाका भाव । डाबक्क डूबते समय ध्वनि होनेकी क्रिया । स्रोणक्क - शोणित, रक्त ।
१४५. खंगक्क - घोड़ा । खाटक्क - ढाल | खगक्क - तलवार । काटक्क - जबरदस्त, शक्तिशाली । कटक्क सेना । भाटक्क - प्रहार झटक्क - ( ? ) । बिजक्क तलवार | बळक्क - लचक, मोड़। जुरक्क प्रहार जरक्क - झटका | सेलवक भाला | धम्मक - ध्वनि विशेष । भचक्क
प्रहार या प्रहारको ध्वनि ।
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१४६. फौजक्क – सेनाका । रोलक्क - जोश। वरक्क - वरण करने वाला, वीर ।
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फारक्क भंडा । हूरक्क - अप्सरा, परी । खळ - शत्रु | हक्क - हांक, तेज आवाज |
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सूरजप्रकास
[ ४६
सीसक्क सझक्क हारक्क हरक्क' । निधक्क' गहक्क गूंदक्क' गटक्क ॥ १४६ वीरक्क नचक्क सझक्क सबक्क । चोळक्क पियक्क कळिक्क' चहक्क । करक्क हाडक्क गुडक्क' कड़क्क । खिवै खजरक्क पड़े खरडक्क ॥ १४७ ओर असि पारण' धोम अताळ ।
माहवसिंह चांपावत चांपावत'' सूर लड़े चमराळ''। चखां करि 'माहव १२ पावक चोळ । धड़ां१३ खळ सेल करै धमरोळ ।। १४८ भुजां बळ१४ पाथ समोभ्रम भूप ।
रौदां दळ ढाहत अंतक रूप । १ ग. रक्क । २ ख. ग. ग्रीझक्क । ३ ख. ग. गूदक्क । ४ ख. पढ़क्क । ग. गट्टक्क । ५ ख. कालिक्क । ६ ख. ग. गूडक्क । ७ ख. करक्क । ८ ख. प्रोरे। ६ ग. प्रारणि । १० ख. चंपावत । ११ ख. चमर।। १२ ख. माहव । १३ क. धरा । १४ ख. ग. वळ ।
१४६. सीसक्क - वीर-गति प्राप्त वीरोंके शिर । सझक्क - तैयार करता है। हारक्क - मुंड
माला । हरक्क - महादेव, हर । निधक्क - गिद्ध । महक्क - आवाज करते हैं ।
गूंदक्क – मांसपिंड । गटक्क - निगलते हैं। १४७. वीरक्क - युद्ध-प्रिय देव जो रुद्र के अवतार माने जाते हैं। नचक्क - नृत्य करते हैं।
सबक्क - आगे बढ़ते हैं सब (?) । चोळक्क – रक्त, खून । पियक्क - पीते हैं । कळिक्क - कालिका, रणचंडी। चहक्क - चूसती है। करक्क - रीढ़की हड्डी। हाडक्क - हड्डियें । गुडक्क - संधिस्थानकी हड्डी, मांससहित हड्डी। कड़क्क – ध्वनि विशेष अथवा शक्ति । खिवै - चमकते हैं । खेजरक्क - शस्त्र विशेष । खरड़क्क - प्रहारका
निशान । १४८. प्रारण - युद्ध । धोम - क्रोधाग्नि। प्रताळ - तेज। चांपावत - राठौड़ राव चांपाके
वंशज । चमराळ - मुसलमान । चखां - नेत्रों । माहव- माहवसिंह चांपावत ।
धमरोळ - प्रहार, युद्ध । १४६. पाथ - पार्थ, अर्जुन । समोभ्रम - पुत्र। रौदा - यवनों। ढाहत - संहार करता है,
मारता है। अंतक - यमराज ।
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५० ]
सूरजप्रकास वाहै खग वींद जिहीं' चढ़ि घांन । धरा नवकोट' सिरै परधान ।। १४६
कुसळसिंह चांपावत हरौळांयहूंत' हरौळ हठाळ । तठै 'कुसळेस' वधे रिणताळ । धरा बळ" क्रोध अोरै धजराज । जिसी विध' सामँद वीच'' जिहाज ।। १५० सिल्है' घट वेधत वाहत'३ सेल । खेलै' जिम होळिय'४ फागण'५ खेल । सांमा'६ खळ पावत वीजळ साहि । मिळे जिम सोर उडै झळ माहि ॥ १५१ चढ़े खळ हीक तुरी उर चोट । काळाहळ झूस हुवै व्रज कोट । सेलाळ जरद्द ८ मरद्द६ सकाज । वेधै वज्र भाखर पाखर बाज ॥ १५२
१ ख. जीही। २ ग. नवकोटि। ३ ख. ग. हरौलाही। ४ ग. बंधे। ५ ख. गणताल । ६ रा. घरै। ७ ख. ग. वल । ८ ख. प्रोरे। ६ ख. ग. विधि । १० ख, वीचि । ११ ग. सिल्हे। १२ ख. वाहत । १३ ख. बेल्है। १४ ख. ग. फागण । १५ ख. ग. होलीय। १६ ख. साम्हां । ग. सम्हां। १७ ख. मिले। १८ ग. जरद । १६ ग. मरद ।
१४६. वींद -- दूल्हा। वान - उमंग, जोश। धरा नवकोट - मारवाड़। . १५०. हरौळायहूंत हरौळ - सेनाके अग्र भागमें युद्ध करने वालोंमें भी आगे रहने वाला।
हठाळ – अपनी हठीला । कुसळेस - कुशलसिंह चांपावत । रिण ताळ - युद्ध । .
धजराज-घोड़ा। १५१. सिल्है - कवच । वेधत - छेद करता है। होळिय. "खेल - होलिका पर खेला जाने
वाला खेल जिसे गेहर भी कहते हैं । वीजळ - तलवार । साहि - सम्हाल कर, धारण
कर । झळ - अग्नि, प्रागकी लपट । १५२. होक - प्रहार। तुरी - घोड़ा। काळाहळ - अत्यन्त श्याम । झूस - कवच। सेलाळ -
भालाधारी। जरद्द – कवच । भाखर - पर्वत । बाज - घोड़ा।
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सूरजप्रकास
लोही धखधक्क' वभक्कत' लाल । पडे धर जांणि पतंग पखाळ । गोळां जिम ढाहि खळां गज गाहि । वधे जुध कीध गजां सिर वाहि ॥ १५३ कुंभाथळ वेधि कढै धजकूत । हौदां मझि मीर हण खगहूंत । करै इम 'नाथ' तणौ 'कुसळेस' । वडै परमाण अनै लघुवेस ।। १५४
करणसिंह चांपावत जठै 'करनाजळ' क्रोध वज्राग ।
ओरै असि जांणि धिखंतिय आग । दावानळ गोळिय घाट दुसार । हुवां खग वाहत जांणि हजार ॥ १५५ चहूं दळ' मेछ करै खग चोट' । कळे नह धूहड़ मैंगळ११ कोट । सुतन्नस' राजड़ भांण सुतन्न'४ ।
करै जूध ऋन्नतणी'५ पर कन्न'६ ।। १५६ १ ख. धकधक्क । ग. धकधक । २ ख. वभकत । ग. भभकत। ३ ग. जांण। ४ ख. कंभाथल । ५ ख. कुंत । ग. कूत। ६ ख. अोरे। ७ ग. धिषंतीय। ८ ख. ग. ग्रागि। ६ ख. गोलीय। १० ख. वल । ग. बळ । ११ ग. चौट । १२ ख. मैमट । ग. मैमंट। १३ ख. सुतत्रस । १४ स्व. सुतंन । ग. सुतन । १५ ख. कंन । ग. नं। १६ ख. कंन । ग. पर कन।
१५३. धखधक्क - द्रव पदार्थका तेज प्रवाह या प्रवाहकी ध्वनि। वभक्कत - उमड़ता है।'
पतंग - ( ? )। पखाळ - चमड़े का बहुत बड़ा थैला जिसमें पानी भर कर ऊंटों,
व भैंसों पर लाद कर लाते हैं ! वाह - प्रहार । १५४. कुंभाथळ - हाथीका कुम्भस्थल । धजकूत - भालेकी नोंक या अग्र-भाग। वडै -
महान, बड़ा । अन - और । लघुवेस - लघु वयस, छोटी आयुका । १५५. करनाजळ – करणसिंह चांपावत। धिखंतिय - प्रज्वलित । १५६. घूहड़ -- राव धूहड़का वंशज, राठौड़। मैंगळ - हाथी। सुतन्नस - पुत्र । राजड़
राजसिंह चांपावत जो पालीका ठाकुर था। भांण - उदयभारण। ऋन्नतणी - राजसिंह चांपावत पुत्र करणके। पर - शत्रु । अन्न - कुंतीपुत्र कर्ण ।
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५२ ]
सूरजप्रकास
अखाहर वाहत खाग उनंग' । जुड़े जिम भारथ दारुण' जंग । वळोवळ लूंबत रोद्र वजाग । भिड़ सुजि सूर हुवे दुय' भाग ॥ १५७ गाहै नर हैमर' गैमर गाहि । महाबळ नीठ पडै जुध माहि । वरै रँभ बैसि रथां रण विद° । अधौगध राज लिय' सुरइंद ॥ १५८ तुरी जुध मेळि लड़े 'सगतेस'१२ । नतीठ धसै१३ जिम पंड'४ नरेस । तोड़े दळ मुग्गळ'५ खाग तरास । जुजट्ठळ'६ जेम लिये' जसवास'८ ॥ १५६ 'दलौ' असि झोकि लड़े दइवांण२० । खगां झट' थाट हणे खुरसांण ।
१ ख. ग. उमंग। २ ग. दारण। ३ ख. ग. दोय। ४ ख. गाहे। ५ ग. हेमर । ६ ख. माहावल । ७ ख. पडे । ८ ख. वरे। ६ ख. वैसि । ग. वेसि । १० ख. ग. व्यंद। ११ ख. लोयो । ग. लियो। १२ ख. सकतेस। १३ ख. ग. धसे । १४ ख. पव। १५ ख. मूगल । ग. मुगल। १६ ख. जुजिठल । ग. जुजिष्टल । १७ ख. लीम। ग. लोयो। १८ ख. वास। १६ ख. झोकि । ग. झोक । २० ख. दईवाण। २१ ख. झटि।
१५७. अखाहर - अखयसिंहके वंशज । उनंग - नंगी। वळोवळ - चारों ओरसे । लंबत -
प्राक्रमण करते हैं। रोद्र - मुसलमान । वज्राग - जबरदस्त, वज्रकी अग्निके समान ।
१५८. हैमर - घोड़ा। गैमर - हाथी। गाहि - ध्वंस कर के। अधोमध - पूर्ण प्राधा।
सुरइंद - सुरेंद्र, इंद्र। १५६. तुरी-- घोड़ा । सगतेस - शक्तिसिंह । नतीठ - घोड़ा, वीर । तरास - ( काटना,
तराशना ? ) । जुजठ्ठल - युधिष्ठिर । जसवास - यश, कीर्ति । १६०. दइवांण - वीर । थाट - दल, समूह । खुरसाण - मुसलमान।
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सूरजप्रकास
[५३ धरै' मन स्यांमध्रमौ रिणधक्ख । लखां सिर ओरवियौ अबलक्ख ॥ १६० हणे' खग झाट अमीर हरौळ । चुरै खळ गोळ अनेक चंदौळ । उभै रँगि सेल अन तरवार । पुगौ तरि मीर घड़ी नदि पार ॥ १६१ सुजाहर सूर 'मुकंद' सुतन्न । . धरा इक तेज कहै धनिधन्न । सुजावत'३ 'ऊद'१३ ग्रहै खग सूर । रमै'५ रिण'६ बाळ दसा मगरूर ।। १६२ चावा' खळ' मुग्गळ१६ भांजि अछंग। जुड़े भड़ वाघ बचा जिम जंग । करां खग काढ़ि अफाळि२० केकाण । करे जूध 'माल' तणौ२१ 'कलियांण २ ।। १६३
१ ख. ग. धरे। २ ख. वोरवियो। ग. वौरवियो। ३ ग. प्रबलषा। ४ ख. ग. हणे। ५ ख. ग. चूरे । ६ ग. चंदोल। ७ ग. रंग। ८ ख. पूगौ। ग. पूगो। ६ ख. ग. सूजाहर। १० ग. कहे। ११ ख. धनधंन । ग. धनधन्न । १२ ख. ग. सूजावत । १३ ग. उद । १४ ख. ग्रहे। १५ ख. ग. रमे। १६ ख. ग. रण। १७ ख. ठावा । ग. छावा । १८ ख. षग। १६ ख. ग. मूगल । २० ग. प्राफाळि। २१ ग. तणो । २२ ख. कलीयांण।
१६०. स्यांमध्रमौ - स्वामी के प्रति कर्त्तव्य । रिणधक्ख - युद्धकी इच्छा वाला । सिर
ऊपर । प्रोरपियो - झोंक दिया। प्रबलक्ख - चितकबरे रंगका घोड़ा । १६१. चुरै - ध्वंस करता है, संहार करता है। गोळ - सेना। चॅदौळ - सेनाके पीछेका
भाग, चंदावल। १६२. सुजाहर - सूजाका वंशज । मुकंद - मुकंदसिंह । घनिधन्न - धन्य-धन्य, वाह-वाह ।
सुजावत - सूजाका वंशज । ऊद - उदयसिंह। १६३. चावा-प्रसिद्ध । अछंग-(पूर्ण ?)। वाघ - व्याघ्र, सिंह । अफाळि - झोंक कर ।
केकाण - घोड़ा। माल - मालसिंह । कलियांण - कल्याणसिंह ।
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सूरजप्रकास .
करै घण' झाटक लोह कराळ । दुवै दुव टूक हुवै रवदाळ । समोभ्रम' 'नाहर' 'भैरव' सूर । मिळे' असि झूझ करै मगरूर ।। १६४ खतां अँगि तीर फरक्कि' पँखार । धड़ा' छत मेघ घणा छत्रधार । बळाभख मेलि तुरी गह बौह'' । 'लालौ'१२ 'सगतावत ढाहत'३ लौह ॥ १६५ जुडंत 'जसावत' पागि प्रजागि । लोहां झट'५ खेलत अंबर लागि । 'पाबू' जिम सूर 'किसन'१७ प्रमाण । दिय काळमीजिम नीलिय'" डांण ॥ १६६ वहै १ खग 'धूहड़' सीस विहार । धुजट्टिय२२ सीस जिसी गंगधार ।
१ ग. लोह । २ क. समौभ्रम । ३ ख. ग. मेले । ४ ख. षतअंग । ग. षतेनंग । ५ ख. फरकि । ग. फेरकि। ६ ख. ग. धड़। ७ ख. ग. भेछ। ८ ख. ग. षगधार । ४ ख. बलभाष । ग. बलभषि । १० ग. गज। ११ ख. वोह । ग. बोह। १२ ख. लालो। ग. लालो। १३ ख. ग. वाहत। १४ ख. ग. लोह। १५ ख. षट। १६ ख. अंबरि । ग. पारस। १७ ख. किसंन्न। १८ ख. ग. कालवी। १६ ग. वम । २० ख. नीलीय । ग. नांभिय। २१ ग. बहै। २२ ख. ध्रिजट्टीय । ग. घ्रितदिये ।
१६४. झाटक - प्रहार । टुक - खंड । रवदाळ - मुसलमान । समोभ्रम - पुत्र । नाहर -
नाहरसिंह । भैरव - भैरवसिंह । झूझ - युद्ध । १६५. खतां अंगि = खतंग - एक प्रकारका तीर विशेष । पंखार - तीरका वह स्थान जहाँसे
वह प्रत्यंचा पर चढ़ाया जाता है। छत्रधार - राजा। लालौ - लालसिंह । ढाहत -
प्रहार करता है । लौह - शस्त्र । १६६. अंबर-पासमान । पाबू - प्रतिज्ञावीर राठौड़ पाबू । किसन्न - किसनसिंह ।
काळमी - प्रतिज्ञावीर राठौड़ पाबूकी घोड़ीका नाम । नीलिय - रंग विशेषकी घोड़ी।
डांण- गति, चाल । १६७. धूहड़ - राव धूहड़का वंशज, राठौड़। विहार - विदीर्ण कर के। धुजट्टिय - शिव,
महादेव, धूर्जटी।
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सूरजप्रकास .
[ ५५ कट खग झाट अनेक किलम्म' । झड़े सिर तांम सहेत' झिलम्म' ॥ १६७ तियां इम सोभं फबै रिणताळ । महा-तर तूट' पड़त मुहाळ । सिलैबँध ढाहत वाहत सार । सजे नूप जांणिक सूरसिकार'" ॥ १६८ इखै' रथ थांभि' अदीत अचंभ । थयौ 'किसनेस' हुतासण थंभ । घणा सिर सेल सहे खग घाव । वरे१४ रँभ चौसर कीध वणाव ।। १६६ रिमां खग झाट घणा'५ गॅज' राळि । तरै 'किसनेस' पड़े रिणताळि' । चढे१८ रथ हीर जड़ाव चमीर । वरै'६ सुरलोक विचै नर वीर ।। १७०
१ ख. किल्लंम । ग. किल्लम ! २ ग. सहित । ३ ख. झिल्लंम । ग. झिलम । ४ क. ख. महीतर। ५ ख. तूटे। ६ ख. ग. सिल्हेबंध । ७ ख. ग. सझे। ८ ख ग. नप । ९ ग. जांणक । १० ख. सूरसिक्कार। ११ ख. ईथे । १२ ग. थंभ। १३ ख. हसे । १४ ख. बणे। ग. वरै। १५ ग. घण। १६ ख. रंग। १७ ख. रणतालि। ग. रिणतळि । १८ ख. चढ़े। १६ ख. वसे । ग. वस।
१६७. किलम्म- मुसलमान। झड़े- कट कर गिरते हैं। झिलम्म - युद्धके समय में शिर
पर धारण करनेका टोप ।
१६८. सोभं - शोभा, कांति । महा-तर = महातरु - बड़ा वृक्ष । मुहाळ – मुंहकी अोर,
औंधा मुंह । सिलबंध - अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित । ढाहत - गिरता है। सार
तलवार । १६९. इखै - देखता है। प्रदीत -प्रादित्य, सूर्य। अचंभ - प्राश्चर्यमें। किसनेस - किसन
सिंह । हुतासण - अग्नि । चौसर - पुष्पहार । १७०. गंज - समूह । राळि - गिरा कर। तर - तब । रिणताळि - युद्ध-स्थल । चमोर -
सोना।
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सूरजप्रकास रिमां दळ सीस 'तेजावत'' रूप । धुबै खग भांण प्रकै जिम धूप । सहे खग सूर 'हरिंद' सुतन्न । अयौ जिम भारथ पंड अजन्त ॥ १७१ उपाइँइ वीर वज्रग" अराधि । सिरू खत्रवाटतणी घण साधि । खळां सिर झाड़ि फुल हथखंड' । डोहै'' दळ फेर तुरी चक्र इंड१३ ।। १७२ वहै'४ झट'५ औझट ६ त्रीछण वाढ़ । डोरी जिम घाव करै जमदाढ़ । ढहै१७ नर हैमर गैमर'८ ढाल । मलां सहसां जिम 'साहँसमाल'१६ ॥ १७३ ‘पतावत' सूर लड़े अणपाल° । करै खग झाट खळां दळ काळ । वाहै' खग२२ 'माहब'रौ 'वखतेस' ।
पाडै खळ सीस करै सिरपेस ३ ॥ १७४ १ ख. तिजावत । २ ख. धुवै। ३ ख. ग. साहे। ४ ख. पायो । ग. प्रायो। ५ ख. अपाडय । ग, अषाडय। ६ ख. बीर। ७ ख. बजंग। ८ ख. ग. सरूं। ६ ख. १० ख. हैथषंड । ११ ख ग. डोहे। १२ ख. फेरि। १३ ग. दंड। १४ ख. ग. वाहै। १५ ग. झड । १६ ग. प्रौझड। १७ ख. ग. ढ़ाहै । १८ ग. मैर गैमर । १६ ग. सैहसमाल । २० ख. अनपाल । २१ ख. बाहै। २२ ख.प। २३ ख. ग. सिवपेस ।
१७१. रिमां- शत्रुनों। हरिद - हरिसिंह। पंड प्रजन्न - पांडु पुत्र अर्जुन । १७२. झाड़ - काट कर | डोहै - विलोड़ित करता है, मंथन करता है। तुरी- घोड़ा। १७३. झट - प्रहार। औझट - भयंकर, तेज । त्रीछण - तीक्ष्ण । वाढ़ - शस्त्रका पैना
भाग। जमदाढ़ - कटार। ढहै - गिरते हैं, वीर-गति प्राप्त होते हैं। हैमर - घोड़ा। गैमर - हाथी। ढाल - युद्ध के समय हाथी के मस्तक पर धारण कराया जाने
वाला उपकरण । साहसमाल - सहसमल । १७४. अणपाल - बेरोकटोक, निशंक । माहवरौ - महावीरसिंहका । वसतेस - बखत
सिंह।
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सूरजप्रकास
[ ५७
तठ : ‘सबळेस' समोभ्रम' 'तेज' । जुड़े खग झाट करै नह जेज । भाऊसुत सूर 'उमैद' भुजाळ । रमै खग झाट हणै रवदाळ ॥ १७५ 'रैणायर'६ 'मोकम'' वाहत रूक । उभै जगनाथ सुतन्न'' अचूक। सुरापण' धार' खत्रीपण१४ सीम । भिडै ५ जुध जांणि ६ 'अरज्जण' १७ 'भीम' ।। १७६ समोभ्रम'८ 'राजड़' पेम सकाज । बाहै ६ खग पोरि घड़ा विच' बाज । कणैठिय' कन्न२३ तणौ ५४ कमधज्ज२५। इसी कुळवट्ट ६ किसौ अचरज्ज८ ॥ १७७ जड़क्कत२६ लोह कड़क्कत संध ।
करै खग झाट 'पदम्म'3' कमंध । १ ख. समौभ्रम । २ भावसुत । ग. भावुसुत । ३ ख. ग. उमेद । ४ ख. रमें। ५ ख. हणे । ६ ख. रेणायर। ७ ख. मौकम । ग. मोहौकम । ८ ग. रूक्क । ६ ग. जगन्नाथ । १० ख. सुतंन्न । ग. सुतंन । ११ ख. अचूक। १२ ख. ग. सूरायण। १३ ख. ग. पूर । १४ ख. पत्रीवम । ग. षत्रीवट । १५ ख. भीडै। १६ ग. जांण। १७ ख. अरिज्जण। ग. अरिजण। १८ क. समौभ्रम। १६ ख. वाहे । ग. वाहै। २० ख. वोरि । ग. पोर । २१ ख. बिचि। ग. विचि । २२ ख. ग. कणेठीय । २३ ख. ग. कंन । २४ ख. ग. तणो । २५ ग. कमधज। २६ ख. कुलवाकि । ग. कुळवाट । २७ ग. किसो। २८ ख. अचिरज्ज। ग. इचरज । २६ ख. ग. सड़क्कत। ३० क. जडक्कत । ग. कडकत । ३१ ख. पदम । ग. पदम।
१७५. सबळेस – सबलसिंह । समोभ्रम - पुत्र । तेज - तेजसिंह । जेज -विलंब । भाऊसुत -
भाऊसिंहका पुत्र । उमैद - उम्मेदसिंह । भुजाळ - वीर। १७६. रैगायर - रणछोड़दास । मोकम - मोहकमसिंह । रूक - तलवार । जगनाथ - जग
नाथसिंह । सुतन्न – पुत्र । अचूक - निशंक । सुरापण - शौर्य । अरज्जण - पांडु.
पुत्र अर्जुन । १७७. राजड़ - राजसिंह । पेम - पेमसिंह । बाज - घोड़ा । कर्णठिय - कनिष्ठ, छोटा
. भाई। कन्न- करणसिंह । अचरज्ज- पाश्चर्य । १७८. जड़क्कत - प्रहार करता है। कड़क्कत - टूटता है। संघ-संधि-स्थान । पदम्म -
पदमसिंह।
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५८ ]
सूरजप्रकास
रिमां 'सगतावत" वाढत
आई भरि पत्र दियंत
अड़े' 'लखधीर' तणौ
जवस |
जरू खग भाट ह रचै जुध कूंप समोभ्रम' 'राम' ।
वहै खग वाढ़ दियै वरियांम" ।। १७६
२
समोभ्रम " 'केहरि' पाथ समाथ । हिचै 'किरमाळ' भटां' 'हरनाथ' । 'धनावत' 'अम्मर' कोप धियाग 3 1 खळां घट भूक करें झट खाग ।। १८० 'दलावत' सूर 'विसन्न दुकाल । लोहां अरि ढ़ाहिर करें घर लाल । 'उदौ " 'अरिजन्न " तणौ
११४
१५
११६
अणभंग ।
खळ जंग ।। १८१
२०
जठै खग वाहि" हणे
रीस ।
असीस ॥ १७८
'अमरेस' ।
१. ख. सगताय ।
६ ग.
२ स्व. बाढ़त । ३ ग. भर । ४ ख. दीयंत । ५ ग. लडे । तणो । ७ क. समौभ्रम । ८ ख. ग. वाद । ख. ग. दीये । १० वरीयांम । ११ क. समौभ्रम | १२ क. झळां । १३ ख. ग. धीयाग । १४ ख. विसंन्न । १५ ख. टाहि । ग. दाह । १६ ख. लदौ । ग. ऊदो । १८ ग. तणो । बोह | २० ग. हि ।
१७ ख. अरिजंन्न ।
१६ ग.
१७८. श्रई - दुर्गा, रणचंडी । असीस - आशीर्वाद ।
१७६. लखधीर - लखधीर सिंह । श्रमरेस- अमरसिंह कूंपावत । जरू - दृढ़ । जवनेस यवनेश, बादशाह | कूंप - कूंपावत शाखाका राठौड़ ।
रांम - रामसिंह ।
१८०. केहरि - केसरी सिंह ' पाथ पार्थ, अर्जुन । समाथ समर्थ । हिचं युद्ध करता है । किरमाळ - तलवार । झटां- प्रहारों । धनावत नम्मर धनसिंहका वंशज अमरसिंह । धियाग - अधिक, असीम । भूक - ध्वंस, नाश ।
-
१८१. विसन - विशनसिंह । बुझाल - योद्धा । अरि-शत्रु । ढाहि कर । उदौ - उदयसिंह । प्ररिजन - अर्जुनसिंह । तणौ - तनय,
वीर ।
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संहार कर, मार पुत्र । प्रणभंग -
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सूरजप्रकास
तई दळ देखि पटाकर तेम |
प्रयो' जुध 'केहर'' केहरि
प्रेम
धोह |
धड़ां खळ टूक करें धँख लियै* घण बोह 'जसव्वँत'
लोह ॥ १८२
जुड़े वरवा रँभ ऊछब जांणि ।
१०
पर्यो नहि काळ सु लेख प्रमाणि “फतौ” "" 'परताप' सुतन्न
१२
93
सत्रां दळ सोस खमै ३
७
१४
समोभ्रम 'साहिबखान' लोहां 'पदमेस' लड़ै कुळ समोभ्रम" देवियसिंघ १६
७
१६
सकाज ।
लाज । सधीर ।
धुबै खग भाट 'फत रणधीर ' ॥ १८४
१८३. पयो - प्राप्त हुआ ।
१८
पंजा खग भाट 'फतावत' पाणि |
१६
२१
जुड़े जुध 'नाहर' नाहर जांणि" । सत्रां दळ 'जोरावर साह' । ' रासावत' लोह
सीस
फेर । समसेर ।। १८३
-
२ ख. ग. केहरि । ३ ख. केहरी ।
४ ख धक । ग. धष ।
११ ग. फतो ।
१ ख श्रायौ । ग. प्रायो । ५ ख लीयँ । ग. लिये । ६ ख. जसावत । ग. झळाहल । ७ ख. बरिवा । ग. वरिवी । ८ख. ग. उछ्व । ख. पायौ । ग. पायो । १० ग. प्रमांण । १२ ख. सुतन । ग. सुतंन । १३ ख. विषै । ग. षिवै । १४ ग पड़े । भ्रम । १६ ख. ग. देवीयसंघ । १७ ख. धुबे । ग. धुवं । जुधि । २० ग. जांण । २१ ख. सीसि । २२ ख. रिसाह |
१६ क. समौ
१८ ग. फतो । १६ ख.
મેંગ
करै रिमराह ।। १८५
१८२. तई - शत्रु । पटाकर हाथी । केहर - केसरीसिंह । केहरि - केशरी । बोह -
श्रानन्द, रसास्वादन |
फतौ - फतेहसिंह | प्रफेर - वीर योद्धा । समसेर - तलवार ।
१८४. पदमेस - पदमसिंह । फतौ - फतेहसिंह |
१८५. नाहर - नाहरसिंह । जोरावर साह - जोरावरसिंह । रासाबत रासाका वंशज ।
[ ५६
परताप - प्रतापसिंह । सुतन्न - पुत्र ।
-
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सूरजप्रकास जुड़े सुत 'ऊदल' पौरस' जोर । करै खग घाव निहाव 'किसोर' । 'दलौ'५ 'परताप' सुतन्न' दुझाल । ढाहै खग झाट खळां गज ढाल ।। १८६ समोभ्रम' 'पेम' 'हिंदाळ' सकाज । निजोड़त मुग्गळ थाट नराज । वडा खळ खोग हणे वरदैत । जुड़े इम' ० "भांण' समोभ्रम 'जैत' ॥१८७ तठे रुघनाथ तणौ' 'सुरतेस' । रिमां खग झाट करै घण रेस । सुतन्न तिलोक'३ तिलोक सराह । वधेवध१३ 'रांम' करै खग वाह ॥ १८८ जुडै ४ 'कुसळेस' तणौ खग जास । दावानळ रूप नरायणदास'५ । जठै हरकिसन'" 'मांन' सुजाव । घणा'८ रवदाळ हण खग घाव ॥ १८६
१ ग. पौरिस। २ ग. दलो। ३ ख. सुतन । ग. सुतंन्न । ४ ख. ढाट। ५ क. समोभ्रम । ६ ख. मूगल। ग. मौंगळ । ७ ख. ग. झाट। ८ ख. वाराज । ग. नाराज । ६ ख. ग. विरदत। १० ग. इ। ११ ग. तणो। १२ ग. तोलोक। १३ ख. वधेवधि । ग. वधैवधि। १४ ख. जुडे । १५ ग. नराइण। १६ ग. जठे। १७ ख. किस्सन । ग. किसन । १८ ख. घणौ।
१८७. पेम - पेमसिंह । निजोड़त - दूर करता है, काटता है । नराज - तलवार। घरदैत
वीर, यशस्वी। भांण - सूरजभाणसिंह ।
१८८. सुरतेस - सूरतसिंह । रिमां - शत्रुओं। रेस - पराजय । तिलोक - तिलोकसिंह ।
तिलोक - तीनों लोक । सराह - प्रशंसा करते हैं। वधेवध - बढ़-बढ़ कर ।
१८९. मान - मानसिंह । सुजाव - पुत्र । रवदाळ - मुसलमान ।
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________________
सूरजप्रकास
अठेल ।
अड़े सुत गोवरधन्न ' खगां 'कलियांण'' र जुध खेल ।
3
उठे खग वाहत वीर अरौध' । जोरावरसिंघ 'जसावत'
६
करै करिमाळ भटां पति कांम | जळाहळ 'राम' तणो 'जगरांम' | विजूजळ झाट करै जिण वार | सुरौ 'प्रदेस' तणौ सिरदार ।। १६१
Ε
.
जोध ॥ १६०
सूर ।
3
सुतां " 'रतनेस' मौहक्कम रिमां३ खग झाट हणै मगरूर | 'कलौ' दलसाह तणौ " - १४* दइवांण मिळै खग भाट छिबै असमांण ॥। १९२
1
६
१२
१ ख. गोवरद्धन । ग. गोवरधन | २ ख. अठ्ठल । ग. श्रठल । ४ ख बीर । ५ ख. ग. अरोह । ६ ख. सूरौ । ६ ख. ग. प्रणदेस । १० ग. तणो । ग. माहोकम । १३ ग. रमे । १४ ख. तणं
।
प्रसमांन ।
३ ख. कलीयांण । जोरावसिंघ । ७ ग. पटि । ८ख.
*ख तथा ग. प्रतियों में यहां पर निम्न पंक्तियां प्रौर मिली हैं
'रमं चंद्रहास भर्म रखदाल ।
दिवो सगतेस तरणौ दईवांण ॥'
[ ६१
११ ख. ग. सुतं । १२ ख. महौकम ।
१५ ख. ग. कलिचाल । १६ ग.
१०. प्रठेल - पीछे न हटने वाला, वीर । कलियांण - कल्याणसिंह । जुध - योद्धा, वीर ।
११. करिमाळ - तलवार । जळाहळ - तेजस्वी । रांम - रामसिंह । जगरांम - जगरामसिंह । विजजळ - तलवार । सुरौ - वीर । प्रणंदेस - श्रानंदसिंह । सिरदार - सरदारसिंह |
१९२. रतनेस - रतनसिंह | कलौ - कल्याणसिंह । वलसाह - दलसिंह । बडवण वीर ।
HOM
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________________
६२ ]
सूरजप्रकास
19 *
२
छक छोह ।
झळाहळ 'वीरमऊत' 'कुंभार" I भिड़े खग भाट सराहत भार । 'छतौ नरसिंघ तणौ लगावत खांन दळां 'हठी' रिणछोड़ तणौ पछट्टत खाग हण पिसणाक । 'विजावत ' 'सोभ' लड़ै छक वाधि ।
सिर लोह ।। १६३ करि हाक |
झाड़त वीजळ क्रोध प्रसाधि ।। १६४
१०
अड़े भड़ ' रायमलौत" अजब्ब'
१२
गाहै खग' वीजळ झाट
तरासत
'वाघावत' 'सूरज' गौ मीर खगां समोभ्रम' १५ ' गोयँद' १६ धड़च्छत मेछ घण
१४
१७
गजब्ब विकराळ । रिणताळ ।। १६५
१ ख. ग. भुझार । * यहां से श्रागे ख. तथा ग. प्रतियों में निम्न पंक्तियां और मिली हैं'करूर गुमांन सुतन किसोर, जुटे षग झाटां हूंबर जोर । रूपावत अमर ढ़ाल वरूथ, जूटै पग भाट करें षळ जूथ । नौ जुध रूप तणो दईवांरण, भिडे षग भाट सराहत भांग ।' २ ग. छतो । ३ ग. तणो । ४ ग. तणो । ५ ख पछाट्टत । ग. पछटत । बिजावत । ७ ग. बांधि । ८ख. छाडत । ग. श्रोछाडत । ६ ख. बोजळ । ग. रायमलोत । ११ ख. प्रजव्व । १२ ख. मल । १३ ख. गजव्व । १४ ख. बाघावत । १५ क. समौभ्रम । १६ ग. गौयँद । १७ ख. ग. धड़छत । १८ ख. ग. गधींग |
६ ख.
१० ख.
१५. प्रजन्ब - अजबसिंह । गजब्ब - भयंकर । सूरज १९६. गोयँद - गोविंदसिंह | धड़च्छत काटता है । जबरदस्त, शक्तिशाली ।
अम्मरसिंघ । खगधिंग 1
१६३. वीरमऊत - वीरमसिंहका पुत्र । कुंभार- भूभारसिंह । छतौ छत्रसिंह । छक
1
-
१
उत्साह |
१९४, हठी - हठीसिंह | पछट्टत - प्रहार करता हैं। पिसणाक शत्रु । वीजावत - विजयसिंहका वंशज । सोभ - सौभाग्यसिंह । झाड़त काटता है। विजाळ - तलवार । श्रसाधि - प्रपार ।
93
-
-
सूरजसिंह । तरासत - काटता है । मेछ- मुसलमान । खर्गाधिग
-
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[ ६३ .
सूरजप्रकास जोरावरसिंघ 'अणद' सुजाव । पछट्टत' खाग जडै अहि पाव ॥ १६६ जगावत' अज्जब' जैत जुहार । पड़े खळ घूमर खाग प्रहार । समोभ्रम 'वैण' विढ़े 'अजबेस' । करै खग वाह' हण किलमेस ॥ १९७ 'भाऊ' सुत 'पीथल' 'भीम' भुजाळ । उठे खग वाहण लूण उजाळ । 'वाघावत'१० आणदसी जिण वार । धमोड़त सेल वहै' खग धार ॥ १९८ मँडे जुध 'नाथ' तणौ१३ ‘फतमाल' । तई खग झाड़ि भरै रत ताळ । 'दलौ' 'अणदेस' 'सुतन्न" दुगांम१४ । 'हरी' खळ ढाहत'५ पूरत हाम ॥ १६६ 'माधावत' रांमसि'६ लोह मराट । झपेटत मीर थटां खग झाट ।
१ ग. पछटत । २ ग. अजब । ३ ख. वेण। ४ ख. विटै । ग. वि। ५ ख. ग. वाहत । “६ ख. भावू । ग. भाव। ७ ख. सुर। ८ ग. दुजाल । ९ ख. वाहत । १० ख. बाघावत । ११ ख. बहै। १२ ख. ग. तणे । १३ ख. सुतंन । १४ ख. दुगम। १५ ख. ग. वाढत । १६ ख. ग. रामसी।
१९६. प्रणव - आनंदसिंह । सुजाव - पुत्र । अहि - नाग, हाथी । १६७. प्रज्जब - अजबसिंह । वैण - वेणीसिंह । अजबेस - अजबसिंह । किलमेस
मुसलमान। १९८. पीथल - पृथ्वीराज। भीम - भीमसिंह। प्राणवसी - आनंदसिंह । धमोडत - प्रहार
करता है। १९९. रत - रक्त, खून । ताळ - मैदान, तालाब । खळ - शत्रु । ढाहत - संहार करता है।
हाम-अभिलाषा। २००. मराट - जबरदस्त । झपेटत - प्रहार करता है। मीर - यवन, मुसलमान। थटा
समूह, दल।
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________________
६४
सूरजप्रकास
समोभ्रम' 'मांडण' दारुण' सूर । हठी खळ मीर वरावत' हूर ॥ २०० 'चौळावत' मीर झटां खग चौज । ‘फतावत' 'पाणद' प्राणद फौज । भिड़त पटैत इसा' जुध भेद । अगै भड़ जूटत भूप 'उमेद' ॥२०१ 'अनावत'६ 'अम्मर' खाग उनाग । भिड़े जरदैत करै दुय भाग । करै खग झाटत देवकरन्न । 'विहारिय'८ संभ्रम चोळ वरन्नः ॥ २०२ सराहत सूर हथां खग' मे'स' । 'मधावत' लोह करै 'मुकँदेस' । समोभ्रम २ 'सांवळ'१३ झौकि' हुबास'५। दिय१६ खग झाटक जीवणदास ॥२०३ निजोड़त मेछ धरे'८ खत्र नेम । खगां 'सगतेस'१६ समोभ्रम' 'खेम' ।
१ क. समौभ्रम । २ ख. दारण। ३ ख. बरावर । ४ ख. ग. डोहत। ५ ग. इता। ६ ख. अंनावत । ग. अन्नावत । ७ ग. देवकरंन । ८ ख. ग. बिहारीय । ६ ख. बरन्न । ग. वरन। १० ख. पष। ११ ख. सेस । १२ क. समौभ्रम । १३ ख. सामल । १४ ख. ग. झोकि । १५ ख. ग. दुवास । १६ ख. दीये । १७ ख. दीवणंदास । १८ ग. धरै। १६ ख. ग. सगतेस। २० क. समौभ्रम ।
२००. मांडण - मांडणसिंह । हठी- हठीसिंह । वरावत - वरण करवाता है। हर - परी,
अप्सरा। २०१. पटैत - वीर, योद्धा। अगै - पहिले, पूर्व । २०२. अम्मर - अमरसिंह। उनाग - नंगी। जरदैत-कवचधारी योद्धा। विहारिय -
बिहारीसिंह । संभ्रम - पुत्र । चोळ - लाल । वरन - वर्ण, रंग । २०३. मेंस - महेश, महादेव । सांवळ - श्यामलसिंह । हुवास - घोड़ा । झाटक - प्रहार । २०४. निजोड़त - काटता है। मेछ - मुसलमान । खत्र - क्षत्रियत्व । खेम - खेमसिंह ।
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सूरजप्रकास
धारूंजळ जोध समोभ्रम * धींग' । सूरां खळ चूर करें रायसींघ ॥ २०४ तई भड़ साहिबखांन* सुतन्न । केवी खग चूर करै "जसक्रन्न” समोभ्रम साहिबखांन" सकाज । रिमां खग घाव करै ' जगराज' || २०५
४
सहै खग संभ्रम ' सांमत साह" ।
हथ वाह' । समरेस |
वि 'अनपाळ' करै
स
करिमाळ भटां
विदै ' ' करनेस " तणौ '
'ऊदावत' सांम लड़े धड़ा प्रवभाड़ करें धज
£
* चिन्हांकित पद्यांश ग. प्रतिमें नहीं है । १ ख. धींघ । ग. धोघ । २ ग. जसकन ।
● चिन्हांकित पद्यांश ख. प्रतिमें नहीं है । चिन्हांकित पद्यांश ख. प्रति में नहीं है ।
४ ख. सामंतसा ।
६ ख षडां ।
३ ख. साहे । ग. साहै । करणेस | ८ग. तणो । नहीं है । १२ ख. बाह ।
' वखतेस ' ।। २०६
'अभैमल' 'लाल' सुजाव सत्रां खग ढाहत ज्यूं गज 'वैणावत''' 'पातल' वीजळ" वाह । मोड़े गज बाज खळां गज-गाह |
१२
१०
अवना |
फाड़ |
-
बीह |
सीह || २०७
५ ख. बाह । ख. बेणावत ।
२०४. धारूंजळ - तलवार । चूर - ध्वंस |
२०५. तई - ( ? ) । केवी - शत्रु ।
२०६. संभ्रम - पुत्र । सांमतसाह - सामंतसिंह। हथ वाह - प्रहार । करिमाळ - तलवार ।
६५
६ ख. विढ़े । ७ ख. ग. ११ ख. प्रतिमें यह शब्द
समरेस - युद्ध |
२०७. अवनाड़ - योद्धा । घड़ा-दल अवाड़ - ध्वंस । लाल - लालसिंह । सुजाव - पुत्र । अबीह- निडर ।
२०८. वीजळ - तलवार । वाह प्रहार । गज-गाह - ध्वंस, संहार ।
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सूरजप्रकास
'गजौ' हरियंद' तणौ' अवगाढ़ । वडा' जरदैत हण खग वाढ़ ।। २०८ 'चांपावत' एम' लडै किळचाळ । कुंपावत' वाहत खाग कराळ । तिकै कुळ सूरज 'कांन' सतेज । जोए खळ थाट कर नह जेज' ॥२०६ जई धख वा मारण'' जोम । धिखै' चख दारण प्रारण धोम । घड़ा जमरूप भयंकर घाट । भिड़े धज मूंछ अणींस मुंहाट' ॥२१० तई भुज'४ साबळ कीध त्रिभाग । वहै१५ असि उप्रमतौ असिवाग । अयो'" असुरांण दळां मझि एम । ज्वाळानळ'८ रूघ्रत' ऊपर जेम ॥२११ वेधे' दळ मुग्गळ२२ कूत वहेत । सिल्है घट पाखर बाज सहेत ।
१ ग. हरीद। २ ग. तणो। ३ ख. बडा। ४ ख. बाट । ग. वाह । ५ ख. ऐम । ६ ख. ग. कंपावत। ७ ग. जोऐ। ८ ख. षग । ६ ग. जैज। १० ख. म्मरण । ११ ख. धिये । १२ ख. भिडे । १३ ग. मुहाट । १४ ख. भड। १५ ख. बहै। १६ ख. ग. मझि। १७ ख. पायौ । ग. प्रायो। १८ ख. ग. जालंनळ । १९ ख. घ्रित । ग. ध्रित। २० ख. ऊपरि । २१ ख. वैधै। ग. विधे। २२ ख. मूगगल । ग. मुगल । २३ ख. बहेत।
२०८. अवगाढ़ - वीर। जरदैत - कवचधारी योद्धा । २०६. किळचाळ - वीर। कुंपावत - राव कुंपाके वंशज, राठौड़ोंकी एक उपशाखा। कान -
कानसिंह। २१०. वारण - हाथी (?) । पारण - अरुण, लाल। धोम-- क्रोधाग्नि । घड़ा-सेना।
घाट - बनावट । भुंहाट - भौंहों। २११. त्रिभाग- एक प्रकारका भाला। उप्रमतो- तेज । असुराण-बादशाह, मुसलमान । २१२. सिल्है -- कवच । बाज - घोड़ा।
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सूरजप्रकास
जुथां' विहराय गजां परि जाय । वहै' जिम लाय झकोळिय वाय ।। २१२
हौदां मझि लोह' करै महारिख देखि हुवं हिलोळि छडाळ ग्रहै"
तछै घण मीर कलम्म
करि हाक ।
।
मुसताक । चंद्रहास |
तरास ।। २१३
भड़
केक |
.१३
अधफाड़ पड़े भड़ हेक
कितां भड़" सीस पड़े
हुवै'
उडै ४ अधसीस वहै
१४
आधा
तरबूजतणी समोभ्रम 'संम' प्रदीत सराह । वधै" इम कांन्ह करै खग वाह' 1 ओर असि 'ऊदल १६ जंग अथाह | निजोड़त" मीर" खगां नर नाह ।। २१५
८
।
१६
२ ख. बिराय
१ ग. जूयां । कारे । ७ ग. महारिषि । ११ ख. ग. धड़ । १२ ग. हुवे । १६ ख. ग. समौभ्रम | १७ ख. निजौडत । २१ ग. मार ।
३ ख. बहै ।
ख. ग. ग्रहे । १३ ग ऐक ।
बधे ।
२१२. विहराय - विदीर्ण कर के ।
वाय - हवा ।
०
तरवार' .१५ 1
उपहार ।। २१४
४ ग. होदा ।
६ ख. ग. कलम ।
१४ ख. उडे ।
१६
१८ ख. बहि ।
-
२१३. महारिख - महर्षि नारद । मुस्ताक मस्त । भाला। चंद्रहास- तलवार । तछैतत्क्षण है। कलम्म - मुसलमान । तरास - ( काट कर ? )
।
५ ख. लौह ।
लाय - दावाग्नि । भकोळिय - आघात पा कर ।
[ ६७
६ ख.
१० ग. तराछ ।
१५ ख. तरवारि ।
. वूदल । २० क.
हिलोळि - हिला कर । छडाळ घण- बहुत । मीर- सरदार |
२१४. उणहार - सूरत, शक्ल ।
२१५. रांम - रामसिंह । श्रदीत - आदित्य, सूर्य । कांन्ह - कानसिंह । निजोड़त -
काटता है।
-
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६८ )
सूरजप्रकास जड़क्कत' सेल भिदै जरदाळ । कड़क्कत कंध वहै किरमाळ । दादौ जिण 'गोवरधन्न'८ दुझाल । ढाहै - 'गजसाह' अगै गजढाल ॥२१६ 'अभंमल' अग्र ‘फतावत' प्रेम । जुड़े भड़ जाहर नाहर जेम । 'रांमौ' 'सबळावत'१० वाहत रूक । भभक्कत स्रोण हुवै खळ भूक ॥ २१७ पिय'२ रत पत्त चँडी भरपूर । सुरां गुर हाथ वखांणत सूर । टळे नह 'राम' खत्रीवट टेक । उडावत लोह अमीर अनेक ॥ २१८ वहै १४ रत पूर नदी जिम वार । तुटै निज सीस घणी तरवार । उ५ खग टूक लोही मझि एम । जळाधर वीच'६ कळाधर जेम ॥ २१६
१ ख. जड़कत। २ भिडे । ३ ग. जडदाल । ४ ख. ग. कडकत । ५ ख. बहै। ६ ख. ग. करिमाल । ७ ख. दादो। ८ ख. गोवरधंन । ग. गोवरधन । ९ ग. रामो। १० ख. सबळाउत । ११ ग. है। १२ ख. ग. पीये। १३ ख. सूरां। १४ ख. बहै। १५ ख. ग. वोपै। १६ ख. ग. वीचि ।
२१६. जड़क्कत -प्रहार करता है । जरदाळ – कवच । कड़क्कत - कट-कटकी ध्वनि करते
हैं । वहै - चलती है। दादौ - पितामह । गोवरधन्न – चंदावल ठाकुर गोर
धनसिंह। २१७. रामौ - रामसिंह । रूक - तलवार । भभक्कत - उमड़ता है। स्रोण - रक्त, खून ।
भूक - ध्वंस, नाश। २१८. रत - रक्त, खून। पत्त - पात्र, खप्पर । वखांणत - प्रशंसा करता है। सूर - सूर्य ।
टेक - प्ररण, प्रतिज्ञा। २१६. वार-पानी। उप- शोभित होता है। टूक - खंड । जळाधर - बादल । कळा
घर-चंद्रमा ।
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सूरजप्रकास
[ ६६ वढे वप वीजळ' खंड विहंड । . पड़े धर तांम किया रत-पिंड । तई वर रंभ रथां चढ़ि ताम । रहै धर क्रीत वसे नगः ‘रांम' ॥ २२० करै खगझाट हण किलमांण । भिडै 'भगवान' तणौ 'हरिभाण' । सारां झक बौळ' करत सनांन । अड़ी खभ 'भांण'११ छिबै असमांन"२ ॥ २२१ तई१३ 'हरभाण'१४ पछट्टत'५ तेग । वहै असमांन१६ छटा करि वेग'८ । तिसा जम बाळ कलिंद्रि तरंग । . बगत्तर'६ पोस उडत बरंग ॥ २२२ जोरावरसिंघ 'पदम्म'२० सुजाव । घटां जरदैत थटे खग घाव । . समोभ्रम १ 'भाऊ' 'बखत्त'२२ सकाज ।
तई खग झाट हणे सिरताज ।। २२३ १ ख. बढ़े। २ ख. बीजळ । ३ ख. पडे। ४ ख. ग. कीया। ५ ख. ग. रतप्पंड । ६ ख. ग. वरि। ७ ख. रहे। ८ ख. श्रुग ! ग. श्रुगि। ६ क. सिरी। १० ख. ग. बोळ । ११ ख. बांण । १२ ग. असमर्माण । १३ ग. तइ। १४ ख. हरिभांण । ग. हारेभाण। १५ ग. पछटत । १६ ख. ग. असमांनि । १७ ख. ग. किरि । १८ ख. . बेग । १६ ख. बग्गतर । ग. वगतर । २० ख. ग. पदम । २१ क. समौदंग । २२ ख.ग. बष्षत।
२२०. वढे - कटते हैं। वप - वपु, शरीर । वीजळ - तलवार । रत-पिंड - युद्ध में वीर
गति प्राप्त होते हुए वीरोंका अपने रक्तसे मिट्टीके साथ पितरोंके लिए पिंड बनाना ।
घर - भूमि । स्लग - स्वर्ग । २२१. किलमांण - यवन, मुसलमान । भगवान - भगवानसिंह । हरभाण - सूरजभाणसिंह। ___ सारां - तलवारों। झक बौळ - तरबतर। अड़ी संभ - जबरदस्त । भांण - सूरज.
भाण। छिबै- स्पर्श करता है। २२२. हरभाण- सूरजभाण सिंह । तेग - तलवार । छटा- बिजली। कलिद्रि - कालंद्री,
यमुना। बगत्तर पोस - कवचधारी। बरंग - खंड, टुकड़ा। २२३. पम्मद - पदमसिंह । सुजाव-पुत्रव। बखत्त बखतसिंह । सकाज-लिए।
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७० ]
सूरजप्रकास
सुरै' 'फतमाल' तणे सिरदार । दुबै घट साबळ कीध दुसार । अणी' धड़ कट्टि फबै फळ एम । जाळीमझि हत्थ सुहागणि जेम ।। २२४ जठै प्रथिसिंघ' पराक्रम जागि । लड़े भड़ धूहड़ अंबर लागि । पछट्टत . मुग्गळ रूप प्रहार । किलक्कत वीर जयज्जयकार ॥ २२५ दियै खग झाट 'फतावत' दोय । हुता जुध भांण अचंभम होय । भाई "बिहूं'' कूप हरागज भार । 'अरिज्जण'११ भीम तणी उणहार ॥ २२६ जुड़े 'सिरदार' तणौ वरजाग" । खळां सिर 'पीथल' वाहत खाग । 'छतौ' भड़ ‘रांम' सुतन्न छछोह । लोहां पहराक'५ हणे झट लोह ॥ २२७
१ ख. ग. सूरै। २ ख. अरा। ग. अरो। ३ ख. ग. फूटि । ४ ख. प्रिथिसिंघ । ग. प्रथिसिंघ। ५ ख. ग. मूंगल। ६ ख. बीर। ७ ख. ग. जयजयकार। ८ ख. दीये । ग. दीये। ६ ख. ग. हुंता। १. ख. दुहूं। ग. दुहू। ११ ग. अरिजण । १२ ख. उणहार । ग. अणुहार । १३ ग. तणो। १४ ग. वरजागि। १५ ग. लहरीक ।
२२४. दुसार - इस प्रोरसे उस ओर तक, आर-पार । फळ - भालेकी नोंक, शस्त्रकी नोंक । २२५. पछट्टत - पटकते हैं, गिराते हैं। किलक्कत - हर्षपूर्ण ध्वनि करते हैं। जयजयकार -
जय-जयकी ध्वनि । २२६. अचंभम - पाश्चर्ययुक्त । कूपहरा - राव कुंपाके वंशज, राठौड़ । २२७. सिरदार - सरदारसिंह। वरजाग - जबरदस्त । पोथल - पृथ्वीराज। छतौ - छत्र
सिंह। राम - रामसिंह। छछोह - तेज । लोहां पहराक – अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित । झट -प्रहार । लोह - शस्त्र ।
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K
सूरजप्रकास
[ ७१ सझै खग झाट हणे खळ साथ । हिचै 'भगवान' तणौ' 'हरनाथ' । तठे · 'करनौत'२ लड़े खग ताह' । थटां मझि सांमँत अंगद थाह ॥ २२८ 'चत्रभुज'५ 'चंद' तणौ विरचाळ । दिये खग झाट हिण रवदाळ । 'देवावत' बद्रियसिंघ दुगांम । करै खग झाट खत्रीवट'• काम ।। २२६ जुड़े 'रतनागर' 'भीम' सुजाव । दियै' खग झाट खळां सिर दाव । 'उदावत'१२ 'वक्खत' जै अवसांण । खंडाहळ झाट' हणे खुरसांण ॥ २३० पछट्टत'४ लोह थटां पँडवेस । अड़े 'हररूप' तणौ१५ अणदेस'६ । 'झंझावत'१७ 'ईस' दिय८ खग झाट । पड़े खळ थाट चढ़े धर पाट'६ ॥ २३१
१ ग. तणो। २ ख. करणौत । ग. करणोत । ३ ख. ताहि । ग. साहि। ४ ख. ग. थाहि । ५ ख. चत्रभुज । ग. चत्रभुज । ६ ख. ग. बंधिचाल । ७ ख दीये। ८ ख. ग. हणे। ख. बद्रीयसिंघ। १० ग. पत्रीवटि । ११ ख. दीये। १२ ख. ऊदावत । १३ ख. ग. थाट । १४ ख. ग. पछाटत । १५ ग. तणो । १६ ख. ग. अणदेस । १७ ख. ग. झूझावत। १८ ख. दीए। १९ ख. ग. पाठ ।
२२८. करनौत - करणौत शाखाके राठौड़। २२६. विरचाळ – वीर, योद्धा। हिणे - ध्वंस करता है। रवदाळ - यवन, मुसलमान ।
दुगांम - वीर, जबरदस्त । २३०. रतनागर - समुद्रसिंह। भीम - भीमसिंह । उदावत - उदावत शाखाका राठौड़।
खंडाहळ - तलवार। खुरसांण - यवन, मुसलमान । २३१. पंडवेस - बादशाह, यवन । अणदेस - आनंदसिंह । ईस - ईश्वरीसिंह। पाट - ढेर,
समूह ।
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७२ ]
सूरजप्रकास
खहै 'खड़गेस' तणौ ' रघु'' खीज । वाहै' खग जांणि प्रकाळिय वीज * । स' 'कुसळेस' तणो जुध सांग | निजोड़त मीर खगां वड नांम ॥ २३२ 'कलौ" सिवदांन तणौ कळमूळ । झकौळत वीजळ" मुग्गळ" झूळ ।
.६
१२
13
'हरी'"" किसनावत 'लाल' हठाळ ।
खहै खग झाट वहै" रत - खाळ ।। २३३
११५
.१६
१७
धसै
लड़े 'बगसौ" घण वाहत बहादरऊत " अहंमद खेत वड़े स जुध 'सांमत' रौ
लोह |
गजबोह |
अवसांण ।
सुरतां ।। २३४
बाहै घण खाग घणीस" बुहाड़ि" ।
२०
पड़े रिण" नींठ घणां खळ पाड़ि ।
२४
परी २२ वर होय विमाण मिळे* सुरधाम प्रारांम
.२५
६ ख.
१ ग. रघू । २ ख. बाहै । ३ ख प्रकालीय । ४ ख. बीज । ५ ख स । ताम | ७ ग. कलो । ८ग. तणो । ६ ख. ग. कलिमूळ । १० ख. बोजळ । ११ ख. भूगल । ग. मंगळ 1 १२ ख. हरं । ग. हरी । १३ ख. णाल । १४ ख. बहै । १५ ग. बगसो । १६ ख. बाहत | १७ ख. बाहादरवृत । ग. बाहादरधूत । धणीसा | १९ ख वाहाडि । ग. वहाडि । २० ख. पडे । २१ ख. ग. रण । २३ ख वरि । २४ ख. बिमांण । २५ ख. मिले ।
परा ।
पधारि । मारि ।। २३५
-
२३२. खहै - भिड़ता है, युद्ध करता है। खड़गेस-खड्गसिंह । रघु - रघुनाथसंह । खीज - कोप कर के । प्रकाळिय - असामयिक । वीज- बिजली ।
२३३. कलौ - कल्याणसिंह | कळमूळ - योद्धा, वीर । भकोळत प्रक्षालन करता है । वीजळ - तलवार | झूळ - समूह । हरी हरीसिंह । लाल - लालसिंह | हठाळ अपने हठ पर दृढ़ रहने वाला । रत-खाळ - खूनका नाला ।
२३४. बगसौ - बगसीराम । बहादरऊत - बहादुरसिंहका वंशज ।
-
अहंमद - अहमदाबाद | सांमत सामंतसिंह । सुरतांण- सुल्तानसिंह | २३५. नींठ - कठिनतासे । परी - अप्सरा । वर- पति । सुरधाम- स्वगं ।
१५ ख.
२२ ख.
गज बोह - गज-व्यूह |
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सूरजप्रकास
रिमां खग झाट' हणै जमरूठ | तठे 'बखतेस' 'दलावत' तूठ' । हवे 'सुरतांण' तणौ 'हठमाल' ।
भटां खग खेलत सूर दुभाल । २३६
'अभौ" भड़ 'जैत' तणौ प्रवनाड़ |
किंवाड़" ।
* करे खग भाटक' थाट' जोरावरऊत 'पदम्म व्रजागि * ।
१८
'उदावत'' खाग खळां सिर आणि ॥ २३७ 'जसावत' 'माधव' दारण जोम | हिचै खग झाट करे खळ होम | 'रांमौ' 'सगतेस' तणौ करि 'रीस । सत्रां चंद्रहास तरास तसीस ।। २३८ 'रासौ' जुध 'माहव'रों मछराळ।
रमै खग झाट खळां विकराळ " ।
•
१२
वरावत
'अनावत' ' ' 'अम्मर सम्मर प्राय । घणा खळ ताय २ हण खग घाय ॥ २३६ समोभ्रम' ३ 'चंद' 'सिव" " धुबि " सार । हूर रिमां जुध वार । १ ख भाटि । २ ख. म. दृठ । ३ झट । ४ ख. ग. श्रनौ । ५ ग. भाटकि । ६ ग. थट । ७ ग. किवाट । ८. पदम । *... *ये दो पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं । ६ ख. कवत । १० विकराल । ११ . अन्नावृत्त । १२ ग. ताहि । भ्रम । ग. समोभ्रम । १४ मिवो । ग. सिवो । १५ ख. ग. धुवि ।
१३ क. समौ
२३६. रिमां - शत्रुओं । नमरूठ - यमराज के समान रुमान । तूठ - ( २३७. जैत - जैतसिंह । श्रवनाड़ - वीर ।
२३८. दारण - जबरदस्त । जोम - जोश। हिचं - युद्ध करता है। होम ध्वंस | चंद्रहासतलवार । तरास - काटता है । तसीस हाथोंसे ।
२३६. रासौ - रायसिंह । माहवरौ - माहवसिंहका । मछराळ - वीर ।
1
सिंह । सम्मर - युद्ध ।
२४०. समोभ्रम - पुत्र । चंद- चंद्रसिंह । सिवौ - शिवदानसिंह । धुबि - युद्ध कर के । वरावत - वरण कराता है । हूर - अप्सरा ।
सार- तलवार
सम्मर - अमर
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७४ ]
सूरजप्रकास
'हठी' 'सबळेस' समोभ्रम' हेक । निजोड़त वीजळ खांन अनेक || २४०
तणे' 'दलसाह' तणौ 'सुरतेस ' । सत्रां खगधार धमंत
'सुरेस' |
तई खग वाहत 'कुंभ' " सुतन्न ।
करै खग झाटक सूर 'मुकन्न'" ॥ २४१
बडा" खळ रूक" हणै णबीह । 'हिमताउत '
स
डूंगरसींह |
साहिब - खांन ।
भैराक जराक कराक अथाह । समोभ्रम ' 'भोज' लड़ै 'गजसाह' || २४२ खहै 'अजबावत' उडै खग झाट छिबै असमांन । दिपै 'कुसळेस' सुतन्न" 'दुरंग' | सत्रां खग भाट तरंग सुरंग ॥ २४३
पटायत सूर इता परमाण 1 जुड़े इम अग्र'' 'उमेद' 'सुजांण ६ ।
१४
१६
१ क. ग. समौभ्रम । २ ख. बीजष । ग. बीजल । ३ ख. लांन । कुंभ। ६ ख सुक्कंन । ग. मुक्कन । ७ ग. वडा । ८ ग. रूप । १० ख. सुतंत्र । ग. सुतंन । ११ ख. पटाइत । १२ ग. इते । १४ ख. ग. इण । १५ ख. श्रनि
।
१६ ख. सुजांणि ।
२४३. खहै - युद्ध करता है ।
२
२४०. हठी - हठीसिंह । निजोड़त २४१. त- तनय, पुत्र । सुरतेस मुका - मुकुनसिंह |
२४२. रूक - तलवार । अणबीह - निडर, निशंक । भैराक - तलवार । जराक - प्रहार । कराक - क्रंदन, चिल्लाहट । भोज - भोजसिंह । गजसाह - गजसिंह ।
-
कुसळेस - कुशलसिंह । दुरंग
२४४. पटायत - पट्टाधिकारी । जुड़े
२
काटता है । वीजळ - तलवार ।
सुरतसिंह । सुरेस - इन्द्रसिंह । कुंभ - कुंभकरण ।
जबावत - अजब सिंहका पुत्र । छिबै - स्पर्श करता है । दुर्गादास । सुरंग - रक्त, लाल । भिड़ते हैं । उमेद - उम्मेदसिंह |
-
-
४ ग त । ५ ख.
εख. समोभ्रम ।
१३ ख. परमाणि ।
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सूरजप्रकास
[ ७५
उरज्जणसिंघ' 'पदम्म सुजाव' । घणा खळ ढोहत वीजळ घाव ॥ २४४ वाहै। खगः मुग्गळ वारोवार । हुवौ सिर पंकज पंख - हजार । तई सर सेल तेगांभर १२ तेम । जई फब' गात कॅथा सिध - जेम ।। २४५ अरीथट हर वराय४ अनेक । अरी झल लोह वरी१५ भ एक'६ । जरै द्रव देह करै जसवास'८ । विमांण' अरोहि करै लुगास' ॥ २४६ हुवै घण मुग्गळ२२ ग्रोखम हेम । खहै। 3 खग झाट 'फतावत'२४ 'खेम' । 'मधा'हर फील हणे जुध माह । सदा सिव भांण करंत सराह" ।। २४७
१ ग. उरजसिंघ । २ ख. ग. पदम । ३ ग. सूजाव। ४ ख. ग. बीजळ । ५ ख. बाहै । ग. वाहे । ६ ख. ग. षल । ७ ख. भूगल । ग. मुगल । ८ ख. बारोहीबार। ग. वारोहीवार । ६ ग. हुवो। १० ख. ग. तइ। ११ ख. ग. लगां १२ ख. भरि । १३ ख. ग. फबि। १४ ग. बराय । १५ ख. बरी। ग. वीर। १६ ख. येक। १७ ख. ग. द्रब। १८ ग. जसवासा । १६ ख. बिमाण । २० ख. कोयौ। ग. कियो। २१ ख. श्रुगिन्यास । ग. श्रूगिवास। २२ ख. मूगल । ग. मुगल । २३ ख. वहै। २४ ख. वतावत । २५ ख. ग. माहि। २६ ख. ग. कहत। २७ ख. ग. सराहि ।
२४४. पवम्म - पदमसिंह। सुजाव-पुत्र। ढाहत - गिराता है, मारता है। वीजळ -
तलवार। २४५. पंकज - कमल । पंख-हजार - सहस्रदल कमलके समान । कथा - फटे-पुराने
चिथड़ोंकी बनी गुदड़ी जिसे फकीर धारण करते हैं। २४६. परीयट - शत्रु-दल । हर- अप्सरा । जसवास - यश, कीर्ति । विमांण - विमान,
. वायुयान । २४७. फतावत खेम - फतेहसिंहका वंशज खेमसिंह । मधाहर - माधोसिंहका वंशज ।
फील- हाथी। सराह - प्रशंसा, तारीफ।
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७६ ]
सूरजप्रकास
दुबाह' अनेक लड़े थट दोय । कमंधांय' 'खीम' जिसौ नह कोय । समोभ्रम सांमतसिंघ सरूप । रिमां खग झाट हणे जमरूप ॥ २४६ 'मधावत' 'ईसर' लोह मराट । घणी खम झाट तछ खळ घाट । करै खग झाट उफांण किरोध । जुड़े' जुध 'सेर' समोभ्रम 'जोध' ।। २४६ सुतन्नः 'हरिंद' लड़े 'सिरदार' । पबै खग जांणिक बज्र प्रहार । रिमां करि नास बांणास रँगेस । समोभ्रम' 'भाउ'' लड़े२ 'जगतेस' ॥ २५० हिचे चॅद्रहास रच रिख हास । सुतां१४ 'भगवान'ज सांवळदास । जुष्ट करमाळ१५ झळां 'जगवंत' । अडीखभ 'कन्न'१६ तणौ'५ 'भगवंत' ॥ २५१
१ ख. ग. दुहाव । २ ख. ग. कमंधज । ३ ग. कोई। ४ ग. जुडे । ५ क. समौभ्रम । ६
७ग. विषै। ८ ग. जाणक। ख. बांणास । ग. वाणास । १० क. समौनम। ११ ख. भाऊ । ग. भोन। १२ ख. ग. जुड़े। १३ ख. हिवै। ग. हिबे। १४ ख. ग. सुतं । १५ ख. करिमाल । १६ व. ग. कान्ह। ७१ ग. तणो।
२४८. दुबाह - वीर, योद्धा। थट -- सेना। कमंधांय - राठौड़ोंमें। स्वीम - खीमसिंह ।
हणे - संहार करता है। २४६. मधावत ईसर - माधोसिंहका पुत्र ईश्वरीसिंह। मराट - जबरदस्त । तछ- संहार
करता है। उफांण - उबाल । किरोध - क्रोध । सेर - शेरसिंह । समोश्रम - पुत्र।
जोध- जोधसिंह। २५०. हरिद - हरिसिंह । सिरदार - सरदारसिंह । 'पब- पर्वत । जोणिक - मानों ।
बेोणास - तलवार । भाउ - भाऊसिंह । जगतेस -- जगतसिंह। २५१. हिच - प्रहार करता है। चंद्रहास - तलवार। रिख - नारद ऋषि। भगवान--
भगवानसिंह। करमाळ - तलवार । अडीखंभ - जबरदस्त । कन्न-किसनसिंह । भगवंत - भगवंतसिंह।
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सूरजप्रकास
२.
धमोड़त साबळ' मुग्गळ धींग |
हरिनाथ जके हरसींघ' ।
सुतां
दुरत्त ।
दिये खग झाटक रूप सुतां' 'कुसळेस' कॅठीर सुरत ।। २५२
७
वडा" उजबक्क" हण खग वाह ।
समोभ्रमं 'कांन्ह' लड़े 'दलसाह' । समोभ्रम 'दीप' 'हिंदाळ' सधीर' । बधेवधि" लोह करै नर वीर" ।। २५३ विढ़े जुध मेड़तिया जुध वेर १३ ।
५
सिरै 'सिरदार' समोभ्रम १४ 'सर' | " प्रभैमल' चाड जिके बह* वार | धरा जुध कीध फतै " खग धार ।। २५४ ''प्रभा' छळि मेड़तनैर अभंग | जितौ" अरियांण हुंतौ" कर घणा महरात हण खग जितौ" बह जंग बळा मभि जाय ।। २५५
जंग |
.२०
घाय ।
ન
२३
२४
१ ग. मुगल । २ ख. मूंगल । ग. साबल । ३ ख. सु । ग. सुत । ग. हरिसंघ । ५ ख दीर्ये । ६ व. ग. सुनं । ७ ख. बडा । ग. सधी । १० ग. वधेविधि | १४ क. समोभ्रम । १५ ख. जिके । ग. जीतो । १६ ख. हंता । ग. हुता । २० ख. महिरात । २२ २२ . बहौ । ग. बहु | २३ ग. वळा । २४ ग. मंजि ।
११ ख बीर । १२ ख. १६ ख वहौ । ग. बहो ।
-
3
[ ७७
-२५२. धमोड़त - प्रहार करता है। धींग - वीर । दुरत्त भयंकर कुसळेस - कुशलसिंह । कठोर - सिंह |
- २५४. विदे - वीरगतिको प्राप्त करते हैं, युद्ध करते हैं। सिरदार - सरदारसिंह
शाखा । वेर - समय
२५३. उजबक्क - तातारियोंकी एक जाति श्रथवा इस जातिका व्यक्ति । कन्हि - कानसिंह ।
दीप दीपसिंह | हिवाळ - हिदालसिंह । वधेवधि - बढ़-बढ़ कर ।
४ ख. हरिसघ्र ।
८ ग. वजवक्क |
१३ ग. सिरे ।
बेर । १७ ग. फते । १८ ख. ख. जीतो । ग. जीतो ।
मेड़तिया - राठौड़ वंशकी एक | सेर - शेरसिंह मेड़तिया |
ड- रक्षा
२५५. मेड़तनैर- मेड़ता नगरके । अभंग - धीर । अरियांण - शत्रु । बळा - ( अग्नि ? ) 1
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७८ ]
सूरजप्रकास
सझे खग झाटक कूडळ साथ । निजोड़' धवेच' हणै रघुनाथ । अहमंद कोट करै अणबीह । दावानळ जंग सवा त्रण दीह ।। २५६ चौथै' दिन खाग झळां" कळिचाळ । काळादळ रोद्र हणे विकराळ । मारे' खळ मुग्गळ'' साबरमत्त' । रत'3 रंग कीध उभेळ रगत्त४ ।। २५७ चौड़ा५ मझि आय वधे छक चाहि । मँडे दुय५ राडि हिके दिन मांहि । उगांतिय मौसर ८ क्रोध उफांण । भयंकर जेठ जिसौ मधि भांण ॥ २५८ मारू हथि एम कढ़ी किरमाळ' । झळाहळ काळतणे" हथ झाळ । तठे पखरैत हकालि तोखार ।
वमल्लिय२१ भार बँचे२ जिणवार ।। २५६ १ ख. निजोडि। २ ख. धवैच। ३ ख. हणे। ४ ख. करे। ५ ख. त्रिण। ६ ख. चोथे । ७ ख. झटां। ग. झाटां। ८ ख. कालानल । ६ ख. ग. रौद्र । १० ग. मारै । ११ ख. मूगल । ग. मुंगल। १२ ख. ग. सावरमति । १३ ख. ग. राते । १४ ख. ग. रगति । १५ ग. चौडै । १६ ख. दोया । ग. दोय। १७ ख. उगंतीय । ग. ऊगंतिय। १८ ग. मोसर । १६ ख. करिमाल । २० ग. काळतणो। २१ ख. ग. वमालीय। २२ ग. पंच।
२५६. झाटक - प्रहार। कूडळ -- धनुष। निजोड़ - काटता है। धवेच - राठौड़ वंशकी
धवैचा शाखाका व्यक्ति । अहमंद - अहमदाबाद। बावानळ - दावाग्नि। सवा..
दोह - सवा तीन दिन । २५७. काळचाळ - वीर। रोद्र - यवन । साबरमत्त- साबरमती नदी। रत - लाल ।
उझेळ - तरंग। रगत्त - रक्त, खून । २५८. मंडे - रच दिये। राड़ि- युद्ध । उगांतिय मौसर - श्मश्रुके बाल निकलते समय ।
उफांण-उबाल । जेठ-जेष्ठ मास । मधि - मध्य । २५९. मारू - वीर राठौड़। कढ़ी-निकली। किरमाळ - तलवार । तठे- वहां। पख
रंत - कवचधारी घोड़ा या योद्धा । तोखार - घोड़ा। वमल्लिय - ( ? )।
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[ ७६
सूरजप्रकास झपट्टत नाळ' दमंग झळास । करै 'वखतावर नट्ट . कळास ।
ओरे' असि वाहत खाग अपार । 'विलंद' "विलंद' कहै जिण वार ।। २६० धरा' जरदैत पड़े खग धार । उडै धड़ फाड़ जनेउ उतार । रिमां कॅधि 'सेर' करै घण रीस । सझे खग झाट उडै बह सीस ॥२६१ सहेत झिलम्म पड़े घमसांण । जाळी मझि कोर मतीरह'' जांण । आग भड़ 'सेर' सिरै अमराव'' । उठी 'तरियन्न'१३ सिरै अधिकाव ।। २६२ जमात समेत दुहं जमरांण । मिळे'४ घमसांण छिबै असमांण ।
.१ ख. ताल । २ ख. बषतावर। ३ ख. औरे । ग. गोरे। ४ ख. घडा। ग, धडां। ५ ग. फाट । ६ ख. ग. बहो । ७ ख. राहैत । ८ ख. झिल्लंम । ग. झिलम। ६ ख. जाली। १० ग. मतीरहि। ११ ख. ग. उमराव । १२ ख. ग. तरियंत्र। १३ ख. ग. सहेत। १४ ख. मेले । ग. मिल । १५ ख. छिवे । ग. छिवे ।
२६०. झपट्टत – झपटते हैं, तेज दौड़ते हैं। नाळ - घोड़े के सुमके नीचे लगाया जाने वाला
वृत्ताकार उपकरण । दमंग- अग्निकरण । झळास - चमक, आगकी लपट । वखता
वर-बस्तावरसिंह। २६१. घरा-पृथ्वी। जरदैत- कवचधारी योद्धा। उडै "उतार - तलवारोंके प्रहारोंसे
योद्धाोंके शरीर ठीक उसी स्थानसे बराबर कटते हैं जहां पर उनके शरीर पर यज्ञो.
पवीत धारण किया रहता है। रिमां- शत्रुओं। सेर - शेरसिंह मेड़तिया। २६२. झिलम्म - युद्ध के समय शिर पर धारण करनेका टोप विशेष, शिरस्त्राण। घमसाण -
युद्ध । जाळी - जाल, फंदा। कोर - तोता। मतीरह - हिंदवानी नामक वर्षा ऋतुमें होने वाला तरबूजके प्राकारका लता फल विशेष। तरियन्न - तरयतखां नामक यवन ।
अधिकाध - विशेषता। २६३. जमराण - यमराज। घमसांण - युद्ध । छिबै - स्पर्श करते हैं ।
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८० ]
सूरजप्रकास
अम्हौ' सम्ह सायक फूटि अपार । धड़ा धमरोळ प. चवधार ॥ २६३ पछट्टत' खग्ग राठौड़' पठाण । भयंकर कौतिग देखत भांण । रूणंझण' नेवर हवर रंभ । उठै हसि नारद होय अचंभ ॥ २६४ लोही वभकति खगां झट'° लागि । उडै झळ जांणि खंडी वन'' आगि । लडायक 'सूर' जिसौ बहलीम'३ । भणै ज 'तरीन' तणौ 'अभरीम' ।। २६५ खड़े असि 'सेर' दिसो ४ चढ़ि खाग'५ । 'निजायक' जांणि खिजायक'६ नाग । पावंतौहि झेलि१८ पठाण अफेर । सांम्है' सिर खाग लगाइय' १ 'सेर' ॥ २६६ तई अधसीस बढ़े तह - ताज१२ । कियौ सिव खप्पर जीमण काज ।
१ ख. ग. अम्हो। २ ख. पछटत । ग. पछंटत । ३ ग, राठोड। ४ ख. कौतक । ग. कौतग। ५ स्व. ग. रणंझण । ६ ख. ग. हर। ७ ख. बरंभ । प. परंभ। ८ ख. उर्छ । ६ ख. ग. भभकंत। १० ख. झटि। ११ ख. बन । १२ ख. ग. वहलीम । १३ ख. ग. भणे । १४ ख. दिली । १५ ख. ग. षाग । १६ ख. ग. षिजायक । १७ ख. पावंतां १८ क. जेल। १६ क, सम्हें । २० ख. ग. षाग। २१ ख. ग. लगाईय । २२ ख. साज । २३ ख. ग. कीयो। २४ क. पक्खर ।
२६३- अम्ही सम्ह -- परस्पर एक दूसरेके अभिमुख । सायक - तीर । धड़ा - शरीर । धम
रोळ - प्रहार कर के । चवधार – भाला विशेष । २६४. रुणझण - जेवरोंकी ध्वनि । नेवर - पैरमें धारण करनेका स्त्रियोंका एक प्राभूषण ।
हवर - परी। रंभ - अप्सरा । अचंभ - प्राश्चर्ययुक्त। २६५. धभकंति - उमड़ता है । खेडी वन - एक प्राचीन वन जिसे अर्जुनने जलाया था। २६६. खिजायक - कुपित । २६७. जीमण - भोजन या भोजन करनेके लिए ।
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सूरजप्रकास
सहे खग' दीर्घ पठाण संमाथि ।
हुई खग' झाट कर्मधज हाथि ।। २६७ घायल होय ।
हिचै' 'कुसळाहर'
दूजी खग" भाट किया बंट दोय | जोये ' 'अभरांम' विहंडज' -११ जवान |
०
खहै'
२
[' 'मांनड' 'चूहड़-खांन' खग
१४
.१६
919
वाहै" खग" चूहड़ खांत" विक्राळ | नाराजक बाजण मुहिनाळ" | ग्रा वाहि पठाण सके न उभारि । तितै भड़ 'सेर' वाही तरवारि ।। २६६
सभे भड़ तीन लखे तठे गज हूल कियौ
१६
खड़े हंस भोम" पड़े कटि खांन " í
२
3
उडे सिर वीज पड़ी असमान | 'सेरा'" मुहर * भड़ सेर समान । खगां* "हणियों जुधि' मानड़-खांत'
19
.२८
०
।। २६८
39
सरियन्न । तरियन्न
।। २७०
1
१ ख. ग. बाग |
२ क. समाय । ३ ख. ग. षग ।
५ ख. ग. भाटक
६ ख. हिवे । ग. हिचे
|
खाग ।
१६
४क. हाथ । ७ ख. ग. दुजा । ८ ख. ग. वग । ६ ख. ग. कीया । १० क ख. जोए । ११ ग. बिहंज । १२ ख. ग. हे । १३ ख. ग. १४. ख. चूहड़ -षांन । १५ ख. बाहे । ग. बाहै । ख. ग. बग । १७ ख. ग. चूहड़बान । १८ क. ग. मुहनाळ १६ ख. ग. पड़े । २० ख भौम । ग. भूम । २१ ख. ग. षांन । २२ ख. डडो । २३ ख. बीज । २४ ख. सेर | २५ ख. ग. मोहरे । २६ ख. ग. गां । २७ क. हणि । ख. हणीयौ । २८ क. मानह खांन । २६ ख लषे । ३० ख. ग. कोयौ । ३१ ख. तरीयंत्र ।
२६७. भाटक - प्रहार ।
२६. हिचं युद्ध करता है, भिड़ता है । विहंडज - कट कर खहै- युद्ध करता है ।
२६६. नाराजक - तलवार बाजतणौ - घोड़ेके ।
२७०० खड़े - प्रयाण करते हैं। हंस-प्राण । भोम भूमि मुहरं - अगाड़ी ।
२७१. हूल - प्रहार |
搞餐
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८२ ] .
सूरजप्रकास
'मधा'हर मेड़तिया' जमरांण । प्रळे झळ रूप 'तरीन' पठाण ।। २७१ कसीसत टंक - अढार - कबांण । परी अह' रूप ध्रवै सिर पांण । धणी खग' झाट करै घण घाय । लगी किर वंसतण वन लाय ।। २७२ ।। दिय५ 'बखतावर'६ माकड डांण । खगां झट 'सेर' हणे खुरसांण । अळूझत बाज खुरां'' मझि अंत । मंथै खुरदेत गजां मयमंत' ॥ २७३ वधै 'तरियतन्नणौ १४ सबछेक । हौदा मझि खाग' लगाइय'" हेक । जठै खग'८ तंत. ज्यूंही वही जाय । खड़ा भड़ घूम चंकरिय' खाय'५ ॥ २७४ तिकै सिर ईस लिय३ मुसताक । पड़े छक जाणिक फूल पियाक ।
१ ख. मेड़तिया। २ ख. अंह। ३ ख. ग. षग। ४ ख. बांस । ग वांस । ५ क. दिए । ख. दीये। ६ ख. वखतावर । ७ ख. ग. षगां। ८ ख. ग. षुरसारण। ४ ख. बाझ । ख. बाज। १० ख. ग. पुर। ११ ख. ग. पुर। १२ क. मददंत । ख. मदमंत। १३ ख. बधे । १४ ख. तरीयम्नतणे । १५ ग. होदा। १६ ख. ग. षाग। १७ स. ग. लगाईय। १८ ख. ग. षग। १६ ख. बहि । ग. वुही। २० ख. ग. षड़ा। २१ ग. चक्केरीय। २२ ख. ग, षाय । २३ ख. लेए । ग. लिए।
२७२. कसीसत - धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते हैं । टंक" कबांण - एक प्रकार का धनुष विशेष ।
घाय - प्रहार। किर - मानों। लाय - दवाग्नि । २७३. मांकड़- वानर । डांण - छलांग । खुरसांण - यवन । अंत - प्रांतें। मयमंत
मदमस्त । २७५ ईस - ईश, महादेव। मुसताक - मस्ती, हर्ष। छक - तृप्त । माणिक - मानों।
फूल - शराब । पियाक-पीने वाला।
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सूरजप्रकास
किता घट फूट लुटै' हिचकंत । - कबूतर लोटण' जेम' करंत ।। २७५ उबासत' सीस लड़ें धड़ एक । इसी विध' घाट कुघाट अनेक । वहै धज साबळ. खाग विहार' । सझै जुध खांन पड़े सरदार ।। २७६ पड़े भड़ लोहाइ'' खेत'' पचीस । अणी घमसांण पणी इक - वीस । सहेत 'तरीन'१२ जुदा धड़' सीस । तरीन' पठाण पडै चवतीस१४ ॥ २५७ पावै कुण पात कहै गुणपार । विढे५ भड़ 'सेर' इसौ उणवार । महाभड़'६ सूर लड़ें 'पदमेस' । रमै खग झाट हसंत रिखेस ॥ २७८ विचै खळ थाट करै असिवेव' । दिपै जिम भारथमै सहदेव ८ ।
१ ख. ग. लटे । २ ग. लौटण। ३ ग. उवासत । ४ ख. बिधि । ५ ख. बहे । ६ ख. बिहार । ७ ख. सझे। ८ ख. ग. षांन । ६ ख. पडे । १० ख. लोदीय । ग. लोधीय । ११ ख. ग. घेख । १२ ग. तरीयन। १३ ख. भड़। १४ ख. चवबीस । १५ ख. "बिढ़े। ग. विडं। १६ ख. ग. महाबळ । १७ ग. प्रसिदैव। १८ ग. सहदैव ।
२७६. उबासत - ( पड़े हुए ? )। घाट - घट, शरीर । फुघाट - क्षत-विक्षत, खराब ।
धज - भाला। विहार -विदीर्ण करके । २७७. खेत - युद्ध-भूमि । अणी - अनीक, सेना अथवा इस। घमसाण - युद्ध ।
२७८. पात - पात्र, कवि । विक - युद्ध करता है। परमेस - पदमसिंह । रिखेस - ऋषीश,
नारद ऋषि ।
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कदै जरदाह अमीर . कराळ । 'कलावत' लोह कर कळिचाळ ॥ २७६ जठे खग वाहत' दारुण 'जैत' । पड़े जरदैत घणा पखरैत । धसै' दळ मूगळ' कीध विधूंस । रुद्रग्गण दक्षतणैजिग रूस ॥२८० सांम्है सिर खाग वहीं घमसांण । जिको' अधचंद्र भळक्कत जाण । भवांनियः दीध सिंदूरज' भाळ । भळाहळ जांणि'' त्रिती चख भाळ ॥२८१ पेचां मझि स्रोण वहै अणपार । जटा गंग जांणिक'' धार २ हजार । वघंबर जेम सिलै ४ विकराळ'५ । मँडै १६ गळि माळ जिका रुंडमाळ ॥२८२ नँदी गण जेम तुरंग निहंग ।
जोगारंभ आठ सझै रिण जंग । १ ख. बाहत। २ ख. ग. धसे। ३ ग. मुगळ । ४ ख. ग. रौद्रगण । ६ ख. ग.
पतणौ। ६ ख. ग. जिको। ७ ग. जाण । ८ ख. ग. भवांनीय। ६ ख. ग. संदूरज। १० ग. जांणि । ११ ख. जांणि । १२ ख. त्रिती । १३ ख. चषझाल । १४ ख. ग. सिल्है। १५ ख. बिकराल। १६ ख. ग. मंडे। १७ क. नदी।
२७९. जरवाळ - कवच। कलावत - कल्याणसिंहका पुत्र या वंशज । कलिचाळ - योद्धा। २८०. पाहत - प्रहार करता, नेत - जैतसिंह । जरदैत - कवचधारी योद्धा। पसरत -
पखर (कवच जो घोड़ा या हाथी पर डाला जाता है)धारी धोड़ा या हाथी। विधूस - विध्वंस। रुद्रगण - महादेवके गण । दक्ष - दक्ष प्रजापति जो सतीका पिता तथा
शिवका स्वसुर था। जिग - यज्ञ । रूस - रुष्ट होकर। २८१. भळक्कत - चमकता है। जांण - मानों । भळाहळ - चमकयुक्त, देदीप्यमान ।
जांणि - मानों। त्रिती- तृतीय । भाळ - ललाट । २८२. पेचा-पगड़ीकी लेपटों। स्रोण - शोणित, खून । जाणिक - मानों। वघंवर =
(न्याघ्र+अंबर) - व्याघ्र चर्म। सिल -सिलह, कवच । गळि - कंठमें, गले में। २३. नंदीबा-शिक्षके द्वारपाल बैल का नाम जिस पर महादेव सवारी करते हैं। तुरंग
घोड़ा । निहंग - योद्धा, वीर। जोगारंभ - योगाभ्यास ।
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सूरजप्रकास
दळे खग' 'सूर' तभी विरदेत'" । जटाधर रूप कियां' भड़ 'जैत' ॥ २८३ 'भिमाजळ" 'मौकलऊत" भिड़ंत । घमोड़त सेल" सिले उधड़ंत | घणा रत छूटत फूटत घाट | मजीठकि जांणि दुळे रँगमाट" ।। २८४
सुरां " गुर ' रायमलौत " सकाज ।
'जसराज ' ।
जुटै 'मुकँदेस' तणो लोही भिल रंग तुरी उझेलत सेल " अमीर
१४
धज लाल ।
पमंग वछेक करें उडावत" लोह झटां जरद्द मरद्द र पाखर पड़े कटि अंग 'जसौ' खग वाहत" यूं वहि जात । घरां दुय जांण* वँटी घरवात
अरद्ध
&
. २१
उथाल ।। २८५
-
अणपार ।
असवार । जंग | १६ पमंग ॥ २८६
१ ख. ग. बल । २ ख. बिरदैत । ३ ख. कोयौ । ग. कीयां । ४ ख. ग. भोमाजल । ५ ख. ग. मौकमऊत | ६ ख. ग. धमौडत । ७. सेल्ह । ८. सिल्है । ६ खं. लांणि । १० ग. रंगमाटि । ११ ख. ग. सूरां । १२ ग. रायमलोत । १३ ख. ग. झिलि । १४ ग प्रतिमें यह शब्द नहीं है । १५ ख. उदावत । बाहत । १८ ख. बहि । १६ ख. ग. दोय । २० ग. जांणि ।
१६ ग. प्ररध । १७ सं.
२१ ख. घरबान ।
२८३. दळे - ध्वंस करता है । विरद्वैत- विरुदधारी, यशस्वी । जटाधर - महादेव । २८४. भिमाजळ - भीमसिंह । मोकलऊत मोकलसिंहका पुत्र । घमोड़त - प्रहार करता है। उघड़ंत फटता है। रत रक्त, खून। घाट शरीर । दुळे -
-
सिले - कवच गिरता है । २८५. सुरां गुर- वीर योद्धा । झिल - तरबतर हो कर तुरी २८६. पसंग = ( प्लवंग ) - घोड़ा । जरद्द - कबच । प्ररद्ध - प्राधा । २८७. जसौ - जसवंत सिंह |
[ xx
-
घोड़ा। धज - भाला ।
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सूरजप्रकास
कलावत 'रांम' लंडै कळि चाळ । दिये खग झांट पड़े रवदाळ ॥ २८७ व रत' फेरत कीच विलम्म । काळी मढ़ि बाकर जेम किलम्म । समोभ्रम 'जैत' 'जसा"" समकाज''। . लड़े खग झाट लियां' कुळ लाज ।। २८८ पछाड़त जंग अमीर पमंग' । अड़े इम रूप 'रूप'हरौ अणभंग । सझै" खग सेल सकौ५ रिणसाज । विढे ६ भड़ 'झूझ""तणौ 'वनराज'१८॥ २८६ धारूजळ झाट धूबै ६ निरर्धाम. । भिडै १ 'कुसळेस' समोभ्रम 'भूम'२२ । भारा खग तूटत ऊपर भाळ । मुड़ नह सूर लड़े मतिबाळ२३ ॥२६० घणा धड़४ पै हथ सोभत घाव ।
वणे'५ नर२६ नाहर रेख वणाव । १ ख. ग. दीये। २ ख. बढ़े। ३ ख. ग. तड। ४ ख. ग. फैरत। । ख. विलंब । ग. विलस। ६ ख. मटि । ग. मंढ़ि। ७ ख. नेम । ८ ग. किलंम । ६ क. समोभ्रम । १. ग. जुसा। ११ ख. मसकात । ग. मसकाज। १२ ख. ग. लोयां। १३ ख. ग. पवंग। १४ व. ग. सझे। १५ ख. ग. सको। १६ ख. बिढ़े। १७ ख. जूझ । ग. झूझ। १८ ख. बनराज । १६ ख. ग धुवै। २० ग. निरधूप । २१ ख. भिडे । २२ ख. ग. भूप। २३ ग. मलवाळ । २४ ग. घणाघण। २५ ख. ग. वणे। २६ ख. जिज़ ग. जिम ।
२७. रवाळ - यवन । २८८. बढ़े- बढ़ता है। रत - रक्त, खून । कोच-पंक, दलदल । विलम्म - भाला
विशेष (?)| काळी-कालिका देवी। मढि - मंदिर, स्थान । वाकर - बकरा।
किलम्म - मुसलमान । समोभ्रम - पुत्र । जैत - जैतसिंह । जसा - जसवंतसिंह । २८९. रूपहरौ- रूपसिंहका वंशज । अणभंग - वीर। सौ-संहार करता है। सको -- .. सब । झूझ-झूझारसिंह । तणो-पुत्र, तनय । . . २६०. पारूजळ - तलवार । धुब - प्रज्वलित होता है (?)। भूम - भोमसिंह । भारा -
समूह । मतिवाळ - मस्त । २६१. घणा - बहुत ।
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सूरजप्रकास
. [८७ जुटै' इम' 'दूद'हरौ चढ़ि जोम । भळाहळ' खाग पछट्टत' 'भोम' ।। २६१ सत्रां अधघाट कितां अधसंध । . करै अधसीस उडै अधकंध । इसी विध फल अणी अवझाड़ । रचै' धसि गोळ भयंकर राड़ ।। २६२ खासा गज खांन तणा सिर खीज । वहै खग जांणिक वादळ वोज । उडै गजसूंड चढ़े असमांण । जाए अहि उड्डि' मळे गिर'' जाण ॥ २६३ वहै'३ सर साबळ धार विहार । वढ़े" चुखचुक्ख हुवौ जिण वार । धारूजळ वाहि' वहाय नधोम'८ । भिड़े इम ‘भोम' पड़े भड़ 'भोम' ॥ २६४
१ ख. जूट। ग. जूड। २ ग. यम । ३ ख. भाळाहल । ४ ग. पछटत । ५ ख. विधि । ग. विधि । ६ ख. रचे । ७ ख. बहै। ८ ख. बीज । ६ ख. ग. असमाणि । १. ख. ग. डि। ११ स्व. ग. तर। १२ ख. ग. जांणि। १३ ख. बहे। १४ ख. बडे । क. बढ़े। १५ ख. ग. तिण। १६ ख. बाहि। १७ ख. बहाय । १८ ख. ग. नृधोम। १६ क. भिडे। २० ख. पडे।
२९१. दूद - राव दूदा जिसके वंशज मेड़तिया राठौड़ हैं। हरौ - वंशज । पछट्टत - प्रहार
. करता है । भोम - भोमसिंह । २६२. सत्रां - शत्रुओं। फूल - तलवार । अवझाड़ - काट कर। पति- बलात् घुस कर ।
- गोळ - सेनाका मध्य भाग । २६३. खासा गज - राजा या बादशाहकी निजी सवारीका हाथी। खोज - कोप करके ।
वीज - बिजली । अहि - सर्प । मळे गिर - मलयगिरि । २६४. सर - तीर। धार - तलवार । बढे - कट कर। चुखचुक्ख - खंड-खंड । धार
जळ - तलवार। भिड़े - युद्ध करके । भोम - भोमसिंह ।
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सूरजप्रकास . "वरे' रभ वैसि' मळूस विमांण' । चले रंगराग हुतां चमरांण । परी' भरि देत अम्रत्त' पियाल* । लिय' छक भूम हुवै रंग लाल ॥ २०५ मिळे मळबांहि परी मतवाळ' । वसै" स्रगि' सोवन धांम विचाळ । रमै खग झाट करै चॅड'३ रास । सुतां ४ 'सिरदार' स५ जीवणदास ॥ २९६ जुड़े गज बाज'६ धिखै गजगाह । 'बिजावत' 'राम' करै खग वाह' । फबै. सुत जोधहदास 'फकीर' । मँडै खग झाट बँडे बह' मीर ॥ २६७ जुड़े भड़ 'माहव' 'मांन' सुजाव । हवै घण' वीजळ घाव निहाक ।
१ ख. बरे। क. वरं। २ ग. वैसि। ३ ख. बिमाण। ४ ख. परि। ५ ग. अमृत । *ख. प्रतिमें यह पंक्ति निम्न प्रकार से है
. 'परि भरि अम्मत देत पियाल ।' ६ ख. लीयै। ७ ग. हवै। ८ ख. ग. मिले। ६ क. गजबांह । १० ख. मतिवाळ । ११ ख. बसे । १२ ख. ग. श्रुगि। १३ ख. रंग। १४ ख. ग. सुतं । १५ ग. सु । १६ ग वाज। १७ ख. बाह। १८ ख. बहौ । ग. वोहो। १६ ख. पण। २. ख. वीजल ।
२६५. बैसि-बैठ कर । झळूस- जलसा । चमरांण - चँवर । पियाल - प्याला। छक -
नृत्य । भूम - भूमि। २६६. गळवांहि- कंठालिंगन, बाहुपाश । परी- अप्सरा। मतवाळ - मस्त । लगि -
स्वर्ग। सोवन धाम - सुवर्ण-प्रासाद । विचाळ - वीच। चॅड - रणचंडी। रास -
नृत्य। २९७. धिखै - तेज रूपसे होता है । गजगाह - युद्ध । खग वाह - तलवारका प्रहार । २९८. जुई - भिड़ता हैं। माहव - माहवसिंह। मॉन - मानसिंह। सुजाव - पुत्र । निहाव -
प्रहार ।
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सूरजप्रकास विढे' खग 'कन्ह'' तणौ 'वनिराज' । सुतां' 'अखमाल'५ 'हरिंद' सकाज ॥२६८ रुकां झट भूक करै चमराळ । चलै नह 'चंदहरौ' कळिचाळ । तणौभ्रम हिंदव'. सिंघ तराज । सत्रां खग वाहत'' जोध सकाज ॥ २६६ सुतां 'रतनेस' अरिज्जणसाह । थटां खळ घावत लोह अथाह । . सवाईयसिंघ 'अभावत' सूर । करै खग झाटक जंग करूर ।। ३०० सझे खळ' 'सांवळ'रौ१३ 'प्रचळेस' । मथा खळ ऊडत लेत महेस । चत्रभुज'४ नंद 'हठी' कळिचाळ । रिपां१५ खग वाहत'६ माळ बराळ' ।। ३०१ दिये ८ खग झाट निसाट दुझाळ ।
हिचै जुध 'नाथ' सुजाव हिंदाळ । १ ग. वढ़े। २ ख. ग. कांन्ह । ३ ख. ग. वनराज । ४ ख. ग. सुतं । ५ ख. अघ. माल । ग. अषमाल । ६ ख. चमरास । ७ क. चळिचाळ । ८ स्व. ग. हीदव । ६ ख. सींघ। १० ख: बाहत। ११ ग. अरिजण । १२ ख. ग. षग। १३ ख. ग. सांमल रौ। १४ ख. ग. चत्रभुज । १५ ख. रिषां । ग. रिमां । १६ ग. बाहत । १७ ग.' वराळ । १८ ख. दीय
२६८. कन्ह – कानसिंह। वनिराज - बनराजसिंह । प्रस्नमाल - अक्षयसिंह हरिंद
हरिसिंह। २६६. रुका - तलवारों। झट - प्रहार। भूक - ध्वंस। चमराळ - यवन, मुसलमान ।
चंदहरी-चंद्रसिंहका वंशज । ३००. रतनेस - रतनसिंह । परिजणसाह - अर्जुनसिंह । थटा - सेनाएँ । घावत - संहार
करता है। १०१. सावळ - सांवलसिंह । प्रचळेस - अचलसिंह । मथा - मस्तक । नंव -पुत्र । हठी
हठीसिंह । झाळ बराळ - पाग-बबूला। ३०२: मिसाट - असुर, मुसलमान । दुझाल - योद्धा । हिचं - संहार करता है। नाथ - . . माथूसिंह । सुजाव - पुत्र । हिदाळ - हिंदूसिंह।
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६० )
सूरजप्रकास
जुटै' जुध' 'नाहर'रौ 'जगसाह' । उडावत लोह कहै रवि वाह ॥ ३०२ उठे 'कुसळेस' तणौ दईवांन । गाढ़ांगुर वाहत खाग ‘गुमांन' । मिळे' जुध 'पीथल' संभ्रम 'मांन' । तई खग खांन हणे मुसतांन ।। ३०३ अरी खग झाटत धोम अमेळ । सुरावत' दूठ लड़त 'समेळ' । 'नरौ' वजपाळ' तणौ नरनाह । विढे' सिलहैत लड़े खगवाह ।। ३०४ उठै 'किसनेस' सुतन्न 'अनोप' । अड़े खग *झाट चढ़े कुळ अोप । जठै 'हिमतेस' 'अजब्ब' सुजाव । करै' खग वाहतो अधिकाव ॥ ३०५
१ ख. जुटे। २ ख. जुधि । ३ ग. तणो । ४ ख. मिले । ५ ख. ग. सूरावर । ६ ख. बिढ़े। ७ ख. ग. हण। ८ ग. जुडे। '
+... *चिन्हांकित पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं। ६ ख. बाहताणौ।
३०२. नाहर -- नाहरसिंह । जगसाह - जगतसिंह। रवि- सूर्य । वाह - शाबाश । ३०३. कुसळेस – कुशलसिंह। दईवांण – वीर। गाढ़ांगुर - योद्धा, वीर। गुमान - गुमान- सिंह। पीथल - पृथ्वीराज अथवा पृथ्वीसिंह । संभ्रम - पुत्र । मान - मानसिंह ।
तई - शत्रु, आततायी। मुसतान - मुस्तानिस, अभ्यस्त । ३०४. अरी - शत्रु । झाटत - प्रहार करता है। धोम - ( ? ) । अमेळ - शत्रु ।
सुरावत - सूरसिंहका वंशज । दूठ - जबरदस्त । समेळ - समेलसिंह । नरौयोद्धाका नाम। विजपाळ - विजयसिंह । बढ़े - युद्ध करता , काटता है।
सिलहैत – कवचधारी। खग वाह - योद्धा, राजपूत । ३०५. किसनेस - किसनसिंह। अनोप - अनोपसिंह। अोप - कांति, तेज। हिमतेस -
हिम्मतसिंह। अजब्ब - अजबसिंह । सुजाव - पुत्र । अधिकाव - अधिकता, अधिक ।
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सूरजप्रकास अणीकढ़' 'सूर' तणो 'परियाग' । खळां' थट ढाहत वाहत खाग । समोभ्रम 'माणद' 'सूर'. संग्रांम । करै खग झाटक दाटक काम ॥ ३०६ जटा रुद्र क्रोध खगां जगवंत । भिड़े 'किरतेस' तणौ 'भगवंत' । समोभ्रम 'साहिब' 'कुंभ' सतोल । डोहै दळ मुग्गळ खाग अडोळ ।। ३०७ धुबै खग' झाट डंकां वजि ध्रीह । अडै 'अभऊत'१ तणौ अणबोह । धसै जुध 'साहिब' संभ्रम धींग' । सझै खग झाट बहादरसोंघ ॥३०८ खगां झट 'नाहर' नंद 'खगेस' । विभाड़त खांन ४ थटां' 'बगतेस' ।
१ ख. ग. अणीकट । २ ग. तणों। ३ ख. पालां। ४ ख. बाहत । ५ ख. जडा। ग. जुड़ा। ६ ख. ग. कुंभ। ७ ख. डोहे। ८ ख. मूगल । ग. मुगळ । ६ ख. धुवि । ग. धुवै। १० ख. षगि । ११ ख. ग. अभवूद। १२ ख. ग. धीघ । १३ ग. बहादरसिंघ । । १४ क. थांन ।
३०६. अणीकढ़ - चुनिदा (१)। सूर-सूरसिंह । परियाग - प्रयागसिंह । थट - समूह, दल ।
ढाहत - संहार करता है। वाहत - प्रहार करता है। समोभ्रम-पुत्र । प्राणेद - प्रानंदसिंह। सूर - सूरसिंह । संग्राम - संग्रामसिंह । झाटक - प्रहार । वाटक -
जबरदस्त, महान। ३०७. रुद्र' - महादेव । जगवंत - जगाता हैं, प्रज्वलित करता है। किरतेस -कीरतसिंह ।
भगवंत - भगवंतसिंह । साहिब - साहिबसिंह । कुंभ - कुंभकरण । सतोल - समान ।
डोहै - ध्वंस करता है। अडोळ - अटल । ३०८. धुबै - जोशमें आता है, प्रहार करता है। डंका - नगाड़ों। भ्रोह - नगाडेकी ध्वनि ।
प्रभऊत - अभयसिंहका पुत्र । तणौ - पुत्र । प्रणबीह - निडर, वीर । साहिब -
साहिबसिंह । संभ्रम - पुत्र । धींग - जबरदस्त । ३०६. खगां झट - तलवारोंके प्रहारों। नाहर - नाहरसिंह । नंद-पुत्र । खगेस - खडग
सिंह। विभाड़त - ध्वंस करता है, संहार करता है। खान - मुसलमान, नर बुलंद । बगतेस - बखतसिंह।
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सूरजप्रकास झळाहळ खाग खळां सिर झाड़ि । रचे 'सत्रसाल' 'सदावत' राड़ि ॥ ३०९ मांमौ' 'सत्रसाल'तणौ मगरूर । समें 'सकतेस' महाभड़' सूर । सेखावत' वाहत' खाग सिंघाळ । चा? जळपूर चवदह चाळ ।। ३१० 'अभम्मल' भूप 'उमेद' अभंग । जुड़े कछवाह 'विजावत' जंग । कियौ' धर गूजर पांणि प्रकास । अखै नवकोट धरा जसवास ।। ३११ 'बाहादरऊत' सक्रोध'३ बहास । दियै खग झाटक 'दांणियदास'१४ । खगां खुरसांण विभाड़त खूर । तां'५ 'सबळेस' 'बहादर' सूर ।। ३१२
१ ग. मौमौं। २ ग. सझे। ३ ख. ग. महाजुध। ४ ख. सेषाव। . बाहत । ६. ग. चढ़े। ७ ख. ग. चव्वदह । ८ ख. ग. प्रभमल । ६ ख. बिजावत । १० . कोयो। ग. कोयो। ११ ग. बाहादरउतम । १२ ग. क्रोध। १३ ख. ग. दीर्य । ख. वाणीयादास । ग. दाणीयदास । १४ स्व. ग. सुतं ।
३०६. झाड़ि- प्रहार करके । सत्रसाल - शत्रुशाल । सदावत - शार्दूलसिंहका वंशज । - राड़ि- युद्ध। ३१०. मगरूर - गर्वपूर्ण । सकतेस – शक्तिसिंह । सेखावत - कछवाहा वंशकी एक शाखा।
सिंघाळ - वीर, योद्धा। जळ - तेज, प्राब, कांति । चवद्दह - चौदह । चाळ -
( मंजिल ? )। ३११. प्रभम्मल - महाराजा अभयसिंह। उमेव - उम्मेदसिंह । प्रभंग - वीर । जुड़े -
भिड़ता है, युद्ध करता है। विजावत - विजयसिंहका वंशज। घर गूजर - गुजरात देश। पाणि - हाथ । प्रखे - अक्षय । नवकोट – मारवाड़। जसवास - कीर्ति, .
यश
१२. सकोष - क्रोधपूर्ण । बहास - जोशमें प्राकर। झाटक - प्रहार । खुरसाण - मुसल____ मान । विभाड़त - संहार करता है। खूर - समूह, दल । सबळेस - सबलसिंह ।
बहावर - बहादुरसिह ।
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१ ख बाढ़त । ५ ख. इंद्र सींध ।
सूरजप्रकास
सिल्है खग वाढ़त खांन समोभ्रम 'सूर' 'वखत्त"
3
उळत साबळ जंग ' रासाउत " खांन भिड़े धमोड़त सेल गजां परि धाव | जुड़े 'इंद्रसिंघ' ' 'हरिद' सुजाब |
५
रमै 'मौहकावत' झड़
रूक |
भिड़े 'भगवंत' पड़े खळ
दुरतेस । 'सुरतेस' ।
जंग ॥ ३१५
दु खग भाट पड़े समोभ्रम 'रूप' लड़े' 'अनौ' 'जगरांम' सुजाव अभंग | जरू खग भाट पड़े खळ तई पर 'सांवत' क्रोध अताळ | कर 'बखतेस' झटां किरमाळ | जुड़े सुत 'भोज' खगां जमरांण । जरदैत पड़ै घमसांणं ।। ३१६
घणा
६ ख. षग ।
सरीर ।
संधीर ।
अथाह । रिमराह ।। ३१३
भूकं ।। ३१४
२ ख. ग. बष्पत । ३ ख. रासावत । ग. रसावत । ४ क. धमोडत |
७ ख. पडे ।
८ख. ग. कोप ।
३१६. सांवत - सामंत सिंह |
३१३. सिल्हे - कवच | वाढत
-
काटता है। सूर सूरसिंह । वखत्त बखत सिंह | राताउत - रायसिंहका वंशज । रिमराह - शत्रुनोंको सीधा करने वाला रिपु राहु ३१४, धमोड़त - प्रहार करता है । हरिद - हरिसिंह । सुजाव - पुत्र । मोहकम सिंहका वंशज । श्रौझड़ - भयंकर । रूक - तलवार | सिंह । भूक - ध्वंस |
[ ६३
किरमाळ - तलवार । योद्धा । पड़े - वीरगतिको प्राप्त होते हैं । घमसांग - युद्ध ।
-
३१५. दुरतेस - ( दुष्ट ? ) । रूप - रूपसिंह । सुरतेस - सूरतसिंह । श्रनो - प्रनाड़सिंह ।
/ जरू - दृढ़, जबरदस्त !
मौहकावत भगवंत - भगवत
-
ताळ - तेज । बखतेस - बखत सिंह | भटां - प्रहारों । भोज - भोजराज सिंह | जमरांग - यमराज । जरवंत -
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६४ ]
सूरजप्रकास
तठे सुत "भाउ" लड़ंत 'तिलोक' 1 भटां खग दैत कहै रवि झोक | महाबळ' 'ऊद' सुजाव 'मदन्न' ' विढ़े खग भाट सिंदूर वदन्न ।। ३१७ 'जगावत' कीरतसिंघ व्रजागि । लड़ खग चोट खळां धख लागि । हठी 'कळियांण' तणौ करि हाक । पछट्टत रूक भटां तठे 'मोहकावत" 'सांम'
Ε
पिसणाक ।। ३१८.
सतेज |
मजेज ।
गिरमेर |
उपोट
9 3
मँडै" खग भाट गाढ़ागुर 'देव'"" तणौ सत्रां सिर काट दिये १४
१५
१६
धमोड़त सेल सिलै बँध
समोभ्रम
समसेर ।। ३१६ धींग ।
१८
'ईसर' दौलतसींघ
१ ख. भाऊ । २ ख. महावल । ३ ख. मद्दन । ग. मदंन । ४ ख बद्दन । रा. वदन । ६ ख. वीरतसिंघ । ग. कीरतिसिंघ । ७ ग. चौट । ६ ख. ग. पछंटत । १० क. ख. मौहोकावत | ११ ग. मंडे । १२ ख. ग. देद | १३ ग. तणो । १४ ख. दौयै । १५ ख. ग. धर्मोौडत । १६ ख. सिल्है । समभ्रम | १८ ग. दोलतसिंघ |
१७ ग.
३१७. भाउ - भाउसिंह । तिलोक तिलोकसिंह । रवि सूर्य । भोक- शाबाश, धन्यधन्य । ऊद - उदयसिंह सुजाव - पुत्र मदन - मदनसिंह । विढ़ें - कटता है । सिंदूर वदन लाल मुख । ३१८. जगावत - जगरामसिंहका वंशज । व्रजागि - वज्राग्नि, वीर । धन- जोश, जलन । हठी - हठीसिंह | कलियांण - कल्याणसिंह । हाक जोशकी आवाज । पछट्टत - प्रहार करता है । पिसणाक शत्रु ।
३१६. मोहकावत - मोहकम सिंहका वंशज । सांम - शामसिंह । मँडै भाट - युद्ध में तलवारोंके प्रहार करता है । उपाट - ( उछालता है, उखाड़ता है ? )। मजेज शीघ्र ( ? ) 1 देव - देवीसिंह । गिरमेर - सुमेरु पर्वत ।
-
बिढे । ५ ख.
८ग. तणो
-
३२०. धमोड़त - प्रहार करता है, मारता है । सिलेबंध - कवचधारी योद्धा । धींग - जबर
दस्त । ईसर - ईश्वरीसिंह ।
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सूरजप्रकास
[ ९५ समौ' 'बखतेस' न है अनि' सौत । नगै खग खांन हण करणोत* ॥ ३२० बिढ़े खग झाट करै असि बेव । दिपै 'कुसळेस' समोभ्रम 'देव' । 'गौदावत' रौद खगां गजगाह । 'सिवावत' 'सूर' बहादर साह ॥ ३२१ जुड़े छक छोह'' कठीरव जेम । पछट्टत' खाग 'सदावत' 'पेम' । तछै' घड़ मेछ खगां तह ताज । रचै जुध 'दीप' तणौ 'वछराज' ।। ३२२ लोहां झट बाढ़त३ रौद लगस्स । 'बहादर'१४ पीथलऊत' बँगस्स । 'राघावत'१५ आणंदसिंघ'६ दुबाह । विभाड़त' मुग्गळ'८ बीजळ बाह ॥ ३२३
१ ग. समो। २ ग. वषतेस। ३ ख. ग. अन्य। ४ ख. ग, सोत। ५ क. करणौत। ६ ग. विढ़े। ७ ग. दिये । ८ ख. वाहादर । ६ जुटे। १० ख. ग. छौह । ११ ख. ग. पछटत । १२ क. तचै । १३ ख. वाढत । १४ ख. बाहादर । ग. वहादर । १५ ख. ग. द्वारावत । १६ ख. पाणंदसींघ। १७ ख. बिभाड़त । १८ ख. मूंगल । ग मुगल ।
३०२. समो- समान, सम्मुख या सामसिंह। बखतेस -- बखतसिंह। 'करणोत - राठौड़
करणके वंशज। ३२१. बेव - ( भेद ? )। दिपै - शोभायमान हो रहा है । कुसळेस - कुशलसिंह । समो.
भ्रम - पुत्र । देव - देवीसिंह । रौद - मुसलमान । गजगाह - युद्ध, योद्धा । सिवा
वत -- शिवसिंहका वंशज । बहादरसाह - बहादुरसिंह । ३२२. कठीरव - सिंह । पट्टत - प्रहार करता है । सदावत - शार्दूलसिंह का वंशज । पेम -
प्रेमसिंह। तछ - काटता है, संहार करता है। घड़- सेना । मेछ - म्लेछ, यवन ।
दीप-दीपसिंह । ३२३. लगस्स - लम्बायमान सेनादल । बहादर - बहादुरसिंह । पोथलऊत -पृथ्वीसिंहका
वंशज । बैंगस्स - मुसलमान। बोजळ - तलवार । बाह - प्रहार ।
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१६]
सूरजप्रकास अडै 'रतनेस' 'मोहीकम'ऊत । धुबै' खग झाळ फबै अबधूत' । समोभ्रम वीठळदास सधीर । विढे 'वखतेस'५ खगां नर वीर ॥ ३२४ 'कन्हावत' 'पेम' रमै खग क्रोध । 'जसावत' 'नाथ' करै रिण जोध । जोरावर 'रांमचंद्रेस' सुजाव । तठे खग वाहत पावक ताव ।। ३२५ 'सिंभू' 'कुसळावत' वीजळ'' सूर । मिरंबर" घाय हणै मगरूर । चखां धिख चोळ 'जोगावत' 'चंद' । वाहै' २ खग ढाहत' थाट 'विलंद'१४ ॥ ३२६ तई खग झाट जदा सिर तन्न । कर 'जगतावत' देवकरन्न'५ ।
१ ख. धुवे । ग. धुवै। २ ख. कब । ३ ख. ग. अवधूत। ४ ख. बिढ़े। ५ ख. ग. बषतेस। ६ ख. बीर । ७ ख. ग. रण। ८ ख. धोम । ९ ख. वाहत। १० ख. बीजल । ११ ख. मोरंबर । ग. मीराबर . १२ ख. बाहे । ग. बाहै । १३ ख. व्वाढत । ग. वाढत। १४ ख. बिलंद। १५ ख. करंन ।
३२४. रतनेस - रतनसिंह । धुर्व - प्रज्वलित होता है। फबै - शोभा दे रहा है। प्रब.
धूत - मस्त । ३२५. कन्हावत - कानसिंह का पुत्र । प्रेम - प्रेमसिंह। जसावत - यशवंतसिंहका वंशज ।
नाथ - नाथूसिंह । जोरावर - जोरावरसिंह। रामचंद्रेस - रामचंद्रसिंह । पावक -
अग्नि । ताव -- जोश। ३२६. सिद्ध-शंभूसिंह। कुसळावत - कुशलसिंहका वंशज । . कोजळ - तलवार ।
मिरंबर-बरे २ यवन योढ़ा। घाय - प्रहार । सगरूर - गर्वपूर्ण । चखा - नेत्रों। घिख- प्रज्वलित हो कर । जोगावत - जोगसिंहका वंशज । चंद- ( ? ) । थाट- सेना। विलंब - सर बुलंद ।
३२७. तन्त्र-शरीर।
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सूरजप्रकास
महोबतसिंघ' तणौ मछराळ ।' सझै झट वीजळ 'स्यांम' सिघाळ" ॥ ३२७ जठै 'गजसाह' 'करन्न'६ सुजाव । विभाड़त मेछ खगां वनराव । जुड़े खग झाट 'अनावत' 'जैत' । बहादर रौंद हण बिरदैत ॥ ३२८ 'पतावत' हिंदुवसिंघ प्रचंड । खहै खग झाट थटां खट खंड । सुतं 'भगवंतज' 'जालिमसाह' । सझै खग झाट उडत सनाह' ।। ३२६ 'हरी' सुत 'केहर' जूटत हेक । अरी थट खाग वहंत अनेक । सझै जुध एह पटायत'३ सीह । 'उमेदक' जोध अगै अणबीह'४ ॥ ३३० चंबागळ१५ ध्रीह त्रत्रह तूर । 'कलावत' जंग करत करूर ।
१ ख. महोबतसींघ । २ ख. बीजल। ३ ख. साम । ४ ख. सिंघाल । ५ ग. जुटे। ६ ख. करंन्न । ग. करंन । ७ ख. विभाडत । ८ ख. बनराव। ६ ख. बाहादर। ग. वहादर । १० ख. ग. रौद । ११ ख. हीदुवसींघ । १२ ख. सन्नाह । १३ ख. ग. पटाइत । इ४ ख. अणवीह । १५ ख. वागल । ग, त्रांगळ ।।
३२७. मछराळ – वीर, तेजस्वी। स्याम - शामसिंह । सिंघाळ - वीर । ३२८. गजसाह - गजसिंह । करन्न - करणसिंह । वनराव - सिंह, वीर । अनावतं -
अनाड़सिंहका वंशज । जैत - जैतसिंह । रौंद – मुसलमान। बिरदैत - यशस्वी, वीर। ३२९. पतावत - राठौड़ वंशकी पातावत शाखा या इस शाखाका व्यक्ति। भगवंतज - भग
वतसिंह । जालिमसाह - जालमसिंह । सझे - प्रहार करता है। ३३०. हरी- हरिसिंह । केहर - केसरीसिंह । पटायत - वह जिसके पास बड़ी जागीर हो।
सीह - (?)। उमेदक - उम्मेदसिंह । जोध - योद्धा (पुत्र ?)। प्रणबीह - निडर । ३३१. बागळ - नगाड़ा। ध्रोह - नगाड़ेको ध्वनि । बहत्रह - नगाड़े या तूर नामक वाद्यकी
ध्वनि । तूर - वाद्यविशेष । कलावत - कल्याणसिंहका वंशज ।
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६८ ]
सूरजप्रकास
वहै' असवार अनेक व्रहास । दिय२ खग झाटक ‘गोयंददास' ।। ३३१ 'कलावत' लोह करै कळिचाळ' । 'बद्री' करिमाळ हणंत बँगाळ । जोरौ'' हरनाथ तणौ जमरांण । खहै खग झाट ढहै खुरसांण ।। ३३२ 'जोरावर' 'ऊदल'६ संभ्रम जोध । वहै किरमाळ कराळ विरोध । खगां वजि धूखळ ढाहत खांन । दमंगळ सामंत संभ्रम 'दान' ।। ३३३ रिमां घट चोळ करै खग रूप । रचै जुध 'केहर'रौ'. 'जगरूप' । पछट्टत'' मुग्गळ२ सेल प्रहार । सझै जुध 'सेर' तणौ सिरदार ॥ ३३४ समोभ्रम' 3 'वीठळ'१४ 'केहर'१५ सूर । बँगाळक खाग उडै घण बूर ।
१ ख. बढ़े । ग. वढ्। २ ख. दीयै। ३ ख. ग. कलिचाल । ४ ग. जोरो। ५ ख. डहै। ग. डोहै। ६ ग. उदल। ७ ख. बहै। ८ ख. ग. वलि । ६ ख. ग. धौषल । १० ग. केहरि रौ। ११ ख. ग. पछंटत । १२ ख. मूगल । ग. मुगल । १३ क. म. समौभ्रम। १४ ख. बीठल । १५ ख. केहरि।
३३१. वहास - घोड़ा। ३३२. कळिचाळ - योद्धा, वीर । बद्री- बद्रीसिंह । करिमाळ - तलवार । बँगाळ - मुसल.
मान । जोरौ- जोरावरसिंह। खहै - नाश करता है, युद्ध करता है। ढहै - वीर
गति प्राप्त होते हैं। खुरसाण - यवन । ३३३. जोरावर - जोरावरसिंह । ऊदल - उदयसिंह । संभ्रम - पुत्र । कराळ - भयंकर ।
धूखळ - युद्ध, ( तीक्ष्ण ? ) । ढाहत - काटता है, मारता है । खांन - मुसलमान ।
दमंगळ - युद्ध। सामंत - सामंतसिंह। दांन - दानसिंह। ३३४. रिमा - शत्रुनों । घट - शरीर । चोळ - लाल । केहर - केसरीसिंह । जगरूप -
जगरूपसिंह । सेर - शेरसिंह । सिरदार - सरदारसिंह । ३३५. समोभ्रम - पुत्र । वीठळ - वीठलदास । बंगाळक - मुसलमान । बूर - ध्वंस ।
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सूरजप्रकास
[ ६६ धमोड़त' सेल उझेल दुधार । समोभ्रम 'रूप' भिडै 'सरदार' ॥ ३३५ 'जोरौ'२ 'अणदावत' 'जैत' 'जुहार' । सत्रां' घट' सीस बजावत सार । 'हठी' सुत ‘जीवण' पौरस हूंस' । रमै खग झाट डॅडेहड़ रूस ॥ ३३६ जुड़े 'रायसिंघ' चढ़े घण जोस । रमै झट तेग 'अनावत' रोस । समोभ्रम 'राजड़' रूप समाथ । हईदळ वाढत वीजळ हाथ ॥ ३३७ विरांण" सरूप कियां' जिणवार । समोभ्रम 'जोध' लडै 'सिरदार' । गिळे २ सिर भूक हुवौ अवगाढ़' । वही" खग झोक खत्रीवट वाढ६ ।। ३३८ भिदे हँस ऊप्रम मंडळ भांण ।
महाभड़ जोति मिळे७ रहमाण । १ ख. ग. धमौड़त । २ ग. जोरो। ३ ग. सत्र । ४ ख. घड । ग. घड। ५ ख. पोरस । ६ ख. ग. होंस। ७ ग. रमे। ८ ख. ग. रोंस । ६ ख. रोस। १० ख. ग. वीरांण। ११ ख. कीयां। ग. कीयै । १२ ख. ग. गोल। १३ ख. ग. हवो । १४ ख. अणगाढ़। १५ ख. बाही। १६ ख. बाढ़ । १७ ग. मिलै ।
३३५. धमोड़त - मारता है। दुधार - दो धार वाला भाला। रूप - रूपसिंह । ३३६. जोरो- जोरावरसिंह । अणदावत -आनंदसिंहका वंशज। जैत - जैतसिंह । जुहार -
जुहारसिंह । बजावत - प्रहार करता है । सार - तलवार। हठी- हठीसिंह ।
जीवण - जीवणसिंह । हूंस - उत्साह, अभिलाषा । रूस - रोमाञ्चकारी प्रकार (?)। ३३७. अनावत - अनाड़सिंह। राजड़ - राजसिंह । रूप- रूपसिंह। समाथ - समर्थ ।
हईदळ - अश्व-दल, घुड़-सेना।। ३३८. विरांण – भयंकर, भयावह। समोभ्रम-पुत्र । जोध- जोधसिंह। सिरदार -
सरदारसिंह। भूक - ध्वंस, नाश, चूर-चूर। अवगाढ़ - वीर, छलनी, लथपथ, शरा
बोर (?)। झोक - धन्य धन्य । खत्रीवट - क्षत्रियत्व । ३३६. हंस - प्राण । ऊप्रम मंडळ – विष्णु-मंडल। महाभड़ - महाभट, महायोद्धा। रह
मांण- ईश्वर।
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१०० ]
सूरजप्रकास समोभ्रम 'जोध' 'गुमांन' सधीर । विढे तरवार खळां विमरीर ।। ३३६ 'सदावत' 'सांमत' स्यांम सनाह । सझै खग वाह' बिराह सराह । धमोड़त' सेल सिल्ह बँध धींग । समोभ्रम 'स्यांम' 'महौकमसींघ८ ॥ ३४० चलै मदमत्त पटाझर चाल । लड़े खग 'तेज' समोभ्रम'' 'लाल' । इता जुध मेड़तिया' उमराव । रमै रिण खेल वडा१२ रिणराव ॥ ३४१ धुबै ३ रणधोम अणी घण धार । उडै'४ रत छौळ'५ अपार अपार । जोधा भड़ जंग करै जिणवार । सिरै सुत भीम ‘पतौ' सिरदार ॥ ३४२
१ ख. बिढ़े। ग. वढ् । २ ग. सझे। ३ ख. बाह । ४ ख. ग. विराह । घ. विरोह । ५ ख. ग. धमौडत। ६ ग. सिल । ७ ख. ग. साम। ८ ख. मौहोकर्मासंघ । ग. महीकसिंघ। ६ ख. खममंत। १० ख. समौभ्रम। ११ ख. ग. मेडतीया। १२ ख. बडा। १३ ख. धुबे । ग. धुवे । १४ ख. वुडै । ग. वुडे । १५ ग. छोल।
३३६. गुमांन - गुमानसिंह । विमरीर - जबरदस्त । ३४०. सदावत - शार्दूलसिंहका वंशज । सांमत - सामतसिंह। स्यांम - स्वामी । सनाह -
रक्षा। सझे सराह - तलवारका प्रहार करता है तब दोनों राह ( हिंदू और मुसलमान ) उसकी प्रशंसा करते हैं। धमोड़त - प्रहार करता है। सिल्ह बँध
अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित, कवचधारी। धींग - योद्धा, वीर । स्यांम - श्यामसिंह। ३४१. मदमत्त - मदोन्मत्त, मस्त । पटाझर - हाथी । तेज - तेजसिंह । लाल - लालसिंह ।
मेड़तिया - मेड़ताके शासक राठौड़ राव दूदाके वंशजोंकी एक उपशाखा ।
रिणराव - योद्धा, वीर। ३४२. धुबै- क्रोवमें प्रज्वलित हो रहे हैं। रणधोम - युद्धाग्नि । अणी- अनीक, सेना।
रत - रक्त, खून । छौळ - प्रवाह, धारा । सिर- श्रेष्ठ । भीम - भीमसिंह । पतौप्रतापसिंह।
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सूरजप्रकास
9
भिड़े मुख मूंछ श्रणी भुंवहार' ।
धरे हथ रौळवियौ
६
वणै मुख चोळ छिबै 'पतै' अस' हाकलियौ
.२६
युद्धमें बरातरी तुलना
लहराज |
लगै सर स्रोण जगै " सजे " अँग जांण कसूंबल साज । जमातिय १२ जोध जमातिस १३ जांन ।
वजै सुर सिंधव राग विधांन लाडी जिम रौद घड़ा वप लेख १६ दुसैस गाजि गां' ` जिम" देख " ।
१७ I
१८
१६
२२
२३
४
१५
अयौ" जिम वीच तुरी असवार । आवै जिम तोरण वींद उदार ।। ३४५ फेर दूजौ रूपक
४
४
चवधार | ब्रहमंड | परचंड ॥ ३४३
भाळाहळ
साबळ वाहत भूल ।
.२७
२८
सदासिव बात जांणि त्रसूल 1
-
॥ ३४४
१ ख. मुंछ । २ ख. ग. भंवहार । ३ ग. धरै । ४ ख. रौळवीयौ । ग. वियो । ५ ख. बणे । ग. वणे । ६ ख. छिवे । ग. छिवै । ७ ख. ग. श्रप्ति | ८ख. ग. हाकलीयो । ख. ग. लगे । १० ख. ग. जगे । ११ ख. ग. सभे । १२ ख. ग. जमातीय । १३ ग. जमाजिस । १४ सीधुव । ग. सीधव । १२ ख. बिधान । १६ ख. बप । १७ ख. ग. लेखि । १८ ख. गाज । १६ ख. समां । २० ख. भिम । २१ ख. ग. देषि । २२ ख. श्रायौ । ग. श्रायो । २३ ख. रण । ग. रिण । २४ ख. बोच। २५ ख. बींद । २६ ख. ग. भळ 1 २७ ख. बाहत । २८ ख. त्रिशूल । ग. त्रिसूल ।
३४३. भुंवहार - भौहों । रौळवियो घुमा कर प्रहार किया । चवधार - भाला चोळ लाल । छिबे - स्पर्श करता है । ब्रहमंड - आकाश | पते प्रतापसिंह । हाकलियौ - हांका, तेज गति से चलाया ।
[ १०१
साज -
३४४. स्रोण - शोणित, खून । लहराज - ( ? ) | जांण - मानों । कसूंबल - लाल रंग । • घोड़ेकी जीनके उपकरण । सुर- स्वर, आवाज । सिधव - वीर रसका राग । वपु, शरीर । दुसै श्रस - शत्रुवींद - दूल्हा ।
३४५. लाडी - दुल्हिन । रौद घड़ा यवन सेना । वप दलके घुड़सवार । गां- समधी । तुरी - घोड़ा। ३४६. झालाहल – देदीप्यमान । साबळ - भाला विशेष । बाहत - प्रहार करता है । भूल -
समूह |
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१०२ ]
सूरजप्रकास जठे उछटै खळ सेल जड़त । पटै' चढ़ि जांणि कनहीं पड़त ॥ ३४६ महाबळ मूग्गळ ढाहि अमाप । पटाभर सेल जड़ 'परताप' । अोपै रत चाचर घाव उफांण' । खुलै गिर जांणिक मांणिक खांण ।। ३४७ खत्री गुर खापहुताई खळकाय । धारूजळ'' काढ़िय'' सेल धपाय । अडै खग झाट अँगोअँग पाप । पड़े खळ थाट लड़े परताप' ।। ३४८ *धड़च्छत'२ फांक उडै खळ धूठ ।
सिरा चाचरार' जड़ी१५ लग सूठ । १ ग. पढ़े। २ क. कनंक। ३ ख. माहाबल। ४ ख. मूगल । ग. मुगल । ५ ख. ग. . उपै।. ६ ख. उफाणि। ७ ख. ग. षुले। ८ ख. षांणि । ग. षांन। ६ ख. खापहंत ! ग. खापहूता। १० ख. ग. धरूजल । ११ ख. ग. कट्टीय । ___ *... *यहांसे आगे चिन्हांकित पंक्तियां तो ग. प्रतिमें नहीं मिली हैं किन्तु कुछ दूसरी
पंक्तियां मिली हैं जो क. तथा ख. प्रतियोंसे मेल नहीं खाती हैं, वे निम्न हैं-- 'अनौ हरनाथ तणो अवनाड, विढे विचत्रां धड षागि विभाड । जठ षग वाहि वरै करि जोस, पछाडत मीर वगत र पौस । कटै किलमांण हुवै रत कीच, विटै इक जोध षलां दळ वीच ।'
यह पंक्ति पृष्ठ १०५ (पृष्ठके पाठान्तरका नोट देखिए) के पाठान्तरके अनुसार निम्न प्रकार है
'बढे इक वाज तठे रिण बीच।' १२ ख. धडछत । १३ ख. धूत । १४ ख. क. चचरार । १५ ख. जाडी। १६ ख. सूत ।
३४६. उछट - उछलते हैं, कटते हैं। जईत - प्रहार करता है। पटै - पटा नामक खेल । ३४७. ढाहि-मार कर, काट कर । अमाप - अपार । पटाझर-हाथी। जड़े-प्रहार
करता है। रत- रक्त, खून । चाचर-भाल, ललाट, मस्तक। जांणिक - मानों।
माणिक - मानिक्य । ३४८. खत्री गुर-बीर, योद्धा । खापहता- तलवारके म्यानसे । खळकाय - प्रहार कर के।
धारूजळ - तलवार । सेल - भाला। धपाय - तृप्त करके। पड़े-वीर-गति प्राप्त
होते हैं । थाट - सेना। ३४६. घडच्छत -प्रहार करता है । फांक - यहां 'खाप' शब्द होना चाहिये जिसका अर्थ तल
वार भी होता है। धूठ-वीर। चाचरार-भाल, ललाट । जड़ी-प्रहार किया। लग - तक, पर्यन्त । सूठ-( ? )।
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सूरजप्रकास
[ १०३, दिय' अधसीस अधै मुख' दंत । भिना' चितरांम अधा घट भंत ॥ ३४६ दड़ों जिम सीस उडै खग दाव । धड़ां पर बाज करै म्रग' धाव । खुरां मझि अंत अळूझत खेत'१* । क. २ कपि डांण चढ़े गज केत ॥ ३५० *बछेक बछेक 'पतै १४ जिणवार ।
सझै५ घण मेछ खगां सिरदार । 'सलेम' 'अली महमंद' सधीर । मारे खग झाटक दोय अमीर ॥ ३५१ सुहै'६ इण भांति लड़े समराथ । 'पातौ' जिम भारथ मांझल' पाथ । हिचे इम एक'८ अनेकह होय । कहै गुण पार न पावत कोय ।। ३५२
१ ख. दोस। २ ख. अधै। ३ ख, मुषि । ४ ख. दांत। ५ ख. भीना। ६ ख, भांत । ७ ख. अध। ८ ख. मुषि। ६ ख. दांत । १० ख. मृग। ११ ख. घाव । १२ ख. कर। १३ ख. कर्ड ।
....."चिन्हांकित पंक्तियां ग. प्रतिमें नहीं हैं। १४ ख. पमै। १५ ख. सझे। १६ ख. सोहै। १७ ख. मांझलि । १८ ख. हेक ।
३५०. दड़ा - गेंदों। दाव - प्रहार। धड़ा - वीर गति प्राप्त वीरोंके शरीर । बाज- घोड़ा।
धाव - दौड़, चाल। अंत - अंतड़िएँ। खेत - युद्ध-स्थलमें। कड़े - पाग, निकट । कपि- वानर । डांण - कूदान, छलांग । केत- केतु, ध्वजा।
३५१. पते - प्रतापसिंह। सझे - संहार कर दिये । मेछ - म्लेच्छ, यवन । सिरदार -
सरदारसिंह । सधीर - धैर्यवान, वीर । झाटक - प्रहार । ३५२. सुहै - शोभा देता है। समराथ - समर्थ, शक्तिशाली। पती- प्रतापसिंह । भारथ -
भारत, युद्ध। मांझल - मध्यमें। पाथ -- पार्थ, अर्जुन। हिचे - युद्ध करता है, । युद्ध में काटता है । गुण - कीर्ति, यश ।
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१०४ ]
सूरजप्रकास
मँडे खग झाट दियै कवि' मौज । 'फतौ' खळ सीस उडावत फौज । स. वर हर वजै रथ सौक' । 'झुंझावत'५ झूझ करै रवि झोक ॥ ३५३ ध्रमंध्रम हैखुर सेस धुजाव । जुटै खग 'नाहर' 'कन्न सुजाव । जूडै खग 'लाल' समोभ्रम 'जैत' । 'उदावत'८ : 'जैत'९ लड़े अखडैत ॥ ३५४ 'जोधावत' 'साहिबसिंघ'' सुजोस । रिमां तरवार' हणे घण रोस । उडावत'२ लोह धरे' खत्र अाघ । विहारियदास'४ समोभ्रम 'वाघ' ॥ ३५५ वहै'५ खग रौद हणे जुध बेर । ‘फतौं' सिवदांन सुतन्न'६ अफेर । .
१ ख. ग. सिव। २ ख. सझे। ३ ख. बर। ४ ख. ग. सोक । ५ ख. ग. भूझावत । ६ क. झोक । ७ ख. कंन । ग. क्रन । ८ ख. ऊदावत। ९ ख. ग. देद। १० ख. ग. साहिबसींघ। ११ ख. तरवारि। १२ ग. उदावत । १३ ख. धरै। १४ ख. बोहारीयदास । ग. विहारीयदास। १५ ख. बाहै। ग. वाहै। १६ ख. ग. सुतन ।
३५३. मंडे झाट - तलवारोंसे युद्ध करता है। फतौ- फतहसिंह । उडावत - काटता है।
वर - पति । हूर - परी, अप्सरा। सौक - तेज गतिसे आकाशमें वायुयानादिके चलनेकी ध्वनि विशेष । झंझावत - झूमारसिंहका वंशज। झूझ - युद्ध। रवि
सूर्य। झोक - शाबाश । ३५४. भ्रमंध्रम - घोड़े आदिके वेगसे चलनेसे भूमिके कंपनकी ध्वनि । हैखुर - घोड़ेके टाप ।
सेस- शेषनाग । धुजाव - कंपन । जुटै-भिड़ता है। नाहर-नाहरसिंह । कन्नकरणसिंह ! सुजाव - पुत्र । जुड़े - भिंड़ता है, टक्कर लेता है। लाल - लालसिंह । समोभ्रम - पुत्र । जैत - जैतसिंह। उदावत - राठौड़ोंकी उदावत शाखाका व्यक्ति ।
अखडैत - योद्धा। ३५५. जोधावत - जोधाका वंशज। रिमा - शत्रुओं। रोस - रोष, कोप। खत्र - क्षत्रियत्व,
क्षत्रिय । माघ - मान्य, सम्मान । बाघ - वाघसिंह। २५६. रौद - मुसलमान। वेर- समय । फलो - फतहसिंह । अफेर - न मुड़ने काला, वीर।
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सूरजप्रकास
- [१०५ वि' रिण' वीच' जवांनिय वेस । तठे हरनाथ तणौ' 'सगतेस' ॥ ३५६ तठे 'हठमाल' 'किसोर' सुतन्न" * । केवी खग झाटत 'आसकरन्न । जुटै खग झाट 'हठी' जिणवार । 'हठी' सिर वाजत" खाग हजार ॥ ३५७ 'जोगावत' धार धसंत११ 'जवांन१२ । सझै जिम तापस गंग सिनांन । उडै ५ जरदैत वज'। खग एम ।
जई मझि फज्जर" गज्जर' जेम ।। ३५८ १ ख. बिड़े । ग. वढ्। २ ख. रण। ३ ख. ग. बोच । ४ ख. ग. जवांनीय। ५ ख. बेस। ६ ग. तणो। ७ ख. सुतंन्न । ग. सुतंन । *यहांसे आगे ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न पंक्तियां मिली हैं
'मिले झड लोह षगां वड मन ।। वरा छक जुटत घाट वराड़।
अनौ हरनाथ तरणो अवनाड ।' नोट - ख. प्रति में यहांसे आगेकी पंक्तियां वे हैं जिनका पाठान्तर पृष्ठ १०२ में दिया जा चुका
है । उन पंक्तियोंके अतिरिक्त भी इस ख. प्रतिमें उनसे आगे कुछ पंक्तियां और मिली हैं जो निम्न हैं किन्तु ये सब ग. प्रतिमें नहीं मिली हैं। ग. प्रतिमें जो मिली थीं उनका पाठान्तर पृष्ठ १०२ पर दिया जा चुका है, वहां पर ये पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं मिली थीं किन्त यहाँ पर ख. प्रतिमें वे ही पंक्तियां मिल गई हैं। इनके अतिरिक्त ख. प्रतिमें कुछ और पंक्तियां यहाँ पर मिली हैं जो ग. प्रतिमें यहां पर नहीं हैं, वे निम्न हैं____ 'रूको झट हीक पाडे पषरत । जिकै असि पाप चढ़े करि जैत ।।
बषांणत भाग 'निषे' गज वोह । 'अनौ' हरनाथ तणौ अंगि लोह ।' ८ ग. झाड़त । यहां पर इससे पहले इस पंक्तिके ऊपर ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न पंक्ति मिली है
'तठ 'विरतो' चंद्रभाग सुतंन्न ।' ६ ख. जुई। १० ख. बाजत । ११ ग. धासत । १२ ख. जघान । १३ ख. ग. सझे । १४ ख. ग. सनांन । १५ ख. उठ। १६ ख. बजै । १७ ग. फजर । १८ ग. गझर ।
३५६. जवांनिय वेस - युवावस्था। सगतेस - शक्तिसिंह । ३५७. हठमाल - हठीसिंह । किसोर - किशोरसिंह । सुतन -पुत्र । केवी- शत्रु । हठी -
हठीसिंह। ३५८. जोगावत - जोगसिंहका वंशज पुत्र । धार "जवान - जोगसिंहका वंशज जवानसिंह जब
युद्ध में प्रवेश करता है। तापस- तपसी। फज्जर-प्रातःकाल । गज्जर-प्रात:काल बजने वाले घंटे पर होने वाले प्रहार, या प्रातःकाल बजने वाला घंटा ।
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१०६ ]
सूरजप्रकास जठे घर' सीस पड़े उडि जाम । तठे असि झोकि लड़े धड़ तांम । महारत' मुंड विहंड हसंत । धरा मझि रुंड' वितुंड धसंत ॥ ३५९ हई घड़ खाग झटां धड़ हेक । किया धड़ आप सरीख अनेक । किरम्मर तीर वहै घण'' कुंत । हसै रिख नारद पौरस हूंत'१ ॥ ३६० घड़ी दूय'५ एम करै घमसांण । वरै रंभ प्रांण चढ़ेस'५ विमांण' । वसै झुगि 'धूहड़' सीस वरीस । सिरै रुडमाळ कियौ हर सीस ।। ३६१ इखे'८ पित ऊपर लोह अपार । करै खग झाट 'गुमांन' कुंवार । धारूजळ मुग्गळ' तूटत घंह । विढे २ "अभमुन्य' ज्युही चक्रबृंह ॥ ३६२
१ ख. उडि । ग. उड। २ ख. ग. धर। ३ ख. ग. हकारत । ४ ख. विहंछु। ५ ख. ग. एंड। ६ ख. ग. वितूंड। ७ ख. कोया। ८ ख. ग. करिमर । ९ ख. बहै । ग. वहै। १० ख. घसा । ११ ख. कौतिकहूंत । ग. कोतकहूंत। १२ ख. ग. दोय । १३ ख. ग. करे। १४ व. बरे। ग. वरे। १५ व. ग. चढ़ेस। १६ ख. बिमाण । १७ ख. कोयौ। १८ ख. ईथे। ग. इष। १६ ख. ग. ऊपरि। २० ख. कुवार । २१ ख. ग. मूंगल। २२ ख. बिड़े । २३ ख. ग. अभमुंनि। २४ ख. ग. प्रतियोंमें यह शब्द नहीं है।
३५६. जांम - समय, पहर । मुंड - मस्तक । रुड-धड़ । ३६०. हई घड़ - घुड़-सेना । झटां - प्रहारों। किरम्मर - तलवार । कूत - भाला। ३६१. घमसाण - युद्ध । रंभ - अप्सरा । स्त्र गि- स्वर्गमें। धूहड़ - राव धूहड़के वंशज,
राठौड़ । वरीस -प्रदान करने वाला। सिरै- श्रेष्ठ । ३६२. इखे - देख कर । गुमांन - गुमानसिंह । धारूजळ - तलवार। विढ़े- वीर गति प्राप्त
हुा । अभमुन्य - अभिमन्यू ।
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सूरजप्रकास
जोए लुघ' ऊपर ' भाजि' न जाय ।
घणी कुळ लाज लड़ें
घण घाय ।
जिसी विध" बाळक"
E
गिणै नह बेस " झडै खगथाट लोहां
हर्णे
झिलमिल्ल तिल तिल्ल '
1
परी वर सूर ।
किया " वर हूर ।। ३६४
६
गराज
गजराज ॥ ३६३
११
1
.१२
तेगां मुंह घाट हुवी
१४
सुतौ रिण सेज हई घण मीर चढ़े रथ नेह 'हठी' वर चाहि । मिळे" स्रुगि इंदर" मिंदर माहि । जठ खळ भूक हुवें हय जम्म । 'दलावत' वाहत खाग 'पदम्म' ' वहै" खग वीज* * ज्युंहीं 'दलौ २५ 'अमरावत' जूटत दूठ " ।
१६
२०
મ
खग ४ वूठ
करै खग झाट चंडी समोभ्रम 'रूप' लड़ै
a 3
१ ख. लुप । ग. लघु । २ ख. उंम्मर । ग. उमर ।
७ ख विधि। रा. वि
।
५ ग लडे । ६ ग. जिसि । मृगराज । १० ग. वेस । ११ ख. ग. झिलझिल्ल | तिलतिल । १४ ख. ग. सेझ | १५ ख. ग. कीया । १८ ग. रंदर । १६ ख. बाहत । २० ग. पद्दम्म । २३ ख. ग. जहीं । २४ ख. ग. घण । २५ ग. दलो ।
जयकार । 'सिरदार' ।। ३६६
१६
93
।। ३६५
३ ख भागि ।
८ ख. वालक । ६ ख. ग.
१२ ग. हो । १३ ख ग.
ख. ग. सुत ।
१७ ग. मिलै ।
२१ ख. बहै ।
२२ ख. बीज ।
२६ ख. दुठ ।
-
[ १०७
३६३. नगराज - मृगराज, सिंह।
वेस- वयस, श्रायु ।
३६४. लोहां झिलमिल्ल - घावोंमें तरबतर हो कर । रिण सेज - रण-शय्या | परी - अप्सरा । मीर - मुसलमान, बड़ा मुसलमान सरदार । हूर- अप्सरा । ३६५. हठी - हठीसिंह । भूक - चूर-चूर ध्वंस । दलवित दलसिंहका वंशज ।
पदम्म -
पदमसिंह |
४ ग. जाई ।
३६६. वीज - बिजली । वूठ - वर्षा । दलौ दलसिंह । श्रमरावत - अमरसिंहका वंशज । वूठ - जबरदस्त । जयकार - जय ध्वनि । रूप- रूपसिंह । सिरदार - सरदारसिंह ।
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१०८ ]
सूरजप्रकास अरी घट साबळ अंत अळूझ । झिक' 'सकतावत' दारुण' झूझ' । समोभ्रम 'ऊद' धुबै चंद्र हास । दळां खळ डोहत मोहन दास ।। ३६७ भळाहळ सेळ घमोड़त 'भांण' । प. मुगळांण जुर्माण' पिठांण । सत्रां करि सेल उझेल सरीर । वहै" वधिखाग 'जसावत' वीर ॥३६८ सत्रां गहि' कंध उडावत सीम'' । भमावत जांणि गजां घड़३ भीम । हिचै भड़ 'माल' वहै खग हाथ । निजोड़त रोद'४ समोभ्रम 'नाथ' ॥ ३६६ घणूं खग झाट करै झळ घांम । जोरावरसींघ'५ 'फतावत' जांम । सँमोभ्रम 'केहरि' 'माहवसाह' । निजोडत रोद६ खगां नरनाह ॥ ३७०
१ ख. ग. झीकै । २ ख. दारण। ३ ख. भूक। ४ ख. ग. मोहण । ५ ख. ग. धमोडत। ६ ख. जुयांण । ग. जुवांण । ७ ख. बहै। ८ ख. बधिषाग। ६ ख. बीर। १० ख. ग. ग्रहि। ११ क. सीस । १२ ख. धड़। १३ ख. बहै। १४ क. रोद। १५ ग. सिंघ। १६ क. रौद।
३६७. अरी - अरि, शत्रु । घट -- शरीर। अंत - प्रांतें । सकतावत - शक्तिसिंहका वंशज ।
झूझ - युद्ध । ऊद - उदयसिंह । धुबै - प्रहार करता है। चंद्र हास - तलवार ।
डोहत - मथन करता है, ध्वंस करता है। ३६८. झळाहळ - चमकदार, देदीप्यमान । घमोड़त -प्रहार करता है। भाण- सूरजसिंह ।
पड़े -- वीर-गति प्राप्त होते हैं । मुगळांण – मुगल, यवन । जुनांण – जवान, युवा ।
पिठाण - युद्ध । जसावत - जसवंतसिंहका वंशज । ३६९. गजां घड़ - हाथी दल । भीम - पांडु पुत्र भीम । हिचे - युद्ध करता है। माल - __ मालदेव या रायमलसिंह। निजोड़त- काटता है, संहार करता है। रौद - यवन,
मुसलमान । समोभ्रम - पुत्र | नाथ - नाथूसिंह । ३७०. फतावत - फतहसिंहका वंशज । केहरि - केसरीसिंह । माहवसाह - माधोसिंह ।
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सूरजप्रकास
[ १०६ को हरि तेज वणै' दइवांण' । र खग 'जैत'3 तणो जमरांण । पछाड़त मुग्गळ चंद्र - प्रहास । दिपै 'अणदावत' सूंदरदास ॥ ३७१ समोभ्रम 'माहव' 'ग्यांन' सधीर । वढे खग झाट थटां वड वीर । भिड़े खग झाट 'गुमांन' भुजाळ । 'विहारिय' 'संभ्रम' क्रोध विसाळ ॥ ३७२ चका चमराळ करै खग चूर । सुतं 'सबळेस' 'दुरज्जण'१. सूर । 'जसावत' जूटत बाहग्रजांन । दिय" खग झाट खळां 'सिवदान' ॥ ३७३ 'द्वारावत' सूर 'अनोप' दुझाल । खगां झट भांण दिखावत ख्याल । तठै धुबियौ' जुध लोह अताघ । वाहै खग 'भांण' समोभ्रम 'वाघ' ॥ ३७४
१ ख. बिनै । २ स्व. दईवांण । ३ क. झैत । ४ ख. मंगल । ५ ग. प्रहास्य । ६ ख. बिढ़े। ७ ख. बीर। ८ ख. बिहारीय । ६ ख. सुत। १० ग. दुरजण । ११ ख. ग. दीये । १२ स्व. धुवीयो । ग. धुवियो ।
३७१. अनौ- अनाड़सिंह । हरि-हरिसिंह । दइवांण - वीर ( ? )। जैत - जैतसिंह।
जमरांण – भयंकर रूप। पछाड़त - मारता है, काटता है। चंद्र-प्रहास - तलवार ।
दपै - शोभायमान होता है । अणदावत - आनंदसिंहका वंशज । ३७२. माहव - माधोसिंह । ग्यांन - ज्ञानसिंह । थटां - दलों, सेनामों। गुमान - गुमान
सिंह । भुजाळ - योद्धा, वीर । विहारिय - बिहारीसिंह । संभ्रम - पुत्र। ३७३. चका-चक्र. सेना। चमराळ-मुसलमान । चूर-ध्वंस, नाश। सबळेस-सबल
सिंह । दुरज्जण – दुर्जनसिंह । जसावत - जसवंतसिंहका वंशज । जूटत -भिड़ता
है। बाहअजांन - प्राजानबाहु, लंबी भुजाओं वाला, वीर। ३७४. द्वारावत - द्वारकादासका वंशज। अनोप - अनोपसिंह । दुझाल - वीर। भांण
सूर्य । ख्याल - कौतुहल । धुबियो-प्रचंड रूपसे हुना, तीव्र वेगसे हुआ। प्रताप %D अथाग - अपार, असीम । भाण - सूरजसिंह । वाघ - बाघसिंह ।
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११. ]
सूरजप्रकास 'पीथावत' सूर 'करन्न' प्रचंड । खगां झट रोद हणे खरहंड । 'सवाइय' 'अम्मरसिंघ' सुजाव । वाहै खग प्रातस रूप वणाव ॥ ३७५ 'अखौ' 'अणदावत' वीजळ ऊक । भयंकर मेछ करै जुध भूक । घणा खग घाव तुरां घमसाव । जुड़े भड़ 'माहव' *'कन्न' सुजाव ॥ ३७६ सवाइय वाहत खाग सक्रोध । जुटै इम 'माहव* संभ्रम जोध । विढे करिमाळ करै धजवाह । समोभ्रम 'केहरि' व 'गाजीयसाह' ॥ ३७७ प्रचंडक रोद' हणे रुख पाथ' । नरां पति 'माहय'रौ हरनाथ । सकाज 'फतावत' खाग समाथ ।
हई० घण रूक करै हरनाथ'' ।। ३८८ १ ग. करंन। २ ख. ग. सवाईय। ३ ख. अंम्मर । ग. अमर। ४ ख. बाहै।
__ *...*चिन्हांकित पद्यांश ख. प्रतिमें नहीं है। ५ ख. बढ़े। ६ ख. केहर। ७ ग. रौद । ८ ख. माथ। ६ क. माहवरौ। १० क. हुई । ग. हइ । ११ क. हरिनाथ ।
३७५. पीथावत - पृथ्वीसिंहका वंशज । करन - करणसिंह । खरहंड - सेना, फौज । '
सवाइय - सवाईसिंह । सुजाव -पुत्र। ३७६. अखौ - अक्षयसिंह । अणवावत - आनंदसिंहका वंशज । वीजळ - तलवार। ऊक -
प्रहार, वार । मेछ - म्लेच्छ, यवन । भूक - ध्वंस, नाश । तुरां- घोड़ों। घमसाव -
समूह । माहव - माधोसिंह । ऋन्न - करणसिंह । ३७७. सवाइय - सवाईसिंह । संभ्रम - पुत्र । जोध- योद्धा, वीर । करिमाळ - तलवार ।
पग- भाला। वाह - प्रहार । समोभ्रम -पुत्र। केहरी- केसरीसिंह । गाजीय
साह - गजसिंह। ३७८. प्रचंडक - प्रचंड, महान। रौव - यवन । रुख -प्रकार । पाथ - पार्थ, अर्जुन ।
माहवरी-माधोसिंहका। हरनाथ - हरनाथसिंह । फतावत - फतहसिंहका वंशज । समाप - समर्थ, शक्तिशाली। हई - हय, घोड़ा। रूक - तलवार ।
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सूरजप्रकास
[ १११
अडीखेंभ माधवसींघ' अभंग । जुड़े खग 'ऊद तणौ' भड़ जंम । 'अखा' अचरिज' किसौ घर एण । सुरागुर पीठ जिके' चंद्रसेण ॥ ३७९ जोधा भड़ एह पटायत जांणि । वधै जुध सूर 'उमेद' वखांणि । सझै खळ थाट खगां झट सूर । 'पतौ' 'महरांण' तणौ वद पूर ॥ ३८० तपं खग - पांणि पियै'जळ तेम । जवन्न घड़ा'' दधि कुंभज जेम । धड़च्छत फील खगां सिरधार* । रचै मुकतागळ३ मांगणिहार ॥३८१ अटा दछि ज्याग घटा गज'५ ऐम । जटाधर क्रोध छूटा गण जेम ।
१ ख. माधुव । २ ख. जुटे। ३ ग. अचिरज । ४ क. किसो। ५ ख. सूरांगुर । ६ ख. ग. जिकै। ७ ख. सैण। ८ ख. पटाइत। ६ ख. बधे। ग. वधे। १० ख. पीये। ११ ख. वडा। १२ ख. धड़फछत । ग. धड़छत । *ख. प्रतिमें यह पंक्ति निम्न प्रकार है
'धडफछत फील सिरां षग धार ।' १३ ख. मुगतागलि। १४ ख. जोगणिहार। १५ ख. गजि। १६ क. घुट ।
३७६. अडीखंभ - जबरदस्त, प्रचंड । अभंग - वीर। ऊदतणो - उदयसिंहका। अखा
'अक्षयसिंह' अथवा 'कहते हैं। प्रचरिज - आश्चर्य । घर .. वंस । एण- इस । सुरा. गुर - सूरवीरोंमें महान । पीठ-पीछे । चंद्रसेन - स्वतन्त्रताका परम उपासी राठौड़
वीर राव चंद्रसेन । ३८०. पटायत - बड़ी जागीरका स्वामी । पतौ - प्रतापसिंह । महरांण - समुद्रसिंह । तणी
तनय, पुत्र । ३८१. तपं - तप, तपस्या या तपस्वी। खग पाणि - खड्गधारी। जवन - मुसलमान ।
दधि = उदधि - समुद्र । कुंभज जेम - अगस्त ऋषि। धड़च्छत - काटता है। फील
हाथी। मुकतागळ = मुक्ता+गल - मोतियोंका समूह। मांगणिहार - याचक । ३५२. अटा- ( ? )। दछि-प्रजापति, दक्ष । ज्याग - यज्ञ । जटाधर - महादेव ।
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११२ ]
सूरजप्रकास
इसी' विध* जूटत जोम अमाप । 'तेजो' मय 'भांण' बियो 'परताप' ॥ ३८२
जोधा राठौड़ - समोभ्रम' 'सांमळ' 'जग' सुभेस * ।
L
उकेलत सेल खळां खळां 'अमरेस' | 'जसावत'' सींघ' 'सवाइय" जंग | बंगाळक खाग करंत बरंग ॥ ३८३ किलम्मक" थाट हणै खग कोप । अँगोभ्रम 'बद्रीदास' 'अनोप' | उठे" 'कुसळावत' रोस उमंग । जुरावरसींघ ? " घसै " मझि जंग || ३८४ घटा मिळि फौज १४ बागळ घोर ।
१२
११५
लोह सजोर ।
.१६
"जुरा"" सिर बूठत धसै उससे वरावत" हूर घणा तिन वार ।। ३८५
खग धार ।
१ ख इसा | २ ख. बिधि ।
६ ख. जसाउत । ७ ग. सिंघ
।
१० ख.
किलंमक । ग. किलमक । धसे । १४ ग. फोज ।
३ ग. समोभ्रम । ४ ख. सभेस । ५ ख. ग. उझेलत । ८ख. सवाई | ग. सवाईय । ६ ग. वरंग । ११ ग. उठे । १२ ख. ग. जोरावरसिघ । १३ ख. ग. १५ ख. ग. जोरा । १६ ग. निहस्यै । १७ ख. बरात ।
३८२. भांण - सूरजसिंह । बियो - दूसरा वंशज | परताप - प्रतापसिंह |
३८३. समोभ्रम - पुत्र । सांमळ - श्यामसिंह । जग - - जगतसिंह | उकेलत - संहार करता है । अमरेस - अमरसिंह | जसाबत - जसवंतसिंहका वंशज । सौंघ सवाइय - सवाई - सिंह | बंगाळक - मुसलमान । बरंग - खंड, टूक
३८४. किलम्मक - मुसलमान । थाट - सेना । मँगोभ्रम - पुत्र । अनोप - अनोपसिंह । कुसळावत - कुशलसिंहका वंशज ।
३८५. अंबागळ - नगाड़ा। घोर ध्वनि । जुरा - जोरावरसिंह । सिर- ऊपर । बूठत सजोर - पूर्ण शक्ति से जोरावरसिंह पर शस्त्रोंका प्रहार होता है । धधार - वह जोरावरसिंह बलात् सैन्य दल में घुसता है, जोशपूर्वक प्रहार करता है और अनेक वीरोंको धराशायी कर के प्रप्सरा वरण करता है ।
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सूरजप्रकास
__ [ ११३ वरै' रंभ कंठ धरैः वरमाळ' । चढे खग धार पड़े' कळिचाळ ।, अपच्छर सूर विमाण उडाय ।
जोधहर' तांम वसै'' स्रग'' जाय ।। ३८६ उदावत राठौड़-जुडै १२ इम 'जोधहरां' जजरेत ।
अठा अन४ ऊदहरा अखड़ेत । जियां'५ मझि सूर 'हदौ' जमरांण । घणे १६ छक पूर धसै घमसांण ॥ ३८७ वहै" धज साबळ खाप'८ विहार । विढे ६ खळ भूक करै जिणवार । समोभ्रम 'राजड़' यूं घमसांण २१ । जुनौर ने भड़ 'रूप' 'अजै-कपि' जांण ।। ३८८ 'पतावत' रोळा विसाबळ पांण । मरू२४ भड़ तांम छिबै असमांण ।
१ ख. बर । ग. वरे। २ ख. ग. धरे। ३ ख. बरमाल। ४ ख. चढ़े। ५ ख. पडे । ६ ख. क. कळिचाल । ७ ख. ग. अपछर । ८ ख. बिमाण। ६ ख. जोधाहर । १० ख, बहे। ११ ख. श्रुगि। १२ ग. जुडे । १३ ख. जजरत। १४ ख. उग्र। १५ ख. जीयां । १६ ग. घणे । १७ ख. बहै। १८ ख. पाग। १६ ख. बिढ़े। २० ग. युं । २१ ख. घमसांणि। २२ ख, ग. जूनौ। २३ ख. ग. जांणि। २४ ख. ग. मारू । २५ ख. छिवे । ग. छिवै ।
३८६. कळिचाळ - वीर, योद्धा, युद्धभूमि। जोधहर - राव जोधाके वंशज । ताम - तब ।
स्रग - स्वर्ग। ३८७. जजरेत - वीर, योद्धा। अठा अन- यहांसे अगाड़ी। ऊदहरा- उदावत शाखाके
राठौड़ । जियां "घमसांण – जिनके बीचमें वीर हृदयसिंह जोशपूर्ण भयंकर यमराजके
समान रूप धारण कर के युद्ध करता है । ३८८. धज -- भाला। खाप - तलवार या तलवारका म्यान । विढे - काटता है । भूक -
ध्वंस । राजड़ - राजसिंह । जुनौ - प्राचीन । रूप - रूपसिंह । अजै-कपि - अंजनी
पुत्र हनुमान । ३८६. पतावत - राठौड़ वंशकी एक शाखा अथवा इस शाखाका व्यक्ति, प्रतापसिंहका वंशज ।
रोळा- युद्ध। मरू = मारू - राठौड़।
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११४ ]
सूरजप्रकास मुछार' भुंहार' चढे वड मन्न । वधै बळि बावळि जांणि विसन्न ॥ ३८९ जई छक ऊपण' तेज सराज । धिख' च्चख'' औरवियौ' धजराज । उडै उर टक्कर'३ थाट अनेक । वहै१४ धज साबळ पांणि'५ विछेक ।। ३६० इसी विधि सेलह पौस'८ उझेल । साथहिज'६ काढत हंस रुसेल । करी सिर वेधत काढत कूत । हुबै रत बोळ१ भंभार वहूंत ।। ३६१ अवा सह खेलत फाग भुपाळ२२ । पतंग कि जांणि खुले१३ परनाळ । धमं धम वाहत ४ ५५ चवधार । उथैलत५६ मीर गजां असवार ॥ ३६२
१ ख. मंछार । २ न. बुहार। ३ ख. ग. चढ़े। ४ ख. मंन्न । ५ ख. वधे। ६ ख. ग. वाळि । ७ ख. बिसन्न । ८ ख. उफण । ६ ख. तेज। १० ख. धिषे। ११ ख. ग. चष। १२ ख. ग. पोरवीयो। १३ ख. ढक्कर। १४ ख. बहै। १५ ख. ग. पाण। १६ ख. विधि। १७ ख. सिल्लह। ग. सिलह। १८ न. पोस । ग. पौंस । १९ ख. ग. साथेहीज । २० ख. बेधत । २१ ख. छौल । २२ ख. ग. भुवाळ । २३ ख. घुले। २४ ख. बाहत । २५ ग. युं। २६ ख. ग. उथेलत।
३८६. मुछार - श्मश्रु, मूछ । वड मन्न - वीर । विसन्न – विष्णु। ३९०. ऊपण = उफण - उबाल खा कर । विख च्चख - आंखोंमें क्रोधाग्नि प्रज्वलित करता
हुा । औरवियो - झोंक दिया। धजराज - घोड़ा। विछेक - विशेष । ३६१. सेलह पौस - अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित अथवा कवचधारी। हंस - प्राण। रुसेल -
जोशीला। करी- हाथी । कूत - भाला। बोळ - लाल । भैभार - छेद, सूराख । ३९२. पतंग - ( ? )। परनाळ - छतसे पानी गिरनेका नाला। चवधार - भाला।
उथैलत- उलट कर गिरता है। मीर - बड़े-बड़े मुसलमान सरदार ।
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सूरजप्रकास
[ ११५ जगी' हवदो' भिदि सबळ जांम । तुटै जरदैत दुसारण ताम । तठे मिळि मेछ चहूंवळ हूंत । फरां सर खाग अवाहत कूत ॥ ३६३ मिले तदि हेक निमख मंझारि । चिलँक्कत तूट' लगी खग च्यारि । असी तह फूट' चिलत्तह' अंग । खुबै१३ हिक साबळ दोय खतंग ।। ३६४ लुहां रत छूट'५ हुवौ रंग लाल । गडै १६ करि खेलत फाग गुलाल । खुभै अंग लोह छछोह खतंग । तिसीहि'८ झ' भांत सुरंग तुरंग ॥ ३६५ 'जस' धखि क्रोध धरै' जमजाळ । त, खिज काठिय'२ खाग उताळ । हिलोहळ रोद२३ चहूं-वळ होय । दळां खग'४ टूक करै दोय दोय ॥ ३६६
१ ख. ग. जंगी। २ क. ख. हवदौ। ३ ख. साबळ । ४ ख. तूटौ। ग. तुटो। ५ ख. बल। ६ ख. सिर। ७ ख. अबात। ८ ख. ग. मिले। ९ ख. निमंख। १० ख. तूटि । ११ ख. फूटि। १२ ख. ग. चिलतह। १३ ख. ग. षुभ। १४ ख. ग. लोहां । १५ ख. छूटि। १६ ख. ग. गडे। १७ ख. ग. षुभे। १८ ख. तिसीही। १६ ख. ज। २० ख. भांति । २१ ख. घरे। २२ ख. ग. काढ़ीय। २३ ख. रौद। २४ ग. षळ ।
३९३. हवदौ - हाथीकी अम्मारी। जरदेत - कवचधारी वीर । दुसारण - ( ? )।
चहूंवळहूंत - चारों ओरसे । ३९४. चिलंक्कत - कवच । चिलत - कवच। खतंग - तीर, तीर विशेष । ३६५. छछोह - पंना, तीक्ष्ण । सुरंग - लाल । ३९६. जसे - जसवंतसिंह । धखि क्रोध - क्रोधाग्निमें प्रज्वलित हो कर । जमजाळ -
बंदूक विशेष ( ? )। हिलोहळ - विलोड़ित, कंपनयुक्त । रोद - यवन । चहूंपळ - चारों ओरसे।
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११६ ]
सूरजप्रकास
रिमां' दळ बीच 'जसौ' इण रूख । समूद्रह वीच' जिसौ सुरमुक्ख वढे जरदैत गु गजबाज । जुड़े इम 'ऊदहरौ' 'जसराज' ।। ३६७ *सवाइय' 'मांन' तणौ सिरताज । निझोड़त' मुगाळ' झाट नराज* ।
उठे 'जगरांम'तणौ मझि एक । हुवौ 'सुभरांम' समोभ्रम हेक ॥ ३६८ तिको असवार• बिचै तिणवार । एकौ' भड़ लख जिसौ उणवार । हुवै'२ रवि हेक' प्रथी' तप होय । दवै'५ नव लाख तरा' ससि दोय ॥ ३६६ महाबळ आवत एक मयंद' । गराजत भाजत लाख गयंद । प्रळेझळ एक दमंग प्रचंड । खपावत जांणि घणा वन'८ खंड ॥ ४००
१ ख. रमा। २ ख. ग. समुद्रह। ३ ख. बीचि ।
___ *...*चिन्हांकित पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं। ४ ग. सवाईय। ५ ग. निजोड़त । ६ ग. मुगल। ७ ख. जगरांमतणा। ८ ख. हतो। ग. हतौ। ६ ख. तिकै । ग. तिको। १० ख. प्रसवोर । ११ स्व. ग. एको। १२ ख. हौ। १३ ख. एक । १४ ख. प्रिथी। १५ ख. दब। १६ ख. तारा। १७ ख. मयंव। १८ ख. बन ।
३९७. जसो - जसवंतसिंह। रूख - प्रकार । सुरमुक्ख - अग्नि । ऊवहरौ - उदयसिंहका
वंशज, उदावत । जसराज - यशवंतसिंह । ३९. सवाइय - सवाईसिंह । मान - मानसिंह । निझोड़त - काटता है। नराज - तल
वार। जगरांम - जगरामसिंह उदावत । सुभरांम - सुभरामसिंह उदावत । ४०.. मयंद - सिंह । गराजत -- गर्जना करता है । प्रलेझळ - प्रलयकालकी अग्नि ।
दमंग- अग्नि-कण।
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सूरजप्रकास
[ ११७ दुवाघण देव एको' जगदीस । सको जग जेण नमवित सोस । इसी विध' 'मांन' महाभड़ हेक । 'उदावत' मुग्गळ थाट अनेक ॥ ४०१ विध धज साबळ चोळ वरन्न । तुरस्स' जरद्द अँगारक तन्न । चठीठत साबळ ढाल चढंत । कँदोइय घेवर जांण कढंत* ॥ ४०२ पड़े' घण मूगळ सेल प्रचंड । खत्री गुर खीज कढी भल खंड । निलौ' कपि डांण भरंत निराट' । झड़े खळ 'मान' लड़े खग झाट ।। ४०३ सिलैबँध'४ टूक पड़त समंग । पडै करि पाखर टूक पमंग । झळाहळ वीजळ१५ मंगळ झाळ । कमंधज वाहत'६ खाग कराळ ॥ ४०४
१ ख. एको। २ ख. ग. विधि । ३ ख. माहाभड़। ४ ग. हेक। ५ ख. मूगल । ग. मुगल। ६ ख. विधै। ७ ख. बरंन्न । ग. वरन। ८ ख. ग. तुरस । ९ ख. ग. जरद । १० ख, तंन्न ।
*यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । ११ ख. ग. पाडे । १२ ख. ग. नोलो। १३ ख. निरा। १४ ख. ग. सिल्हैबंध। १५ ख. बोजक । ग. बीजझ। १६ ख. बाहत ।
४०१. मांन - मानसिंह । उदावत - राठौड़ वंशकी उदावत शाखाका वीर । ४०२. चोळ वरन्न - लाल रंग। तुरस्स - ढाल । जरद्द - कवच । अंगारक - लाल । ४०३. निलो - रंग विशेषका घोड़ा। कपि - वानर । डांण - छलांग । निराट - बहुत ।
मांन - मानसिंह । ४०४. सितंबंध - अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित अथवा कवचधारी । 'समंग- पूर्ण अंगों सहित ।
पाखर - घोड़ेका कवच । पमंग - घोड़ा। झळाहळ - चमकती हुई। वोजळ - तलवार । मंगळ - अग्नि ।
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११८ ]
सूरजप्रकास इसी विध' 'मांन' लड़त अबीह । . जपै' कुण वार लहै इक जीह । अरी खग झाटत रोस उकंद । महाबळ' 'सांभळ' उठत' 'मुकंद' ॥४०५ तठे 'परताप' तणौ खळ तन्न । करै खग झाटक सूर 'करन्न । समोभ्रम 'गोयंददास' सकाज । देवीचंद ढाहत रोद दराज ॥ ४०६ धमंधम सेल खळां घट धींग । सझे 'कुसळावत' पाहड़सींग । धुबै 'अजबेस' खळां झळ धूप । रिमां धड़ मांहि समोभ्रम 'रूप' ॥ ४०७ मारू खग बाहत'. 'बाघ''' मजेज । त?'३ 'अजबावत' 'जोध' सतेज । भँज खगि मेछ घड़ा घट भेद । उठे 'अणवत्त'१3 सूर 'उमेद' ॥४०८ जई खग वाढत'४ खांन 'जवांन' । दिपै 'सबळेस' तणौ सिवदांन ।
१ बिधि । ग. विधि। २.ख. जपे। ३ ख. माहाबळ । ४ ख. ग. ऊत । ५ ख. तंत्र। ६ ख. करन। ७ ख. ग. रौद । ८ ख. ग. सझे। ६ ख. ग. पाहड़सींघ । १० ख. वाहत। ११ ख. वाघ । १२ ख. जठे। १३ ख. अणदावत। १४ ख. बाढ़त ।
४०५. अबोह - वीर, निडर । सामळ - श्यामसिंह । मुकंद - मुकुन्दसिंह। ४०६. परताप - प्रतापसिंह । तन्न - शरीर । झाटक - प्रहार । करन- करणसिंह ।
ढाइत - मारता है । दराज - महान ।। ४०७. घट - शरीर । धींग – वीर । अजबेस - अजबसिंह । धूप - तलवार । रूपा
रूपसिंह। ४०८. मारू - राठौड़ । बाघ - बाघसिंह । मजेज - शीघ्र। अजवायत - अजबसिंहका
वंशज । जोध - जोधसिंह । अणवत्त - प्रानंदसिंहका वंशज । उमेद - उमेदसिंह । ४०६. जवांन - जवानसिंह । सबळेस - सबलसिंह ।
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सूरजप्रकास
रोद' दळां विकराळ |
रोद'
विहंडत
'कलौं' 'हरिनाथ' तणौ कळिचाळ || ४०६ खगां भट देत गजां सिरि खीज ।
४
व इम जांणि गिरां पर वीज' । महा जुध मज्झि छिबै असमांण । दुवौ हदमाल लड़े मिळे खग भाट हणै जुरावर' रंण तणो 'हरी' सुत केहरि" और " हुबास । पछाड़त मुगळ सत्रांघड़ खाग भटां घड़ सोध । जुटै मगरूर 'लखावत '
ह
जोध ।
उठे खळ" तोड़त खाग जरूर । 'सवाइयसींघ' 'विजावत' सूर ॥ ४१२ लड़े खग झाट लियै कुळलाज । समोभ्रम 'राम' 'प्रद' सकाज |
१३
.१४
वहै" खग मूंगल " होत वतीत 1 जुगावत" 'पेम' लड़े जुधजीत ॥ ४१३
११२
0
दइवांण ॥ ४१० मुगळांण । जमरांण ।
चंद्रहास ।। ४११
८ख. श्ररि । ग. श्रोर ।
१ ख. ग. रौद । २ ख. ग. वणे । ३ ख. ग. बीज । ४ ख. ग. छिवं । ५ ख. ग. दईवणि । ६ ख. जोरावर । ग. जोरावर । ७ ख. केहर । ६ ख. वास । ग. हवास । १० ख. मूंगल । ग. मुगल । ११ सवाईसिंघ । १३ ख. झाल । १४ ख. बाहै । ग. वहे बितीत । १७ ख. ग. जोगावत ।
ख. पग । १२ ख. ग. १५ ग. मूषल । १६ ख.
।
४०६ विहंडत - काटता है, संहार करता है। कलौ - कल्याणसिंह । कळिचाळ - वीर । ४१०. दुवो दूसरा । हदमाल - हृदयसिंह । बइवांण - वीर ।
४११. जुरावर - जोरावरसिंह । रंग- रणछोड़दास । हरी - हरिसिंह । केहरि - केसरीसिंह । हुबास - घोड़ा। चंद्रप्रहास- तलवार ।
४१२. लखावत - लक्ष्मणसिंहका वंशज । विजायत - विजयसिंहका वंशज ।
४१३. रांम - रामसिंह । श्रणंद - आनंदसिंह | जुगावत- जोगसिंहका वंशज ।
प्रेमसिंह |
[ ११
पेम -
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________________
१२० ]
१ ख. रौस । ६ ख. हरिनाथ ।
सूरजप्रकास
२
उठे खग वाहत रोस' उमंग 'अखौ' 'बछराज ' ' तणौ अणभंग | मंडै खग झाट करें खळ मौत । 'धनौ' भड़ धूहड़ गौरधनोत' ।। ४१४
समोभ्रम जीवणदास
समाथ ।
हुवै खळ
ऐह ै ।
* उदावत सूर पटायत उमेदक आगळि पांण अछेह ॥। ४१५
&
१०
१२
'बहादर ' ' 'जीवण' रौ " रण बोह'
93
'लखौ " " खळ थाट विभाड़त लोह
१५
६ खाग लड़े हरनाथ
तठ
सभै
निजोड़त वीजळ मुग्गळ" नेठ । 'जुरावर' 'जोग' तणौ जग जेठ ।। ४१६ बळा भख वीजळ झोकत बाथ १६ *
1
निजोड़त मेछ 'दिपावत' 'नाथ' |
'सबळावत'
खळ
२ ग. वछराज । ३
७ ख. ऊदावत
।
दर । ग. बहादर । ११ ग. रो । १५ ख. प्रतिमें यह शब्द नहीं है । १८ ख. बीजल । १६ ग. वाथ ।
१७
२० ख. ग. सूरतसिंघ |
१२
१८
दंगळ
ख. ग. मंडे ।
१६
१०
सूरतसींघ । मोहणसींघ ॥ ४१७
ख. मूंगल
१४
४ ग. मोत । ५ ख. गोरधनोत ।
८ख. ग. एह । ६ ख भागल । १० ख. बाहा
ग. वोह ।
१३ ग. लषो । १४ ख बिभाड़त ।
१७ ख. ग. जोरावर ।
।
*...ख. प्रतिमें यह पंक्तियां पुनः मिली हैं ।
ग. मुगल ।
४१४. अखौ - अक्षयसिंह । धनो धनराजसिंह । घूहड़ - राठौड़ ।
४१५ समाथ - समर्थ, शक्तिशाली । प्रागळि - अगाड़ी ।
४१६. बहादर - बहादुरसिंह । जीवणरौ - जीवनसिंहका । लखौ - लक्ष्मणसिंह । विभाड़त - काटता है । नेठ - ( बिलकुल ? ) । निजोड़त काटता है । जुरावर जोरावरसिंह । जोग - जोगसिंह । जगजेठ - वीर ।
--
४१७. बळा भव- ( ? ) । वीजळ - तलवार ।
बाथ - ( ? )। दीपावत - दीपसिंहका वंशज । नाथ - नाथूसिंह । सबळावत - सबलसिंहका वंशज । स- संहार करता है, मारता है । दंगळ - युद्ध ।
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सूरजप्रकास
[ १२१
विभाड़त' मूगळ खाग विहार' । समोभ्रम 'भाउ लड़े सिरदार ।
सझै जुध ऐह उदावत* 'सीह' । जैतावत- अठा अग्र 'जैत'हरा अणबोह ॥४१८
मँडै खग झाट अँडै नग मेर । 'फतौ' 'भव'" 'गोरधनोत'८ अफेर । सझै खग झाट हणे खळ साथ । नरां पति 'रूप' तणौ रघुनाथ ।। ४१६ धुबै खळ 'नाहर' बीजळ' धार । 'जुरावरसींघ' तणौ जुधवार । रिमां थट वाढत झाट नराज । समोभ्रम 'सादल' तेज सकाज ॥ ४२० तछ खळ 'पेम' खगां झट ताम । रचै जुध एम समोभ्रम 'राम' । ग्रहै खग वाह करै गजगाह । समोभ्रम 'मोहण' 'नाहर साह' ।। ४२१
१ ख. विभाड़त। २ ख. बिहार। ३ ख. ग. भाऊ। ४ ख. ग. एह। ५ ख. ऊदावत । ६ ग. अणवीह। ७ ख. भउ। ८ ख. गोरधनौत । ग. गौरधनोत । ९ ग. धुवै। १० ख. वीजळ । ११ ख. ग. जोरावरसिंघ ।
४१८. भाउ - भाऊसिंह । उदावत - राठौड़ वंशकी शाखा या इस शाखाका व्यक्ति । सीह -
( ? )। जैतहरा - जैतावत शाखाके राठौड़। ४१६. थेंडे - धकेलते हैं । नग -पैर, चरण । मेर - सुमेरु पर्वत । फतौ - फतहसिंह । भव -
__ भावसिंह । गोरधनोत - गोरधनसिंहका वंशज । अफेर - वीर । रूप - रूपसिंह । ४२०. धुवै - तेज, क्रोधमें होता है। नाहर – नाहरसिंह । झाट - प्रहार। नराज - तल
वार। सादल - शार्दूलसिंह। ४२१. तछ - काटता है । पेम-प्रेमसिंह । समोभ्रम - पुत्र । राम- रामसिंह । गजगाह
युद्ध । मोहण - मोहनसिंह । नाहर साह - नाहरसिंह ।
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१२२ ]
सूरजप्रकास
अणी कढ़ वाहत खाग अपाल । दलावतसींघ' 'सँग्रांम' दुझाल । वहै 'सिरदार' खळां खग वाढ़ । गरीवहदास तणौ अवगाढ़ ।। ४२२ जुड़े खग गैंद जहीं तळ जोड़ । 'अनावत' सींघउमेद अरोड़ । वहै धज साबळ रोद' विभाड़ । 'प्रजावत' साह वखां अवनाड़ ।। ४२३ विढे 'सत्रसाळ'८ खगां वरवीर । समोभ्रम 'गोवरधन्न'१० सधीर । 'पतावत' सूर बहादर' पांण । मँडै'' खग झाट खड़े मुगळांण ॥ ४२४ उडै खग झाटक जंग अथाह । सुत3 'जयसाह' लड़े 'इँद्र साह' । मिरां४ थट खाग झटां मसतांन । सझै 'इंद्रभाण' तणौ१५ सिवदांन ॥ ४२५
१ ख. ग. दलावतसिंघ । २ ख. बाढ़। ३ ख. जुटे। ४ ग. सिंघउमेद । ५ ख. रौद । ६ ख. विभाड़। ७ ख. बिढ़े। ८ ख. छत्रसाल । ६ ख. वरबीर। १० ग. गोवरधन । ११ ग. वहादर । १२ ख. मंडे। १३ ख. सुतं । १४ ख. ग. मीरा। १५ ग तणो।
४२२. अपाल - बै-रोक-टोक । सिरदार – सरदारसिंह । अवगाढ़ - वीर । ४२३. अनावत - अनाड़सिंहका वंशज। सींघ उमेद - उम्मेदसिंह । अरोड़ - वीर । अजा
वत - अजीतसिंहका वंशज । वखां - ( ? )। अवनाड़ - वीर । ४२४. सत्र साळ - शत्रुशालसिंह । गोवरधन - गोरधनसिंह। पतावत - प्रतापसिंहका वंशज।
मॅड.."झाट - तलवारसे प्रहार करता है। खड़े मुगळांण – मुगल वीर-गतिको प्राप्त
होते हैं। ४२५. जयसाह - जयसिंह । इंद्रसाह - इंद्रसिंह। मिरी - मुसलमान ।
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सूरजप्रकास
अणपार ।
वार |
पटायत एह लड़े प्रगै भड़ भूप ' उमेदह' धणी थट अग्र 'फतावत' ढाल । महाबळ'
जूटत 'सूरजमाल' ॥ ४२६
जुडै खग झाट कळोधर 'जैत' । 'उरजण ' 'सादल' रौ
२
खड़ैत ।
लिये खळ" थाट हर्णे खग लाह ।
3
समोभ्रम 'राजड़' 'राजड़' 'जैमलसाह' ॥ ४२७
हरी सुत 'ऊदल ' 'भांण' चंद्रासक त्रास हर्णे
हठाल (ळ ) । चमराळ | 'कममेस" ।
.१५
६
करै खग भाट जड़े 'दुरज्जण सींघ' तणी खळां दळ भूक करै भळ खंड | 'पतावत' गोपिय" नाथ प्रचंड
'पदमेस' ।। ४२८
११२
छुटा भड़ बाघ " जही" छक छोह । करणोत राठौड़- लड़े 'करनोत'' झळहळ लोह ।। ४२६ 'दुरगावत' सूर सधीर ।
सिरै
3
१४
वधै तिणवार " "अभी"" नरवीर'" ।
१ ख माहाबळ 1 २ ख. उरज्जण । ३ ख लीये । ४ ख. षग । ५ ख. कमेस । ६ ग. दुरजसंघ । ७ ख. भू । ८ख. ग. गोपीय । ९ ख. छूटा। ग छुटा । १० ग. बाघ । ११ ख. जिही । १२ ख. ग. करनौत | १३ ख बधै । १४ ख. बार । १५ ग. प्रभो । १६ ख. नरबीर ।
[ १२३
४२६. पटयत - बड़ी जागीरका मालिक । उमेदह - उमेदसिंह । थट - सेना । फतावत फतहसिंहका वंशज । हाल रक्षक सूरजमाल - सूरजमल ।
४२७. कळोधर - वंशज । जैत - जैतावत शाखाका राठौड़ । उरजण - अर्जुनसिंह | सादल शार्दूलसिंह | खड़े - वीर । राजड़- राजसिंह । जैमलसाह - जैमलसिंह । ४२८. भांण - सूरजभाणसिंह । हठाल - वीर । चंद्रासक तलवार ।
त्रास - प्रहार ।
चमराळ - मुसलमान | कममेस- करमसिंहोत राठौड़ । पदमेस - पदमसिंह | ४२६. तावत - प्रतापसिंहका वंशज । करनोत राठौड़ वंशकी एक शाखा । ४३०. दुरगावत - प्रसिद्ध देश भक्त राठौड़ दुर्गादासका पुत्र । अभी- अभयसिंह |
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१२४ ]
सूरजप्रकास
निलै त्रिसळस चढ़ावत' निराट । अड़े सिर अंबर' जोम' उपाट ॥ ४३० गई धखि क्रोध झळाहळ' जागि । उभै चख छूटि झळाहळ पागि । विडंगक झाळि पवत्रिय" वाग । भळाहळ सेल ग्रहै मध्य भाग ।। ४३१ मिळे भौह मंछ वदन्न'. मजीठ । निलौ' अस' कीध गरक्क' नत्रीठ'। करी उर'५ टक्कर ऊडत'६ केक । अरी जरदैत तुरीस अनेक ॥ ४३२ वहै'" सफरी रुख सारत वाग'८ । खुरी पर ६ गाय छुरी पर खाग । इसै अस'' 'नीब'हरौ' असवार । धड़ां गज पार कर चवधार ।। ४३३ वहै१२ रत छौळ73 ढहै विकराळ४ । दैतूसळ भूमि खहै दुरदाळ ।
१ ख. ग. चढ़ाव । २ ख. अडे । ३ ख. अंन्वर । ४ ग. जौम । ५ ख. घष । ६ ख. हलाहल । ७ ख. पपत्रीय। ८ ख. ग्रहे । ६ ख. मिले। १० ख. बन्न । ग. वदन । ११ ख. ग. नीलो। १२ ख. ग. असि । १३ ग. गरक। १४ ख. नतीठ । । १५ ख. ग. दुरदाल । १६ ख. उडत । १७ ख. बहै। १८ ख. बाग। १६ ख. पर। २० ख. असि.। २१ ग. हरो। २२ ख. बहै। २३ ख. ग. छोल। २४ ख. बिकराल। २५ ख. ग. उरदाल ।
४३०. निल = निटिल - ललाट । त्रिसळे - ललाट में क्रोधादिके कारण होने वाले तीन सलवट । ४३१. विडंगक - घोड़ा। भळाहळ - देदीप्यमान, चमकयुक्त । ४३२. निलो अस - रंग विशेषका घोड़ा। गरक्क - तरबतर । नत्रीठ -- वीर। जरवंत -
कवचधारी योद्धा। ४३३. नीव - प्रसिद्ध राठौड़ वीर दुर्गादासका पितामह। चवधार - भाला। ४३४. रत- रक्त । छोळ - प्रवाह ।
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सूरजप्रकास
[ १२५ जंगी हवदां खळ सेल जडंत । प्रवाळक रूप मंत्राळ पडत ॥ ४३४ हुदां' मझि चंड चढे हुलसाय । धण' रत मुग्गळ पीत' अघाय । उड़े ग्रहि अंत निझां असमांण । पलौ हिक झालत जोगणि पांण ॥ ४३५ उभी हुय जाणिक गोख* अटारि । उडावत गूडिय' राजकुमारी । इसी विध सेल घपाय अभंग । रुळे खग काढय" वीजळ'' रंग ॥ ४३६ अनेकह'२ खाग हणे 'अभ' एक । 'अभा' पर वाहत3 खाग अनेक । तुरी पर" तूटत लोह अताळ । पड़े रुधराळतणा'५ पड़नाळ ।। ४३७
१ ख. ग. हौदां। २ ख. घणा। ३ ख. मूगल । ग. मुगळ । ४ क. ग. पात । ५ ख. चलो।
*यहाँ से आगे ख. प्रत्ति में निम्न प्रद्यांश और मिलता है।
ल श्रोण अघाय । लोधी कढ़ि षाग जिसी झल लाय। बाहै कुंवरां गुरत्री छण बाढ़ । गिडां कंध रौद पड़े अवगाढ़।
लडे सिंध क्रन्न इस जुध लाह ॥' ६ ख. ग. गूडीय। ७ ख. ग. कुमारि । ८ ख. ग. विधि। ख. रौले। ग. रोल। १० ख. ग. काढ़ीय। ११ ख. बीजल । १२ ख. अनेह । १३ ख. बाहत । १४ ख. परि। १५ ख. रुधराज ।
४३४. प्रवाळक - मूंगा। अंत्राळ - प्रांतें। ४३५. चंड- चंडी, रणचंडी। अंत - प्रांत । निझा - गिद्धों। पलो - वस्त्र-छोर, अंचल ।
जोगणि - रणचंडी। पांण - पाणि, हाथ । ४३६. जाणिक - मानों। गूडिय - पतंग; कनकौमा। वीजळ - बिजली। रंग - प्रकार। ४३७. अभ।- वीर राठौड़ दुर्गादासका पुत्र अभयसिंह। प्रताळ - शीघ्र । रुषराळ-तणा
खूनके। पड़नाळ - परनाला।
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१२६ ]
सूरजप्रकास एको' असि तूटि पड़े अवसांण । दुजै असि तांम चढे दइवांण । लुहां रत पूर उपै रंग लाल । इसी विध सूर लड़े 'अभमाल' ।। ४३८ एकौ भड़ जोड़ फबै भड़यैत । जुड़े ‘महकन्न' समोभ्रम 'जैत' । वरच्छिय' वेधत''घाट'२ बराळ । मदां छकि जांणि पड़े'४ मतवाळ'५ ॥ ४३६ पड़े रत वेध दुहं वज्र पाट'८ । वैरी'हर हंस वहै स्रुगि२१ वाट२२ । तिता भड़ दांत चढ़े 3 खग तांण । जिता घट फूट पड़े जमरांण ॥ ४४० वहै.५ इम सेल कढ़े खग वीज । खळां खग झाट करै धर खीज । उभा धड़ केयक सीस उडत । . लुटै ८ ललरै अहि जेम लुडंत ॥ ४४१
१ ख. ग. एको। २ ख. ग. दूजे। ३ ख. चढ़े। ४ ख. दईवाण। ५ ख. ग. लोहां। ६ ख. ग. विधि। ७ ख. ग. एको। ८ ख. ग. महक्रन । ९ ग. समौभ्रम। १० ख. बरछीय। ११ ख. बेधत । १२ ख. घाव। १३ ग. वराळ । १४ ख. पडे । १५ ख. मतिबाल। १६ ख. बेध। १७ ख. बन । १८ ख. पात। १६ ख. बेरी। २० ख. बहै। २१ ग. सुगि । २२ ख. बाट । २३ ग. चढ़े। २४ ख. फूटि । २५ ख. बाहे। ग. वाहै। २६ ख. कहे। ग. काढ़े। २७ ख. बीज। २८ ग. लूटै ।
४३८. प्रभमाल - वीर राठौड़ दुर्गादासका पुत्र अभयसिंह । ४३९. महकन्न - महकाणसिंह करणीत राठौड़। समोभ्रम - पुत्र । जैत - जैतसिंह । घाट -
शरीर । बराळ - जबरदस्त । ४४०. वैरी हर - शत्रु-वंशज । नगि - स्वर्ग । ४४१. लुटै ललर - भूमि पर पड़े इधर-उधर लेटते हैं व घायल सर्पके समान शरीरको
मोड़ते हैं।
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सूरजप्रकास
[ १२७
खळक्कत' घाट वहै। रतखाळ । पिय धक धक्क छक्क पयाळ । अडंभग भेख कियां अजरैत । जडा रुद्र क्रोध लड़े इम 'जैत' ।। ४४२ जठै 'अणदौं' भड़ 'तेज' सुतन्न । करै युध'' 'खेम' तणौ 'सिव क्रन्न'११ । वढे २ 'दुरगावत' भांण वरन्न । केवी खग वाढत'४ चैन करन्न'५ ।। ४४३ 'अभावत' क्रोध सझे अण थाह । सिधां धरि साधक है सिध साह । दळां निजहंत वधै विरदैत१८ । खळांमझि हाकलियौ'६ पखरैत ।। ४४४ छड़ां झलि° वाह करै छड़ियाळ' । कर घट पार कड़ा ने कड़ियाळ ।
१ ख. ग. षळकत । २ ख. बहै। ३ ख. पीयै। ४ ख. कछ। ५ ख. अडावंग । ग. अडांबंग। ६ ख. कीयां। ७ ख. तठे। ८ ग. अणदो। ६ ग. सुत्तंन । १० ख. जुध। ११ ख. कंन्न । १२ स्व. बिढ़े। १३ ख. बरंन्न । १४ स्व. बाढ़त । १५ ख. करन। १६ ग. सझे। १७ ख. वधे । १८ ख. बिरदैत। १९ ख. ग. हाकलीयो। २० ख. ग. झिलि । २१ ख. छडीयाल। २२ ग. कडौं।
४४२. खळक्कत - कलकल ध्वनि करते हैं। रतखाळ -रक्तका नाला। धक धक्क - भूमिमें ___ एकाएक तेज गतिसे द्रव पदार्थको सोखनेसे होनेवाली क्रिया या ध्वनि । पयाळ -
पाताल । अडभंग -- मस्त, मदोन्मत्त । भेख - वेश। अजरैत - जबरदस्त, उद्दण्ड । ४४३. अणदौ - अानंदसिंह करणोत राठौड़। तेज - तेजसिंह करणोत जो वीर दुर्गादासका
पुत्र था। खेम-क्षेमकरण करणौत राठौड़। सिवक्रन -शिवकरणसिंह । दुरगावत - वीर राठौड़ दुर्गादासके पुत्र । भांण – सूर्य । वरन्न - वर्ण । चैन करन- वीर.
दुर्गादासका पुत्र चैनकरणसिंह । ४४४. प्रभावत - अभयसिंह करणौतका पुत्र व राठौड़ दुर्गादासका पोत्र । सिधसाह - सिद्ध
करणसिंह । विरदंत --विरुदधारी, यशस्वी । हाकलियो - हांका। पखरत -
कवचधारी घोड़ा। ४४५. छड़ा - भालों। छड़ियाळ - भाला धारण करने वाले । कड़ियाळ – कवच ।
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१२८ ]
सूरजप्रकास छछोहक स्रोण घडां उछटंत । दरू' धिख भैच पजांण दगंत ॥ ४४५ इसी विध' साबळ स्रोण अखाय' । लिधी कटि खाग जिसै झळळाय । वहै कुवरां'' गुर त्रीछण वाढ़'' । गिरां कँध रोड'२ पडै अवगाढ ।। ४४६ लडै 'सिध क्रन्न'13 इस जुध लाह । उभै१४ थट देखि कहै भड़ वाह । समोभ्रम तेजकरन्न सकाज । लड़े 'किसनेस' भुजां कुळ लाज ॥ ४४७ वढे खळ' ६ वीजळ चोळ वरन्न'८ । करै 'जस करन्न'' तणौ २० दळ कन्न। इतामझि२२ एक 'उमेद' उकंद । मिलै२३ कचरावत लोह 'मुकंद' ॥४४८
नरां सिणगार इता करणोत२४ । करमसोतारौ वरणण-अगै२५ भड़ सूर करम्मसियोत ।
१ ख. ग. दारू। २ ख. ग. पजांणि। ३ स्व. बिधि । ग. विधि । ४ ख. म. सावळ । ५ ख. ग. अघाय। ६ ख. लोधी। ७ ख. ग. कढ़ि। ८ व. जिसी। ख. बाहै। १० ख. ग. कुंवरां। ११ ख. बाढ़। १२ ख. रौद । १३ ग. ऋन । १४ ख. उन । १५ ख. बढ़े। १६ ख. षग। १७ ख. बीजल । ग. वीझळ । १८ ख. बरंन्न । ग. वरन । १६ ख. कंन्न । २० ग. तणो। २१ ख. कंन्न। २२ ख. इतांमझि। २३ ख. मिले। २४ ख. ग. करणौत । २५ ख. प्राग। २६ ख. करम्मसीयौत । ग. करमसीयोत ।
४४५. छछोहक - तेज । स्रोण - शोरिणत, खून । ४४६. झळळाय - क्रोधमें भर कर । अवगाढ - वीर । ४४७. सिध ऋन्न - सिद्धकरणसिंह, यह वीर राठौड़ दुर्गादासका पौत्र था। उनै - उस ओर ।
थट - सेना। तेजकरन - तेजकरणसिंह करणौत राठौड़, यह दुर्गादासका पुत्र था।
किसनेस - किसनसिंह। ४४८. चोळ-वरन्न - लाल रंग । कचरावत - कचरसिंहका पुत्र । मुकंद - मुकंदसिंह । ४४६. करम्मसियोत - राठोड़ोंकी एक उपशाखा या इस शाखाका वीर ।
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सूरजप्रकास
[ १२६ सिरै भड़ 'ऊदल'' तेण समाज । वधै' गरकाब कियौ जुध बाज' ॥ ४४६ सुभा बळ गात पराक्रम सीम । भयांणख भीम जिसौ हर 'भीम' । अमावड़ तेज तुरी असवार । पा. दळ चाढ़ि धकै अणपार ।। ४५० भळाहळ रूप'' झळाहळ भाय । जुड़े खळ पाय तिहा उडि जाय । छछोहक वाहत झाल छडाळ१२ । दुसारक डाळ पड़े रवदाळ' ।। ४५१ इलोळत स्रोण विच खळ एम । जळाधर बीच'४ तिमंगळ जेम । कमंधज वाहि५ खळां धजकूत । हियै' करि पार' लिय'८ असिहूंत ।। ४५२ भलौ नट'६ जांणि अगै भुव पाळ । बँगाळिय° वांस' चढावत बाळ ।
१ ख. ऊदत। २ ख. बधे । ग. वधे । ३ ख. ग. कोयौ। ४ ग. वाज। ५ ख. ग. सोभा। ६ ग. भयाणष । ७ ख. भीम । ८ ख. दल । ६ ख. धर्ष । १० ख. तोप। ११ ग. उड। १२ क. ग. वडाळ । १३ ख. रवदा । १४ ग. बाच । १५ ख. बाहि। १६ ख. ग. होय। १७ ख. पाल। १८ ख. ग. लोय। १६ ग. नाट । २० ख. ग. बंगालीय। २१ ख. बांस ।
४४६. ऊदल - खीमसरका ठाकुर उदयसिंह ! गरकाब - ( ? ) । बाज - घोड़ा। ४५०. भीम - भीमसिंह करमोत राठौड़। अमावड़ - अपार । ४५१. भळाहळ – देदीप्यमान । झळाहळ - अग्नि । भाय - समान। छडाळ - भाला।
रवदाळ - मुसलमान । ४५२. इलोळत - तरंगोंमें डुबकी खाते हैं। स्रोण - शोणित, रक्त । जळाधर - समुद्र ।
तिमंगळ - एक प्रकारका बड़ा मत्स्य जो तिमि नामक मत्स्य को भी निगल जाता है,
तिमिगल । ४५३. बँगाळिय-बंगालका। बाळ - बालक ।
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१३० ]
सूरजप्रकास वर्धे' गज चाचर साबळ वाहि । मुताहळ गंज किया' जुध मांहि ॥ ४५३ उमा मुकताफळ ले वड' वार । सझै उणहारतणौ सिणगार । झळाहळ रीस चढो अति झाळ । महाबळ तांम कटी किरमाळ ॥ ४५४ झड़े खग आतस रूप झिलम्म'' । कट विहरार अपार किलम्म' । दुवै दुवै फंट' हुवै जरदौत । कासि* करि तापस लेत' करौत ।। ४५५ दुसै फिरि जात चहूंबळ'८ दोळ । चहूंवळ वाहत'' खाग सचोळ' । समोभ्रम 'नाथ' २३ लड़े समराथ । हुवै जुध भांण सराहत हाथ ।। ४५६ वदै दहुवै२४ घड़ देखि वछेक । एकौ२५ भड़ 'ऊदक' ऊद अनेक ।
१ ख. बधे । २ ख. बाहि। ३ ख. ग. मोताहळ । ४ ख. कीयां। ५ ख. बड । ६ ख. सिरगार। ७ ख. झूलाह। ८ ख. माहाबल। ६ ख. ग. कढ़ी। १० ख. ग. झाडे। ११ ख. झिलंम्म । १२ ख. किलंम्म। १३ ख. फंव। १४ ख. हुदै । १५ ख. ग. कासी। १६ ख. तापल। १७ ख. सेत। १८ चहूंबल । ग. चहूबळ । १६ ख. चहूंबल । ग. चहूबळ । २० ख. ग. बाहत। २१ ख. ग. सचोल। २२ ख. ना। २३ ख. बद। २४ ख. ग. दुहुवै । २५ ख. ग. एको।
४५३. चाचर - मस्तक । मुताहळ - मुक्ताफल,मोती । गंज - ढेर । ४५४. उमा-पार्वती। किरमाळ - तलवार । ४५५. झिलम्म - युद्धके समय शिर पर धारण करनेका टोप। दुवै - दो। जरदौत - कवच
धारी योद्धा। तापस -- तपस्वी। करौत - प्रारा। ४५६. चहूंबळ -चारों ओर । सचाळ - वीर। नाथ - नाथूसिंह । समराथ - समर्थ, वीर । ४५७. बदै - कहते हैं। बहुवे - दोनों। घड़- सेना। बछेक - विशेष । एको.."ऊवक
इधर एक ही योद्धा उदयसिंह है, उधर अनेक ऊद (यवन) हैं।
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सूरजप्रकास
[ १३१ सझै' जुध 'माहव'रौ 'सिवसाह' । लखावत' 'ऊद' लिय' खग लाह ॥ ४५७ 'रासौ' 'कलियांण' तणौ रिण राव । घणा जुध बीच करै खग घाव । गिरध्दर दास तणौ अवगाढ़ । वहै जुध 'गोकळ' वीजळ वाढ ॥ ४५८ समोभ्रम 'माहव' 'सांमंत' सूर । 'कितौ' 'हठमाल' सुतन्न'' करूर । जुड़े 'लखधीर' समोभ्रम 'जैत' । 'तेजो' भड़'' 'लाल' तणौ विरदैत' ।। ४५६ 'रुघौ' भड़ 'ईसर'रौ'३ चढ़ि रोस'४ । जुड़े मगरूर चढे अति जोस । तेगां भड़ पांच लड़े इम तीख । सहै।५ जुध पांडव पांच सरीख ॥ ४६० खहै 'जसक्रन्न'१६ तणौ 'खड़गेस' । जिकै खग झाट ढहै'. जवनेस ।
१ ख. ग. सझे। २ ख. ग. लाखावत । ३ ख. ग. लीये । ४ ख. धणे । ५ स्व. ग. वीच । ६ ख ग. गिरधर । ७ ख. बाहै । ग. वाहै। ८ ख. बीजल । ९ ख. बाढ़ । १० क. सुतंन्न । ग. सतंन्न । १ ग. भिड़। १२ ख. बिरदैत । १३ ग. इसररो। १४ ख. रौस । १५ ख. ग. सहे। १६ ख. जसकंन्न । ग. सजक्रन । १७ ख. ढहे।
४५७. माहवरौ - माधवसिंहका । सिवसाह - शिवदानसिंह । लखावत - लक्ष्मणसिंहका
वंशज । ऊद - उदयसिंह । लाह - लाभ, आनंद । ४५८. रासौ - रायसिंह। कलियांणतणौ - कल्याणसिंहका पुत्र । रिण राव - महावीर ।
गोकळ – गोकुलसिंह । बाढ़ - काट कर, शस्त्रका पैना भाग । ४५९. जुड़े - भिड़ता है, युद्ध करता है। समोभ्रम - पुत्र । जैत - जैतसिंह । लाल - लाल
सिंह । विरदैत - यशस्वी, विरुदधारी। ४६०. रुधौ - रघुनाथसिंह। ईसर - ईश्वरीसिंह। मगरूर - गर्व, गर्वधारी। तोख -
विशेष, विशेषता। सरीख - समान । ४६१. खहै - युद्ध करता है । जसकन्न - जसकरण, यशकरण । खड़गेत - खड्गसिंह।
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१३२ ]
सूरजप्रकास
साहिबखांन
समाथ ।
समोभ्रम 'नगौ" खग जूटत गोपिय े - नाथ ।। ४६१
पटायत एह लड़ें खग पांण । 'उमेदक' जोध अगै
दइवांण ।
गिरवर - दास तणौ
अवगाढ़ |
वह खग 'खीम' झळाहळ वाढ ।। ४६२
सिवदांन ।
असमान |
1
॥। ४६३
७
सभै जुध 'केसव' रौ
उडावत हंस खळां
१०
११
.१२
"रिमां खग वाहि उभेळि " रगत्त सभै जुध 'वीठळऊत' 'सकत्त' ''अजौ' रुघनाथ' उभे 'जसावत' खाग हण चुंडावत जूटत यौ" 'भदावत' जूटत अग्रज"
743
दइवांग'
૬૪
जवनांण ।
कळिचाळ ।
भुप्राळ || ४६४
४ ख. ग. नगे । २ ख. ग. गोपीय ३ ग. येह । ४ ख. ग. दईयांण । धरदास । ६ ख बाहै। ग. वाहै । ७ ख झालाहल । ८ख. बाढ़ । हांस | १० ख. बाहि । ११ ख. उभेल । १२ ख. ग. रगत । १४ ख. दवांण । १५ ख. यूं । १६ ख. ग. श्रग्रज |
४६१. समाथ - समर्थ, बलवान । नगौ- नगराजसिंह । जूटत - भिड़ता है ।
४६२. पटायत - जागीरका स्वामी । पांण- प्रारण, बल, क्षक्ति । उमेदक - उमेदसिंह । जोध - पुत्र । दइवांण - योद्धा, वीर । श्रवगाढ़ - वीर योद्धा । खीम- खीमसिंह ।
४६३. स- संहार करता है। केसव - केशवसिंह | हंस - प्रारण । वीठळ ऊत - वीठलदासका पुत्र । सकत - शक्तिसिंह |
५ ग. गिरख. संह ग. १३ ख सकत ।
४६४. जौ - अजीत सिंह । रुनाथ - रघुनाथसिंह । उभ - उभय, दोनों । जसावत - जसवंतसिंहका पुत्र । जवनांण - मुसलमान, यवन । चुंडावत - राव चूंडा के वंशज राठौड़, राठौड़ों की एक शाखा । यौं - इस प्रकार भवावत - राठौड़ों की एक उपशाखा या इस शाखाका ( ? ) । भुश्राळ - राजा ।
|
कळिचाळ - युद्ध, योद्धा ।
व्यक्ति । श्रग्रज - बड़ा भाई
रगत- रक्त, खून |
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सूरजप्रकास
[ १३३ 'दलौ' भड़ 'कान्ह' तणी दइवांन(ण) । भिडै खग 'लाल'' तणौ 'भगवान' । 'उदौ' 'अणदेस' तणौ' अणभंग । जठ खग वाह' करै रिण जंग ॥ ४६५ 'उमेद'ह जोध त 'अवनाड़' । 'जसावत' मांडण खाग वजाड़ । सझै जुध गोरधनोत 'किसन्न' । . त्यही 'अखमाल' मुहोक' सुतन्न ॥ ४६६ जुड़े' खगझाट 'कलावत' जोध । 'सँगौ'१२ परताप सुतन्त' सक्रोध । 'समोभ्रम' आणंद झोकि हबास । दिय१५ खग झाटक वीठळ' -दास ।। ४६५५ मनोहरदास सुतन्न' 'अमान' । खळां खग बाढ़त'८ नाहरखांन ।
१ ख. लांल। २ ग. भगवान। ३ ख. दो। ग. उदो। ४ ग. तणो। ५ ख. बाह । ६ ख. लडे । ७ ख. बजाड़। ८ ग. किसन। ६ ख. त्यूही। ग. त्यौही। १० ख. मौहौक । ग. मोहोक। ११ ग. जुई। १२ ख. सांगो। ग. सांगो। १३ ख. सुतंन । १४ ख. हुवास । १५ ख. दोपै । १६ ख. बीठलदास । १७ ख. ग. सुतंन । १८ ख. वाढत ।
४६५, दलौ -- दलेसिंह । कांन्ह - कान्हसिंह । दइवान - योद्धा। लाल - लालसिंह ।
भगवान - भगवानसिंह । उदौ - उदयसिंह । अणदेस - अानंदसिंह । अणभंग- वीर ।
रिण जंग - युद्धस्थल, युद्ध। ४६६. उमेदह - उम्मेदसिंह । जोध - पुत्र । गोरधनोत - गोरधनसिंहका पुत्र। किसन्न
किसनसिंह । प्रखमाल - अक्षयसिंह। मुहोक - मोहकमसिंह। ४६७. कलावत - कल्याणसिंहका पुत्र | जोध - योद्धा, वीर । संगो - संग्रामसिंह । पर___ ताप - प्रतापसिंह । प्राणद - प्रानंदसिंह। झोकि - झोंक कर । हबास - घोड़ा।
झाटक-प्रहार । ४६८. अमांन-प्रमानसिंह। बाढ़त - काटता है, संहार करता है।
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१३४ ]
सूरजप्रकास
मुड़े' खग भाट हर्णे किलमांण ।
भिड़े गजसींघ तणौ रणावत' वाह करें
इंद्रभांण ।। ४६८ किरमाळ | लंकाळ" ।
८
लड़े चतुरावत' भूल' धुबै खग भाट वजे त्रंब धीह । 'बद्री' सुत सीह-गुमांन अबीह ॥ ४६६ बलावत लोह 'उदावत' बूर । 'सिवौ' 'परियाग' तणौ जुध सूर । हठी सुत रूप कियौ " हणुमांन" । महाबळ" बाहत" खाग गुमांन* ॥। ४७० धवेचा वाह" करै खग १५ उठे 'अमरावत' 'भीम' उदार । दियै ३ वढे 'सकतेस' तणौ
धार ।
१७
खग भाटह कादमतेस '
1
१८
'विसनेस १६
।। ४७१
१ ख. ग. मई । २ ख. ग. गर्जासंघ । ३ ख.
रांणावत्त। ग.
५ ख. चुतरावत । ग. चूतरावत । ६ ख. भा । ग. भूझ । ग. धुवं । ६ ख. बजे । महावळ |
1
१० ख. कोयां ।
११ ख. हणूंमान ।
१३ ग. चाहत ।
* यहांसे आगे ख. प्रतिमें निम्न पंक्तियां मिली हैं
१४ ख. बाह । १५ ख. १८ ख. बिढ़े । गः वदं ।
'अनी रुघनाथ तणौ णभंग ।
डेग भाट लडो लोह अंग ॥',
धग ।
१६ ख. दीये । १७ ख. कांदषतेस । ग. कांदसतेस । १६ ख. बिसनेस |
४६८. किलमांण - यवन ।
४६. रणावत - राणावत शाखाका राठौड़ । चतुरावत चतुरसिंहका वंशज । भूल समूह । लंकाळ - वीर, योद्धा । त्रंब - नगारा । धीह - आवाज । बद्री - बद्रीदास । गुमान - गुमानसिंह | अबीह - योद्धा ।
रांणावत । ४ ख. बाह ।
७ ख. लंकार । ८ ख.
१२ ख. माहाबल । ग.
-
४७०. बलावत - बालूसिंहका पुत्र । लोह - शस्त्र । बूर-समूह । सिवो - शिवदानसिंह । परियाग - प्रयागसिंह । हठी - हठीसिंह । गुमांन - गुमानसिंह ।
४७१. धवेचा राठौड़ोंकी एक शाखा । श्रमरावत- अमरसिंहका पुत्र । भीम - भीमसिंह । सकतेस - शक्तिसिंह । विसनेस - विसनसिंह ।
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सूरजप्रकास
। १३५
तई खग धार हण खळ तांम । महाजुध' 'माहव'रौ' हरिरांम । पड़े खग दावतणा घणपेच । महाबळ खेत लडै 'महवेच' ॥ ४७२ भळाहळ वीजळ' रावळ 'भांण' । करै जुध 'जैत' तणौ 'कलियांण' । पड़े गज मुग्गळ' बाज" अपार । बखांणत सूर हथां तिण वार ॥ ४७३ 'विजावत'८ उप्रमते असि वाग । खत्री गुर 'कन्न'' वजावत' खाग । अरी घड़२ साबळहूंत उथाल । सझंत विजावत'3 'वैरियसाल'४ ।। ४७४ अड़े खग 'जैतहमाल' अथाह । 'नरौ' 'मुकनेस' तणौ नर नाह । विढे गिरमेर समोभ्रम 'वैण"५ ।
रचै जुध 'खेम' विजावत'१६ रैण ॥ ४७५ १ ख. माहाजुध । २ ख. माहाव । ३ ख. ग. माहाबळ । ४ ख. ग. भळाहळ । ५ ख. बीजल । ६ ख. मूगल । ग. मुगल। ७ ग. वाज। ८ ख. बिजावत। ६ ख. उप्र. मते । ग. ऊप्रमते। १० ख. कंन । ग. ऋन । ११ ख. बजावत । १२ ख. ग. घट । १३ ख. बिजावत । १४ ख. बेरीयसाल । ग. वैरीयसाल । १५ स्व. बेण। १६ ख. बिजावत । १७ स्व. ग. रेण ।
४७२. माहव - माहवसिंह । महवेच - महेचा शाखाका राठौड़ । ४७३. वीजळ - तलवार । रावळ - रावल, मल्लिनाथकेवंशजोंका पद विशेष । भांण - सूरज
भारणसिंह । जैत - रावल मल्लिनाथके पुत्र जंतमाल । कलियांण – कल्याणसिंह।
बाज-घोड़ा। बखणित - प्रशंसा करते हैं। ४७४. विजावत - विजयसिंहका पुत्र । उप्रमते - विशेष । असि - घोड़ा। ऋन्न - करण
सिंह। वैरियसाल -- वैरीशालसिंह । ४७५. जैतहमाल - रावल मल्लिनाथके पुत्र जैतमालके वंशजोंकी एक उपशाखा या इस
शाखाका व्यक्ति । नरौ- नरसिंह। मुकनेस - मुकुंदसिंह । विढ - युद्ध करता है। गिरमेर - सुमेरसिंह । वैण- वैणीसिंह । खेम - खेमसिंह। विजावत - विजयसिंहका पुत्र । रंग - रणछोड़दास ।
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१३६ ]
सूरजप्रकास
२
सुतं 'जगरूप' व्रजागि समांम' । रिमां खग फांग रमै भड़ 'राम' | वधै हरिनाथ समोभ्रम "वांन४ । खळां खग भाटत साहिबखांन ॥ ४७६ तणौ भ्रम 'पूरण' सींघ तराज । स जुध मोगर सींह सकाज ।
पता भड़ क्रोध झळा उतपन्न ।
E
१०
११२
स जुध 'मेघ' 'किसन्न'" 'सुतन्न' ।। ४७७ भयंकर मेछ घड़ा खग भोग । जुड़े 'मुकनेस' " समोभ्रम 'जोग' 'पिथावत'" 'सूरजमाल''३ प्रचंड । खळां सिर बाह" करै तळ खंड ।। ४७८ समोभ्रम 'राजड़' 'रैणा'" सधीर । महाबळ खाग हणे भिड़े सुत 'जोध' खगां खगं'" झट थाट हणै
घणमीर
इंद्रभांण ।
१८
खुरसांण ।। ४७६
१६
६ ख. किसन ।
१ ख. ग. समाम । २ ख. फाम । ३ ख बधे । ग. वधै । ४ ख बांन । ५ ख. ग. डूंगर । ६ ख. ग. पाता । ७ ख. ग. उतप्पंन । १० ख. घडां । ११ ख. ग. मुकंदेस । ९२ ख. १४ . बाह । १५ ग. रेण । १६ ख. माहाबळं ।
८. सुतं । ग. पीथावत । १७ ख षगां ।
४७६. समांम - विशेष, बढ़िया । रिमां - शत्रुनों फाग फाल्गुन मासका नृत्य । वान
वनेसह |
४७७. भ्रम- पुत्र । पूरण पूर्णसिंह तराज- समान । पता पतावत शाखाका राठौड़ । मेघ - मेघसिंह । किसन्न - किसनसिंह । सुतन्न - पुत्र ।
।
-
-
१३ ख. सूरज । १८ ख. हणे ।
४७८. म्लेछ - मेच्छ, यवन । घड़ा सेना । मुकनेस – मुकुन्दसिंह । जोग - जोगसिंह | पिथावत – पृथ्वीसिंहका पुत्र सूरजमाल - सूर्य्यमल | तळ खंड - ध्वंस |
---
४७६. समोभ्रम - पुत्र । राजड़- राजसिंह । रैणा - रणछोड़सिंह । घण - बहुत । मीर बड़ी सरदार, यवन । जोध- जोधसिंह । भट - प्रहार थाट - समूह । खुरसांण यवन, मुसलमान ।
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सूरजप्रकास
[ १३७ चका' खग झाट हणे चमराळ' । विढे नर 'पाळ' तणौ विजपाळ । रिमां खग झाट करै घटरेज । तिकै जुध 'केहरि' संभ्रम 'तेज' ।। ४८० घणा खळ थाट सिरै खग घाव । सझै जुध 'माहव' 'क्रन्नसुजाव । चका खळ भूक करै खग चौज । भिड़े 'अणदेस' समोभ्रम ‘भोज' ॥ ४८१ अंगोभ्रम 'मेघ' चाडै कुळ अोप । "उमेदह' वार लडेत 'अनोप' । समोभ्रम 'मेघ' 'जमांन' सकाज । लड़े खग झाट लियां कुळ लाज ।। ४८२ सत्रां खग झाटक 'गंग' सझेस । समोभ्रम 'मेघ' लडै' 'कुसळेस' । वधावधि' राड़ि करै खगवाह । सत्रां' 3 'परसावत'१४ 'माहवसाह' ॥ ४८३
१ ख. चकां। २ ख. मचराल । ३ ख. बिढ़े। ४ ग. तणो। ५ ख. बिजपाल । ६ ख. कंत । ग. क्रन । ७ ख. चोज । ८ ख. लड़त । ९ ख. ग. लीयां । १० ग. लडे। ११ स्व. बधेबधि। ग. वधेवधि । १२ ख. षगबाह। १३ ग. सत्रा। १४ ख. परसांवंत।
४८०. चमराळ – यवन, मुसलमान । पाळ - गोपालसिंह । विजपाळ - विजयसिंह । घट
- रेज - ( ? ) । केहरि - केसरीसिंह । संभ्रम - पुत्र । तेज - तेजसिंह । ४०१. माहव - माहवसिंह । क्रन्न - करणसिंह । सुजाव - पुत्र । चका - चक्र, सेना ।
भूक - ध्वंस। चौज - ( ? )। अणदेस - प्रानन्दसिंह । भोज - भोजराजसिंह । ४८२. अंगोभ्रम - पुत्र । मेघ - मेघसिंह । अोप - कांति, दीप्ति । अनोप - अनोपसिंह । ४८३. कुसळेस – कुशलसिंह । वधावधि -- बढ़-बढ़ कर । राड़ि- युद्ध । खगवाह - योद्धा । ___माहवसाह - माहवसिंह।
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१३८ ]
सूरजप्रकास
तई' हणमंत कळा जुध ताम । करै मंडळा सझळा खग काम । 'विहारिय' संभ्रम 'केसव' वीर । 'संगौ भगवान सुजाव सधीर ॥ ४८४ जुड़े 'अन्न'' पाळ 'किसोर' सुजाव । रोळे खग चोळ कियां रिणराव । तठे 'बगसावत'" जूटत ताम । छैदावनदास चढे वरियांम' ।। ४८५ सझै जुध 'वीदहरा'' खळ साळ । हिचै खग भाग चंदोत'२ 'हिंदाळ'१३ । रचै जुध 'भोज' हरा रिमराह । नरावत नाहरखां नरनाह ॥ ४८६ मँडै १५ खग झाट खळां घड़-मोड़ । 'अनावत' सूरतसींघ'६ अरोड़ ।
१ ग. तइ। २ ख. बिहारीय । ग. विहारीय । २ ख. सांगो । ग. सांगो। ४ ख. अन । ५ ख. कीयां। ६ ख. ग. रणराव । ७ ख. बगसावत । ८ ख. वृदावनदास । ग. वृदावनदास । ६ ख. चंडा। ग. चडं। १० ख, ग. वरीयांम। ११ ख. हलरा। १२ ख. चंदौत । ग. चदौत। १३ हिदाल । १४ ख. दाह। १५ ग. मंडे । १६ ग. सुरतसिंघ। १७ ग. अरोड।
४८४. हणमंत - हनुमान । मंडळा- राठौड़ोंकी एक उपशाखा । सझळा- बढ़िया, श्रेष्ठ ।
विहारिय - विहारीसिंह । संभ्रम - पुत्र । केसव - केशवसिंह । सँगौ - संग्रामसिंह ।
भगवान - भगवानसिंह । ४८५. रोळे - ध्वंस करता है। रिणराव - योद्धा । वरियांम - श्रेष्ठ । ४६६. वीबहरा-- राव बीदाके वंशज, राठौड़ोंकी एक उपशाखा। हिच - युद्ध करता है।
भाग चंदोत - भागचंदका पुत्र । भोजहरा - भोजके वंशज, राठौड़ोंकी एक उपशाखा।
मरावत - राठौड़ोंकी एक उपशाखा, इस शाखाका वीर । ४८७. घड़-मोड़ - सेनाको मोड़ देने वाला, पीछे हटा देने वाला योद्धा। अनावत - अनाड़
सिंहका पुत्र । अरोड़ - जबरदस्त ।
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सूरजप्रकास
[ १३६ अड़े खग' भारमलोत' अनम्म । करै जुध 'भूपति'रौ 'मुहकम्म'* ॥ ४८७ अरी खग झाड़ि छिबै असमांन । थटां मझि 'भाखर' संभ्रम 'थांन' । करै जुध 'भीम' कळोध कंठीर । 'विहारिय' संभ्रम 'साहब' वीर ।। ४८८ हुवै खळ वीजळ वाहत हाथ । नरांपति 'भोज' तणौ'' 'जगनाथ' । भिड़े' म्रत' कीध 'अभा' छळि भोज'। युही' 'सुरतांण' 'जसा' छळि अोज ।। ४८६ बिन' जमसूर'५ दादौ अर बाप । उवां अधिकोस'६ पराक्रम आप । सझै जरदैत खळां घण साथ । जगाचख दादि दियै ८ 'जगनाथ' ॥ ४६०
१ ख. षगि। २ ख. भारमलौत। ३ ख. अन्नम । ग. अनम। ४ ख. मौहोकंम्म । ग. मौहौकम्म। ५ ख. ग. छिवै । ६ ख. बिहारीय । ग. विहारीय । ७ ख. ग. साहिब । ५ ख. बीजल । ६ ख. नरौपति । १० ग. तणो। ११ ख. भिडे। १२ ख. मृत । १३ ख. यौही। ग. यौही । १४ ग. विनं। १५ ख. यम। १६ ख. अधिकोस । १७ ख. ग. जग्गचख । १८ स्व. ग. दीयं ।
४३७. भारमलोत - राठौड़ोंकी एक उप शाखा, इस शाखाका वीर । अनम्म - नहीं
झुकने वाला। ४८८. भाखर - भाखरसिंह। थान - थानसिंह । भीम - भीमसिंह । कळोध - वंशज ।
कंठोर - सिंह । विहारिय - बिहारीसिंह । साहब - साहबसिंह । ४८६. प्रभा - महाराजा अभयसिंह । छळि - लिए। भोज - भोजराजसिह । सुरतांण -
सुल्तानसिंह । जसा - जसवंतसिंह । ४६०. बिन - दोनों। दादौ - पितामह । जरवैत - कवचधारी योद्धा । जगा चख - सूर्य ।
दावि - धन्यवाद । जगनाथ - जगनाथसिंह ।
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१४० ]
सूरजप्रकास
रूपावत जूटत घाट बराड़' । विजूजळ' मुग्गळ' थाट विभाड़ । जुड़े खग' 'गोयंद'६ रौ" जसराज । सुतां 'सकतेस' हुमाऊ सकाज ।। ४६१ हिचै 'दुरगावत' झोकि हुबास । दुसै खग झाटत बद्रियदास'' । लड़े भड़ 'गंग' हरा धख लागि । 'जगावत' सूरतसींघ' व्रजागि ॥ ४६२ रिमां सिर वाहत'४ वीजळ१५ रूठ । 'द्वरौ''६ मुकँदावत जूटत' दूठ । नरावत खाग हणे जवनेस । महाबळ१६ 'चंद'तणौ ‘पदमेस' ।। ४६३ धडच्छत२० मूगळ बीजळ धार । 'अनौ' 'सहसावत'२५ सूर उदार ।
१ ग. वराड । २ ख. बीजूजल । ग. वीजूजल । ३ ख. मूंगल । ग. मुगळ । ४ ख, विभाड़। ५ ख. षगि। ६ ख. गोयद । ७ ग. रो। ८ ख. सुतं । ६ ख. हमाउ। ग. हमाऊ। १० ख. हुवास । ११ ख, ग, बद्रीयदास। १२ ख. हरी। १३ ग. सूरतसिंघ। १४ ख. बाहत । १५ ख. बीजल । १६ ख. ग. द्वारौ। १७ ख. मुकंदारत। १८ ख. जूट । १६ ग. माहाबळ । २० ख. धडंछत । ग. धड़छत । २१ ख. संहसावत ।
४९१. रूपावत - राठौड़ोंकी एक उपशाखा, या इस शाखाका वीर । घाट बराड़ - भयंकर
रूपसे । विजूजळ - तलवार। विभाड़-संहार कर के। गोयंद - गोविन्दसिंह ।
जसराज - जसवंतसिंह । सकतेस – शक्तिसिंह । ४९२. दुरगावत - दुर्गादासके पुत्र । झोकि - झोंक कर । हुवास - घोड़ा। गंग .. गंगा
सिंह। पख - प्रबल जोश। ४६३. वरौ - द्वारकादास । मुर्कंदावत - मुकन्दसिंहका पुत्र । दूठ - जबरदस्त । नरावत -
राठौड़ोंकी एक उपशाखा। जवनेस- यवन, मुसलमान। चंद - चंद्रसिंह। परमेस -
पद्मसिंह। ४६४. धडच्छत - काटता है, मारता है। बीजळ - तलवार। अनौ- अनोपसिंह । सह
सावत - सहस्रसिंहका पुत्र ।
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सूरजप्रकास
[१४१ चढ़ावत' लोह करै बधिचाळ । प्रचंडह 'रूप' तणौ 'विजपाळ' ॥ ४६४ जुड़े ‘रायपाळ' हरौ रण 'जैत' । 'दुरज्जण' 'नाहर'रौ बिरदैत' । अड़े भड़ पूरविया अवसांण । 'दलावत' दूठ जिसा दइवांण' ॥ ४६५ सुजावत'' साहिब-खांन सकाज । रिमां सिर झाटत झाट नराज'२ । विढे भड़ ऊहड़ लोह विछेक'४ । इतां सिरपोस 'वांकौ १५ भड़ एक ।। ४६६ 'बँक १६ भड़ और वियौ' जुध बाज'८ । सझे खळ साबळहूंत सकाज । गडां'६ जिम उलाळियौ दंग १ रीठ २ । धरा मझि जाय पड़े चखि धीठ ।। ४६७
१ ख. चूडावत । ग. चंडावत । २ ख. विजपाळ । ३ ख. रावपाल। ४ ख. दुरज्जण । ग. दुरइझण। ५ ख. बिरदैत । ६ ख. भर । ७ ख. पूरबीया । ग. पूरविया । ८ ख. ग. दूद। ख. ग. जिसा । १० ख. 'दईवांण। ११ ख. ग. सूजावत । १२ ख. नाराज । ग. नाराच । १३ ख. बिढ़े। १४ ख. वछेक। १५ ख. बंको । ग. वांको । १६ ख. बंके। १७ ख. पोरबीयो। १८ ख. ग. वाज । १६ ख. ग. गाडा। २० ख. ऊललि । ग. ऊलळि । २१ ख. ग. रौद । २२ ख. ग. गरीठ। २३ ख. वष ।
४६५. जुड़े - भिड़ता है, युद्ध करता है। दुरज्जण - दुर्जनसिंह । नाहर - नाहरसिंह ।
पूरविया - चौहान वंशकी एक शाखा। अवसांण - युद्ध । दइवांण – वीर, योद्धा ।
४६६. झाटत - काटता है । नराज - तलवार । विढे- युद्ध करता है। ऊहड़- राठौड़
वंशकी ऊहड़ शाखाका वीर । सिरपोस - शिरस्त्राण, श्रेष्ठ। वांको-विक्रमसिंह। ४६७. बैंक - विक्रमसिंह । औरवियो - युद्धमें झोंक दिया। बाज - घोड़ा। सझे - संहार
करता है। साबळहूंत - भाला विशेषसे । गडां - ( ? ) । उलाळियौ - गिरा दिया। दंग रीठ - ( ? ) । चखि धीठ - ( ? )।
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१४२ ]
सूरजप्रकास
भयांणक' दीसत यौ भमरूत । अखाड़य' दत्त' जिसा अवधूत । रँगै हम सावळ६ काटिय रूक । भयंकर झाट करै खळ भूक ।। ४६८ उडै खग आछर सीस अपार । धरै रुंडमाळ विचै जटधार । पड़े असवारतणा धड़ पाय । जटै अरि सीस पड़े लगि जाय ।। ४६६ जुड़े इम साबळ व्याकूळ जीव । हुवा अवतार घणा हयग्रीव । करै चुखचुख्ख घणा मुगळांण' । पोथी जिम वंदर' वेद पुरांण ॥ ५०० रचै तिण मौसर'२ योगिणी' रास । समै इम पारेण 'बंकीयदास' । तठे 'हरियंद' तणौ'४ मसतांन । दियै १५ खग झाट खळां सिवदांन ।। ५०१ जुड़े तिणवार उदावत'६ 'जैत' । पछाड़त मार' खगां पखरैत ।
१ ग. भयानक । ख. भयाणष। ३ ख. यूं ३ ग. अषा डाय। ४ ख. दत। ५ ख. ग. रंगे। ६ ख. ग. साबळ । ७ ख. ग. काटीय । ८ ख. सोभत । ग. सोबल । १ ख. करे। १० ख. किलमाण। ११ ख. बंदर । १२ ख. मौसरि। १३ ख. जोगणि । ग. योगणि। १४ ग. तणो। १५ ख. दीये। १६ ख. ग. ऊदावत । १७ व. मीर ।
४६८. भमहत - शस्त्र प्रहारोंसे क्षत-विक्षत शरीर वाला। दत्त - दत्तात्रय ऋषि । रूक -
तलवार । भूक - ध्वंस । ४६६. पाछर - प्रहार । जटधार - रुद्र, महादेव । ५००. चुवचुस्ख - खंड-खंड । मुगळांण - मुगल, यवन । ५०१. मौसर - अवसर । पारण - युद्ध । मसतान - मस्त । ५०२. उदावत जैत - उदावत शाखाका राठौड़ जैतसिंह । पछाड़त - गिराता है। पखरैत -
कवचधारी योद्धा।
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सूरजप्रकास
[१४३ 'सदौ'' 'कुसळावत' जंग सधीर । वढे खग झाट तठे वर वीर' ॥ ५०२ 'विहारिय” संभ्रम झोकि व्रहास । दळा खळ वीच लड़े गुणदास' । विढे 'चंद' 'स्याम' तणौ विकराळ । वहै खग झाट कटंत बंगाळ ॥ ५०३ हिचै भड़ सिंधल चंद्रप्रहास । समोभ्रम 'वीठल'. जीवणदास । जुड़े भड़ खेतसियोत'' सुजंग । 'अखौ १२ धनराज तणौ अणभंग ।। ५०४ विढ़े भड़ भाटिय' यूं जुधवेर१४ । मंडोवर आगळ जैसलमेर । अणी कढ' हाकलबाज'८ उडांण । भिड़े रिणछोड'६ तणौ ऊदभांण ॥ ५०५ हकारत सूर वकारत१ हेक । करै जुध भूक अनेक २ अनैक ।
१ ग. सदो। २ ख, बिढ़े। ३ ख. बीर। ४ ख. बिहारीय । ग. विहारीय। ५ ख. दलां । ग. बळां । ६ ख. बिढ़े। ७ ख. विकराल । ८ ख. बाहै । ग. वाहै। १ ख. सीधल । ग. सिंधल। १० ख. बीठल । ११ ख. पेतसीयौत । १२ म. अषो । १३ ख. ग. भाटीय। १४ ख. युधवेर । १५ ख. ग. जेसलमेर । १६ ख. कट । १७ ख. हाकलि । १८ म. बाज । १९ ख. रणछोड। २० ख. उदाण । ग. उदभाण। २१ ख. बकारत । २२ ख. ग. अनेक अनेक ।
५०२. सदो- शार्दूलसिंह । कुसळावत - कुशलसिंहका पुत्र । ५०३. विहारिय - बिहारीदास । संभ्रम - पुत्र । वहास - धोड़ा। चंद - चंद्रसिंह । स्याम -
श्यामसिंह । बंगाळ - यवन, मुसलमान । ५०४. हिचं - युद्ध करते हैं । सिंघल - राठोड़ोंकी सिंघल शाखाका वीर, योद्धा । चंद्रप्रहास -
तलवार । वोठळ - विट्ठलदास । ५०५. प्रागळ – रक्षक रूप, अगाड़ी। उडांण - दौड़ । ऊदभांण - उदयभाणसिंह।
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१४४ ]
सूरजप्रकास सत्रां घट झाट' दिये' समसेर । महारिण' वीच हुऔं' गिरमेर ॥ ५०६ अड़ीखंभ झोक लगै अवसांण । भटी इम 'भांण' बखांणत भांण । समोभ्रम 'सूर' खळा समराक । 'हठी' असि हाकलियौ करि हाक ।। ५०७ सिलैबध घाट उझेलत' सेल । खेल नट जांणिक भागळ१२ खेल । घमंघम चोट करै घमचाळ । बँगाळ उलाळ रगत्र बंबाळ' ।। ५०८ पड़े भड़ रोद लुहो'५ रँग पूर । सुता' सिंध जांणिक चाढि सिंदूर । पड़े१८ सिरहेक जुजां दंड' पार । तडै २२ धरि रोस' कढी तरवार ।। ५०६ वहै ४ खग ऐम 'हठी'२६ विकराळ । कराळक झाळ अताळत काळ ।
१ क. छांट। २ ख. ग. दिये। ३ ख. माहारण। ४ ख. वीचि । ५ ग. हुप्रो। ६ ख. ग. भाटी। ७ ग. वांणत । ८ ख. षलां। ६ ख. हालीयौ। ग. हाकलियो । १० ख. सिल्है। ११ ख. उझेलत । ग. ऊझेलत । १२ ख. भग्गल । १३ ग. बबंबाळ । १४ क. रोह। १५ ख. लौही। ग. लोही। १६ ख. सूता। १७ ख. ग. सिघ ।
ख पडे। १४ ख. सर। २० ख. भुजा । २१ ख. डंड। २२ ख. ग. त। २३ ग. रोस। २४ ख. बाहै । ग. वाहै। २५ ख. एम। २६ क. हढी। २७ ख. बिकराळ।
५०७. अडीखंभ - जबरदस्त । झोक - धन्यवाद । अवसांण - युद्ध, अवसर । भटी
भाटी वंश । भांण - उदयभाणसिंह। समराक - योद्धा । हठी - हठीसिंह । हाक
लियौ-हांका। हाक - जोशपूर्ण तेज आवाज । ५०८, जाणिक - मानों। भागळ खेल-ऐंद्रजालिक खेल । घमचाळ - युद्ध । बॅगाळ -
यवन । रगत्र - रक्त । बंबाळ - लाल । ५०६. रोद-मुसलमान । ५१०. हठी- हठीसिंह । कराळक - भयंकर । प्रताळत - ( ? ) । काळ - यमराज ।
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सूरजप्रकास
। १४५
कळाहळ' हूंकळ' ऊकळ काट । झळाहळ वाहत वीजळ झाट ॥ ५१० भळाहळ छूटत' स्रोण भभक्क' । डळाहळ सांस उडै डहचक्क । खळाहळ स्रोण तणा घण खाळ । 'हठी' खग वाहत एम हठाळ ।। ५११ समोभ्रम 'नाहर' जूटत 'सूर' । चँद्रासक मेछ करै चकचूर । पेखे इम पोरस'१ दोरण पूर । सराहत २ 'सूर' तणौ हथ सूर ।। ५१२ कळायण'" वीच१५ लड़त करूर ।'पतौ'१६ इंद्र भांण तणौ" वदपूर । 'नाथौ' 'अमरावत' खाग उनाग । 'जगावत' जूटत सूर ब्रजागि१८ ।। ५१३ उदावत' 'जीवण' वीजळ ° दाव' । जुड़े 'सुरतांण' 'पदम्म' २३ सुजाव ।
१ ख. ग. काळाहल । २ ख. हूकल । ३ ख. बाहत । ४ ख. बीजल । ५ ख. छूणत । ६ ग. भभक । ७ ख. सीस । ८ ख. बाहत । ६ ख. ग. येम। १० क. पेषे । ११ ख. पौरस । १२ ग. सराहथ । १३ ख ग. तणा। १४ ख. ग. काळायण । १५ ख. बीचि । १६ ग. पतो। १७ ग. तणो। १८ ख. व्रजाग। १६ ख. दूदावत । ग. दुदावत । २० ख. ग. बीजल । २१ ख. दास। २२ ख. पदम । ग. पदम ।
५१०. कळाहळ - कोलाहल । ५११. भळाहळ - तेज । स्रोण - शोणित, रक्त । भभक्क - तेज धारा। डळाहळ - (?) ।
डहंचक्क - (?) । खळाहळ - तेज ध्वनियुक्त प्रवाह । घण - बहुत । खाळ -
नाला। हठाळ - अपने हठ पर दृढ़ रहने वाला। ५१२. नाहर - नाहरसिंह । चंद्रासक - तलवार । मेछ - यवन । चकचूर - ध्वंस, संहार ।
पेखे - देख कर। हथ - हाथ । सूर - सूर्य । ५१३. कळायण - घटा, सेना। पतौ - प्रतापसिंह । उनाग - नंगी । ब्रजागि - जबरदस्त । ५१४. उदावत जीवण - राठौड़ोंकी उदावत शाखाका जीवरणसिंह । सुरताण - सुल्तानसिंह।
पदम्म - पद्मसिंह । सुजाव - पुत्र ।
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१४६ ]
सूरजप्रकास 'सतावत'' 'माल' भड़त' सुभेद । अनै 'वजपाळ' सुजाव 'उमेद' ।। ५१४ विढे खग पीथल'रौ 'बखतेस' । वडा' खळ थाट हणे लघुवेस । 'विजौ'५ 'पदमेस' तणौ वरवीर' । मंडे रिण मांझ पड़े बहु मीर ॥ ५१५ 'जसावत' सूरतसिंघ व्रजागि । लड़े 'सिव' 'खेतल'रौ धख लागि । 'सूरावत' 'देव' लडैत समांम । सझै जुध साहिब ऊत 'सग्रांम' ॥ ५१६ विढे भड़ 'जैत' तणौ बखतेस । 'लखौ' 'हरियंद' सुजाव लड़ेस । 'रसावत'५ 'कन्न'१२ लड़े रिमराह । 'दलौ' जयसींघ सुजाव दुबाह ।। ५१७ 'मधौ' करणोत४ लड़े मगरूर । समोभ्रम 'नाहर' 'डूंगर' 'सूर' ।
१ ख. श्रुतावत । २ ख. लडंत । ग. भड़त। ३ ख. बिढ़े। ४ ख. बडा। ५ ख. बिजो। ६ ख. बरबीर। ७ ख. बौहो । ग. वौह । ८ ख. सूरतसींघ । ६ ख. साहिव। १० ख. बिढ़े। ११ ख. ग. वासावत । १२ ख. कंन । ग. क्रन । १३ ख. ग. जयसिंघ। १४ ख. ग. करणीत ।
५१५. पीथल - पृथ्वीराज, या पृथ्वीसिंह। बखतेस - बखतसिंह । विजो - विजयसिंह ।
पदमेत – पद्मसिंह। ५१६. सिव - शिवदानसिंह। खेतल - खेतसिंह । धख - प्रबल इच्छा। समांम - बढ़िया,
उत्तम ! सग्राम - संग्रामसिंह। ५१७. जैत - जैतसिंह । लखौ - लक्ष्मणसिंह । हरियंद - हरिसिंह । रसावत - रायसिंहका
पुत्र । ऋन्न - कर्णसिंह। ५१८. मधौ - माधोसिंह । करणोत - राठौड़ वंशकी उपशाखा । नाहर - नाहरसिंह ।
डूंगर - डूंगरसिंह।
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सूरजप्रकास
[ १४७
तठे 'भगवान' तणौ ‘सगतेस' । जुड़े 'अजबेस'' तणौ 'जगतेस' ॥ ५१८ अनावत' दूठ 'गजो' उणवार । जुड़े हरियंद' सुजाव जुझार । अंगोभ्रम 'तेजल' 'बाघ'५ अबीह । समोभ्रम 'रूप' 'अनौ'६ जुधसीह ॥ ५१६ 'जगावत' मोकमसींघ सजोस । तिकै जुध 'केहरि' 'मांन'' तणोस''। पतावत गोपियनाथ'२ प्रचंड । खळां सिर झाट ४ दियै भलखंड ॥ ५२० 'अखौ १६ खग खेल रमै दइवांण' । समोभ्रम दारुण'८ जोध 'सुजाण' । समोभ्रम देव करन्न' सुधन्न । करै खग झाटक खीव १ करन्न ॥ ५२१
१ ग. प्रजवेस । २ ख, अनाव । ३ ख. जगौ । ४ ख. जुझार । ५ ग. वाघ । ६ ग. अनो। ७ ख. मौकमसींघ । ग. मौकसिघ । ८ ख. ग. तिक। ६ ख. केहरी। १० ख. माण। ११ ग. तणोस । १२ ख. ग. गोपीयनाथ । १३ सिरि । १४ ख. झाल। १५ ख. ग. दीये। १६ ख. ग. अषौ। १७ ख. दईबांण। १८ ख. दारण । १९ ख. करंन। २० ख. सुधंन्न । ग. सुधन। २१ ख. षीमकरन । ग. खीमकरन ।
५१८, भगवान - भगवानसिंह। सगतेस - शक्तिसिंह । अजबेस - अजबसिंह । जगतेस
जगतसिंह। ५१९. अनावत - अनाड़सिंहका पुत्र । दूठ - जबरदस्त । गजौ - गजसिंह । हरियंद -
हरिसिंह । जुझार - जूंझारसिंह । अंगोभ्रम - पुत्र । तेजल - तेजसिंह । बाघ - बाघसिंह। प्रवीह - निडर, निर्भय, वीर। रूप - रूपसिंह। अनी - अनाड़सिंह।
जुधसोह - जोधसिंह । ५२०. केहरि - केसरीसिंह। मान - मानसिंह। पतावत - प्रतापसिंहका पुत्र। ५२१. अखौ - अक्षयसिंह ।
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१४८ ]
सूरजप्रकास
समोभ्रम दारुण सूर 'किसोर' । जुड़े फतमाल खगां वरजोर' । धारूजळ वाहत' ग्रीखम धूप । मंडै जुध 'देव' क्रनोत' 'मनूप' ।। ५२२ विढे भड़ 'माहव'रौ 'विजपाळ'" । हरौ 'सकताव'८ सूर हठाळ । हिच 'चतुरेस'तणौ हरिनाथ । 'नथौ' भड़ गोरधनोत'' सनाथ ।। ५२३ फतावत "झूझ' लड़त अफेर । सत्रां जम सेर जही समसेर । 'जसौ'१२ सिवदान तणौ जमरांण । 'अजौ' भड़ 'केहर'रौ दइवांण' ।। ५२४ सुरां गुर सांमत'१६ 'सूर' सुजाव । 'जसावत' 'माहव' क्रोध जगाव । समोभ्रम 'मेघ'१७ 'झुंझार''८ सधीर ।
वढे ६ विरमांण 'जसावत' वीर ।। ५२५ १ ख. बरजोर । २ ख. बाहत । ३ ख. ग. मंडे। ४ ख. क्रनौत । ५ ख. बिढ़े। ६ ख. माहाबरौ। ७ ख. बिजपाल । ८ ख. ग. सकतावत । ९ ग. चतुरेसतणो । १० ख. नायौ। ग. नाथो। ११ ख ग. गोरधनौत । १२ ग. जसो। १३ ग. तणो। १४ ख. दईवांण । १५ ख ग. सूरां । १६ ग. सामंत । १७ ख. सेष । १८ ख. झूझार। १६ ख. बिढ़े।
५२२. किसोर - किशोरसिंह । धाराजळ - तलवार । ग्रीखम - ग्रीष्म । कनोत - करणात
शाखाको । मनूप - मनरूपसिंह । ५२३. हरी- वंशज । सकताव - राठौड़ोंकी एक शाखा । हिचै - युद्ध करता है । चतुरेस -
चतुरसिंह। नथौ- नाथूसिंह । ५२४. फतावत -- फतहसिंहका पुत्र । झूझ - युद्ध । अफेर – न मुड़ने या पीछे हटने वाला,
वीर । जसौ- जसवंतसिंह । जमरांण-जबरदस्त, यमराज । प्रजो- अजीतसिंह ।
केहर - केसरीसिंह। ५२५. सुरां गुर - महावीर, बड़ा योद्धा । सांमत - सांवत सिंह। सूर - सूरसिंह । सुजाव -
पुत्र । जसावत - जसवंतसिंहका पुत्र । माहव - माहवसिंह । मेघ - मेघसिंह । झंझार - जुझारसिंह । विरमांण – वीरभाणसिंह ।
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सूरजप्रकास
[ १४६ समोभ्रम 'सूंदर" सूरजमाल' । 'अजौ' 'हरिनाथ' सुजाव अपाल । 'अखावत' 'सहसमाल' अरोड़ । मिळे घण घाय खळां घड़ मोड़ ।। ५२६ वहै खग प्राय खळा झळ वेग । तुटै घण आप तणे सिर तेग । सथी करि मेछ घणा समराथ । भटी भड़ तांम पड़े भाराथ ।। ५२७ सुरत्रिय'' ताम'' वरे सस धीर । रथां चढि स्रगि' वसरणधीर । अंगोभ्रम 'राजड़' सूर 'अजब्ब१४ । गुडै १५ खळ वीजळ' झाट गजब्ब'७ ॥ ५२८ समोभ्रम 'गोकळ' 'पातल' साह । बिभाड़त रोद खड़ा ८ हळवाह ।
१ ख. सुंदर । २ ख. सूरिजमाल । ३ ख. तहस । ४ ख. मिले । ५ बाहै । ग. वाहै। ६ ख. फलां। ७ ख. ग. साथी। ८ ख. ग. भाटी। १ ख. पडे । १० ख. ग. सुरत्रीय। ११ ख. ग. ताम । १२ ख. श्रुगि । ग. भुगि । १३ ख. ग. वसे । १४ ख. प्रज्जब। ग. अजब । १५ ख. ग. गोडे। १६ ख. बीजल। १७ ख. गज्जब। ग. गजब। १८ ख. षडा। १६ ख. ग. हळबाह ।
५२६. सूबर - सुन्दरसिंह । सूरजमाल - सूर्यमल । अजौ - अजीतसिंह । सुजाव - पुत्र ।
अपाल - जो किसीका रोका न रुके, वीर । अखावत - अक्षयसिंहका पुत्र । अरोड़ . जबरदस्त । मिले 'घाय - बहुतसे घावोंसे क्षतपूर्ण हो गया हो। खळा 'मोड़ -
शत्रु-दलको पराजित करने वाला। ५२७. तुटै' 'तेग - अपने शिर पर बहुत-सी तलवारें तोड़ाता हुआ। सथी समराथ -
बहुतसे यवनोंको युद्धस्थल में अपने साथ गमन करने वाला बना कर । भटी' 'भराथ -
तब भाटी योद्धा युद्धस्थलमें धराशायी हुा । ५२८. सुरत्रिय - अप्सरा। ताम - उन, तब । सस धीर - ( ? ) । नगि - स्वर्ग ।
अंगोभ्रम - पुत्र । राजड़ - राजसिंह । अजम्ब – अजबसिंह । ५२९. गोकळ - गोकुलसिंह। पातल साह - प्रतापसिंह । बिभाड़त - संहार करता है।
हळवाह - बलभद्रसिंह (?) ।
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१५० ]
सूरजप्रकास
महाभड़' सूर 'फतावत' 'मांन' । तेगां झट रोद' हणे मसतांन ।। ५२६
3
'विजावत ' ' 'रूप' लड़ै
४
रिण वार* ।
.५
धुबै* खळ थाट सिरै खग धार ।
वीर' ।
सधीर ॥ ५३०
विहारिय' दास तणौ 'चंद'
सुरां
'अणदावत' 'लाल'
नरनाह ।
नरावत 'रूप' लड़े 'रासौ' भड़ 'खेतल' रौ रिम राह | 'द्वरावत"" वाजत" घोर दमांम |
9 3
रमै खग झाट खळां हळिराम ।। ५३१
1
'अखौ' 'प्रिथीराज" " सुजाव अपाल * 'अनावत' वेढ करै 'अखमाल' |
६
११७
'अजौ" जगमाल सुतन्न" अभंग । जगावत 'लाल' करें खग जंग || ५३२
४ ख. बार । ५ ख. ग.
१ ख. ग. महाबळ । धुवं ।
२ ख. ग. रोद । ३ ख बिजावत । ६ ख. बिहारीय । ग. विहारीय । ७ ख. बीर । ८ ख. सूरौ । ग. सूरां । ६ ग. रे । १० ख. ग. द्वारावत । ११ स्व. बाजत । १२ ख. मरं । १३ ख. हरिराम । १४ ख. ग. प्रिथी । १५ ख. अपार । १६ ख. बेढ़ । १७ ग. प्रजो । १५ ख. ग. सुतंन ।
५२६. फतावत - फतहसिंहका पुत्र । मांन मानसिंह । रोद ५३०. विजावत - विजयसिंहका पुत्र । रूप-रूपसिंह । चंद श्रानन्दसिंहका पुत्र । लाल - लालसिंह |
यवन । मसतांन - मस्त ।
-
५३१. नरावत - राठौड़ोंकी एक उपशाखा, इस शाखाका वीर । रूप - रूपसिंह । नरनाह नरनाथ, यहां वीर अर्थ है । रासौ- रायसिंह । खेतल- खेतसिंह । रिम राह शत्रुध्वंसक, शत्रु दल पर रास्ता करने वाला । द्वरावत - द्वारकादासका पुत्र । दमांम नगाड़ा । हळिराम- बलभद्र सिंह ।
चंद्रसिंह । श्रणदावत
५३२. अखौ - अक्षयसिंह । श्रपाल - वह जो किसीकी रोकमें न रहे, वीर । नाड़सिंहका पुत्र । श्रवमाल - अक्षयसिंह । ग्रजौ - अजीतसिंह । जगावत सिंहका पुत्र । लाल-लालसिंह । खग जंग - तलवारका युद्ध ।
श्रनावत
-
जगत
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सूरजप्रकास
[ १५१
करै जुध 'भाखर'रौ 'महि' कन्न' । 'अनौ' 'उगरावत' क्रोध उपन्न । वळोवळ' मेछ खगां चह चंद । करै 'सहसावत' सूर 'मुकुंद' ।। ५३३ धमोड़त साबळ मूगळ' धींग । समोभ्रम 'पातल' अम्मरसींग । 'जसावत' जीवणदास सजोस । रिमांतरवार हण घण रोस ॥ ५३४ समोभ्रम 'दूद' 'विहारिय''• सूर । 'मधावत' 'बखतसी११ मगरूर । घटां खग लोह करै घमसांण । पटायत'३ भाटिय'3 एह प्रमाण ॥ ५३५ भिड़े खळ सूर 'उमेद' भुवाळ । 'मधावत' जोध 'जगौ' मछराळ । अ. 'मुकंदौ' भड़ वीर सु अंग । 'अनावत' जोवणदास अभंग ।। ५३६
१ ख. महै। २ ख. कंन । ग. कन। ३ ख. उप्पंन । ग. उप्पन । ४ ख. वलोवत । ५ ख. करै। ग. केरे। ६ ग. मुगल । ७ ग. धीघ। ८ ख. अंम्मरसींघ । ग. अम्मरसीध। ६ ख. रिमांतरवारि। १० ख. बिहारीय । ग. विहारीय । ११ ख. ग. बष्षतसी। १२ ख. पटाइत । १३ ख. ग. भाटीय। १४ ख. भूवाल। १५ ख. बीर ।
५३३. भाखर - भाख रसिंह । महिन्न - महकरणसिंह ! अन - अनाड़सिंह । उगरावत -
उगरसिंहका पुत्र । उपन्न - उत्पन्न । वळोवळ - चारों ओर । सहसावत - सहस
सिंहका पुत्र । मुकुंद – मुकुन्दसिंह । ५३४. धमोड़त - प्रहार करता है। साबळ - भाला विशेष । पातल - प्रतापसिंह । जसा
वत - जसवंतसिंहका पुत्र। ५३५. दूद – दुर्जनसिंह। विहारिय - बिहारी सिंह । मधावत - माधोसिंहका पुत्र । घम
सांण - युद्ध । पटायत - जागीरका स्वामी, जागीरदार । भाटिय - भाटी। ५३६. उमेद - उम्मेदसिंह । भुवाळ - राजा। जगौ - जगतसिंह । मछराळ - वीर, योद्धा।
मुकंदौ - मुकुंदसिंह । अनावत - अनाड़सिंहका पुत्र ।
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१५२ ]
सूरजप्रकास
*समोभ्रम' 'जैत' ज 'नाहर साह' । समोभ्रम 'नाहर' 'राम' सराह । समोभ्रम भाउएदास सकाज । तठे भड़ 'रांम' कंठीर तराज* ॥ ५३७ समोभ्रम 'साहिब भांण' सराह । सत्रां खग झाट लड़े 'गजसाह । 'हरी' सुत जूटत सूर 'हिंदाळ' । झटां खग खेलत पौरस झाळ ।। ५३८ धुबै खग 'केहर' बीजळ धार । भिड़े 'भगवान' तणौ गज भार । मँडै रण 'सूर' तणौ 'पदमेस' । 'सुजावत'६ 'हिम्मत'" जंग सझेस ।। ५३६ भऊ सुत हींद' वजै गज भार । सझै 'कुसळेस' तणौ 'सिरदार' । विढे सुत 'जोग' करै खगवाह' । सत्रां धड़ सीस 'बहादर१२ साह' ।। ५४०
१ ख. ग. समोभ्र।
*...*चिन्हांकित पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं। २ ख. गजगाह। ३ ग. धुवै। ४ ग. तणो। ५. ख. ग. मंडे। ६ ग. सूजावत । ७ ख. हिम्मत। ८ ख. ग. भाऊ। ६ ख. हिंद। १० ख. बिढ़े। ११ ख. षगबाह । १२ ख. ग. बाहादर ।
५३७. नाहर - नाहरसिंह । राम - रामसिंह । कंठोर - सिंह । तराज - समान । ५३८. गजसाह - गजसिंह । हरी - हरिसिंह । जूटत – भिड़ता है। ५३६. केहर - केसरीसिंह। बीजळ - तलवार । भगवान - भगवानसिंह। गज भार -
हाथी समूह । सूर - सूरसिंह । पदमेस - पदमसिंह। सूजावत - सूरसिंहका पुत्र ।
हिम्मत - हिम्मतसिंह । ५४०. भऊ- भाऊसिंह । हीद - हिन्दूसिंह । कुसळेस - कुशलसिंह । सिरवार - सरदार
सिंह । जोग - जोगसिंह । बहादर साह - बहादुरसिंह ।
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सूरजप्रकास
[ १५३ समोभ्रम 'रूप' लड़े 'अमरेस' । सत्रां 'सबळावत' वीर' सझेस । अबीह 'प्रताप' तणो 'उगरेस' । सझै जुध 'सांमत'रौ 'सगतेस' ।। ५४१ मुडे' 'उग्रसेण तणौ ‘फतमाल' । लुहां' खळकट करै गंज 'लाल' । धिखे भभकै रण क्रोध धियाग' । खड़ख्खड़ ढाल झड़झड़ खाग ॥ ५४२ उतारत नीर खळां अवगाढ़ ।
महाबळ नीर चढ़ावत 'माढ़' । चौहान-विढ़े चहुवांण जढे विकराळ ।
उजाळत संभर संभरवाळ ॥ ५४३ , उरै जुध बीच'' तुरी 'अजबेस'१२ । भुहारव'3 ऊपर मूंछ भिड़ेस । मुखै १५ चख चोळ सरूप मजीठ ।
धबोड़त" साबळ मूगळ'७ धीठ ॥ ५४४ १ ख. बीर। २ ख. ग. मंडे। ३ ख. सुद्रसेण । ग. उग्रसेण। ४ ख. ग. लोहां । ५ ख. ग. खळटूक । ६ ख. ग. धियाग । ७ ख. ग. षडषड। ८ ख. झडझड । ख. बिढ़े। १० ख. वोरे । ग. वोरै। ११ ग. वीच। १२ ग. अजवेस। १३ ख. भौंहारव। १४ ग, उपर। १५ ख. मुष्ष । ग. मुखे। १६ ख. धमोड़त। १७ ग. मुगळ ।
५४१. रूप - रूपसिंह । अमरेस - अमरसिंह । अबीह - वीर । प्रताप - प्रतापसिंह । उग.
रेस - उगरसिंह। सांमत - सावंतसिंह । सगतेस - शक्तिसिंह । ५४२. फतमाल - फतहसिंह । लुहां - लोहों, शस्त्रों। खळकट - संहार। लाल - लाल
सिंह । धिख - प्रज्वलित होता है। भभक- उमड़ता है। धियाग - प्रासमान ।
खड़खड़ - ध्वनि विशेष । झड़झड़- कटना क्रिया, कटते हैं। ५४३. नीर - कांति । अवगाढ़ - वीर । माढ़- जयसलमेर राज्य। संभर - सांभर ।
संभरवाळ - चौहान । ५४४. उर - झोंकता है । तुरी- घोड़ा । अजबेस - अजबसिंह । भुहारव – भौंहों।
भिड़ेस - स्पर्श करती है। चख- नेत्र । चोळ - लाल । धबोड़त -प्रहार करता है। साबळ - भाला। धीठ - ढीठ, वीर।
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१५४ ]
सूरजप्रकास
उवक्कत' घाव रगत्र उलाळ । काळीभर' पत्र पिवंत' कराळ । हिचै जुध 'लाल' तणौ हरियंद । मिळे' गज घूमर' जांणि मयंद ॥ ५४५ सझै खग वाह खळां समराथ । नरां सिणगार 'अजावत' 'नाथ' । रिमां सिर पाछट खाग रंगेस । मँडै जुध 'सूर' तणौ 'मुकँदेस' ॥ ५४६ असुरां घट बाढ़त खाग अरोड़ । छछोहक 'सूर' तणौ रिणछोड' । वेरीहर'' वाढत' वीजळ' वाह' । 'मुरारिय'५” संभ्रम 'माधव साह' ॥५४७ 'दलावंत' हीमतसींघ'६ दुबाह । 'रसौ"" अजबेस'' तणौ रिमराह । 'कुजावत'' 'रत्तन'• लोह करत्त' । विरै२२ 'कुसळावत' सूर 'वखत्त २३ ॥ ५४८
१ ख उबक्कत । ग. उवकत । २ ख. कालीभरि । ३ ख. ग. पोवंत । ४ ख. ग. मिले। ५ ख. घूमर । ६ ख. बाह। ७ ख. ग. पाछटि। ८ ख. ग. मंडे। ६ ख. अरी। १० ख. ग रणछोड। ११ ख. बैरीहर । ग. वेरीहर । १२ ख. ग. ढाहत । १३ ख. बीजल । १४ ख. बाह। १५ ख. ग. मुरारीय। १६ ख. हिम्मतसिंघ । ग. हिम्मतसिंघ। १७ ख ग. रासौ। १८ ग. अजवेस। १६ ख. ग. कोजावत। २० खः रमंन । २१ ख. करत । ग. करत। २२ ख. बिढ़े। २३ ख. बष्षत । ग. वष्षत ।
५४५. उवक्कत - उमड़ता है। उलाळ - ऊंचा, ऊपर। लाल - लालसिंह। हरियंद
हरिसिंह । गज घूमर - गज-समूह, गज-दल । जांणि - मानों। मयंद - सिंह। ५४६ खग वाह - तलवारका प्रहार | समराथ - समर्थ, वीर। अजावत - अजीतसिंहका
पुत्र । नाथ - नाथूसिंह । सूर - सूरजसिंह । मुकंदेस - मुकुंदसिंह । ५४७. अरोड़ - जबरदस्त । छछोहक - तेज । सूर - सूरजसिंह। रिणछोड़ - रिणछोड़
दास नामक वीर । वेरीहर- शत्रुवंशज, शत्रु। बाढ़त -- काटता है। वीजळ वाह -
तलवारका प्रहार । ५४८. कुसलावत - कुशलसिंहका पुत्र । रतन - रत्नसिंह। वखत - बखतसिंह ।
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सूरजप्रकास
[ १५५ 'धिरा'हर' 'नाहर' मूगळ' धोंग । सझै 'सबळावत' दुरजणसींग' । झुकै सर साबळ वीजळ' झेलि । पड़े रण खेत खळां घण पेलि ।। ५४६ वरे रंभ ताय उडाय विमांण । चढे अमरापुर सूर चह्वांण' । दुरज्जण''- सींघ सुजाव दुबाह' । वधै५३ मधि राज करै खगवाह ।। ५५० लड़े हरिनाथ तणौ धख लागि । बडौ१५ भड़ गोवरधन्न' व्रजागि१६ । 'अभैमल' चाड वडै'" अवसांण ।
इसी विध'८ जंग करै चहुवांण ॥ ५५१ सोनगरा-मँडै ६ भड़ सोनंगरा जुध मांहि ।
सझे जुध ओरवियौ'५ 'दळसाहि' । कढ२२ खग वाह करंत कराळ । चका खळ ट्रक हवै धख चाळ१५ ॥५५२
१ ख. ग. धाराहर। २ ख. मंगल । म. मुगळ । ३ ख. दुजणसींघ । ग. दुर्जनसिंघ । ४ ख. झुके । ग. झूक। ५ ख. ग. बीजल । ६ ख. ग. पडे। ७ ख. ग. षेति । ८ ख. बिमांण । ६ ख. चढ़े । १० ख. चूह्वाण । ११ ग. दुरजण । १२ ग. दुवाह । १३ ख. बधे । १४ ख. षगबाह । १५ ख. बडौ । ग. वडो। १६ ग. वझ्झागि । १७ ख. बडे। १८ ख, ग. विधि । १६ ख. ग. मंडे। २० ख. सोनगिरा। २१ ख. ग. पोरवीयौ। २२ ख. कटे । ग. कढ़े। २३ ख. बाह । २४ ख. वूक । २५ ख. ग. धकचाळ।
५४६. धिरा-धीरसिंह । · नाहर - नाहरसिंह । धींग - जबरदस्त । सबळावत - सबल
सिंहका पुत्र । ५५०. वरे- वरण कर के। रंभ - अप्सरा । चह्वाण - चौहान वंशका राजपूत । दुबाह -
वीर। ५५१. धख - जोश । अभंमल - महाराजा अभयसिंह । चाउ – रक्षा, सहायता । अवसांण -
अवसर, मौका। ५५२. सोनंगरा-चौहान वंशकी एक शाखा। चका- चक्र, सेना । धखचाळ - युद्ध ।
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१५६ ]
सूरजप्रकास
3
घणा रत डूब' फटा खिळ घाट । पड़ें रत चंदण जांणि कपाट |
४
३
उडे बहुबांण परा वज्र'
ऊकळ ।
रुकां झट ऊपर " बाजत"
रूक ।। ५५३
सार ।
सभै खळ मार छतीसैई वढे" वप" घाव करै जिण वार । 'हरी' सुत' झेलत लौह अँगो अँग वाहत लोह
हजार ।
१३
अपार ।। ५५४
१४
इसी विध" लोह" करे सुरां " गुर खेत पड़े " परीवर" होय वडौं'
अथाह । 'दल साह ' ।
जस पाय ।
3
चढे प्रमाण विमांण" चलाय ॥। ५५५ सकौधर लोक तजै दुख सोक । लहै" सुख अम्मर " अम्मरलोक 1 खग भाट खड़े किलमेस ।
२६
२७.
.२८
२६
'सुरौ' 'दल साह' तणौ 'किसनेस' ।। ५५६
•
२ ख. खट ।
१ क. डब । ६ ख. बज्र । बढ़े।
३ ख. पल । ४ ख. पडे । ५ ख. चहुंवांण । ग. बहूबांण । ७ स्व. ग. ऊपरि । ८ ग. वाजत । ख. ग. छतीसई । १० ख.
११ ख. अप । १२ ख. ग. हरीसुत । १३ ख. ग. बाहत । १४ ख. विधि । ग. विधि । १५ ख. जंग । १६ ख. ग. सूरां । १७ ख. पडे । १८ ख. परीवए । १६ ख. बडौ । ग. वडो । २० ख. ग. चढ़े । २१ ख बिमांण । २२ ख. ग. सकोघर । २३ ग. तजे । २४ ग. लहे । २५ ख श्रंम्मर । ग. अमर । २६ व. अंम्मरलोक । ग. अमरलोक । २७ ख. ग. मंडे । २८ ख. पंडे । २६ ख. ग. सूरौ ।
न
५५३. फटा फट गये ।
भट - प्रहार |
५५४. सार - अस्त्र-शस्त्र । धप - वपु, शरीर । लोह - शस्त्र प्रहार ।
५५६. फिलमेस - यवन, बादशाह । सुरौ सूरसिंह । वलसाह - दलसिंह । किसनेस -
किसनसिंह |
खिळ - दुष्ट, शत्रु !
-
घाट - शरीर ।
रुकां - तलवारों ।
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सूरजप्रकास
[ १५७ पंडोसक' वाह' करै अणपाल । 'दलावत' साहिब-खांन दुझाळ । रमै खग झाट वडौ रजपूत । उठे' 'हिमतेस' दुरज्जण -ऊत ॥ ५५७ किलम्मक' थाट हणे किरमाळ । 'हठी' सुत वैरिय - साल हठाळ । 'सतावत' 'माधव' जंगसजेस । महाबळ 'मोहण'रौ'. 'अमरेस' ॥ ५५८ सतावत'' अम्मरसींघ'३ छछोह । लड़ायक घायक वाहत' लोह । अणी'४ खग झाट हणे दइवांन'५ । जुड़े सुत दुज्जणसींघ' 'जवांन' ।। ५५६ नरांपति" जूटत पौरसनेम । 'जुरावर"८ 'वीरम"रांणग' जेम''।
१ क. पडासक । २ ख. बाह। ३ ख. करे। ग. करै। ४ ख. ऊठ । ग. उठे । ५ ग. दुरजण । ६ ख. किलंमक । म. किलमक। ७ स. बैरीय । ग. वैरीय । ८ ख. जंगसझेस । ६ ख. माहाबळ । ग. महावळ । १० ग. रो। ११ स्व. ग. छतावत । १२ ख. प्रामरीघ । ग. अम्मरसिंघ । १३ ख. बाहत। १४ ल. परी। १५ ख. दईवान । १६ ग. दुजणसीध। १७ ग. नरोपति । १८ ख. ग. जोरावर । १९ ख. बीरम। २० ख. रांणंग । ग. रांणग। २१ ख. ग. जेम।
५५७. पंडीसक- तलवार । बाह-प्रहार । दलावत - दलसिंहका पुत्र । दुझाल - योद्धा।
हिमतेस - हिम्मतसिंह । दुरज्जण-ऊत - दुर्जनसिंहका पुत्र । ५५८. किलम्मक - यवन, मुसलमान । थाट - सेना । किरमाळ - तलवार । हठी- हठी
सिंह। हठाळ - अपनी प्रान पर हठ करने वाला वीर। सतावत- शक्तिसिंहका
पुत्र । माधव - माधोसिंह । मोहण - मोहनसिंह । अमरेस - अमरसिंह। ५५६. लड़ायक - युद्ध करने वाला। घायक - घायल। लोह - शस्त्र । दइवान - वीर।
जवांन -जवानसिंह। ५६०. जुरावर - जोरावरसिंह । वीरम - वीरमदेव सोनगरा शाखाका चौहान । राणग
राणगदेव सोनगरा शाखाका चौहान ।
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१५८ ।
सूरजप्रकास
रचै धर-गूजर प्रारण रोस । जळंधर' नीर चढावत जोस ।। ५६०
जुधहर' अगाळ' दारुण जोध । कछवाह-करै जुध कूरमरा सक्रोध ।
नरूहर ओर तुरो नर नाह । सझे जुध 'केहर'रौ" 'जयसाह' ॥ ५६१ रचै खग पाछट पावक रंग । बँगाळक' ऊडत घाव बरंग' । खळां पनँगां सिर' दाव खगेस । करै 'चंद्रभाण' तणौ' 'कुसळेस ।। ५६२ 'जगावत'. 'माल' खळां जमराव । सझै जुध 'चैन'१५ 'पिराग' सुजाव । तेगां झट वाहत'६ वाजत' त्रंब । 'अँबानयरेस' चढ़ावत अंब ।। ५६३ उठ चत्रकोट वळा'८ उजवाळ६ ।
करै जध नाह° इहां १ कळिचाळ । १ ख. ग. जालंधर। २ ख. जोधाहरि । ग. जोधाहर। ३ ख. ग. प्रागलि । ४ ख. ग. राव। ५ ख. पोरि । ६ ख. ग. सझे। ७ ग. रो। ८ ग. वंगाळक । १ ख. ऊडत । ग. उडत। १० ग. वरग। ११ ख. सिरि। १२ ग. तणो। १३ ख. कुसलेस। १४ ग. सजे । १५ ख. चैत। १६ ख. वाहत। १७ ख. बाजत । १८ ख. ग. छलां। १६ ख. ग. प्रजुवाल। २० ख. नाग। २१ ख. द्रहा।
५६०. धर-गूजर - गुजरात । प्रारण - युद्ध । जलंधर - जालोर नगर । ५६१. जुधहर- राव जोधाके वंशज महाराजा अभयसिंह । करमरा- कच्छवाह वंशके।
नरूहर - कच्छवाह वंशके नरूका शाखाका वीर । केहर - केसरीसिंह । जयसाह -
जयसिंह । ५६२. खग- तलवार । माछट-प्रहार, वार। पावक - अरिन । बॅगाळक - मुसलमान ।
बरंग - खंड, टूक। पर्नेगां- नागों। खगेप्त - गरुड़। कुसळेस - कुशलसिंह ।। ५६३. जगावत - जगरामसिंहका पुत्र । माल - मालदेव। जमराव- यमराज। चैन :
चनसिंह । पिराग - प्रयागसिंह । सुजाव - पुत्र । त्रंब - नगाड़ा। अंबानयरेस -
आमेर नगर के राजा। अंब-कांति, दीप्ति । ५६४. चत्रकोट - चित्तौड़।
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सूरजप्रकास
[ १५६ 'अखावत' मोहणसींघ' उदार । सत्रां घट काढ़त सेल दुसार ॥ ५६४ महाबळ जूटत अम्मलमांण' । 'जुरावर' तेज तणौं जमरांण । हिचै 'महिरांण खळां घट हूंत । कटै असि' हेक लगै वप कूत ।। ५६५ खगां झट वाहत रौद्रव खूर । सझै जुध 'भारथ' संभ्रम 'सूर' ।
हई दळ मूगळ चाढ़त हीक । देवड़ा-महाबळ राड़ करै मछरीक ॥ ५६६
जसावत दौलतसींघ. जगागि । 'जगावत' 'जैत' लड़े ऋध'' जागि । सझै खग झाट निसाट सताब । अबूगिर'२ सीस चढ़ावत आब ॥ ५६७ बँबाळव लोयण घाट वराड़ । 'इँदौ१४ भड़ एम लड़े अवनाड़ ।
१ ग. मोहसिंघ। २ क. अमलमाण । ३ ख. ग. जोरावर । ४ ख. ग. कटे। ५ ख. हसि। ६ ख. लगो। ७ ग. कूत। ८ ख. बाहत । ६ ख. राडि। १० ग. दोलतसिंघ । ११ ख. ग. कुध । १२ ख. पाबूगिर । ग. प्राबूगिर । १३ ख. बराड़ । १४ ख. इंदा । ग. इंदा ।
५६४. प्रखावत-अक्षयसिंहका पुत्र। ५६५. अम्मलमांण - वीर, योद्धा । जुरावर - जोरावरसिंह । हिचं - युद्ध करता है।
महिराण - समुद्रसिंह । कूत - भाला। ५६६. रौद्रव - यवन, भयंकर । खूर - समूह । भारथ - भारतसिंह । सूर - सूरसिंह।
हई - घोड़ा । होक - ( कम्पन ? )। मंछरीक - चौहान वंशका राजपूत । ५६७. जसावत - जसवंतसिंहका पुत्र । जगावत - जगरामसिंहका पुत्र । जैत - जैतसिंह ।
निसाट - यवन, मुसलमान। सताब - शीघ्र । अबूगिर - पाबू पर्वत । प्राब
कांति, दीप्ति । ५६८. बंबाळव - भयंकर, भयावह,. जबरदस्त । लोयण - नेत्र | बराड़ - जबरदस्त ।
इंदौ - इन्द्रसिंह । अवना - प्रानाड़सिंह ।
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१६० ]
सूरजप्रकास 'अनौ' भड़ 'जैत' तणौ अणभंग । जुड़े 'करणावत' देदल जंग ।। ५६८ उठे' 'जगतेस' खळां अजरैत । जुड़े खग झाट समोभ्रम 'जैत' । सुतं मळियागिर' ऊदल'- साह ।
ग्रहै खग वाह' करै गजगाह ।। ५६६ मांगलिया-'हदौ" भड़ गोरधनोत' हठाळ ।
तठे करमाळ करै रिणताळ । सुरां गुर भागचंदोत सकाम । रमै खग झाट 'हिरदय राम' ।। ५७० वडा खळ ढाहत साबळ' वाह । 'गजावत' 'खीम' करै गजगाह । धसै' जुध मांगळिया'२ भड़ धूत । हुसै'3 दळ मारण नेजम१४ हूंत'५ ।। ५७१ 'हरी' 'सबळेस' तणौ' करि हाक ।
करै खग भूक घणा किलमाक । १ ग. उठे। २ ख. ग. मलियागर। ३ ग. उदल । ४ ख. ग्रहे । ५ ख. बाह । ६ ग. हदो। ७ ख. गोरधनौत । ८ ख. हिरद्दय । ६ ख. बडां। १० ख. सावळ । ११ ख. धसे। १२ ग. मांगलीया । १३ ख. दुस । ग. दूस। १४ ख. ग. नजम । १५ ख. ग. दूत। १६ ग. तणो।
५६८, अनी - अनाड़सिंह। जैत - जैतसिंह । जुड़े - भिडता है, युद्ध करता है। करणा
वत - राठौड़ वंशकी करणावत शाखाका वीर । देदल - देदलसिंह । ५६९. जगतेस - जगतसिंह । अजरत - जबरदस्त, अजयी । जैत - जैतसिंह । सुतं - पुत्र ।
मळियागिर - चंदनसिंह । ऊदलसाह - उदयसिंह । वाह - प्रहार । गजगाह - युद्ध ! ५७०. हवौ - हृदयसिंह। तठे- वहां। करमाळ - तलवार। रिणताळ - युद्ध । भाग
चंदोत - भागचंद्रका पुत्र । ५७१. ढाहत-गिरता है, मारता है। साबळ - भाला विशेष । गजावत - गजसिंहका पुत्र ।
खीम - खीमसिंह । मांगळिया- गहलोत वंशकी एक शाखा। धूत- मस्त, उन्मत्त ।
नेजम - भाला। ५७२. हरी - हरिसिंह । सबळेस - सबलसिंह । हाक - जोशपूर्ण अावाज ।
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सूरजप्रकास
[ १६१ महाबळ वीजळ' झाट 'अमान' । खहै 'अमरावत' साहिब - खांन ॥ ५७२ जठे रहियौ रवि कौतक जोय । दिये खग झाट जठे हुल दोय । 'प्रजावत' साहिबसींघ 'अनोप'५ । उमेदहवार लड़े भड़ प्रोप ।। ५७३ विढे इक भायण तेग बुहांण" ।
सुतं 'रतनागर' दूठ 'सुजांण' । पुरोहित केसरीसिंह- सबै सिवड़ापति दारण सूर ।
पिरोहित 'केहरियो रसपूर' ।। ५७४ वडां'' घर एह सदा लगि वीर । धणी छळ आवत काम सधीर । ददौ ३ इण 'केहररौ' दइवांण' । उजैणिय'४ खेत वडै'५ अवसांण ।। ५७५ 'जसा' छळ' पौरस झाळ जगत्ति' ।
दिलीपतहूंत'८ लडै 'दळपत्ति' । १ ख. बीजल ' २ ख. कौतिग । ग. कौतिक । ३ ख. दीये । ४ ख. ग. साहिबसिंघ । ५ ग. अनौप । ६ ख. बढ़े। ७ ख. वहांण । ग. वहांण। ८ ग. सुत । ६ ख. केहर । १० ख. पौरस । ११ ख. बडौ । ग वडो। १२ ख. ग. दादौ । १३ ख. ग. दईवाण । १४ व. ग. उजेणीय । १५ ख. बडै । १६ ख. ग. छळि । १७ ख. ग. जगति । १८ ख. ग. दिलीपतिहूंत ।
५७२. खहै - युद्ध करता है । अमरावत - अमरसिंहका पुत्र । ५७३. जठ - जहां । हुल-( ? ) । अजावत - अजीतसिंहका पुत्र । अनोप - अनोपसिंह। ५७४. भायण - ( ? ) । बुहांण - प्रहार होने पर। रतनागर - समुद्रसिंह। दूठ
जबरदस्त । सुजांण – सुजानसिंह । सिवड़ापति -सिवड़ शाखाका राजगुरु पुरोहित ।
पिरोहित - पुरोहित । केहरियो - केसरीसिंह । ५७५. घर - वंश । सदा लगि - सदैव, नित्य । धणी - स्वामी। छळ - लिए, युद्ध ।
पावत' सधीर - युद्ध में वीर गति प्राप्त होते हैं। ददौ - पितामह। केहररी
केसरीसिंहका । दइवाण - वीर। अवसांण - युद्ध । ५७६. जसा - महाराजा जसवंतसिंह। छळ - लिए। दिलीपत - बादशाह । दळपति -
दलपतसिंह पुरोहित जो केसरोसिंह पुरोहितका पितामह था ।
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१६२ ]
सूरजप्रकास
झटां खग 'औरंग' धूमर' झाड़ि । पड़े' झलि लोह घणा खळ पाड़ि ।। ५७६ परी' वरि' झुग वस 'दळपत्ति' । उसी हिज 'केहर' कीध उकत्तिः । चढी'' नह सिल्लह अँग बचाव' । सादोहिज'२ तांम कटै सिर पाव ॥ ५७ जमद्दढ3 खाग कसै जमरांण । पला भख साबळ१५ रोळवि पांण । छंट'६ असि ताम चढे" छक छोह । लिधी' नह ढोल वचावण' लोह ।। ५७८ सकौ• जुधहूंत हरोळ' सधीर । वधै२२ असि झोक लियौ। नरवीर । प्राडा५ दळ टक्करहूंत उडाय । जडादळ वीच कियौ जुध जाय ।। ५७६
१ ख. धमर। २ ग. पडै । ३ ग. पारी। ४ ख. बरि । ५ ख. ग. श्रगि। ६ ख. बसे। ग. बसे। ७ ख. दलपति । ८ ख. हीज। ६ ल. उकति। १० ख. ग. चाढ़ी। ११ ख, बचाउ । ग. बचाउ। १२ ख. ग. सादौहिज । १३ ख. ग. जमंदढ़। १४ ख. ग. कसे। १५ ग. सावळ । १६ ख. ग. छांटै । १७ ख. चढ़े। १८ ख. लीधी। १६ ख. बचावण । २० ख. ग. सको। २१ ख. ग. हरौल। २२ ख बधे। ग. वधे । २३ ख. ग. झोक । २४ ख. लीयो । २५ ख. ग. प्राडा। २६ ख. ग. जाडा । २७ ख. बीचि । २८ ख. ग. कोयौ ।
५७६. औरंग - बादशाह औरंगजेब । धूमर - सेना। पड़े - वीर गतिको प्राप्त हुआ। ५७७. परी- अप्सरा। वरी - वरण कर के । ल ग - स्वर्ग । दळपत्ति- दलपतसिंह
पुरोहित । ५७८. लोह - शस्त्र-प्रहार।
५७६. जडा-घना।
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सूरजप्रकास
[ १६३ घमोड़त मूगळ' साबळ *घाय । अडै बड हाथहुंता घड़ प्राय । लेतां खळ पावत साबळ* लार । कांटै जिम खांचत मछ सिकार ।। ५८० धमंधम वाजत सेल धमोड़ । जठै रत छौळ पड़े जळ जोड़ । पियै भरि खप्पर जोगणि पूर । सराहत नारद संकर* सूर ।। ५८१ सिलेह' घड़ पाखर बंधि' सुचंग । पडै भरळक्कत फूटि पमंग । सथे हिज फूटत घाट दुसार । उडै हंस' बाज अनै'' असवार ।। ५८२ करै धज वाह वा कड़कंत । जई मद नीझर'४ सेल जडत । करां कर५ जोर छडाळ कढंत । अमावड़ घाव भरै'६ उबकंत ॥ ५८३
१ ग. मुगल।
*...*चिन्हांकित पद्यांश ख. प्रतिमें नहीं है। २ ख. बाजत । ३ ग. छोळ । ४ ख. पीयै । ५ क. सूकर । ६ ख. ग. सिल्है । ७ ख. ग. घड। ८ ख. बेधि । ग. वेधि । ६ ख. साथै । ग. साथे। १० ग. हंसे । ११ ग. अने। १२ ख. बाह । १३ ग. तवा । १४ ग. नीजर । १५ ग. करि । . १६ स्व. भरे।
५८०. घमोड़त -प्रहार करता है। घाय - प्रहार । ५८१. घमोड़ - प्रहार । जठ- जहां । रत - रक्त, खून। छौळ - धारा, तरंग । सराहत -
सराहना करता है। सूर - सूर्य । ५८२. सिलेह - कवच । भरळक्कत - प्रहार । पमंग - घोड़ा। हंस - प्राण। बाज
घोड़ा। अनै - और। ५८३. धज-भाला। सेल जडत-प्रहार करता है। छडाळ - भाला। अमावड -
अपार, बहुत । उबकंत - उमड़ता है ।
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१६४ ]
सूरजप्रकास
जठे रत छीछ गजं ' सिर जाय ।
लगी किर* पाहड़ ऊपर लाय* ।
५
तुटै इम बाहत' साबळ तां ।
कछी खग तांम सुरापण कांम ।। ५८४ पछट्टत वीजळि "केहर "" पाणि ।
१०
१२
४
सिलह" बंध हेक" करें घमसांणि '
१५
।
१६
जुड़े चहुंबे -दळ" रोद" ब्रजागि" खिवै घण 'केहर' ऊपर " खग्गि' ।। ५८५ अणी सिर सेल भिड़े अवगाढ़ि 1
२०
२२
1
वजै" सिर गह्वर" " धजर ४ वाढ़ि १५ चहच्चह चंड पियै" रतचोळ |
बाळव गात हुवै झकबोळ || ५८६
.२८
२६
जांण दळ रांमण ऊपर
जाय"
लड़े
हणमंत
सिंदूर
१० ख.
१ ख. गजां । २ ख. ग. किरि । ३ ग. उपर । ४ ग. लाई । ५ ख. ग. तूटो । ६ ग. वाहत । ७ ख. कढ़ी ८ ख. सूरापण । ग. सुरापण । ६ ग. पछटत । बोजल । ग. बोजळि । ११ ख केहरि । १२ ख. ग. सिल्है । १३ ग. एक । १४ ग. घमसांण । १५ ख. बल । ग. वल । १६ ख. रौद । १७ ख व्रजाग । १८ ख. ऊपर । ग. उपर । १६ ख. ग. बाग | २० ख. ग. श्रवगाढ़ । २१ ख. बजे । २२ ख. र । २३ ख. ग. गइभर । २४ ख धज्जर | २५ ख. बाढ़ | २६ ख. ग. चहचह | २७ ख. पीये । २८ ख. जांणे । २६ ग. उपरि ।
३० ख. प्रतिमें नहीं है ।
लगाय ।
५८४. जठै - जहां । रत- रक्त । छींछ- धार, धारा । किर - मानों । लाय- ग्राग, अग्नि ।
५८५. पछट्टत - प्रहार करता है। हाथ । सिलह बंध - योद्धा । कती है।
वीजळि - तलवार । केहर - केसरीसिंह । पाणि - रोद - यवन । व्रजागि- जबरदस्त । खिवं - चम
५८६. श्रवगादि - वीर, योद्धा । गह्वर - तलवार ( ? ) । धजर - भाला । वाढ़ि - काट कर । चहच्चह - द्रव पदार्थको मुंहसे खींच कर पीनेकी क्रिया या इस प्रकारसे पीने से होने वाली ध्वनि । चंड - रणचंडी, दुर्गा । रतचोळ - लाल रक्त, लाल खून । बंबाळव - जबरदस्त । गात - शरीर । भकबोळ - तरबतर । ५८७. हणमंत - हनुमान ।
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सूरजप्रकास
[ १६५ तुटी' खग रोद' घड़ा पर तीख ।। सही जमदाढक झाळ सरीख ॥ ५८७ करै उव राव दुसार कटार । वहै' कंठि हार परी जिण वार । लांगौ हणमंत पराक्रम लेखि । दियै नह हार जति'' वप'२ देखि ॥ ५८८ झझक्कत'३ वारँग" फेर झुकंत । हुवै इम चूक'५ मुनेस हसंत । उठे दुजराज हसै'६ रिझवार । हसंत विलोक' करै'८ उरहार'६ ॥ ५८६ . 'प्रभा' छळि एम लड़े दइवांण२१ । घणा वज्र झेलि पड़े घमसांण । रथां चढि रंभ अनै दुजराज । सुरां पुर कीध प्रवेस सकाज ।। ५६०
१ ख. ग. तूटी। २ ख. ग. रौद। ३ ख. ग. साही। ४ ख. राब। ५ ख. बाहै। ग. वाहै। ६ ख. बार। ७ ख. लागौ। ८ ख. हमंत। ६ ख. पराक । १० ख. ग. दीये । ११ ख. ग. जती। १२ ख. बप । ग. वप। १३ ख. झझकत। १४ ख. बारंग। १५ ख. चौंक । १६ ख. ग. हसे । १७ ख. बिलोकि । ग. विलोकि । १८ ख. घरे। ग. करे । १६ ख. गलिहार । २० ख. लडे । २१ ख. दईवाण । २२ ख. बज्र। २३ ख. पडे।
५८७. रोद- यवन । घड़ा-सेना । जमदाढक - कटार विशेष । झाळ - पागकी लपट । . सरीख - समान ।
५८८. जिण वार - जिस समय । जति - जितेन्द्रिय, यति ।
५८६. झझक्कत - चौंकती है । वारंग - अप्सरा। मुनेस - मुनीश, नारद मुनि । ५६०. प्रभा - महाराजा अभयसिंह । छळि लिए, युद्ध। वन - तलवार। झेलि -
सहन कर के। घमसाण- युद्ध । रंभ - अप्सरा । दुजराज - पुरोहित केसरीसिंह ।
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१६६ ]
सूरजप्रकास
प
3
पितामह पाय लगै सप्रवंति । दिवी तदिदादि घणी 'दळपत्ति" 'अखावत' एम वसे स्रुगि आय | जितै घर अंबर नांम न जाय ॥ ५६१ चारणरौ जुध करण
'जसावत' सूर 'सुभै' अजरंग | स जुध बीच गरक्क सुरंग । वेधै खळ साबळ चोळ वरन्न t कहै रवि झोक लड़े ' सुभकन्न' करां ' सुभसाह' वहै" किरमाळ ।
बंगाळ'
१२
बगत्तर : पोस कटंत
५
सुर ।
सभे४ खग ऊजळ झाटक पिळा' अखतेस चढावत पूर ।। ५६३
मँडै '' तिण बार'" फतै " जुध माह ।
१६
उदावत नाहर खांन दुबाह" ।
1
।। ५६४
93
३ ख सप्रवित्त । ग. सप्रवति ।
।
७ ख. वीचि । ग. वीच ।
सप्रवंति - शीघ्र ।
१ क. पाप । २ ख. ग. लगे । ५ ख. ग. दलपति । ६ व. ग. स वेधे । ६ ख. बरंन्न । ग. वरंन ।
१०
ख. सुभन । ग. सुभन
।
११ ख. बहै ।
१२ ख. बगतर । ग. वगत्तर 4 १३ ख. बंगोळ | ग. वंगाळ | १४ ख. ग. स । १५ ख. ग. पीला । १६ ग. मंडे । १७ ख. ग. वार | १८ ख. फतौ । १६ ख. वृदावत। ग. दुदावत । २० ग. दुवाह ।
।। ५६२
दादि - धन्यवाद ।
-
४ ख. ग. दीवो ।
८ख. बेधे । ग.
५६१. पाय -
चरण ।
शुभकरण बारहठ ।
अजरंग - जबरदस्त |
पुरोहित । ५६२. जसावत - जयसिंह बारहठ । सुभं सुरंग - घोड़ा। घोळ वरन - लाल रंग । रवि सूर्य । झोक - धन्यवाद | ५६३. करा - हाथों । सुभसाह - शुभकरण । वहै चलती है । किरमाळ - तलवार ।
बगत्तर पोस - कवचधारी । बंगोळ - मुसलमान। पिळा श्रखतेस - पीले अक्षत । केसर या हल्दी में रंगे हुए पीले रंगके चावल जो विवाहादि मांगलिक अवसरों पर निमन्त्रण-पत्र के रूप में इष्ट मित्रों व सम्बन्धियोंके यहां भेजे जाते हैं । ५ε४. ( ? ) ।
दळपत्ति - दलपतसिंह
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सूरजप्रकास
हिचे' तदि चारण झोक' हुवास । सिरै व्रत' बारट' गोरख दास । सदा कमां मुहरै अवसांण । रचै जुध दारण रोहड़रांण ॥ ५६५ जिकै पित 'केहरि' दारण जंग । 'अजा" छळ कीध अनेक अभंग । विखा मझि मेछ दळां खग वाह' । सझै'" बहवार' सुणी पतसाह' ।। ५६६ इसौ' भड़ केहर रौदइवांण' । पटोधर'८ जूटत पौरस पांण । उडै असि तेज मजेज उपाट । झडै ९खळ२° 'गोरख' वीजळ२१ झाट ।। ५६७ लगी नर है तिल हेक ३ लगांण ।
जरद्द मरद्द कटे जंगमांण । १ ख. होचे। २ ख. झोकि। ३ ख. ग. वन । ४ ख. बाहर। ५ ख. मोहोर। ग. मोहोर। ६ ख. दारुण। ७ ख. अजै । ग. अझा। ८ ख. छलि । ९ ख. षगि । १० ग. बाह। ११ ख. सझे। १२ ख. बौहोवारि । वहीवार । १३ ख. ग. पतिसाह । १४ ख. ग. यसौ। १५ ख. केहरि। १६ ख. ग. रो। १७ ख. ग. दईवांण । १८ ख़. ग. पाटोधर । १६ ख. ग. झाडे। २० ख. षग। २१ ख. बीजल । ग. वीझळ । २२ ग. हैक।
५६५. हिच - युद्ध करता है। झोक हुवास - धन्यवाद प्राप्त करने योग्य । सिरै व्रत -
अपना नियम निभानेमें श्रेष्ठ। दारण – वीर, जबरदस्त । रोहड़ रांण - रोहड़िया
शाखाके चारणोंमें सर्व-श्रेष्ठ । ५९६. जिकै केहरि - जिसके पिता केसरीसिंहने महाराजा अजीतसिंहकी सेवामें कई युद्ध
किए थे। प्रजा - महाराजा अजीतसिंह । विखा - आपत्तिकाल, संकटका समय ।
खगवाह-वीर, बहादुर। ५६७. इसी-ऐसा। केहररो- केसरीसिंहका। दइवाण - वीर । पटोधर - पट्टाधिकारी।
जूटत - भिड़ता है। पांण = प्रोण - बल, शक्ति। मजेज - शीघ्र। झड़े - वीरगतिको प्राप्त होते हैं। गोरख - बारहठ केसरीसिंहका बड़ा पुत्र गोरखदान । वीजळ -
तलवार। झाट - प्रहार। ५९८. जरद्द - कवच । मरद्द - मर्द, वीर। जंगमाण - घोड़ा ।
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सूरजप्रकास सदा सिव तांम लिये' खळ सीस । स्रुणी' स्रपी चंड देत असीस ।। ५६८ हईवर पाय असीसत हूर । समोभ्रम 'केहर' कायम सूर । सझे' जुध वीजळ मूगळ साथ । रिधू 'जसराज' तणौ रुघनाथ ।। ५६६ बराछक उपट घाट बराड़ । धसै'' जुध'' पूर विचै 'धधवाड़' । धिक्ष दहुवै चख: पावक धाम । तीजा चख ईस तणा जिम ताम ॥ ६०० मुछार" भुहार'५ मिळे' मगरूर । सोभा मुख जांणक" ग्रीखम सूर । भयंकर रूप वर्ण'८ जिम भेस । महाभड़६ 'केसर'रौ 'मुकँदेस' ॥ ६०१
१ ख. लीये । ग. लिये । २ ख. ग. श्रोणी। ३ ख. वंड । ४ ख. ग. हयोवर। ५ ख. ग. सझ। ६ ग. तणो । ७ ग. वराछक । ८ ख. ऊपट। ९ ग. वराड़। १० ख. धसे । ११ ग. जूध। १२ ख. दहुंवै। १३ ख. धष। १४ ख. मुंछार। १५ ख. भंहार । ग. भूहार । १६ ख. मिडे। १७ ख. ग. जांणिक । १८ ख. बणे। ग. वणे। १६ ख. महाबल।
५६८. रत्र - रक्त, खून । पी-पी कर । चंड - रणचंडी। असीस - प्राशीर्वाद । ५६६. हईवर - योद्धा, वीर । असीसत - आशीर्वाद देती है। हर - अप्सरा। समोभ्रम -
पुत्र । केहर - बारहठ केसरीसिंह। सझे- मारता है, संहार करता है। साथ - सेना, दल। रिधू - अटल, दृढ़। जसराज तणौ - जयसिंहका पुत्र शुभकरणसिंह
बारहठ । रुघनाथ - रुघनाथदान बारहठ । ६००. बराछक - जबरदस्त, प्रचंड । घाट - रचना, बनावट, शरीर । बराड़ - जबरदस्त ।
धधवाड़ - द्वारकादास और मुकुन्ददान धधवाडिया गोत्रके चारण। दहुदै- दोनों।
पावक - अग्नि । चख - चक्षु, नेत्र । ईस - रुद्र, महादेव । ६०१. मुछार - मूछ, श्मश्रु। भुहार - भौहों। मगरूर - वीर । जांणक – मानों । ग्रीखम
सूर - ग्रीष्म ऋतुका सूर्य। केसर - केसरीसिंह चारण कवि । मुकदेस - मुकुंददान धधवाड़िया गोत्रका चारण कवि ।
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सूरजप्रकास
[ १६६ वडा खळ वेधत' साबळ' वाह । लिये लटियाळ तुरी कपि लाह । जुड़े धज सेल पड़े जवनेस । दखै' रवि ताम झोका 'मुकंदेस' ॥ ६०२ छौगौ” सिर सोनहरी छवगाळ । भळंकत सूरज रूप भलाळ । वधै खळ लेत नटां जिम वंस' । हई घट फटत छूटत'' हंस ।। ६०३ मुजाइद२ सेख तणा सुत मांम । नवी बगसीस महम्मद'४ नाम । करां खग कढिक'५ रूप करूर । मिळे'' महिरांण' हुता" मगरूर ॥ ६०४ महम्मद सेख तणै महरांण । उभै' धज साबळ पांण जवांण ।
१ ख. बेधत । २ क. सबळ । ३ ख. ग. बाह। ४ ख. लोय। ५ ख. जडे। ६ ख. ग. वाखे । ७ ख. ग. छोगो। ८ ख. नहसोरी। ९ ख. बेधे । ग. वेधे । १. ख. बंस। ११ ख. ग. छुटत। १२ ख. मुजाहिद। १३ ग. नबी । १४ ख. महंमद । १५ ख. कट्ठीक। १६ ख. ग. मिले। १७ ख. महरांण। १८ ख. हुंता। ग. हुता। १६ स. ग. जडे। २० ख. जुवाण ।
६०२. वेधत - संहार करता है। वाह - प्रहार । लटियाळ - देवी, जटाधारी। तुरी
घोड़ा। कपि- ( ? )। जुड़े-प्रहार करता है। धज- तलवार। जवनेस - यवन, मुसलमान। बखै - कहला है। रवि- सूर्य । झोका - शाबाश, वाहवाह ।
मुकंदेस - मुकुंददान दधवाड़िया गोत्र का चारण कवि । ६०३. छोगी - अवतंश, श्रेष्ठ। छवगाळ - शौकीन । भळंकत - चमकता है। भलाळ -
भाला या भालाधारी। हई - धोड़ा। हंस - प्राण । ६०४. नवी - ईश्वरका दूत । महिरांण – रणछोड़। मगरूर - गर्व रखने वाला, जोशीला। ६०५. महरांण - समुद्रसिंह । जवाण - जवानसिंह !
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१७० ]
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मिळे' भुज घाट दूजौ भलमार' । पड़े खळि' भोमि* हुवौ' खळपार ।। ६०५ नवी बगसीस खिजे नरनाह । वाही" 'महरांण' परा खग वाह । झलै खग हाथ कढी" खग झाळ । वाहो' 'महरांण' खिजै विकराळ' ।। ६०६ उभै हय टूक पड़े १४ असूरांण । किधा'५ करि राज सवंटि किसांण'३ । नवी बगसीस पड़े सजि'८ जोड़ । तरोवर वीज'६ गई किर तोड़ ।। ६०१ सोहै. हथ घाव सुरंग सुभेव । हुवौ' रंग मेछ धड़ा हथळेव । कियां२२ खग चोळ 'मुकंद' सकाज । सझे महराज हुंता सुभराज ॥ ६०८ इसी करतौ ४ गुण झाट उपाट ।
झडै ५ खळ६ खेलि" तसी ८ खग झाट । १ ख, सिल्है। ग. सिले। २ ख. ग. भुजसार। ३ ख. पडे । ४ ख. पल। ५ ख. भोम। ६ ख. ग. हुो। ७ ख. बाही । ८ ख. बाह। ख. झले। १० ख. कटी। ११ ख. बाही। १२ ख. षिजे । १३ ग. विकराळ । १४ ग. पडै । १५ ख. ग. कीधी। १६ ग. कसाण। १७ ख. ग. पडे । १८ ख. सनि । ग सजि। १६ ख. बीज । २० ख. ग. सोहै। २१ ख. हो । ग. हो। २२ ख. कीयां। २३ ख. ग. माहाराजहंत्ता। २४ ग. करतो। २५ ख. झाडे । ग. झाडं । २६ ख. षग। २७ ख. लेष। २८ ख. तिसी।
६०६. खिजे - कोप करता है। वाही-प्रहार किया। ६०७. टूक - खंड। पड़े - वीर गति प्राप्त हुए। असुरांण – यवन । किसाण - कृषक ।
तरोवर - तरुवर, वृक्ष । वोज - बिजली, उल्का। ६०८. सोहै - शोभा देता है। हथ घाव – हाथका प्रहार । सुरंग - लाल । रंग-प्रानंद ।
मेछ - यवन । घड़ा-सेना । हथळेव-पारिण-प्रहण, पारिण-पीड़न। मुकंद - मुकुंददान दधवाड़िया गोत्रका चारण कवि । सझै "सुभराज- महाराजा अभय
सिंहजीसे अभिवादन किया। ६०६. इसी-ऐसी। गुण - काव्य, कविता । झाट - झड़ी । उपाट - विशेष । झड़े
वीर गति प्राप्त कर के। तसी- वैसी ही।
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सूरजप्रकास
[ १७१ 'द्वरौं'' इण भांत' लड़े दइवांण' । वचै' कवि लेखहुंता ब्रह्मांण' ॥ ६०६ तठे छक छोह 'विसन्न'" सुतन्न । विजूजळ कढिय' लाल वरन्न' । सह२ जुध 'खेतल' दारुण सूर । खगां झट ढाहत मूगळ'३ खूर ॥ ६१० जटै खिड़ियौ १४ इक आगि ब्रजागि'५ । लूहां झट देति' खळां धख लागि । तिको 'बखतेस'८ कंठीरव तेम । जुड़े 'अमरा' 'धरमावत' जेम ।। ६११ उठे 'महियार'१६ 'नवल्ल'०' अपल्ल । मँडै २१ जुध बारठ१२ 'सूरजमळळ' । जुड़े खिड़ियौ3 इक वेस४ जवांन । दिय५५ खग झाट खळां 'सतिदान' ॥ ६१२
१ ख. ग. द्वारौ। २ ख. भांति । ३ ख. ग. वईवांण। ४ ख. ग. बचे। ५ ख. लेखहता। ६ ख. सुभरांण । ग. ब्रह्ममांण। ७ ख. बिसंन । ग. विसंन । ८ ख. ग. सुतंन । ६ ख. बीजूजल । १० ख. कढ्ढीय । ग. कढ़ीय । ११ ख. बरन्न । ग. वरंन । १२ ज. ग. सांदू । १३ स्व. मंगल । ग. मुगल । १४ ख. ग. षडीयौ। १५ ख ग. व्रजागि। १६ ख. ग लोहां। १७ ख. ग. देत । १८ ख. वषतेत । १६ ख. ग. महीयार । २० ख. ग. नघल। २१ ख. ग. मंडे । २२ ख. ग. बारट । २३ ख. षडीयो । ग. षडियो । २४ ख. बेस । २५ ख. दीये। ग. दिये।
६०६. द्वारी- द्वारकादास दधवाडिया गोत्रका चारण कवि । दइवांण - वीर । ६१०. विसन्न - कविका नाम । सुतन्न - पुत्र । विजूजळ - तलवार । वरन्न - वर्ण, रंग ।
खेतल - खेतसी नामक सांदू गोत्रका चारण कवि, नाथाका पुत्र । झट - प्रहार ।
ढाहत - संहार करता है। खूर - समूह, दल । ६११. खिड़ियो - चारणोंमें खिड़िया गोत्रका चारण कवि। लुहां - लोहा, शस्त्र प्रहारों।
धख - जोश। वखतेस - बखता खिड़िया गोत्रका चारण कवि। कंठीरव - सिंह । अमरा - महाराजा अजीतसिंहकी सेवामें रहने वाला चारण कवि । धरमावत -
धरमाका पुत्र । ६१२. महियार - चारणोंका एक गोत्र । नवल्ल - नवलदान महियारिया गोत्रका चारण
कवि । मॅडे- रचता है, करता है। सूरजमळळ - सूरजमल नामक चारण कवि । वेस - वयस, प्रायु । सतिवांन - शक्तिदान नामक खिड़िया गोत्रका चारण कवि ।
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सूरजप्रकास
तिको' अचरिज्ज' किसौ घर तास । दादौ जिण दारण 'भैरवदास'" । 'धिराहर'५ बाजत 'पासल' धीर । 'विठू'६ जयरांम लड़े नर वीर* ॥ ६१३ इता भड़ चारण क्रोध असाधि । वि वरदायक वीर' विराध' । खेलै१२ निहचंत झटां भल खंड । चहायक हेत सहायक चंड ।। ६१४ तिकै कुळ सूर हुआ' तिणवार'४ । जिकै'५ वद६ पात कहै जिणवार । वडौ ८ खळ थाट हणै गज बोह' । छतीसह वंस'१ चाढवण२३ छोह ।। ६१५ कहै वद प्राय खळां दळ काप । प्रिथीपति धूहड़ लूण प्रताप ।
इति चारण जुध।
१ ख. ग. तिको। २ ख. ग. अचिरज । ३ ग. किसो। ४ ग. भैरुवदास। ५ ख. ग. धाराहर। ६ ख. बीठू । ग. वोठू। ७ ख. बीर। ८ ख बिढ़े। ६ ख. बरदायक । १० ख. बीर। ११ ख. बीराध । १२ ख. ग. बेल्है। १३ ख. ग. हुवा। १४ ख. तिणबार। १५ ख. ग. जिके । १६ ग. विद। १७ ख. जिणबार। १८ ख. बडौ। १६ ख. हणे। २० वौह । २१ ख. बंस । २२ स्व. ग. चढ़ावत । २३ ख. ग. विद ।
६१३. प्रचरिज्ज - आश्चर्य । दावो-पितामह । दारण- जबरदस्त । धिराहर - कविका
नाम । प्रासल धीर - पासिया गोत्रका धीरजराम चारण कवि । विठू जयराम - ___चारणोंमें रोहड़िया गोत्रका वीठू शाखाका जयराम कवि । ६१४. प्रसाधि - असाध्य, अपार । विढ़े- युद्ध करते हैं । वरदायक - विरुदायक, जोश
दिलाने वाले, विरुदाने वाले । वोर विराध – महावीर । चहायक - चाहने वाला।
चंड - रणचंडी, दुर्गा। ६१५. पात - चारण कवि । थाट - दल, सेना । गजबोह -- गजव्यूह । छोह - सौभ,
कीर्ति, यश, उमंग। ६१६. वद - विरुद, कीर्ति । धूहड़ - राव धूहड़के वंशज, राठौड़ ।
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सूरज प्रकास
ब्राह्मण - भिड़े ब्रह्म' खत्रिय' धरम्म' अभ्यास । वधै जुध स्यांमधमी पति व्यास ।। ६१६
६
'दिपावत'" हाथ न लेत उदक्क'
1
।
aai बळ" लेत पवित्र रिजक्क जिक जवाळ" लिये " जसवास ।
फतैचंद सूर वाहै खग व्यास * ।। ६१७
१२
१३
लड़ें" तिण वार" अड़ीखंभ 'लाल' ।
दळं'
१४ खळ रामचंद्रेस दुकाल । उदैनँद हाथिय रांम जुड़े तदि गाहड़ - मल्ल "
अभंग |
.१६
सुजंग ।। ६१८
।
अरी सिर तोड़" रगत्त" उफांण पुजै सिव सग्गति विजळ पांण रमाइण इसी विध
२४
10
१६
भारथ वांणि रटांण ।
व्यास लड़े दइवांण २५ ॥ ६१६
१ ख. ग. ब्रह्म । २ ख. षत्रीय | ३ ख भ्रम । ग. धरम । ४ ख. ग. वधे । ५ ख. ग. दीपावत । ६ ख. ग. उद्दक । ७ ख बलि । ग. वलि ८ख. रिज्जक । ग. रिक्क |
ख. ग. जिको । १० ख. भुजवाल | ११ ख. ग. लीये ।
* यह पंक्ति ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न प्रकार है'वा है षग सूर फतेचंद व्यास ।'
१२ ख. लड़े । १३ ख बार । १४ ख. बले । १५ ख. ग. हाथीय । १६ ख. गाहड़माल । ग. मल । १७ ख तोडि । १८ ख. रग्गत । १६ ख उफांणि । २० ख. सक्कति । ग. सगति । २१ ख. बीजल । ग. वीजळ । २२ ख. पांणि । रामायण | २४ व. बिधि । ग. विधि । २५ व. ग. दईयांण ।
२३ ख. ग.
[ १७३
६१७. दीपावत - दीपचंद व्यासका पुत्र फतेहचंद व्यास उवक्क - उदक, जल, जल-संकल्प द्वारा लिया गया दान । रुकां तलवारों । रिजक्क- रोजी, जागीर । अजवाळ - उज्ज्वल कर के । जसवास - यश, कीर्ति ।
६१८. घड़ीखंभ - जबरदस्त, शक्तिशाली । लाल - लालचन्द |
ब्राह्मण उदचंद - भाई उदयचंद | हाथियरांम - हाथीराम । ६१६. रगत - रक्त, खून।
गई, पढ़ी गई ।
रामचंद्रेस - रामचन्द्र,
रमाइण - रामायण । भारव - महाभारत । रटांण - रटी
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१७४ ]
सूरजप्रकास भंडारी- दळां खळ झोकि तुरी हुजदार ।
भंडारिय' जूटत जै गज भार । सकौ सिरपोस 'गिरद्धर' सूर । पटोधर 'ऊद'तणौ छक पूर ॥ ६२० भुहां भिड़ि मूंछ चखां विकराळ । काले असि औरवियो" कळिचाळ । दियैः खग झाट गिरद्धरदास । विढे. असवार सहेत' व्रहास ॥ ६२१ सिलै' बँध पाखर बँध सँधार' । भेळा हिज'४ गंज चढे धर भार । बहै ५ खळ गाहटतौ जुध बाज'६ । करै खग घाव अरोह सकाज ।। ६२२ उडै असि ऊपर लोह अपार । वढे असि भोम चढे तिण वार'८ । किलम्मक'६ एक जठे कळिचाळ । वुहो° खग टोप कटे विकराळ२ ॥ ६२३
१ ख. ग. भंडारीय । २ ख. ग. सको। ३ ख. ग. गिरधर । ४ ख. ग. भौहाँ । ५ ख. षगां। ६ ख. बिकराल । ७ ख. पोरवीयो । ग. वोरवियो। ८ ख. दीयै। ६ ग. गिरधरदास । १० ख. बढ़े । ११ क. सहेब । १२ ख. सिल्है । १३ ख. सिधार। १४ ख. ग. हीज । १५ ग. वहै । १६ ख. ग. वाज। १७ ख. बढ़े। १८ ख. जिणबार । १६ ख. किलमक। २० ख. बाहो । ग. वाही। २१ ग. कट.। २२ ख. बिकराल।
६२०. झोकि - झोंक कर । तुरी- घोड़ा। जदार - ( ? ) । सकौ - सब । सिर
- पोस - शिरत्राण, रक्षक । गिरधर - गिरधरदास भण्डारी। पटोधर - ज्येष्ठ पुत्र । ..... ऊद - उदयचंद भंडारी।
६२१. भुहा - भौहों। भिडि - स्पर्श कर । औरवियो - युद्ध-स्थलमें झोंका। कळिचाळ - , युद्ध । वहास-घोड़ा। ६२२. सिल बंध - अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित । गंज- ढेर । गाहटती- ध्वंस करता हुआ। ...माज - घोड़ा। .. .. .. ६२३. किलम्मक - मुसलमान । बुही- चली।
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सूरजप्रकास
वुही' फळ ऊपर वीजळ वेग | तठे 'गिरधार' वही घण तेगि' । उभै हुय टूक पड़े ' असुरांण ।
19
६
०
चढ़े असि साम" बियै चहवांण ॥ ६२४
बिया" असि ऊपरि गज्जर"" बूर"। सभै खग भाट वळोवळ १५
सूर । वहै' खग भाट भंडारिय" वाघ ""
१६
1
उड़े खळ थाट संघाट प्रथाघ ।। ६२५
१६
મ
दुजौ " असि जाम तिजैसि सूर चढ़े
लड़े 'गिरधारिय' २"
उडै खळ थाट सिरै खग
६
२०
कटेस उदार ।
४
तिन वार 1 अंबर लागि ।
२३
आणि ॥ ६२६
हूर वरावत८
मीर ।
महाबळ वडौ महराज " तणौ स वजीर "
a &
२ ख. बीजल ।
१ ख. बही । पडे । ७ ख ग. वीया । १६ ख. बाहै । ग.
चढ़े । ८ख. तां १२ ख. ऊपर |
ग. विये । १३ ग. गजर । भंडारीय | जो । २२ ख. ग.
१८ ख. वाध ।
१६ ख सघाट |
२० ख. प्रसाध ।
तीजै ।
२३ ख ग चढ़े ।
वाहै । १७ ख. ग. २१ ख. दूजौ । ग. २४ ख. बार । २५ स्व. ग. गिरधारीय । २७ ख बरावत । २६ ख. बडौ । ग. वडो । ३० ख. ग. माहाराज ! ३१ ख बजीर ।
२६ ख. सिर ।
माहाबल । २८ ख.
[ १७५
३ ख. बेग । ४ ख. बीही । ५ ख. ग. तेग । ६ ख.
।
।
११ ख. बीया ।
१५ ख. बलोबल ।
१० ख. चहुवांण
१४ ग. घूर ।
६२४. वेगि - शीघ्र । गिरधार - गिरधरदास भंडारी । प्रसुरांण - यवन, मुसलमान । ६२५. गज्जर - प्रहार । बूर - प्रहार, समूह । भाट - प्रहार | वळोवळ - चारों प्रोरसे । सूर-वीर । वाघ - वाघचंद भंडारी ( ? ) | संघाट - समूह । प्रथाध - अपार ।
६२६. गिरधारिय - गिरधरदास भंडारी । अंबर - प्रकास ।
६२७. हूर - अप्सरा ।
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१७६ ]
सूरजप्रकास
दुवै सुत 'ऊद 'तणा' भंडारिय' कट्टिया खाग
६
-
भयांण ।। ६२७
वदन्न मजीठ" 'जवान' 'विजेस'" । तठे श्रसि औरवियौ' 'रतनेस' । जई खग वाहत" दारण जोस । पड़े खग भाटक सिल्लह-पोस ।। ६२८ कटे सिर सूर जूटै" धड़ केक । उभै हुय' टूक पड़ंत अनेक | पड़े पग ३ हाथ धरा लपटंत १४ ।
२
3
१६
किळा १५ किर' राखस बाळ करत ।। ६२६
'अभै' भुज भार दियौ सुतौ उजवाळ कियौ
१६
भिड़ै 'रतनागर' यूं वधै असि औरवियौ
२०
८
9
2
दवांण ।
७
अथाह । 'रणसाह' ।
गर्ज भार ।
त्रिण वार ।। ६३०
रिमराह ।
।
५ ख.
१ ख ऊदत २ ख. ग. बईगांण । ३ ख. ग. भडारीय । ४ ख. ग. कट्टीय । ग. बाग । ६ ख. बदंश । ग वदन्न । ७ ख. मंजीठ । - ख. जवांनीयबेस । ग. जवांनीवेस । ख. घोरवीयो । ग. वोरथियो । १० ख. बाहत । ११ ग्य. जुटे । १२ ख. होय । १३ ख. बग । १४ ख. ग. पढंत । १५ ख. कोला । १६ ख कर । दीयौ । १८ ख. सोतौ । ग. सोतो । १६ ख. कोथौ । २० वोरवीयो । ग. श्रोरवियौ । २२ ख. रासाहण । ग. रासाहर । २४ ख. बिकराल । २५ ख. बाह ।
१७ ख.
ख. ग. वधे ।
तेण समै
'रसा' हर " " वधै विकराळ " हुता खग वाह" ।
R 3
२४
२५
६२७. दुवै - दोनों । ऊब - उदयचंद भंडारी । कट्टिया काट दी। ६२८. षदश- मुख । मजीठ - लाल । श्रौरवियों झोंका । रतनेस ( ? ) । सिल्लह-पोस - कवचधारी ।
-
२१ ख.
२३ ख. बधे । ग बधे ।
भयण - भयानक ।
६२६. किळा क्रीड़ा, लीला । किर मानों । राखस- राक्षस ।
६३०. अभ - महाराजा अभयसिंह । उजवाळ - उज्ज्वल । रणसाह - ( ? ) । रतनागर -
-
रतनसिंह भंडारी ।
रतनसिंह भंडारी ( ? ) । चिण - वीर ।
६३१. रसाहर - रायसिंहका वंशज । रिमराह - शत्रुओं को सीधा करने वाला ।
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सूरजप्रकास
[ १७७ सत्रां' दळ ऊपर' धोम सरूप । रचै जुध' 'पोम' तणौ 'धनरूप' ।। ६३१ गाढांगुर 'खीम'हरौ गजगाह । सझै जुध 'थांन' तणौ 'दळसाह' । वहै' खग 'दीप' दुहां' विकराळ । प. जरदाळ अन पखराळ ॥ ६३२ उगंतिय मौसर सूर उदार । धुवै दलसाह' भयंकर धार । हलै नह कौतिक बाज हकार । उभौ' रवि छत्र तणा'' उणहार ॥ ६३३ सराहथ विक्रम देखि समाथ । हजारह हाथ धणी दुय५ हाथ । समोभ्रम ठाकुरसीह सधीर । 'धरा हर पूर लड़े लख - धीर ।। ६३४ हिवै दळ पूर कढी' चंद्रहास ।
दळां खळ डोहत माहियदास' । १ ख. सनं। २ ख. ऊपरि । ग. उपरि। ३ ग. युध। ४ ख. ग. गाढ़ांगुर। ५ ख. बाहै । ग. वाहै। ६ ख. दुवौ । ग. दुहू । ७ ख. ऊगंतीय । ८ ग. मोसर । ९ ख. हकारि । १० ख. वूभौ। ग. ऊभौ। ११ ख. तणी। १२ ख. उणहारि। १३ ख. ग. सराहत। १४ ग. हमारह। १५ ख. ग.दोय। १६ ख. धारा १८ ख. होहत । ग. डोहित । १६ ख. माहीयवास।
१७ ख.कटी।
६३१. धोम - अग्नि । सरूप - समान । पोम - पेमराज भंडारी। धनरूप - पेमराज
___ भंडारीका पुत्र । ६३२. गाढ़ांगुर - वीर, योद्धा। खीम - खीमचंद । गजगाह - वीर, योद्धा। थान -
थानचन्द। दळसाह - दला नामक व्यक्ति । दीप - दीपचन्द । जरदाळ - कवच
धारी योद्धा। अने - प्रौर । पखराळ – कवचधारी घोडा । ६३३. मौसर - श्मश्रुके बाल । धुवै - जोश में युद्ध करता है। हल - चलता है। कौतिक -
कौतूहल । बाज-घोड़ा। ६३४. विक्रम - शौर्य । समाथ - समर्थ, वीर । दुय - दो। ६३५. हिवं - हयपति - अश्वपति, बादशाह । दळ - सेना । चंद्रहास - तलवार । डोहत -
विलोड़ित करता है। माहियदास - माईदास भंडारी।
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७८ ]
सूरजप्रकास सबासण' देव सुतन्न' सरीन । तिसा सिव नेत्र 'लूण' हर तान' ।। ६३५ सुरायण पूर किया' रिणसाज । बिढ़े देविचंद' अने बछराज । सदा तड़ वंकिय'' वांकिम'' सूर । मरू'२ मुहणोत मँत्री मगरूर ॥ ६३६ समोभ्रम सांमतचंद सकाज । वहै"खग औरि थटां सिर वाज'। हिचै 'चंद' मेछ थटां हमगीर । धरै ग्रब ८ 'सुंदर'१६ नैण'• सधीर ॥ ६३७ गडीर तुरंग छिबै२१ भुज गैण । रचै जुध सूर पणोहित रैण । लालंबर२३ नैण अनै मुख लाल । उपै१४ वप५ तेज समुद्र उकाळ ।। ६३८ भिडै ६ बक्र'" उजळ२८ मूछ भुहार२६ ।
उभै ससि बीज तणी उणहार । १ ख. ग. सावासण। २ ख. सुतंन । ग. सुत्तन। ३ ख. लूंगा। ग. लूणा। ४ ख. ग. तीन । ५ ख. ग. सूरायण । ६ ख. कीयां । ७ ख. ग. रणसाज। ८ ग. विहै । ६ ख. दिवचंद । ग. देवीचंद । १० स्व. बंकीय । ग. वंकीय। ११ ख. बांकिम। १२ ख. मारू। १३ ख. मौहौणोत । ग. मौहणोत । १४ ख. छाहै । ग. वाहै। १५ ख. ग. वोरि। १६ ख. सिरि। १७ ख. बाज। १८ ख. प्रव। १९ ख. ग. सूदर । २० ख. वैण। २१ ख छिवे । ग. छिव। २२ ख. पुरोहित । ग. परौहित । २१ ख. लालंधर । ग. लालंबर। २४ ख. प्रोपै । २५ ख. बप। २६ ख. भिडे । २७ ख. ग. वक्र । ___ख. ऊजल । ग उजळ । २६ स्व. ग. भुंहार। ३० ख. उणिहार ।
६३६. अने - अोर । तड़ - दल, पार्टी। वंकिय - बांकुरी। वांकिम - विक्रम - शौर्य ।
मह-मारवाड़। ६३७. थटा- दलों, सेनाओं। हिचं - संहार करता है, युद्ध करता है । मेछ - म्लेच्छ, यवन ।
प्रब - गई। सुंदर - नैणसी मुहणोतका छोटा भाई सुन्दरदास । नेण - नैणसी
मुहणोत। ६३८. गडीर - ( ? )। तुरंग - घोड़ा। गंण - प्राकाश । लालबर - लाल । ६३९. भुहार - भौंहों। ससि - चंद्रमा ।
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सूरजप्रकास
[ १७६ भिडै' खग 'रैण' करै खळ भूक । 'रैणायर'२ ऊपर बाजत रूक ।। ६३६ उडै कटि पेच छिळे जळ अोट । चमकत बादळ बीजळ चोट । उपै रत चाचर काचर' अंग । चले जळ गंग तरंग'' सुचंग ॥ ६४० पॅडीस' बरंग' करै खळ पांणि । वदै४ मुखहंत हरै'५ गंग वांणि'६ । तटैगज फौज'८'विळंद'१६ तणीस । घणी खग वाहि° वहाय२१ घणीस ॥ ६४१ तठे पड़ि खेत किया२२ पिंड तत्र । रिणा - जळ गंग समेळ रगत्र । वडै २४ अवसांण वडा२५ जुध वार । धणी छळ झल्लि घणी खग धार ॥ ६४२
१ ख. भिडे । २ ख. रणाय । ३ ख. ग. वाजत । ४ ग, उडे । ५ ख. छिले। ६ ख. चमकर। ७ ख. बादल । ८ ग. वीजळ । ६ ख. प्रोप। १० ख. ग. फाचर । ११ ख. नारंग। १२ ख. ग. पांडीस। १३ ग. वरंग। १४ ख. ग. वदे। १५ ख. हरे। १६ ख. बाणि। १७ ख. तोडे । ग. तोडे । १८ ग. फोज। १६ ख. बिलंद । २० स्व. बाहि । २१ ख. बहाय । २२ ख. कोया २३ ख. तंत्र । २४ ख. बई। २५ ख. बडा। २६ ग. झेलि ।
६३६ रण - रणछोड़दास अथवा समुद्रसिंह। भूक - ध्वंस, संहार। रैणायर - रणछोड़
दास । बाजत -प्रहार होता है। रूक- तलवार । ६४०. कोजळ - विजली, तलवार । चाचर - मस्तक, शिर। काचर - ककड़ी। ४४१. पॅडीस - यवन अथवा तलवार । बरंग - खंड, टूक । वर्व - कहता है। हर-हर
हर महादेवका शब्द अथवा हरि हरि। घणीस - बहुत ।। ६४२. पिंड - युद्ध में वीर गति प्राप्त करते समय अपने रक्तके साथ मिट्टीका बांधा हुआ गोल
लौंदा जो पितरोंको अर्पित किया जाता है। रिणा-जळ - रणछोड़दास नामक योद्धा । रगत्र-खून ।
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१८० ]
सूरजप्रकास
सरस्सति' द्वारमती विचि' सूर । पयौ' म्रतस' 'रैण' वडै ध्रम पूर । जठै वरि' रंभ करै' गढ' जोड़ । छजे दिव्य देह धरै 'रिणछोड़'' ॥ ६४३ अयौ वैकुंठ हुंता सु"विमांण'। अयौ'६ सनकादिक ले अवसांण । वढे ७ वैकुंठ'८ विमांण' चलाय । परी उधरी • जिण' संगति'२ पाय ।। ६४४ वँदै पग लच्छि सहेत विसन्न५ । समीप मुकत्तिज 'देव' सुतन्न । अखै प्रथमी ८ जस एम अथागः । 'भुरा'' धनि तूझ तणौ ' म्रत भाग ।। ६४५
१ स्व. सरसति । ग. सरसत्ति। २ ख. बिचि। ३ ख. ग. पायो। ४ ख. मत । ग. मृतस। ५ ख. बरि। ६ ख. करे। ७ ख. गंग। ग. गठ। ८ ख. छजे। ६ ख. ग. धरे। १० ख. रणछोड । ११ ख. ग. प्रायो। १२ ख. बयकंठ । ग. वैकुंठ । १३ ख. ग. हुता। १४ ख. ग. सु। १५ ख. बिमाण। १६ ख. ग. प्रायो। १७ ख. ग. बढ़े। १८ ख. बयकंठ । ग. वैकुंठ। १६ ख. बिमाण । २० ख. ऊधरी। २१ खे. जिणि । २२ ख. संगति । ग. संगति । २३ ख. बंदे । २४ ख ग. लछि। २५ ख. विसंन्न। २६ ख. ग. सामीपमुकति । २७ ख. सुतंन्न । २ ख. प्रिथमी। २६ ख. येमें । ३० ख. प्रांग। ३१ ख. ग. भूरा। ३२ ख. तणे । ३३ ख. ग. मृत ।
६४३. सरस्सति - साबरमती नदीका एक नाम । द्वारमती - द्वारामती, द्वारकानाथ ।
पयो - प्राप्त किया। म्रतस - मृत्यु, अवसान । वर्ड - महान । रंभ - अप्सरा । गठ___ जोड़- गठ-बंधन । छर्ज - शोभित हो कर । ६४४. विमांण - विमान, वायुयान । पढे - गतिमान हुआ। संगति - साथ। पाय -
प्राप्त कर। ६४५. लच्छि - लक्ष्मी। सहेत - सहित । विसन्न - विष्णु। समीप मुकत्ति - एक प्रकारकी
मुक्ति जिसमें मुक्त जीवका ईश्वरके निकट पहुँच जाना माना जाता है, सामीप्य मुक्ति । देव - देवीसिंह । सुतन्न-पुत्र । प्रखै - कहता है, वर्णन करता है । प्रयाग - अपार, असीम । भुरा - वीर, योद्धा। धनि - धन्य-धन्य । म्रत - मृत्यु ।
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सूरजप्रकास
[ १८१ उरै' पित आगळ बाज' अपाल । *लड़े तदि 'रैण' तणौ नंदलाल । जवज्जव कोध सँघाट जवन्न । तिलत्तिल' कीध सिलेह खळ तन्न ।। ६४६ कट पळ कमळ'. स्रीफळ कीध । लुही'' घट'२ काढ' जिको घ्रत'५ लीध । धुबै ६ रणताळ सझाळ नधोम' । हकां धुनि वेद'८ करै इम होम । ६४७ वढे ६ तदि आप तणौ निज बाज' । स.२१ असमेध जिगन्न २३ समाज । हुवै असि ताम चढ२५ सु दुझाळ । लुहाई अवधूत दिय८ नंदलाल ॥ ६४८
१ ख. ग. प्रोरे। २ ग. वाज। ३ ख. अपा। ४ ख. जव्वजय । ५ ग. जम्वन ।
*...*चिन्हांकित पंक्तियां उ. प्रतिमें नहीं हैं। ६ ख. तिल्लतिल। ७ ख. ग. सिल्है। ८ म. तंन । ६ ख. काटे । ग. कार्ट। १० ख. कम्मल । ११ ख. ग. लोही। १२ ख. ग. पळ। १३ ख. काढ़ि। १४ ख. ग. जिको। १५ ख. ग. घृत। १६ ख. धुबे। ग. धुवै। १७ ख. ग. नृधोम । १८ ख. बेद । १६ ख. बढ़े। २० ग. तणो। २१ ग. वाज। २२ ख. सझे। २३ ख. जिगांन । ग. जिगन। २४ ख. ग. दुवै। २५ ख. चढ़े। २६ ख. ग. लोहां। २७ ख. अवहूति । ग. अवहूत। २८ ख. वीर्य ।
६४६. उरै-झोंकता है। पित - पिता। प्रागळ - अगाड़ी। बाज - घोड़ा। अपाल
बेरोक-टोक, निर्भय। रेण - रणछोड़दास । जवज्जव - खंड-खंड, चूर, ध्वंस । संघाट - समूह । जवन्न - यवन, मुसलमान । तिलत्तिल - खंड खंड, टूक-टूक, ध्वंस ।
सिलेह - कवच । तन्न- शरीर । ६४७. पळ - मांस । कमळ - मस्तक, शिर । स्त्रीफळ - नारियल । लुही- रक्त । घट
शरीर । धुबै - प्रज्वलित होता है, जोशमैं उमड़ता है। रणताळ - युद्ध-स्थल । समाळ - आगकी लपट सहित । नधोम - बिना धुंाके । हका-प्रावाज । होम -
यज्ञ । ६४८. बढे - काटता है। सझे - सिद्ध करता है, प्रसमेष- अश्वमेध यज्ञ। जिगा - यज्ञ ।
लुहां - शस्त्र प्रहारों। अवधूत - मस्त सन्यासी।
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१-२ ]
सूरज प्रकास
४
उरे' असि पांडव' जेम' अजन्न 1 करै बगसी जुध बाळकिसन्न * । जुड़े खग चोट पड़े जवनांण । पँचोळिय भांण बखांणत पांण ॥ ६४ε वँटै घट मुग्गळ
19
द्रव्य विचार ।
खै धनि रातळ दाद तियार" ६
-
I
गिळे पळ मुगळ" सांमळ ग्रोध ।
||
3
लुहां" भर पत्र सकत्तिय लीध ।। ६५०
करै सुध तीरथ वीर करंक १५ I चरव्वर' जांणिक जोगणि चक्र । जुड़े 'हरियंद' तणौ मझि जंग | इसी विध" "बाळ किसन्न १८ अभंग ।। ६५१
ह
२०
स जुध दारुण दौलतसाह 1
घड़ी खँभ
चमू खळ हिचं
दुजड़ां
१ ख. प्रोरे । ग. श्रौरे ।
२ ख. पंडव । ३ ख जम । ४ ख प्रज्जन । ५ ख. किस्सन ।
ग. किसन । ६ ख. ग. पंचोलीय । ७ ख बांटे। गं. वांटे । ८ख. मूंगल । ग. मुगळ । ख. ग. श्रा । १० ख. नियार । ११ ख. मूंगल । १२ ख. ग. लोही । १३ ख. भरि । १४ ख सकतीय । ग. सकतिय । १५ ख. ग. करक । १६ ख चरम्बण । ग. चरवण । १७ ख बिधि । १५ ग. किसन । १६ ग. भुध । २० ग. दोलतसाह । २१ ख. ग. घुस्यालहचंब |
१४
'माहव' जंग अथाह । डोहि ख्युसलहचंद" ।
मुनसी 'हरियंद' ।। ६५२
६४६. प्रजन्न - वीर श्रर्जुन ।
करने वाला बख्शी । जवनांण - यवन, मुसलमान । ६५०. खं- कहता है । धनि- धन्य धन्य, शाबाश । पक्षी. दाद- धन्यवाद । तियार उस समय । पक्षी । लुहां- रक्त, खून | पत्र - देवीका खप्पर
-
।
लोध - लिया ।
६५९. करंक - हड्डियोंकी ठठरी या खोपड़ी । चरवर
चुरबन जांणिक - मानों जोगणिरणचंडी । जुड़े - भिड़ता है, युद्ध करता है । प्रभंग - पीछे नहीं हटने वाला, वीर ।
६५२. चमू - सेना । डोहि विलोडित कर के । स्युसलहचंद हिचे युद्ध में संहार करता है । दुजड़ां - तलवारों ।
खुशालचंद नामक व्यक्ति ।
बगसी - सैनिकों को वेतन बांटने वाला, कस्बों में कर वसूल
-
रातळ
-
- एक प्रकारका मांसाहारी
सांमळ - एक प्रकारका मांसाहारी
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सूरजप्रकास
[ १८३ विढे' चंडिका पुत्र यूं वरणेस । कंठीरव पौरस जे - करणैस' । उरै' असि प्रारण वीर अरोध । जुड़े सिंघवी खग झाटक 'जोध' ।। ६५३ विजावत दूठ लड़े जिणवार । तुरी कटि प्रोहित रौ तिणवार । 'रैणातरऊत' लड़े चढि रैण' । उठे सुत मित्र" विलोकिय' एण ।। ६५४ दुबै असि आप चढे सु दुझाल । निजां" असि चाढवियो'५ नंदलाल । बिहूं'६ झलिया झड़तां खग बूर । 'पिथा' हर सूर दता ब्रद पूर । ६५५ बिढे१८ महता जुधि और वहास' । दिये' खग झाटक गोकळदास । वैरीहर'२ बाढत वीजळ वाह ।
'गोपाळ' कराळ करै गजगाह ।। ६५६ १ ख. बिढ़े। २ ख. ग. जयकरणेस । ३ ख. प्रोरे । ग. ओर। ४ ख. बीर । ५ ख. ग. संघवी। ६ ख. बिजावत । ७ ग. तूरो। ८ ग. रो। ६ ख. तिणबार । १० ग. रेण। ११ ख. मित्र। १२ ख. बिलोकिय। १३ ग. चढ़े। १४ ख. निजं । ग. निज । १५ ख. चाढ़वीयो। ग. चादवियो। १६ ख. बिन्हे । ग. बिन्है। १७ ख. ग. वद । १८ ग. विढ़े। १६ ख. अोरि । म. ओर। २० ख. ग. वृहास। २१ ख. ग, दीये । २२ ख. बैरीहर। २३ ख. बीजल। २४ ख. बाह।
६५३. चंडिका पुत्र - चारण कवि । वरणेस - वर्णन करते हैं । कंठीरव - सिंह । ज-करणेस -
जयकर्ण नामक व्यक्ति। श्रारण - युद्ध । सिंघवी - प्रोसवालोंका एक गोत्र । खग -
तलवार । झाटक - प्रहार । जोध-सिंघवी जोधमल । ६५४. विजावत - विजयराजका पुत्र । दूठ - वीर, जबरदस्त। तुरी- घोड़ा। रैणायर
ऊत - रणछोड़दासका पुत्र । ६५५. दुबै - दूसरे । निजां - अपने निजके । झलिया - शोभित हुए। बूर - प्रहार, समूह ।
व्र-विरुद। ५५६. और - झोंक कर। वहास - घोड़ा । वैरोहर - शत्रु। योजळ - तलवार । वाह
प्रहार। कराळ - भयंकर। गजगाह - युद्ध ।
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१८४
सूरजप्रकास
पछट्टत' रौद्रव चंद्रप्रहास' । दमंगळ मांझल माधवदास । वधै असि ओरवियौ जुधवार ।
राजा 'जयसाह तणौ' हुजदार ॥ ६५७ 'घासी' सुत पौरस ग्रीखम धांम । रिमां विहंडै खगि आणंद राम ।
औरै८ प्रसिदूठ छिबै असमांन । 'नरू' हर 'केहर'रौ परधान ॥ ६५८ गहम्मह'' सूर धुबै गजगाह । 'सदौ' खग वाहत' दारुण साह । हिचे खग दंगळ नौख१२ हुबास । खत्री गुर पासहवान खवास ।। ६५६ उदैसिंघ रावत गोकळऊत'५ । पछट्टत'६ खाग'७ वडौ रजपूत । पछट्टत खाग समोभ्रम पाळ' । दळे खल खीचिय'८ सूर दयाळ' ॥ ६६०
१ ख. ग. पछटत । २ ख. चदपहास । ३ ख. बधे। ४ ख. बोरवीयौ। ५ ख. जैयसाह । ६ ख. तण। ७ ख. दुजदार। ८ ख. ग. ओरे। ख. छिबे। ग.छि। १० ख. गहमह । ग. गहमह। ११ ख. बाहत । १२ ख. नौहष। १३ ख. वास। १४ स्व. गुरू । १५ ख. ग. गोकलऊत । १६ ख. पछटते । ग. पछटत । १७ ख. ग। १८ ख. बींचीय। ग. षीचीय।
६५७. पछट्टत - पछाड़ता है। गिराता है। रोद्रव - यवन, मुसलमान । चंद्र प्रहास - तल
वार । दमंगळ - युद्ध । मांझल - मध्य, में । ६५८. घाम - प्रातप, धूप । विहंडे - संहार करता है। ६५९. गहम्मह - समूह, भीड़। धुबै - जोश पूर्ण तेजीसे युद्ध कर रहे हैं । गजगाह - युद्ध ।
सवौ - सरदारसिंह । दंगळ - युद्ध । नौख - श्रेष्ठ । हुबास - घोड़ा। पास हवान -
राजाका कृपा पात्र । खवास - अनुचर । ६६०. दळ - संहार करता है, ध्वंस करता है। खोचिय - चौहान वंशकी खीची शाखाका
व्यक्ति । दयाळ - दयालसिंह ।
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सूरजप्रकास
[ १८५ वाहै' खग' 'केहर' रोस' वधंत' । वंकी खग 'केहर' सीस वहंत । फिरै खळ गेहरिया जिम फाग । खिबै घण 'केहरिया' पर खाग ।। ६६१ वरंगन कंठ धरै वरमाळ । रुका उडी' सीस चढे'' रुंडमाळ । अपच्छर सूर जोड़े हिज' प्राय । जई१५ रथ बैठि' वसै झुगि ८ जाय ॥ ६६२ अमावड़ तेज मजेज असाधि' । वाहै खग धावड़ पौरस' वाधि' । बंगाळक झाटत खाग अबीह । सझे जुध दारुण ठाकुरसीह ॥ ६६३ दिपै२५ वप लोह वरन्न' सिंदूर । 'सांमावत' जाण८ उदैगिर सूर ।
१ ख. बाहै। २ ख. षगि । ३ ख. रोस । ग. रौस। ४ ख. बधंत। ५ ख. बंकी।
ख. बहंत । ७ ख. ग. वारंगन । ८ ख. धरे। ख. रूका। १० ख. ग. उड़ि। ११ ख. धरे । ग. चढ़े। १२ १२ ख. ग. अपछर । १३ ख. जोडे । १४ ग. होज । १५ ग. जइ। १६ ख. वैसि। १७ ख. वस। १८ ग. भुगि। १६ ख. ग. असधि । २० ख. बाहै। २१ ग. पोरस । २२ ख. ग. बाधि। २३ ख. बंगाल। २४ ख. ग. सझे। २५ दिये। २६ ख. बपि। २७ ख. बरंन । ग. वरन। २८ ख. जांणि ।
६६१. केहर - केसरीसिंह। रोस - जोश। वकी - बांकुरी। वहंत - प्रहार होता है।
गेहरिया-होलिकोत्सव पर डंडा रास रमने वाले । फाग - फाग उत्सव । खिबे
चमकती है । केहरिया - केसरीसिंह । ६६२. वरंगन - अप्सरा । रूका - तलवारों। जोड़े - पास । जई - उस, उसी, विजयी ।
गि - स्वर्ग। ६६३. अमावड़ - अपार, असीम। मजेज - शीघ्र। असाधि - ( असाधारण ? ) ।
धावड़- राजकुमारको दूध पिलाने वाली स्त्री [धाय का पति । वाधि - विशेष ।
बंगाळक - मुसलमान । ६६४. दिपै - शोभित हो रहे हैं ।
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१८६ ]
सूरजप्रकासः
इसी' विध' जेठिय' जोम अताळ । कणैठिय' तास लड़े कळचाळ ॥ ६६४ झोकै असि देत खळां खग झाड़ । महापति धावड़ लोह मराड़ । जिको जुध वार भोजावत जेम । उछट्टत'' बाज निलागर एम* ॥ ६६५ वहै अस्व गाहटतो धड़ वाधि । अळझत'' ओयण अंत असाधि'२ । अठी' हुसनायक सूत इलाज । कसी किर राह सिखावण काज ॥ ६६६ हुबै धरि क्रोध गजांथटहूंत । करै हथवाह कुंभाथळ कूत । "पडै रुहिनाळ तणा परनाळ । खळक्कत'५ जांणिक गैरुव'खाळ ॥६६७
१ ग. इसि । २ ख. बिधि । ग. विधि। ३ ख. ग, जेठीय। ४ ख. ग. कणेठीय । ५ ख. कलिचाल । ६ ख. झोके । ७ ख. झाट। ८ ख. महपति । ९ ख. मराट । १० ग. उछटत।
___*यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । ११ ख. अलूफत । १२ ख. ग. असधि । १३ ख. ग. पाटी। १४ ख. ग. हौसनायक । १५ ग. खळकत । १६ ग. गॅरुव ।
....चिन्हांकित पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं।
६६४. जेठिय - ज्येष्ठ, बड़ा। जोम - जोश। प्रताळ - असीम । कणैठिय - कनिष्ठ,
छोटा । तास - उसका । कळचाळ - युद्ध, योद्धा। ६६५. झाड़ - गिरा कर । लोह-शस्त्र-प्रहार । मराड़ : मराट-जबरदस्त । उछट्टत-कुदाता
है। बाज - घोड़ा। निलागर - घोड़े का नाम जो रंग विशेष के कारण होता है। ६६६. प्रोयण - चरण, पैर। अंत - प्रांत । असाधि - असंभव । ६६७. हुबै- पूर्ण तेजीसे युद्ध करते हैं। गजांथटहूंत - हाथी दलके समूह से। हथवाह
प्रहार । कूत - भाला। रुहिनाळ - रक्तका नाला । परनाळ - नाला । खळक्कत - कल-कल शब्द करते हुए पानी प्रादि चलते हैं। जाणिक - मानों। गैरुव - गेरू नामक धातू । खाळ - नाला ।
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सूरजप्रकास
[ १८७ तठे करि खीज वहै तरवार' । प्रकाळिय' बीजतणी उणिहार । गजां करि खंडळ तंडळ गात । पिवै जिम कोध हुवा वज्रपात ॥ ६६८ खुटै जरदैत जिकै इम खांति । तुटै तिम साबण दाबण तांति । मँडै कट तेग हुवै मसतांन । खंडै अँगरेज' रु नाहर खांन ॥ ६६६ पछट्टत" रूक अमोसह पूर । हिचे पडि मीर वरी' दोय हुर । चहच्चह'४ नारद संकर चंड । खहै'५ इम गूजर गूजर खंड ॥ ६७० अणी सर साबळ फूटत ऊक । रुद्रायण' वाह करै घण रूक । भयांणख भेख सरां छड़ भार । दुहूंवळ१८ धार रगत्त, दुसार ॥ ६७१
१ ख. तरवारि। २ ख ग. प्रकाळीय। ३ ख. उणिहारि । ग. अणुहार । ४ ख. पर्व । ५ ख. बज्रपात । ६ ख. ग. जिके । ७ ख. मंडे । २ ख. झट। ख. षडे । १० ग. अंगरेझ। ११ ख. पछटत । १२ ख. अमोसम्ह । १३ ख. बरी। १४ ख. ग. चहचह। १५ ख. ग. षहै। १६ ख. रौद्रायण । ग. रोद्रायण १७ ख. बाह । १८ ख. दुहंबल। १६ ख. रग
६६८. खोज - कोप । प्रकाळिय - असामयिक, अकस्मात । बीजतणी - बिजलीकी, वज्र
पातकी। उणिहार - समान । खंडळ - ध्वंस। तंडळ - संहार । गात - शरीर ।
पिव = पर्व - पर्वत । ६६६. खुटै- समाप्त हो गये। जरदैत -- कवचधारी। साबण - साबुन । तांति - तार । ६७०. पछट्टत - प्रहार करता है । रूक - तलवार । हूर - अप्सरा। खहै - युद्धक रता है। ६७१. अणी - नोंक। साबळ - भाला विशेष । ऊक - तेज धार। रुवायण - यवन ।
वाह-प्रहार । भयांणख- भयानक, भयावह । सरां-तीरों। छड़ - भाला। दुहंधळ - दोनों ओर । रगत्त- खून ।
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१८८ ]
सूरजप्रकास
२
वपां' व्रण चोळ वर्णे तिणवार । जोधपति हूंत सभेस जुहार । स रवि सेस महेस सराह । अत्रण' वार 'प्रभैमल' वाह" || ६७२
६७३. धख
१२
तई धख " होण परी भरतार |
१३
१४
विढे असि और ४ चवत्थियवार " ।
करें महरांपति झाट
-
करोध ।
जुटै घण टूक हुवं खळ जोध ।। ६७३
६
१७
सुरां गुर पूर भिलै '
१८
तजै असि भोमि
२०
सत्रां
धडां
वढे
२२
हरक्खि कटेज " धरे अँत्रावळि पाय रुळत
रंग |
६७२. वर्षा - शरीर पर | व्रण - वर्ण, अभयसिंह | सभेस करता है। जुहार तीन । प्रभैमल - महाराजा अभयसिंह |
२३
—
अंगि सार ।
तिणवार |
१६
महपति करंत पग दे खग वाहत
६ ख. ग. तृण ।
१३ ख. बिढ़े।
१ ख बपं । २ ख. ब्रम । ३ ख. बणे । ग. वणे । ६ ख ग. ससु । ७ ख. ग. जुव्हार । ८ श्राषे । ११ ख षग । ग. धषं । १२ ख. ग. होण । श्रोरि । ग. प्रोर । १५ ख. ग. चवत्थीयवार । १६ ख. सूरां १८ ख. तजे । १६ ख वढे । २० ख. ग. हरषि । २१ ख २२ ख. ग. धरे ।
।
२३ ग. महपत्ति |
-
रंभ हार ।
अपार ।। ६७४
संघार ।
धार ।
४ ख. ग. तृणवार ।
-
५ ख. हंस ।
१० ख. बाह ।
ग. विढ़े ।
प्रबल आकांक्षा । विढे युद्ध करता है । चवत्थियवार - चौथी बार । महरांपति- गूजर सरदार |
६७४. हरक्खि - हर्षित हो कर । रंभ - अप्सरा । अँत्रावळ प्रांतें, अंत्रसमूह । पाय - पैर, चरण । रुळंत - इधर-उधर गिरते हैं ।
६७५. सत्र - शत्रुनोंका संघार
संहार । धडां - शरीरों ।
१७ ख. ग.
कंठेज । ग.
चोळ - लाल । जोधांपति - महाराजा
अभिवादन ।
श्रखं कहता है । त्रण -
-
१४ ख.
झिले ।
कंठैज ।
धार - तलवार ।
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सूरजप्रकास
[ १८६
करै नप' वीर जय जय कार । हकां करि जांणि रमे' होळियार ॥ ६७५ दळां अग्नि भोमि जिकै क्रम दीध । कई असमेध जिगांनसु कीध । परी चंड ग्रीध जटी हित पूर । समावत खेत पड़े इम सूर ॥६७६ अयौ रथ बैसि समोसर इंद । वस' सुरधाम अपच्छर'" वींद'' । विढे १२ जुध'3 'धांधिल' अोरि व्रहास । पेखै १४ हथ वाग कसै'५ सपतास ।। ६७७ 'अखौ'१६ खग वाहत'" सूर अबोह । सझे'८ खग हाथळ जांणिक सीह ।
औरै असि बंधव दोय अमांन । भिड़े खग झाट 'नरौ' 'भगवान' ।। ६७८ जुड़े मगरूर 'मुकंद' सुजाव । दळां झज्र' उझळतां दरियाव ।
१ ख. नुत । ग. नृप। २ ख. ग. रमै। ३ ख. ग. होलीयार । ४ ख. जिके। ५ ख. केई । ग केह। ६ ख. ग. पडे। ७ ख. प्रायो। ग. प्रायो। ८ ख. बैप्ति । एस. बसे । ग. वसे। १० ख. ग. अपछर। ११ ख. व्यंद। ग. व्यंद। १२ ख. बिढ़े। १३ ख. जुधि । १४ ख. पेष । १५ ख. ग. कसें । १६ ग. अषो। १७ ख. बाहत । १८ ख. ग. सझे। १६ ख. ग. गज। २० ख, ग. ओरे । २१ ख. वज्र । ग. वन।
६७५. हकां-- अावाज । होळियार - होलिकोत्सव पर चरचरी नृत्य करने वाला। ६७६. क्रम - चरण, पर। दोध - दिये। असमेध - अश्वमेध । जिगांनसु- यज्ञ । चंड
रगाचंडी। ६७७. अयो - प्राया। बैसि -बैठ कर। समोसर - बराबर । वौंद - दूल्हा । धांधिल -
धांधल शाखाका राठौड़ । पेखै - देखता है । सपतास - सप्ताश्व । ६७८. अखौ - प्रखंसिंह। हाथळ - सिंहका पंजा जिससे वह प्रहार करता है। अमान -
जबरदस्त । नरौ- नाम है। भगवान - भगवानसिंह । ६७६ जुड़े - भिड़ता है। सुजाव - पुत्र ।
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१६० ]
सूरजप्रकास
सत्रां दळ वाहत जंग समाथ । सौ सौ खग झेलति हेकणि' साथ ।। ६७६ वणे' वप कुंदण मांहि वणाव' । जडै सर साबळ घाव जड़ाव । धरा' पुड़ वेधि रंगै अहि धौळ । छिलै रुहिराळतणी अति छौळ' ।। ६८० घणा खळ पाड़ि पड़े'२ घमसांण । वरै बिहुवै रंभ बेसि'५ विमांण" । पिता जिम खाग झटां म्रत पाय । किया गिवास सुजस्स कहाय' ॥ ६८१ हुवा झुगि' वासिय ने अमर' होय । पुरासह ४ सराहत धांधल१५ दोय । अखै ६ प्रथमी जस भाग असाधि ८ । वणे 'उण जीवण हूं म्रत 'वाधि३२ ।। ६८२
१ ख. ग. एकणि। २ ख. ग. वणे। ३ ख. बणाव। ४ ख. जठे। ग. जडे । ५ ग. सावळ । ६ ख. धडा । ७ ख. जुध । ८ ख. बेधि । ९ स्व. ग. रंगे । १० क. विले। ११ ख. छोल। ग. छोळ। १२ ख. ग. पडे। १३ ख. ग. वरे। १४ ख. बिहब। १५ ख. बैसि । ग. वैसि। १६ ख. बिमाण। १७ ख. ग. मृत। १८ ख. कीया। १९ ग. भुगि । २० ख. सुझस । २१ ग. शुगि। २२ ख. बासीय। २३ स्व. अंम्मर । २४ ख. पुराह । ग. दुरासह । २५ ख. धांधिल । २६ ख. ग. .प्रा । २७ ख. प्रिथमी। २८ स्व. ग. प्रसंधि। २६ ख. ग. वणे। ३. ख. घण। ३१ ख. ग. मृत। ३२ ख. बांधि ।
६७६. समाथ - समर्थ, योद्धा । हेकणि - एक ही। ६५०. कुंदण - सोना। वणाव - शृगार, सजावट । धाव - प्रहार। जड़ाव - जटित
होनेकी क्रिया या भाव । अहि- शेष नाग। धौळ - शिर, मस्तक । छिलै - उम
ड़ती है। रुहिराळतणी - खूनकी, रक्तकी। छोळ - धारा । ६.१. घमसांण - युद्ध । वर-वरण कर के। रंभ- अप्सरा। बैसि - बैठ कर । ६८२. सराहत- सराहना करते हैं । धांधल- राठौड़ वंशकी धांधल शाखाका वीर । प्रखै
कहता है। प्रसाधि - असाध्य, कठिनतासे प्राप्त होने वाला। वाधि - विशेष, बढ़ कर ।
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सूरजप्रकास
त्रिहूँ खग वाहत' प्रातस ताप ।
प्रचंडक 'आनंद' 'जैत'
'प्रताप' |
जठै किरमाळ भटां
५
भिड़े गहलोत थंभ' रथ जोगावत 'ऊदल " ऊभळ पछट्टत खाग हणै वज्र बिहारियदास अभंग
Wim
सहांणिय
पछंटत
90
लड़े सुत 'वीरम'' अंबर नथम्मल' नाहर रूप झाड़े " खळ नाहर खां खग झाट । हिचे असि और खगां पडिहार ।
१२
रांमति
१४
जमरांण ।
भांण ॥ ६८३
जोस ।
पोस ।
93
ऊत्तग चंद्रहास |
खळ" मुग्गळ " सांमळदास |
€
'सुभौ १७ खग वाहि" करंत सकाज । जठै खग वाह' करें 'जसराज ' ॥ ६८६ १ ख बाहत । २ ख. गहलोत । ६ ख. ग. पछटत । ७ ख. बज्र । ग. नथमल । ११ ख. ग. झाडे । उनग । १४ ख. स । सोमो । १८ ख. बाह ।
व्रजागि ।
--
लागि ।। ६८४
निराट |
मंडत सार ।। ६८५
६८३. प्रचंडक - जबरदस्त ।
किरमाळ - तलवार
।
ऊळ
६८४ . ऊदल - उदयसिंह | उमड़ा हुआ, अपार । पछट्टत प्रहार करता है । हणे - संहार करता है। वज्र पोस कवचधारी योद्धा (?) अभंग - वीर वज्रागि = वज्राङ्ग जबरदस्त । वीरम - वीरमदेव | नंबर - आसमान ।
६८५. नथम्मल निराट - सिंहके समान भयंकर रूप धारण किया हुआ नथमल । झाड़े
रेख करने वाला, घोड़ों को ६८६ पर्छटत - प्रहार करता है।
काटता है, गिराता है । खग भाट - तलवारका प्रहार सहांणिय- घोड़े की देखशिक्षित करने वाला। रांमति खेल, क्रीड़ा। सार-तलवार । ऊतंग - ऊंच । चंद्रप्रहास- तलवार । साझे - संहार शुभकरण या शुभराम ।
करता है. मारता है । सुभौ
३ ख थंभे । ४ ख जोगाव । ५ ग. उदल । ८. ग. विहारीयदास । ६ ख. बीरम । १० ख. १२ ख. श्ररि । ग. श्रोर । १३ ख. ऊनग । ग. १५ ख. जग । १६ ख. मूंगल । ग. मुंगळ । १७ ख. ग. १६ ख. बाह ।
[ १९१
श्राणंद- प्रानंदसिंह । जैत- जैतसिंह । प्रताप - प्रतापसिंह । भटां- प्रहारों । थंभ - रोकता है। भांण- सूयं ।
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१९२ ]
सूरजप्रकास
1
करै जुध बीच' अडिग कदम्म' | पछट्टत वीजळ' 'मांन' पदम्म । मँडे' 'बखतेस' अनै भड़ 'माल' " दुग्रौ भड़ 'लाल' लडंत दुकाल ।। ६८७ भिड़े ख ( ग ) गुरूर खत्रीवट भेव । दियै खग भाट खळां जयदेव " ।
वधै 'क' "" और " घड़ा विचि " बाज 3 1
१४
१५
'सुभावत'"" वाहत खाग सकाज ॥ ६८८
उठे रिणछोड़ सुजाव अरोड़ ।
१६
१८
घड़ां खळ वेधत" सेल
घमोड़' I
१६
विभाड़त रोद घड़ा" हळवाह *
1
दुहुंदळ साह || ६८६
अपाल ।
3
सराहत राह उभेल बगत्तर** पोस 'लखै' धज सेल कियौ रंग लाल । जड़े २४ पहिला खळ साबळ जास । दिये खग भाट तुळछियदास ॥ ६६०
२५
१ ग. बीच । २ ख. लड़े । ६ ख. लाल । ग. छ्क । ११ ख. ओरि । वत । १५ ख. बाहत । १६ ख बिभाड़ंत । २० कीयौ । २४ ख. नडे ।
I
५ ख.
१० ख.
कद्दम । ग. कदम | ३ ख. बीजल । ४ ख. ग. पद्दम । ७ ख. दीयं । ख. जगदेव | ६ ख बधे । रा. वधे । १२ ख. बिचि । १६ ख. धडां । ख. षंडा । २१ ख. हलवाह । २२ ख. बगतर । २३ ख. २५ ख. दीये ।
१४ ख. ग. सोभा
१५ ख. ग. धमोड ।
१३ ख. ग. वाज
१७ ख. बेधत ।
६८७. अडिग - अटल, दृढ़ । कदम्म-पैर, चरण। मांत मानसिंह । पदम्म - पद्मसिंह । दुनो - दूसरों । लाल - लालसिंह ।
६८८. खत्रीवट - क्षत्रियत्व । घड़ा - सेना । बाज - घोड़ा ।
६८६. सुजाव - पुत्र । प्ररोड़ जबरदस्त । वेधत छेदन करता है । घमोड़ - प्रहार । विभाड़त - ध्वंस करता है, संहार करता है । रोद - यवन । हळवाह - बलराम । ६०. उझेल - उधेड कर, चीर कर । बगत्तर पोस - कवचधारी योद्धा । धज - घोड़ा ।
-
-
-
।
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सूरजप्रकास
[ १६३ महबळ सूर दिनां मकरंद । चखां करि चोळ' लड़े भड़ 'चंद' । जठै भड़ 'तेज' हणूमत' जाति । जुड़े हरनाथ' करूर जमाति ॥ ६९१ तती खग झाट खळां सिर तांम । सझै अबदार" चह्वांण संग्राम । 'अबा' हत खाग जिसी झळ अग्गि । विहारियखां नर राम वजागि ।। ६६२ गाढागुर' गूजर रौस'२ गरूर । सझै जुध 'सुंदर'४ 'खेतल'१५ सूर । वकारत' रोद खळा हळ वाहि'८ । 'मन्नौ' हरदास लडै जुध मांहि ॥ ६६३ 'अभैमल' आगळ सूर उदार । विढे ६ इम मांगळिया जुध वार' । हिचे रण छोड़ने 'लखौ'२३ 'हरियंद' । 'विजौ'३४ खग वाढत थाट 'विलँद' ॥ ६६४
१ ख. चौल। ग. चाळ। २ ख. वंद। ३ ख. हणूंमत । ४ ख. हरिनाथ । ५ ख. ग. जमाति। ६ ख. झाल। ७ ख. ग. प्रवदार। ८ ख. ग. अवाहत। ख. ग. पागि । १. ख. बिहारीयष।। ग. विहारीयषां । ११ ख. गाढ़ांगुर । १२ ख. ग. रोस। १३ ख. सझे। १४ ख. सुंदर। १५ ख. लत। १६ ख बकारत । १७ ख. पंडा। १८ ख. बाहि। १६ ख. बिढ़े। २० ख. ग. मांगळीया। २१ ख. बार। २२ ख. ग. रिणछोड। २३ ग. लषो। २४ ख. बिजौ। ग. विजो। २५ ख. बाढ़त ।
६६१. चखा - नेत्रों। चोळ - लाल । चंद - चंद्रसिंह । तेज - तेजसिंह । हणूमत जाति -
हनुमानके वंशज, जेठवा शाखाका वीर । ६६२. तती - तेज । अवा - अभयसिंह । झळ - पागकी लपट । ६६३. सुंदर - सुंदरदास गूजर । खेतल - खेतसिंह गूजर । ६६४. प्रभमल - महाराजा अभयसिंह । विढे - युद्ध करते हैं, वीर गति प्राप्त होते हैं।
मांगळिया- गहलोत वंशकी मांगलिया शाखाका वीर। थाट- सेना, दल ।
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१६४
सूरजप्रकास
धांधू रिणछोड़ वाहै' खग धार । दगावत तोप चह्वांण उदार । जिको भड़ 'खेतल' क्रोध जड़ागि । खपावत मेछ दळां झट खागि ॥ ६६५ 'बहादर 'डूंगर'५ सेजवदार । सत्रां रिण सेल सुं वोहत सार । इसी विध लूण प्रताप अपार ।
भिड़े भड़ रीठ पडै गजभार ॥ ६६६ कवित्त- ख्वाज-बगस हठिखांन' निडर'' मूजायद' नायक ।
बलू खांन अजमति' इनतुल्ला अजरायक । ताज बळी जल्लाल छोह नाहर जिम छूटा ।
'प्रभातणा' भड इता जवन जवनांहूं जूटा' । 'भगवंत' हजारी 'धनड़' भड, रण मझि घोड़ा राळिया' । खुरसांण देस बिहंडे" खगां, पूरब देस उजाळिया'८ ॥ ६६७
असि 'धनियै' औरियौ', 'हरी' 'गोपै' करि हाकां । 'अखै' 'उद'२० 'पास' 'किसन' 'सूजडै' काजाकां ।
१ ख. व्वाहै। २ ख. ग. जिको। ३ ख. षेलत। ४ ख. ग. बाहावर । ५ ख. डगर । ६ ख. ग. सेझबरदार। ७ ख. वाणंत । ८ ख. ग. विधि । ९ ख. लूंण। १० ख. हठीषांन। ११ ख. निजर। १२ ख. मुजाहिद । ग. मुजायद। १३ ख. अजम्मति । १४ ख. इनातुल्ला। १५ ख. जूटो। १६ ख. रालीया। १७ ख. बिहंडे। १८ ख. उजालीया । १६ ख. पोरीयो। ग, प्रोरियो। २० ख. ऊद ।।
६९५. धांधू - राठौड़ वंशकी एक उप शाखा। दगावत - तोपें छुड़ाता है। जड़ागि -
(?) । खपावत - संहार करता है। ६६६. सेज वदार - राजा महाराजाओं के पलंग बिछाने वाला, शैया बिछाने वाला। ६६७. स्वाज-बगस - ख्वाजाबख्श नामक यवन । मुजायद -(?) इनतुल्ला- इनायतु.
ल्ला खां । अजरायक - जबरदस्त । प्रभातणा - महाराजा अभयसिंहके। राळियाझोंक दिये।
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सूरजप्रकास
[ १६५ महपति 'मुरळी' 'रयण', 'जगड़' 'बगसै' चंद्र जैते । 'उगर' खेत दौळिय' बहसि' 'धनिय' विरदैते ।
औरिया* तुरंग जूटा अडर, छूटा बाघ छछोहड़ां । सिध 'प्रभातणी' चेळा सकळ, लड़िया वधिवधि लोहड़ां ।। ६६८ वारी भड़ विरदैत'१ वधै'२ 'जीवणौ १३ विहारी । 'वछौ'१५ 'विजौ'' ६ 'हमीर' 'अणदौ १७ 'सिवौ'१८ अग्रकारी । निधो ६ मवातीखांन. सरफ राजखां सिपाही ।
सेख' सीदक्क'२ सीम, वधे इतरां खग वाही । वरजागि वाढ६ अोझट वहै८, आगि खळां सिर ऊपड़े । पीरसा पैक प्यारौ प्रचंड, 'लाल' सहेत. जुध' लड़े ॥ ६६६
'निजरु' अनै 'करीम' बिन्है३ पड़दार वहादर । नगारची३४ 'नाहरौ' हाक ५ करि और 'हैमर'3७ । 'राजू' सुतन 'जलाल'3८ एकई हथि त्रंबक वजावै ।
इक हथ' खागां४३ उनाग धाय असूरां दळ धावै । १ ख. दौलीयो। ग. दोलिय। २ ग. वहसि । ३ ख. धनीय। ४ ख. बिरबते । ५ ख. ओरीया। ६ ख. वाग । ग. वाघ । ७ ख. ग. प्रभातणा। ८ ख. लडीया। १ ख. ग. बधि बधि । १० ख. बारी। ११ ख. विरदैत । १२ ख. बधे। ग. वधे। १३. ग. जीवणो। १४ ख. बिहारी। १५ ख. छठौ। ग. बछो। १६ ख. बिजौ । ग. विजो। १७ ख. अणंद । ग. अणदो। १८ ख. सेवो। १६ ख. निधौ। २० ख. धवातीषांन । २१ ख. ग. सेषर। २२ ख. ग. सोदक । २३ ख. बधे । ग. वधै। २४ ख. बाही। २५ ख. बरजागि। २६ ख. बाढ़। २७ ख. ग. प्रोझट। २८ स्व. बहै। २९ ख. सिरि। ३० ख. ग. सहैता। ३१ ख. जुधि । ३२ ग. विन्है। ३३ ख. ग. बाहादर । ३४ ख. नागारची। ग. नंगारची। ३५ ख. हक्क। ३६ ख. ग. गोरे। ३७ ख. हैम्मर । ग. हैमर। ३८ ख. ग. जलाल। ३६ ग. एके। ४० ख. बजावं। ४१ ख. हत्य। ४२ ख. ग. षाग।
६६८. अोरिया - प्रागे बढ़ाए। ६६६. घिरदेत - विरुदधारी, यशस्वी । परजागि - सुध्ढ़ शरीर वाले, वजाग । प्रोझट -
भयंकर। ७००. बिन्है - दोनों। पडदार = पर्दःदार - छिपाने वाला, द्वारपाल । नगारची- नगाडा
बजाने वाला। हाक-जोशपूर्ण प्रावाज । और-झोंकता है। हैमर - घोड़ा। बक-नगाड़ा। उनाग-नंगी। घाय- घाव, प्रहार । घावं-संहार करता है।
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१६६ ]
सूरजप्रकास साहू' औलगां गोळा' समर, आछटि खग हंस ऊछळि ।
ध्रपी' परणी अपछर अगंज, मलानूर हूंता मिळे ॥ ७०० दूहौ - वडी फौज इण विध विहद'", वरण'' कही विसतार' । इण आगळ'३ 'अधराज' रौ, समहर वरणण'४ सार ॥ ७०१
राजाधिराज बखतसींहजीरा जुधरौ वरणण छंद त्रोटक- जुधि झाल कराळ उठत'५ जठै ।
असि हाकलिया 'बखतेस'१६ अठ। चख चोळा' झळाहळ रीस चडी । भुह ८ ऊपर मौसर जाय भिड़ी ॥ ७०२ धर-धारक सीस धम'६ धमिया । अतळी' - बळ वाजिंद'२ उप्रमिया२३ । विच४ फौज रैवत ५ पसाव वहै । कवि प्रोपम तास प्रकास कहै ।। ७०३
-
१ ख. साहु । ग. साहू। २ ग. प्रौळगां। ३ ख. गोलो। ग. गोलो। ४ ख. ऊछले । ५ ख. गंध्रपी। ६ ख. यरणि । ग. परणि। ७ ख. दूहा। ग. दोहो। ८ ख. बडी। ६ ख. बिधि। १० ख. बिहद । ११ ख. बरण। १२ ख. बिसतार। १३ ख. प्रागलि । १४ ख. बरणण। १५ ख, ग. उडत । १६ ग. वषतेस। १७ ग. चौळ । १८ ख. ग. भौह । १६ स्व. धर्म। २० ख. ग. धमीया । २१ ख. अतुली। २२ ख. बाजंद। २३ ख. ऊप्रमीया । ग. ऊप्रमीया। २४ ख. विचि । ग. विचि। २५ ख. खेत । ग. रेवंत । २६ ख. बहै।
७००. समर - युद्ध । हंस - प्राण । मलानूर - ( ? )। ७०१. प्रागळ - अगाड़ी। अधराज - महाराज बखतसिंहकी उपाधि राजाधिराज थी, उसका
संक्षिप्त रूप, अधिराज । समहर - युद्ध । ७०२. हाकलिया - हांके, चलाये। बखतेस - नागौरपति महाराज बखतसिंह। झळ हळ -
अत्यन्त तेज, भयंकर । भुह - भौंहैं। मौसर - इमथु, मूंछ । भिड़ी- स्पर्श की। ७०३. धर-धारक - शेषनाग । धम धमिया - कंपायमान हुये, प्रहारयुक्त किये (?) । अतळी
बळ - अतुल्य बलशाली। वाजिद - घोड़ा । उप्रमिया - ( ? )। रवंत-पसाव - महाराजा बखतसिंहके का नाम ।
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ख
सूरजप्रकास
[ १९७ असवार सरूप सतेज इसी ।* जगचख्ख अनै सपतास जिसौ । जुधि नेत्र भड़ां रंग जावकरा । प्रजळे झळ जांणिक पावकरा ॥७०४ काढियां' खग साबळ' झोक कियां । लगियां सिर अंबर वाग लियां । आविया अजरायळ सूर इसा । जमराव तणा उमराव जिसा ।। ७०५ उण घूमर क्रोध झळा ऊझळी । अड़िया असुरांण उचार अली । सयदांण जुवांण विरांण सजं । गुमगंण उफाण अरोह गज ।। ७०६ करिपांण सुताण कमांण" कसै । वरसांण'२ सरांण तणा वरसै' । कमांण केकाण उडांण कळा । झकिया१४ घमसांण उफांण झळा ॥ ७०७ *ख. प्रतिमें यह पंक्ति इस प्रकार है
असवार सतेज सरूप इसौ ।' १ ख. काढ़ीया। २ ग. सावळ। ३ खः कीयां। ४ ख. लगीयां। ५ ख. बाग । ६ ख. ग. लीयां । ७ ख. प्रावीया। ८ ख. धूमर । ६ ख. अडीया। १० ख. बीरांण । ग. वीरांण । ११ ख. कबाण । १२ ख. बरसांण । १३ ख. बरस । १४ ख. ग. झोकीया।
७०४. जगचक्ख – सूर्य । मन - प्रौर । सपतास - सप्ताश्व । प्रजळ - प्रज्वलित होते हैं ।
झाळ - आगकी लपट । जाणिक - मोनो। पावकरा- अग्निके । ७०५. साबळ - भाला विशेष । अंबर - आसमान । प्रजरायळ - जबरदस्त । जमराव
यमराज। ७०६. घूमर - सेना, दल । झळा - पागकी लपट । उझळी- उमड़ी। सयदाण - यवन ।
जुवांण - जवान, युवा । गुमरांण - गर्व (?) ७०७. सु तांण - तान कर। कमांण - कमान, धनुष । परसांण- वर्षा। सरांण - तीर,
बाण । कमांण – राठौड़ । केकाण - घोड़ा । झुकिया - संलग्न हुए। उफांण - उबाल।
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१६८ ]
सूरजप्रकास
सिलहांण अँगांण वेधांण' सरां' । पखरांण केकाण अभीच परां । अति स्रोण उफांण' धरांण धसी । जगचख्ख उगांण क्रनांण जिसी ।। ७०८ हिंदवांण" तुरक्कांण हिचे । रिण ढांण वीरांण नतांण'' रचे । करड़क्क हुवै सिलहक्क कड़ां । धमचक्क भचक्कत सेल धड़ां ॥७०६ वधि' चक्क उचक्कत'२ राहविये । करि हक्क'४ कटक्क रटक्क°५ किय'६ । विजळां१७ सिलहक्क जरक्क वहै । रथ थांभि६ अरक्क थरक्क रहै ।। ७१०
१ ख. बेधांण। २ ख. सरं। ३ ख. परं। ४ ग. ऊफांण। ५ ख. इसी। ६ ख. क्रनाल। ७ ख. हिंदर्वाण अन । ८ ख. ग. तुरकांण । ६ ख. बरांण। १० स्व. ग. नतांण। ११ ख. बंधि । ग. वधि। १२ ख. ग. उचक्कत । १३ ख. बीय । ग. वीर्य। १४ ख. ग. हक्कक । १५ स्व. रटक्की। १६ ख. ग. कीये। १७ ख. बीजला। ग. वीजलां। १८ ख. बहै ! १६ ख. थामि। २० ख. रहे।
७०८. सिलहांण - कवच, सिलह । अंगांण – शरीर । वेधांण - वेधते हैं। सरां-बाणों।
पखरांण – कवच । अभीच - योद्धा (?)। स्रोण - खून । धरांण - भूमि ।
उगांण - उदय-काल । ऋनांण - किरणें । ७०६. हिवाण - हिंदू । तुरकाण - तुर्क, यवन । हिचे- युद्ध करते हैं। रिण-ढांण - युद्ध
स्थल । वीरांण - युद्धप्रिय भैरव जिनकी संख्या राजस्थानीमें बावन मानी जाती है, अन्यत्र चौसठ ही योगिनिएं और चौसठ ही वीर होते हैं। नतांण - नत्य । करड़क्क - ध्वनि विशेष । सिलहक्क-कवच । धमचक्क - युद्ध । भचक्कत-प्रहार
या प्रहारकी ध्वनि । ७१०, बषि - पूर्ण । चक्क - दिशा। उचक्कत -(?)। हक - प्रावाज । रटक
माक्रमण, हमला। विळा -- तलवारें। जरक - प्रहार। मांभि- रोक कर । भरक-सूर्य । परक्क- चकित हो कर ।
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सूरजप्रकास
[ १६६ चमराळ दळां अति रीस चढी । करि क्रोध . धिराज नराज ।
कढी । सत्र थाट घड़ा' चवगांन सिरै । कवियांण रैवंत' - पसाव करै ॥७११ तरवार वहै' असवार सटे । जरदैत हुवै दोय टूक जठै । करि जीण सपख्खर बाज' कटे । दहोई खळ एम तुरी दवटै ॥७१२ प्राय दांत चढे स्रगि दैत इतां । करि झाट उडावत , सीस कितां । धर हूं अंतरीख करी. निधरै । करि हार महेस सिगार' करै ॥७१३ धड़ धार अपार लुहा' धररै । भभरूक' भयंकर पत्र" भरै । परिवार सहेत हुवै त्रपती । जुगणी वसठ'५ सगति जिती ॥ ७१४ कमधज'६ गजां सिर घाव करै ।
जुध मारण दारण दाव धरै । १ ख. धड़ा। २ ख. ग. रेवंत। ३ ख. बहै। ४ ख. जूक। ५ ख. ग. जठे। ६ स्व. कटि । ग. करी। ७ ग. वाज। ८ ख. ग. वहीडै । ९ दबटै।। १० ख. करिन। ग. करिनि। ११ ख. सिंगार। १२ ख. ग. लोही। १३ ख. भभरूत। १४ ख. पन । १५ ख. चवसठी। १६ ख. कमधज्ज ।
७११. चमराळ - यवन, मुसलमान । धिराज - राजाधिराज, महाराजा बखतसिंह । नराज
तलबार । सत्र - शत्रु । थाट - दल । चवगांन - मैदान । कपि- वानर । डाण
छलांग। ७१२. सपख्खर - कवच सहित (घोड़ा)। बाज - घोड़ा । बहोई - दौड़ते हैं। दवटै -
दौड़ता है। ७१३. अंतरीख - प्राकाश । महेस - महादेव। ७१४. भभरूक - राजस्थानी लोक कथानों में प्रसिद्ध एक भूत भाभरो। सहेत - सहित ।
त्रपती - तृप्त होनेका भाव । जुगणी -रणचंडी।
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२०० ]
सूरजप्रकास
लड़ता अंग लोह छछोह लगै' । जगि' जांणिक ज्वाळ अहूति जगै' ।। ७१५ अरणांग पतंगज ई उफणै । वप स्रोवण घाव जड़ाव वणै । सर सोक वजंत परां सणणै । तिमहीज. जड़ाव तुरंग तणे ।। ७१६ भचके' ११ बखतेस'१३ गुसै१३ भरियो । व्रजराज'५ उपासक वीफरियौ । जुध' जांणिक क्रोध'८ मते अजरै । करि दांमणि धार संग्रांम करै ।। ७१७ करि जांणिक आयुध इंद्र करै । धडछै६ खळ जोम सदेह२० धरै । 'अभमाल' कणैठिय२२ ताम इसौ । जुध४ लंक कणैठिय५ रांम जिसौ ।। ७१८
१ ख. लगे। २ ख. जग। ३ ख. ग. जगे। ४ ख. ग. अरणंग। ५ ख. ग. उफणे। ६ ख. बप। ७ ख. ग. सोवण । ८ ख. बणे । वणे। ख. व्रजत। १० ख, तिमहींज । ११ ख. ग. भचक। १२ ग. वषतेस। १३ ख. गुणे । १४ ख. भरीयो। १५ ख. वृजराज। १६ ख. बीफरीयौ। १७ ख. जुधि । १८ ग. क्रौध। १९ ग. धड़छे । २० संदेह । २१ ख. धरे। २२ ख. ग. कणेठीय । २३ ख. ताम। २४ ख. जुधि । २५ ख. कणेठीय ।
७१५. लोह - शस्त्र-प्रहार । छछोह - तेज, तीक्ष्ण । अहूति - पाहूति ।। ७१६. प्ररणांग - लाल शरीर । पतंगज-चिनगारियां सी। वप - वपु, शरीर । स्रोवण -
रक्त, खून। सर - बाण। सोक - तीरोंके तेज चलनेकी ध्वनि । परां - पंख ।
सणण- ध्वनि करती है। ७१७. भचके - प्रहार करता है। बखतेस – महाराजा बखतसिंह । व्रजराज उपासक -
श्रीकृष्णकी उपासना करने वाला महाराज बखतसिंह। वीफरियो - तेज क्रोध में हो
गये। करि - हाथमें । वामणि - तलवार । ७१८. जाणिक - मानों। बड़छ - काटता है, संहार करता है। जोम-जोश। अभ
माल-महाराजा अभयसिंह । कर्णठिय - कनिष्ठ, छोटा भाई । ताम - तब । लंकलंका।
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सूरजप्रकास
[ २०१
घमसांण करै धरि पांण घणौ । तिण मौसर' सूर 'अजीत' तणौ । लोह वाहत सीस अकास लगै । इम जोध लड़े 'बखतेस' अगै ॥ ७१६ अति वाहत' साबळ खाग अडी । वप वेसज छोटिय' लाज वडी । करनोत 'अभावत' सूर 'क्रन' । वधि वाहत साबळ चोळ व्रनं ॥ ७२० घण वाहत साबळ' तेज'' घणौ । तिण वार' 'पतौ' 3 'महकन्न'१४ तणौ । सुत 'तेज' 'करन्न' दळां सबळां । खग झाट करै 'विसनेस' खळां ।। ७२१ असुरां थट 'देव' क्रनोत१५ अड़े । लोहड़ां झट 'सूरिजमाल' लड़े । 'अणदेस' सुजाव लड़े उरडै ।
जवनां 'सगतेस' छड़ाल जडै ।। ७२२ १ ख. मोसर । २ ख. बाहत । ३ ख. बाहत । ४ ख. बप । ५ छोय । ग. छोटीय । ६ ख. बडी। ७ ख. बधि। ८ ख. बाहत। ६ ख. बाहत। १० ख. पाग । ग. सावळ। ११ ख. सतेज। १२ ख. बार। १३ ख. पतो। १४ ख. ग. महक्रन । १५ ख. ऋनौत।
७१६. घमसाण- युद्ध। पांण - प्राण, शक्ति । मौसर - अवसर। अजीत-महाराजा
अजीतसिंह । ७२०. साबळ - भाला विशेष । अडी- पाड़ में, रोक में | वेसज - आयु । करनोत -
राठौड़ वंशकी एक शाखा। प्रभावत - अभयसिंह करनोतका पुत्र । ऋनं
करणसिंह करणोत । चोळ - लाल । वन-वर्ण, रंग। ७२१. पतौ - प्रतापसिंह। महकन्न - महकरणसिंह । तेज - तेजसिंह । करण - करणसिंह ।
विसनेस-विसनसिंह। ७२२. देव -देवीसिंह । भनोत - करणोत शाखा के राठौड़। लोहड़ा - शस्त्रों। झट
प्रहार । अणदेस - आनंदसिंह। सगतेस - शक्तिसिंह । घड़ाळ - भाला। जड़े- . प्रहार करता है।
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२०२ ]
सूरजप्रकास
हथियां' खग वाहत' रिख हसै । बळि क्रन्न तणौ 'सुरतौ'५ बहस । झाटकै खळ पौरस बंद झलौ । दुजड़ां 'मुकँदावत' सूर 'दलौ' ॥ ७२३ मगरूर जुटै खग आघमणौ । तद' 'जीवण' जोगियदास'० तणौ । वधि' 'नाहर ऊत' खळां विहरै १२ करिमाळ 'पतौ' घमचाळ'३ करै ।। ७२४ जुध 'माहव' संभ्रम पाथ जिसौ । 'अनपाल'१४ करै रिणताळ इसौ । मछरीक 'मधावत'१५ 'पेम' मँडै १६ । खग' झाट खळां थट घाट बँडै ।। ७२५ 'चतुरेस' 'पतावत'१८ खेत चढे । विमरीर खळां खग झाट विढे ।
१ ख. हथीयां। २ ख. बाहत । ३ रिख । ४ ख. बलिकंन । ग. वलिक्रन । ५ ग. सुरतो। ६ ग. वहस । ७ ख. ग. वृद। ८ ग. मिगरूर। ६ ख. तदि। १० ख. ग. जोगीयदास। ११ ख. बधि। १२ ख. बिहरै। १३ ख. घण। १४ अनिपाल । १५ ख. बघावत । ग. बघावत । १६ ख. मडै । ग. मंडे। १७ ग. पळ। १८ ख. फतावत। १६ ख. चढ़े। २० ख. बिढ़े।
७२३. रिख - नारद ऋषि । ऋन्न तणी - करणोत शाखाका राठौड़। सुरतौ - सूरतसिंह ।
बहस - जोशमें होता है । झाटक - प्रहार करता है। बंद झलो-विरुदको धारण करने वाला। दुजड़ां - तलवारों। मुकदावत – मुकुन्दसिंहका पुत्र । दलौ -
दलसिंह । ७२४. मगरूर - गर्व पूर्ण । माघमणौ - जोशपूर्ण, जोशीला । जीवण - जीवनसिंह । नाहर
ऊत - नाहरसिंहका पुत्र । विहरे- संहार करता है। करिमाळ - तलवार । पती
प्रतापसिंह । घमचाळ - युद्ध। ७२५. माहव - माधोसिंह। संभ्रम - पुत्र। पाथ - पार्थ, अर्जुन। रिणताळ - युद्ध। मछ
रोक - चौहान । मधावत - माधोसिंहका पुत्र । पेम - प्रेमसिंह । ७२६. चतुरेस - चतुरसिंह। पतावत - प्रतापसिंहका पुत्र । खेत - युद्धस्थल । विमरीर -
जबरदस्त, भयंकर । विढें - काटता है, युद्ध करता है।
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सूरजप्रकास
[ २०३ घण वीजळ' वाहि वहाय' घणी । पड़ियौ रिण मांहि परी परणी ।। ७२६ . नरलोक अखै जस कीध नरां । सुरलोक वसै धरि देह सुरां । रण मेड़तिया खग झाट रमै । भिड़जां चव - बंध अहेस भमै ॥ ७२७ 'सिरदार' समोभ्रम जेण सिरै । किलमां जुध सूरजमाल करै । जवनां घट सेल विकट्ट जड़ें । पट ऊपर स्रोण उछट पड़े ।। ७२८ सोहिया घट ऊच'' स्रोण सबै । फुट मद्द रँगट्टचौ दह फबै । खळ वाह' करै सर सेल १२ खगां । लोह वाहत' लोह छछोह लगां ।। ७२६ सझि बाजद'४ बद्द दळां सबळां । खग झाट उडावत सीस खळां ।
१ ख. बीजळ । २ ख. बहाय । ३ ख. पडीयो। मेड़तीया। ६ ख. सूरिजमाल । ७ ग. विकट। १. ख. उछट । ग. ऊछ। ११ ख. बाह । १४ ख. बाजह।
४ ख. बसे । ग. वसे। ५ स्व. ग. ८ ख. ऊपट । १ ख. ग. सोहीया। १२ ग. सैल । १३ ख. वाहत ।
७२६. धोजळ - तलवार । पड़ियो - वीर गति प्राप्त हुआ। परी - अप्सरा। परणी.
पाणिग्रहण किया। ७२७. अखे - कहता है । रण - युद्ध । भिड़जां - घोड़ों । चव-बंध - चारों तरफ(?) । अहेस -
शेष नाग ( ? )। ७२८. सिरदार - सरदारसिंह । सिरै-पंक्तिमें, श्रेष्ठ । किलमां - यवनों। पट - वस्त्र ।
स्रोण - शोणित, खून । ७२६. सोहिया - सुशोभित हुआ। घट - शरीर । ऊच - श्रेष्ठ । फुट मह - ( ? )।
रंगट्टचौ - रंगका ( ? )। वह – कुण्ड ( ? ) । ७३०. बाजद - घोड़ा।
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२०४ ]
सूरजप्रकास
मुनिराज महेस कहै मोहिया । सांमुहै मुख' घाव भला सोहिया' ।। ७३० पछटै खग सिलह - पोस पड़े । लोहड़ां इम सूरजमाल' लडै । तदि रोस व्रजागि भुजंग तखौ । असुरां खग' झाड़त' सूर 'अखौ' ॥ ७३१ अतळीबळ 'भोज' सुजाव इसौ । जमरूप गजां'• घड़ भीम जिसौ । मगरूर खगां झट पूर मझै । सुत 'जैत' दमंगळ 'रांम' स: ।। ७३२ 'गिरमेर' तणौ'१ सिवदांन गजां । धमचक्क पछट्टत१२ खाग धजां । भवसींघ सुतन्न" हरीद' ५ भिड़े' । पछटै खग जांणिक वीज पड़े ।। ७३३
१ ख. मुषि । २ सोहीया । ग. सोहिया। ३ ख. ग. प्तिल्लह । ४ ख. सूरिजमाल । ५ ख. पगि। ६ ख. झाटत । ७ ख. अतुळोवल । ८ ख. भौज। ६ ख. इसो । १० ख. जजा। ११ ग. तणो। १२ ग. पछटत । १३ ख. ग. भावसिंघ । १४ ख. ग. सुतन। १५ ख. हरिद । १६ ख. भडै । १७ ख. बीज ।
७३० मुनिराज - नारदमुनि । महेस - महादेव । ७३१. पछट - प्रहार करता है। सिलह-पोस - अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित अथवा कवचधारी
योद्धा। लोहड़ा - शस्त्रोंसे । ब्रजागि - वज्राग्नि, भयंकर । भुजंग तखो - तक्षक
नागके समान । अखौ-अक्षयसिंह ।। ७३२. प्रतळोबळ - अतुल्य बलशाली। भोज - भोजराजसिंह । सुजाव -पुत्र । मझ
मध्यमें। जैत - जैतसिंह। दमंगळ - युद्ध । राम- रामसिंह । गिरमेर -
सुमेरसिंह। ७३३. धमचक्क - युद्ध । पछट्टत - गिरता है, प्रहार करता है। धजां - भालों। भवसींघ
भाउसिंह । सुतन - पुत्र । हरियंद - हरिसिंह ।
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सूरजप्रकास
जुध खाग भटां घट
हुय खेलत गेहरियो
मँगेस खगां झट
६
चगां दळ मांझिळ
पींजरियौं'
'हरियो "
तूटि पड़े
भूमि चडै || ७३४
अंग ऊपर लोह 'हरियौ' " खग वाहत 'चंद' कदमेस भड़े रण लोह
E
विफर होकरड़े डकरै गहरे " " रँगरेळ"" हरै भैरवी रतरै जळ पत्र भरै ।
उडै अजरौ |
हरौ ।
करें ।
1
बकरे ।। ७३५ गुमरे ।
१२
एक हाथ से हाथ प्रपच्छररै" । किलमां इक हाथ जु घाव
-
करै ।। ७३६
१४
करें ।
हरै ।
कर झाट सिल्है घट दोय लोहर बोहरे " छकी "केल" जुडियो" इम लंगर राव ज्यूंही" । मगरूर पड़े रिग खेत मही ॥ ७३७
१
५. ख.
६ ख.
. ग. पींजरीयो । २ ख. ग. होय । ३ ख. गेहरीयो । ४ ख. हरीयो । ग. पडे । ६ ख. माझिल । ७ ख. ऊपरि । ८ख. हइयां । ग. हरयो । होकरं । ग. होकर । १० ख. गहरे । ११ ख. रंगरैल । १२ ख. यक । ग. पछर । १४ ख. करि । ग. कारं । १५ ख. ग. वोहरं । १६ ख. ग. कोल । १७ ख. जुडीयौ । ग. जुडियो । १८ ख. ग. जहीं ।
१३ ख.
७३४, पींजरियो - जिस प्रकारसे रूईको धुनकीसे धुन कर छोटे-छोटे रेशे पृथक कर दिए जाते हैं इसी प्रकार योद्धाका शरीर क्षत-विक्षत कर दिया गया। गेहरियो - " गैर" नृत्यमें नाचने वाला । हरियौ हरिसिंह । पमंगेस - घोड़ा । चगयां - यवनों, मुसलमानों। मांझिल - मध्य ।
७३५. अजरौ - भयंकर । हरियौ - हरिसिंह । चंबहरी
चांदावत शाखाका मेड़तिया |
कदमेस - पैर, चरण । झड़े कट जाते हैं। विफरे कोप करता है । होकरड़ेतेज जोशीली श्रावाज करता है। डकरें - दहाड़ करता है। बकरं क्रोधपूर्ण होता है ।
७३६. गहरे - घना । भैरवी - रणचंडी । रतरे - रक्तका । ७३७ छकी - ( मस्त ? )
-
-
[ २०५
मगरूर-वीर, गर्वीला रिण खेत- युद्ध स्थल |
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२०६ ]
सूरजप्रकास
खित पिंड' करै रत हंस खड़े । चढि रंभ रथां सुरलोक चड़े' ।
४
दुहड़ै जुधि' 'साहिब' मेछ दळां । खगभाट रमै सुत 'नाथ' खळां ॥ ७३८ सुत ' कांन्ह' स्वरूप वर्णे सिधरै । किलमां भड़ 'मोकम" घाव करै । तप 'मोहण' जै छक 'पूर' तणौ । तड़छै रवदां खगि 'सूर' जवनां दळ दांति चढंत सुत 'राम' हणै जमरांण सत्रां । घड़च्छे खळ" मुग्गळ " चाड धणी ।
तणौ ॥ ७३६
जवां ।
६
१५२
'अणदौ ' ' ' अमरावत' फौज' ३ प्रणी ॥ ७४०
सत्र थाट पळां गळ दे समळां ।
१४
खग झाड़त'' 'ऊदल थाट खळां । कळ है सुत भूप किसूं कहणी । त्रिजड़ां हथ भ्रात 'हरिद' तणौ ॥ ७४
१. क. पीड़ ।
२ ख षडे । ३ ख. चडे । ६ ख. कीयां । ग. वणे । ७ ख. ग. सिद्धर । १० ख. धग । ११ ख. मूंगल । ग. मुंगल फोज । १४ . भारत ।
।
७३८. खित- क्षिति, भूमि । पिंड करें रत अपने रक्तसे भूमि पर पितरोंका तर्पण करता है। हंस- प्राण । रंभ - अप्सरा मेछ - यवन । नाथ - नाथूसिंह ।
७३६. कांन्ह - कानसिंह । किलमां-यवनों । मोकम- मोहकमसिंह । रववां - यवनों । सूर - सूरसिंह |
७४०. दांति चढत जवां जितने ही उसके सम्मुख आ जाते हैं। रांम - रामसिंह । सत्रांशत्रुनों धड़च्छे संहार करता है। धणी धनुष । प्रणवौ श्रानंदसिंह । श्रमरावत - अमरसिंहका पुत्र ।
७४१. पळ- मांस । गळ- मांस-पिंड । समळां
--
५ ख. जुध ।
४. दुहुं । ग. दुहंडे । ८ख. ग. मौकम |
ख. ग. धडछै ।
१२ ख. प्रणंदौ । ग. प्रणदो । १३ ग.
-
पिंड बनाता है और साहिब - साहिबसिंह ।
सिंह थाट - दल । त्रिजड़ां - तलवारों । हरियंव - हरिसिंह ।
मांसाहारी पक्षी, चील । ऊदल - उदय
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१ ख बीजळ । ६ ख. दीयं । ११ ग. तणो ।
सूरजप्रकास
घड़छै खळ वीजळ' भाट धजां । 'सहसावत' 'राम' अणी सकजां । जम रूप 'अनावत' जोर जुटै । तिणवार खळां खगि सीस
सुत 'ईसर' 'जोर' कियौ जवनांण हर्णे खग पांण
सुत 'वीठल' जोर झळां दहवाट " खळां खग
झाट
ક
भिड़ लूण उजासत भूप ''मनरूप'
१०
तुटै ।। ७४२
सरसौ ।
'जसौ' |
४
सझियै ।
तणौ । घमणौ ।
महाबळ
घण घायक पौरस तेज घणौ ।
१२
हरिनाथ तणौ " खगि रौद '
रिम थाट हणं कुळनंद अतुळीबळ 'जंत' सुजाव
तड़छै खळ संभव
काज
ध
संभव
'हींदवऊत'
-
दियै ।। ७४३
-
१३
हणौ ३ ।। ७४४
२ ख. ग. कोयां
३ ख झलां । ४ ख. सभी
७ ख लूंण । ८ख. माहाबल । ६ ख. पायक । १२ ग. रोद । १३ ख. हणौ । ग. घणो ।
रखौ । 'अखौ |
तठै ।
जठै ॥ ७४५
७४२. वीजळ - तलवार । सहसावत सहस्रसिंहका पुत्र । रांम - रामसिंह । श्रनावत - अनासिंहका पुत्र |
७४३. ईसर - ईसरसिंह । जोर- शक्ति, बल । सरसो पूर्ण जवनांण - यवन । पांण - प्रारण - बल । जसो - जसवंतसिंह । बीठल - वीठलदास । झळां - श्राग । सझियौ - सज्जिभूत हुआ । दहवाट ध्वंस |
[ २०७
७४४, उजासत • उज्ज्वल करता है । श्राधमणौ - जोशीला। घायक - संहार करने वाला । 'रोव हणौ यवनोंका संहार करता है ।
-
। ५ व. दहबाट ।
१० ख. ग. पोरस ।
७४५. रिम थाट - शत्रु-दल कुळवंद रखो कुलके विरुदकी रक्षा करने वाला । अतुळीबळ - अतुल्य बलशाली । जैत- जैतसिंह । सुजाब - पुत्र । प्रखौ अक्षय सिंह |
-
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२०८ ]
सूरजप्रकास
3
सुत कांन्ह खळां छड़ियाळ' 'सलो " | 'महिरांण' करे आपमलौ । जुध दहलै' खगि 'ऊदल' रौद दळां । सुत 'दौलतसाह'" दळां
रमणौ ।
रवदां झट रूक करें तिणवार उदैसिंघ 'वैण" तणौ ।
719
" वाहि हाई" घणां " दुजड़े ।
१२
'पदमौ" रतनावत खेत पड़े '३
सबळां ॥ ७४६
हर सीस ग्रहै १४ रिखराज हसे " 1 मांहि बसै" । जवनेस गरै ।
वरि रंभ सुरांपुर ग्रहि खाग झटां 'किरतेस' तणौ
१६
खत्रियां गुर 'लाल' वधि रामचंदोत
१ ख. ग. छडीयाल । २ स्व. सलौ । हल । ६ ग. दोलत । ७ ख. बेण १० ख. वहाई । ११ ख. घरणी । १५ ख. हसे । १६ ख वरि । पत्रीयां । २० ख. रामचंदौत ।
.२०
॥ ७४७
'पदमेस' करै ॥ ७४८
दुकाल खंडे । खळां विहंडे" ।
9
३ ख. ग. श्रापमलौ । ४ ख. दहंडे । । ग. वेरख । १२ ग. पदमो ।
१७ ख बसे । ग. वसे । २१ . बिहंडे ।
५. ग.
८ ख. जुध । ख. बाहि । १३ ग. पडे । १४ ख ग ग्रहे । १८ ग. तणो । १६ ग
७४६. कांन्ह - कानसिंह । छड़ियाळ - भाला । सलौसलहसिंह | महिरांण - महरावणसिंह । श्रापमलो - योद्धा, वीर । दहले - संहार करता है । खगि - तलवार से । ऊदल - उदयसिंह । दौलतसाह - दोलतसिंह |
७४७. रवदां यवनों, मुसलमानों । रूक- तलवार । रमणौ- खेलना या खेलने वाला । वैण - वेणीसिंह । दुजड़े - तलवारें । पदमो पद्मसिंह रतनावत - रतनसिंहका
पुत्र ।
७४८. हर- रुद्र, महादेव । रिखराज - नारद मुनि । जवनेस - यवन, बादशाह । गरे - समूहमें । किरतेस - कीर्तिसिंह । पदमेस - पद्मसिंह ।
७४६. लाल - लालसिंह | दुकाल - वीर । खंडे - संहार करता है । विहंडे - ध्वंस
करता है ।
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सूरजप्रकास
. [२०६ घण वाहि' वहायज लोह घणौ ।। तदि' खेत पड़े 'दलसाह" तणौ ।। ७४६ मधि चार धरै हर हार मही । जुध सीस 'पदम्म'१० पदम्म जही । लड़ि एम बरे रंभ वद लियौ'' । कमधज्ज'२ सुरांपुर वास' कियौ ॥ ७५० 'सिलहेत'१५ तणौ' ६. पखरैत सुधौ । 'बखतावत'१७ बाहत ८ खाग 'बुधौ' । 'मनरूप तणौ'१६ सिवदांन मँडै २० । खग झाट घणा खळ थाट खंडै' ।। ७५१ दुजड़ां हथ वाहत पाव दिढ२ । 'बखतेस'२३ तणौ 'हिमतेस' विढ२४ । धसि५ 'सूर' तणौ २६ गयंदां विहरै । किरमाळ महाबळ ८ घाव करै ॥ ७५२
१. ख. बाहि। २ बहायज । ३ ख. लौह । ४ ग. घणो। ५ ग. तद। ६ ख. ग. पडे। ७ ग. साहि। ८ ख. वार। ६ ख. ग. धरे। १० ख. पम पम । ग' पदम। ११ ख लीयो। १२ ग. कमधज । १३ ख. बास। १४ ख. कोयो। ग. यो। १५ ख. ग. सिलहैत । १६ ख, ग. हणे । १७ ग. वषातावत । १८ ग. वाहत । १६ ग. तणो। २० ख. मंडे । २१ ख. षंडे । २२ ख. ग. दिढ़े। २३ ग. वषतेस । २४ ख. बिढ़े। २५ ख. बधि । २६ ग. तणो। २७ ख. बिहरे । २८ ख. महाबल । स. महावल।
७४६. दलसाह - दलसिंह । ७५०. पदम्म – पद्मसिंह । बरे - वरण कर के। रंभ - रंभा, अप्सरा। बद-विरुद,
कीर्ति। ७५१. सिलहेत - सिलहसिंह। पखरत - कवचधारी घोड़ा। सुधौ - सहित । बसतावत -
बखतसिंहका पुत्र । बुधौ- बुधसिंह । ७५२. दुजड़ा हथ - खड्गधारी योद्धा। पाव दिढे - मजबूत पैर रखा हुआ। बखतेस -
बखतसिंह। हिमतेस - हिम्मतसिंह। विढ - युद्ध करता है। सूर - सूरसिंह । गयंद - हाथी। विहरे - विदीर्ण करता है, संहार करता है। किरमाळ - तलवार।
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२१० ]
१ ख. रूडे । उखबार ।
सूरजप्रकास
रुकड़ां मुड़ि झाट बाट रु' । 'जयतेस' तणौ 'फतमाल' जुड़े | 'गिरमेर' 'दलावत' मेछ गजां । पछटै किरमाळ करै पुरजां ।। ७५३
13
असुरां 'चळावत ' ' खीम' इसौ ।
तम पूंज सिरै ग्रहराज तिसौ । धुर 'जैत' सुजाव प्रणीधरौ । उण वार' 'गुमांन' लड़े अजरौ || ७५४
उरां ।
'ग्रनपाळ' तरणौ छड़ियाल 'सिरदार' दुसार करें
असुरां ।
तण 'पीथल' 'काबिलसीघ' तठै । जवनांण हाँ घमसांग जठै ॥ ७५५
दहड़े खगि मेछ"
बधि 'सांमळ ऊत'
सुत 'जोग' भयांण
खग फाट 'गुमांन'
हां देखतौ । लड़े 'बखतौ' । हणै सबळां ।
श्रमांन खळां ।। ७५६
२ ख. पछटे । ३ ख. अचलाव | ४ ख. पूज । ग. पुज । ६ ग. तणो । ७ ख. छडीयाल |
।
७५३. रुकड़ां - तलवारों । मुडि भाट - प्रहार हो कर जगतेस - जगतसिंह | फतमाल - फतेहसिंह | गिरमेर - सुमेरसिंह | दलावत - दलसिंहका पुत्र पुर्जी, खंड ।
७५४. असुरां - यवनों । चळावत
अचल सिंहका पुत्र | खीम - हीमसिंह | तम - अंधेरा पूर पूर्ण ग्रहराज सूर्य । धुर अगाड़ी, प्रथम । जैत-जैतसिंह । श्रणी अनीक, सेना । धजरौ - ध्वजाका गुमांन गुमानसिंह । अजरौ - जबरदस्त, महान । ७५५. छड़ियाल - भाला । सिरदार- सरदारसिंह । दुसार - प्रारपार, भाला । पीथल
पृथ्वीसिंह । जवनांण - यवन ।
७५६. दहड़े -- ध्वंस करता है। हां - श्रावाज |
दखतो - कहता हुआ । सांमळ ऊत - श्यामसिंहका पुत्र | बखनौ - बखतसिंह | जोग - जोगसिंह । भयाण - भयंकर रूपसे । सबळां - बलवानोंको। गुमांन गुमानसिंह । श्रमांन - श्रपार, बहुत ।
५ ख. ग. ८ख. ग. मेछि । ६ ख ग प्रभांन ।
-
त्रबाट - नगाड़ा । रुई - बजते ।
भिड़ता है, युद्ध करता है । प्रहार करता है। पुरजां -
जुड़े
| पछटै
ww
-
-
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सूरज प्रकास
महीं ।
मिळ 'रांम' हणै खळ खेत जुधि 'देव क्रनोत" कंठीर जहीं ।
किसौ ।
कहै गोकळदास सुजाव जुधि 'जैत' हणूं विरदेत पछटै वरसींघ' तणौ प्रघळां ।
जिसौ ।। ७५७
खळ साथ हर ।। ७५८
झड़े ।
हरनाथ तणौ " झट खाग रमै घट सीस 'लखधीर' तणौ 'सरदार' लड़े | धज खग्ग खळां दळ ऊधमणौ । तिण वार 'जसौ' 'पंचमुख''' तणौ ।। ७५ε चांपावत - इम जूटत मेड़तिया अजरा ।
.93
४
हद' जूटत दारण 'चांप' १५ हरा । खळ थाट सिरै खग झाट खिरै । 'सुरतौ" " 'हरियंद'
खग धार अपार ‘झुझार" खळां । तिण वार 'सिवौ चलि ' खाग तणै ।
१८
१०
१ ख. ग. कनौत | २ ख. किसो । ग. वरसिंघ । ६ ख. प्रयलां । ७ १० ग. तणौ । ११ ग. तणो । हब । १५ ख. पांच ।
७५७. देव - देवीसिंह |
1
सुजाव सिरे || ७६०
1
३ ख दैत । ४ ख. ग. बिरदैत । ५ ख. बरसिंघ । ८ख. ग. सिवो । ६ ख बलि । १३ ख. ग. मेडतीया । १४ ख.
. ग. भूभार । १२ ख. पंचमुखख १६ ग. सुरतो ।
हनुमान । विरवैत - यशस्वी ।
७५८ पछटै - गिराता है, मारता है । प्रधळां- बहुतों को । भुकार - जुझारसिंह | सिवौ शिवदान सिंह | ७५६, झड़े - कट कर गिरते हैं । लखधीर - लखधीरसिंह । सरदार सरदारसिंह । धज.. भाला ऊधमणौ - ध्वंस करने वाला । जसौ -जसवंतसिंह | पंचमुख - पंचायरणसिंह । ७६०. जूट - युद्ध करते हैं । श्रजरा- जबरदस्त । दारण- जबरदस्त, वीर। चांव हराचांपाके वंशज, चांपावत शाखाके राठौड़ । खिरै वीर गति प्राप्त होते हैं। सुरती - सूरतनिह । हरियंत्र - हरिसिंह |
[ २११
क्रनोत - करणोत शाखाका राठौड़ | कंठीर - सिंह। हणू -
-
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२१२ ]
सूरजप्रकास
'अचळावत' 'तेज' लड़े उरडै । पिसणां' खग झाट भ्रगुट' पड़े । विहरंत' खळां खग क्रीत वनौ । वधियौ' रघुनाथ तणौ 'विसनौ" ॥ ७६१ घण घाय वरावत हर घणां । 'पदमौ'८ 'अनपाळ' तणौ प्रिसणां । वधि' फीळ' हणंत धणी वनको । किलमां खग 'रूप' तणो 'कनकौ' ।। ७६२ तप तेज खगां जिम भाण तरगौ । जुध जूटत 'दान' 'सुजांण' तणौ । वधि४ बाहत वीजळ१५ थाट बिचै । 'हिमतेस' 'सदावत' सूर हिचै ॥ ७६३ जुध खाग वहै'६ झळ जोप तणौ । उण मौसर' 'बाघ'१८ 'अनोप' तणौ ।
१ ख. प्रिसुणां। ग. पिसुणा। २ ख. भृगुट्ट। ग. भृगुट । ३ ख. बिहरंत। ४ ख. पगि। ५ ख. बधीयौ। ६ बिसनौ । ७ ख. बरावत । ८ ग. पदमो। ६ ख. प्रिसुणां । ग. प्रिसणा। १० ख. ग. बधि। ११ ख. फोण। १२ ख. हणं । १३ ख. घणी वनिको। १४ ख. वधि । १५ ख. ग. बीजळ । १६ ख. बहै । १७ ग. मोसर । १८ ग. वाघ।
७६१. अचळावत - अचलसिंहका पुत्र । तेज - तेजसिंह । पिसणां - शत्रुओं। भ्रगुट -
शिर, मस्तक । विहरंत - संहार करता है। क्रीत - कीति । वनौ - दूल्हा, पति ।
वधियो - आगे बढ़ा । विसनो - विसनसिंह । ७६२. घरावत - वरण कराता है। हर --अप्सरा । पदमौ - पद्मसिंह । प्रिसणां - शत्रुओं।
फील - हाथी। हणंत - संहार करता है । धणी वनको - सिंह । फिलमा – यवनों ।
रूप - रूपसिंह । कनको - कनकसिंह। ७६३. दोन -- दानसिंह । सुजाण - सुजानसिंह । बधि - बढ़ कर । वाहत - प्रहार करता
है। हिमतेस - हिम्मतसिंह । सदाबत - शार्दूलसिंहका पुत्र । हिचे - युद्ध करता है,
संहार करता है । ७६४. मौसर - अवसर, मौका । बाघ - बाघसिंह । अनोप - अनोपसिंह ।
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सूरजप्रकास
[ २१३ खग' पूर 'सुजांण' सुजाव खरै । करिमाळ बहादर जंग करै ।। ७६४ दळ रौद विभाड़ण' 'पीथ' दुौ । हिमतौ' भड़ मांडणोत* हुन् । ग्रहि चंद्र प्रहास झटां चुगलां । मुकँदावत सूर हणै मुगळां ।। ७६५ थट मेछ' करै धर पाथ रणौ । त्रिजड़ां 'अनपाळ' 'सगत्त'१० तणौ । अणियाळ'१ अंकाळ१२ खळां उळ: । सुत 'कान्ह' महाजुध 'खीम' सझै ॥ ७६६ चंद्रहास करै जुध चूंप' तणौ । तिण वार ‘जुरावर"४ 'कूप"५ तणौ । विहँडै ६ खळ वाघ' जहीं विरतौ'८ ।
पछटै खग 'नादलऊत' 'पतौ' ।। ७६७ १ ख. धष। २ स्व. ग. धरै। ३ ख. विभाडण। ४ ग. हिमतो। ५ ख. ग. मांडण ऊत। ६ ग. हुप्रो। ७ ख. वगुलां ८ ख. मैच । ग. मेच । ख. ग. थर । १० ख. सगति। ग. सगत । ११ ख. ग. अणीयाल । १२ ख. अत्राल। १३ ख. चुप। १४ ख. म. जोरावर। १५ ख. कंप। १६ ख. बिहंडे। १७ ख. बाघ । १८ ख. बिरतो।
७६४. सुजांण – सुजान सिंह। स्वर - वीर-गति प्राप्त हो गया । करिमाळ - तलवार ।
जंग - युद्ध । ७६५. दळ - सेना। रौद - यवन । विभाड़ण - संहार करनेको। पीथ - पृथ्वीसिंह ।
दुनौ- दूसरा, वंशज । हिमतौ - हिम्मतसिंह। मांडणोत - राठौड़ वंशकी मांडणोत शाखाका वीर। चंद्रप्रहास - तलवार । चुगलां - यवनों। मुकंदावत - मुकुंदसिंहका
पुत्र। ७६६. थट - सेना, दल। मेछ - म्लेच्छ, यवन । घर - पृथ्वी। पाथरणौ -बिछौना ।
त्रिजड़ा - तलवारों। सगत्त-शक्तिसिंह । अणियाळ - भाल।। मंत्राळ-प्रांतें।
कान्ह – कानसिंह । खीम - खीमसिंह । ७६७. चंद्रहास - तलवार। चूंप - यहाँ चांपावत शाखाका वीर अर्थ ठीक बैठता है ।
जुरावर - जोरावरसिंह । कूप- कूपावत शाखाका राठौड़ वीर । विरतो - भयंकर रूपयुक्त । नादल-ऊत - नादलसिंहका पुत्र । पतो-प्रतापसिंह।
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२१४ ]
सूरजप्रकास इण भांत' चांपावत सूर अडै । लोह झाट कूपावत' एम लडै । जुध 'सांमत-ऊत' सक्रोध जगां । खळ पाड़त देवियसींघ' खगां ।। ७६८ सुत 'राम' खत्रीवट काम सचै । रघुनाथ समाथ भराथ रचै । सुत 'सांमत' मेछ हणै सबळा' । कमधज्ज' 'जवांन' भयान कळा ।। ७६६ खग वीजळ मेघ घड़ा खमतौ । हद जूटत 'वाघ' तणौ 'हिमतौ' । मगरूर हठावत खेत मही । जुध भीम गजां घड़ भीम जही । ७७० तप दीसत सूरज' वन' तणौ । तदि 'लाल' लड़े 'जसकन्न' १२ तणौ । वप वेस' सवाइय१४ सोभ वधै ।
*सत 'मान' 'सवाइय'१५ जंग सधै ।। ७७१ १ ख. भांति । २ ख. ग. कूपावत। ३ ख. ग. देवीसिंघ। ४ ग. सवलां। ५ ग. कमधज। ६ ख. बीजल । ७ ख. ग. मेछ। ८ ख. ग. षिमतौ। ६ ख. बाच । १० ख. सूर। ११ ख. वजन । १२ ख. ग. जसकंन । १३ ख. बपि बेस। १४ ख. सवाईय। १५ ग. सवाईय ।
७६८. चांपावत - चांपावत शाखाके राठौड़ । सूर - वीर । कूपावत -- कूपावत शाखाके
राठौड़। सांमत-ऊत - सांवतसिंहका पुत्र।। ७६६. राम - रामसिंह। खत्रिवट - क्षत्रीयत्व। समाथ - समर्थ । भराथ - युद्ध ।
सांमत - सांवतसिंह । जवान - जवान सिंह । कळा - प्रकार । ७७०. खमतौ - सहन करता हुआ । वाघ - वाघसिंह। हिमतो-हिम्मतसिंह। मगरूर -
वीर । हठावत - हटाता है। खेत - युद्धस्थल । ७७१. लाल - लालसिंह । जसकन्न- जसकरणसिंह । वप = वपु - शरीर । वेस - आयु.
उम्र। सवाइय - सवैया। सोभ - शोभा, कीर्ति । मान - मानसिंह । सवाइय - सवाईसिंह । सधै - प्राप्त करता है ।
*चिन्हांकित पंक्तियां 'ख' प्रतिमें नहीं हैं ।
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सूरजप्रकास
[ २१५
धज साबळ वाहत मेछ दहै ।* 'खड़गावत' सूर गुमांन' खहै । इम जूटत' 'कूपहरा' अजरा । हद जूटत घायक जोध हरा ।। ७७२ गज-भार 'महेस' तणौ गहणौ । तिण वार 'करन' "झुझार' तणौ । रिण झाट किवांण उफांण रत्रां । 'सुरतांण' करै घमसांण सत्रां ।। ७७३ असुरां खग झाट हणे उरई । 'जगतेस' तणौ' 'दळसाह' जुड़े । त्रिजड़ां खळ झाटत घाट तठै । जुधि 'जोध' तणौ सुरतांण जठे ॥ ७७४ पछटै खग चाढ़त देव-पुरां । सिवदांन तणौ 'पदमौ' असुरां । खग वाहत गैण भुजां खगतौ ।
जवनां सिर 'जैत' तणौ 'जगतौ' ।। ७७५ १ ग. जुटत । २ ख. तणे । ३ ग. झूझार। ४ ख. किवां । ५ ख. षगि। ६ ख. तणो। ७ ख. पछटे। ८ ख. बाहत । ६ ग. तणो।
७७२. धज - तलवार । साबळ - भाला विशेष । ढहै - वीर-गति प्राप्त होते हैं ।
खड़गावत - खड्गसिंहका पुत्र । गुमांन - गुमानसिंह । खहै - युद्ध करता है। कूपहराकुंपावत शाखाके राठौड़। घायक - संहार करने वाला । जोधहरा - जोधा शाखाके
राठौड़। ७७३. गज-भार - हाथी-समूह । महेस - महादेव। गहणी - प्राभूषण। करन - करण
सिंह । झुझार - जुझारसिंह। रिण - युद्ध। झाट-प्रहार । किवाण - कृपाण, तलवार । उफांण - उबाल । रत्रां- रक्त, खून । सुरतांण – सुल्तानसिंह ।
घमसांण – संहार । सत्रां - शत्रुओं । ७७४. असुरांण - मुसलमान । जगतेस - जगतसिंह । दळसाह - दलसिंह । जुई-भिड़ता
है, युद्ध करता है । त्रिजड़ां - तलवारों । झाटत-प्रहार करता है । जोध- जोधसिंह । ७७५. पछटै - प्रहार करता है । पदमौ - पद्मसिंह । गैण - अाकाश । खगतो- स्पर्श
करता हुआ । जैत - जैतसिंह । जगतो - जगतसिंह ।
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२१६ ]
सूरजप्रकास निजड़ा जड़क जरदैत नभौ । अतळीबळ' 'नाथ' सुजाव 'अभौ' । 'महरांण' 'हरी' सुत राड़ महीं । जुध' जूटत पंडव भीम जहीं ॥ ७७६ 'करणी' 'अणदावत' क्रोध कळा । त्रिजड़ां खळ थाट करै तंडळा । झळळाहत पावक क्रोध झळा । खग वाहत भारथसिंघ खळा ।। ७७७ जुध धावत सूर घणा वजरै । कळ चाळ" 'अनावत' हाक करै । 'बहबा' हत' वीजळ' • धार'' वरौ । 'सरदार'१५ महाबळ 'सांमत' रौ ॥७७८ खग झाटक टूक करै खळ है । 'करणेस' तणौ 'बखतेस'१३ लहै । कमधज्ज१४ खळां गजबोह करै ।
'किसनावत' . 'ईसर' लोह करै ।। ७७६ १ ख. प्रतुलीबल । २ ख. राडि। ३ ग. जूध। ४ ख. कन्नौ । ग. करणो। ५ ख. बाहत । ६ ख. भारथसींघ । ७ ख. प. कळिचाल । ८ ख. बदौ । ग. बोहो। है ख. ग. बाहत । १० ख. बीजल । ११ ख. धारि। १२ ख. ग. सिरदार । १३ ख. ग. बघतो. १४ ख. कमधन्ज ।
७७६. निजड़ा - तलवारों। जड़क-प्रहार करता है। जरदैत - कवचधारी योदा।
नभी = (?) नाथ - नाथूसिंह । अभी - अभयसिंह योद्धा । महरांण -समुद्रसिंह । हरि -
हरिसिंह । राड़ - युद्ध । जूटत - संलग्न होता है, लगता है। ७७७. करणी- करण सिंह। अणदावत - आनंदसिंहका पुत्र । त्रिजड़ा-तलवारों। थाट
दल। तंडळा-ध्वंस, संहार। झळळाहत-प्रज्वलित होता है। झळा-अग्नि, प्राग। ७७. धावत - संहार करते हैं। वजरै- जोशमें होते हैं । कळचाळ - योद्धा, वीर, युद्ध ।
अनावत - अनाड़सिंहका पुत्र। हाक - जोशपूर्ण आवाज, दहाड़। वरौ - वरण करने वाला, स्वीकार करने वाला । सरदार - सरदारसिंह । सामंतरौ-सांवतसिंहका ।
करणेस- करणसिंह । बखतेस - बखतसिंह । गजमोह - गज-व्यह, संहार (?)। ७७६. किसनावत - किसनसिंहका पुत्र । ईसर- ईसरसिंह ।
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सूरजप्रकास
[ २१७ विहँडै खळ' झाटक लोह बहां । 'दळ कन्न'3 'प्रताप' तणौ दुसहां । सुरनाथ केवाण सुरंग करै । कळिचाळ सवाइय जंग करै ।। ७८० भचकै खग दाखत भांण भलौ । . दळ मेछ हणे 'करणोत' ६ 'दलौ' । तड़छै मुहरै गज ढाल तणौ ।
त्रजड़ा झट 'हिंदवमाल' तणौ ।। ७८१ धर धूजत सीस धरा - धरनौ । कळहै 'अनपाळ' तणौ करनौ' । घमसांण वीरांण रोसांण' घणौ ।" त्रिजड़ा हथ 'धीरज' 'लाल' तणौ ।। ७८२ खग वाहत'१ हेक जिसा"२ खग सौ । बहस' जुध 'दूद' तणौ 'बगसौ' ।
१ ख. ग. षग। २ ख. हबहां। ३ ख. ग. कंन । ४ ख. सुतनाथ । ५ ख. सवाईय: ६ ख. करणौत। ७ ख. मौहौरौ। ग. मोहोरौ। ८ ग. त्रिजड़ा। ग. विराण ।
चिन्हांकित पंक्तियाँ 'ख'प्रतिमें नहीं हैं। १० ग. रौसाण । ११ स्व. बाहत। १२ ख. जिसी। १३ ख. वहस ।
७८०. दळकन्न - दलकरणसिंह। प्रताप - प्रतापसिंह। दुसहां - शत्रुओं । सुरनाथ -
इन्द्रसिंह । केवाण - तलवार । सुरंग - लाल | सवाइय - सवाईसिंह । ७८१. भचक - प्रहार करता है। वाखत - कहता है। भाण - सूर्य। भली - उत्तम,
बढिया। दळ मेछ - यवन सेना। करणोत - राठौड़ वंशकी शाखा विशेषका वीर । दलौ- दलसिंह । तड़छ - काटता है । मुहरै- अगाड़ी । जड़ां - तलवारों।
झट - प्रहार। हिंयवमल - हिंदूसिंह ।। ७८२. धरा धरनौ - शेषनागका। कळ है - युद्ध करता है। करनौ - करणसिंह । घमसाण -
युद्ध । वीरांण – वीरतापूर्ण, शौर्यपूर्ण । रोसांण - क्रोध, जोश । जड़ा-हथ -
खड्गधारी योद्धा । लाल - लालसिंह । धीरज - धीरजसिंह । लाल - लालसिंह। ७८३. वाहत - प्रहार करता है। बहस - जोशपूर्ण होता है। दूद - राव दूदाका वंशज,
मेड़तिया राठौड़। बगसौ - बख्शीसिंह । .
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२१८
सूरजप्रकास
सत्र खाग हणे जम हूं सरसौ । 'नरसींघ'' 'फतावत' 'नाहर' सौ ।। ७८३ जुध मेछ चढांत' धकै जमरौ' ।
कळि 'सोढ' तणौ भड़ 'सेर' करौ । शेखावत- वधि' हेक शेखावत फौज वनौ ।
धड़छै खळ 'नधलवत'५ 'धनौ' ।। ७८४ तुरकांण हण खग 'जोर' तणौ । तदि जूटत 'राम' 'किसोर' तणौ ।
ड़ि 'सोढ' समोभ्रम थाट जडां । विहँडै खगि संभव सूर वडां ।। ७८५ वढि" वाहत खाग झळा वरणौ । तदि झूझ' लड़े 'चंद्र भांण' तणौ । सुत झूझ छकां उजळां'' सबळां । खग बाहत 'लाल' झाल खळां ।। ७८६ सुझ 'ग्यांन' दलावत तेण समै । रिम थाटहुंता खग झाट रमै ।
१ ख. ग. नरसिंध। २ ख. चढ़त। ३ ख. ग. जमरै। ४ ख. बधि । ५ ख. नम्बल । ग. नव्वल । ६ ख. विहंडे । ७ ख. ग. वधि । ८ ख. बाहत । ६ ख. तवि । १० क. ग. भूल। ११ ख. ग. उझलां ।
७८३ जमहूं सरसौ – यमराजके समान भयंकर रूप धारण करने वाला । नरसिंघ - नृसिंहा
वतार। फतावत - कतहसिंहका पुत्र । ७८४. बनो - दुल्हा, पनि । धड़छै – संहार करता है। नघळवूत - नंदलालसिंहका पुत्र ।
धनो - धनसिंह। ७८५. तुरकाण - यवन, मुसलमान । राम - रामसिंह । किसोर - किशोरसिंह । जडां. घने। विहँडै - संहार करता है। सभव - ( ? ) ७८६. झळा - अग्नि । वरणौ - वर्णका, रंगका। झूझ - जुझारसिंह । लाल - लालसिंह - दुझाल - वीर। ७८७. ग्यांन - ज्ञानसिंह । दलावत - दलसिंहका पुत्र । रिम - शत्रु। थाटहुंता- दलसे ।
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सूरजप्रकास
[ २१६ झटकै खग सीस उडै झिलमां' ।। 'रतनावत' 'रूप' वढंत' रिमां ।। ७८७ ग्रह' साबळ सीस उडै गजरौ । 'अणदावत' सूर 'अभौ” अजरौ । सुत 'पीथल' 'माहव' तेण समै । रण खाग उनागज फाग रमै ॥ ७८८ पछटै खग मूगळ सीस पड़े । 'लखधोर' 'सुजांण' सुजाव लडै । तदि थाट हणे मुगळांण तणौ । त्रिजड़ा हथ 'भोम' 'सुजाण' तणौ ।। ७८६ सुत सूरजमाल संग्रांम करै । किलमां खग' तंडळ 'राम' करै । सुत सूर पराक्रम क्रोध सचै । रिणढांण" खगां 'सुद्रसेण' 'रचै' ।। ७६० जुध 'दूजण'८ 'बाघ' कराळ जसौ । जवनां खग बाहत काळ जसौ ।
१ ख. झिमला। २ ख. बाढंत । ३ ख. प्रहि । ग. ग्रहा। ४ ग. प्रभो। ५ ख. ग. मुगलाणतणो। ६ ख. ग. षगि । ७ ख. रिणटांण। ८ ख. ग. दुजण ।
७८७. झिलमा - युद्ध के समय शिर पर धारण करनेके टोपों। रतनावत - रतनसिंहका पुत्र ।
रूप - रूपसिंह। रिमां – शत्रुओं। गजरौ- हाथीका। ७८८. अणदावत - आनंदसिंहका पुत्र । अभौ - अभयसिंह । अजरौ - जबरदस्त । पोथल -
पृथ्वीसिंह या पृथ्वीराज। माहव - माधोसिंह। ७८६. लखधीर - लखधीरसिंह । सुजांण – सुजानसिंह। त्रिजड़ा हथ - खड्गधारी योद्धा ।
भोम - भोमसिंह । ७६०. किलमा - यवनों, मुसलमानों। तंडळ - ध्वंस। राम - रामसिंह। रिणढांण -
युद्धस्थल। सुद्रसेग - सुदर्शन चक्र । ७६१. दूजण - शत्रु । बाघ - बाघसिंह । कराळ - भयंकर ।
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२२० ।
सूरजप्रकास
रिण रूप' कियां बनराव तणौ तद' 'जैत' लड़े भड़ 'भाउ' तणौ ॥ ७६१ हुय घायक जांणि मजेज हिचै । हरिनाथ तणौ इम 'तेज' हिचै । सुत 'भाउ'५ सिवौ' उणवार* इसौ । जुडि भारथ पारथ पिंड जिसौ ।। ७९२ रिम खाग हणे खगि झेलि रतौ । पड़ियो रिण 'राजड़ ऊत' 'पतौ' । वरि'' रंभ रथां चढि नेह वधै' । सुर लोक आवास २ निवास सधै१३ ॥ ७६३ रिम'४ थाट सु झाट खगां रण में५ । रायसींघ'६ तणौ'७ सिवसिंघ रमै । वधियो' चित धार परि वरणौ । कळ है हरिनाथ तणौ 'करणौ' ।। ७६४ वढ२१ झाट खगां खळ थाट वहै । सर साबळ खाग अथाह सहै ।
१ ख. ग. कीयां। २ ख, तदि। ३ ग. भाऊ। ४ ख. ग. होय। ५ ख. ग. भाऊ। ६ ख. ग. सिवो। ७ ख. उणबार । ८ ख. पंड। ग. रिमा। १० ख. बरि । ११ ख. बधे । १२ ख. प्रवास। १३ ख. सधे । १४ ख. रिमं । १५ ख. ग. मै । १६ ख. ग. रासिंघ। १७ ग. तणो। १८ ख. बधीयौ । ग. वधियो। १६ ख. धारि। २० ख. ग. परी। २१ ख. बढ़। २२ ख. अथाग।
७६१. बनराव - सिंह। जैत - जैतसिंह । भाउ - भाऊसिंह । ७६२. मजेज - शीघ्र । हिचै - युद्ध करता है। तेज - तेजसिंह। सिवा-शिवसिंह ।
भारथ - भारत, युद्ध । पारथ = पार्थ - अर्जुन । ७९३. रतौ - रक्त, लीन । राजड़ऊत - राजसिंहका पुत्र। पतौ- प्रतापसिंह। सधै -
प्राप्त किया । ७६४. परि - अप्सरा। वरणौ - वरण करना। करणी - करणसिंह ।
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सूरजप्रकास
[ २२१ पड़ियो' रण खेत परि' परणे । वधि खेड़ रथां सुर देह वणे' ॥ ७६५
हब' क्रोध लड़े जम' क्रोधहरा । उदावत- इण" अागळि 'ऊदह' राई 'अजरा' ।
खग झाट करै खळ सीस खिरै । सुभरांम समोभ्रम 'चैन' सिरै ।। ७६६ पाड़तां'' पहुँतौ'१ जवनां प्रचडां । झिलमां सहितां सिर खास झंडां' । कळिचाळि' इसी विध१४ जंग किय५ । लुह 'झेल' सुभावत' दलियै ॥ ७६७ अछटै२१ रिम खाग चखां१२ अरणौ । तिण मौसर 'ऊद' 'प्रताप' तणौ । थट कासिम मोड़४ विलंद५ थटां । विहँडै २६ गिरमेर तणौ विकटां२७ ।। ७६८
१ ख. पडीयो। २ ख. ग. परी। ३ ख. बणे। ४ ग. हुए। ५ ख. यमा ६ ख. योधहरा। ७ ख. इणि। ८ ख. पागल । ६ ग. उद। १० ख. पाडतो। ११. ग. पहुँतो। १२ ख. झडां। १३ ख. कलचाल । ग. कलिचाळ । १४ ख. बिधि । ग. विधि । १५ ख. कीये। १६ ख. ग. लोह। १७ ख. झोलि । १८ ख. सभावत । १६ ख. ग. वृद। २० ख. लीये । २१ ख. पाछट। २२ ख. चषो। २३ ख. ग. कासीय। २४ ख. मौड। २५ ख. बिलंद। २६ ख. बिहंडे । २७ ख. बिकटां।
७६५. पड़ियो - वीरगति प्राप्त हुआ। परणे - पाणिग्रहण कर के। ७६६. हुब - जोशमें हो कर, आवेशमें हो कर । प्रागळि - अगाड़ी। खिरै -गिरते हैं ।
चैन - चैनसिंह। ७६७. पहुंती - पहुंच गया। झिलमा - युद्ध के समय सिर पर धारण करनेके टोपों ।
सुभावत - शुभरामका पुत्र । वद -विरुद, यश । ७६८. अछट - प्रहार करता है। रिम – शत्रु । चखा-प्ररणी - लाल नेत्र । मौसर -
समय। ऊद - उदयसिंह। प्रताप - प्रतापसिंह । यट'... 'विलंद - सर-बुलंद । गिरमेर - सुमेरसिंह ।
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२२२ ]
सूरजप्रकास
तदि वाहत' खाग झुलाल तनां । 'किरतेस' समोभ्रम ‘खीमक्रनां । जवनांण विचांण पड़े जुधरै । करणोत' 'मधौ' वधि लोह करै ॥ ७६८ सबळावत' 'सांगण' धाव सझे । मुगलांळ पड़े घमचाळ मरे । छक वाहत खाग पतंग छुटै । जवनां 'अजबावत' जोर जुटै ॥ ८०० कळहै 'पदमौ' खग बोळ' • किये'' । दुसहांण 'दलावत''३ झाट दिय३ । गहतंत 'अजावत' गेहरियो । करमाळ'५ वजावत'६ 'केहरियौ'१७ ।। ८०१ विधि'"वैर हरां अजरां विरतौ । हुचकै खग 'राम' तणौ 'हिमतौ' ।
१ ख. बाहत । २ ख. ग. तनं। ३ स्व. षोमक्रनं। ४ ख. बिचांण । ५ ख. करणौत। ६ ख. बधि । ७ ख. सबलात। ८ ख. बाहत । ६ ग. जुट्ट । १० ख. ग. चोल । ११ ख. कोय। १२ ख. दलाव। १३ ख. दीयै। १४ ख. गेहरोयो। १५ ख. करिमाल। १६ ख. बजावत । १७ ख. ग. केहरीयो। १८ ख. बधि। १६ ख. बर । २० ख. बिरतौ।
७६६. झुलाल तनां-कवचधारी योद्धा। किरतेस - कीतिसिंह। खीमकनां - खीमकरण
सिंह । जवनांण - यवन । विचांण – मध्य, बीच। करणोत मधौ - माधोसिंह
करणोत शाखाका राठौड़ वीर । ८००. सबळावत - सबलसिंह का पुत्र । सांगण - संग्रामसिंह । धमचाळ - युद्ध। मझे
मध्यमें। छक - जोश, तेजी। पतंग - फॅवारा। प्रजबावत - अजबसिंहका पुत्र । ८०१. पदमौ - पद्मसिंह । खग बोळ किए - तलवार रक्तरंजित किए हुए। दुसहाण - शत्रु ।
दलावत - दलसिंहका पुत्र । झाट - प्रहार । गहतंत - मस्त, रणोन्मत। गेहरियो - होलिका पर 'गैर' नृत्य करने वाला। करमाळ = करवाल - तलवार । बजावत -
प्रहार करता है, ध्वनित करता है । केहरियो - केसरीसिंह । ८०२. वैर हरा - शत्रुओं। अजरां - जबरदस्त योद्धाओं। विरतौ - भयंकर रूपसे, भयावह
रूपसे । हुचके - युद्ध करता है, प्रहार करता है। राम - रामसिंह। हिमतौहिम्मतसिंह।
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सूरजप्रकास
[ २२३ 'नवलौ' 'हिरदेस' तणौ निजड़ा । भभराळ बरंग' करत भड़ां ।।८०२ घडछै खळ खाग गजां धखतौ । विरतौ' 'सदमाल' तणौ 'बखतौ” । बहसै' 'नवलावत' धार वरै । किलमां 'सिरदार' संघार करै ।।८०३ छक 'ऊदल' छोह छछोह छळां । खग झाट 'कलावत'६ देत खळां । दुसहां खगहूंत वहै" दळतौ । किसनावत 'ऊदल' कावळतौ ।। ८०४ अडिगांण लड़े खगपांण इसौ ।
जुध ‘पाहड़'८ पाहड़ मेर जिसौ । करमसिहोत- छक छोह चखां झळ क्रोध छटै ।
जमरांण करम्मसियोत जुटै ॥८०५
१ ख. नवलो। २ ग. वरंग । ३ ख. बिरतौ। ग. विरतौ। ४ ग. वषतौ। ५ ग. बहस। ६ ख. तलावत । ७ ख. बहै। ८ ख पाहाड पाहाड। ६ ख. ग. छुट । १. ख. ग. करमसीयौत ।
८०२. नवलौ - नवलसिंह। हिरदेस - हृदयसिंह। निजड़ा - तलवारों। भभराळ -
बड़े-बड़े तथा बहुत चौड़े घाव । बरंग - खंड, टूक । ८०३. धखतौ- प्रज्वलित होता हुआ। सदमाल - शार्दूलसिंह । बखती - बखतसिंह ।
बहस - जोशमें आता है । नवलावत - नवलसिंहका पुत्र । सरदार - सरदारसिंह ।
संघार - संहार, ध्वंस । ८०४. ऊदल - उदयसिंह। छोह - कोप। छळां - युद्धोंमें । कलावत- कल्याणसिंह ।
दुसहां - शत्रुनों। दळतो - ध्वंस करता हुआ। किसनावत - किसनसिंहका पुत्र ।
ऊदल - उदयसिंह। कावळतो - विरुद्ध कार्य करता हुआ, (संहार करता हुआ)। ८०५. अडिगांग - अडिग रहने वाला। खगपांण - तलवारके बल से । पाहड़ -पहाड़सिंह।
पाहड़ मेर - सुमेरु पर्वत । झळ - आग की लपट । जमरांण -- यमराजके समान । करम्मसियोत - करमसिंहोत शाखाका राठौड़ वीर ।
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२२४ ]
सूरजप्रकास
लोह वाहत गेण भुजाळ लगतौ । 'जवना' 'लख धीर' तणौ 'जगतौ' । पछटे खग पौरस पाथ तणौ । तिण वार' 'सिंभू' हर नाथ तणौ ॥ ८०६ भळ क्रोध 'लखावत' क्रोध फळां । सबळां चमराळ हण सबळां । भिड़ काज सुधारत भूप तणौ । तदि 'जोध' लड़े 'जगरूप' तणौ ॥। ८०७ 'मुकंदावत' पौरस' छाक मतौ । जवनां खग झाट करै 'जगतौ' । तदी" 'भूप' ध्रुवै वज्र मीर तही । जुध 'मेघ' समोभ्रम सुत 'जैत' प्रथाह लड़ै
खग वाह" करें 'सुभसाह' * धज सोभ विहारियदास" हण
तंत
असवार
।
४ ख बार । ५ ख. सबलौ । ग. ख. तदि ।
६ ख. बज्र । १० ख.
१ ख बाहत । २ ख. भुजां । सबलो । ६ ख. भिडि । ७ ग. पोरस | बाह । ११ ग. विहारीयदास ।
* चिन्हांकित पंक्तियां 'ख' प्रतिमें नहीं हैं ।
३ ख. लषतो
मेघ जही || ८०८ सबळां ।
८०६. लोह - तलवार, शस्त्र । गण - प्रकाश । भुजाळ- भुजाएँ वीर । लगतौ = निरंतर, लगातार । लखधीर - लखधीरसिंह । जगतौ जगतसिंह । पछटै प्रहार करता है | पाथ = पार्थ - अर्जुन शिभु - शंभुसिंह ।
८०७. झळ क्रोध- क्रोधाग्नि । लखावत- लखधीरका पुत्र । जोध - जोधसिंह । जगरूप - जगरूपसिंह |
८०८. मुकुंदावत - मुकुंदसिंहका पुत्र । जगतौ - जगतसिंह । भूप प्रहार करता है, मारता है। मोर यवन, यवन सरदार। समोभ्रम - पुत्र । मेघ - इन्द्र । ८०६. जैत- जैतसिंह |
सोभ - शोभा, कीर्ति । गहतंत - रणोन्मत्त |
-
खळां ।
धजां ।
गजां ||* ८०६
चमराळ
अथाह - अपार । सुभसाह - शुभरामसिंह ।
-
मुसलमान ।
भूपतसिंह । ध्रुवे - मेघ - मेघसिंह ।
धज - ध्वजा ।
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सूरजप्रकास
[ २२५
इण भांत' करम्मसियोत' लडे । लख धूहड़ ऊहड़ एम लडै । तन पौरस तेज दुझाल तणौ । मगरूर करै जुध 'माल' तणौ ।। ८१० भड़ 'माहव' 'सुंदरऊत'" भड़ां । धज सेल ज. जरदैत धड़ां । लड़ि' लोह 'हरिंद' सुजाव 'लखौ' । पिसणांण करै घड़ सीस पखौ ।। ८११ असुरां दळ खागि हणे अपलौ । दुति दारण' 'सुंदरऊत'८ 'दलौ' । मंडि खेलत खाग झटां 'मंडळी' । सुत 'भारहमाल' 'अभौ' सबळौ ।। ८१२ हुब वोजळ° जूटत 'रूपहरा' । धड़छ' खळ राळत गंज धरा ।
१ ख. भांति । २ ख. करमसीयौत । ग. करमसोयोत। ३ ख. अर्ड। ४ ख. ऊन । ५ ख. लड। ६ ख. प्रिसणणा। ७ ख. दारुण ८. ख. सूंदर। ग. सूदर। ६ ग. सुबलौ। १० ख. बोजल । ११ ग. धड़चे ।
८१०. धूहड़ - राव धूहड़के वंशज, राठौड़ । ऊहड़ - राठौड़ वंशको ऊहड़ शाखाका वीर ।
दुझाल - वीर । मगरूर - वीर । माल - मालदेव। ८११. माहव - माधोसिंह। सुंदरऊत - सुंदरसिंहका पुत्र। धज-तलवार । सेल -
भाला। जरदैत - कवचधारी योद्धा । धड़ा- शरीर । हरिद - हरिसिंह । सुजाव - पुत्र । लखौ - लक्ष्मणसिंह । पिसणांण – शत्रु । घड़ - सेना । सीस - ऊपर ।
पखौ - प्रहार (?)। ८१२. असुरां - यवनों, मुसलमानों। अपलो- स्वतंत्रतापूर्वक, मुक्तहस्त । सुंदरऊत - संदर
सिंहका पुत्र । दलौ - दलसिंह । मंडळो - राठौड़ वंशकी मंडला शाखाका वीर ।
भारहमाल - भारमल । प्रभौ- अभयसिंह । सबळौ - बलवान । ५१३. वीजळ - तलवार । रूपहरा - रूपसिंहका वंशज अर्थात् रूपावत शाखाका राठौड़ ।
धड़छ - काटता है। राळत - गिराता है, डालता है। गंज - समूह ।
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२२६ ]
सूरजप्रकास
जुध 'केहर' 'ऊद' तणी' जुड़ियौ । 'अणदौ' दुरगावत ग्राहुड़ियों । =१३ ।। पिंड पूर 'पतावत' सूरपणौ । तदि 'पेम' जुड़े भड़ 'मेघ' तणौ । रायपाळ कळोध खगां रणदौ । उरड़ै 'वनराज" तणौ 'प्रणदौ' ।। ८१४ चौहान - फवजां धज खांन प्रणी फबियो' पिसणांण हण" जुध पूरबियो
१०
११
'कुसळावत' 'रूप' वणास '" कढै'
મ
चगथां विहंडे' रण रूप मसतांन१४ गयंद जहीज" मुड़े | जसावतसिंह जुड़े |
जिण वार कहसै " खग घाट खड़े " वाहकौ
१७
ह
१२१
मगरूर 'चवांण" लड़े 'मुहकौ ॥ ८१६
१ ख श्राहुडीयो । २ ख. बनराज । प्रिसुणांण । ग. पिण । बणास । ख. कढ़े । हिज । १४ ख. ग. सीह । बोहको । १९ ख. चव्हाण
१०
|
८१३. केहर - केसरासिंह ।
६ ख ह
ख. बिहंडे ।
३ ख. फबजां । ४ ख. ग. फबीयौ ।
५ ख.
८ ख.
७ ख. पूरबोयो । ग. पूरवीयो । ११ ख. चढ़े । १२ ख. मसतांण । १३ ख.
१७ ख. षंडे । १८ ख.
।
१५ ख. बहसे
।
२० ग. मोहकौ
१६
१३
चढै ३ ।। ८१५
ऊद - उदयसिंह । सिंहका पुत्र । प्राहुड़ियौ - युद्ध किया, भिड़ा ।
दुरगावत - दुर्ग
८१४. पतावत - पातावत शाखाका राठौड़ | सूरपणौ शौर्य, वीरता । पेम प्रेमसिंह |
मेघ - मेघसिंह | रायपाल - राठौड़ वंशकी रायपाल शाखाका वीर । कळोध - वंशज | रणदौ - ( ? ) उर- जोशपूर्वक घसता है । वनराज - वनराज सिंह | दौ- प्रानंदसिंह |
-
१६ ग. वहसे ।
।
प्रणदौ- प्रानंदसिंह |
८१५. फजां - फोजों । खांन - यवन । श्रणी - अनीक, सेना । फबियो - शोभित हुआ, भिड़ा । पिसणांण - शत्रु । पूरबियों - पूर्विया शाखाका चौहान | कुसळावत - कुशलसिंहका पुत्र । रूप-रूपसिंह । बणास - तलवार । चगथां- यवनों, मुगलों । विहंडे - संहार करता है ।
-
८१६. मसतांन - मस्त, उन्मत्त । गयंद - हाथी । जस( वर्तासिंह - जसवन्तसिंह । वाहकौ - घोड़ेको । मगरूर - वीर । चवांण - चौहान | मुहको - मोहकमसिंह |
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सूरजप्रकास
[ २२७ गज ढाल दुझाल अमीर गरे । कवरां गुर 'लाल' सुजाव करै । महुौ' सुत 'लाल' करै उमंगां । खुरसांण हणे जमरांण खगां ॥८१७ . तुरका खग घाव अजंबा' तणौ । तदि 'राजड़' दंत 'अजब्ब' तणौ । जवनां घण लोह करंत जठै । तण 'लाल' लड़े इंद्रसींघ तठे ।। ८१८ धुबि 'धीर' 'दलावत' सार धजां । गज भार करै सरदार 'गजां' । लड़ि 'रांम' समोभ्रम क्रीत लियौ । दुजड़ां झड़ अोझड़ 'तेज' दियै ॥ ८१६ हुबि खाग अथाग हणतई । तण 'रूप' 'भवानियदास' तई । वधि' खाग सवाइय'१२ गैबहणौ ।
तदि वाहत' सूर 'हरीद'' तरणौ ।। ८२० १ ख. माहो । ग. माहुप्रो। २ ख. प्रजब्ब। ग. अजव्व । ३ ख. ग. धार। ४ ख. ग. सिरवार । ५ ख. कीति । ६ ख. ग. लीये । ७ स्व. ग. दीये । ८ ख. हणंत हई । ६ ख. ग. भवानीयदास । १० ग. तइ। ११ ग. वधि । १२ सवाईय। १३ ख. बाहत । १४ ख. ग हरिद ।
८१७. गज ढाल - युद्ध के समय हाथीके मस्तक पर धारण कराया जाने वाला उपकरण
विशेष। गरै - ढेर लगाता है। लाल - लालसिंह । महो- माधोसिंह। लाल -
लालसिंह । उमंगां - जोश । खुरसांण - यवन, मुसलमान । जमरांण - वीर (?) १८. अजंबा - अजबसिंह। राजड़-राजसिंह। प्रजब्ब-अजबसिंह । तण-तनय.
पुत्र। लाल - लालसिंह। ८१६. धुबि - जोशमें आ कर । धीर - धीरसिंह । दलावत - दळसिंहका पुत्र । सार -
प्रहार । सरदार - सरदारसिंह। राम - रामसिंह। दुजड़ा- तलवारों। झड -
लवार । प्रोझड़ - भयंकर रूपसे । तेज-तेजसिंह। ८२०. तण - तनय, पुत्र । रूप - रूपसिंह । भर्वानियदास - भवानीदास । सवाइय - सवाई__सिंह । गैवहणौ - गुप्त रूपसे, अकस्मात । सूर - सूरसिंह । हरीद - हरिसिंह।
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२२८]
सूरजप्रकास मुगळां दळ खाग हणे 'अमलौ' । सुत सांमळदास लडै 'कुसळौ' । पछटै खग 'मंछ' पतंग पड़े । इम 'ईसर' 'तेजल' ऊत अडै ।। ८२१ धख हीदवसींघ' सुजाव' धरै । करिमाळ बहादर राड़ि करै । रिण एम चुवांण' निसांण रुडै ।
जिण आगळ' जादव वंस जुड़े ।। ८२२ जादववंस - झट वीजळ' मूगळ सीस झड़े ।
इम सांमळ 'सूर' सुजाब' अडै । धज धार" जुड़े चवधार धजां । गिरमेर सुजाव झुझार गजां ।। ८२३ मगरूर खगां झट झूझ मलौ । कलहै 'सुद्रसेण' सुजाव 'कलौ' । 'जगमाल' सुजाव झाल जठै ।
तडछै खळ 'खेमकरनि'८ त।। ८२४ १ ख. हिंदुव । ग. हीदुव। २ ख. सजाव। ३ ख. ग. चुहाण। ४ ख. प्रागलि । ग. आग। ५ ख. बीजल। ६ ख. ग. सुजाव (सुझाव)। ७ ग. रार। ८ ख. खेमकरन्न । ग. खेमकरनि ।
८२१. अमलौ -(?)। कुसळो- कुशलसिंह। पतंग - फव्वारा। ईसर - ईश्वरीसिंह ।
तेजल-ऊत - तेजसिंहका पुत्र । ८२२. धख - जोश । हीदवसींघ - हिंदूसिंह । सुजाव - पुत्र । करिमाळ = करवाल - तल
वार । राड़ि-युद्ध । रिस - युद्ध । चुवांरण- चौहान । निसांण – नगाड़ा, बाजा विशेष। रुड़े - बजवाता है। जादव-वंस - यादव वंश । जुड़े - भिड़ते हैं, युद्ध
करते हैं। ८२३. झड़े - प्रहार करता है। सांमळ - श्यामसिंह । सूर - सूरसिंह । धज-धार - तल
वार । चवधार - भाला। गिरमेर - सुमेरसिंह । झुझार - जूझारसिंह। ८२४. झूझ मलौ - युद्ध - मल्ल = योद्धा अथवा झूझारसिंह । सुब्रसेण - सुदर्शनसिंह । कलौ
कल्याणसिंह । जगमाल - जगमालसिंह। तडच्च - काटता है। खेमकरन्न - खेमकरणसिंह।
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सूरज प्रकास
अणभंग ''मधावत' सूर
जवनां
जुध' तेज 'गुमांन' सत्र वेधि' 'जसावत' जुध' 'भीम' समोभ्रम जाहरसो । हथळे खळ 'नाहर' नाहर सो । जगमाल सुजाव लड़े जुजवी * । हुलिका थँभ हिम्मतसींघ" नर मेछ खपंत पडंत जुध ताळ उडै खग भाट विढिया खगि मेछ खगां विढियौ
६
ह
अछरां वरि", देवपुरां सुत 'जैत' 'सरूप' कियौ 'हरियंद' लड़े भड़ धर राज पुरोहित उचकंत १४
चढियौ सधरौ । सेख हरौ ।
रीत धुरौ । 'माहव'रौ ॥ ८२८
विजैमल
अड़े ।
सिवसींघ छड़ाल जड़े ।
झळाहळसूं ।
साबळसूं ।। ८२५
3
-
हुवौ ।। ८२६
नहीं ।
जही ।
६०
।
-
२
१ ख. जुधि । २ ख. बोधि । ३ ग. साबळसू । ४ ख. जुधि । ५ ख. म. जुजवो । ६ ख. ग. हूलिका । ७ ख. हिम्मतसिंघ । ग. हिमसिंघ । बढ़ीया । ग. विढीया । १० ख. बढियौ । ११ ख. बर । कीयां । १४ ख. ग. हुचकंत |
८ख हुन । ६ ख. १२ ख. चढ़ीयौ ।
१३ ख.
८२५. प्रणभंग - वीर योद्धा । मघावत- माधोसिंहका पुत्र ।
छडाल - भाला। जड़ेप्रहार करता है । गुमांन गुमानसिंह । झळाहळ - अग्नि, श्राग । जसवंत वन्तसिंह | साबळसूं - भालेसे |
८२६. भीम - भीमसिंह । हथळे प्रहार करता है, मारता है नाहर - नाहरसिंह | जगमाल - जगमाल सिंह । सुजाव - पुत्र । जुजवौ - पृथक । हुलिका होलिका । ८२७. मेछ - यवन । खयंत - यत्न करते हैं। ताळ - समय । विढियो - कट गये, वीर गति प्राप्त हुए । विढियो कट गया, वीर गति प्राप्त हुआ । श्रछरां - श्रप्सराएँ । वरी - वरण कर के । देवपुरां - स्वर्ग में । ८२८. जैत- जैतसिंह | स्वरूप - स्वरूपसिंह | श्रथवा अपना रूप । सधरौ दृढ़, अटल । हरियंद - हरिसिंह । सेख हरौ शेखावत वंशका वीर । धर राज - राजाधिराज, महाराजा बखतसिंह | धुरौ प्रथम, श्रग्रगण्य । माहवरौ - माधोसिंहका ।
॥ ८२७
[ २२६
-
—
-
-
जस
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२३० ]
सूरजप्रकास खगि सावज ध्रज' विहंडि' खळां । अखतेस जरद करै उजळां । उण वार खळां थट आहुड़ियौ । रिण राव धसै' जुध रोहड़ियौ ॥ ८२६ पछटै खग हैमर तूट पड़े । लोहड़ां झट बारहट 'कन्न' लडै । गिरजावर पूर करै गहणौ । कुळ मारग सूर किसौ कहणौ । ८३० चढियौ'' अनि हेमर'२ रोस चड़े । लगियां धख 'केहर' ऊत लडै । वप'३ पांण उपांण'४ चंडी वरणौ'५ । किलमांण वखांण कियौ करणौ ॥८३१
१ ख. ग. घझ। २ ख. बिहंडी। ३ ख. ग. ऊजलां। ४ ख. प्रोहडीयौ। ५ ख. धसे । ६ ख. ग. रोहडीयो। ७ ख. तूटि। ८ ख. ग. बारट। ६ स्व. ग. ऋन । १. ख. करे। ११ ख. चढ़ीयो। १२ ख. ग. हैभर। १३ ख. बप। १४ ख. उफांरण । ग. ऊपांण। १५ ख. वरनौ। १६ ख. कोयो। १७ ख. ग. करनौ ।
८२६. खगि- तलवारसे । सावज- यहां साबल शब्द होना चाहिए अथवा श्यामज -
हाथी। (?) ध्रज - भाला। विहंडि - संहार करता है। अखतेस = अक्षत - अखंडित चावल जो विवाहादि मांगलिक अवसरों पर पीले रंग कर इष्ट-मित्रोंके यहाँ निमंत्रण के रूपमें भेजे जाते हैं। जरद-पीला। उजळा - उज्ज्वल । पाहुड़ियौ - भिड़ा, युद्ध
किया। रिण-राव - वीर । रोहड़ियो- रोहड़िया शाखाका चारण वीर । ८३०. पछट - प्रहार करता है। हैमर - घोड़ा। लोहड़ा - तलवारों । झट-बारहट ऋन्न
करणीदान बारहठ जो मूदियाड़ ठाकुरका पूर्वज था। गिरजावर – महादेव ।
गहणी - प्राभूषण। ५३१. अनि - अन्य । हेमर - हयवर, घोड़ा । धख - जोश, उमंग। केहर ऊत - केसरी
सिंहका पुत्र । वप : वपु - शरीर। पांण - कांति, दीप्ति । चंडी वरणौ - चारण कवि। किलमांण - यवन । वखांण - प्रशंसा, तारीफ। करणी - करणीदान बारहठ ।
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सूरजप्रकास
[ २३१
वधिदेव' पराक्रम 'वीर' तणौ । तदि जूटत 'पासल' 'धीर' तणौ । सांदुवा पति 'पीथ' अणी समही । जुड़ियौ' 'सबळावत' वाघ'जही ॥८३२ करनी-कुळ 'माहव' नाम कवी । चढि खेत 'हिमत्त उकत्ति चवी । थळ जेम 'कुभावत'११ भाग थिया' । कर' मेळ झळाहळ लोह किया ॥ ८३३ झड़ औझड़'५ सूत दियै'६ झटकां । कर वांणिय'८ हाक खळां कटकां । पिसणां'६ रण अंतक गीत पढे । चगथां ° दळ वीजळ' पूज चढे ॥ ८३४ पिंड चौसर धार२२ परी परणी । सझि राड २3 करी म्रत'४ सेझ वणी ।
१ ख. बधिदेव। २ ग. पुराक्रम । ३ ख. सांदुवां । ग. सांदूवां। ४ ख. जुडीयो। ५ ग. संवलावत। ६ ख. बाघ । ७ ख. जही। ८ ख. षेति। १ ख. हिमति । १० उकति । ११ क. कुभावह । १२ ख. ग. नागथीया। १३ ख. करि। १४ ख. ग. कीया। १५ ग. प्रोझड। १६ ख. दीयं । १७ ख. करि। १८ ख. वांरणीय । १६ ख. प्रिसणां। २० ख. चगयां । २१ ख. बीजळ। २२ ख. धारि। २३ ख. ग. राडि। २४ ख. ग. मृत ।
८३२. प्रासल-प्रासिया गोत्र का चारण । धीर-धीर, आसिया गोत्रका चारण । सांदुवा
चारणोंकी सांदू गोत्रके वीर -। पीथ -पृथ्वीसिंह सांदू । अणी - मनीक - सेना ।
समही - सम्मुख । जुड़ियौ - भिड़ा । सबळावत – सबलसिंहका पुत्र । ८३३. करनी-कुळ - जिस वंशमें करणी देवीने अवतार लिया, चारण वंश। माह
'माधोसिंह । खेत - युद्ध-स्थल । हिमत्त-हिम्मतसिंह । चवी - कही। ८३४. प्रौझड़ - भयंकर । झटका -प्रहारों। कर हाथ । वांणिय = बांण - तलवार । ___ हाक - जोशपूर्ण आवाज । पिसणां - शत्रुओं । अंतक - अंत करने वाला, संहारक । - गीत - डिंगल भाषाका छंद विशेष । पढे - सुनाता है। चगथां - मुगलों, यवनों ।
पूज-पूजा। ८३५. चौसर - पुष्पहार । परी- अप्सरा। परणी - पाणिग्रहण किया। सेझ - शय्या ।
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२३२ ]
सूरजप्रकास सुत 'जीवण' पात पणौ सझियौ' । लहि अम्मर लोक उदक्क' लियौ ॥ ८३५ उण वार लड़त 'फते'' अजरौ । गह पूर 'हरी' सुत सोनँगिरौ । हुचकै जुध 'केहरि' 'ईंद" हरौ । बळिवंत 'अनावत' धार बरौ ॥८३६ भचकै बळ धारि भुजाण तणौ । विजड़ां 'विजपाल'६ 'सुजांण' तणौ । हद वाहत' खाग झळहळियौ'' । मुगळां सिर' 'साहिब' मांगळियौ' ।। ८३७ बहस ४ जुध लोदिय'५ खांन बळां । खग वाह'६ करंत सिपाह खळां । भचकंत पंचोळिय'" भूप तणौ१८ । रवदाळ'६ हणे वड 'रूप' तणौ ।। ८३८
१ ख. सझीयौ । २ ख. ग. लहि। ३ ख. उद्दक्क । ग. उद्दक। ४ ख. ग. लीयो। ५ -ख. ग. फतौ। ६ ख. हचकै । ७ ख. ग. इंद। ८ ख. बरौ। ६ ख. बिजपाल । १० स्व. बाहत । ११ ख. झलाहलीयौ। १२ ख. सिरि। १३ ख. मांगलीयो । १४ ग. वहस । १५ व. ग. लोदीय । १६ ख. बाह। १७ ख. पचौलीय। १८ ख. ग. तणा। १६ ख. रबदाल ।
८३५. जीवण - जीवणदास नामके चारण कवि । पात पणौ - चारण कविका कार्य ।
सझियौ - प्राप्त किया, सिद्ध किया। उदक्क - जल । ८३६ फतै - फतहसिंह । अजरौ- जबरदस्त । गह-पूर - पूर्ण जोश या गर्व वाला । हरी
हरिसिंह । सोनगिरौ- चौहान वंशकी सोनिगरा शाखाका वीर । हुचके - भिड़ता है, युद्ध करता है । केहरि - केसरीसिंह । इंद - इन्द्रसिंह । हरो-वंशज। अनावत -
अनाड़सिंहका पुत्र । बरौ- जोश, कांति । ५३७. भचक- शीघ्र । भुजांण – भुजाओं। त्रिजड़ां - तलवारों। विजपाल - विजयसिंह ।
सुजाण - सुजानसिंह । झळहळियो - पूर्ण जोश में आया हुआ। साहिब - साहिब
सिंह । मांगळियो - गहलोत वंशकी मांगळिया शाखाका वीर । ८३८. भचकंत - ध्वंस करता है। पंचोळिय - कायस्थ । रवदाळ - यवन। रूप
रूपचंद।
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१ ख बधिरूप |
५ ख. ग. हरिव । हरौ ।
सूरजप्रकास
वधि 'रूप' कियौ खग चोळ- वनौ ।
घड़छै वरदां ' 'महिकन्न ४ 'धनौ' । धख 'लाल' हरींद' सुजाव
धरै ।
किलमां हुजदार संघार
करै ।। ८३६
वधि व्यास दुहूँ हरिलाल अनं हद खाग करै जुध वेहदरौ ।
रिम थाट बिच । नँदलाल हिचै ।
बधि" धावड़ चाक लड़ै 'बदरौ' ।। ८४०
११
२
हद जूटत धांधल ' को हु । दइवांण 'सुजांरण' 'कल्याण' दुवै । प्रति बाहत खाग छकां उजळौ किलमां 'नरपाळ' सुजाब' 'कलौ' ८.४१
93
હું૪
.१५
तद' 'धारि' सहांणिय" रोस धतौ" । हुचकै खगि 'नाथ' 'जसौ' 'हिमतौ' ।
२ ख. कोयां । ग. कोयौ । ३ ख. रवदां । ६ ख. बधि । १० ख. बंध । ग. बंधि ।
४ ख. ग. महिन । ७ ख. दुहुँ । ग. यूह | ग. विचे। ६ ख. बेद११ . धांधल | १२ ग. दवांण । १४ ख. उछलौ । ग. उझलौ ।
१५ ख. ग. सुजाव ।
वाहत
१७ ख. सहाणी | १५ ख ततौ । ग. धतो ।
महिक्रन्न - मह
८३९. चोळ वनौ - लाल वर्ण, लाल रंग | धड़छे - संहार करता है । करण । धनौ - धनराज । धख जोश, क्रोध । हरियंद - हरिसिंह | ४०. रिम - शत्रु | धावड़ राजाको दूरधपान कराने वाली स्त्रीका पति । बदरौ - बद्री
-
[ २३३
दास ।
८४१. धांधल - राठौड़ वंशकी एक शाखा । इवांण वीर सुजांण - सुजानसिंह । दोनों । नरपाळ - नरपालसिंह। कलौ - कल्याण
कल्याण – कल्याणसिंह । दुवै सिंह |
-
१३ ग.
१६ ख तदि ।
८४२. सहांणिय - घोड़ेको चाल सिखाने वाला, घोड़ोंका शिक्षक । रोस-घतौ - जोशीला । नाथ - नाथूसिंह | जसौ जसवंतसिंह | हिमतो - हिम्मतसिंह |
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२३४ ]
सूरजप्रकास
प्रति जूटत पौरस ऊझळियौ'
महि 'खीचिय' 'सूरज' मांगळिया ॥ ८४२
४
चहुवांण केवांण साहिब खां
रिग
हद वाजत लोह जंग रसिया जिण ठोडि हर्णे
चरचै ।
रत्रां अबदार रचै ।
६
हवदां ।
रवदां || ८४३
१०
दुति 'ईसर'"" दौढियदार" दळां । * खग झाट करै इतिमांम खळां । पडिहारज प्रतिस मीर पळां । * भटकां "गिरधीर"" ह दुझलां || ८४४ बधियौ ३ गहलोत १४ छकां वणदौ । 'देवराज' सुजाब" लड़े 'अणदौ' । घण वाहत लोह छछोह घणा । तिण वरि इता
'अधराजतणा' ।। ८४५
१ ख. ऊभलीयौ । २ ख. ग. षींचीय । ग. रिण । ६ ख श्रवदार । ७ ख. बाजत | ग. रसियो । १० ग. इसर । aisa | १४ ख. ग. गहलौत |
५ ख.
३ ख गमलीयो । ४ ख. चहुंवांण । ८ख. ग. जंगी । ६ व. रासीयौ । १२ ख. गिरधार । १३ ग.
११ व. ग. दौढ़ीयदार ।
१५ ख. ग. सुजाव ।
* चिन्हांकित पंक्तियां 'ख' प्रतिमें नहीं हैं ।
८४२. पौरस - पौरुष, बल । ऊभळियो - उभड़ा हुआ । महि - महासिंह । खीचिय- चौहान वंशकी खीची शाखाका व्यक्ति । मांगळियौ - गहलोत वंशकी मांगळिया शाखाका व्यक्ति ।
८४३. केवाण - कृपारण, तलवार । रत्रां - रक्त, खून। साहिब खां - साहिबखानसिंह | अबदार - राजा-महाराजानोंको जलपान कराने वाला । रसियो - रसिक । हणी - संहार करता है । रवदां - यवनों ।
८४४. दुति - द्वितीय, दूसरा । ईसर - ईसरसिंह । दोदीदार- राजा-महाराजाओंके डघोढ़ी ( द्वार) पर देख-रेख का कार्य करने वाला । ड्योढोका अफसर। गिरधीर-गिरधारीसिंह | बुझलां - योद्धाओं ।
८४५. वधियो - बढा । छकां - जोश। वणदौ - ( ? ) । देवराज- देवराजसिंह | अणदौ - नन्दसिंह | छछोह - तेज, फुर्तीला । श्रधराजतणा-राजाधिराज महाराजा बखतसिंहका ।
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सूरजप्रकास
[ २३५ रिण जूटत सूर बाळ' रुडै । जुध' जांणक दांणव देव जुड़े ॥ ८४६
दहौ-४
विजयराज-'बखत' थाट इण विध विढे , इण अगि क्रोध उपाड़ि। बिकट फौज विजपाळरी'', रचै खगां झट' राड़ि ॥८४७
छंद सारसीधुबि राग सींधव बंब'१ धूसां तूर भेरि बहक्कए । जोगणी चवसठी'४ पीर जय जय चंड वांम चहक्कऐ५ । हुवि'६ नास सास ब्रहास धमहम स्रोणि'" धम धम हैखुरां'८ । घूघरां पाखर रोळ घम घम झोळ झम झम झज्झरां ॥ ८४८ झड़वांणखड़हड़ ग्रोध झड़फड़ भूत खेचर भूचरा । सिकोत्र डाकणि मिळे साकणि करै रास भयंकरा ।
१ ग. त्रांबाल। २ ख. जुधि । ३ ख. ग. जांणिक । ४ ख. ग. दोहा। ५ ख.. बिधि । ग. विधि । ६ ख. ख. बिढे । ७ ख. इणि । ८ ख. अग्र। ख. बिजपालरी। १० ख. झाटि। ११ ख. वंब । ग. बंब । १२ ख. चूंसां। १३ ख. हक्कए। १४ ख. ग. चवसठि। १५ ख. चहक्कए। १६ ख. हुबि। १७ ख. ग. प्रोष्णि । १८ ख. ग. हेषुरा। १६ ग. रौल। २० स्व. झडबाण । २१ ख. ग. सीकोत्र ।
८४६. बाळ - नगाड़ा। रुड़े - बजते हैं। जांणक - मानों। दांणव - दानव। जडे
भिड़े। ८४७. बखत - बखतसिंह । विढे - युद्ध करते हैं । ८४८. धूवि - पूर्ण जोगमें हो कर । सींधव - वीररस पूर्ण राग । बंब - नगाड़ा। धसां
धौंसों। तूर - फूंकवाद्य विशेष । प्रहक्कऐ - बाजे बजते हैं। जोगणी - रणचंडी। वीर - युद्धप्रिय भैरव जिनकी संख्या राजस्थानी में ५२ मानी जाती है। चंड - एक प्रकारका युद्धप्रिय पक्षी विशेष । चहक्कण- चहचहाते हैं। नास - नाक । सासश्वास । ब्रहास-घोड़ा। धमहम - ध्वनि । स्रोणि-क्षोरिण : क्षोणी, पथ्वी।
रोळ - ध्वनि विशेष । झोळ - ध्वनि विशेष । झज्झरा- घोड़ेके परके आभूषणों। ८४६. झड़वांण - ( ? ) । खड़हड़ - ध्वनि विशेष । झड़फड़ - पक्षियोंके पर फडफडाने
की क्रिया या ध्वनि । सिकोत्र - शाकिनी । रास - एक प्रकारका नत्य ।
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२३६ ]
सूरजप्रकास अरड़ाव घोर अंधार प्रोद्रव' रूप रौद्रव राहरा । घण ईस' हौफर कर घायल निस गिरवर नाहरा ॥ ८४६ . 'विजपाळ' हाकलि जेण वेळा सूरवीर सकज्जयं । धख पूर धसिया समर धोरग धोम चख कमधज्जयं । उण वार सांमतसींघ उरड़े करै चाळौ काळरौ । खुरसांण थाटां वीच' खेल' पछट खग 'विजपाळ'''रौ ॥ ८५० उडि बांह मुगळां जिरह ऊगळि नारंग रंग नक्कली' । बळि' कीया जाणै१५ रगतवंसी'६ चील तजि कजि' कच्चळी' । अधसीस धड़ विहरंत असिमर फबै १ इम खळ फांडिया२३ । वधि जांणि करवत' काढ विहरै पाट करि धर पाड़िया ।। ८५१ अणभंग 'सांमत' धणी प्रागळ७ अोपमा'८ वंद६ प्रावतौ । धावतौ 'हरि' हर धसै घूमर' झल लोह झिलावतौ ।
१. ख. श्रौद्रव। २ ख. ग. इसा। ३ ख. बिजपाल । ग. विजपाल । ४ ख. बेला । ५ ख. ग. धसीया। ६ ख. ग. धोरंग। ७ ग. सांमतसिंघ। ८ ख. करौ। ख. बीचि । ग. बीच । १० ख. बेल्है । ग. खेलें। ११ ख. बिजपालरौ। १२ ख. ग. नीकली। १३ ख. बल। १४ ग. किया। १५ ख. ग. जांणे। १६ ख. बंसी । १७ ख. चाल । १८ ख. तजि । १६ ख. ग. कंच्चली। २० ख. बिहरंत । २१ ख. फव। २२ ख. फाबीया । व. फाडोया। २३ ख. बाधि । २४ ख. करबत । २५ ख. बिहरे। २६ ख. ग. पाडीया। २७ ख. प्रागलि । २८ ख. ग. वोपमा। २६ ख. ग. वृद। ३० ख. धूमर ।
६४६. अरड़ाव - ध्वनि विशेष। प्रोदव - भयावह । रौद्रव - रौद्ररसपूर्ण। होफर -
ध्वनि विशेष । ८५०. विजपाळ - संभव है विजयराज भंडारी हो जिसकी सेनामें मेड़तिये राठौड़ोंका बड़ा
भारी दल था (?) हाकलि - चलाई । जेण-बेळा-जिस समय । धख - प्रबल जोश ।
समर - युद्ध । खुरसाण - यवन, मुसलमान । थाटा- दलों, सेनाओं। ८५१. जिरह - कवच । ऊगळि - फट गई, तूट गई। नारंग - रक्त । रगत-बंसी-चील -
रक्तवंशी जातिका सर्प विशेष । कच्चली- कंचुकी। असिमर - तलवार। ८५२. अणभंग - वीर । सांमत - सांवतसिंह । हरि - हरिसिंह = हर – वंशज। घूमर -
सेना । झल लोह झिलावतो - लोहों (शस्त्रों)का प्रहार सहन करता हुआ और शत्रु पक्ष पर प्रहार करता हुआ।
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सूरजप्रकास
[ २३७ 'सत्रसाल' भड़ इंद्रसींघ संभ्रम 'दलौ'' 'पदमावत' दुवै । वधि' जांरिग खेलै भगळ विद्या' जड़लगां धड़ जूजवै ।। ८५२ तिण वार 'जालम' 'केहरी' तण करै खग झट खळ कटै । उतबंग असुरां बढे पाछट'' अधर धड़हूं ऊछटै । पावता झेलै जटी पायस करण - माळा संज कियै । ग्रहि गवड़ विदिया'२ जांणि गोळा लाल बाजीगर लिय'३ ॥८५३ पग हाथ झड़५ झड़ जरदपोसां उअर'६ बळधड़ ऊससै । बह जांणि राकसतणा बाळक हरख करि करि हूलसै । 'जालिमां' ऊपरि मीरजादा धहुर सायक धरहरै । मूसळां धारी'८ जांणि मंडियौ'६ इंद्र ब्रज' गिर ऊपरै ॥८५४ लह लागिया ने लोहाळ लसकर भयंकर गज भाररौ । ब्रहम ही पार न लहै वरण २३ 'जालमौ'२४ जिण वाररौ ।
१ ग. दलो। २ स्व. बधि । ३ ख. ल्है । ४ बिदीया । ग. विदिया। ५ ख. जूजुटे । ग. जूजुवै। ६ ख. जालिम । ७ ख. ग. पलकट। ८ ख. ग. उतबंग। ख. ग. बाढ़ि । १० ख. ग. प्राछट। ११ ख. कोय। १२ ख. विदीया। १३ ख. लीये। १४ ख. पगि। १५ ख. झटि झटि । १६ ख. ऊपर। १७ ख. बहो। ग. बोहो । १८ ख. ग. धारह । १६ ख. ग, मंडोयो। २० ख. व्रज । ग. वज। २१ ग. उपर। २२ ख. लागीया। २३ ख. बरणे। २४ ख. जालिमो।
८५२. दलौ - दलसिंह। पदमावत - पदमसिंहका पुत्र या वंशज । जड़लगो - तलवारों।
जूज - पृथक । ८५३. जालम - जालिमसिंह । केहरी - केसरी सिंह। उतबंग = उत्तमाग- सिर । बढे -
कटते हैं । ऊछट - उछल कर दूर पड़ते हैं। जटी-प्रायस - महायोगी रुद्र । करण
माळा - मुंडमाला बनानेको । संज - सामान । गवड़ विदिया - ऐन्द्रजालिक विद्या । ८५४. जरदपोसां - कवचधारी। उधर - उर, वक्षःस्थल । ध्रड़ - शरीरका मध्यम भाग ।
ऊससे - जोशमें आ कर । बह - बहुत । हूलसै - उमड़ते हैं, हर्ष कर के उमड़ते हैं। जालिमां- जालमसिंह । मीरजादा - यवन । घहुर -(?)। सायक - तीर ।
मूसळापारी- मूसलके समान भारी धार (जल-धारा)। ५५. ब्रहम - ब्रह्मा । जालमौ - जालमसिंह ।
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सूरजप्रकास 'सुरतेस' दारुण 'सेर' संभ्रम 'पेम' सुत रज पाळयं ।
रवदाळ दळ किरमाळ रहचै 'काळ रूप कराळयं ॥ ८५५ दइवांण' सिंभूसिंघ दारुण' दुसह वारण निरदले । वधि रूक टूक भभूक वध वध, ऊक धारण ऊकळे । संभ्रम 'सवाई" धमक" साबळ 'गजण' पाड़े मुगळां । जरदैत रत मझि पड़े जांण वारिधी' मझि वादळां ॥८५६ वाहै' ने 'विजावत'१३ बहादर वधि वाढ झळहळ१६ वीजले । जुधि पड़े तड़फै मुगळ' ८ जांण'६ अोछि" जळ मछ उच्छले । सुत 'हठी' 'सिवपति' घाव साझ तेग पछट सतेजरा । *फुट२१ भ्रगुट ऊछट'3 रत फुहारा जांणि मट रंगरेजरी ।। ८५७ ईंद्रसींघ सुत भड़ 'जोध' अणभंग 'लाल' 'सुत' 'गजबंध' लड़े । धुबि खाग झडझड़ नाग धड़-धड़ प्रिसण दडदड़५ सिर पड़े । १ ख. ग. दईवाण । २ ख. दारण। ३ ख. ग. निरदले। ४ ख. धुवि । ग. वुधि ।
यह पंक्ति 'ख' प्रतिमें नहीं है। ५ ख. ऊक पारण। ६ ख. सवाई । ग. सवाइ। ७ ख. कमंध। ८ ग. सावल । ६ ख. जाणे। १० ख. ग. घर। ११ ख. बादलां। १२ ख. बाहै। १३ ख. विजावत । १४ ख. बाहादर । ग. वाहादर। १५ ख. बाढ़। १६ ख. जलहल । १७ व. बीजल। १८ ख. ग मुगल । १६ ख. ग. जाणे । २० ख. ग. प्रोछ। २१ ख. ग. फुट । २२ ग. भृगुट । २३ ग. ऊछट । २४ ख. ग. इंद्रसीघ । २५ ख. ग. दडदड।
___ *यह पंक्ति 'ख' प्रतिमें नहीं है।
८५५. सुरतेस - सूरतसिंह । सेर - शेर सिंह । संभ्रम - पुत्र । पेम - पेमसिंह । किरमाळ --
तलवार । २६चै - ध्वंस करता है । कराळयं - भयंकर । ८५६. दारुण - भयंकर । दुसह - शत्रु । वारण - हाथी। निरदळे - विध्वंस करता है ।
रूक - तलवार । टूक - खंड । भभूक - ध्वंस । ऊक -( ? )। सवाइ - सवाई
सिंह । धमक-प्रहार । गजण - गजसिंह। रत : रक्त - खून | वारिधी-समुद्र । ८५७. वाहै - प्रहार करता है। वाढ - शस्त्रका पैना भाग, शस्त्रकी धार । वीजळे - तल.
वारें । मछ – मत्स्य, मछली। हठी - हठोसिंह। सिवपति - शिवसिंह। तेग - तलवार । पछट -- प्रहार कर के। भ्रगुट = भकुटि - मस्तक । मट - मिट्टीका बना
बड़ा पात्र, पात्र। ८५८. जोध - जोधसिंह । लाल - लालसिंह । गज-बंध - गजसिंह । धुबि - तेज । नाग
हाथी । प्रिसण - शत्रु । बहवः - गेंदके समान गिरनेकी क्रिया या ध्वनि ।
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सूरजप्रकास
[ २३६ सालिमो' भड़ 'सरदार' संभ्रम धार खगि खळ धोखळ' । डमरू' डहड्डह चंड चहच्चह काळ कह कह कळकळे ।। ८५८ "अमर" रौ 'मोहकम''रा" असूरां बह हणे धड़ बेहड़ा । खग' झाट जुधि'' होळियार'२ खेले हरखि जांणि डंडेहड़ां । जिण वार सूर 'गुलाब' जूटै खंडै दळ खुरसांगरौ । सत्रु वरै४ ह्रां हंस सूरां भिदै मंडळ भांणरौ ॥८५६ उरड़िया' मुगळ१६ ‘गुलाब' ऊपर रवद रूपड़ रांमणा । जागिया'८ भूत मसांण जांणै इसा खळ अध्रियांमणा । धमजगर असिमर फूलधारां उडै कमधज'६ ऊपरां । सिवराति पूजे जाण'' संकर भूत-गण' भैरा हरा ॥८६० सिर उडै फूट २१ वहै स्रोणित, लोहि 'हठमल' सुत लड़े । जटहंत धारा छूट२३ जांण सदासिव गंग सांपड़े।
१ ग. घोषले। २ ख. ग. उंबरू। ३ ख. ग. डहडह। ४ ख. ग. चहचह। ५ ख. ग. अमर । ६ ख. मौहकम । ग. मोहोकम। ७ ख. रांम। ८ ख. ग. बहो । ६ ख. वेहडां। १० ख. खगि। ११ ख. जुध। १२ ख. ग. डोलीयार। १३ ख. ग. षेले। १४ ख. बरे। १५ स्व. उरडीया। १६ ख. ग. मुगल। १७ ख. ग. ऊपरि। १८ ख. ग. जागीया। १६ ख. ग. कमघज । . २० ख. जाणि । २१ ख. ग. भुतगण। २२ ख. फिडे। २३ ख. छूटि । ग. छूट।
८५८, सालिमी - सालमसिंह । सरवार - सरदारसिंह । धोखळे -- ध्वंस करता है, काटता
है ।डहडह - डमरू वाद्यकी ध्वनि । चंड - रणचंडी। चह-चह - ( ? )। हकह -
प्रसन्नताकी हँसी या हँसनेकी ध्वनि । कळ कळे - कोलाहल करते हैं ( ?) ८५६. अमरौ - अमरसिंहका। मोहकम - मोहकमसिंह। बेहड़ा - एक के ऊपर एक,
इस प्रकार ढेर देनेकी क्रिया। होळियार - होलिका पर नृत्य करने वाला । डंडेहड़ा
होलिका नृत्य में खेलते समय हाथमें धारण करनेका डंडा । गुलाब - गुलाबसिंह। ८६०. उरडिया - बड़ी तेजीसे जोशमें आकर आक्रमण किया। रूपड़ - रूप। रामणा
रावण ! अध्रियांमगा - भयंकर । धमजगर - युद्ध । असिमर - तलवार। फूल
धारां - तलवारों · ऊपरी - ऊपर ८६१. स्रोणित = शोरिणत – रक्त। हठमल - हठीसिंह। गंग - गंगा ।- सांपड़े - स्नान
करते हैं।
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सूरजप्रकास
खग झळळ दमंगळ भगळ खेले मंगळ रूप अमंगळां । रिव' मंडळ करि करितंडळ रवदां' कियौ' जिम नट कुंडळां ॥ ८६१ रसलूध लखि इम घड़ा रवदां अछर घूमर प्रावियो । चाढिया कंठ 'गुलाब' चौसर वर 'गुलाब' वधावियो । धर पडै इम दिव्य देह धारै सूरवीर सकज्जयं । दुसमणां सैणां'' कहै जिण दिन धन्य म्रत्त५३ कमज्जयं ।। ८६२ संभ्रम 'बहादर"५ अडर'६ समरथ धोम धरहर धौखळां । रहवंत जम जम रूप रवदां समर धम धम साबळां । सुत 'बहादर'' कुळ विरद'८ सांलिम' बनी छर छक छोहड़ां । उडि पड़े खळ सिर रत उझाळिम लड़े 'जालिम' लोहड़ां ।। ८६३ सझै ६ 'सवाई' २ ० 'सुरत' संभ्रम घटा खळ खग झट घणी । भैरवी रत पत्र पीय भर१ भर जांम चौसठ जोगणी । 'सगतेस'२३ गोकळदास संभ्रम जोय अरिजण जांमळा १४ । बीजळां झालक खळां विहंडै २५ सिलह धारक सांमळां ॥८६४ १ ख. ग. रवि। २ ख. रक्षा। ३ ख. ग. कीयौ। ४ ख. प्रावीयौ। ५ ख. चाढ़ीया। ६ ख. ग. वर। ७ ख. बधावीयौ। ८ ख. पडे। ख. ग. धारे । १. ख. सकझयं। ग. सकइझयं । ११ ख. ग. सयणां। १२ ख. कहे। १३ ख. ग. मत। १४ ख. ग. कमधझ्झयं । १५ ग. बाहादर। १६ ख. परड। १७ ख. ग. बाहादर । १८ ख. बिरद । १६ ख. साझ। २० ग. सवाइ। २१ ख भरि भरि। २२ ख. चौसठि। २३ ख. ग. सकतेस। २४ ख. सामला। २५ ख. बिहंडे।
८६१. दमंगळ - युद्ध । मंगळ - अग्नि । तंडळ - ध्वंस । ६२. रसलूध - उलझा हुआ, फसा हुया ( ? )। धड़ा- सेना । अछर - अप्सरा । घूमर -
समूह । चौसर - पुष्पहार । वर- पति । गुलाब - गुलाबसिंह । १६३. बहादर - बहादुरसिंह । धाम - अग्नि । धरहर - ध्वनि । धोखळा - युद्धोंमें, युद्ध में ।
रहचंत - ध्वंस करता है। जम जम - जिस प्रकारसे । समर - युद्ध । धम-धम - प्रहार या प्रहारकी ध्वनि । साबळो - भलों। जालिम - जालिमसिंह । लोहड़ा -
तलवारों, शस्त्रों। ८६४. सवाई - सवाईसिंह । सुरत - सूरतसिंह । भैरवी - रणचंडी। रत - रक्त । जाम -
प्याला, कटोरा (यहाँ देवीके खप्परके लिये प्रयोग हुआ है) । सगतेस - सगतसिंह । अरिजण - शत्रु । वीजळां - तलवारों। झालक - धारण करने वाला। सिलहधारक - कवचधारी। सामळो - ( ? )।
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तिण वारः ‘भागवंत' 'केहरी तण बणे' त्रिजड़ा वाहतो । 'भीमड़ा' पांडव जेम भारथ गज घड़ा भड़ गाहतो।। सुध जोध करि खग वाह सत्रां. चाह कमळ, चढाविया ।। गजगाह' ईस अथाह, गहणा. 'सेर साह' समाविया ॥८६५. हद लड़े 'सांमत' 'तेज' झळहळ अोप क्यळ ऊजासरी । । सत्र घड़ां बरघळ करै साबळ दुझल गोकळदासरौ । खळ थटां सिर झट. बूरखागां करै. सूर सकाज़रौ । कळहणि करूर. लइंत. 'किसनौ' पूर छक प्रथिराजरौ ॥ ८६६ तन जतन न करैः लड़े विजड़ा सझै कारिज समरौ । खळ नतन करि जस उतन खाटै 'रतन' 'दारण' रामरौ । सुत 'अजन' वाहत दुजड़ सत्रहां इसी जगपति' अोपियौ' । ... चाणूर मरदन धकै चाढण 'किसन' जांणिक कोपियौ ॥ ८६७ 'सुरतेस' 'अखमल'' सुतण साबळ जरद पोसां उर जड़ें । 'अमर'रौ धीरजसींघ अणभंग उरस छिब'५ भुज आहुई ।
१ ख. बणे। २ ख. बाहतो। ३ ख. ग. भीमडा। ४ ख. ग. चढ़ावीया। ५ ख. गहगाह। ६ ख. ग. सझावीया। ७ ख. बैल । ग. वेयल। ८ ख. ग. प्रिथीराजरो । ६ ख. बाहत । १० ख. जुगपति । ११ ख. प्रोपीयो। १२ ख. ग. कोपीयो। १३ ख. अषल । १४ ग. झड़े । १५ ग. छिव ।
८६५. भगवंत - भगवंतसिंह । केहरी- केसरीसिंह । त्रिजड़ा- तलवारों। वाहतो-प्रहार
करता हुआ। भीमड़ा- भीम पांडव । गाहतो - रौंदता हुआ। गजगाह - युद्ध,
वीर । ईस - रुद्र, महादेव । सेर-साह-शेरसिंह । ५६६. सांमत - सांवतसिंह । तेज-तेजसिंह । झळहळ-(प्रभापूर्ण ?)। वयळ- सूर्य ।
बरघळ-खंड, टूक । झट - प्रहार । बूर - समूह। कळहरिण - युद्ध में। किसनौ
किसनसिंह । छक - जोश । ८६७. जतन - रक्षा । सझे- सिद्ध करता है। सामरी--स्वामीका । जस उतन-जन्म
भूमिका यश (?)। रतन - रतनसिंह। रामरी- रामसिंहकाः। मनन-अर्जुन ।
दुजड़ - तलवार । जगपति - जगतसिंह । भोपियो- शोभायमान हुआ। ८६८. सुरतेस - सूरतसिंह। प्रखमल - अक्षयसिंह। अमररौ - अमरसिंहका। उरस -
प्राकाश। छिवि-स्पर्श कर के। माहु-युद्ध करता है।
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सूरजप्रकास
सुत 'भीम' अर सुखराज संभ्रम दहूं 'केहरि' दारणां । 'वधि' खीज करी' करमाळ बाही' वीज' हाथळ वारणां ॥। ८६८
सुत भावसिंघ 'भगोत'" साबळ" धड़ जड़े चित्रांम लिखिया जिम नर चालत हंस 'भूपाळ' देवीसींघ संभ्रम वीच " रवदाळ हण रत्राळ रौद्रव ३ भरै ताळ
वंधि 'जसौ' 'संभव' सुतण वाहत चोळ खगि कळि चाळिका । किलमांण हय गय पड़े कटि कटि कहै जय जय
काळिका ।
.१७
१४
जिणवार " " रजण " सुतन' 'जगपति' पिसण सोहियौ दारण तरण समसर झळळ वीजळ
८
भड़
उडि धुज
.१२
ताळव
૨.
ग्रसि धरा ।
हेमरा" ।
जांमणौ । भयांमणौ ॥ ८६६
वीजळां हाथळ गजां विहंडत करत समहर
सादूळसीह सरूप
सूरत
राजसी
ज
रण घण पाड़तौ ।
18
-
३ ख. ग. किरमाल ।
१ ख बधि । २ ख. ग. करि । ४ ख. बाही । ५ ख. बीज । ६. ख. भंगोत । ग. भगौत । ७ . साबलि । ८ख. भड़ा । ६ ख. लिषीया । १० ख. ग. हैमरा । ११ ख. बीज । १२ ख. तालब | १३ ख. रोद्रव । १४ ख. जिणबार । १५ ख. श्ररिजण । १६ ख. सुतण १७ ख. प्रिसण । १८ ख. सोहीयौ । १६ व. प्रतिमें यह शब्द नहीं है । २० ख. बीजलां ।
-
८६८. भीम - भीमसिंह । केहरी - केसरीसिंह । करमाळ = करवाल - तलवार । हाथंळ - हाथका प्रहार वारणां - हाथियों ।
झाड़तौ ।। ८७०
८६६. भगोत- भगवतीसिंह । जड़े प्रहार करता है । श्रसि - तलवार। हंस- प्राण । हेमरा - घोड़ों । भूपाळ - भूपालसिंह | वीज - बिजली । ताळव - ·(?) जमणी - ( ? ) । रववाळ- मुसलमान । रत्राळ- रक्त । रौद्रव - भयंकर । भयामणौ - भयंकर ।
कांमरौ ।
'रांम 'रौ ।
८७०. जसो - जसवंतसिंह | संभव - शंभुसिंह । सुतण पुत्र । किलमांण - मुसलमान | श्ररजण - अर्जुनसिंह । जगपति जगतसिंह । पिसण- शत्रु पाड़तौ संहार करता हुआ । सोहियो शोभित हुआ । समसर - समान । झळळ - प्रग्नि । वीजळ - तलवार । झाड़तो गिराता हुना, प्रहार करता हुआ ।
८७१. विहंडत - संहार करता है। समहर - समर, युद्ध । रामरी - रामसिंहका ।
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सूरजप्रकास
[ २४३ विमरीर 'भैरव' 'सुतण' 'वैरौ" सूर बही खग साहतौ । पिसणरा' खासा' झंडां पहुतौ विखम खग झट वाहतौ ॥८७१ वरमाळ' गळ अंत्राळ पग विच' झाळ वन' खग प्रोझट । अति धजर खग सिर गजर उडत'' अरण धरहर ऊछटै । घूमत्त वाहत'' लोह विद घण'२ पड़े रिण' म्रत पावियो"। . रचि देह सुरवरि अछर चढि रथ अमरपुर मझिआवियो'८ ॥ ९७२ तिण वार 'हिंदव'१६ 'बहादरतण'' सेल धड़खळ सालवै । जुध सूर चाकै चढे जितरै हर वर होय हालवै । हद सूर 'अखमल' 'सुतन' 'हीदुव' 'सँभु' वधां सीस भ्रमं । खग गजर१२ उजबक हण२३ खाटत अरक मुन्यंद अचंभ्रमं ॥८७३
१ ख. बैरो। २ ख. प्रिसुण। ग. पिसुण। ३ ख. षा। ४ ख. पड़तौ । ग. पहुतौ । ५ ख. बाहतो। ६ ख. बरमाल । ७ ख. बिचि । ८ ख. व्रवण । ९ ख. प्रोझट। १० ख. ग. ऊडत। ११ ख. बाहत । १२ ख. वद । १३ ख. पडे। १४ ख. ग. रण। १५ ख. ग. मृत । १६ ख. ग. पावीयौ। १७ ख. चढ़ीरथ । १८ ख. प्रावीयो। १६ ख, हीदव । २० ख.. ग. बाहादर। २१ ख. ग. तण। २२ ख. ग. जरक । २३ ख. कहणे।
विमरोर - भयंकर, जबरदस्त । भैरव - भैरवसिंह । वैरी-वैरीशालसिंह । साहतीप्रहार करता हुआ। पिसण - शत्रु। पहुंती - पहुंच गया। वाहतो - प्रहार
करता हुआ। ८७२. अंत्राल - प्रांतें। झाळ वन - रक्त वर्ण। प्रोझट-प्रहार करता है। धजर - ... भाला। गजर - प्रहार । अरण - रक्त, खून । ऊछट - उछलता है। पावियो -
प्राप्त किया। प्राधियो- प्राया। ८७३. हिंदव - हिंदूसिंह । बहावर - बहादुरसिंह । सालवे - प्रहार करता है। जुध
:..." हालवे- युद्ध में शूरवीर जब सेनाका सामना करते हैं ठीक उसी समय वीरगति प्राप्त हो कर और अप्सराका वरण कर के स्वर्गकी भोर चल देते हैं। मखमल - अक्षयसिंह । हीवुव - हिंदूसिंह । गजर -प्रहार । उजबक - तातारियोंकी एक जाति या इस जातिका व्यक्ति । खाटत - प्राप्त करता है । परक - अकं, सूर्य (यहां सूर्य-मंडल अर्थ है) मुन्यंद- मुनींद्र, महर्षि नारद ऋषि । प्रचंभ्रमं-पाश्चर्ययुक्त ।
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२४४ ]
सूरजप्रकास
'दांनरौ' 'अभमल' झाट दुजड़ां" कान्ह' 'सुत' देवौ' करौ । 'रांम'रौ 'बुध' वधंत' रवदां सूर धज फळ सेलरौ । 'राम'रौ हिम्मतसींघ रणवट करै खग झट केवियां । सेवियां जेम असीस साझत दुरत भर पत्र देवियां ।। ८७४ मगरूर ‘मांन'८ 'अनोप' संभ्रम 'अखौ' 'मांन' 'सुजावयं' । खळ थाट क्रोध'• उपाट'' खंडत घाट घण खग घावयं । इम लड़े भड़ थट दुझड़२ अोझट' हाथियां घड़'४ हेड़तौ । धर'* वंस' धूहड़ गरब धारत मंडोवर गढ मेड़तौं ॥८७५ दईवांण' 'जोध' कळोध दारण हिचै आरण हड़व.८ । "किसन'रै अरि घड़ वसंत कीधौ रूक अवझड 'राजडै । खग झाट 'किसन' सुजाव खेलत पुणत रवि सिवा पारखौ । उण वार 3 'सामंत' एक अणभंग सोल४ सांमंत सारिखौ ॥८७६
१ ख. दुझडो। २ ख. ग. बेत। . ३ ख. सेलर। ४ ख. हीमतसींघ । ग. हीमतसिंघ। ५ ख. केवीयां। ६ ख. ग. सेवीयां। ७ ख. ग. देवीयां। ८ ख. मान । ९ ग. अनौप। १० ग. क्रोध। ११ ख. उपाड। १२ ख. ग. दुजड। १३ ख. प्रौझट। १४ ख. थाहीयां । ग. हाथीयां। १५ ख. ग. धड़। १६ ख. बंस । १७ ख. ग. दईवाण । १८ ख. ग. हडहडे। १६ ख. ग. अरि। २० ख. बसंत । २१ ख. राजरै। २२ ख. सि । २३ ख. बार। २४ ख. सौल।।
८७४. दांन – दानसिंह । प्रभमाल - अभयसिंह । दुजड़ा - तलवारों । कान्ह - कानसिंह ।
देवी- देवीसिंह। रामरौ- रामसिंहका। बुध-बुधसिंह । बधत - संहार करता - है। रणवट - युद्ध । केवियां - शत्रुओं। असीस - आशीर्वाद। साझत - प्राप्त
करता है। दुरत - जबरदस्त । ८७५. मगरूर - वीर। मांन - मानसिंह । अनोप - अनोपसिंह । अखौ - अक्षयसिंह ।
सुजावयं - पुत्र । खंडत - संहार करता है, खंडित करता है। दुझड़ - तलवार ।
हेडती-हांकता हमा। धूहड़- राव धूहड़का वंशज राठौड़ । ८७६. जोष - राव जोधा। कळोव - वंशज । दारण - जबरदस्त । हिचं - युद्ध करता है।
हड़बड़े- हडबडाते. कंपित होते हैं। किसन - किसनसिंह। रूक- तलवार । अचमड़-प्रहार । राजड़े - राजसिंह। किसन - किसनसिंह । सुमाव - पुत्र । पुणत - कहते हैं । पारखी - परीक्षा करने वाला । सामंत - सांस्तसिंह । अणभंग - वीर । सामंत - योद्धा। सारखो - समान।
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सूरजप्रकास
[२४५ समहर 'सवाइय'' 'राजसी' सुत धजर खग चवारका । जुड़ि हणै रवदां रायजादौ मीरजादां मारकां । पत्र प्रोक करि करि सगत' पीवत घोख रत घट घायलां । तायलां मुगळां झाट त्रिजड़ां 'ऊदहर' अजरायलां ॥ ८७७ सुत 'कान्ह' मांनड़ जोस समहर 'नाथ' भड़ रुघनाथरौ । 'हरिकिसन' अभमल सुतण झळहळ सझै जुध समराथरौ । मगरूर 'अभमल' 'सुतन'५ महपति उरड़ जोम' अछेहड़ां । जेहड़ा पंडव पंच जूटत" 'ऊदहर' भड़ ऐहड़ां ॥८७८ सुत 'भाउ' झळहळ घाव साबळ रह चंदळ रवदाळरै । विच लड़े 'कूप कळोध 'क्रन्न"" बधि चाळबंध घमचाळरै । . संभरीक 'पातल' 'अभा' संभ्रम 'जोर' सुत बुध जांमळां । . 'सकतौ' विद्रावनदास' संभ्रम बधि' लड़े झट वीजळां'४ ॥ ८७६ हर सिखर कूरम घणा खळ हणि धजर साबळ' धौहड़ा । 'किसनेस' सुतण गज ढाल कळहण 'लाल' विहंडत लोहड़ां । १ ख. सवाईय । २ ख. सकत। ३ ख. रघुनाथरौ। ४ ग. सझे। ५ ख. सुतण। ६ ख. जेम। ७ ग. झूटत । ८ ख. ग. एहडा। ९ ख. बिचि । ग विचि । १० ग. कूप । ११ ख. ग.न। १२ ख. बिदावनदास । ग. विद्रावनवास । १३ ख. बधि । १४ ख. बीजला। १५ ख. साबल। १६ ख. ग. धोहडां ।
८७७. सवाइय - सवाईसिंह । राजसी- राजसिंह । धजर - भाला । चवधार - भाला ।
मारकां - जबरदस्त । प्रोक - अंजलि । सगत - रणचंडी, शक्ति। घोख - प्रवाह, धारा, धाराकी ध्वनि । रत - रक्त । तायला - प्राततायी, शत्रु। त्रिजड़ा
तलवारों। ऊदहर - उदावत शाखाका राठौड़। प्रजरायला- जबरदस्त । ८७८. कान्ह - कानसिंह । मांनड़ - मानसिंह । समहर - युद्ध । नाथ - नाथूसिंह ।
सुतण-पुत्र । प्रभमल - अभयसिंह। उरड़ - साहस । जोम - जोश । अछेहड़ा -
अपार। पंडय - पाण्डव । ऐहड़ा- ऐसे। ८७६. भाउ - भाऊसिंह । झळहळ घाव - घावोंसे परिपूर्ण। कंप- राव कूपा राठौड़ ।
कळोष - वंशज । ऋन्न - करणसिंह । घमचाळरै- युद्धके । संभरीक - चौहान ।
पातल - प्रतापसिंह । प्रभा- अभयसिंह । जोर – जोरावरसिंह । सकती-शक्तिसिंह । ८०. हर - वंशज । सिखर - शेखा कछवाह जिसके वंशज शेखावत कहे जाते हैं । कूरम -
कछवाह । धौहड़ा-प्रहारों। किसनेस - किसनसिंह । कळहण - युद्ध । लाललालसिंह । विहंडत - संहार करता है। किसनेस - किशनसिंह।
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२४६ ]
सूरजप्रकास
'विसनेस' 'अना' सुजाव वधि' वधि विकट खग झट बाहतौ । 'विलंद'रा' खासा गजां विढतौ गयौ खळ दळ गाहतौ ॥ ८८.० सर धजर सावळ गजर असिमर असुर सिर पर प्राछटै । धज खंजर पंजर जड़े जमधर पड़े नह खग पाछटै । उरसहू राळत हार अपछर फूल खग झट फणहण । पळ समर उड्डत तेण ऊपर भमर' रातल भणहणे ॥८८१ इधिकाय' इसड़ौ गजर उडियौ घाय खग जुड़ि' घूमरा । ... पहराय न'' सकै माळ कंठ परि पाय न सके२ अपछरा । इण चूक ऊपर हसै मुनि-इंद्र सझै जोगिंद चौसरां । रोसरा घाव करंत किरमर"3 मिळे भौहर' मौसरां ॥ ८८२ इम लड़े चुख'चुख होय पड़ियौ'' भाण' कौतिक' भाळियौं । तजि देह नर सुर देह को तदि बींद रंभ' वरमाळियौ ।
१ ख. बघि बधि। २ ख. बिकट । ३ ख. बिलंद । ४ ख. बिढ़तौ। ५ ग. ऊडत । ६ ख. भमर। ७ क. रायतल। ८ ख. ग. अधिकाय । १ ख. ग. उडीयौ। १० ख. जडि। ११ ख. ग. न। १२ ख. ग. सके। १३ ख. किरमल । १४ ख. ग. भौहट । १५ ख. लडे । १६ ग. जपचुष । १७ ग. पडीयौं। १८ ख. भांडि । १९ ग. कौतिग। २० ख. ग. भालोयो। २१ ख रीभ। २२ ख. बरमालीयो । ग. वर. मालीयो।
८८०. अना- अनाडसिंह। विढतो- युद्ध करता हुअा। गाहतो - संहार करता हुआ । ५१. सर- तीर, बांण । धजर - भाला विशेष । गजर - प्रहार, समूह । असिमर -
तलवार । पाछट - प्रहार करता है । धज- तलवार । पंजर - शरीर । जमघर - कटार। उरसहूं - आकाशसे । राळत - डालती है। फणहणे-(?)। रातल -
मांसाहारी पक्षी विशेष। ५८२. इधिकाय - अधिक हो कर। इसड़ो- ऐसा । गजर-प्रहार । घूमरा - समूह, दल ।
चूक - संभ्रम, गफलत । मुनि-इंद्र - नारदमुनि । सझे - तैयार करता है । जोगिव - योगीन्द्र, महादेव । चौसरा- मुंड-माला । किरमर - तलवार । भौहर - भौहों।
मौसरी - श्मश्रु या श्मश्रुके बाल । ८५३. भाण - सूर्य। कौतिक - कौतूहल । भाळियो - देखा । बीव- दुल्हा । वर.
माळियो - वरमाला पहनाई, पति स्वीकार किया ।
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सूरजप्रकास
[२४७ चढि रथां चाले' हुतां' चमरां अमर-पुर निज अंदरां । । 'विसनेस' कूरम एम बसियो मंजुघोखा -मंदरां ॥८८३ कळहै नरू हर 'पदंम' कूरम औरिया अजरायकां । तायकां मुगळां करे तंडळ घाय खग घण घायकां । अणथाह जोम दुबाह उजबक मरद 'पदमै' मारियां । गजगाह करिय' सराह गजपति'' तण बखत तरवारियां" ।। ८८४ केवांण पांण विभाड़' कलमां' सार धड़ भड़ साहियां५ । पड़ि खेत रावत लोहपूरां परिहार'६ पराहियां । वर अछर अमरापुरां वसियौ परम सुख जदि'८ पावियो । धर अमर वातां रहै धूजिम" आप वंस अंजसावियौ ॥८८५ 'महिरांण' 'भगवत सुतण असिमर रवद थट पाधोरियो । धूमरै जाडै बीच घोड़ौ" एक२८ हाडे २६ औरियौः ॥९८६
१ ख. चोले। २ ख. हुंतां। ३ ख. बिसनेस। ४ ख. ग. येम। ५ ख. जमघोषां ग. मजघोषां। ६ ख. पोरि । ग. प्रोरि । ७ ब. बग। ८ ख. ग. मारीया। ६ ख. ग. ग्राह। १० ख. करे। ११ ख. यहमति । ग. प्रहपति। १२ ख. ग. तरवारियां । १३ ख. बिभाड़। १४ ख. ग. किलमां। १५ ख. ग. साहीया । १६ ख. ग. परीहार १७ ख. ग. पराहीया। १८ क. दीघु । १६ ख. पाथीयो । २० ख. रहे । २१ व. ग. धूजिम । २२ ख. बंस। २३ व. ग. अंजसावीयो। २४ ख. ग. भगवंत । २५ ख. ग. पाधोरीयो। २६ ख. ग. धोचि। २७ ख. घोडो। २८ ख. पेक। २९ ख. हडे। ३० ख. प्रोरीयो।
८८३. अमर-पुर - स्वर्ग। अंदरां- इन्द्रके। विसनेस - विष्णुसिंह । कूरम - कछवाहा
राजपूत । मंजुघोखा-मंदरां - मंजुघोषा नामक अप्सराके भवनमें। ८८४. नर - नरूका । हर- वंशज । पदम - पद्मसिंह। पौरिया - झोंक दिये । अज
रायकां - वीरों । तायका- आततायी, दुष्टों, असुरों। घायका - घाव या प्रहार करने वालों अथवा घायलों। पदम - पद्मसिंह । गजगाह - युद्ध। गजपति - राजा (?)। तरवारियां- तलवारधारी योद्धानों। केवाण - तलवार । पाण-प्राण, बल।
विभाड़- संहार करने वाला। सार - तलवार । साहियां - धारण किये हुए। ८८५. अंजसावियो- गर्वयुक्त किया। महिरांण - समुद्रसिंह । भगवत - भगवतसिंह । ५५६. असिमर - तलवार । रवद - मुसलमान । थट - सेना। पाधोरियो- सीधा किया,
सरल किया। घूमर जाडे-बीच - धनी सेनाके बीच । हाडे- चौहान वंशको हाड़ा शाखाका वीर।
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२४६ ]
सूरजप्रकास
त्रिंहुवै धड़ 'अभमल' तणी, अर घड़ 'विलँद'' असाधि । जूटै जिम' वरणी' जिय' वीजळ* झाटा वाधि ॥ ८८७
___ छंद रोमकंदघड़ भूप 'प्रभा' र विलँद तणी घड़ रीठ झड़ ज्झड़ खाग रमै । दळ कंध कड़क्कड़ सीस दड़द्दड़ भीच लड़त्थड़ केक भ्रमै । धुन केक बड़ब्बड़ नत्त' धड़धड़ चंडि गड़ग्गड़ रत्त चड़े । 'अभमाल' विलँद तणा मुहागळ लौह इसी विध'' जोध' लड़े।८८८ "होय रिख हड़ाहड़ पावहथज्झड़े धूम त्रवध्धड़ मेछ घड़ा । तस रूप तड़तड़ नीझक नझड़ तूटत अंतड़ रोद तड़ां । फिफराळ फ़ड़प्फड़ कूद कळझड़ प्राय भड़भड़ मल्ल अड़े । 'अभमाल' 'विलँद' तणा मुह आगळ लोह इसी बिध१४ जोध लड़े।। ८८६
१. सं. दोहाँ। ग. दोहों। २ ख. बिलंद। ३ ख. अरणी। ४ग: जीये। ख. बीजळ। ६ ख. बांधि। ७ ख. विलंद । ८ ख. ग. नृत । ६ ख. बिलंद । १० ख..
*चिन्हांकित पत्तियां 'ख' प्रतिमें नहीं हैं। मुंह । ११ ख. ग. विधि। १२ ख. जोड। १३ ग. नझङ। १४ ग. विधि ।
८८७: त्रिहुंदै-तीनों। प्रभमल - महाराजा अभय सिंह । अर - अरि-शत्र अथवा और ।
असाधि - अंसाध्य, अपार। वीजळ - तलवार । झाटां-प्रहारों। वाधि-विशेष । ८८६. घड़ - सेना। प्रभा- अभयसिंह। झडझड़- कटाकट, मारकाट । कड़क्कड़
कटाकेटकी ध्वनि । बड़बड़- गेंदके समान ठुकराये जानेकी क्रिया या ध्वनि । भीच - योद्धा। लड़त्थड़ - लड़खड़ाते हैं। घुप्र - शिर । बड़बड़ -- बकझक, प्रलाप । नत - नृत्य, नाच । धड़धड़- बिना शिरका शरीर, अथवा बिना शिरपरका शरीरका मध्य भाग । चंडी- रणचंडी। गड़गड़- गटगट। रत्र - रक्त ।
चड़े- पान करती है। ५६. रिख- नारद ऋषि । हाहड़-हंसने की ध्वनि । पावहथज्झड़-पैर और हाथ
कट कर गिरते हैं । धूम- कोलाहल । अवघड़-तीनों ओरकी सेनासे । तसहाथ । तड़तडे - केटने की क्रिया या ध्वनि अथवा भूमि पर गिरनेकी ध्वनिः । नीझक-(?)। · नझड़-( ? )। अंतड़- प्रांतें। रोद - यवन । तड़ाक्ली। फिफराळ - फेंफड़ा। फड़पफड़-ध्वनि विशेष। कळझड़- कलेजा। भडभड़-प्रति भट अथवा ध्वनि विशेष मल्ल - योद्धा ।
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सूरजप्रकास
[ २४६ हाथियां' घड हूचक भूल अकज्झक रंभ तकत्तक हूर रहै । करि केयक कंतक' उझक अंत्रक वींद' विमांणक धारि बहै । पाछटै खग सूरवि छाहड़ ऊपर पाहड़ ऊपर वीज पड़े । 'अभमाल' 'विलँद' तणा मुह पागळि लोह इसी विध' जोध लड़े ।।८६० बोहो' सीस उडक्क हिचक्क उवासक' अंधक केड हु चक्क उडै । झुकि'४ जीह सकल्लर नारंग झल्लर रल्ल र बासग' जेम लडै । हुचकंत पटत' फटां भ्रगटां' हिक घाव करे' किरि लोह धडै । 'अभमाल''विलँद' तणा मुख'प्रागळि लोह इसी विध'जोध ल.।।८६१ उपराळ हौदाळ लंकाळ चढे अति काळ कराळ झळां भभक । वहि खाळ रत्राळ निझाळ४ परां२५ वजि छाक बंबाळ लंकाळ छकै। मतिवाळ२५ कराळ कराळ महाबळ जोर भुजाळ धराळ जड़ें । 'अभमाल' विलँद तणा महागळि लोह इसी विध जोध लड़े ॥८९२ १ ख हाथीयां। २ क. कंत्रक । ३ ख. अंतक। ४ ख. बींद। ५ ख. विमांणक । ६ ख. बहैं। ७ ख. बेछाहड। ८ ख, बीज। ६ ख. बिलंद। १० ख. बिधि । ग. विधि। ११ ख. ग, बौहौ। १२ ख. ग. उवासक्क। १३ ख. ग. प्रधक्क । १४ ख. झकि । १५ ख. ग. लल्लर । १६ ख. वासग । १७ ख. पटत। १८ ख. ग. भृगुटां। ख. ग. करै। २० ख. बिलंद। २१ ख. ग. मुंह। २२ ख. ग. विधि । २३ ख. ग. वही। २४ ख निझाल। २५ क. पळां। २६ ख. मतिबाल । २७ ग. पागल ।
८६०. हूचक - प्रहार, टक्कर । अकज्झक - अस्त-व्यस्त होती है, अलूझती है। रंभ -
अप्सरा। तकत्तक-ताकती है। कंतक-कांत, पति । अंत्रक-प्रांतें। विमांणक
विमान । वीज - वज्र। ८६१. बोहो- बहुत। उडक्क - उड़ते हैं, कट कर गिरते हैं। हिचक्क . उवासक -
हिचकियां लेते हैं और उबासियां लेते हैं। अंधक - अंधकासुर दैत्य। केड-वंश । हुचक्क - प्रहार, युद्ध । सकल्लर - ( ? )। नारंग - रक्त। झल्लर - ( ? )।
वासग-वासुकि नाग ।। ८६२. उपराळ - ऊपर। हौदाळ - हौदा, अम्मारी। लंकाळ - वीर। झळा - पागकी
लपटें। भभक - उमड़ती है। खाळ - नाला। रत्राळ - खून, रक्त । निझाळ - गिद्ध पक्षी। परां - पंख, पांखें। छाक - प्याला। बंबाळ - जबरदस्त । लंक ळ - सिंह पर सवारी करने वाली, रणचंडी। छक - तृप्त होती है। मतिवाळ - मस्ती। भुजाळ - वीर । धराळ - भूमि।
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२५० ]
सूरजप्रकास रवताळ रौदाळ' रोसाळ महा रिण' क्राळ खंडाळ पाताळ करै । झिलमाळ कंधाळ कराळ पड़े झड़ि धू मझि माळ जटाळ धरै । जटियाळ छुटाळ परै पत्र जोगणि पै जिम खाळ रत्राळ पड़े । 'अभमाल' विलँद तणा मुह प्रागळि लोह इसी विध"जोध लड़े ॥ १६३ *करि काळ भड़ां तिह काळ कितां करिमाळ झड़ां जरदाळ कटै । धमचाळ अंत्राळ पगां विचि धौ सळिलूथळ बथां लहु वैन लटै । प्रतिमाळ कराळ जडंत घडां पर भाळ चखां विकाराळ झडे । 'अभमाल' विलँदतणा' मुंह प्रागळि लोह इसी विध जोध लड़े ।। ८६४ करिमाळ झूलाळ बंगाळ घणा कटि केक'' खराळ झंफाळ कटे'। विकराळ मंसाळ हाडाळ वळोवळ' पंखणि गाळ लियै '3 झपटै । रणताळ संपेखत वाग१४ कसै१५ रथ खैग कनाल जठन खडै । अभमाल विलँदतणा' मुंह पागळि लोह इसी विध' जोध लड़े।। ८९५ १ ख. ग. रोसाल । २ ख. ग. महारण। ३ ख. प्रांताल। ४ ख. जडि। ५ ख. ग. जटीयाल। ६ ख. ग. छूटाल। ७ ख. बिधि । ग. विधि। ८ ख. बिलंदतणा।
*रेखांकित पंक्तियां 'ख' प्रतिमें निम्न प्रकार हैं'घमचाल अंत्राल लोहाल लगां घट पांण कराल षगां पछट।
वरमाल कंठाल अंत्राल पगां विचि लूथबथा लहू प्रौन लौ । १ ख. करमाल । १० ख. कंप। ११ ख. कटे। १२ ख. बलाबल । १२ ख. लीये। १४ ख. षाग। १५ ख ग. कसे। १६ ख. बिलंदतणा। १७ ख. बिधि । ग. विधि ।
८६३. रवताळ - वीर। रौदाळ - यवन । रोसाळ - रोसपूर्ण । काळ - भयंकर ।
खंडाळ – खंड, टूक । पाताळ - प्रांत्र समूह (?)। झिलमाळ - युद्ध के समय शिर पर धारण करनेका टोप। कंधाळ - कंधा। झड़ि-गिर कर। धू- मस्तक । मझि - मध्य । माळ – मुंडमाला। जटाळ – महादेव । जटियाळ - जटा, शिरके
बाल । छुटाळ - छुट हुए. बिखरे हुए। पै - पर्वत । रत्राळ - खून । ८६४. तिह - उस । करिमाळ - तलवार । झड़ा- प्रहारों। जरदाळ - कवच । धमचाळ
युद्ध । अंत्राळ – प्रांतें । सळिलूथ - (?) । बथां - बाहुपाश । लहु वैन - रक्तसे (?) । प्रतिमाळ – कटार। जड़त - प्रहार करते हैं । झाळ - क्रोधाग्नि। अभमाल -
महाराजा अभयसिंह। ८६५. मुलाळ – समूह, दल। बंगाळ - यवन । खराळ - शत्रु । झंफाळ - ( ? )।
मंसाळ - मांसाहारी, मांसपिंड। हाडाळ - हड्डियों । वळोवळ - चारों ओर । पंखणिमांसाहारी पक्षी, चिल्ल, गिद्धादि । गाळ - कौर । रणताळ - युद्धस्थल । संपेखत - देवता है। खैग - घोड़ा। कनाळ - किरण+पाळ (रा.प्र.) सूर्य
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सूरजप्रकास
[ २५१
धमछट्ट' विकट्ट' गरट्ट प. धड़' घट्ट उछट्टत भट्ट घणा । होय पद्द उपट्ट चौसट्ट पियै हद तट्ट उपट्ट नरद्दतणा । खळकट्ट' उछट्ट कंधट्ट कहै खग खंजर दहत हंस खड़े । 'अभमाल' विलँदतणा" मुंह प्रागळि लोह इसी विध जोध लई ।। ८६६
छप्पै" कवित्त" एक वार अोरियौ'२ झाट वीजूजळ३ झाडै' ।
रोद'५ थाट रोसंग" प्रिसण' पनरासै'८ पाडै । विखम दूसरी वार ऊक झल खाग अताळे ।
एक सहस' एक सौ रवद विहंडै २५ धर3 राळे२४ । 'प्रभमाल' वार तीजी अडर जवन देखि ६ सिर जोरियौ । सूरजपसाव८ धिखते ६ समर औसर तीजै औरियौ ।। ८६७
डसण जजर डोलचां भळळ उजळळ भालां । साहि बाहि स्री - हथां लाल समसेर गुलालां ।
१ ख धमछट। २ ख. बिकट्ट। ३ ख. धर। ४ ख. सट्ट। ५ ख. ग. पीयें । ६ ख. ग. लषट्ट। ७ ख. बिलंदतणा। ८ ग. प्रागळि। ६ व. विधि। ग. धि । १० ख. कवित्त। ११ ख. छप । ग. छंव। १२ ख. पोरीयो। १३ स्व. बीजूमल । १४ ख. ग. झाडे । १५ ख. ग. रौद। १६ ख. ग. रौसंग। १७ ख. ग. प्रि। १८ ख. पनरहस । ग. पनरहस। १६ ख. ग. पाडे। २० ख. विषेम । २१ ख. सहस । २२ ख. बिहंडे । २३ ख. पव। २४ ग. राले। २५ ख. परड। २६ ख. देष । २७ ख. जोरीयौ। २८ ख. सूरिजपसाव । २६ ख. ग. विषत। ३० ख. पोरीयो । ग. औरीयौ।
८६६. धमछट्ट- युद्ध । विकट्ट - भयंकर। गरट्ट - समूह। घट्ट - शरीर। उछट्टत
उछलते हैं। भट्ट - योद्धा । पद्द - पैर । उपट्ट - उमड़ कर। चौसट्ट - रणचंडी।
कंधट्ट- कंधा । हंस-प्राण । ८६७. रोसंग - रोषपूर्ण। प्रिसण - शत्रु। विहंडे - संहार करके । घर - पृथ्वी।
राळे - डाल दिये। अभमाल - महाराजा अभयसिंह। सूरजपसाव - महाराजा अभयसिंहके घोड़ेका नाम। घिखते - क्रोधपूर्ण होते हुए। प्रोसर - अवसर,
समय। ८६८. उसण = दशन - दांत । जजर - यमराज । डोलचां- (?) भळळ - देदीप्यमान ।
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२५२
सूरजप्रकास
मद
पतंग स्रोणि' पिचरकां बोह खेलै पिये खिल्हार पड़े उजबक्क
तिण समै ।
पोटलां रीठ गुरजां पड़े, सिव नारद हसि सिर विलंदहूंत ' 'प्रभमल' परी हूर परणीय
सुपहरण वसंत होळी रमै ॥ ८६८
तठै
वतावै ।
तबल म्रग बजि तठै वीण
वजावै ।
रातल
पर ताळी ।
संगीत कपाळी |
नटवर वीर" नचंत तठै गावै जोगण " गीत, पढ सिर पड़ रीझ जेही सत्रां, बीजळ ताळ वजावणी' मारुवां अनै मुगळां मंडे, इसौ खेल अध्रियांमणौ ४
1
१७
पाखर फूटि" पमंग बोळ'
निकले ७ बरछी । काढै जांण" कमळ जाळ झीवर मभि मछी ।
१८
चवधार धमोड़ां ।
भड़ घोड़ां ।
१६
वहै' लोह बेझड़ां भिदि खिपाट" भेवड़ा,
२०
१ ख. ग. श्रोण । २ ख. ग. वेल्हे । ३ ख. ग. पोयं । ६ ख. हूण । ७ ख. ग. नृत । ८ख. ग. मृदंग । ११ ख. ग. जोगणि । १२ ख. सोगंत । १५ ख. फूट । १९ ख. बहै ।
१६ क. छोळ । ग. बोल । २० ख. बेफडां । २१ ख
भयंकर, भयावह ।
६०० पभंग - घोड़ा । बोळ - लाल
मछुआ। बेझड़ - ( ? ) भाला। घमोड़ां प्रहारों ।
७
नत भाव
रिख
राज
धजर घाट फूटै
धार दुबारां । अपारां ।
१२
२२
बरछी - भाला धजर - भाला । खि पाट - ( ?
१३ ख. बजांमणौं । १७ ख. ग. नीकले । षपाट |
४ ख. सि । ५ ख. बिलंदहंत । ६ ख. बींण ।
१० ख. बीर । १४ ख. अध्रीयमणौ । १५ ख ग जांणे ।
२२ ख. छूटै ।
८. पतंग - फव्वारा । स्रोणि- शोणित, रक्त । खिल्हार - खेलाड़ी । उजबक्क - यवन । पोटलां - ( ? ) । रीठ - प्रहार । गुरजां - गुर्ज । प्रभमल-सुपह- महाराजा भयसिंह |
1
८६६. वीण - वीरणा नामक वाद्य । रिखराज - नारद ऋषि । वीर - युद्धप्रिय भैरव देव जिनकी संख्या राजस्थानी में ५२ मानी जाती है । रातल - लाल रंगकी चंचु वाला मांसाहारी पक्षी विशेष | कपाळी - रुद्र । बीजळ - तलवार । श्रधियांमणौ -
)
93
| = ६६
विशेष । कमळ - मुख | झीवर - चवधार - चारों ओर पैनी धारका
भेवड़ा = बेवड़ा - दो तहका ।
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सूरजप्रकास
[ २५३ अति रुधिर धड़क्के उछटै टूक फड़क्के' हेमरां । तरवारी' कड़क्कै बीज तक, हाड बड़क्कै गेमरां' ।। ६००
कमध करै केवांण, झाट दोय विहर' झिलमा । विहर टोप सिर विहर कंगळ धड़ विहर कलमां । विहर सपख्खर जीण, अंग होय विहर' उत्तंगां ।
विहर१३ कड़ा वजरंग', विहर दुतंग'५ चौतंगां । अंग सूर विहर'६ अरधोअरध पमंग विहर पखराइयां । अगहटा'७ जांणि'८ कीधा उभै, भाई बंटा भाइयां ।। ६०१
सरां खगां साबळां, घाव पूरा घट घाया । जुधि लोट जांणजे, लाल लोटण लुटवाया' । यम तड़फड़तां' अड़े, वाहिने जम दाद वहा४ ।
डाव घाव डोरियां, जांणि जगजेठ अखाडै । पडि बत्थ गळत्थिय हथ पड़ी८, चगदायळ मुख चीबरां । बीबरां तबल-बंधा बहसि', खांगी बंधां२ खीमरां ॥६०२ १ क. फवड़क। २ ग. हैमरां। ३ ख. ग. तरवारि। ४ ख. ग. गैमरां। ५ ख. बिहर। ६ ख. ग. झिलंम्मां। ७ ख. बिहर। ८ ख. ग. टोप। ६ ख. बिहर । १० ख. म. किलंम्मा। ११ ख. बिहर । १२ ख. उतंगा। १३ ख. बिहर। १४ ख. बजअंग। १५ ख. ग. दुतंगा। १६ ख. बिर। १७ स्व. अंगहठा। १८ ख. जां। १६ ख. जाणिजे । २० ख. लटवाय। २१ ख. तडफंता। २२ ख. बाहि। २३ ख. ग. दाढ़। २४ ख. बहार्ड। २५ ख. ग. डोरीयां। २६ ख. ग. गलत्थीय । २७ ख. ग. हत्थ। २८ ख. ग. पडि । २६ ख. वीवरी। ३० ख. बंधो। ३१ ग. वहसि । ३२ ख. बंधी। ३३ ख. ग. षीवरां।
९००. हेमरां - घोड़ों। तक - समान । गेमरां - हाथियों। ६०१. केवाण = कृपाण - तलवार । विहर - विदीर्ण । झिलमा- युद्धके समय धारण
करनेका टोप । कंगळ - कवच । कलमां- मुसलमानों। सपनर - पाखर सहित ।
अगहटा - चारणोंकी जागीरका गांव । ६०२. लोटण - कबूतर विशेष । डाव - दाव, वार । जग-जेठ- पहलवान । गळत्थिय -
गलेकी पकड़ । चगदायळ - घावोंसे परिपूर्ण, घायल । चोबरा- मुसलमान । बीबरां- (?) । तबल-बंधां- तबल नामक कुल्हाड़ीके प्राकारका शस्त्र धारण करने वाला । बहसि - (?)। बंधां - राठौड़ों । खीमरां-खी- अप्सरा। वर-पतियों - योद्धाओं।
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२५४ ]
सूरजप्रकास
बरिमाळा गळ बिचै', प्रोयण उझळता' अंत्राळा । घण घायां घूमतां, करै धमचक कळिचाळा । सेलां हियां दुसार लोह वाहै लालरता ।
वीखरता बाबरां, भ्रगुट फाटां' हौफरता । रजपूत मुगळ भभरूप वरणि, दुजड़ां झाटक दौढ़िया । अवधूत जांणि करि करि अमल, दत्त अखाड़े पोढ़िया' ।। ६०३
केयक रुधिर-पिंड करै, तड़छ खावै रवताळा । माथा विण' धड़ मुगळ केयक' लोटै कळिचाळा । केयक फूटि धड़ कूत, पड़े वाहै प्रतिमाळा ।
कियक'४ लोह छाकिया, मसत घूमै मतिवाळा । जगनाथ तणा अटका'६ जही, बिगसै सिर झटका'" बहै ८ । अहमदाबाद, हिंदू असुर, खेध वाद लागा खहै ।। ६०४
उडि पड़े अंग अरध, अरध अंग जुड़े अपछर । रांमति जांण१ रमै, अरध - नारी - नाटेसुर ।
१ ग. विच। २ ख. उलझतां । ३ ख. धावां। ४ ग. वाषरां। ५ स्व. भगुट । ग. भिगुट । ६ क. काटा। ७.ख. भभरूत । - ख. ग. तरणि । ६ ख. ग. दोढ़ीया। १० ख. ग. पौढ़ीया। ११ ख. विण । १२ ख. केय । १३ ग. लाट। १४ ख. केयक । १५ क. छीकीया। १६ ख. अटका। १७ ख. फटका। १८ ग. वहै। १६ ख. अहमदाबाद। २० ख. हींदू । ग. होदू । २१ ख. जाण ।
१०३. प्रोयण - चरण, पर। अंत्राळा - प्रांतें। धमचक - युद्ध । कळिचाळा - वीर ।
दुसार - पारपार । लालरता - लड़खड़ाता। बाबरां - बालों, केशों। भ्रगुट - मुख। होफरता- हांफते हुए। भभरूप - भाभरे भूत की भाँति, भयंकर। वरणि
वर्ण, रंग । दुजड़ां - तलवारों। झाटक - प्रहार । दत्त - दत्तात्रय ऋषि । १०४. रुधिर-पिड - युद्ध में वीर गति प्राप्त होने वाले वीर द्वारा अपने रक्त और मिट्टीके
साथ बनाया हुआ पिंड जो पितरोंके तर्पणार्थ अर्पण करता है, इसे राजस्थान में एक बड़ा पुण्यकार्य मानते थे। तड़छ - तड़फड़ाहट । रवताळा - योद्धा। कूत - भाला।
प्रतिमाळा- कटार। छाकिया - छके हुए, मस्त । खहै - युद्ध करते हैं। १०५. अपछर - अप्सरा। रामति - खेल, क्रीड़ा । परध-नारी-नाटेसुर - तंत्रमें शिव और
पार्वतीका एक रूप ।
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सूरजप्रकास
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करे घाव कोपरा, उडै खोपरा अद्ध कर' ।
जोगि' जांणि जमाति, खिजै' पट्टकै धर खप्पर । के क यक खगां माथा किलम, झिलम टोप सूधा झडै । जे जांणि बाज तीतर जकड़ि, पकड़ि दाव धरतो पड़े ।।६०५
बीज हजारां' वहै' सेल हजारां' दुसारां । घटा हजारां घाव करद खंजरां कटारां । इतौ लोह प्रांतरौ सुरां असुरां सिरदारां ।
वीसां अपछर वरै'", हूरवर १ वरै १३ हजारां । नर कंध हजारां नीझुड़ उभे करां जाय न लिया । तिण वार लियण'५ सिर तायका, करह हजारां' संकर'८ किया ॥६०६
साधन कजि सिवराज, सकौ सिर मौहरि सधारै२५ । वधि वधि बावन वीर प्रांरिग सिर मौहरि अधारै । जूध चौसर २४ जोगणी, अडर सूरां सर५ आणै । सिरमाळा गिर - सुता, पोय गूंथ परमाणे ।
१ ख. ग. अद्धक्कर । २ ख. ग. जोगी। ३ ख. षिज । ४ ख. हजारां। ५ ख. बहै। ६ ख. हझार। ७ क. घटा। ८ क. घीव । १ ख. बीसां । १० ख. बरे । ११ ख. बर। १२ ख. बरै। १३ ख. ग. जाय। १४ ख. ग. लीया। १५ ख. जीवण । ग. लोयण। १६ ख. कर । १७ ख. ग. हजार । १८ ख. कीया। १६ ग. सका। २० ख. मौरि । ग. मौहौरि। २१ ख. सधारे। २२ ख. बधि बधि । २३ ख. बांवन । २४ ख. चौसठि । ग. चौसठ। २५ ख. ग. सिर ।
६०५. कोपरा = कूपर - कोहनी घुटना। खोपरा-नारियलकी सूखी गिरीके सम दो भाग।
खिज- कोप करता है। के 'धरती पड़े - कई यवनोंके मस्तक युद्धस्थलमें झिलम टोप सहित भूमि पर गिर रहे हैं, वे ऐसे प्रतीत होते हैं मानों उड़ते हुए तीतर
पक्षीको पकड़ कर बाज पक्षी भूमि पर गिर गया हो। ९०६. बीज - तलवार। करव - तलवार। नीझुड़े - कटते हैं, कट कर गिरते हैं।
तायकां-योद्धाओं। ९०७. सिवराज - शंकर, रुद्र। सको - वह, सब । मौहरि - प्रगाड़ी, प्रथम । अधारै -
रखते हैं। सिरमाळा - मुंडमाला। गिर-सुता- पार्वती।
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२५६ ]
सूरजप्रकास सिव चूर्ण' सीस पूतां सहित भूतां सहित अभ्यासियां' । तरबूज खेत लूटै तिकरि स्वबळ' जमाति सन्यासिया' ।। ६०७
जरद पोस जमरांण, छांगि' सिर विलँद सभारा । खास गज खांनरा, अड़ उमराव 'भारा' । अति बळ करि आचार'", कमंध झाटकै किरम्मर' ।
चोळ बोळ चाचरा, उडै फाचरा अद्धकर'२ । जिण दीह सीस भद्र जातियां', जुघि पड़िया" कटि जूजवा'५ । उण वीर चुगै मोती अमुख, हंस ग्रीध भेळा हुआ'" ।। ६०८
आय आय प्राछटै, कमध दारण कळि त्राळा१८ । घूमै घाय विघाय मसत बारण मति' बाळा । वाढ झडै वीजळां बढ़े3 पाखर बेछाडां ।
इंद्र वजर४ वही२५ उडै पंख जांणिजै१६ पहाड़ा । वढि२" सूडि घणा रत हौद बिचि', उडि 'पडै पडि उछळे २ । जनमेज जाग जाणै ४ भुजंग अगनि कुंड मझि आकुळे ५ ॥ ६०६ १ ख चुण । २ ख. ग, अभ्यासीयां। ३ ख. सबल। ४ ख. संन्यासीयां । ग. सन्यासीयां। ५ ख. छागि । ६ ख. बिलंद। ७ व. ग. छभारा। ८ ख. पासा । ६ ख. अमराव। १० ख. प्राचरा। ११ ख. ग. किरंम्मर । १२ ख. ग. अधक्कर । १३ ख. जातीयां। १४ ख. ग. पडीया । १५ ख. ग. जूजुवा । १६ ख. ग. अमष । १७ ख. ग. हुवा। १८ ख. कलिचालौ। ग. कळि चाळ । १६ ख. मत। २० ख. वालो। ग. वाला। २१ ख. बाट । २२ ख. बीजलां। ग. वीझलां। २३ ख. बढ़े। २४ ख. बजर। २५ ख. बहि । ग. बहि। २६ ख. ग. जाणिजे। २७ ख. ग. बढ़ि। २८ ख. घणी। २६ ख. होत। ३० ख. बिधि । ग. विचि । ३१ ख. ग. ऊडि । ३२ ग. ऊछल। ३३ ख. ग. ज्याग। ३३ ख. जांणे। ३५ ख. प्रासले।
९०७. चूर्ण - चयन करते हैं। स्यबळ - सबल । ६०८. जरद-पोस - कवचधारी। जमरांण - योद्धा। छांगि - काट कर । अड़े-भिड़ते हैं,
युद्ध करते हैं। किरम्मर - तलवार । चाचरा- मस्तक । फाचरा - फच्चर, खंड ।
भद्रजातियां - श्वेत रंगके हाथियों । जूजवा-पृथक । प्रमुख - आमिष, मांस । ६०६. घाय - घाव । विधाय - ( ? ) । बारण - हाथी। मतिबाळा - उन्मत्त, मस्त ।
बाढ-शस्त्रका पैना भाग। झड़े-कट कर गिरते हैं। वढे- कटते हैं। बेछाड़ा(?) । घणा- बहुत, अधिक । रत - रक्त । जनमेज - जनमेजय । जाग - यज्ञ। प्रकुळे - तड़फड़ाते हुए इधर-उधर डोलते हैं।
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सूरजप्रकास
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सूंडि झाड़ि समसेर, मारि साबळां महावत । अोण जांण' अाधार, एम' उभौ है वह रावत । जडि कपोळ जमदाढ़, ठीक जिण कर ठहरायै ।
*दंतूसळां पग दियै', जंगी हौदां चढि जाए । घमरोळ मीर खंजरां धजर, पटकै धर इण विध पडै । किलकिला चोट जांणै' करण, गिरिया नट चढ़ि गोख १ ।। ६१०
छिबता उरस छछोह, चुरस वीरारस'२ चाळे । एक'३ हत्थी'४ पाछटै १५ भांण कौतग'६ रणभाळे । पछटि घाव उडि' पड़े, पाव निरलंग पटाझर ।
देवळ कजि डोळियौ'८ खंभ जांण कारीगर । धड़ फाड़ वहै धड़ सिंधुरां, पड़ि बराड़'१ लोही पड़े । गैरुवा २ खांनि जाणे २४ गिरां, इंद्र वज्र२५ पड़ि ऊधड़े । ६११
जुधस्थळरौ समुद्र सूं रूपक बांधणी प्रळे काळ घण पड़े, खाळ रुहिराळ खळक्कै ।
मिळि घटाळ२८ मुगळाळ विहंड२६ झांफाळ वळक्क' । १ ख. जीण । ग. जाण । २ ग. एम। ३ ख. उभा । ग. ऊभा । ४ ख. ग. ठहराऐ। ५ ग. दीय। ६ ग. जाऐ। *यह पंक्ति ख प्रतिमें नहीं है। ७ ख. धमरोलि । ८ ख. बिधि । ग. विध। ६ ख. चोटि। १० ख. ग जांणे। १९ ख. ग. गोषडे । १२ ख. बीरारस । १३ ख. ऐक । १४ ख. ग. हथी। १५ ग. पाछटौ। १६ ख. कौतिग। १७ ख. ग. उडि । १८ ख. डोलीयां । ग. डोलियां । १६ ख धज । ग. धझ । २० ख. ग. सींधरा। २१ ग. वराड। २२ ख. गेरूवां। २३ ख. षांणि। २४ ख. जाणे। २५ ख. बजर। २६ ख. ग. रुहिराल । २७ ख. पलक्कै। ग. पळ के । २८ ख. ग थटाल । २६ ख. बिहंड। ३० ग. वलकै ।
६१०. समसेर - तलवार । प्रोण - पैर । प्राधार – रख कर । रावत - योद्धा। घमरोळ -
प्रहार । धजर - भाला। किलकिला- ( बन्दूक-या तोप ? ) ६११. छछोह - योद्धा। चुरस - श्रेष्ठ। वीरारस - वीर रस । एकहत्थी- शस्त्र
विशेष । निरलंग- पूर्ण रूपसे काटने या कटने की क्रिया। पटाझर -हाथी । देवळ.....'कारीगर-हाथीके पैरको काट कर इस प्रकार पृथक कर दिया मानों किसी देवालयके निमित्त बढईने किसी बड़े काष्ठके लट्ठको चीर-फाड़ कर साफ-सुथरा
उपयोगके लिए बना दिया हो। सिंधुरों- हाथियों । बराड़- सूराख, छेद, दरार । ९१२. रुहिराळ - रुधिरयुक्त । खळक्कै - नाले आदिके प्रवाहकी कलकलकी ध्वनि या क्रिया । ___घटाळ - सेना । मुगळाळ - मुसलमान, मुगल । झांफाळ - ( ? ) वळक्कै - (?)
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सूरजप्रकास
वहि अनेक विकराळ२ भांति विकराळ विभत्ती ।
इसौ दाय अणपार, मिळे जाय साबरमत्ती । तदि चढे रुधिर नदी गज तिरै रेखग विणि विड रूपरा । तारिया जांणि रघुकुळ तिलक'", गिरवर सरवर ऊपरा ।। ६१२
गज भिड़ज'' पड़ि गरट्ट' प्रगट बंध' सुजि पाजां । धड़ भड़ मछ कछ ढाल, जंगी हवदां-स जिहाजां । मिळि अंत्राबळ सीमाळ, कमळ फूल"खळ कम्मळ'६ ।
हरखि भरै पिणहार' जुगिण पत्र घड़ा रुधर ८ जळ । हंस जेम ग्रीध पंकती'६ हुई, दीसै घाट डरांमणौ । असुरांण विहंड' कीधौ १ 'अभै',रिण२२ समंद अध्रियांमणौ ॥ ६१३
पड़े३४ 'अली प्राबध'२५ 'अली जमाल'३६ बहादर । पड़८ 'तरीन' ३६ 'अभरांम' 'मांन' 'चूहड़' खां निडर । पड़े ° खांन सिरदार, सैद काय' मात्र एह' सुत । पड़े सेख अलियार, जवन बंधव ५ हफत'' जुत ।
१ स्व. बहि। २ ख. विकराल। ३ ख. बिभती। ४ ख. ग. इस। ५ ख. ग. नदि। ६ ख. विण। ७ ख. बिड। ८ व. ग. तारीया। ख. रघुकुल । १० ख. क। ११ ख. भिजड । १२ ख. ग. गरट । १३ ख. ग. बंधे। १४ ख. सुणि । १५ स्व. ग. फूले। १६ ख. कंम्मल। १७ ख. पिणहारि । १८ ख. रुधिर । १६ ख. ग. पंकति । २० ख. विहंड। २१ ग. किधो। २२ ख. रण। २३ ख. ग. समुद्र । २४ ख. पंडे । २५ ख. प्रावद्द । ग. प्राबद्द। २६ ख. जम्माल। ग. जम्माल । २७ ख. बाहादर। २८ ख. ग. पडि। २६ ख. तनीर। ३० ख. ग. पडे। ३१ ख. कायम। २३ ख. ग. एहै। ३३ ख. ग. पडे। ३४ ख. ग. अलीयार । ३५ रू. फवंधवा। ३६ ग. हफत ।
६१२. विभत्ती - वीभत्स । रेखग -( ? ) । विड रूपरा - भयावह रूपके । सरवर - समुद्र ।
६१३. गरट्ट - समूह । मंत्रावळ - प्रांतें । सीमाळ - शैवाल, काई । कम्मळ - शिर ।
डरांमणी - भयावना । असुरांण - यवन । विहंड-संहार कर के। अध्रियांमणी
भयंकर, भयावह । ६१४. ( ? )।
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सूरजप्रकास
कसमीरखांन मौतब कुतब, झट' खाग महमद 'फैजुला' हदातुल्ला' फरस, पीरसाह
काम
श्रासाखां गुलहुसन, मुगळ दरवेस सुजि महम्मद इसथान, 'सेख' मायल' हर रहमतुल्ला, पीरोज, अलाबंदा ' तुक हैदर बेग हुसेन, साह आलम
90
११
दळ ""
कुक्कबंग गौहर बंदा, उजबक ३ रोसन अलाह अबदुल ४ रजा, खेत
*
१३
दोय इरांनरा |
१५
पड़े" भड़ खांनरा || १५ नवलखांन अंगरेज खांन, हमसेर" सुनाहर" । सेर विदारखांन. खांन बहलोल उज्जबर१८ । असतखांन अलमसतखांन, १६ बुलाखांन सबघर *" । जमी खांन जमसेरखांन समसेर
सिर विलंदखांन घायल 'समर' भाट लेख " बळि नह आगा प्रजाद * * बचिया उभै पूर लोह अनि स्रब
43
1
गज । ३० ख. उजवकां ।
ε१४. ( ? ) ।
१५. ( ? ) ।
१६. पूर
८
हुये ।
६
महम्मद |
६
हमद ।
झड़ें ' ।
४
पड़े ॥ ६१४
इसौ ताव ईखियो, घाय मुगळ २७ दळ घावां । बोहो गजि असि उजबकां", टूक दीठा उमरावां ।
तुमस्स । सेरस ।
बहादर ।
झड़े
કશ્
εख. ग. हंमद ।
. बुजरक्कबेग |
१३
ख. ऊजबक |
१ ख भाट । २ ख. झडे । ६ ख ग महमद । ७ ख. ग. महमद । ८ ख माफल ! लीवंदा | ११ ख. ग. दिल । १२ श्रवदुल रजा । ग. हुजब्बर । २१ ख. बेल ।
१५ ख. ग. पडे । १६ ख. बुलषांन | २२ ख. ग. भडे ।
१० ख. १४ ख. १६ ख. हिल पनि । १७ ख. सनाहर । १८ ख. ग. वुलषांन । २० ख. सवब्बर । म. सबब्बर । २३ ख. मुजाब | २४ ख. बंचीया । ग. वचिया । २७ ख. मूगल । २८ ख. ग. चौहौ ।
२५ ख. पडे ।
२६ ख. ईषीयौ।
२६ ख.
[ २५६
पड़े
२५
।। १६
३ ख. हद्दतुल्ला । ४ ख. पडे । ५ ख प्रासीषां ।
पड़े - शस्त्र प्रहारोंसे पूर्ण क्षत-विक्षत हो कर अन्य सब वीरगति प्राप्त
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२६० ]
सूरजप्रकास जुड़े' मुगळ जांणियौ', मारि नांखै' पळ मांहै ।
मांण डांण तजि मुगळ, लाज लंगरा तुड़ाहै । वीजळा झाट हाथळ विखम, थाट पड़े व्याकुळ थयौ । 'अभमाल' मयंद देखै उरड़, गयंद 'बिलंद''' बहुवे १ गयौ ।। ६१७
पाळा होय विण' पमंग, जवन हालै पमंगा जिम । उडै १३ पमंग असवार, तिकै ऊडांण पवन तिम । कंध धड़ फूटां किलम, रुधिर छूटां'५ रातंबर ।
जूटा भग्गा जाय केयक'" तूटा बिहुँदै'८ कर । जुध मांहि केयक बाचिया जिके, सर चवधारां संग लिया । सिर विलंद' खांन तिण समै, हाथी म्रग२२ जिम हालिया२३ ।। ६१८
आब जोम तजि असुर, सुर विहंडाए'४ साथां । नाटौ राम नबाब, हीण मद पड़ता हाथां । जाय किसू५ जीवतो, धाय असि 'अभौ' धुबावै ।
लगै न मागां लार, विरद रघुवंस'८ बुलावै । नासता खळां मारै नहीं, 'अभमल' विरद° दईव तौ । सिर विलँद१ भाजि अहमद सहर, जिणहूँ ३२ पहुंतौ जीवतौ ॥ ६१६
१ ख. जठं । ग. जुडे । ख. जांणीयौ। ३ ग. नांषे। ४ ख. माये। ५ ख. ग. तुडाए। ६ ख. बोजलां। ७ ख. पडे । ८ ख. ग. देखे। ६ ख. गय। १० ख. विल्लंद। ११ ख. भज्जे । ग. बंझे। १२ ख. बिणि | ग. बिण। १३ ख. उडे । १४ ख, ग. तिके। १५ ख. ग. छटां। १६ ख. ग. जूटा। १७ ख. केय ! १८ ख. बिहुँ । १६ ख. बंचिया । २० ख. सालीया। २१ ख. बिलंद। २२ ख. ग. मृग । २३ ख. हालीया । २४ ख. बिहंडाए। २५ ख. कीतूं । २६ ख. धुबाब । २७ ख. बिरद। २८ रघुबस। २६ ख. न्हासतां। ३० ख. बिर। ३१ ख. बिलंद । ३२ ख, जिणहुँ ।
६१७. मयंद - सिंह । गयंद - हाथी। बहुवे गयौ - भाग गया । ९१८. विण - बिना, रहित । पमंग - घोड़ा, हरिण । रातंबर- लाल। बिहुंदै - दोनों ।
कर - हाथ । सर - तीर । चवधारां- भालों। ६१६. प्राब - कांति, दीप्ति । जोम - जोश । असुर- मुसलमान, सर बुलंदखा। सुर -
हिन्दू । विहंडाए - ध्वंस करवा कर के। नाटौ - भाग गया। पहुँतो - पहुँच गया ।
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सूरजप्रकास
[२६१
कवित्त दोढौ इम जीतौ 'अभमाल' वार' नबत्ति' बजाए । लूटि पारबा लिया लूटि, असि गज बहौ लाए । 'विलँद'६ तणा बाढिया, रूक झाटां रवदायण । च्यार सहस च्यारसै, असो तेरा असुरायण' । जिण मझि'' विवरौ' जुदौ, मुगळ पड़ि रूप मयंदा । सौ ४ पालखीनसीन'५ पाठ असवारां'६ गयंदा । अ पड़े साह जाणै इसा, आवै आम'' दीवांणमें । ताजीम तणा भड़ तीनसै, घणा अवर घमसांणमें ।। ६२०
छप्पय कवित्त भड़'८ पयदळ गज भिड़ज पड़े विलँदरा' अंपारां । नको पार२ घायलां, हुवा लोह मै सुमारां । उला भड एकसौ वीस पडियाने ४ जिण वारां५५ ।
पमंग पड़े पंचसै२६, धमक' सेलां खग धारां । सात सै हुवा घायल सुभट'८, लडै ६ 'अभै' जस वद लियौ ।
आजरा वार मझि पोहौ” अवंर, जुध इम किणे न जीपियौ ।।६२१ १ ख. बीर। २ ख. नवबत्ति । ग. नववत्ति। ३ ख. बजाए। ४ ख. लोया। ५ ख. ग. बौहौ। ६ ख बिलंद। ७ ख. बाढ़ीया। ग. वाढ़िया। ८ वरदायण। १ ख. सहंस। १० ख. असरायण। ११ ख. मझ। १२ ख. बिवरौ। १३ ख. ग. मयंदां। १४ ख. पौ। १५ ख. सालषोनसीन । १६ ख. ग. असवार । १७ ख. ग. प्रांब । १८ ख. भय । १९ ख. पडे । २० ख. बिलंद। २१ ख. को। २२ ख. पाय। २३ ख. ग. ऊला। २४ ख. ग. पडीया । २५ ख. जिणबारां। २६ ख. पांचस। २७ ख. धमष। २८ ख. सुभड। २६ ख. लडे । ३० ख. ग. वृद । ३१ ख. लीयो। ३२ ख. ग. माजरी। ३३ ख. बार । ३४ ख. ग. पोहो। ३५ ख. जीपीयौ।
६२०. प्रभमाल - महाराजा अभयसिंह। नबत्ति - नौबत, नगाड़ा । प्रारबा-तोप ।
असि - अश्व, घोड़ा। बाढिया - काट डाले । रवदायण - मुसलमान । असुरायण
मुसलमान । विवरौ - वृतान्त, भेद। मयंद - ( ? ) घमसांण - युद्ध । ६२१. पयदळ - पदाति, प्यादे । भिड़ज - घोड़ा । घमक - प्रहारों । अभ - महाराजा अभय
__सिंह। पोहो- प्रभु, राजा । अवर - अन्य। जीपियो - जीता, विजयी हुआ ।
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२६२ ]
सूरजप्रकास भोमि मिळे धड़ भार, मिळे' दळ 'विलँद 'गिरदां' । निझां' मिळे पळ गूद मिळे हाका सरहद्दा । मिळे ईस रुंडमाळ, मिळे'' रत वपत सकत्ती ।
मिळे भांण रिख अचंभ, मिळे पीरां बळ मत्ती । आसीस मिळे'६ दीधी हूतां, रिधु कोड़'८ जुग राजनूं । जुध जीत विरद मोटा जिकै ६, मिळे 'प्रभा' महाराज ॥ ६२२
मिळे'सुवर रंभ हुर, प्रेत भख मिळे3 अपंपर । मिळे४ भख नहराळ मिळे६ भख खेचर भूचर । सोच मिळे सिर विलँद ८ भीच खळ मिळे ६ मिसत्ती ।
मिळे' दाह इरांण मिळे3 मुरधर कीरत्ती । दळ जीत ५ मिळे ६ बंधव दहुं" सुभट ८ मिळे समाजनूं । जुध जीत विरद मोटा जिकै ' मिळे २ 'अभा' महाराज ॥ ६२३
१ ख. मिले। २ ख. बिलंद्द। ३ ख. गिरदां। ४ ख. निफा। ५ स्व. मिले । ६ ख. गाल । ७ ख. ग. मिले। ८ ग. सरहदां । ६ ख. मिले। १० ख. रुडमलि। ११ ख. ग. मिले। १२ ख. सकती। १३ ख. मिले। १४ ख. ग. मिले। १५ ख. बलिमत्ती। १६ ख. मिले। १७ ख. रिधू। १८ ख. कोडि। १६ ग. जिके । २० ग. माहाराजनं। २१ ख मिले। २२ ख. सुबर। २३ ख. मिले। २४ ख. ग. मिले। २५ ख. भष्ष। २६ ख. ग. मिले। २७ ख. ग. मिले। २८ ख. बिलंद । २६ ख. ग. मिले। ३० ख. भसभिसती। ३१ ख. ग. मिले। ३२ ख. ग. ईरान । ३३ ख. मिले। ३४ ख. कोरती। ३५ ख. जीत। ३६ स्व. ग. मिले । ३७ ख. वंह । ग. दुई। ३८ ख. सुभडां। ३६ ख. ग. मिले। ४० ख. बिरद। ४१ ख. जिके । ग. जीके । ४२ ख. मिले। ४३ ख. माहाराज । ग. राजनें।
६२२. भीम - भूमि । गिरदां - गर्द, धूलि । निझां - गिद्ध पक्षी। पळ-गूद - मांस-पिंड ।
ईस - महादेव । रत - रक्त । त्रपत - तृप्त । भाग- सूर्य । रिख - नारद ऋषि ।
अचंभ - अाश्चर्य। पीरां बळ मत्ती- ( ? )। प्रभा - महाराजा अभयसिंह । ६२३. सुवर - सुन्दर पति। रंभ- रंभा, अप्सरा। हर-परी, अप्सरा। महराळ -
मांसाहारी हिंसक पशु । भीच - योद्धा । मिसती- बहिश्त, स्वर्ग। वाह - जलन । कीरत्ती- कीति, यश । प्रभा-महाराजा अभयसिंह।
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सूरजप्रकास
[ २६३ इम जीपै' आवियो', महाराजा' राजेस्वर' । सैदांना' वाजतां गयंद गाजतां पटाझर । फरहरतां गज धजां, घणा ग्रह महतां घूमर ।
घरहरतां कोतिलां, चमर होतां सिर चौसर । भरि मुगत थाळ वधावियौ, कांमण कळस वृंदावियो । अँगू' जोम पूर छिबतौ' उरस 'अभमल' डेरां आवियौ ॥ ६२४
राति वसे महाराज' दीत ऊगै'५ सझिया' दळ । काळ रूप कठठिया", होय विकराळ१८ झळाहळ । अज' 'अभौ' आवियौ पूर वजि२१ विखम त्रंबाळा५ ।
वपधूजे 'सिर विलँद'२४ वीच५ फेरे१६ विसटाळा । तदि कहे ताप मांने तुरक, तिहूं६ छक छांडि तराजका । महि सरब अराबा दे मिळ, म्है' बंदा महाराजका २ ॥ ६२५
१ ख. जीपे। २ ख. प्रावीयौ। ३ ख. ग. माहाराज । ४ ख. ग. राजेसुर । ५ ख. सायदानां । ग. सैदांनां । ६ ख. बाजतां । ७ ख. बाधावीयो। ८ ख. कामणि । ६ ख. बंधवोयो। १० ख. अंग। ११ स्व. छिवतो। १२ ख. प्रावीयौ। १३ ख. बसे। १४ ख. ग. माहाराज। १५ ख. उग। १६ ग. सझीया । १७ ख. कठठीयो। १८ ख. बिकराल। १९ ख. अजे। २० ख. प्राधीयो। २१ ख. बजि । २२ ग. बाबाला। २३ ख. धूजे। २४ ख. बिलंद । २५ ख. बीच। २६ ख. फरै । २७ ख. बिसटाला। २८ ग. माने। २६ ख. बिहूँ। ३० व. ग. सहर । ३१ ख. ग. मै। ३२ ग. माहाराजका ।
६२४. जीप - विजयी हो कर । सैदांना = शादियाना - मंगल वाद्य । पटाझर - मस्त हाथी।
फरहरतां - फहराते हुए। गहमहतां- भीड़ या समूह बनाते हुए। घूमर - सेना, दल। चौसर - चारों ओर । मुगत - मोती । षधावियो - स्वागत किया । कांमण - कामिनी, स्त्री। वंदावियो - अभिवादन करवाया। अंगू- शरीर ।
प्रभमल - महाराजा अभयसिंह। ६२५. बीत - प्रादित्य । कठठिया - प्रस्थान किया, रवाने हुए। अजै - ( अजय, जिसको
कोई जीत न सके ? )। विखम - विषम, भयंकर । बाळा - मगाड़ों । विसटाळा - मध्यस्थ । ताप - रौब, अातंक । छक-(?) । बंदा - सेवक ।
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२६४ ]
सूरजप्रकास पड़े' पाय सिर विलँद', जांणै सरणाय सधारां । म्है बंदा हुकमका एम' कहियौ उण वारां । अवर रखत प्रारबां किले वंचिया 'अधिकारां' ।
जिकै किया सही निजर, किला' ° सहित'' कोठारां । जदि होय रूंख पतझड़ जिही, सुभड़ां विणि दुख सालियौ"। आगरा दिसी सिर-विलँद१५ इम, हीण माण होय हालियौ ६ ॥ ६२६
घायल उजबक घणा, मरे" मुक्कांम मुक्कांमां'८ । तियां' हलै२० गाडतौ १ गाम ठांमां गढ गांमां । मजल मजल मेलतो२३ मीर खांनां उमरावां ।
हाथियों जिम मदहीण गयौ४ पौरस तजि गांवां । अहमदाबाद २६ बिचि" आगरै, घोर८ हुई मुगळां घणी । कहतां न पार पावै तिकौ ६, गिणतां नहीं जावै ' गिणी ।। ६२७
हौं इजति भंग द्वैगौ असुर, मिळे न तिण मूहमद' ।
गयौ दिली तजि प्रागरे, विध७ इणहूंत 'विलँद' ।। ६२८ १ ख. ग, पडे । २ ख, बिलंद। ३ ख. ग. जांणि । ४ ख. ग. मै। ५ ग. ऐम । ६ ख ग. कहीयौ। ७ ख. बंचीया। ग. वचीया । ८ ख. ग. जिके। ६ ख. ग कीया। १० ख. किलो। ११ ख. सहिता। १२ ख. ग. रूप। १३ ख. बिणि। १४ ख. ग. सालीयौ। १५ ख. बिलंद । १६ ख. ग. हालीयौ। १७ ख. ग. मर। १८ ख. ग. मुकांमा। १६ ख. ग. तीयां। २० ख. ग. हले। २१ ख. गागाडतो। २२ ख. मेल्हतो। २३ ख. ग. हाथी । २४ ग. गयो। २५ ग. पोरस । २६ ख ग. अहमदावाद । २७ ग. विचि । २८ ख. घोरि। २६ ख. ग. तिकां। ३० ग. नहें। ३१ ख. जाए। ३२ ख. ग. गणी। ३३ ख. दोहा । ग. दोहौ। ३४ ख. ग. ईजति । ३५ ग. मिले। ३६ स्व. महमंद । ग. गहमद । ६७ ख. बिधि । ग. विधि ।
६२६. सरणाय = सधार - शरण में आये हुएकी रक्षा करने वाला। रखत - धन-दौलत ।
पारवा - तोप, बंदूक, अस्त्र-शस्त्र प्रादि सामान । वचिया- अवशिष्ट रहे ।
सुभड़ा- योद्धाओं। हालियो - चला, चला गया। ६२७. मुक्काम मुक्कामा - स्थान-स्थान पर। मजल - यात्रामें ठहरने का स्थान, मंजिल ।
घोर - गोर, कब्र । ९२८ इजति - इज्जत, प्रतिष्ठा। विध इणहूंत - इस प्रकारसे ।
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सूरजप्रकास
[ २६५
कवित्त छप्पय'
अहमदपुर अोपिया', अमल वजीर' 'भारा' । इळा वधै आणंद प्रजा सुख वधै अपारा । धाड़ायत धूजिया', सहत मरहटा सकाजा ।
सतरि सहस धर सकळ, मंडै थांणा महाराजा । साहरै वाग 'अभमल' सुपह करि मुकाम ऊछब' कियौ । ज्योतिख'' त्रिकाळदरसी तियां'', दीपमाळ मुहरत दियो' ५ ॥९२६
दीपमाळ दिन उभळ१६, सकौ' दळ बहळ' ८ सिंगारे । सहर उछव सिणगार, जरी जवहूर'६ जरतारे ।
आवादान प्रवास करै' छिड़काव१२ गुलाबां ।
साहवांन२३ जरकसी, मंडै४ पड़दा महरावां । जि* गिलम विछायत तखत छत्र, तारकसी चंद्र तांणिया ६ । महाराज पधारण मंत्रियां८, किलांबीचडंबर किया' ॥६३०
१ ख. ग. प्रतियों में यह शब्द नहीं है। २ ख. प्रोपीया। ३ ख. वज्जीर। ४ ख. बधे। ५ ख. धूजीया। ६ ग. मरहाटां। ७ ख. ग. मंडे । ८ ग. माहाराजा।
ख. बागि। १० ख. ग. उछव। ११ ख. ग. कीयौ। १२ ख. ग. जोतिष । १३ ख. जीया। ग. दरसीतीयां। १४ ख. ग. महुरत । १५ ख. ग. दीयो। १६ क. युझल । १७ ख. ग. सको। १८ ख. वह। १६ ख. जहूर । ग. जव्हर। २० ख. प्रावास । २१ ख. करे। २२ ख. छडकाव । २३ ख. ग. साईवान । २४ ख. ग. मंडे। २५ ख. छकि । २६ ख. तागीया। २७ ख. ग. माहाराज । २८ ख. मंत्रीयां । २६ ख. बीचि । ग. वीच । ३० ख. ग. डब्बर। ३१ 'ख. ग. कीया।
९२६. प्रभारा- महारोजा अभयसिंहका । इळा --पृथ्वी । धाड़ायत - डाकू, डकैत । अभमल -
महाराजा अभयसिंह । त्रिकाळदरसी - त्रिकालको देखने वाले (त्रिकालज्ञ )
दीपमाळ - दीपावली। ६३०. महरावा - द्वार प्रादिके ऊपर का अर्द्ध-मंडलाकार भाग । तारकसी-धातुके
तारोंका बना काम । चंद्र - चन्दोवा, सायवान (?)। डंबर - सजावट ।
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२६६ ]
सूरजप्रकास
पहरि' तास पौसाक' , भळळ जवहर धर' भूखण । अंबर गुलाबां अतर घणा करि डंबर विरद घण । साज कनक नग ससत्र' करै बुलगार" सकाजा ।
सुभट मंत्री दुज सुकवि, महा उछब महाराजा" । गज भिड़ज जरी जवहर गरक, दोप मुसाळां वणि' डंबर । उण वार चमर होतां 'अभौ', गज चढियौ'२ धारै गुमर ॥ ६३१
वजि" नौबत मुरसळां, हलै ६ चतुरंग भळाहळ । जोति मुसालां जगै झळळ पोसाक झळाहळ । पूरि घरि घरि दीपक', कोडि कोडेक अणंकळ ।
अहमदपुर प्रोपियो', कनक द्वारका तणी कळ । आवियौ' सहर मझि पोहौ उछप, लखां धमळ मंगळ लभौ । *तदि धरै छत्र बैठौ तखति, अहमदपुर छत्रपति अभौ ॥ ६३२
१ ख. परहि। २ ग. पोसाक । ३ ख धरि। ४ ख. डब्बर। ५ ख. ग. सस्त्र । ६ स्व. कसे । ग करे। ७ ख. बुलगार । ८ ख. सुभड। ६ ख. ग. माहा। १० ख. ग. माहाराज। ११ ख. बणि। १२ ख. चढ़ीयो। ग. चढ़ियो। १३ ख. धारे । १४ ख. बजि । १५ ख. नौवति । १६ ख. ग. हले। १७ ख. ग. पुरि। १८ ख. ग. दीपक्क । १६ ख प्रोपीयो। २० ख. द्वारिका। २१ ख. आवीयो । ग. प्रावीयो। २२ ख. ग. पोहौ।
*यह पंक्ति ख' प्रति में नहीं है।
६३१. तास - एक प्रकारका बहुमूल्य जरदोजीका कपड़ा। भळळ - देदीप्यमान, चमक
युक्त । जवहर - जवाहिरात । भूखण - प्राभूषण। अंबर - एक प्रकारकी सुगंधित वस्तु । बुलगार - (?)। मुसाळा - मोटी बत्ती जिसके नीचे पकड़नेके लिए काठका मोटा दस्ता लगा रहता है, मशाल। डंबर - चकाचौंध, प्रकाश । प्रभो - महाराजा अभयसिंह । गुमर - गवं ।
६३२. मुरसळो - वाद्य विशेष । चतुरंग - सेना । भळाहळ - देदीप्यमान । झळळ - चका
चौध करती हुई, देदीप्यमान । कोडि - उमंग, उत्साह । कोडेक - उमंगमें । अणकळ - वीर । प्रोपियो - शोभित हुआ। कळ - प्रकार, भांति । पोहो- राजा। धमळमंगल - मांगलिक गायन । लभौ- प्राप्त हुआ। छत्रपती- राजा।
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सूरजप्रकास
नति' रंग राग अनेक , करै नतिकार' कळावंत । करै सलाम अनेक, निडर अनमी सिर नावंत' । असपतिरा आपरा, सुभड़ बहु मंत्री सकाजा ।
साझे निजर सलाम रजै इण विध' महाराजा । करि करि असीस कवि गुण कहै, सोया ऊच समाजरौ । रवि चंद जितै कायम रहौ, राज तेज महाराजरौ ॥६३३
दहा चक्रबति दिन दिन चौगणे, सुख तप तेज सकाज । सतरि सहस मुरधर सहित, मांण धर महाराज'' ॥ ६३४ जोतां जोड़ न दूसरौ, धर हिंदुवांणां धाम । 'अभमल' सूर१५ हुवै'२ 'उरै' 'साहू' जसौ संग्राम ।। ६३५ दातरां दाता दुझल, सूरां सूर सकाज । अतुळीबळ राजै 'अभौ', इसे तेज तप आज' ।। ६३६
छंद मोतीदांम सकौ अन राज सदीठ समाज ।
'अभैमल' जोड़ करै कुण'" आज ।' १ ख. ग. नृति। २ ग. नृतिकार । ३ ख. नामत । ४ ख. बौहो। ५ ख. बिधि । ग. विधि। ६ ख. ग. माहाराजा। ७ ख. माहाराजरौ। ८ ख. दोहा। ग. दोहा । ६ ख. ग. चक्रवति । १० ख. ग. माहाराज । ११ ख. ग. तूं। १२ ख. ग. तुहुंदै ।
*चिन्हांकित पद्यांश 'ख.' प्रतिमें नहीं है। "यहांसे आगे 'ख' प्रतिमें निम्न पंक्तियां और प्राप्त हुई हैं--
, "साहू पोहो देषि जिकै तपसार ।
हेलां जिम मोकलियो हुजदार ॥" १३ ख. ग. इस । १४ ख. प्राप। १५ ख. कुंग ।
नोट:-ये पंक्तियां 'ख' प्रति में दो बार लिखी हुई हैं।
६३३. नतिकार - नृत्य या नाच करने वाला। कळावंत - गायक-समुदाय, दक्ष, प्रवीण ।
__नावंत - झुकाते हैं। रज- प्रसन्न होता है। असीस - आशीष । गुण - कविता। ९३४. चक्रबति - राजा । माण- उपभोग करता है । ६३५. जोड़-समान, तुल्य । ६३६. दुझल-वीर। राज- शोभायमान होता है। तप-ऐश्वर्यः।। ६३७. सकौ - सब । अन राज - अन्य राजा। अभेमल - महाराजा अभयसिंह । जोड़
समानता।
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२६८ ]
सूरजप्रका
3
सहू' पह आप जिसे मँत्रवेस ।
पगां लगि कीध धणी जिम पेस ॥। ६३७
छ दिखणी दळ पौरस बाधि । अयौ' 'कँठराज' करूर असावि 1 सूवा" जिम' मार दिया " झट सार ।
११
१२
सुरत्ति उजैणतणा' सिरदार ।। ६३८
१३
०
१४
५
इसौ " ' कँठराज' जिकौ'
919
दळ पूरब छिबै
सांम्हां तिण हूंत संग्रांम मिळ" उवराज" मंत्री
ε३७, ( ? ) ।
३८. छळे (वळ ) ? दवांण - वीर ।
१८
१६
दवांण ।
समांण ।
१६
२३
जुटा तिणहूंत जिकै
२५
दळां करि भूझ लुटै ४ लाहां खळ मारि * डेरां कमंधज भूपतणौ जस लड़ायक 'कंठ' धिखंतिय लाय । सुज दीध भजाय ।
२७
भड़ां 'मँत्रिय'
सकाज । महराज ।। ६३६
जमरांण ।
दखिणांण । असि लीध ।
३ ख श्राय । ४ ख. मंत्रबेस ।
५ ख लग ।
२ ख. ग. पौहौ । ७ ख. ग. आयौ । १२ ख. सूरति । १३
८
१० ख. मारि ।
ख. सूबा । ६ ख. ग. जिण | प्रजेणतण । ग. उजेण
।
१ ख. ग. साहू | ६ क. बधि । ११ ख. दीया १५ ख. ग. जिको । १६ ख. दईवांण । १७ ख. प्रायो । १५ ख. ग. पूर । १६ ख. छिवे । ग. छिवं । २० ख. ग. मिले । २२ ख. माहाराज । २३ ख. जिके। ग. तिके । २४ ख. लूटे । ? २५ ग. मार । २६ क. ख. देरां । २७ ख. धिषंतीय । ग. धिषंती । २८ ख. मंत्रीयां । ग. मंत्रीय । २६ ख सुजि ।
१४ ख. ईसौ । ग. इसो । ग. श्रयो ।
२१ ख. युवराज ।
कीध ॥ ६४०
-
कंठराज - कंठाजी नामक मरहठा । सुरत्ति - सूरत नगर ।
६३६. सांम्हां - सामने |
४० जमरांग - जबरदस्त । भूझ - युद्ध | दखिणांण - दक्षिण दिशा, दक्षिण दिशाका ।
४१. लड़ायक - लड़ाई करने वाला, लड़ाकू । कंठ - कंठाजी ।
धिखंतिय -
प्रज्वलित | लाय - दावाग्नि, श्राग
सुज
उस वह । दीध - दिये
।
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सूरजत्रकास
मारे' दळ लूटैय'पंच' मुकांम । नवे खंड सीस हुवौ जस नांम ॥ ६४१
कुळिभांण ।
भंडारियता मंत्री दिली ' ' अमरेस' हुतौ दइवांण' । जिकौ" पिड' सूर दसा परवीण'
१०
99
२
I
है स्यांम धरम सु- लीण" ।। ९४२
१४
१७
1
लियां'' सुत 'खीम' भुजां रज लाज असप्पतिहंत सूं कोध" अरज्ज ६ । जिकै विध कीध फतै महाराज*
२२
कही घर गुज्जर" कथ्थ े" सकाज ।। ९४३
सु
23
कथ एह खै म
12
3
.२४
महम्मद साह 1 खास विचै पह" वाह |
२७
ग. दीली । १२ ख. पिंड |
१ ख. ग. मारे । २ ख. ग. लूटेय । ३ ख पांच ग. हुवो । ६ ख. ग. भंडारीय । ७ ख ताम । १० ख. दवांण । दिढ़ । ग. दितु । १८ ख. ग. सुकीध । गुग. गुजर ग. महमदसाह । २५ ख. श्राषे । ग. श्राषे । २८ ख पौहौ । ग. पौह ।
११ ख. ग. जिको । १५ ग. सुलीन । १६
ख. ग. लोयां
१६ ख प्ररम्भ । ग. श्ररज । २० ग. माहाराज । २१ ख. २२ ख. कत्थ । ग. कथ । २३ ख. ऐह । २४ ख महंमदसाह | २६ ख. अंब । ग. प्रांब । २७ ख. बिच ।
।
-
[ २६ε
४ ग. नमै । ५ ख. हूवौ ।
६ . हुतौ । ग. हुतो ।
१४ ख.
४१. सीस - ऊपर, पर ।
४२ भंडारिय- श्रोसवाल वंशका एक गोत्र । कुळि भांग - अपने वंशका सूर्य । श्रमरेस अमरसिंह भंडारी जो दिल्ली में बादशाहके पास महाराजा अभयसिंहजी की ओर से वकील के रूपमें रहता था । दइयांण - दीवान। जिको बह ( अमरसिंह भंडारी ) रहे | सु-लोण - वह स्वामिभक्त था ।
-
१३ ख. परवीर ।
१७ ख. लभ । ग लज ।
४३. खीम- अमरसिंह भंडारीका पिता खीमसी भंडारी । रज - राज्य । प्रसप्पतिहूत -
बादशाहसे । जिकै - जिस
विध प्रकार । कथ्थ - वृत्तान्त, हाल |
४४. - कहता है। पह- प्रभु राजा । वाह - शाबास, धन्य धन्य ।
-
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२७० ]
सूरजप्रकास
पुणं' पहरे पांण ग्रहंतां पांण । सके तिम हीज कहै सुरतांण ।। ९४४
फुरमाण सनेह दिलेस ।
५
७
दिया " मुनसब' बधाराइ देस ।
सारी" जोवतां अनि
हिदुस्थान' ।
दुवौ" नह जोड़ कौ
खग
४
दिया *
११
नाथ अफेर ।
फर्तपुर भूंझण जवन्न नबाब' रहै नित जेर ।
3
विकापुर ३ जेसलमेर हैपुर प्रांन दुरंग बळे" पुर डूंगर" वांसहवाळ" । सेवै पग रावळ भेजि रसाळ । लुणापुर नायक जेर लगांण । रहै पग सेवक चाळक
.१२
दांन ।। ६४५
१४
विलँद' 1 उमेद" ।। ६४६
४ ख. दीयां ।
।
१ ख. पुणे । २ ख. ग. पोहौ । ३ . ग. ग्रहंतांई । ६ ख. मुनसप्प । ७ ख वधाराईदेस । ग. वधाराइदेस सथन । १० ग. दुवो । बीकापुर । ग. वीकापुर । ग. चले । १७ ख. डुंगर ।
११ ख. जव्वन । ग. जवन । १४ ख. बिलंद |
-
रांण ।। ६४७
८. सारो ।
१५ ख. ग. उमंद |
१८ ख. बांसबाहाल । ग. वांसहवाल ।
१२ ख. नवाव ।
४४. पुणे - कहता है । पांण - ही ।
४५. फुरमाण - परवाना, आज्ञापत्र | दिलेस दिल्लीश, बादशाह । बधाराइ बढ़ती, वृद्धि | सारौ - सब । अनि अन्य दूसरा दुवौ दूसरा जोड़ - समान । खग दान - वीरता और वदान्यता ।
५ ख. दीया ।
ख. होदु१३ ख.
१६ ख. बले । १६ ख. लूणापुर ।
-
1
९४६. अफेर - वीर । जवन्न - यवन । जेर- श्राधीन । विकापुर बीकानेर | विलंब = बुलंद - बड़ा अथवा सर बुलेंद । श्रहैपुर - हिपुर, नागपुर, नागौर । ४७. वळे- और फिर पुर डूंगर - डूंगरपुर । वांसहवाळा वांसवाड़ा ।
रसाळ -
भेंट ? चाळक रांण - चालुक्य वंशका राजा ।
-
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सूरजप्रकास
[ २७१ सिरोहिय' ईडर राज समाज । रिधू हळवद' झालांपति राज । जाड़ेचा सिंगारज रावळ जांम । वळे भुजनेरतणौ वरियांम ।। ६४८ सराचंद पारकरेस सधेस । हुवै पग सेवक प्राय हमेस । सरां लगि सांभरि तीर समंद । नमै पगि आय इता नर इंद ॥ ६४६ भरै डॅड रैत तणी विध'' भाय । *प्रथीपति" फेरि लगावत पाय । सु सौ'२ गजहंत करंत सलाम । महा हम तम्म सहै अतिमांम ।। ६५० दखै तदि नीजर'४ दौलतिदास ।* प्रथीपत'५ दीठ करंत प्रकास । इसी१६ विध'७ पाय नमत अपार ।
जियां पल हंत करत जहार ॥ ६५१ १ ख. ग. सीरोहीय। २ ख. हलवद्द। ३ ख. जाडेच। ४ ख. ग. वले। ५ख. भुजनैरतणौ। ६ ख . ग. सूराचंद । ७ ख. हुश्रे। ग. हौ। ८ ख. पगि। ६ ग. रति ।
*चिन्हांकित पंक्तियां 'ख' प्रतिमें नहीं हैं। १० ख. बिधि । ग. विधि । ११ ख. ग. प्रिथीपति। १२ ग. तो। १३ ग. दार्ष । १४ ग. निझर । १५ ख. ग. प्रिथीपति । १६ ग. इसि । १७ ख. बिधि । ग. विधि ।
६४८. रिधू - निश्चय । जाड़ेचा - यादव वंशकी एक शाखा। रावळ-जांम - जामनगरका
राजा जामरावल । भुजनेर - भुजनगर । वरियांम - श्रेष्ठ । ९४६. सुराचंद - एक प्रदेशका नाम । पारकरेम - एक प्रदेशका नाम । संधेस - सिंध प्रदेश,
सिंधुदेश। सरां समंद - सांभर झीलसे लेकर समुद्रपर्यन्त । पगि - चरणोंमें।
नर-इंद - नरेन्द्र, राजा। ९५०. विध - प्रकार । भाय - समान । हम तम्म - रौब, अातंक । अति-मांम = एहतमाम -
अधिकार-क्षेत्र अथवा इन्तजाम, प्रबंध ( ?) ९५१. दखे - कहते हैं। नोजर दौलतिदास - अापकी नजर - दौलतके हम दास हैं । जियां -
जैसे । जुहार - अभिवादन ।
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२७२ ]
सूरजप्रकास
इसै' तप तज रजै 'अजमाल" तणौ महराज
कवित्त छप्प
'अभैमल' आज ।
६
इसै तेज तपि प्राज, रजै 'अभमल' महराजा । वरण हूंत वसेस सुदन खग राज समाजा । सतर सहंस गुजरात धरा नव सहंस मुरद्वर । एक सहंस धर प्रवर, अमल इतरी धर ऊपर " वणि समंद हृद १२ चक्रवति विभौ, उरड़ रीझ छक आवियों सुरिजप्रकास गुण इण समै, कहै स्री मुख" कहावियो " ।। ६५३
१०
|
.१४
१७
१८
o
खंड - प्रसस्त - बलमीक, हणूं नाटक ' अध्यातम | द्रोण परब' रघुवंस', सारसुत व्यायकरण हिम । हठ प्रदीप अस्टंग वळै तप सार ग्रंथ वर । आठ ग्रंथ ज्योतिस ३,
.२२
सरस संगीतह
सागर ।
,
४ ख. तथा
७ ख. वरणण ।
१ ख इते । २ ख. रजमाल । ग. प्रतियों में यह शब्द नहीं है । ८. बिसेष ग. बसेष | उप्पर । १२ ख. ग. हद्द | ग. श्रीमुषि ।
३ ख. महाराज । ग. माहाराज । ५ ख तन । ६ ख. ग. माहाराजा । ६ ख. ग. ससाजा । १० ख. ग. एक । १३ ख. ग. श्रावीयौ । १४ ख. इणि । १५
११ ख. ग.
ख. श्रीमुषि । १६ ख. ग. कहानीयो । १७ ग. नाटिक । १८ ख. परव । १६ ख. ग. रुघवंस । २० ख. वैयाकरण । ग. बयायकरण । २१ ख. ग. अष्टंग | २२ ख. ग.
बले ।
२३ ख ग जोतिस ।
॥ ६५२
५२. तप - ऐश्वयं । प्रभैमल - महाराजा अभयसिंह । रजे शोभायमान होता है । अजमल - महाराजा अजीतसिंह ।
५३. तपि - ऐश्वर्य । रजं शोभित होता है । श्रभमल
-
-
साहस । रीझ गुण- काव्य । कहावियों
श्रेष्ठ दान । खग - तलवार । मुरद्धर - मारवाड़ हुकूमत । विभो - वैभव । उरड़ प्रकास - सूरजप्रकास नामक ग्रंथ । ५४. खंड- प्रसस्तबलमीक - वाल्मीकि रामायण । हणूं नाटक - हनुमद् नाटक । श्रध्यातम - अध्यात्म रामायण । द्रोण परब - महाभारतान्तर्गत द्रोण पर्व नामक अंश । सारसुत - सारस्वत नामक व्याकरण । हिम- हेमचंद्र जैनका व्याकरण | हठप्रदीप - ( योग का ग्रन्थ ? ) |
महाराजा अभयसिंह । सुदन -
| श्रमल अधिकार, राज्य, दान । छक पूर्णं । सुरिजकहलवाया ।
-
-
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सूरजप्रकास
[ २७३
सूर संगार' विनोद वीर धरम सासत्र धारण । अलंकार खट भाख, विवध भाखा · विसतारण । कवि किसब रागमाळा सकळ, व्रहम गीनांन वतावसी । सूरिजप्रकास गुण सीखसी, अतरा गुण तै पावसी ।। ६५४
कळपबिछ सुभ करण, सूर दाता रिझवारां । नाट - साल उर तणौ, सूब कायरां गवारां । गहर पूर बह गुणां'', महा कवितां मन मोहै ।
राजां अनि राइयां' २, सीस गज अंकुस सोहै । प्रगट सी दस दिस ऊपर, तिको' 'अमर धर अंबर तिम । सूरजिप्रकासि' 'अभसाहरौ', जास सूरज'८ प्रकास' जिम ।। ६५५
हा.
सत्रैसै १ समत२ सत्यासिय २३, विज२४ दसमी२५ सनि जीत । वदि६ कातिक ७ गुण वरणियौ २८, दसमी वार अदीत । वणियौ ६ गुण इक व रस विच, उकति अरथ अणपार । छंद अनुस्टुप करिउ जन, सत पंच सात हजार ।
१ ख. ग. शृंगार । २ ख. बिनोद। ३ ख. ग. बीर। ४ ख. ग. ध्रम। ५ ख. विविध । ग. बिबिध । ६ ख. ग. किसव । ७ स. ग. वतासी। ८ ख. सुरि । ६. ख. सूरि। १० ख. ग. बहो। ११ ख. गुणि। १२ ख. ग. राईयां। १३ ख. सीस। १४ ख. ग. दसै। १५ ख. ग. ऊपरा। १६ ख. ग. तिको। १७ ख. सूरजप्रकास | ग. सूरजप्रकासि । १८ ख. सूरिज। १६ स्व. ग. परकास। २० ख. दोहा । ग. दौहा। २१ ख. ग. सत्रस। २२ ख. संबत । २३ ख. ग. सत्यासीय । २४ ख. बिज। २५ ख. ग. दसमि । २६ ख. बदि। २७ ख. ग. कातिग। २८ ख. बरणीयौ। ग. वरणीयौ। २६ ख. ग. बणीयौ। ३० व. बरस । ३१ ख. ग. विचि । ३२ ख. अनुष्टुप् । ग अनुष्टुप ।
९५४ ब्रहम-गीनांन - ब्रह्म-ज्ञान । ६५५. कलपविछ - कल्पवृक्ष । नाटसाल - जबरदस्त | गहर - गांभीर्य । प्रभसाह - महा
राजा अभयसिंह।
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२७४ ]
सूरजप्रकास
'अभा'तणो सुभ नजर अति, वधि' छक सुकवि विधांन' । कुरव दांन लहियो' अधिक, कहियौ' करणीदांन ।। ६५६
कवित्त छप्पय हरख घणा छक हूंत, कहै गुण घणा कवेसर' । जंग घणा जीतसी, महाराजा राज ईसुर । मुलक घणा दाबसी, घणा करसी सुख विद, घणा ।
घणा लाख पसाव, घणा देसी गज सांसण । 'अभमाल' घणा करसी उछब, कवि गुण घणा कहावसो । इम घणा वरसी तपसी 'गंभौ' प्रसिध घणा वद पावसी ।। ६५७
धुव सुमेर अंबर धरा, सूरज चंद सकाज ।
महाराजा'र 'अभमाल'रौ, रिधू इता जुगराज ॥ ६५८ *सूरज' हूंत प्रगटयौ करण", सुण्यौ ५ सवेही" लोइ । 'करणै सूरज' प्रकास किय, रस अदभुत है सोइ ॥ ६५६
१ ख. बधि । २ ख. ग. बिधान। ३ ख. ग. लहीयो। ४ ख. ग. कहीयो । ५ ख. ग. कवेसुर। ६ ख, ग. माहाराजा। ७ ख. राजेसुर । ८ ख. वरस । ६. ख. वृद । ग वृद। १० ख. प्रति में यह शीर्षक नहीं है। ग. दोहा। ११ ख. सूरिज । ग. सूरझ। १२ ख. ग. भाहाराजा। १३ ग. सूरझ। १४ ग. करन। १५ ग. सुन्यो ।
चिन्हांकित पंक्तियां 'ख.' प्रति में नहीं हैं। १६ ग. सर्वही। १७ ग. करने । १८ ग. सूर। १६ अद्भत। २० ग. सोई ।
६५६. प्रभा - महाराजा अभयसिंह । छक - जोश, उत्साह । ९५७. कवेसर - कवीश्वर, महाकवि, कवि। दाबसी - अधिकार में करेगा। प्रभमाल -
महाराजा अभयसिंह । गुण - काव्य, कविता। तपसी- ऐश्वर्य का उपयोग करेगा।
अभी- महाराजा अभयसिंह ६५८. धुव - ध्र व । सुमेर - सुमेरू पर्वत । अंबर - प्राकास । रिधू - अटल । ६५६. लोइ - लोक। करण- कवि करणीदान ।
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सूरजप्रकास
9
ग्रहपति सूर प्रकासते, बहिर दिवस रूपक सूरज प्रकासतै, अंतर नित्त
इति श्री महाराजाधिराज महाराज राजेस्वर * स्त्री स्त्री स्त्री स्त्री स्त्री प्रभसींघजी रो ग्रंथ नांम सूरज - प्रकाम कविया " करणीदान रौ कहियौ संपूरण सं० १० १८०७....
१ग वाहिर । २ ख. माहाराजाधिराज । ३ ख. ग. महाराजा । श्वर । ५ ख. ग. प्रभैसिंघजी । ६ ख. सूरिज। ग. सूरझ । ८. करनीदांन । ख. ग. संपूर्ण । १० 'ख' प्रति में नहीं हैं । मातोतम । यहां पर 'ख' प्रति में || श्री रस्तु || || श्रुभं भवतु || || श्री ||
प्रकास ।
उजास || ६६०
-
नोट: - 'ख' तथा 'ग.' प्रतियों में यहां से श्रागे लिपिकों के लिखे हुए निम्न वर्णन अलगअलग मिलते हैं: -
[ २७५
'ख' प्रति में :
संवत् १८८४ रा फाल्गुण शुक्ला । १५ । शनिवासरे || लिखितं बोडा मगदत । योध नगरे | मानसिंह राजे शुभम् ।। सूरजप्रकास ग्रंथ संख्या । ६२२४ ।। लेखक पाठकयो । 'ग' प्रति में:
मासे प्रासाद मासे शुक्ल पक्ष षष्टी ६ तिथौ गुरुवारें पोथी महाराजा श्री श्री श्री श्री सधजीरी || लिषतं । रामचंद सेवक चोथरांम सुध करतव्यं वध्नोर नगर मध्ये लिपि कृत चातुर्मास करतव्यं । माहाराजाजी श्री प्रषेसींघजी दीर्घायु । मंगलं लेषकानांच | पाठकानांच मंगल | मंगलं सर्वलोकांनां भूमि भूपति मंगलं ॥ १ ॥
॥ कवित्त ॥
1
1
तुम प्रवीन विध्य जथा योग्य जानु सब गुन के गहिया हित सब सु विचारों हौं । लीये "सुभ रीत विपरीत कह बीसं नाह्य परम सुग्यांन विध्य सबै उर धारौ हौं । पर उपगारी रीत संत सब मिल प्राई, सोय श्रम तुम धरे कारज्य सुधारौ हौं । सकल अरथ ठाकुर श्री सिंघजकु सुफल, फलो थिरता हमारी करौ सबै गुन धारौं हौं । १
४ ख. राजराजे
७ ख. ग. कवीया । संवत १८४१ वर्षे
इति श्रुभ भवतु वल्याणमस्तु लेषक पाठक दीर्घायु वाचं भणे त्यांनु भ्रास्त्रीवचन राम राम वाचसीः ॥ श्री ॥ 11 277 11 ॥ श्री ॥
६०. ग्रहपति - सूर्य । उजास - प्रकाश ।
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परिशिष्ट १ नामानुक्रमणिका
अंगद ७१, अंगरेज १८७, २५३ अंगारक ११७ अंतक ४६ अंध (अंधकासुर) २५, २६ अंधक २४६ अंबानयरेस १५८ प्रखतेस १६६ प्रखमल २४१,२४३ अखमाल ८६, १३३, १५० आखा १११ अखावत १४६, १५६, १६६ अखाहर ५२ अखौ ११०, १२०, १४३, १४७, १५०, - १८६, २०४, २०७, २४४ प्रचळावत २१०, २१२ प्रचळेस ८६ प्रछर २४७ प्रच्छरा ४३ अछरा २४७ अजंबा २२७ अंजन २४१ प्रजन्न ५६, १८२ प्रजंब २२७ प्रजबावत ७४, ११८, २२२ अजबेस ६३, ११८, १४७, १५३, १५४ अजब्ब ६२, ६३, ६०, १४६, २२७ अजमति १६४ प्रजमाल २७२ प्रजा १६७
प्रजावत ४५,१२२.१५४, १६१, २२२ अजीत २०१ अजूब १२ अजै-कपि ११३ अजौ १३२, १४८, १४६, १५० अणंद ६३, ११६ अणंदावत ६६, १०६, ११०, १५०,
२१६, २१६ अणदेस ७१ अरणदेस ६१, ६३, १३३, १३७, २०१ अणदौ १२७, १६५. २०६, २२६, २३४ प्रण-वत ११८ प्रवीत २७३ प्रध-राज १६६, २३४ अध्यातम २७२, प्रनपाल ६५, २१२, २१३ अना २४६ अनल-पंख ३७ अनोप ६०, १०६, ११२, १३७, १६१,
२१२, २४४ अनावत ६४, ७३, ६७, ६६, १२२,
१३८, १४७, १५०, २१६ अनुस्टुप २७३, १५०, १५१, २०७,
२१६, २३२ अनौ ६३, १०६, १४०, १४७, १५१,
अपच्छर २०५ अपछर २४६, २५४, २५५ अबदार १६३, २३४ अबदुलरजा २५६ प्रबरस १२ प्रबलक्ख १२
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प्रबा १६३ अबू गिर १५६ अभ १२५, २७४ प्रभ-ऊत ६१ प्रभपत्तिय ३६ अभपती २२ प्रभमल १, २३, २५, २४४, २४५, २४७, २४८, २५२, २६०, २६२,
२६५, २६७, २७२ प्रभमाल २६, ३७, ४१, ४७, १२६,
२००, २४८, २४६, २५०, २५१,
२६०, २६१, २७४ प्रभमुन्य १०६ प्रभम्मल ६२ अभयसींघ १७ प्रभ-रांम ८१, २५८ अमरीम ८० प्रभसाह ४, ४६, २७३ प्रभा २१, २४, ४४, ७७, १२५, १३६,
१६५, १६४, २४५, २४८, २५६,
२६२, २६५ अभायण २ प्रभावत ८६, १२७, २०१ प्रभ ३, २२, २४, २५८, २६१ प्रभैमल ४१, ४८, ६५, ६८, ७७, १५५,
१६७, १६३, २७२ अभैसींघ २२, ४४, ४६ अभौ २, ४१, ७३, १२३, २१६, २१६,
२२५, २६०, २६३, २६६, २७४ अमर २३६, २४१ अमरा १७१ अमरा-पुर १५५ अमरावत १०७, १३४, १४५, १६१ अमरेस ५८, ११२, १५३, १५७, २६६ अमांन १३३, १६१ प्रमावस ३८ प्रम्मर ५८,६४, ७३, १५६
अम्मरलोक ५६ अम्मरसींग १५१ अम्मरसींघ ६८, ११० अम्मरसोंघ १५७ परजण २४२ अरज्जण ५७ अरधनारी नाटेसुर २५४ अरब १०, २८ अराबा २६३ अरिज्जण-साह ८६ अलमसतखांन २५६ अली २८, ४०, १०३, १६७ अली-प्राबध २५८ प्रली जमाल २५८ अली महमंद १०३ अल्लाह ३४ अल्ली जनांद ४० प्रबदार १६३ असटम्मी २ असत-खांन २५६ असपति २६७ प्रसप्पति २६६ असमेघ १८१, १८६ असुर (मुसलमान) ४१, १५४, १९५,
२१०, २१५, २२५, २३७, २३९, २४६, २५४, २५५, २६०, २६७ असुरांण (मुसलमान) ६६, १७५, १९७ असुरायण २६१ अस्टंग २७२ अहमंद ७२, ७८ अहमदपुर २६५, २६६ अहमदाबाद २५४, २६४ प्रहमदसहर २६० अहिरण १७
प्रांमखास २६४
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ई
ईद २३२ ईडर २७१ ईरान ३० ईस ७१, ६६२ ईसफहां ४ ईसफा ३३ ईसर ७६, १४, १३१, २०७, २१६,
२२८, २३४
प्रामदीवांण २६१ प्रागरा २६४ प्रागरै २६४ प्रागाम्रजाद २५६ प्राणंद ६४,६१, १३३, १९१ प्राणंदरांम १८४ प्राणंदसिंघ ६५ पाणंदसी ६३ आबनूंसी १३ भारकट्ट ५ मालातीन १० प्रावधानली ४० प्रासकरन १०५ प्रास. १९४ प्रासफा ४, ३३ भासल १७२, २३१ प्रासाखा २५४ प्रासावरी १६ प्रासुर (मुसलमान) ४
उगरावत १५१ उगरेस १५३ उग्रसेण १५३ उजबक २५६ उजबक्क ७७, २५२ उजैणिय १६१ उजैण २६८ उज्जबर २६६ उद १६४ उदावत ७१, ७३, १०४, ११७, १२०,
१२१, १३४, १४२, १४५, १६६ उदगिर १८५ उदैचंद १७३ उदसिंघ १८४, २०८ उदौ ५८, १३३ उमेद ५७, ६४, ७४,६२, १११, ११८,
१२८, १४६, १५१, २७० उमेदक ६७, १२०, १३२ उमेदह १२३, १३३, १३७ उरजण १२३ उरज्जसिंघ ७५
इंदर १०७ इंदौ १५६ इंद्र २५६, २५७ इंद्रजीत २ इंद्र धानख ६ इंद्रभाण १३४, १३६, १४५ इद्रसाह १२२ इंद्रसिंघ ६३ इंद्रसींघ २२७, २३७, २३८ इरांण २६२ इरान २५६ इनतुल्ला १६४ इमाम ४ इसथांन २५६
ऊव ५३, १४, १०८, १११, १३०,
१३१, १७४, १७६, २२१, २२६ ऊदक १३०
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ऊवभाग १४३ ऊदल ६०, ६७, १८, १२३, १२६,
१६१, २०६, २०८, २२३ ऊदलसाह १६० ऊदह १२१ ऊदहर २४५ ऊदहरा ११३, २२१ ऊदहरौ ११६ ऊदावत ६५ ऊहड़ १४१, २२५ औरग १६२
कंठ २६८ कंठराज २६८ कचरावत १२८ कछवाह ६२ कछी ११ कजलीवनि ५ काजांका १६४ कठियांण ११ कनको २१२ कनह १०२ कनौजां ३४ कन्न ७६ कन्ह २६ कन्हावत ६६ कपाळी २५२ कपिराज २ कपिराजा २,३७ कबडी ३६ कमंध २, २३, ३० ५७, २५६ कमंधज ८१, ११७, १२६, २६८ कमंधाय ७६ कमध २५३ कमधज १, ४०, १९६, २३६ कमधज्ज ५७, २०६, २१४, २१६
कमधज्जयं २३६, २४० कमधाण १६७ कममेस १२३ करण २७४ करणसिंह ५१ करणीदान ७४ करणेस २१६ करणे ७४, २७४ करणोत ६५, १२३, १२८, १४६. २१७,
२२२ करणो २१६, २२०, २३० करन २१५ करनाजळ ५१ करनी २३१ करनोत १२३, २०१ करनौत ७१ करनी २१७ करन्न ६७, ११०, ११८ करमसिहोत २२३ करम्मसियोत २२३ करीम १६५ कलम (मुसलमान) २४७, २५३ कलम्म ३३, ६७ कलावत ८४, ६७, १८, १३३, २२३ कलित्री ६६ कलियांण ५३, ६१, ६४, १३१, १३५ कलो ६१, ७२, ११९, २२८, २३३ कल्याण २३३ कसमीरखांन २५६ कांन ६६ कान्ह ६७, १३३, २०६, २१३, २४४,
२४५ काजम २५६ कागड़ा १२ कातिक २७३ कादमतेस १३४ काबिलसींघ २१.
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[५]
कायम्म ३, ४० कासिम २२१ किती १३१ किरतेस ६१, २०८ किलम ४, २८, २०३, २०५, २०६,
२१२, २१६, २२३, २३३, २५५,
२६० किलमांण २२, ६६, १३४, २३०, २४२ किलमाक १६० किलमेस ६३, १५६ किलम्म ३४, ५५, ८६ किलम्मक ११२, १५७, १७४ किलम्मेस ३१ किसन १६४, २४१, २४४ किसनावत ७२, २१६, २२३ किसनेस ५५, ६०, १२८, १५६, २४५ किसनो २४१ किसन ५५, १३३, १३६ किसमसी १२ किसोर ६०, १३८, १४८, २१८ कीरतसिंघ ६४
कुंपावत ६६ करम १५८, २४५, २४७ केत ४४, ४८ केसरीहि १६१ केसव १३८ केहर ५६, ६७, ६८, १४८, १५२,
१५८, १६१, १६२, १६४, १६७,
१६८, १८४, १८५, २२६, २३० केहरि ५८, ५६, १०८, ११०, ११६,
१३७, १४७, १६७, २३२, २४२ केहरिया १८५ केहरियो १६१, २२२ केहरी १२, २३७, २४१ करवा ३० कोम २ क्रन २०१
नोत १४८, २०१ ऋन्न ५१, ५७, १०४, ११०, १३५,
१३७, १४६, २०१, २०२, २३०, २४५
कुंभावत २३१ कुज रक्कबंग २५६ कुजाबत १५४ कुतब २५६ कुमैत १२ कुरांण २६, ३३, ४० कुसळसिंह ५० कुलावत ६६, ११२, ११८, १४३,
१५४, २२६ कुलळाहर ८१ कुसळेस ५०, ५१, ६०, ७२, ७४, ७७,
८६, ६०, ६५, १५२, १५८ कुसळो २२८ कूप ६८, ८०, २१३ कूपहरा २१५, २४५
खंड प्रसत बलमीक २७२ खंडीवन ५० खघार १० खंधारी १० खगेस ६१ खड़गावत २१५ खड़गेस ७२, १३१ खांखी बंधां २५३ खवास १८४ खान ८१, ८३, ६, ६१, ६३, ६५, ६८,
११८, २२६, २३२, २५६ खांन बहलोल २५६ खांन सिरदार २५८ खिड़ियो १७१ खोचिय १८४, २३४
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गिरधीर २३४ गिरमेर ६४, १३५, १४४, २०४, २१०,
खोम ७६, १६०, १७७, २१०, २१३,
२६६ खीव करन्न १४७ खीमनां २२२ खुरसाण ५२, ७१, ८२, ६२, ६८, १३६,
१६४, २३६ खुरासांण ४, खेत १३५, १६५ खेतल १४६, १५०, १७१, १६४ खेतसियोत १४३ खेम ६४, १२७, १३५ खेम करनि २२८ ख्य सळहचंद १८२ ख्वाजा बगस १६४
गंग १६, ८४, १३७, १४०, १७६,
२३६ गंग-धार ५४ गंगेव २० गजण २३८ गजपति २४७ गजबंध २३८ गजसाह ६८, ७४, १७, १५२ गजसींघ १३४ गजावंत १६० गजौ ६६, १४७ गज्जर १०५ गरीबहदास १२२ गहलोत १६१, २३४ गाजीयसाह ११० गाहड़मल्ल १७३ गिरद्धर १३१, १७४ गिरद्धरदास १७४ गिरधर २५ गिरधार १७५ गिरधारिय १७५
गिरसुता २५५ गुजरात २७२ गुज्जर २६६ गुणदास १४३ गुमान ६०, १००, १०६, १०६, १३४,
२१०, २१५, २२६ गुरड २३, २५ गुलजार १२ गुलमीर ३ गुलमीर खांन ३ गुलहसन २५६ गुलाब २३६, २४० गूजर. ३३, १८७ गूजर-खंड १८७ गूजरा ३३ गोकळ ३८, १३१, १४६ गोकळऊत १८४ गोकळदास १५३, २११, २४०, २४१ गोपाळ १८३ गोपियनाध १२३, १३२, १४७ गोपै १६४ गोयंद ६२, १४० सोयंददास ६८,११८ गोरख १६७ गोरखदास १६७ . गोरधनोत १२१, १४८, १६० गोवरधन्न ६१, ६८, १२२, १५५ गोविद २३ गौदावत ६५ गौरधनोत १२० गौहर २५६ ग्यांन १०६, २१८ ग्रीखम २४, ७५, १४८, १८४
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घासी १८४
१११
bo
वारण २२६
ध
चंग १०
चंद ७१, ७३, ε६, १४०, १४३, १५०,
१७८, १६३, २०५
चंदण ३७
चंदहरौ ८९
चंद्र १६५
चंद्र भांण १५८, २१८
चंद्र - सेण चंद्रहास ७३
चंपा १३
च
चकवा १२
वह १०६
are (चगयां ) २२६, २३१
चतुरावत १३४
चतुरेस १४८, २०२ चत्र-कोट १५८
चत्र- भुज ७१, ८६
चमराळ ४६, १०६, १२३, १३७, १६६
२२४
चरख ६
चरख-दार ८
नई १०
चहाण १७५
चहुवण १५५
चह्वाण १५५, १९३, १९४
चाणूर २४१
चांप २११
चांपावत ४६, ५०, ६६, २१४
चांमंड-पूत २०
चारण १६७, १७२ चाळक २७०
I
चीन ५
चुंडावत १३२
चुगल (चुगलां) २१३
चुवण २२८
चूंप २१३ चूर-स्यांम १७
चूहड़-खां २५८
चूहड़ खांन ८१ चेचि १०२
चैन १५८, २२१ चैनकरन्न १२७
चौडा ४६
चौळावत ६४
चौसट्ट २५१
छतौ ६२, ७०
जगड़ १६५
जगत २२४
जगतायत ६६
जगतेस ६०, ७६, १४७, २१५ जगतौ २२४
छ
जगनाथ ५७, १३६, २५४ जगतपति २४२
ज
जगमाल १५०, २२८, २२ε
जगरांम ६१, ६३, ११६
जगौ १५१
जटाळ २५०
जटियाळ २५०
जगराज ६५
जगरूप ६८, १३६, २२४
जगसाह ६०
जगावत ६३, ६४, १४०, १४५, १४७,
१५०, १५८, १५६
जडळग २३७
जनमेज २५६
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________________
-
-
.
..
..
..
जाम २७१ जागावत ६४ जाड़ेंचा २७१ जादव २२८ जालंधर ४५ जालम २३७ जालमौ २३७ जालिम २४० जालिमा २३७ जालिमसाह ६७ जिलहरी १३ जीवण ६९, १२०, १४५, २०२, २३२ जीवणदास ६४, ८८, १२०, १४३,
.
जमंद १३ जमजाळ ११५ जमधरं २४६ जमसेरखांन २५६ जमान १३७ जमीखांन २५६ जयचंद १ जयतेस २१० जयदेव १६२ जयराम १७२ जयसाह १२२, १५८, १८४ जयसींघ १४६ जरकसी २६५ जळंधर १५८ जलाल १६५ जलो २१६ जल्लाल १६४ जवन २०१, २०३, २१५, २१६,
२२१, २२२, २२४, २२७, २२६,
२५१, २५५, २६० जवनांण १८२, २०७, २१०, २२२ जवनेस ५८, १३१, १४०, १६६, २०८ जवन्न १११, १८१, २७० जवांन ८१.११८, १५७, १७६, २१४, जसकरन्न १२८ जसकन्न ६५, १३१, २१४ जसराज ८५, ११६, १४०, १६८, १९१ जसवंत ५९ जसा ८६, १३६, १६१ जसावत ६१, ७३, ६६, १०८, १०६,
११२, १३३, १४६, १४८, १५१,
१५६, १६६, २२६ जसावसिंह २२६ जस ११५ जसो ८५, ११६, १४८, २०७, २११,
२३३, २४२
जीवणौ १६५ जुझार १४७ जुगावत ११६ जुरा ११२ जुगिरण २५८
जुजठ्ठल ५२ जुध-हर १५८ जरावर ११६, १२०, १५७, १५६ जुराबरसींघ ११२. १२१ जूहार ६६, २७१ जेठ ३६, ७८ जेसळमेर २७० जैकरणेस १८३ जैचंद २६ जैत ६०, ६३, ७३, ८४, ८५, ८६, ६७
९६, १०४, १०६, १२१, १२३, १२६, १२७, १३१, १३५, १४१, १४२, १४६, १५२, १५९, १६०, १९१, २०४, २०७, २१०, २११,
२१५, २२०, २२४, २२६ जैतहमाल १३५
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जैम साह १२३
जैसलमेर १४३
जोग १२०, १३६, १५२, २१०
जोगणि २५०
जोगणी २५५
जोगारंभ ८४
जोगावत ६६, १०५, १६१
जोगियदास २०२
जोध ६५, ७६, ६६, १०० ११०, ११८
१३६, २१५, २२४, २३५, २४४
जोधहदास
जोधहर ११३
जोधहरां ११३
जोधाण १६
जोधा ४५, १११
नोधावत १०४
जोर २००, २१८, २४५
मोरावर ६६, ६८
जोरावर अंत ७३
जोरावरसिंघ ६१, ६३ जोरावरसध ६६, १०८
जोरों ६८,६६
ज्योतिष २६५
ज्योतिस २७२ ज्वालामुखी ३५
भ
कालांपति २७१ कुंभार ६२, १४८
शुभावत ७१, १०४
भूभार २११, २१५, २२८
मूंझ १०४
भूंझण २७०
झ झण २७०
भूझ २१८
ठाकुरसीह १७७, १८५
[ Č ]
डाकदार ८
डूंगर १४६, १४, २७० डूंगरसीह ७४
तंग ६६
तखौ २०४
ड
तरबूज २५६
तरियन्न ७६, ८१, ८२ तरीन ८०, ८२, ८३
ताजवली १९४
ताजीम २६१
तिमंगळ १२६
तिडां ३९
तिलोक ६४
तोड ३६
त
तुरक २२७, २६३
तुरकाण २१८
तुरकी १० तुरक्कांण १६८
तुछीवास १९२ तुळसी १६
तेज ५७, १००, १२१, १२७, १३७,
१६३, २०१, २१२, २२०, २२७, २४१
तेजकरन्न १२८
तेजल १४७, २२८
तेजावत ५६
तेजो ११२, १३१
तोड़ा २१
तोरण १०१
त्रिकाळदरसी २६५
थळी ११
थांन १३६, १७७
थ
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--------------------------------------------------------------------------
________________
दइवाण २३८ वईवांण ११६ दईवांन १० दक्ष ८४ वज्जोण ३१ दत्त १४२, २५४ दयाळ १८४ दरगह दरगाह २२ दरवेस २५६ दळकन्न १२८, २१७ दळपति १६१, १६६ दळसाह ६१, ७४, ७७, १५६, १७७,
२१५ दळसाहि १५५ दलावत ७३, १०७, १४१, १५४, १५७
२१८, २२२, २२७ दलावतसींघ १२२ वली ५२ दलौ ५२, ६०, ६३, १०७, १३३, १४६ २०२, २१७, २२५, २३७ दसमी २७३ दसे-कंध ३१ दांन १८, २१२, २४४ दिपावत १२०, १७३ दिली २६४ दिलीपत १६१ दीप ७७, ६५, १७७ दीपमाळ ३५, २६५ दुज्जणसींघ १५७ दुरंग ७४ दुरकेबा १० दुरगावत १२३, १४०, २२६ दुरजणसींग १५५ दुरज्जण १०६
दुरज्जण १४१ दुरज्जणसींघ १२३, १५५ दूजण २१६ दूद १५१, २१७, २४३ दूदहरौ ८७ देव ६५, १४६, १७८, १८०, २०१ देवकरन ६४,६६, १४७ देउक्रनोत १४८, २११ देवपुरा २२६ देवराज २३४ देवावत ७१ देविचंद १७७ देवियसींघ ५६, २१४ देवीचंद ११८ देवीसींघ २४२ . दौढियदार २३४ दौलतसाह २०८ दौलतसींघ १४, १५९ दौलहसींघ १५६ दौलियौ (दौलिय) १६५ द्रगपाळ २३, ३५ द्रोणागिर २३ द्रोणपरब २७२ द्वरावत १५० द्वरौ १४८ द्वारका २६६ द्वारमती १५०
धधवाड़ १६८ धनड़ १६४ धनराज १४४ धनरूप १७७ धनावत ५८ धनिये १६५ धनियौ १६४ धनी १२०, २१८, २३३
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ११ ]
धर-गूजर ६२, १५८ धरमावत १७१ धरा १७७ घवेचा ७८, १३४ धांधल १६०, २३३ धांधिल १८६ धांधू १६४ धावड़ १८५, १८६ धिरा १५५ धिराज १६६ धिराहर १७२ धीर २३१ धीरज २१७ धीरजसींघ २४१ धूहड़ ५१, ५४, १०६, १२०, १७२,
२२५, २४४
नंदलाल १८१,१८३, २३३ नंदी ८४ नकीब ४ नगारची १६५ नगौ १३२ नथम्मल १६१ नथौ १४० नधलवूत २१८ नबाब २६, ४० नब्बाब ६,३१ नरपाळ २३३ नरसिंघ ४५, ६२ नरांपति १५७ नरायणदास ६० नरावत १३८, १४०, १५० नरहर २४७ नरू १८४ नरूदर १५८ नरौ ६०, १३५, १८६
नवकोट ५०, ६२ नवलखांन २५६ नवलावत २२३ नवलौ २२३ नवल्ल १७१ नवसहस २१ नबी १६६ नारेसुर २५५ नाथ ५१, ६३, ८६, ६६, १०८, १२०,
१३०, १५४, २०६, २१६, २३३,
२४५ नाथौ १४५ नादाळऊत २१३ नायक १६४ नारद २६, ८०, १०६, १६३, १८७,
२५२ नाहर ५४, ६०, ६१, १०४, १२१,
१४१, १४५, १४६, १५२, १५५,
१६१, २२६ नाहरखा १३८, १६१ नाहरखांन १३३, १६६, १८७ नाहरऊत १५२ नाहरसाह १५२ नाहरसीह १२१ नाहरौ १९५ निजर १६५ निबाब ४५, २७० निलागर ४६ निसाट १५६ निसार ८६ नीबाहरौ १२४ नेण (नणसी) १७८ नौकोट ३०
प पंचकल्याण १३ पंच-मुख २११
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[
१२ ]
पंचोळिय १८२, २३२ पंड ५२, ५६ पंडव २१६, २४५ पंडवेस ७१ पड़दार १६५ पड़िहार १६१, २३४ पट-सिचांण १३ पटौ १०१
पाराथ ३७ पाळ १३७, १८४ पालखी नसीन २६१ पावस ५ पासहवान १८४ पाहड़ २२३ पाहड़सींग ११८ पित १०६ पिथा १८३ पिथावत १३६ पिराग १५८ पिरोहित १६१ पिळा-अखतेस १६६ पीथ २१३, २३१ पीथल ६३, ७०, ६०, १४६, २१०,
पठाण ४०
पतझड़ २६४ पतसाह १६७ पता १३६ पताळ ३५ पताक्त ५६, १७, ११३, १२२, १२३,
२०२, २२६ पतौ १००, १०३, १११, १४५, २०१,
२०२, २१३, २२० पथ २१ पदंम २४७ पदमे २४७ पदमेस ५६, ८३, १२३, १४०, १४६,
१५२, २०८ पदमौ २०८, २१२, २१५, २२२ पदम्म ५७, ६६, ७३, ७५, १०७, १४५
१६२ परताप ५६, ६१, १०२, ११२, ११८,
पीथल ऊत ६५ पीथावत ११०, १३६ पोर ३३ पीरसा पैक १६५ पोरसाह २५६ पीरोज २५६ पुर डूंगर २७० पुरांण ३३, १४२ पुरोहित २२६ पूबू ५४ पूर २०६ पूरणसींघ १३६ पूरब १६४ पूरबियौ २२६ पूरविया १४१ पूरब्ब ५ पेम ६५, ६६, ११६, १२१, २००
२२६, २३८ पोम १७७ पौस ११४
परी १८, १०७, २०३, २५२ पांडव ३०, १३१, १८२, २४१ पातल ६५, १५१, २४५ पातलसाह १४६ पातौ १०३ पाथ ४६ ५८, १०३, ११०, २२४ पारकरेस २७१ पारथ २२० पारबती २६
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[ १३ ।
प्रताण १५३, १६२, २१० प्रथिराज २४१ प्रथिीसिंघ ७० प्रळे काळ २ प्रिथीराज १५० प्रोहित १८३
फतमाल ६३, ७०, १४८, १५३, २१० फतावत ६४, ६८, ७०, ७५, १०८,
११०, १२३, १४८, १५०, २१७ फतै २३२ फतेचंद १७३ फतैपुर २७० फतौ ५६, १०४, १२१ फरस २५६ फाग ११४, १२६,१८५ फागण ५० फातमा ४ फातिया २८ फिरंग ५,२८ फिरंगांन २७ फिरंगिय ३८ फैजुला २५६ फौजदार ६
बखतेस २, ६५, ७३, ६१, ६३, ६५,
१४६, १७१, १६२, १९६, २००,
२०१, २०६, २१६ बखतौ २१०, २२३ बगसावत १३८ बगसी ३ बगस १६५ बगसौ ७२, २१७ बछराज १२०, १७८ बदरौ २३३ बद्रियदास १४० बद्रियसिंघ ७१ बद्री ६८, १३४ बद्रीयदास ११२ बलावत १३४ बलि ११४ बलुखांन १६४ बहलीम ८० बहादर ६२, ६५, ६७, १२०, १६४
२२८, २३८, २४०, २४३ बहादरऊत ७२ बहादरसाह ६५, १५२ बहादरसींघ ६१ बाघ ११८, १४७, २१२, २१९ बारट १६७ बारठ १७१ बारहठ २३० बालकिसन १८२ बावलि ११४ वासग २४६ बाहादरऊत ८६ बिजावत ८९ बिलंद २६० बींझ ५ बुध २४४ बुलगार २३
ब
बंकीयदास १४२ बंगस्स ६५ बंगाळ ३६, ६८, १४३, १४४, १६६,
२५० बंगाळक १८, ११२, १५८, १८५ बॅगाळिय १२६ बखत ६६, २३५ बखतसींह १९६ बखतसी १५१ बखतावत २०६ बखतावर १२
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[ १४ । बधौ २०६
भीमड़ा ११, २४१ बुलाखांन २५६
भुजनगर ११ बैताळ २६
भुजनेर २७१ भ
भूम ८६
भूपति १३६ भंडारिय १७४, १७५, १७६, २६६
भूपाळ २४२ भंडारी १७४
भूम ८८ भगवंत ७६, ६१, ६७, १६४, २४१, २४७
भैरव ५४, २४३ भगवान ६६, ७१, ७६, १३३, १३०,
भैरवदास १०२ १४७, १५२, १८९
भोज ७४, ६३, १३७, १३६, २०४ भगोन २४२
भोजहरा १३० भटी १४४, १४६
भोजावत १८६ भदाबत १३२
भोम ८७ भव १२१ भवसींघ २०४ भवानियदास २२७
मंछ २२८ भांज १३६
मंजुघोखा २४७ भांण ५१, ६६, १०८, १०६, ११२,
मंडळा १३८ १२३, १३५, १४४
मंडळौ २२५ भांण-पसाव ४१
मंडोर १४३ भाउ ७६, ६४, १२१, २२०, २४५
मंडोवर १४३, २४४ भाउएदास १५२
मछरीक १५६, २०२ भाऊ ५७, ६३, ६६, १५२
मदन ६४ भाखर १३८, १५१
मधा ७५, ८२ भागचंदोत १३८, १६०
मधावत ६४, ७६, २५१, २०२, २२६ भागवंत १६, ३३
मधौ १४६, २२२ भाटिय १४३, १५१
मनरुप २०७, २०६ भाद्रवा ६,३४,३६,३८
मनप १४० भायण १६१
मनोहरदास १३३ भारथ १६, ३३, ५६, १५६, १७३
मन्त्रौ १६३ भारसिंघ २१६
मरू ११३ भारमलोत १३६ भारहमल २२५
मलानूर १६६ भिमाजळ ५५
मलियागिरि १६० भीम ५७, ६३, ७०, ७१, ७२, १००,
मलेगिर ८७ १०८, १२६, १३४, १३६, २०४, मवातीखांन १६५ २१४, २१६, २१६, २२६, २४२ | महक्रन १२६
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[ १५ ]
महन्न २०१ महता १८३ महमंद ४, १०३ महम्मद १६६, २५६ महम्मदसाह २६६ महरांण १११, १७०, २१६, १६६ महरांपति १८८ महवेंच १३५ महापति १८६, १८८ महारिख ६७ महिक्रन १५१ महिन्न १५१, २३३ महियार १७१ महिरांण १५६, २०८, २४७ महीमुरतब ७६ महुनौ २२७ महोबतसिंघ ६७ महौकमसींघ १०० मांगळिया १६०, १६३ मांगळियौ २३२, २३४ मांडण ६४, १३३ मांडणोत २१३ माणिक १०२ मांन ८, १०, ११६, ११७, ११८, १४७, १५०, १९२, २१४, २४४,
२५८ मांनड ८१, २४५ मांनड़खान ८१ माढ १५३ माधव ७३,१५७ माधवदास १५४ माधवसाह १५४ माधवसींघ १११ माधावत ६३ मायल २५६ माक्षराव ४६
मारुव २५२ मारू ११८ माल ५३, १०८, १४६, १५८, १६२,
२२५ मालवी ११ माल-वीख १६ माहव ४६. ५६, ७३, ८८, १०६, ११०
१३१, १३५, १३७, १४८, १८२,
२०२, २१६, २२५, २२६, २३१ माहबसाह १०८, १३७ माहसिंह ४६ माहियदास १७७ माहेव ११ मिरा १२२ मीर ५०, ६४, ६७, १०७, ११४, १३६,
१४६, १५०, १८७, २३४, २५७, २६४ मुकंद ५३, ११८, १२८, १५१, १७०,
१७६ मुकंवावत १४०, २०२, २१३, २२४ मुकदेस ६४, ८५, १५४, १६८, १६६ मुकंदौ १५१ मुकनेस १३५, १३६ मुकन्न ७४ मुगळ २७, १८२, २१३, २३२, २३६,
२३८, २३६, २४७, २५२, २५४,
२५६. २६०, २६१, २६४ मुगळांण १०८, ११६, १२२, १४२, २१९ मुगळाणियां १ मुगळाळ २२२, २५७ मुग्गळ ५२, ५३, ६६, ७०, ७२, ७७,
७८, ६१, ६.५, ६८, १०२, १०६, १०६, ११६, १२५, १३५, १४०,
१८२, १६१, २०६ मुजाईद १६६ मुनि-इंद्र २४६ मुनिराज २०४
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--------------------------------------------------------------------------
________________
मोमना १० मोहकम २३६ मोहकावत १४ मोहण १२१, १५७, २०६ मोहणसींघ १२०, १५६ मोहनदास १०८ मौतब २५६ मौहकावत ६३, १४ मौहक्कम ६१ मोहौकम ऊत ९६ म्रिधौ १६५
मुनेस १६५ मुन्यंद २४३ मुरद्धर २७२ मुरधर २६२, २६७ मुरघरा ११ मुरळी १६५ मुरहरी १३ मुरारिय १५४ मुलाबार ५ मुळावार १० मुसको १२ मुसिद १० मुसैद १० मुहको २६६ मुहक्कम १३६ मुहणोत १७८ मुहम्मद २५६ मूंगळ ११६ मूगळ ८४, ११७, १२०, १२१, १४०, १५१, १५३, १५५, १५६, १६३,
१६८, १७१, २१९, २२८ मुजायद १६४ महम्मद २६४ मेघ १३६, १३७, १४८, २२४, २२६ मेघडंबर ७, २७ मेघडमर मेडतर्नर ७७ मेड़तिया ७७, ८२, १००, २०३, २११ मेड़तौ २४४ मेर-गिर २१ मेछ ५१, ६४, १३६, १४६, १५१,
१७०, २०६, २१०, २१३, २१४,
२१५, २१७ मोकम ५७, २०६ मोकमसींघ १४७ मोकळऊत ८५
रंभ ३०, १८, १०६, ११३, १५५,
१६५, १८८, १६०, २०६, २०८,
२०६, २२०, २४६, २६२ रंभा ३४ रगतवंसी २३६ रघु ७२, २५८ रघुनाथ ४१, ७८, १२१, १८०, २१२,
२१४ रघुपति २४ रघुवंस २७२ रजपूत २५४ रणछोड़ १६३ रणधीर १४६ रणावत १३४ रतन २५, १५४, २४१ रतनागर ७१, १६१, १७६ रतनावत २०८, २१९ रतनेस ६१, ८६, ६६, १७६ रमाइण १७३ रमाकंथ २५ रमायण १६ रयण १६५ रळीयावर ४७ रवद २०६, २०८, २३८, २३६, २४०,
२४४, २४५, २४७, २५१
Page #401
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ १७ ]
रखवायण २६१ रवदाळ २, ३०, ३५, ४४, ५४, ५७,
६०,७१, ८६, १२६, २३२, २४२,
२४५ रसा १७६ रसावत १४६ रसौ १५४ रहमतुला २५६ रहमाण ६६ रांणइ 8 रांणग १५७ राणियवास १२ राम २, २८, ३१, ३५, ३७, ४८, ५६,
६३, ६७, ६६, ७०, ८६, १८, ११६ ५२१, १३६, १५२, १६२, २००, २०४, २०६, २०७, २०८, २१०, २११, २१४, २२२, २२८, २४०,
२४१, २४२, २४४, २५६ रामचंद्रेस १७३ रांमचंद्रोत २०८ रांमणा ६४, २३६ रामनबाब २६० रांमसी ६३ रामायण २, ४१, ४० रांमौ ७३ रावण २,२०, ४५ राइद्रह ११ राउद्र ११ रागमाळा २७३ राघावत ६५ राजखां १९५ रांजड़ ५१, ५७, ६९, ११३, १२३,
१३६, १४६, १६५, २०७ राजड़-ऊत २२० राजड़े २४४ राजसी २४५
राजाधिराज १९६ राठौड़ ८० राफजी २८, ३३ रायपाळ १४१, २२६ रायमलोत ६२, ८५ रायसिंघ ६५ रायसींघ ६६, २२० रावळ १३५, २७०, २७१ रासावत ५६ रासौ १३१, १५० राह ४४ राहदार १६ रिख ४७,७६, ८३, २०२, २६२ रिख-राज २०८, २५२ रिण-छोड़ ६२, १४३, १५४, १८०,
१६२, १६४ रिणाजळ १७६ रुंडमाळ १०६, १४२ रुघनाथ ६०, ६८, २४५ रुघौ १३१ रुदावत ६२ रुद्र १२७ रुद्रग्गण ८४ रुद्रायण १८७ रूप १५०, १५३, २३३ रूपहरा २२५ रूपावत १४० रूमहरी १० रूम ८२, ८६ ६३, ६६, १०७, ११८,
१२१, १४१, १४७, १५०, १५३, २१२, २१६, २२६, २२७, २३२,
२३३ रेंणायर ५७ रैवत पसाव १६६, १६९ रंण ११६, १३५, १३६, १७८, १७६,
१८०
Page #402
--------------------------------------------------------------------------
________________
व
परद
[ १८ ] रेणातर-ऊत १८३ रैणायर १७६
वंको १४१ रवा ५
वंदावनदास १३८ रोद १०८, ११०, ११५, ११८, ११६, वक्खत ७१ १२२, १४४, १४६, १५०, १६५, वखत १५४ १६२, १६३, २४८, २५१
वखतावर ७६ रोद्र ५२, ७८
वखतेस ५६, ६६ रोसन अलाह २५६
वनराज २२६ रोसनी १०, १२
बनराव ६७ रोहड़-रांण १६७
वनिराज रोहड़ियौ २३०
वमल्लिय ७८ रौंद ६५
वरंगन १८५ रौद ४६, ६७, २०७, २०८, २१३
वरसाळ २ रौदाळ २५०
वरसींघ २११ रौद्र ७८
वला १५८ रौद्रव १५६, १८४
वसंत ४१, ८२, २५२ रौद्रांण
वांको १४१ वांसहवाळ २४५
वाघ १०४, १०६, २१४ लंक २, २३, २६, ४१, २००
वाघावत ६३ लंकी १७
वाद अहमद २ लखधीर ५८, १३१, १७७, २११, २१९, चायण १६ २२४
वारंग १६५ लखमण २४
वारी १६५ लखावत ११६, १३१, २२४
विकापुर २७० लख १६२
विजपाळ २२, ६०, १३७, १४१, १४८, लखौ १२०, १४६, १६३, २२५
२३२, २३५, २३६ लछमण २
विजपाळौ २२, २५ लाख पसाव २७४
विजावत ६२, ६२, ११६, १३५, १५०, लाखौरी १२ लाल ६५, ७२, १००, १०४, १३१,
विजेस १७६ १५०, १५३, १५४, १७१, १७३, बिजेदसमी २७३ १६५, २०८, २१४, २१७, २१८,
विजैमल २२६ २४५
विजौ १४६, १६३, १६५ लूणपुर २७०
विदांमी १२ लोदिय २३२
विर-मांण १४०
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[ १६ ] विलंद ३८, ३६, ४१, ४४, ४५, ७६, संगीतह सागर २७२ ६६. १७६. १६३, २२१, २४६, संगौ १३३, १३८ २४७, २४६, २५०, २५१, २५२,
संग्राम १२२, १४६ २५६, २६१, २६२,२६४, २७०
संजाब १२ विलदेस ३१
संभर १५३ विल्लायत २७
संभरवाळ १५३ विसनेस १३४, २०१, २४६, २४७
संभरीक २४५ विसनौ २१२
संभु २४३ विसन्न ५८, ११४, १७१
समंद १३ विहारिय १०६, १३८, १३६, १४३, १५१, १९५
सकतावत १०८, १४८ विहारियखां १६३
सकतेस ६२, १३४, १४० विहारियदास १०४, १६२, २२४
सकती २४५ घोझाजळ8
सगत २१३ वीठळ १८, १४३
सगतावत ५४, ५८ वोठळदास ६६, १३३
सगतेस ५२, ७३, १०५, १४७, १५३, वीदहरा १३८
२०१, २४० बीर २६, ७०, २३१
सगती २१५ . वीर-भद्र २६, ३७, २५२, २५५
सतावत १४६, १५७ वीरम ६२,१५७, १६१
सताह १०० वीरांण १६८
सतिदान १७१ वीसहथ २५
सत्यासियौ २७३ वेद १४२, १८१
सत्रसाल ६२, १२२, ३७ वैण ६३, १३५, २०८
सदमाल २२३ वैणावत ६५
सदावत ६५, १००, २१२ वैताळ २६
सदौ १४३, १८४ वैरियसाल १३५, १५७
सनकादिक १८० वैरौ २४३
सनि २७३ व्यास ७३, १७३, २३३
सपतास १८, २३, ४७, १८६, १६७ व्रजगिर २३७
सबज १२ व्रजपाळ १४६
सबळावत ६८, १२०. १५३, १५५, व्रजराज २४, २००
२२२, २३१ ब्रह्मांण १७१
सबळेस ५७, ७४, १२, १०६ ११८, विदावनदास २४५
१६० स
समीपमुकति १८० संकर २६, १६३, २२५
समौ ६५ संगीत-सार २७२
समेळ ६०
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[
२० ।
समसेर बहादुर २५६ । सयद ३,१८,४० सयदाण १६७ सरणा १२ सरदार ७७, ८३, ६६, २११ २१६,
२२७
सरफ १६५ सर-बुलंद २५, ३६ सरस्सति १९० सरियन ८१ सरीनह ४० सरूप ७६, २२६, २४२ सलेम १०३ सलौ २०८ सवाइ २३८ सवाइय ११०, ११२, ११६, २१४,
२२७, २४५ सवाइयसींघ ११६ सवाई २४० सवाईसिंघ ८९ सहदेव १८३ सहसमाल १४६ सहसावत १४०, १५१, २०७ सहाणिय १६१ सांगण २२२ सांदुवां २३१ सांभरि २७१ सांभळ ११८ सांमाबत १८५ साम ६५,६४ सांमंत ७१, ६८, १३१, २१६, २३६,
२४४ सांमत ७२, १००, १४८, १५३, २१४,
२१६ सांमतऊत २१४ सांमत चंद १७८
सांमत साह ६५ सांमत सिंघ ७६ सांमत सींघ २३६ समिळ ११२ सांमळ ऊत २१० सांमळदास १९१, २२८ सांवत ६३ सांवळ ६४, ८६, १३५ सांवळदास ७६ साजोति ३६ सातम २ सादल १२१, १२३ सादूळसीह २४२ साबरमत्त ७८ साबरमत्ती २५८ सारसुत व्याकरण २७२ सालांण ५ सालिम २४० सालिमो २३६ साहंसमल ५६ साह ४, १९२ साहपालम २५६ साहब १३६ साहवान २६५ साहिजादौ २ साहिब ६१, १४६, १५२, २०६, २३२ साहिबखां २६४ साहिबखांन ५६, ६५, ७४, १३२, १३६,
१४१, १५७, १६१ साहिबज्यादौ २ साहिबसिंघ १०४ साहिबसींघ १६१ साहू १६०, १९६, २६७ सिंघ-प्रभा १६५ सिंघळदीप ५ सिंघवी १८३
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--------------------------------------------------------------------------
________________
. [ २१ ]
सिंदली १२ सिंदूर ६१६ सिंघ १४४ सिंधल १४३ सिंधव १०१ सिंभू ६६, २२४ सिंभूसिंघ २३८ सिखर २४५ सिध गुटका १६ सिरदार ६१, ७०, ७६, ८८, ८, ९६,
१००, १०३, १०७, १२१, १२२,
१५२, २०३, २१०, २३३ सिरविलंदखांन २, २६, २५६, २६०,
२६२, २६३, २६४ सिरोहिय २७१ सिव १४६, २५२ सिवड़ापति १६१ सिवदांन ७२, १०४, १०६, ११८, १२२,
१४२, १४८, २०४, २०६, २१५ सिवराज २५५ सिवराति २३४ सिवसाह १३१ सिसिंघ २२० सिवसींघ २२६ सिवावत ६५ सिवौ ७३, १३४, १६१, १६५, २११,
२२० सींघ ११२ सींघउमेद १२२ सींधव २३५ सीदक १६५ सीह ११२, १२१ सोह-गुमान १३४ सुंदर १४६, १७८ १६३ सुंदर-ऊत २२५ सुंदरदास १०६
सुखराज २४२ सुजांण ७४, १४७, १६१, २१२, २१३,
२१६, २३३ सुजावत ५३, १४१, १५२ सुजाहर ५३ सुद्रसेण २१६ सुभकन्न १६६ सुभरांम ११६, २२१ सुभसाह ११६, २२४ सुभा १२६ सुभावत १६२, २२१ सुभे १६६ सुभौ १६१ सुमेर २७४ सुरंग १२ सुर (हिंदू) ४,४१, १०१, २५५, २६० सुरजपसाव १७ सुरज्ज पसाव ४६ सुरत २४० सुरतांण ७२, ७३, १३६, १४५, २१५,
२७० सुरतेस ६०, ७४, ६३, २३८, २४१ सुरतौ २०२, २११ सुरनाथ २१७ सुरांपुर १६५ सुराचंद २७१ सुरावत ६० सुरेस ७४ सुरौ १५६ सूज. १६४ सूजावत ५३ सूर ८५, ६१, १२२, १४४, १४५, १४६,
१४८, १४६, १५४, १५६, २०६,
२०६, २२८ सूरज पसाव ३७, २५१ सूरजप्रकाश २७४
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[
२२ ]
-
-
-
-
सूरजमल्ल १७१ सूरजमाल १२३, १३६, १४६, २०३,
२०४, २१६ सूरजिप्रकास २७३ सूरत २४२ सूरतसिंघ १४६ सूरतसींघ १२०, १३८, १४० सूरत्ति २६८ सूरप्रकास २७५ सूरावत १४६ सूरिजप्रकास २७२ सूरिजमाल २०१ सूलहरी १३ सेख २८, १६६, १६५, २५६ सेख अलियार २५८ सेखहरौ २२६ सेखावत ६२, २१८ सेज बदार १६४ . सेर ७६, ७६, ८०, ८१, २२, २३, ६८,
२१८, २३८ सेरविदारखा २५६ सेरस २५६ सेर-साह २४१ सैद २५८ सैयद ४० सोढ २१८ सोनंगरा १५५ सोनंगिरौ २३२ सोभ ६२ सोवना ११ सोसनी १२ स्यांम ९७, १००, १४३ स्वरूप २०६
हंसा १२ हठप्रदीप २७२ हठमल २३६ हठमाल १३१ हठि-खांन १९४ हठी ६२, ६४, ७४, ८६, १०५, १०७,
१३४, १४४, १४५, १५७, २३४ हणमंत २३, ३६, १३८, १६४, १६५ हणमत २१ हणूनाटक २७२ हणुमान १३४ हणूं २११ हणमत १६३ हदमाल ११६ हदातुल्ला २५६ हवौ ११३, १६० हमसेर २५६ हमीर १६५ हयग्रीव १४२ हर किसन्न ६० हरदास १९३ हरनाथ ५८, ७१, ७८, १०५, ११०,
१२० हरसींघ ७७, १९३, २११, २२४ हरहमद २५६ हरिद ५६, ७६, ८६, ६३, २०६, २२५ हरि १०६ हरि किसन २४५ हरिनाथ ७७, १३६, १४८, १४६, १५५
२०७, २२० हरियंद १४२, १४६, १४७, १५४,
१८४, १६३, २११, २२६ हरिभाण ६६ हरियो २०५ हरिरांम १३५ हरिलाल २३३
hc
हंस १२
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[ २३ ] हरी १३, ६३. ११६ २३, १५२, हिम्मत १५२
१५६, १६०, १९४, २१६, २३२ हिम्मतसींघ २२६, २४४ हरेवी १०
हींद १५२ हलवद २७१
हीदवऊत २०७ हलवाह १४६, १६२
हीदवसींघ २२८, २४३ हळवाहि १९३
होमतसींघ १५४ हळिरांम १५०
हुजदार १७४, २३३ हाडै २४७
हुमाऊ १४० हिंदव २४३
हुल १६१ हिंदवमाल २१७
हुसेन २५६ हिंदवसिंघ ८६
हुसेनाबाद १० हिंदवां ३१ हिदवांण ४, १६८
हूर ३४, ४३, ६४, १०४, १०७, ११२, हिंदाळ ७७, ८६, १३८, १५२
१६८, २१२, २४६, २५२, २५५, हिंदुवांण २६७
२६२ हिंदु २५४
हरक्क ४८ हिम २३१, २७२
हेदर-बेग २५६ हिमताउत ७४
हेम ३५ हिमतेस 80, १५७, २०६, २१२
होलिय ५० हिमतौ २१३, २१४, २२२. २३३
होली २५२
.
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--------------------------------------------------------------------------
________________
छंद का नाम
छप्पय कवित्त
प्रथम पंक्ति
श्रभमल जयचंद प्रेम सबळ दळ लियां सकाजा 'धनिये' रियो 'हरि' 'गो' करिहाकां अहमदपुर श्रोपिया मल बजीर श्रभारा श्राब जोम तजि श्रसुर सुर विहंडाय साथां श्रय श्रा श्रछटे कमध दारण कळि चाळा श्रासाखां गुलहुसन मुगळ दरवेस महम्मद इक भाटो आवखो पिये दुब्बार सराबो इम जीपं श्रावियो महाराजा राजेस्वर इम त्रिवे घड़ डर भीच मगरूर 'प्रभा' रा इम लड़तां ऊमरां श्ररज कीधी जिण वारां इस तेज तपि श्राज रजे 'श्रभमल' महराजा इसी ताथ ईखियो, घाय मुगळ वळ घावां उडि पड़े श्रंग रध रध अंग जुड़े पछर उण मौसरि 'प्रभमाल', सूर हाकले सकाजा एक वार ोरियो भाट वीजूमळ झाड़े कमध करै hair, भाट दोय विहर झिलमां करि सनांन भ्रम करें धरै प्रम ध्यान स्यांम धम कितां कसे प्रेरक ऊंच पौसाकां ऊपर her रुधिर पिंड करें तड़च्छ खावे रखताळा कोट तोप कमधजां जिके लोपं जमरांणां खंड प्रसस्त बलमीक हणू नाटक अध्यातम खमा खमा बोलता लोक लारां श्रणपारां खळळ संकळ मद खळळ मसत घूमत मदगळ ख्वाजा बगस हठीखांन निडर मुजायद नायक गज भिड़ज पड़ि गरट्ट प्रगट बंध सुजि पाजां गहि बंदूक फिरंगांन मेघडंबर भभि मंडे 'गिरधर' 'रतन' गरूर वर्ण हरवळ 'विजपाळी' ग्रीव पड़े सिर गुड़े भड़ां घड़ पड़े भिड़ज्जा घायल उजबक घणा मरे मुक्काम मुक्कमां चिलतह फिलम चढ़ाय ससत्र श्रंग कसे सचेला
परिशिष्ट २
छंदानुक्रमणिका
पृ०
१
७
१
१९४ ७ ६६८
२६५ ७ ६२६ २६० १६
७
२५६ ७ ६०६
२५६
६१५
प्रकरण पद्यांक
२६ ७ ७०
२६३ ७ ६२४
२१
७ ६१
४१
२७२
२३
६
२७२
२५६ ७
२५४
७
३७
७
२५१
७
२५३
७
१६ ७
२६
२५४ ७
४०
७
67
१९४
२५८
२७
2 r
60
67
67
७
७
७
११४
६५३
६१७
६०५
१०१
८६७
६०१
५६
७१
६०४
११२
Y
२५
१
७
२६४ ७
२४
७
६५
२६
६६७ ६१३
७
७
७ ७४
७ ६६
२
६२७
*
x
Page #409
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ २५ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक
छप्पय कवित्त
२७ २८ २५७
७ ७ ७
७२ ७६ ६११
७
१०८ ५५
२५६ १६७ २५१ २१ ३५
७
६०
२६५ १७
२५६
७००
२६७
९१४
चढे एम कळिचाळ पूर पखराळ पमंगां चढे सेख चंदवळां मुगळ वर गोळज गोळी छिबता उरस छछोह चुरस वीरारस चालै जम रुपी जिणवार एक गोळो गढि पाए जरद पोसां जमरांण छांगि सिर विलँद सभारा जला धोय ऊजलां काट कढिया अराबां डसण जजर डोलचां भळळ उजळळ भालां तीन पहर रवि तपै जियां ऊपर जग जाणे वगै नाळ रवदाळ ज. विकराळ जंजीरां दीपमाळ दिन उझळ सको वळ वळ सिंगारे नख अहिरण धजनळी कळि बाज़ पीडा चक नवल खांन अंगरेज खांन हमसेर सुनाहर 'निजरु' अने 'करीम' बिन्है पडदार वहादर निज सरीक पवन रौ धाव धखपंख जिम धाव नति रंग राग अनेक करे नतिकार कळावंत पखरेतां धजपूर सिलह ससत्रां रिण साजा पड़े अली प्रावध प्रली जमाल बहादर पड़े पाय सिर विलंद जांण सरणाय सधारां परी हूर परणिया तठे नत भाव वतावै पहरि तास पौसाक भळळ जवहर धर भूषण पाखर फूटि पमंग बोळ निकले बरछी पाळा होय विण पमंग जवन हाले पमंगां जिम पूजि सकति 'प्रभपती' सुरंग चिलतह साधारे प्रळे काळ घण पड़े खाळ रुहिराळ खळक्कै प्रळकाळ घण पर प्रसण घणघोर अंगारां बरिमाळा गळ बिचै श्रोयण उझळता मंत्राळा बार हजार बंगाळ विलँद तिण वार वकार बीज बचा बांणिकां भरै तीरा भूथारण बीज हजारां वहै सेल हजारां दुसारां भड़ पय दळ गज भिड़ज पड़े विलेंदरा अपारा मिळे सुवर रंभ हूर प्रेत भख मिळे अपंपर रति वसे महाराज दीत ऊग सझिया दळ लोह डाच धरि लीण मळे हाथळ दुसमाला बजि नौबत मुरसला हले चतुरंग भळाहळ धारी भड़ विरबैत बध जोवणो विहारी
२५८ २६४ २५२ २६६
६२६ ८६६
२५२ २६०
१०० ६१८
२२ २५७
७ ७ ७
६१२ १६ ६०३
२५४
6
३६
6
७ ७
५८ ६०६
२१ ६२३
6
२०७ २५५ २६१ २६२ २६३ १८ २६६ १६५
6
१२५
७
५४ ६३२ ६६६
G
G
Page #410
--------------------------------------------------------------------------
________________
[
२६ }
.
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ०
प्रकरण पद्यांक
९०२ ७७
९०७
9 9 9 9 9 9 9 9 9 9 "
२
७५
६१०
७६
त्रोटक
२०५
२२३
सरा खगां साबळां घाव पूरा घट घाया २५३ ७ साकणि डाकणि सकति सकति चवसठी समोसरि २६ ७ सातम निसा सरब्ब, अनै निसदिन प्रसटम्मी। साधन कजि सिवराज सको सिर मोहरि सधारै २५५ सालांण रा सुचंग सिंघळ दीपरा सकाजा सिल ससत्र कसि सूर विढंग चढियौ विजपाळौ २२ सोसा जांमग सोर, भार गाडा बाणां भर २८ ७ सणे कीध प्रभसाह किलम ताकीद हुकम्मां सुत बगसी साधियौ पाप सुत सुणे डरायौ संडि झाडि समसेर मारि सावळा महावत २५७ ७ हाळबोळ छकहूंत हले प्रसि चढण झळाहळ हैदळ पैदळ हसत हले दळ बळ हिलोहळ ३०७ होय सिंधू दळ हले तूर बाजतां त्रंबालां अंग ऊपर लोह उडै प्रजरौ 'प्रचळावत' तेज लड़े उरई
२१२ अछटे रिम खाग चा अरणौ
२२१ अडिगांण लड़े खा पांण इसौ अणभंग 'मधावत' सूर अड़े अतलीबल (भोज) सुजाव इसौ प्रतिवाहत साबल खाग अड़ी
२०१ 'अनपाल' तणौ छड़ियाल उरा
२१० प्ररणांग पतंग ज ई ऊफण
२०० ७ असवार सरूप सतेज इसौ असुरां 'प्रचलावत' 'खोम' इसी
२१० ७ असुरां खग झाट हणं उरई
२१५ असुरां थट 'देव' 'नोत' पड़े
२०१ असुरां दळ खागि हणे अपलो
२२५ प्राय दांत चढे न गि दैत इतां
१६३ इण भांत करम्मसियोत लड़े
२२५ इण भांत चांपावत सूर अडै
७ इम जूटत मेड़तिया अजरा
२११ उण घूमर क्रोध झळा ऊझळो
१६७ उण वार लड़त 'फत' प्रजरी
२३२ कमधज गजां सिर धाव कर
१९६७ कर झाट सिल घट दोय कर
२०५ ७
७६८ ८०५ ८२५
२२६
२०४
6
6
७२०
6
6
Ꮃ
७५५ ७१६ ७०४ ७५४ ७७४ ७२२ ८१२ ७१३
6
0
२१४
७६८
M
७०६
१to
७१५ ७३७
Page #411
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ २७ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक
त्रोटक
२१६ ७
७ २००७
७७७ ८३३ ७१८
GGG
२२२ १६७
२१७ २१४ २३० २०८ २०६ २२७ २१५ २०५
८०१ ७०५ ७७६ ७८३ ७७० ८२६ ७४६ ७३८ ८१७ ७७३
२०४
२१६
'करणी' प्रणवायत क्रोध कळा करनी कुळ 'माहव' नाम कवि करि जांणक आयुध इंद्र करै करिपांण सुताण कमांण कसे कळहै 'पदमौ' खग बोळ किये काढियां खग साबल झोक कियां खग झाटक टूक कर खळ है खग वाहत हेक जिसा खग सौ खग वीजळ मेघ घड़ा खमतो स्वगि सावंज ध्रज विहंडि खळां खत्रियां गुर 'लाल' दुझाल खंडे खित पिंड करै रत हंस खड़े गज ढाल दुझाल अमीर गरे गजभार महेस तणौ गहणौ गहरे रंगरेल' हर गुमरै 'गिरमेर' तणौ सिवदांन गजों ग्रह साबल सीस उडे गजरौ घण धाय वरावत हर घणां घण वाहत साबल 'तेज' घणौ घमसांण कर धरि पांण घणौ चंद्रहास कर जुध चूंप तणों चढ़ियौ अनि हैमर रोस चडे 'चतुरेस' 'पतावत' खेत चढ़े चमराल दलां अति रोस चढ़ा चहाण केवांण रत्रां चरच छक ऊदल छोह छछोह छळां जवनां दळ दांति चढंत जवां जुध खाग झटां घट पोंजरियो जुध खाग वह झल 'जोप' तणो जुध-दूजण' 'बाघ' कराळ जिसौ जुध धावत सूर घणा वजरे जुध 'भीम' समोभ्रम जाहर सौ जुध 'माहव' संभ्रम पाथ जिसौ जुध मेछ चढांत धकै जमरौ जुधि झाल कराळ उठत जठं
७८८ ७६२
२१२ २०१
७२१
७१६ ७६७ ८३१
6
6
७२६
२०२ १६६ २३४
6
6
२२३
6
२०६
6
6
२१२
6
७११ ८४३ ८०४ ७४० ७३४ ७६४ ७६१ ७७८ ८२६ ७२५ ७८४
6
२१६ २१६
6
6
२२६ २०२ २१८
6
6
6
Page #412
--------------------------------------------------------------------------
________________
छंद का नाम
त्रोटक
[ २८ ]
प्रथम पंक्ति
झड़ प्रौड़ सूत दिये झटकां
भट खाग रमै घट सीस झड़े
भट वीजळ मूगळ, सीस पड़े
झळ क्रोध 'लखावत' क्रोध झलां
तद धारि सिंहांणिय रोस धतौ
तदि वाहत खाग भुलाल तनां
तप तेज खगां जिम भांण तण
तप दीसत सूरज व्रन तण तरवार वह असवार तठे तुरकां खग घाव श्रजंबा तणौ
तुरकोण हणं खग थर्ट 'जोर' तण
थट मेछ करें धर पाथरण
दळ रौद विभाड़त 'पीथ' दुश्रौ
दहड़े खगि मेछ हां दखतौ gaड़i 'हथवाहत' पाव विढे दुति 'ईसर' दोंढियदार दळां
धख ववसींघ सुजाव धरे थड़छे खळ खाग गजां घखतौ
धड़ खल वीजल काट धजां
घड़ धार लुहा घर
धज साबळ वाहत मेछ वहै
धर धावक सोस धम धमिया
घर घूजत सीस धरा - घरनौ
घुवि धीर 'दलावत' सार धजां
'नरमेछ' खपंत पडत नहीं नरलोक श्रखं जस कीध नरां निजड़ां जड़के जरवंत भौं पछटे खग चाढत देवपुरा पछ खग मूगळ सोस पड़े पछटै खग सिलह पोस पढ़े
पछटे खग हेमर तूट पड़े पछ वरसींघ तौ प्रघळ पाड़तो पहुंती जवनां प्रचंडा पिंड चौसर धार परी परणी
पिंड पूर 'पतावत' सूर पणी
पृ०
प्रकरण पद्यांक
२३१
७ ८३४
२११
७
७५६
२२८ ७
८२३
२२४
७
८०७
२३३
८४२
२२२
७६६
२१२
७६३
७७१
७१२
८१८
७८५
७६६
७६५
७५६
७५२
૬૪૪
२०४
२३०
२११
२२१
२३१
२२६
७
७
७
२१४
७
१६६
७
२२७
७
२१८
७
२१३
७
२१३
७
२१०
७
२०६ ७
२३४
७
८२२
२२५ ७ २२३ ७
८०३
२०७ ७ ७४२
१६६ ७
७१४
२१५
७
७७२
१९६
७ ७०३
२१७
૭
७८०
२२७
७ ८६
२२६ ७
८०७
२०३
७
७२७
२१६
७ ७७६
२१५ ७
२१६
७
७
७
७
७
७
७
७७५
७८६
७३१
८३०
७५८
७६७
८३५
Ex
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--------------------------------------------------------------------------
________________
[ २
]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
त्रोटक
पृ० प्रकरण पद्यांक २२६ ७ ८१५ २३२
८३८ २२५ ७ ८११ २१७ ७६१
७१७ २३२
८३७ २०७
७४४ २२८ ८२४ २०२
७२४ २०६ ७५०
२००
6 6 6 6
6
6 6 6
२२६
७ ७
२११ २२४ २२८ २०८
6 6 6 6
७५७ ८०८ २२१ ७४७
१३५
6 6
फवजां धज खान अणि फबियो बहस जुध लोदिय खाँन बळा भड़ 'माहव' 'सुंदर' ऊत भड़ा भचक खग दाखत भांण भलो भचकै 'बखतेस' गुस भरियो भन्नकै बळ धारि भुजाण तणौ भिड़ लूण उजासत भूपतणौ मगरूर खगां झट झूझमलो मगरूर जुटे खग प्राघमणौ मधिचार धरै हर हार मही मसतांन गयंद जहीज मु. मिळ रांम हणे खळ खेत मही 'मुकंदावत' पौरस छाक मतो मुगळा वळ खाग हणे अमलौ रवदां झट रूक कर रमणौ रिण झूटत सूर त्रंबाल रुड़ रिम खाग हणे खगि झेलि रतौ रिम थाट सू झाट खगां रण में रिम थाट हणे कुळ ब्रद रखो रुकड़ा मुड़ि झाट त्रंबाट रुड़े लोह वाहत गेण भुजाळ लगती वढ झाट खगां खळ थाट वहै वढि वाहत खाग झळा वरणी वधि चक्क उचक्कत राहविये वधि देव पराक्रम 'वीर' तणौ वधियो गहलोत छका वणदौ अधिरूप कियौ खग चोळ वनौ वधि व्यास दहूँ रिम थाट विचं विधि वैर हरां अजरौ विरतौ विहंडे खळ झाटक लोह बहां सजि बाजव बद्द वळां सबळां सत्र थाट पळां गळ दे समळां 'सबळावत' 'सांगण' घाव सझे 'सिरदार' समोभ्रम जेण सिरे सिलहाण अंगांण वेधांण सरां
२२०
२०७
७६३ ७६४ ७४५ ७५३ ८०६ ७६५
२१०
२२४ २२०
२१८
१६८
२३१
२३४ २३३
७१० ८३२ ८४५ ८३६
८४० ७८०२ ७ ७८०
७३०
GG ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८
२३३
२२२ २१७ २०३ २०६ २२२ २०३ १६८
८०० ७२८
७
७०८
Page #414
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________________
छंद का नाम
नोटक
२१८
७८७
२०६
२२६
२३३
७४८
२२१
[ ३० ] प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक सिलहेत तणौ पखरत सुधौ
२०६७ ७५१ सुज ग्यांन 'दलावत' तेण समै सुत 'ईसर' जोर कियौ सरसौ
७४३ सुत 'कान्ह' खळो छड़ियाल सलो सुत 'कान्ह' स्वरूप वर्ण सिघरै
२०६ ७ ७३६ सुत 'जैत' अथाह लड़े सबळां
२२४ ८०६ सुत 'जैत' 'सरुप' कियो सधरौ
८२८ सुत 'राम' खत्रीवट काम सच
२१४ ७ सुत सूरजमल संग्राम करे
२१६ ७६० सोहिया घट ऊँच स्रोण सबै
७२६ हथियां खग वाहत रिख हसे
७२३ हद जूटत धांधळ क्रोध हुवे
८४१ हर सीस ग्रहै रिखराज हस
२०८ हिंदवाण तुरक्कोण हिच्च
१९८
७०६ हुब क्रोध लड़े जम क्रोध हरा
७६६ हुब वीजळ जूटत रूप हरा
२२५ हबिखाग प्रथागहणतई
२२७ ८२० हुय घायक जांणि मजेज हिचे
२२० ૭૯ ૨ इजति भंग हगो असुर
६२८ इम धिकतां रिण ऊमरा
४४ १३० इसा बाजि दहुँदै दळां
१७ ७ ७५१ चक्रबति दिन दिन चौगणी
२६७ जोता जोड़ न दूसरौ
૨૬૭. ६३५ त्रिवे धड़ प्रभमल तणी
२४० दातारा दांता दुजल
२६७ 'बखत' थाट इण विध विढे
२३५
८४७ घड़ी फौज इण विध विहद
७०१ इम जीतो 'प्रभमाल' चार नबत्ति बजाए २६१
६२० समंद 'विलंद' दळ सबळ अथग प्रावियो 'प्रभमल' ४१ ७ ११३ पारांम राड़ियां छक उपाट ऊपना असिल भैराक अंग
१० ७ २७ एहड़ा गयंद खुटहड़ अरोड़ अं पहल तेल फेरै अरोह ऐबियां मझे लागा उदार औद्राव तणा घण के प्रपाल
८१३
२६४
99999999999999,999999,99999999999
९३४
८.७
दाढ़ी
पद्धरी
१७
२३
Page #415
--------------------------------------------------------------------------
________________
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक
पद्धरी
४७
०२
३८ १४
२२
कंठळ वूठालू रूप कंध कतक्क हार कळहळ हाक कसि सिरी गड़द निस संघ कोष कदणा कछी छकै कुरंग गात रा जिकै तम सिखर गात खैग सहज्ज मझि डांण खाय घण घाव घट नह पांण घाट चख श्रारण धिखता रूप चोळ चहनई हरेवी रूप चंग जिलहरी आबनूसी जमंद झाटकि रूमालां गिरद झाड़ि तन रूप घटा भाद्रव तणास तरियला नजर प्रांणे तैयार तहदार गादियां धरे ताम तरियंद जिसा रथ प्रापताप ते पीठ धार तांणस तंग तं भारण बारह मण सतोल दहवै दळ मैगल इसा दूठ दुज राज नयण ससि बीज डाच दै उवर टकर ढाहै दुरंग धर फरर चढ़े नीसांण धार नख उलट कटोरा सम अनोप पांडवां खुरहरां झपट पाय बंध जोट वीध कसि जेरबंध वह अबरस मुसकी पर संजाब बेखता ताव मज नस्सबाज मगरूर हौद जंगियां मझशार मझि खगां शाट खेल्है मलंग रूम हरी हुसेना बाद राति रोसनी विदांमी प्रेस सूद रौद्राण भचक भाला गरीठ लाखोरी सुरंग अजूब लेत सुजि ताम्र तुंड कंधा समाथ सोवना ताजी च्यार साल अरोहै कितां जूंग बेछाड़ अंगा
9,99,999999,99999999999999999999999
&
२४
भुजंगी
३२
८७
Page #416
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ३२ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
प्रकरण पद्यांक
पृ० ३४ ३१
७ ६३ ७ ८१
A
6
6
6
३३
७
९१
mmmmmmmmmm or mam
३१
७
८२
३१
७
८४ ८९ ८६ ८५
३२
७
७
९४
३४७ १३७
६२ ४८२
७
भुजंगो असोला रसी रेहियां हाथ प्रांण
अहंकार नब्बाब दज्जोण हो इसा थाट ईरान नौ कोट sवाळां उठी धू विलंदेस प्रायो अछायो उठी राफजी प्राविया च्यार यारी उठ ईसफां प्रासफां नाम पाख किलम्मां अन वाद लगौ कनौजां किलम्मेस राजा तणा भीच कोप झड़े फीण घोड़ा मुखे सेत झारा ढळक्कं गजां चम्मरां क्रीब ढाला थट सामंद्रां हाथियां पाळि थाई भयांणंख गाडा किता जूग भारू लळक्कै गजां पोगरा नाळ लोभा घहै हैमरां सौख जांण विवाण
विवांणां परां ता चला सौख वागी मोतीदाम अंगोभ्रम 'मेघ' चाळे कुळ प्रोप
'अखा' हर बाहत खाग उनंग 'खो' 'अणदावत' वीजळ ऊक 'खो' खग खेल रमै दइवांण 'अखौ' खग वाहत सूर अबोह 'अखौं' प्रिथीराज सुजाव प्रपाल अडि खंभ झोक लगै अवसांण अडी खंभ माधवसींघ अभंग प्रडे खग 'जैतहमल' अथाह अर्ड भड़ राममलोत 'अजब्ब' अंडे 'लखधीर' तणौ 'अमरेस' अडे सुत गोवरधन्न अठेल 'अजबावत' साबळ हाथ उपाडि 'अजो' 'रघुनाथ 'उभे दइवाणं घटा दछि ज्याग घटा गज एम अड़े 'रतनेस' 'मोहोकम' ऊत प्रणी कढ वाहत खाग अपाल अणी कढ 'सूर' तणो 'परियाग' प्रणी सिर साबळ फूटत ऊक अणी सिर सेल भिडै अवगाढि
१४७
५२१
१८६
७
१५० १४४ १११ १३५
६७८ ५३२ ५०७ ३७९ ४७५
७
१६५
१७६
४५
१३५
१३२ १११
७
३८२
३२४
१२२
७
४२२
१८७ १६४
७ ७
६७१ ५८६
Page #417
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ३३ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक
६४
१४७
२०२ ५१६ ४३७
१२५
३७१
१०६ ६२
३११ ५९० २५५ ४४४
७७ १२७
२१७
४८ १६३ ७३
१४४ ६९४ २३७
१८५
३६२
६७७
१८६ १८०
मोतीदांम 'अनावत 'अम्मर' खाग उनांग
'अनावत' दूठ 'गजो' उणधार अनेकह खाग हणे 'प्रभ' एक 'अनौ' 'हरि' 'तेज' वर्ण दइवाण 'प्रभम्मल' भूप 'उमेद अभंग 'प्रभा' छळि एम लड़े दइवांण 'प्रभा' छळि मेड़तनेर अभंग 'प्रभावत' क्रोध सझे अणथाह 'प्रभ' भुजभार दियौ अणथाह 'प्रभमल' अग्न ‘फतावत' एम 'अमल' प्रागळ जोध अपार 'प्रभमल' प्रागळ सूर उदार 'प्रभौ' भड़ 'जैत' तणो अवनाड अमावड़ तेज मजेज प्रसाधि 'प्रवा' सह खेलत फाग भुपाळ अयौ रथ बैसि समोसर इंद प्रयौ वैकुंठ हुंता सु विमांण प्ररी खग झाटत धोम अमेळ पीर खग झाडि छिबै असमान परी सिर तोड़ रगत्र उफांण परी घट साबळ अंत अळूझ प्ररी थट हूर वराय अनेक असुरां घट बाढत खाग अरोड़ इखै पित ऊपर लोह अपार इखै रथ यांभि प्रदीत अचंभ इताभड़ चारण क्रोष प्रसाधि इती कहतां गुण लागिय वार इलोळत स्रोण विचै खळ एम इसी कर ले गुण झाट उपाट इसी विध 'मान' लड़त अबोह इसी विध लोह कर अणथाह इसी विध साबळ स्रोण अखाय इसी विध सेलह पौस उझेल इसौ 'कंठराज' जिको दईवाण इसौ भड़ 'केहर' रौ दइवाण
99999999999999999999999999999999999
४८८ ६१६
१७३
२४६ ५४७
१५४
१०६
५५
१७२
६१४
३६
१२६
१०६ ४५२
. ११८
१५६ १२८
४०५ ५५५
३६१
२६८ १६७
५६७
Page #418
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ३४ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ०
प्रकरण पद्यांक
मोतीवाम
४५ १७७
७
१३२
१६२
666
६६०
१२०
३०३ ४१४ ५६६
१६० १५८
१७१
१६२ १७४
१७६
६१२ ६८६ ६२३ ६४० ४६६ ४२५ १०४
१४२ १२२
१४५
उगा मुख बारह दीत उदार उगंतिय मौसर 'सूर' उदार उझेल बगतर पोस अपाल उठ 'किसनेस' सुतन्न 'अनोप' उठ 'कुसलेस' तणो दईवांन उठ खग वाहत रोस उमंग उठ 'जगतेस' खळां अजरत उठ चत्रकोट बळा उजवा उठ महियार 'नवल्ल' अपल्ल उठे रिणछोड़ सुजाव अरोड़ उडै असि ऊपर लोह अपार उडै कटि पेच छिळे जळ प्रोट उडै खग प्राछट सीस अपार उड खग झाटक जंग अथाह उडे झळ-मंगळ झाळ अंगार उतारत नीर खळा प्रवगाढ उदावत 'जीवण' वीजळ दाव उसिंघ 'रावत' 'गोकळ' ऊत उपाडइ वीर बजंग प्रराधि उमा मुक्ताफळ ले वड़वार 'उमेवह' जोध लड़े प्रवनाड़ उभी हुय जांणिक गोख अटारि . उभे हुय टूक पड़े असुरांण उरै प्रसि पांडव जेम अजन्न उरै पित प्रागळ बाज अपाल उरै जुध बीच तुरी 'अजबेस' उवक्कत घाव रगत्र उलाळ उबोसत सीस लड़े धड़ एक ऊदावत 'साम' लड़े अवनाड़ एको असि तूटि पड़े अवसांण एको भड़ जोड़ फबै भड़यैत भोरे असि पारण धोम प्रताळ कर घण झाटक लौह कराळ कट जुध बीच अडिग कदम्म कट पळ कमळ स्त्रीफळ कोध
१८४
५१४ ६६. १७२ ४५४
४३६
१३० १३३ १२५ १७० १८२ १८१ १५३ १५४
६०७ ६४६ ६४६
७
५४५ २७६
२०७
७
१२६ १२६
४३८ ४३६ १४८
४६
१६२
७ ७
६५७ ६४७
१८१
Page #419
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ३५ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
मोतीवाम
पृ० १७६ ६६
प्रकरण पद्यांक
७ ६२९ ७ ३२५
५८८
6
6
6
६१ ६६७ २२१
५३३
५८३ १८२
५६३ ५१३ ३३२
२३३ ८२७ २७२
१४५
6
6
6
6
१७२
6
6
५५८ ३८४
6
कटे सिर खूर जुट धड़ केक 'कन्हावत' 'पेम' रमै खग क्रोध कर उवराव दुसार कटार करै करिमाळ झटांपति काम कर रुग झाट हण किलमांण कर जुध 'भाखर' री महिन्न' कर घजवाह वा कड़कंत कर सुध तीरथ वीर करक करा 'सुभ साह' वहै किरमाल 'कलायरण' बीच लड़त करूर 'कलावत' लोह करे कलिचाळ 'कलो' सिवदान तगौ कलभूळ कसीसत टंक प्रहार कबाण कसोसत बाण जुबांण कबाण कहै वद प्राय खळां दळ काप किलम्मक थाट हर्ष किरमाळ किलम्मक थाट हण लग कोप कितां भड़ सीस पड़े भड़ केक कुंभाथळ वेधि कढ धज कूत खगां झट 'नाहर' 'नंद' 'खगेस' खगां झट बाहत रौद्रव खर खगां झट देत गजा सिरि स्वीज खड़े असि 'सेर' दिसी चढि खांग बड़े हंस 'भोम' पड़े कटि खान खत्तां अंग तीर फरक्कि पंखार खळक्कत घाट बहै रतखाळ खळा दळ भूक कर भल खंड खहै 'प्रजबाबत' “साहि बखान' खहै 'खड़गेस' तणो 'रघु' खोज खहै 'जसकेन्न तणो 'खड़गेस' खत्री गुर खाप हुता खळकाप खासा गज खांन तना सिर खीज खुट जरदैत निकै इम खाति खेगवक उचक्क खाटक्क खणक्क गई कि क्रोध झळाहळ जागि
6
२१४ १५४
6
6
३०६
6
११६
6
८०
6
२७०
6
१२७
6
४४२
१२३
४२६ २४३ २३२
१०२
३४८
१८७ ४८ १२४
७ ८ ७
६६६ १४५ ४३१
Page #420
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ३६ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक
मोतीदाम
१७८ ७ ६३८ १८४ ७ ६५९ १९३७ ६६३
१७७
६३२
6 6
५२ . १०२ ११२
१५८ ३४६ ३८५
6 6 6 6
१३७
४८१ २६१
१५६ १०८ १६३
6 6 6 6 6 6 6 6 6
७
५८०
॥
५
गडीर तुरंग छिबै भुजगैरण गहम्मह सूर धुबै गज गाह गाढा गुर गूजर रोस गरूर गाढां मुर 'खोम' हरो गज साह गाहै नर हैमर गंमर गाहि घडच्छत फांक उड़े खळधूठ घटामिळि फौज त्रंबागळ घोर घड़ी दुय एम करै घमसांण घणा खळ पाड़ि पड़े घमसांण घणा खळ थाट सिर खरा घाव घणा धड़ पहथ सोभत घाव घणा रत डूब फटा खिळ घाट घणू खग झाट कर झळ घांम घमोड़त मुग्गळ सावळ धाय घमोहत सेल गजां परि घाव घमोड़त सेल सिल बंध धोंग 'घासी' सुत पौरस ग्रीखम धाम चका खट झाट हणे चमराळ चका चमराळ कर खगचूर चढे खळ ही क तुरी उर चोट चढे रथ नेह 'हठी' वर चाहि चलै मदमत्त पटाझर चाल चल सर बेधि सिले घट चोळ चहूंदळ मेछ कर खग चोट 'चभुज' 'चंद' तणौ विरचाळ चांपावत एम लड़े किळचाळ चावा खळ मुगळ भांजि अछंग 'चौड़ा' हर ताम करै चख चोळ 'चौळावत' मीर झटा खग चौज चौड़ा मझि पाय वधे छक चाहि चौथे दिन खाग झळां कळि चाळ छड़ा झलि वाह करै छड़ियाळ छळ दिखणी दळ पोरस बांधि छौगो सिर सोनहरो छवगाळ जई खग वाढत खांन 'जवांन'
१५४
३२० ६५८ ४८०
१०६
३७३
6 6
१००
6 6 6
७
३६५ ३४१
३६
१५६
~
७१
७
२२६ २०६ १६३
५३
७
ur
६४
७
२०१ २५५ २५७
6 6 6 6 6
७८ १२७ २६८
७
४४५
6
११८
७
४०६
Page #421
--------------------------------------------------------------------------
________________
छंद का नाम
मोतीदाम
[ ३७ ]
प्रथम पंक्ति
जई छक ऊपर तेज सराज
जई धख वा मारण जोम
'जगावत' कीरतसिंघ व्रजागि
'जगावत' 'अज्जब' जैत जुहार नगावत 'माल' खळां जमराव
जगावत मोहकमसिंघ सजोस नगी हवदो भिदि सबळ जांम जड़वकत लोह कड़क्कत संध
क्कत सेल भिदे जरदाळ जटा रुद्र क्रोध खगां जगवंत जठे 'प्रणदो' भड़ 'तेज' सुतन्न नठे 'करनाजळ' क्रोध व्रनाग
नठे खग वाहत दारुण जैत
न खिड़ियों इक प्रागि बजागि
जठै 'गजसाह' करन्न सुजाव
जठे धर सीस पड़े उड़ि जांम
नठे प्रथिसिंघ पराक्रम जागि
मठ रत छींछ गजां सिर जाय नठे रहियौ रवि कौतक जोय
नम द्दढ खाग कसे जमरांण
जमात समेत दुहू जमरांण 'जसावत' दौलतसोंध जगाणि 'जसावत' 'माधव' दारण नोभ
'जसावत' सूरतसिंघ व्रजागि
'नसावत' सूर 'सुभै' अजरंग 'जर्स' धखि क्रोध धरै जमजाळ
नसौ खत वाहत यूं वहिजात जांणे दळ रांमण ऊपर जाय जिकै पित 'केहरि' दारण जंग जुटा तिण हूंत जिकै जमरांण जुड़ंत 'जसावत' श्राणि व्रजाग जुड़े 'पाळ' 'किसोर' सुजाव
भुडे इम जोध हरां जजरेत
इम साबळ व्याकुळ जीव
पृ०
११४
६६
७
७
७
७
१५८ ७
१४७
७
११५
७
x
६३
५७
६८
६१
१२७
५१
८४
१७१
६७
१०६
७०
१६४
१६१
१६२
७६
प्रकरण पद्यांक
१५६
१६७
५६३
५२०
३६३
१७८
२१६
३०७
४४३
१५५
७ २८०
६११
७ ३२८
३५६
२२५
५८४
७
७
७
७
७
67
७
७
७
७
७
७
६
७३
७
१४६ ७
१६६ ७
११५ ७
८५
१६४ ७
१६७
७
२६८
७
५४
१३८
११३
७
१४२ ७
6)
७
३९०
२१०
३१८
७
५७३
५७८
२६३
५६७
२३८
५१६
५६२
३६६
२८७
५८७
५६६
६४०
१६६
૪
३८७
५००
Page #422
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ३८ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
प्रकरण पद्यांक
मोतीदांम
६०. ७ १२२ ७ १३३ ७
१८६ ४२३ ४६७
U
२९७ २२२ २६८ ६७९
८८७
१८६
१४२
७१
५०२ २३० ४६५
५६७
१८३ २२७
६०
१५८
५७७
जुड़े 'कुसळेस' तणो स्वग जास जुड़े खग गेंद जहीं तळ जोड़ जुडे खग झाट 'कलावत' जोध जुड़े खग झाट कळोघर 'जैत' जुड़ें गज बाज धिखे गजगाह जुई छक छोक कंठीरव जेम जुड़े भड 'माहव' 'मान' सुजाव जुड़े मगरूर 'मुकंद' सुजाव जुई तिण वार 'उदावत' 'जैत' जुड़े 'रतनागर' 'भीम' सुजाव जुड़े 'रायपाळ हरौं रण जेत जुड़े रायसिंघ चढे घण जोस जुड़े घरवा रंभ ऊछब जाणि जुड़े 'सिरदार' तणौ वरजाग जुई सुत 'ऊदल' पौरस जोर जुध हर मागळ दारुण जोध 'जैसा छळ पौरिस झाल जगत्ति जोए लुघ ऊपर भाजि न जाय 'जोगावत' 'ऊदल' उझझळ जोस 'जोगावत' धार घसंत 'जवांन' जोधा भड़ एह पटायत जांणि जोधावत साहिब सिंघ सुजोस जोरावर 'ऊदल' संभ्रम जोध जोरावरसिंघ 'पदम्म' सुजाव जोरी 'अणदावत' जेत जुहार झड़ खग प्रातस रूप झिलम्म झडं खग थाट लोहां झिलमिल्ल झझक्कत बारंग फेर झुकंत झपट्टत नाळ दमंग झळास झळाहळ 'वीरम' ऊत झंझार झाई खळ नाहरखा खग झाट झाळाहळ साबळ वाहत भूल झुक घर हैमर सूर जझार' झोक असि देत खळां खग झाड़ डोहै रवदाळ झकोtळ डंडाळ
१०७
३५८
१०५ १११
३००
6 6 6 6
१
३५५
२२३
6 6 6
४५५
१३० १०७ १६५ ७६
५८६ २६०
६२
6 6 6 6 6 6
१९१ .
७
३६ १८६ ४७
७ ७ ७
३४६ १०८ ६६५ १४१
Page #423
--------------------------------------------------------------------------
________________
छंद का नाम
मोतीदांम
[ ३६ ]
प्रथम पंक्ति
तई अध सोस बढे तहताज
तई खग झाट जुदा सिर तन
तई स्वग धार हणे खळ तांम
तई दळ देखि पटाकर तेम
तई धक होण परी भरतार
तई पर 'सांवत' क्रोध अताळ
तई भड़ ' साहिब खांन' सुतन्न
तई भुज साबळ कोध त्रिभाग
तई 'हणमंत' कळा जुध तांम
तई हरभांण पछट्टत तेग
तकै सिर इस लिये मुसताक तछं खळ 'पेम' खगां भट तांम
तठे करि खींज वहै तरवारि
तठे छक छोह 'विसन्न' सुतन्न तठे पड़ि खेत किया पिंड तत्र तठे 'परताप' तणी खळ तन तठे रुघनाथ तणौ 'सुरतेस' तठे मोहकावत 'सांम' सतेज तठे 'सबळेस' समोभ्रम 'तेज' सुत भाउ लड़ंत ‘तिलोक' तठे हठमाल 'किसोर' सुतन्न तणै 'दलसाह' तणो 'सुरतेस' तणौ भ्रम 'पूरण' सींध तराज तती खग झाट खळां सिर तांम तपं खग पांणि पिये जळ तेम तिकै कुळ सूर हुवा तिन वार तिकौ चरिज्ज किसौ घर तास
तिको सवार बिर्च तिण वार तियां इम सोभ फबै रिणताळ तुरी जुध मेलि लड़ें 'सगतेस ' बागळ श्रीह वह त्रह तूर त्रिहं खग वाहत प्रातस ताप दखं तदि नीजर दौलतिदास
दड़ों जिम सोस उड़े खग दाव दळां
भोमि जिके क्रम दीध
पृ०
८०
६६
७
१३८ ७
५६
७
७
७
१८८
£3
६५
६६
७
१३८ ७
६६
७
m
८२
२२२
२७५
१२१
४२१
१८७
६६८
१७१
७
६१०
१७६ ७
६४२
११८ ७ ४०६
६०
७
१८८
22 x m
५७
प्रकरण पद्यांक
६४
に २६७
३२७
४७२
१८२
६०३
३१६
२०५
२११
४८४
१०५
३१६
१७५
७ ३१७
७ ३५७
७४
७ २४१
१३६ ७
४७७
१६३ ७ ६६२
१११ ७ ३८१
१७२
७ ६१५
७
६१३
३६६
१६८
५२ ७ १५६
१७२
११६
11/1/0
७
७
७
७
७
6)
60
५५ ७
६७ ७ ३३१
१६१ ७ ६८३
२७१
७
६५१
१०३
७
१५०
१८६
६७६
७
Page #424
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ४०
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक
१७४ ५८ १५४
७ ७ ७
.६२० १८१ ५४८
6 66
१३३
७
४६५
6
6
६१७
२७०
6 6
३०२
७० ८२
6 6 6
२२६ २७३
१८५
6 6
२४८ ४०१
११७
6 6 6
३१५ ४५६
मोतीदाम . दळां खळ झोकि तुरी हुजदार
'दलावत' सूर 'विसन्न' दुझाल 'दलावत' होमतसिंघ दुबाह 'दलौ' असि झोकि लड़े दइवांण 'दलो' भड़ ‘कान्ह' तणो दइवांण दहूं-वळ घोर त्रंबागळ डाक दिपावत हाथ न लेत उदक्क दिया फरमांण सनेह दिलेस दिय कपिडाण उडांण दमंग दिये खग झाट निसाट दुझाल दिये खग झाट 'फतावत' दोय दिये 'बखतावर' मांकड़ डांण विप वप लोह वरन सिंदूर दुबाह अनेक लड़े थट दोय दुवाधण देव एको जगदीस दुसै खग झाट पड़े दुरतेस दुसे फिरि जात चहूंबळ 'दौल' दूजौ असि जांम कटै स उदार 'द्वारावत' सूर 'अनोप' दुमाल धकधक स्रोण चंडी पत्र धार घडच्छत मूगळ वीजळ धार धमंघम वाजत सेल घमोड़ धमंधम सैल खळां घट धींग धमोड़त साबळ मुग्गळ धींग घमोड़त साबळ मुग्गळ धींग धरा जरदैत पड़े खग धार धरै असुरां दळ ऊपर घंख धवेचा वाह कर खग धार धांधू रिणछोड वाहै खग धार धारूजळ झाट धुबै निरधूम। 'घिरा हर नाहर मूगळ धींग धुबै खग 'केहर' बीजळ धार धुबै खळ 'नाहर बीजळ' धार धुबै रणधोम अणी घण धार ध्र खग झाट डंका बजि ध्रोह
१७५ १०९
6 6
6
१४०
४१४
५८१ ४०७
११८
७७
२५२
७६
6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6
२६१
४५
१३४ ४७१
१६४
२६०
१५२
6
१२१ १०० ६१
6 6
७ ७ ७
५४९ ५३६ ४२० ३४२ ३०८
6
Page #425
--------------------------------------------------------------------------
________________
[
४१
]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
प.
प्रकरण पद्यांक
मोतीवांम
७
५४ १५७ १२८
२८३ ५६० ४४६
6
०
6
6
6
6
6
१७६ १५७ १९१
6
२०४ १८५ ६४१ ५५७ ६८६ २६४ ६७०
6
८०
6
१८७
७
6
6
७१
6
५६
७
नदी गण जेम तुरंग निहंग नरांपति जूटत पौरस नेम नरां सिणगार इता करणोत नरां सिणगार धर जुध नेत 'नरावत' 'रूप' लड़े नरनाह नवी बगसीस खिजे नरनाह निजोड़त मेछ धरै खत्र नेम पंजा खग झाट 'पतावत' पाणि पंडीस बरंग कर खळ पाणि पंडोसक वाह कर अण पाल पछंटत ऊत्तंग चंद्रप्रहास पछट्टत खाग राठौड़ पठाण पछट्टत रूक प्रमो सह पूर पछट्टत रौद्रव चंद्रप्रहास पछट्टत बीजळि 'केहर' पाणि पछट्टत लोह थटां पंडवेस पछाड़त जंग अमीर पमंग पटायत एह लड़े अणपार पटायत एह लड़े खगपांण पटायत सूर इता परमाण पड़े घण मूगल सेल प्रचंड पड़े भड़ रोद लुही रंग पूर पड़े भड़ लोहाइ खेत पचीस पड़े रत वेध दुहूं वज्रपाट 'पतावत' रोळा विसा बळ पांच 'पतावत' सूर लड़े प्रणपाळ 'पतावत' हिंदुसिंघ प्रचंड पमंग बछेक कर प्रणपार परी वरि र ग वस 'दळपत्ति' पावं कुण पात कहै गुण पार पितामह पाय लग संप्रवंति पिये रत पत्त चंडी भरपूर 'पीयवंत' सूर करन्न' प्रचंड पेचां मझि स्त्रोण वहै अणपार प्रचंडक रोद हणे रुख पाप
७
१२३ १३२ ७४
6
५८५ २३१ २८९ ४२६ ४६२ २४४ ४०३ ५०६ २७७
6
6
१४४
6 6
१२६
6 6
११३
३८६
6
१७४
६७
6
३२६
८५
१६२
6
७
२८६ ५७७ २७८ ५६१ २१८ ३७५
6 6
6
6
२८२
११०
७
३७८
Page #426
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ४२ ] .
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
मोसोदाम
पृ० प्रकरण पद्यांक १४८ ७ ५२४ २७० ७ १४६ ४८ १५६ ७ ५६८ ७७ ७ २५३ ७४ ७ २४१ ७४ ७ २४२
१८१
G G G GGG G G G GG
६४८
६००
१२० १३४ १२०
६६६
१२
३१२
७२
'फतावत' झूझ लड़त अफेर फतेपुर झूझण नाथ अफेर फौजक्क रोसक्क फारक्क फरक्क बंबाळव लोयण घाट वराड़ बड़ा उजबक्क हण खग वाह बड़ा खळ रूक हण प्रणबीह बड़ा खळ रूक हण प्रणबीह बछेक बछेक 'पत' जिण वार बढे तदि आप तणो निज बाज बराछक ऊपर थाट बराड़ बळा भख वीजळ झोकत बाथ 'वलावत' लोह 'उदावत' बूर 'वहादर' 'जीवण' रौ रण बोह बहादर 'डुंगर' सेजवदार 'बाहादर ऊत' सक्रोध बहास बहै अंतरिक्ख अरोहक बाज बाहै घण खाग घणीस बुहाडि विढे खग झाट कर असि बेव बि? महता जुधि और ब्रहास बिनै जम सूर दादौ पर बाप बिया असि ऊपर गज्जर बूर भंडारिय ता मंत्री कुळि भांण 'भऊ' सुत 'हीद' बजे गज भार भयंकर मेछ घड़ा खग भोग भयांणक दीसत यौ भमरूत भर अँड रेत तणी विध भाय भळाहळ छूटत स्रोण भभक्क भळाहळ बोजळ रावळ भांण भळाहळ रूप झळाहळ भाय भळाहळ सेल घमोड़त 'भाण' भलो नट जांणि अगै भुवपाळ 'भाऊ' सुत 'पोथल' भीम भुजाळ भिड़े खळ सूर 'उमेद' भुवाळ भिडं ख (ग) गरूर खत्रोवट भेव भिड़े मुख मुंछ प्रणी भुंवहार
२३५ ३२१
६५
१८३
११ ११०
१७५
२६९
१५२
७
६२५ ९४२ ५४० ४७८ ४९८ ६५० ५११
१४२ ७ २७१ १४५ १३५ १२६ १०८ १२९ ७ ६३७ १५१
४५१ ३६८
४५३ १९८
१०१
७
६८८ ३४३
Page #427
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ४३ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक
मोतीदाम
१७८
७
६३६
6
८५ ४७
७ ७
6 6
७
४६ १७४
6
6
२८४ १४२ १४६ ६२१ ४८७ ४१६ ३५३ १६६ ५६४
G
१२१ १०४
१६६
७
२४६
७६ १४६ १३३
6
6 6
भिड़ बक्र उजळ मूछ भुंहार भिदै हंस ऊप्रम मंडळ भांण 'भिमाजळ' 'मोकल' ऊत भिडंत भुजां दुय चारि भुजां बळ भूप भुजां बळ 'पाथ' समोभ्रम भूप भुहां भिडि मूछ चखां विकराळ मँडै खग झाट खळां घड़ मोड़ मँडे खग झाट थंडै नग मेर मॅडै खग झाट दिये कवि मौज मॅडे जध 'नाथ' 'तो' 'फतमाल' मॅड तिण वार फतै जुध माह मंड भड़ सोनगरा जुध माहि 'मधावत' ईसर लोह मराट 'मधो' करणोत लड़े मगरूर मनोहरदास सुतघ्न 'अमान' महम्मद सेख तणं महाराण महाबळ प्रावत एक मयंद महावळ जूटत अम्मल मांण महाबळ मुग्गळ ढाहि अमाप महाबळ सूर दिनां मकरंद महाबळ हूर बरावत मीर मांमो सत्रसाल तणो मगरूर 'माधावत' रामसि लोह मराट मारू खग बाहत 'बाघ' मजेज मारू हथि एम कढी किरमाळ मिळे खग झाट हणे मुगळांण मिळ गळबांहि परी मतवाळ मिळे तदि हेक निमख मंझारि मिळे भौंह मूंछ वदन्न मजीठ मुछार भुहार मिळे मगरूर मुजइद सेख तणा सुत माम मुडे 'उग्रसेण' तणो 'फतमाल' रच खग प्राछट पावक रंग रचं तिण मोसर जोगणि रास 'रणावत' वाह कर किरमाळ
6 6
४६८ ६०५ ४०० ५६५ ३४७
१५६ १०२ १६३
6 6 6 6
१७५
६२
6
११८
G
6
३१० २०० ४०८ २५६ ४११ २६६ २६४ ४३२
6
५८
6
6
6
१२४ १६८ १६६
6
6
६०४
6
५४२
१५८
५६२
१४२
Page #428
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ४४ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
मोतीदांम
पृ० प्रकरण पद्यांक १७६ ७ ६३१ १३१ ७ ४५८ ७३ ७ २३६
२३६
१४०
9m .
१३१
२६६
८६ ५७
१७६
१०१ २६८
५६८ ३४४ १४१ ४१३
'रसाहर' तेण समै रिम राह 'रासो' 'कलियांण' तणो रिण राव 'रासौ' जुध 'माहब' रौ मछराळ रिमां खग झाट घणां गंजराळि रिमा खग झाट हणे जमरूठ रिमां घट चोळ करै खग रूप रिमां दळ बीच 'जसौ' इण रूख रिमां सिर वाहत वीजाळ रूठ 'रुधौ' भड़ 'ईसर' रौ चढि रोस रुको झट भूक कर चमराळ 'रैणायर' 'मोकम' वाहत रूक लगी नर है तिल हेक लगांण लग सर स्रोण जग लहराज लड़ायक 'कंठ' धिखंतिय लाय लड़े खग झाट लिये कुळ लाज लड़े तिण वार पड़ोखंभ 'लाल' लड़े 'बगसौ' घण वाहत लोह लड़ें "सिधकन्न' इस जुध लाह लड़े हरिनाथ तणो धख लागि लाडी जिम रौद घड़ा बप लेख लियां सुत खोम' भुजां रज लाज लुहां रत छूट हुवौ रंग लाल लोहां झट बाढत रौद लगस्स लोही धख-धक्ख वभक्कत लाल लोही वभकत्ति खगां झट लागि वंके भड़ ओरवियौ जुध बाज वटै घट मुग्गळ द्रव्य विचार वंदै पग लंच्छि सहेत 'विसन' वडां घर एह सदां लगी वीर बड़ा खळ ढाहत साबळ वाह घड़ा खळ वेधत साबळ वाह वढे वप वीजळ खंड विहंड वढे खळ वीजळ चोळ वरन्न वढे रत फेरत कोच विलम्म वर्ण वप कुंदण माहि वणाव
२३४
9,999999,99999999,99,99999
१७३ ७२ १२८ १५५ १०१ २६६
४४७
३४५ ६४३ ३६५ ३२३ १५३
२५६ ४६७
१८२ १८०
६४५ ५७५ ५७१ ६०२
१६० १६६
७ ७
१२८ ८६ १६०
७ ४४८ ७ २८ ७ ६८०
Page #429
--------------------------------------------------------------------------
________________
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण, पद्यांक
मोतीदाम
१७६ १३०
७ ६२८ ७ . ४५७
१३१ ७ २७४
६७२
१८८ १८५ १५५
६६२
२०५ ६४७
२७०
४४१
१४६
५२७ ५१०
२५६
११४ १०७
चवन्न मजीठ 'जवान' 'विजेस' धदै दहुवै घड़ देखि बछेक वधे छक पौरस दूजिय वार वधै तरियन तणो सबछेक वपा व्रण चोळ वर्ण तिण बार परंगन कंठ घरै घरमाळ वरै रंभ ताय उडाय विमांण घर रंभ कंठ धरै घरमाळ वर रंभ बैसि झळस विमाण वळे पुर-डूंगर वांसहवाळ वहै अस्व गाहटतो धड़ बाधि वहै इम सैल कढे खग वीज बहै झट प्रोझट त्रीछण वाढ घहै खग प्राय खळा झळवेग धहै खग एम'हठी विकराळ वहै खग रोव हणे जब वेर वहै खग वीज ज्युही खग वूठ घहै खग धूहड़ सीस विहार वहै धज साबळ खप्प विहार वहै रत पूर नदी जिम वार वहै रत छोळ ढहै विकराळ वहै सफरी रुख सारत बाग वहै सर सावळ धार विहार वाहै खग 'केहर' सेस वधंत वाहै खग चूहड़खांन विक्राळ वाहै खग मुग्गळ वारोवार विच खळ थाट कर असि वेव 'विजावत' उप्रमते असि वाग 'विजावत' दूठ लड़े जिण वार 'विजावत' 'रूप' लड़े रिणवार वि इक भायण तेग बुहांण विढे खग 'पीथल' रौ बखतेस विढे चंडिका पुत्र यूं वरणेस विढे जुध मेड़तिया जुध वेर विढे भड़ 'जैत' तणौ 'वखतेस'
३८८ २१६
७
६८ १२४ १२४
८ ८ ८ ८
८७
२६४
१८५
२६६
6 6
८३
२४५ २७६ ४७४ ६५४
6 6 6 6 6 6
१५०
५३० ५७४
SATARAMPARKevine
gu
७
१४६ १८३ ७७७ १४६
५१५ ६५३ २५४ ५१७
७
Page #430
--------------------------------------------------------------------------
________________
[
४६ ]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्याक
मोतीदांम
७ ७
१४० १४३ १२२ १४३
५२३ ५०५ ४२४
४०२
१२१
६९
१४७ ६२४
१७५
२१२
६५
२०८
२६७ १६२
५७६
८७
२६२
७०
२५६
विढे भड़ माहव रौ "विजपाळ' विढे भड़ भाटिय यू जुधवेर विढे 'सत्रसाल' खगां वर वीर 'विहारिय' संभ्रम झोकि वहास विध धज साबळ चोळ वरन्न विभाड़त मूगळ खाग बिहार विरांण सरूप कियां जिणवार विलंद निवाब परा वीरयांम पीरक्क नचक्क सझक्क सबक्क
ही झळ ऊपर वीजळ वेगि बेधे बळ मुग्गळ कूत बहेत 'वणावत' 'पातल' वीजळ वाह सको 'अनराज' सदीठ समाज सकौ जुध हूंत हरोळ सधीर सको धर लोक तजे दुख सोक सत्रां अध घाट कितां प्रध संघ सभ खगभाटकळसाथ सझे खग झाट हण खळ साथ सझे खग वाह खळां समराथ सझे खळ मार छतीसई सार सझे खळ 'सांवळ' रौ 'प्रचळेस' सझे जुध 'केसव' रौ सिवान सझे जुध वारुण दौलतसाह सझे जुध 'वीद' हरा खळ साल सझे भड़ तीन लखे सरियन 'सतावत' अम्मरसींघ छछोह 'सदावत' सांमत 'स्याम' सनाह समोभ्रम 'केहरि' पाथ समाथ । समोभ्रम गोकळ पातलसाह समोभ्रम 'गोयंद' अम्मरसिंघ समोभ्रम 'चंद' 'सिवौ' धुबि सार समोभ्रम जीवणदास सनाथ समोभ्रम 'जैत' ज 'नाहर' साह समोभ्रम दारुण सूर 'किसोर' समोभ्रम 'दूद' 'विहारिय' सूर
G८ ८ ८ ८ ८ ८ ८G
२२८
१५६
३०१
१३२
३
१८२
६५२
८१ १५७
४८६ २७१ ५५६
१००
५८ १४६
6 6 6 6 6G
१८० ५२९
७३
७
२४०
१२०
५३७
१५२ १४८ १५१
५२२
७
५३५
Page #431
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ४७ ]
नाम
प्रथम पंक्ति
पृ०
प्रकरण पद्यांक
मोतीवांम
१४५
७
५१२ १८७ ४५६
३७२
१०६ ६७
२१५
१७७
१३६
४७६ ५४१ ३३५
१८
१८४
समो भ्रम 'नाहर' जूटत 'सूर' समोभ्रम 'पेम' 'हिंदाळ' सकाज समोभ्रम 'माहव' सामंत सूर समोभ्रम 'माहव' ग्यांन सधीर समोभ्रम 'राम' प्रदीत सराह सपोभ्रम 'राजड़' 'पेम' सकाज समोभ्रम 'राजड़' 'रेणा' सधीर समोभ्रम 'रूप' लड़े 'अमरेस' समोभ्रम 'वोठळ' 'केहर' सूर समोभ्रम 'सांमतचंद' सकाज समोभ्रम 'सांमळ' 'जग' सुझस समोभ्रम साहिबखान सकाज समोभ्रम 'साहिब' भांण सराह समोभ्रम सुंदर सूरजमाल 'सवाइय' 'मान' तणो सिरताज 'सवाइय' वाहत खाग सक्रोध सरस्सति द्वारमती विचि सूर सराहत विक्रम देखि समाथ सराहत सूर हयां खग में'स सहेत झिलम्म पड़े घमसांण सहै खग संभ्रम 'सांमत साह' सत्रां खग झाटक 'गंग' सझेस सत्रां गहि कंध उठावत सीम सत्रां घड़ खाग झटां घड़ सोध सत्रां 'महपति' करत संघार सांम्है सिर खाग वही घमसांग 'सिभू' कुसाळावत बीजळ सूर सिरं 'दुरगावत' सूर सधीर सिरोहिय ईडर राज समाज सिल्है अंग पाखर बाज दुसार सिलेह घड़ पाखर बंधि सुचंग सिलबंध घाट उझेलत सेल सिलबंध टूक पड़त समंग सिलेबंध पाखर बंध सँघार सिल्है खग वाढत खांन सरीर
११२
३८३ ५६७ १५२ ७ ५३८ १४६
५२६
३६८ ११०
३७७ १८० १७७
२०३
१११११, 9 9 9 9 999999999999999999999
६४
७६
२०६ ४८३
१३७ १०८
३६६
११६
१८८
४१२ ६७५ २८१
१६
३२६
१२३
१४८
२७१ ४७
१४४ ११७ .१७४
७
५८२ ७ ५०० ७ . ४०४ ७ ६२२
Page #432
--------------------------------------------------------------------------
________________
[
४८
]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक
मोतीवाम
५० १४१ ५३ २६६ ७६
७ ७ ७ ७ ७
१५१ ४६६ १६२ ६४४ २५०
४७६ १६२ ३०० ४५०
८६
१२६ १४६
८५ १८८ १४८ २७१ १७८
५२८ २८५ ६७४ ५२५
१४६
२२४ ३५२
सिल्है घट वेधत वाहत सेल सजावत साहिब खांन सकाज 'सुजा' हर सूर 'मुकंव' सुतन्न सुणे कथ एह 'महम्मद साह सुतन्न हरिद' लड़े 'सिरदार' सुतं 'जगरूप' व्रजागि समांम सुता 'रतनेस' मोहक्कम सूर सुतां 'रतनेस' अरिज्जण साह सुभां 'बळ' गात पराक्रम सीम सुर त्रिय नाम वरै सस धीर सुरां गुर राय मलोत सकाज सुरां गुर पूर झिल अंग सार सुरां गुर 'सांमत' सूर सुजाव सुराचंद पारकरेस सधेस सुरायण पूर किया रिण साज सुरै 'फतमाल' तणे सिरदार' सुहै इण भांति लड़े समराथ सोहै हथ घाव सुरंग सुभेव हई घड़ खाग झटां धड़ हेक हई बर पाय असीसत हूर हकारत सूर वकारत हेक 'हठी' रिणछोड़ तणो करि हाक हण खग झाट अमीर हरोळ 'हवौ' भड़ गोरधनोत हटाळ 'हरी' 'सबळेस' तणौ करि हाक 'हरी' सुत 'ऊदल' भांण हठाळ 'हरी' सुत केहर जूटत हेक हरोळायहूंत हरौळ हठाळ हिचै 'कुसळोहर' घायल होय हिचं चंद्रहास रच रिख हास हिच तदि धारण झोक हुबास हिचं दुरगावत झोकि हुबास हिचं भड़ सिंधल चंद्र प्रहास हिवै दळ पूर कढी चंद्रहास हुवा लगि वासिय अमर होय
१७०
६०८
५६६
१६८ १४३ ६२
१९४ १६१
१६०
५७२
१२३
४२८
२६८
१६७
५६५
१४०
१७७ १६.
५०४
६३५ ७ ६२
Page #433
--------------------------------------------------------------------------
________________
[ ४]
छंद का नाम
प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक
मोतीवाम
६६७
८
१२५ १८६ १३६ ७५
४८६
G
6
२४७ २१३
6
रसावला
6
११७
6
१२४
6
१२३ १२०
6
6
१२६
6
6
४४
७
१२८
K
6
-
6
-
११९ ११८
6
6
हुदा मझि चंड चढ हुलसाय हुबै धरि क्रोध गजां थट हूंत हुवै खळ वीजळ वाहत हाथ हुवै घण मुग्गळ पोखम हेम हौदां मझि लोह कर करि हाक माछटै अज्जरा प्रांवता अंधरा उड्डि सीस उरा कटीए कल्लरा किड्ढ धूबक्करा करबाहै करा केतरा राहरा घूम घूमरा नडिए जूंगरा भूलपै झझरा डाडरा वोहरा अक्ख मेटत्तरा पिंड़ नाळप्परा परियांम 'प्रभा' सरमा चौसरा उपराळ हौदाळ लंकाळ चढे प्रतिकाळ कराळ झळां भभक करिकाळ भड़ां तिह काळ कितां करिमाळ झड़ा जरदाळ कदै करिमाळ झुलाळ बंगाळ घणा कटि केक खराळ झंफाळ कट घड़ भूप 'प्रभा' र विलंब तणी घड़ रीठ झडझड़ खाग रमै धमछट्ट विकट्ट गरट्ट पड़े धड़ घट्ट उछट्टत भट्ट धणां बोही सीस उडक्क हिचक्क उवासक अंधक केड हुचक्क उडे रवताळ रौदाळ रोसाळ महारिण काळ खंडाळ पाताळ करै हाथियां घड़ हूचक झूल प्रकझक रंभ तकत्तक
१२२
6
WWW
३
6
१२६ १२५
6
७
रोमकंद
४६७८६२
७८६४
८६५
२४८
८८५
२५१ ७
८६६.
७८६१
२५०
७
८६३
ર૪
૭
તeo
Page #434
--------------------------------------------------------------------------
________________
छद का नाम
रोमकंद
सारसी
८४६
[ ५. ] प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक होय रिख हड़ाहड़ पावहयज्झड़ धूम त्रवध्धड़ मेछ घड़ी
२४८ ७ ८८९ अणभंग 'सामंत' धणी प्रामळ प्रोपमा वेद प्रावतौ २३६ ७ ८५२ 'अमर' रो 'मोहकम' रा असूरां बह हणे धड़ बेहड़ा २३६ ७ । ८५६ इषिकाय इसड़ौ गजर उडियो घाय खग जुड़ि घूमरा २४६ ७ ८८२ इम लड़े चुखचुख होय पड़ियो भांण कौतिक भाळियौ २४६ ७ ८८३ उडि बांह मुगळा जिरह ऊगळि नारंग रंग नक्कली २३६ ७ ८५१ उरड़िया मुगळ 'गुलाब' ऊपर रवद रूपड रांमणा २३६ ७ इंद्रसींघ सुतभड़ 'जोध' अणभंग 'लाल' 'सुत' गज. . 'बंध' लड़े
२३८
८५८ कळ है नरूहर 'पद्म' कूरम प्रोरिया अजरायका २४७ ७ ८८४ केवांण पांण विभाड़ कलमां सार धड़ भड़ साहियां २४७ ७ ८८५ झड़वांण खड़हड़ प्रीध झड़फड़ भूत खेचर भूचरा २३५ ७ तन जतन न करे लड़े विजड़ा सझे कारिज सामरौ २४१ ७ ८६७ तिणवार 'जालम' 'केहरी' तण कर खग झट खळ कट
२३७ ७
८५३ तिणवार 'भगवंत' 'केहरी तण वर्ण त्रिजड़ा वाहतो २४१ ७ ८६५ तिणवार 'हिंदव' 'बहादर' तण सेल धड़ खळ साळवै २४३ ७ ८७३ दइवांण सिंभूसिंघ दारुण दुसह वारण निरदळे २३८ ७ ८५६ बईवांण 'जोध' कळोष दारण हिचे पारण हड़बड़े २४४ ७ 'दान' रौ 'अभमल' झाट दुजड़ो 'कान्ह' 'सुत' 'देवो' करो
२४४ ७ ८७४ घुवि राग सोंधव बंब धूसां तूर भेरि त्रहक्कए २३५ ७ ८४८ पण हाथ झड़ झड़ जरद पोसा उपर बळ धड़ ऊससै २३७ ७ मगरूर 'मांन' 'अनोप' संभ्रम 'खो' 'मान' 'सुजावयं 'महिरांण' 'भगवत' सुतण प्रसिमर रवद थट पाधोरियो
२४७ ७
८५६ रसलूध लखि इम घड़ा रवदां अछर घूमर प्रावियो २४० ७ ८६२ लह लागिया लोहाळ लसकर भयंकर गज भाररौ २३७ ७ ८५५ वधि 'जसौ' 'संभव' सुतण वाहत चोळ खगि कळि चाळिका
२४२ घरमाळ गळ अंत्राळ पग विच झाळ वन खग प्रोझदै
२४३ ७ ८७२
6 6
८७६
6 6 6
८५४
6
८७५
6 6 6
२
७
८७०
6
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छंद का नाम
सारसी
[ ५१ ] प्रथम पंक्ति
पृ० प्रकरण पद्यांक वाहै 'विजावत' बहादर वधि वाढ़ झळहळ वीजळे २३६ ७ ८५७ 'विजपाळ' हाकलि जेण वेळा सूरवीर सकज्जयं २३६ ७ ८५० वीजळां हाथळ गजां विहंडत करत समहर कामरौ २४२ ७ ८७१ संभ्रम 'बहादर' अडर समरथ धोम धरहर धौखळा २४० ७ सम्झ 'सवाई' 'सुरत' संभ्रम घटा खळ खग झट घणी २४० ७ ८६४ समहर 'सवाइय' 'राजसी' सुत धजर खग चवधारका
२४५ ७ सर धजर साबळ गजर असिमर असुर सिर पर प्राछट
२४६ ७ ८८१ सिर उडं फूट वहै स्रोणित लोहि हठमल सुत लई २३६ ७ सुत 'कान्ह' 'मांनड़' जोस समहर 'नाथ' भड़ रुघनाथरी
२४५ ७ सुत 'भाउ' झळहळ घाव साबळ रह चंदळ रवदाळर २४५ ७ ८७९ सुत भावसिंघ 'भगोत' साबळ धड़ जड़े भड़ प्रसिधरा २४२ ७ ९६६ 'सुरतेस' 'प्रखमल' सुतण साबळ जरद पोसां उर जडै २४१ ७ ८६८ हद लड़े 'सामंत' 'तेज' झळहळ भोप वयळ ऊजासरी
२४१ ७ ८६६ हर सिखर कूरम घणा खळ हणि धजर साबळ धौहडां
२४५ ७ .
666
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परिशिष्ट ३
भौगोलिक टिप्पणियाँ
[ सूरजप्रकास के तीनों भागों में प्राये हुए ऐतिहासिक महत्व के स्थानों श्रादि का परिचय ]
अजमेर
राजस्थान के अजमेर जिले का मुख्य नगर है, जो अरावली पर्वत श्रेणी की तारागढ़ पहाड़ी की ढाल पर स्थित है । यह नगर १०४५ ई० में अजयपाल नामक चौहान राजा द्वारा बसाया गया था। ई० सन् १३६५ में मेवाड़ के शासक, १५५६ में अकबर और १७७० से १८८० तक मेवाड़ तथा मारवाड़ के भिन्न-भिन्न शासकों द्वारा शासित हो कर अंत में १८८१ में अंग्रेजों के आधिपत्य में चला गया ।
हिलवाड़ ( णिलवाड़ा )
यह हिल पाटन गुजरात के सोलंकी वंश के राजाओं की राजधानी था । इसे प्रसिद्ध चालुक्य मूलराज ने बसाया था और यह महमूद गजनी के हमले के पूर्व तक सोलंकी राजाओं की राजधानी बना रहा । सोमनाथ का प्रसिद्ध शिव मंदिर भी वहीं था जिसे महमूद गजनी ने १०२४-२५ ई० में आक्रमण कर के नष्ट कर दिया था । उसके बाद पुनः इस पर चालुक्यों का अधिकार हो गया और उन्होंने पर्याप्त काल तक राज्य किया । बाद में बाघेलों ने इसे जीत कर अपना राजकुल वहां प्रतिष्ठित किया । यह नगर वैभव की चरम सीमा तक पहुँच चुका था । १३वीं सदी के अंत में अल्लाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर श्राक्रमण कर के उसे जीता, तब यह उसी के साम्राज्य का नगर बन गया ।
अरब
एशिया के दक्षिण पश्चिम में एक प्रायद्वीपी पठारी भाग है जो १२° उत्तर अक्षांश से ३२० उ० प्र० तक तथा ३५० पूर्वी देशान्तर से ६६० पू० दे० तक फैला हुआ है । इसका क्षेत्रफल दश लाख वर्गमील है । यह संसार का अति उष्ण प्रदेश है । इसकी गणना संसार के प्रसिद्ध मरुस्थलों में की जाती है । यमन, असीर एवं ओमान के क्षेत्रों को छोड़ सम्पूर्ण अरब शुष्क एवं उष्ण है । यहाँ वर्षा बहुत कम होती है । कुछ भागों में सर्दियों में वर्षा होने से पैदावार हो जाती है। रियाध सऊदी अरब गणराज्य की राजधानी है। यह प्रायद्वीप खनिज तेल का भंडार है। यहां के लोग घोड़ा ऊंट, बकरी, भेड़, गदहा आदि पशु अधिक पालते हैं । मुसलमानों के पवित्र तीर्थ-स्थान मक्का और मदीना इसी देश के हेज़ाज़ प्रान्त में हैं।
श्राडौ-वळौ ( अरावली )
यह एक भंजित पहाड़ है जो पृथ्वी के प्रारंभिक काल में ऊपर उठा था । यह पर्वतश्रेणी समस्त गुजरात राजस्थान से ले कर देहली तक, उत्तर पूर्व से ले कर दक्षिण पश्चिम तक
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[ २ ]
लगभग ४०० मील की लम्बाई में फैली हुई है । इसकी औसत ऊँचाई १००० फीट से लेकर ३००० फीट तक है । इसका सर्वोच्च शिखर आबू पर्वत है जो ५६५० फीट ऊँचा है । इसका अधिकांश भाग वनपूर्ण है और आबादी भी अल्प है। इसके विस्तृत क्षेत्र अधिकांश में मध्यस्थ घाटियों एवं बालू के मरुस्थल हैं । इस पर्वत की कई विच्छिन्न - खलायें भी बन गई हैं, जिनका ढाल तीव्र है और शिखर समतल है । इसमें पाई जाने वाली शिलाओं में स्लेट, शिस्ट, नाइस, संगमरमर, क्वार्ट जाइट, शेल और ग्रेनाइट विशेष हैं ।
अवधपुरी (अयोध्या)
उत्तरप्रदेश का एक भाग जो प्राचीन काल में कौशल राज कहलाता था । इसकी राजधानी अवधपुरी (अयोध्या) थी । यह नगर घाघरा ( सरयू) नदी के दाहिने किनारे पर फैजाबाद जिले में स्थित है । इसका महत्त्व इसके प्राचीन इतिहास में ही निहित है । प्राचीन उल्लेखों के अनुसार इसका क्षेत्रफल ६६ वर्ग मील था। सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां श्राया था । उसके लेखानुसार यहाँ बीस बौद्ध मन्दिर थे तथा ३००० भिक्षु रहते थे । इस प्राचीन नगर के अवशेष अब खंडहरों के रूप में रह गये हैं, जिसमें कहीं-कहीं कुछ अच्छे मंदिर भी हैं । इनमें सीता रसोई तथा हनुमान गढ़ी प्रसिद्ध हैं । अब अयोध्या एक तीर्थस्थान के रूप में रह गया है ।
अहमदाबाद
यह नगर २३°१* उत्तर अक्षांश और ७२०३७" पूर्व देशान्तर गुजरात राज्य में बम्बई से ३०६ मील उत्तर में साबरमती नदी के बायें तट पर स्थित है । यह प्रमुख औद्योगिक, व्यापारिक तथा वितरण केन्द्र है ।
साबरमती तट पर एक भील सरदार के नाम पर असावल नामक रम्य स्थान था जो युद्ध की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था, जहाँ ई० स० १४११-१२ तदनुसार वि० सं० १४६६ में तातार खां के पुत्र अहमदशाह ने साँचल नामक ग्राम के स्थान पर अहमदाबाद नगर बसा कर इसे अपनी राजधानी बनाया । १४९१ ई० से १५११ ई० तक की मध्य की शताब्दी में इसकी उत्तरोत्तर उन्नति हुई । मुगलकाल में भी यह नगर उन्नति की चरम सीमा पर था । यह व्यापार, शिल्प, चित्र, स्थापत्य आदि विभिन्न कलाओं का केन्द्र था । किन्तु मराठा काल में इसका वैभव चौपट हो गया जिसका अंग्रेजी शासन काल में पुनरुत्थान हुआ ।
श्रांबेर
यह नगर जयपुर से सात मील उत्तर में पहाड़ों के बीच बसा हुआ है । नगर के पश्चिमी किनारे पर आंबेर का सुदृढ दुर्ग है और शिलादेवी का मन्दिर है जो बहुत सुन्दर ढंग से बना है । कछवाहा राजा काकिल ने वि० सं० १०९३ में सुसावत मीनों से छीन कर आंबेर
बेर है । यहां
If डाली । इसका प्राचीन नाम अम्बिकापुर था जिसका अपभ्रंश प्राचीन समय का बना अम्बिकेश्वर महादेव का मन्दिर भी है ।
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[ ५४ ]
आगरा यमुना नदी के दायें किनारे पर स्थित उत्तरप्रदेश का एक प्रसिद्ध नगर है । वर्तमान आगरा का इतिहास लोदी काल से प्रारंभ होता है । सिकंदर लोदी और इब्राहीम लोदी के समय में आगरा ही भारत की राजधानी था। वि० सं० १४६६ में यह नगर मुगल-साम्राज्य के संस्थापक 'बाबर' के अधिकार में चला गया । ई० सन १५७१ में अकबर महान ने आगरे के किले का निर्माण कराया। किन्तु किले की अधिकांश इमारतें जहांगीर और शाहजहाँ द्वारा निर्मित हुई हैं । इस काल में नगर की दशा अच्छी थी। नगर में सोलह प्रवेश द्वार थे। नगर का क्षेत्रफल ११ वर्गमील था । आगरा ताजमहल का नगर कहलाता है । यहाँ कई विशाल एवं भव्य इमारतें हैं जिनसे मुगलकालीन वास्तुकला की महत्ता प्रकट होती है। आगरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सब से बड़ा शिक्षा केन्द्र है।
प्राब (आबू पर्वत) आबू का प्राचीन नाम अरबुद्ध है । यह ४००० फीट की ऊँचाई पर बसा है। इसकी सबसे ऊँची चोटी का नाम गुरुशिखर है, जो ५६५० फीट ऊँची है। प्राचीन परम्परा के अनुसार यह वसिष्ठ ऋषि का निवास स्थान था। आर्यों के गुरु का निवास होने के कारण यह बुद्धिवादियों के आवागमन का केन्द्र हो गया। यहाँ वसिष्ठ द्वारा अनार्यों की शद्धि की जा कर उन्हें आर्य बनाया जाता था। इसी से इसे अरबुद्ध कहने लगे। इस पहाड़ का उल्लेख मैगस्थनीज ने भी अपनी भारत-यात्रा में किया था। प्राप्त अभिलेखों के द्वारा यह कहा जा सकता है कि यहाँ पहले शैव मत का प्रभाव था; बाद में यहाँ जैन मत का प्रभाव हो गया। ११वीं शताब्दी में यहाँ परमारवंश के क्षत्रियों का शासन था। इन्हीं पहाड़ियों की सहायता से सिरोही के राव सुरतारण अकबर के विरुद्ध गुरिल्ला रणनीति द्वारा मुगलाई फौजों को तंग करता रहा। १९वीं शताब्दी में प्राबू, अंग्रेजों के पोलिटिकल एजेन्टों का, गर्मी के लिये निवास-स्थान बना रहा । पाबू, मंदिरों का गृह और कला का केन्द्र है।
प्रासोप यह ठिकाना पासोप का मुख्य नगर है। उत्तरी-रेलवे के गोठन स्टेशन से १५ मील की दूरी पर तथा जोधपुर नगर से ५० मील उत्तर दिशा में स्थित है।
यह गुजरात का एक प्राचीन नगर है । इसके उत्तर में सिरोही और मेवाड़, पूर्व में डूंगरपुर, दक्षिण और पश्चिम में अहमदाबाद और गायकवाड़ है। साबरमती नदी इसकी पश्चिमी सीमा बनाती है । ईडर का किला बहुत ऊँची पहाड़ी पर बना हुआ है । यह पहाड़ी अरावली और विध्य से मिली हुई है । इसको वेणी वच्छराज ने बनवाया था। बाद में यह नगर जंगली भील लोगों का निवास स्थान रहा। ईडर के परिहार वंश का अंतिम राजा अमरसिंह शहाबुद्दीन गोरी की लड़ाई में पृथ्वीराज के साथ लड़ कर मारा गया और ईडर का राज सांवलिया सोड को मिला । बाद में राव सीहा के पुत्र सोनंग ने सांवलिया सोड़ को मार कर वि० सं०१३१३
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में ईडर का राज्य अपने अधिकार में कर लिया । इस प्रकार ईडर पर राठौड़ों का अधिकार हो गया। बाद में इस पर मुसलमानों का अधिकार लम्बे अर्से तक रहा । किन्तु ई० स० १७२६ में महाराजा अजीतसिंह के पुत्र आनन्दसिंह व रायसिंह ने ईडर पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार यह पुनः राठौड़ों के अधिकार में आ गया जो भारत स्वतंत्र हुआ तब तक राठौड़ राजाओं के शासन में रहा।
. .. . ईरान पश्चिमी एशिया का अति प्राचीन भाग जो फारस कहा जाता था। इसका प्राचीन नाम: आर्याना था । यह फारस, तुर्की, ईराक और रूस प्रादि देशों से घिरा हुआ है । प्राचीन काल से ही यह कला, सभ्यता और संस्कृति का केन्द्र रहा है । यह एलाम के नाम से पुकारा जाता है । इसका शासन पुरोहितों के हाथों में था । यहाँ की सभ्यता भारत की प्राचीन सभ्यता से मिलती-जुलती थी। ये सूर्य और अग्नि की पूजा करते थे। अरबों की ईरानविजय से लेकर अब तक इसकी सांस्कृतिक आत्मा अपनी महानता का परिचय देती रही है। ईरान और खुरासान बौद्ध धर्म का केन्द्र रहा है। इस्लाम के आगमन के बाद यह इस्लामी सभ्यता का महान केन्द्र रहा है। इस धर्म का महान विद्वान 'अलगिजाली' यहीं का रहने वाला था, जिसने कई पुस्तकें लिखी हैं । वर्तमान ईरान पेट्रोल, सूखे मेवे, गरम और रेशमी वस्त्रों के उत्पादन करने के कारण संसार भर में प्रसिद्ध है।
उज्जैन
इसका प्राचीन नाम उज्जयिनी था जो उज्जनता संस्कृत के उज्जैन्त का पाली रूपान्तर है। इसकी पुष्टि बौद्धों के पाली साहित्य से होती है । उस समय भारत के सोलह महा-जनपदों में अवंती का विशिष्ठ स्थान था और उज्जयिनी उसकी राजधानी थी। उस समय यह नगर संस्कृति और कला का केन्द्र था। मौर्य काल में भी इसका महत्त्व कम नहीं था। अशोक राजगद्दी पाने के पूर्व यहीं का शासक था। भारत से मध्य देश की ओर आने वाले मार्गों पर होने के कारण इसकी व्यापारिक एवं राजनीतिक महत्ता सदा बनी रही। विक्रमादित्य के समय में यह मालव गणतंत्र की राजधानी थी। यहाँ अनेकों युद्ध हुए, उनमें मुगलकालीन धरमत का युद्ध इतिहास-प्रसिद्ध है।
मुगलों और अंग्रेजों के समय में इसका राजनीतिक महत्त्व नहीं रहा ।
उदयपुर ई. सन् १५६८ में अकबर द्वारा चितौड़ के विजित होने पर महाराणा उदयसिंह ने अरावली की गिर्वा नामक उपत्यका में उदयपुर बसाया। यह समुद्र की सतह से लगभग २००० फीट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है एवं जंगलों द्वारा घिरा है । पहाड़ी के सर्वोच्च शिखर पर महाराणा के राज-प्रासाद हैं, जिनका प्रतिबिंब पिछोला झील में पड़ता है । प्राचीन नगर प्राचीर द्वारा प्राबद्ध है जिसके चतुर्दिक रक्षा के लिये खाई खुदी है । कुछ दूरी पर दक्षिण में एकलिंग की चोटी पर उदयपुर का प्रसिद्ध किला है । यह राजस्थान के उन्नतिशील नगरों में से एक है।
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कन्नौज यह नगर उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में है। इसकी स्थिति २७°३" उत्तर अक्षांश तथा ७६°५६" पूरब देशान्तर है। प्राचीन काल में गंगा नदी इस नगर के बाजू में बहती थी। ईसा की पांचवीं शताब्दी में यह गुप्त साम्राज्य का प्रमुख नगर था। इस नगर को छठी शताब्दी में हुणों ने आक्रमण कर के नष्ट कर दिया था। चीनी यात्री हनसांग ने भी इस नगर का उल्लेख किया है । ११वीं शताब्दी के प्रांरभिक काल में यवनों के आक्रमण के कारण यह नगर नष्ट-भ्रष्ट हो गया । इसके बाद ई० सन् ११६४ में मुहम्मद गोरी ने आक्रमण कर के इस नगर पर अपना अधिकार जमाया। अकबर के समय में भी यह उत्तरप्रदेश के मुख्य नगरों में था । वर्तमान समय में यह नगर सुगंधित इत्र मादि के लिये प्रसिद्ध है।
करौली यह राजस्थान का छोटा-सा राज्य था जो पूर्वी सीमा पर २६°३५ व २६०४६" उत्तर अक्षांश और ७६°३५" व ७७°२६" पूर्व देशान्तर के मध्य में स्थित है । इसका क्षेत्रफल १२०० वर्ग मील है। इस नगर को वि० सं० १४०५ में राजा अर्जुनदेव ने बसाया था और कल्याणराय के मन्दिर के कारण इसका नाम करौली रक्खा गया। प्राचीन काल में यहाँ मीनों की आबादी अधिक थी। ये लूट-पाट अधिक किया करते थे जिससे इस नगर की तरक्की नहीं हई । राजा गोपाललाल ने इन मीनों को दबा कर शहर की तरक्की की।
कागो ' यह स्थान जोधपुर से १ मील उत्तर दिशा में स्थित है। प्राचीन ग्रंथों के आधार पर यह कहा जाता है कि यहाँ काकभुसुण्डजी ऋषि ने तपस्या की थी। इसी से इसे कागा कहते हैं । यहाँ का जल बड़ा स्वच्छ तथा स्वास्थ्यप्रद है । यहाँ शीतलादेवी का बड़ा सुन्दर मन्दिर है, जो पहाड़ काट कर उसकी चट्टान के नीचे बनाया गया है । यहाँ प्रति वर्ष चैत्र कृष्णा अष्ठमी को शीतला का मेला लगता है, जो तीन-चार दिन तक रहता है। इसके समान जोधपुर में जन-समूह के लिहाज से दूसरा मेला नहीं लगता । यहाँ के पुजारी गहलोत वंश के माली है। यहाँ का बाग पहले बड़ा सुन्दर था और इस बाग के अनार भारत भर में प्रसिद्ध थे, किन्तु महाराजा सर प्रतापसिंह के द्वारा यह बाग समूल नष्ट करवा दिया गया। यहाँ एक गौशाला भी है । कागा के पास श्मशान भी हैं। कागा जोधपुर के तीर्थ-स्थानों में गिना जाता है।
किशनगढ़ यह नगर राजस्थान के पूर्वी भाग में बसा हुआ है । मोटा राजा उदयसिंह के १४ पुत्रों में से किसनसिंह जहाँगीर के पास रहता था। बादशाह जहाँगीर ने उसकी सेवाओं से प्रसन्न हो कर सेठोलाव जागीर में दिया था, जिसके खंडहर अब भी किशनगढ़ के पश्चिम की तरफ मौजूद हैं । उसी स्थान पर वि० सं० १६६६ में किसनसिंह ने किसनगढ़ बसाया। यह नगर फूलेरा से अजमेर जाने वाली पश्चिमी रेलवे का स्टेशन है । नगर छोटा होने पर भी बहुत सुन्दर ढंग से बसाया गया है ।
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कोटौ कोटा नगर राजस्थान के पूर्वी दक्षिणी भाग में हाडोती के पठार पर २४°३०" उत्तर अक्षांश और ७५°४० पूर्वी देशान्तर पर स्थित है । यह नगर राजस्थान की प्रसिद्ध नदी चम्बल के दक्षिणी पूर्वी किनारे पर बसा हुआ है । यह नगर चौदहवीं शताब्दी में कोटिया भील के नाम से बसाया गया था। उस समय यहाँ भीलों का अधिकार था। प्राचीन लेखों के अनुसार यहाँ नागवंशी और मौर्यवंशी राजाओं का भी राज्य रहा है । इसके बाद वि० सं० १६८८ तदनुसार ई० स० १६३१ में यह चहुवान वंश के हाड़ा राजपूत राव रतनसिंह के कनिष्ठ पुत्र माधवसिंह के अधिकार में आ गया। तब से भारत के स्वतन्त्र होने के पूर्व तक यहां इसी वंश का राज्य रहा।
गिरनार यह बहुत प्राचीन स्थान है। काले पत्थर की पर्वत-श्रेणी जो लगभग १२ मील तक चली गई है । इसके मध्य भाग में एक बड़ा दुर्ग है । इसे ग्रहरिपु ने बनवाया था। इसकी सुन्दर घाटी के मुख पर नेमिनाथ का पवित्र पर्वत गिरनार खड़ा है, जहाँ कई जैन मंदिर हैं।
इसके मुख्य भाग पर ही प्राचीन नगर जूनागढ़ है। पहले यह सोरठ कहलाता था, वहाँ का स्वामी राव खंगार था। इस नगर के दरवाजे से ही यात्रियों के पद-चिन्हों से बनी हुई पगइंडी सोनरेखा नदी के किनारे-किनारे उसके उद्गम स्थान गिरनार के शिखर तक चली गई है, जहाँ समतल भू-भाग है। यहाँ पर जैन तीर्थंकरों के चैत्य बने हुए हैं। इस मैदान से गिरनार के शिखर तक चढ़ने का झाड़ियों में हो कर एक बीहड़ मार्ग अम्बादेवी के मन्दिर तक चला गया है। गिरनार पर्वत की छः अलग-अलग चोटियाँ हैं जिनमें सबसे ऊँची चोटी गोरखनाथ नाम से प्रसिद्ध है।
गोलकुण्डा
बहमनी सुलताना के समय में गोलकुण्डा तैलंगाना प्रदेश की राजधानी था । १५वीं शताब्दी में बारा मलिक कुल कुतुब-उल मुल्क (Barra Malick Kull Kutbul Mulk) जो सुलतान मुहम्मद बहमनी की मातहती में आया, जिसे गाजी का खिताब दिया गया और उसे तैलंगाना का शासक बना दिया। १५१० ई० में यह स्वतंत्र हो गया । उसके बाद १५७६ ई० में सम्राट अकबर ने राजा मानसिंह को भेज कर इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया । शाहजहाँ के सयम में इसके शासक पुन: स्वतंत्र हो गये थे । औरंगजेब ने गोलकुण्डा के नवाब को, जो शिया मुसलमान था, नष्ट कर के गोलकुण्डा को पुनः मुगल-साम्राज्य में विलीन कर दिया।
खेड़
यह प्राचीन नगर उत्तरी रेलवे की बाहड़मेर शाखा के बालोतरा स्टेशन से कुछ दूरी पर है। नगर उजड़ी दशा में अब तक मौजूद है। यहाँ के प्राचीन विष्णु और शिव-मन्दिर १२वीं शताब्दी के उत्कृष्ट नमूने हैं। उस समय यहाँ गुहिलों का अधिकार था। डाभी इनके मन्त्री थे। इनका परस्पर वमनस्य था। इस वैमनस्य से लाभ उठाने के लिये राव सीहाजी ने इस
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[ ५८ . ] पर अधिकार करने के लिये आक्रमण किया किन्तु बीच में ही लौटना पड़ा परन्तु उनके पुत्र प्रासथान ने खेड़ पर अधिकार कर के इसको अपनी राजधानी बनाया ।
खेतड़ी यह जयपुर राज्य के एक बड़े जागीरदार के ठिकाने की राजधानी का नगर है। यहाँ पहाड़ी पर एक किला है । यहाँ की पहाड़ी में तांबे की खानें हैं।
चाटसू यह जयपुर राज्य का एक कस्बा है। यहाँ पर डूंगरी-शेलर माता का बड़ा मेला लगता है।
चित्तौड़गढ़ यह दुर्ग पहाड़ी पर बना हुआ है जो समुद्र की सतह से १८५० फुट ऊँचा है। इसकी लम्बाई लगभग साढे तीन मील और चौड़ाई करीब आधा मील है । यह अति प्राचीन दुर्ग है । इसको मौर्यवंशी राजा चित्रांगद ने बनवाया था। मौर्यों के बाद विक्रम की आठवीं शताब्दी के अंत में गुहिलवंशीय राजा बाप्पा रावल ने अंतिम मौर्यवंशी राजा मान से छीन लिया था। यह अनेकों बार बसा और उजड़ा है। इस पर कुछ समय तक मालवे के परमारों तथा गुजरात के सोलंकियों व मुसलमानों का आधिपत्य भी रहा है । महाराणा उदयसिंह के समय वि० सं० १६२४ तक यह मेवाड़ की राजधानी भी रहा है ।
जयपुर राजस्थान का प्रसिद्ध नगर जयपुर जो २६°५६ उत्तर अक्षांश तथा ७५°५८ पूर्व देशान्तर पर स्थित है। इस नगर को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने वि० सं० १७८४ पोष वदि १ बुधवार को बसाया था। इसके पूर्व इस राज्य की राजधानी अांबेर थी जो वर्तमान राजधानी से ७ मील दूर पहाड़ियों से घिरा हुआ है। जयपुर नगर अपनी सुन्दरता और बनावट के लिये भारत भर में प्रसिद्ध है, अत: यह भारत का पेरिस कहलाता है । वर्तमान जयपुर समस्त राजस्थान की राजधानी है । आबादी के लिहाज से यह नगर राजस्थान में सर्व प्रथम है।
जहाजपुर यह अति प्राचीन स्थान है । लोगों का कथन है कि जनमेजय का नागयज्ञ यहीं हुआ था, अत: इसका नाम यज्ञपुर हुआ और उसका अपभ्रंश जहाजपुर है। नागेला तालाब और नागदी नदी उस यज्ञ की परिचायिका है । जहाजपुर के इर्दगिर्द अनेकों प्राचीन स्थान हैं, जहाँ चौहानों के शिलालेख मिलते हैं। धौड़ गांव के रूठी राणी के मन्दिर के वि० सं० १२२५ के लेख में पृथ्वीराज की राणी का नाम सुहवदेवी लिखा है जो रूठी राणी के नाम से प्रसिद्ध है। इसके अलावा भी वि० सं० १२२८ और १२२६ के शिलालेख हैं। इस कस्बे के लोहारी व प्रांवलदा गांवों में वि० सं० १२११ और १२३४ का चौहान राजा वीसलदेव और सोमेश्वरदेव के राज्यकाल के शिलालेख मिले हैं, जिनमें सिंदराज और जेहड़ की मृत्यु का उल्लेख है।
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[ ५६ ]
जालोर जोधपुर के जालोर परगने का मुख्य स्थान है और सूकड़ी नदी के किनारे पर बसा हुआ है। प्राचीन सुदृढ़ गढ के भग्नावशेष हैं। पहले इसे परमारों ने बसाया था। बाद में जालोर चौहानों की राजधानी रहा। शिलालेखों के अनुसार इसका नाम जाबालीपुर और किले का नाम सुवर्णगिरि मिलता है । यहां की प्राचीन वस्तुओं में तोपखाना है, जो अलाउद्दीन खिलजी के समय में चौहानों से मुसलमानों के हाथ में चला गया। इसके उत्तरी द्वार पर फारसी में एक लेख है जिस में मुहम्मद तुगलक का नाम है । इस नगर से जैन तथा हिन्दुओं से सम्बन्ध रखने वाले कई लेख मिले हैं । एक वि० सं० ११७४ का बीसल की राणी मेलरदेवी द्वारा सिन्धु राजेश्वर के मंदिर पर सुवर्ण कलश चढ़ाये जाने का उल्लेख है। इस प्रकार इसकी प्राचीनता के अनेक शिलालेख मिले हैं।
जैतारण यह प्राचीन स्थान जोधपुर के जैतारण तहसील का मुख्य स्थान है। यहाँ प्राचीन काल में सींधलों का अधिकार था । किन्तु सूजाजी के पांचवें पुत्र राव ऊदाजी ने वि० सं० १५३६ में सींधलों को हरा कर जैतारण पर अपना नया राज्य कायम किया था। जैतारण राव ऊदा को सूजाजी ने जागीर के रूप में नहीं दिया था वरन् अपने बल-विक्रम से नया राज्य कायम कर के ऊदावत शाखा का इतिहास प्रारम्भ किया। बाद में जैतारण खालसे हो गया और ऊदावतों को नींबाज मिल गया जो आज भी ऊदावतों का बड़ा ठिकाना है। जैतारण वि० सं० १६१४ में ऊदाजी के वंशजों के हाथ से निकल गया और उस पर मुसलमानों का अधिकार हो गया। मुसलमानों से पुनः राठौड़ों ने जीत लिया।
जैसलमेर यह नगर राजस्थान के पश्चिम में अन्तिम सीमा पर २६°५ उत्तर अक्षांश और ६६०३० पूर्व देशान्तर पर स्थित है । यह नगर इस राज्य की राजधानी है, जिसको चंद्रवंशी भाटी राजपूत रावल जैसल ने वि० सं० १२१२ में बसाया था। इसका प्राचीन नाम जैसल नगर, बल्लदेश और मांड भी मिलता है । ई० स० १२९४ में बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी ने इस पर आक्रमण कर इस नगर को वीरान कर दिया था। इसके बाद ई० स० १२६६ में रावल दूदा द्वारा यह पुनः प्राबाद किया गया, किन्तु रावल घड़सी के समय में नगर अधिक उन्नत हुआ।
जोधपुर . यह मारवाड़ राज्य की राजधानी था । यह २४°३० व २७°४० उत्तर अक्षांश और ७० व ७५०२० पूर्व देशान्तर पर स्थित है। इस नगर को राव जोधाजी ने वि० सं० १५१५ तदनुसार ई. स. १४५८ में बसा कर पाबाद किया। इसके पूर्व राज्य की राजधानी मंडोवर थी जो जोधपुर नगर से ६ मील दूर है। यह नगर महाराजा यशवन्तसिंह की मृत्यु के बाद कुछ समय तक मुगलों के अधिकार में भी रहा । किन्तु महाराजा अजीतसिंह ने इसे पुनः प्राप्त कर लिया, तब से इस पर उन्हीं के वंशजों का अधिन कार रहा। यह आबादी की दृष्टि से राजस्थान का दूसरा नगर है।
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डीडवाना
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"डीडवाना -- - यह डीडवाने परगने का मुख्य नगर है। चित्तौड़ के कीर्तिस्तम्भ से ज्ञात होता है कि यह प्रदेश महाराणा कुम्भा के प्राधीन था और वह यहाँ की नमक की झील व खानों से कर लिया करता था । यह नगर उत्तर रेलवे का रेलवे स्टेशन है। यहाँ के प्राचीन और नवीन मन्दिर व हवेलियां देखने योग्य हैं।
डूंगरपुर यह नगर भूतपूर्व डूंगरपुर राज्य की राजधानी था, जो कि २३°२५" उत्तर अक्षांश और ७३०४०" पूर्व देशान्तर पर स्थित है । इसकी उत्तरी सीमा मेवाड़ और माही नदी से मिलती है । यह नगर चारों ओर पहाड़ियों से ढका है जिस पर कि प्राचीन काल में मेरों का अधिकार था। इन मेरों के स्वामी डूगरिया मेर को मार कर रावल करण के बेटे माहप ने अपना अधिकार कर डूंगरपुर नगर बसाया । इस नगर को बसाने में राहप ने भी सहायता दी थी, यह मेवाड़ की ख्यातों से प्रमाणित होता है।
ढंढाड़ * · ढूढाड़ जयपुर राज्य का प्राचीन नाम है । इसके विषय में कई कल्पनाएँ की गई हैं। हिन्दी विश्व कोश के अनुसार गलता के ढुंढुं दैत्य से ढूंढाड़ विख्यात है।' टाड साहब के अनुसार जोबनेर के एक प्रसिद्ध शिखर ढूढ़ पर चौहान राजा बीसळदेव ने दैत्य रूप में तपस्या की थी तब से ढूढाड़ विख्यात हुआ है ।। जयपुर से १५ मील उत्तर में अचरौल के पास की पहाड़ियों से ढूंढ़ नदी निकलती है । अतः सम्भवतः इस नदी के नाम पर राज्य का नाम ढूंढाड़ हुआ हो ।३ जयपुर के समीप ढूढ़ नाम की एक बस्ती है और उसी के समीप आमेर के पर्वत का एक अति उच्च शिखर ढुढाकृति में दृष्टिगोचर होता है, इस कारण से भी आमेर राज्य ढूंढाड़ के नाम से विख्यात हो सकता है ।
तारागढ़
- यह इतिहास-प्रसिद्ध दुर्ग राजस्थान के अरावली पर्वतश्रेणी की तारागढ़ नामक पहाड़ी पर स्थित है । इसी पहाड़ी की तलहटी में अजमेर नगर बसा हुआ है। कहते हैं कि इस दुर्ग का निर्माण छठी शताब्दी में महाराजा अजयपाल चौहान ने किया था। यह सुदृढ़ और सुरम्य दुर्ग जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह के अधिकार में भी रहा था। मुगलकाल में यह मुगलों के अधिकार में और बाद में अंग्रेजों के अधिकार में चला गया। इस समय यह दुर्ग भारत सरकार के अधिकार में है।
फारस के उत्तर पूर्व में पाया हुआ मध्य एशिया का भू-भाग जो तुर्क, तातारी, मुगल मादि जातियों का निवास-स्थान है।
१ हिन्दी विश्वकोश, पृष्ठ ६३
२ टाड् राजस्थान, पृष्ठ ५६० . ३ वीर-विनोद, भाग २ पृष्ठ १२५० .४ जयपुर का इतिहास, भाग १, पृष्ठ १३, ई० सन् १९३७, हनुमान शर्मा
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प्राचीन इतिहास के अनुसार 'शक' तूरानी जाति के ही थे, जिनका ईरान वाले प्राय से हमेशा युद्ध होता रहता था । ईरानियों ने तूरानियों को पराजित कर कई स्थानों पर अधिकार किया था । प्राचीन तूरानी अग्नि की पूजा करते थे और पशुओं की बलि चढ़ाते थे । वे प्रायों की अपेक्षा असभ्य थे । इन तूरानियों के उत्पातों से एक बार सारा यूरोप और एशिया तंग था । भारत पर आक्रमण करने वाले चंगेजखाँ, तैमूर, उसमान आदि इसी तूरानी जाति के अन्तर्गत थे, जिन्होंने सारे एशिया को अपने प्रत्यावारों से विचलित कर दिया था ।
दिल्ली
भारत का बहुत प्राचीन और प्रसिद्ध नगर जो यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है और बहुत समय तक हिन्दू सम्राटों और मुसलमान बादशाहों की राजधानी रहा । यह नगर १९१२ ई० से ब्रिटिश भारत की राजधानी भी बनाया गया। दिल्ली नगर कई बार बसा और कई बार उजड़ा । कहते हैं कि इन्द्रप्रस्थ के मयूरवंशी राजा दिल ने सर्व प्रथम इसे बसाया था, इसी से इसका नाम दिल्ली पड़ा। यह भी प्रवाद है कि राजा अनंगपाल के पुरोहित द्वारा इस नगर की नींव रखने के पूर्व एक कीली शेष नाग के करण पर गाड़ी गई । राजा के द्वारा निकाले जाने पर लहू-धारा निकली तो राजा ने पुनः उस कील को गाड़ दिया पर वह ढीली रह गई जिससे उसका नाम ढीली पड़ गया जो बिगड़ कर दिल्ली हो गया। वर्तमान समय में यह भारत की राजधानी है ।
द्वारका
यह गुजरात व काठियावाड़ की एक प्राचीन नगरी है । पुराणानुसार यह सात पुरियों में मानी जाती है । यह हिन्दुनों के चार धामों में है । हिन्दू तीर्थ-यात्री यहां आ कर बड़ी श्रद्धा से द्वारकानाथ की छाप लेते । राजस्थानी में इसे द्वारामती, द्वारावती भी कहते हैं। श्री कृष्ण भगवान जरासंध के उत्पातों के कारण मथुरा से यहां आ कर बस गये थे और इसे अपनी राजधानी बना ली थी। इसका दूसरा नाम कुशस्थली भी है ।
नागौर
नागौर इसी विभाग का मुख्य नगर है और राजस्थान के बहुत प्राचीन नगरों में से एक है । संस्कृत ग्रंथों में इसे अहिछत्रपुर या नागपुर लिखा है । नाम से ही ज्ञात होता है कि यहाँ नागवंशियों का राज्य था और यह जांगल देश की राजधानी था । बिजोल्या 'मेवाड़' के वि० सं० १२२६ के शिलालेख से ज्ञात होता है कि यह चौहानों के भी अधिकार में रहा था । यहीं से जा कर चौहानों ने सांभर को अपनी राजधानी बनाया । प्राचीन काल में सांभर, अजमेर और नागौर आदि का राज्य सपादलक्ष कहलाता था, जिसका अपभ्रंश रूप सवाळक ( सवाळख) है। नागौर के आसपास के भाग को आज भी सवाळख कहते हैं । नागौर के बरमायों के मंदिर के स्तम्भों पर खुदे ई० स० १५६१ के और १५६४-६५ के हसन कुलीखाँ की मसजिद में और १६७७ के अकबरी मस्जिद के लेख इसकी प्राचीनता के प्रमाण हैं । श्राईन-ई-अकबरी के लेखक अब्बुल फजल और शेख फैजी नागौर के शेख मुबारक के पुत्र थे
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[ ६२ ] और अकबर की सभा के नौ रत्नों में थे। यहाँ के कई फारसी लेख शहर के परकोटे की चुनाई में उल्टे-पुल्टे लगे हुए विद्यमान है।
नाडोल (नाडूल) यह बहुत प्राचीन ऐतिहासिक नगर पश्चिमी रेलवे के राणी स्टेशन से १४ मील की दूरी पर है। यह गोड़वाड़ के जैनों के ५ तीर्थों में से एक है । यह नगर मारवाड़ के चौहानों की मूल राजधानी थी। कर्नल टॉड को इस नगर से वि० सं० १०२४ और १०३६ के चौहान वंश के संस्थापक राजा लक्ष्मण के समय के लेख मिले थे। उसने इनको लंदन की रॉयल सोसायटी को प्रदान कर दिया । पुरातत्व की दृष्टि से यहाँ का सूरजपोल नामक दरवाजा महत्त्वपूर्ण है । इसे राव लाखण ने बनवाया था। इसके पास ही नीलकंठ महादेव का मंदिर है जो बहुत प्राचीन है। नगर के बाहर उत्तरी किनारे पर सोमेश्वर का मंदिर है जिसमें वि० सं० ११४७ का चौहान राजा जोजलदेव के समय का लेख है जिसमें यहाँ का पद्मप्रभ का जैन मंदिर भी बहुत प्राचीन और दर्शनीय है। नगर के बाहर के मंदिर अब नष्ट प्रायः हो गये हैं।
नारनौल पंजाब के पटियाला राज्य में महेन्द्रगढ़ निजामत के अन्तर्गत नारनोळ तहसील का मुख्य नगर जो २८०३" उत्तर अक्षांश और ७६०-१०' पूर्व देशान्तर पर छल्लक नदी के किनारे पर स्थित है। पटियाला राज्य में पटियाला के बाद दूसरा यही महत्त्वशाली नगर रहा है। कहते हैं कि राजा लूनकरन ने अपनी स्त्री नारलौन के नाम पर इस नगर का नाम नारनौळ रखा। किन्तु कई लोगों का मत है कि महाभारत-काल में दिल्ली के दक्षिणी भाग का देश नर-राष्ट्र कहलाता था। शायद इसी का अपभ्रंश नारनौल हो। मुसलमान इतिहासकारों का मत है कि यह अलतमस के द्वारा बसाया गया था। यह नगर इतिहास-प्रसिद्ध शेरशाह
और इब्राहिम खान की जन्म-भूमि है । इसके दादा की मृत्यु यहीं हुई थी जिसका स्मारक अब भी इस नगर में मौजूद है । यह नगर अनेकों बार उजड़ा और बसा है । महाराजकुमार अभयसिंह ने भी इस नगर को लूटा था।
पालनपुर यह नगर पाबू पर्वत से ३४ मील दूर पाटन जिले में धनेरा के पास माहीकाँटा, सिरोही और दाँता के पूरब में बनास नदी के किनारे पर स्थित है । इस नगर के आसपास सरस्वती आदि अन्य नदियां भी बहती हैं । यह नगर समतल मैदान में है। नगर से १२ मील दूर उत्तर में ऊँची पहाड़ियें हैं जो प्राबू तक चली गई हैं।
प्राचीन समय में यह नगर प्रह्लादन पाटन के नाम से प्रसिद्ध था। चन्द्रावती के राजा धारावर्ष के भाई प्रह्लादनदेव ने इस नगर को बसाया था। किन्तु इसके नष्ट होने के बाद १४ वीं शताब्दी के मध्य में चौहान वंश के राजा पालनसी द्वारा पुनः बसाया गया। कई लोग इसे पाल परमार द्वारा बसाया हुआ मानते हैं । ई० स० १३०३ में। देवड़ा चौहानों ने प्राबू और चंदावती पर अधिकार कर लिया था। इसके बाद ई० स०
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१३७० में झालोरी ( जालोरी) अफगान मलिक युसुफ ने जो बिहार का सूबेदार था, मक्का जाते हुए रास्ते में डीसा और पालनपुर पर अधिकार कर लिया। कई लोग इसे वीसलदेव की विधवा पत्नी पोपां बाई से लिया बताते हैं ।
पाली
यह पाली जिले का मुख्य नगर है। राजपूताने में रेल का प्रवेश होने के पहले यह नगर व्यापार का केन्द्र था । यहाँ के व्यापारियों की कोठियाँ गुजरात के सूरत, मांडवी, नवानगर और अहमदाबाद तक में थी । पाली के व्यापारी प्राचीनकाल से ही ईरान, अरबिस्तान, अफ्रीका, यूरोप आदि देशों से माल मंगवाते और यहाँ का माल वहाँ भेजते थे । अब भी यहाँ कपड़े की बड़ी मील है व कपड़े की रंगाई व छपाई का काम सुन्दर होता है । यहाँ के ब्राह्मण पालीवाल नाम से प्रसिद्ध हुए । इनमें नंदवाने बोहरे बड़े धनाढ्य थे । यहाँ के प्राचीन मन्दिरों में सोमनाथ का मंदिर मुख्य है । दूसरा श्रानन्दकरणजी का मंदिर है । तीसरा प्राचीन मंदिर नौलखा है। यहां की मूर्तियों के प्रासनों पर वि० सं० १९४४ से १७०६ तक के जीर्णोद्धार के लेख खुदे हैं ।
पीछोला
इस झील को विक्रम की १५ वीं शताब्दी में महाराणा लाखा के समय में पीछोली गांव के निकट बनवाया था । यह उदयपुर के राजमहलों के पश्चिमी किनारे पर विस्तीर्ण सरोवर है । इस झील में कई छोटे-बड़े टापू हैं, जिन पर भिन्न-भिन्न समय के अनेकों सुंदर स्थान बने हुए हैं, जिनमें जग निवास और जग मंदिर नामक महल जल के मध्य में बने हुए हैं । इन्हें महाराणा जगतसिंह द्वितीय व महाराणा कर्णसिंह ने बनवाया था । जग-निवास की अपेक्षा जग - मंदिर प्राचीन है और इसमें ऐतिहासिक सामग्री अधिक है । इसमें प्राचीनता ही है - प्राधुनिक सजावट दृष्टिगोचर नहीं होती । पीछोला के दक्षिणी किनारे पर पहाड़ियों
श्रृंखला चली गई हैं जहां मत्स्य शैल पर एकलिंग गढ़ नामक प्राचीन दुर्ग बना हुआ है । जिससे तालाब की शोभा और भी बढ़ गई है ।
फतहपुर
शेखावाटी जिले का एक प्रमुख नगर है । यह शेखावत कछवाहों का ठिकाना था । इसको रावराजा लक्ष्मण सिंह ने आबाद किया था ।
बदनौर
यह मेवाड़ राज्य का प्रथम श्रेणी का ठिकारणा है और राठौड़ वंश की मेड़तिया शाखा के आधीन है । बदनौर पश्चिमी रेलवे के ब्यावर स्टेशन से २६ मील की दूरी पर है । इस नगर के चारों और पक्का शहरपनाह है। नगर में प्रवेश के लिए पूर्व दिशा में सूरजपोल नामक दरवाजा है । इसके अलावा रेवतजी का दरवाजा और पश्चिम में चांदपोल दरवाजा भी है ।
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बांसवाड़ा __ यह राजस्थान के साधारण और छोटे नगरों में है। यह २३.१० उत्तर अक्षांश और ७४°२" पूर्व देशान्तर पर स्थित है। इसका पश्चिमी भाग ऊपजाऊ और घना बसा हुआ है, शेष भाग चारों तरफ पहाड़ों और जंगलों से घिरा होने के कारण कम आबाद है। इसके आस-पास भीलों की बस्ती अधिक है । प्राचीन शिलालेखों के अनुसार यह नगर वि० सं० १५३६ से पूर्व बसाया गया मालूम होता है जिसकी पुष्टि डूंगरपुर के चितली गांव से मिले शिलालेख से होती है। अकबर के शासनकाल में इस पर मुगलों का अधिकार हो गया था किन्तु थोड़े ही समय बाद पुनः इस पर रावल उग्रसेन ने अधिकार कर लिया।
बीकानेर राजस्थान का यह मरुस्थलीय नगर इस प्रदेश के ठीक उत्तर में २७°१२° उत्तर अक्षांश और ७२०१५” पूर्वी देशान्तर पर स्थित है । जोधपुर के राव जोधाजी के पुत्र बीकाजी ने वि० सं० १५४५ में इस प्रदेश के जाटों को दबा कर वहाँ एक नगर बसाया जिसका नाम बीकानेर रक्खा और उसे अपनी राजधानी बनाया। इस नगर के आस पास के इलाके को जांगल प्रदेश कहते हैं। इसीलिये यहां के राजा जंगलधर बादशाह कहलाते थे। यहाँ का पानी खारा है और पानी की बहुत कमी रहती है ।
बुरहानपुर यह ऐतिहासिक नगर भारत के दक्षिणी भाग में खानदेश में स्थित है। मुगलकाल में यह नगर वाणिज्य का केन्द्र था। फरुखीवंश का बादशाह अलीखान के राज्य की राजधानी यही नगर था । यह उस समय रेशम और सूत के व्यापार के लिये प्रसिद्ध था। यह राज्य भारत के प्रसिद्ध सम्राट अकबर के समय में अलग इकाई के रूप में था। ई० सन् १५९१ में शेख फैजी को अकबर ने अपना राजदूत बना कर बुरहानपुर भेजा था।
सवाई राजा सूरसिंह के देहावसान के बाद महाराजा गजसिंह का यहीं राज्याभिषेक हुआ था।
बन्दी नगर यह नगर राजस्थान के दक्षिण पूर्व में स्थित है। यह नगर प्राचीन काल में एक मुख्य नगर था और कोटा राज्य इसी के अन्तर्गत था। किन्तु ई० सन् १६३१ में कोटा राज्य अलग हो गया। बादशाह शाहजहाँ ने इसे बून्दी के राव रत्नसिंह के दूसरे पुत्र माधवसिंह को सौंप दिया। तब से बून्दी और कोटा दो अलग-अलग राज्य हो गये। प्राचीन काल में बून्दी नगर पर मौर्यवंशी राजाओं का अधिकार था। उनसे चौहान वंश के हाड़ा राजपूतों ने अपने अधिकार में कर लिया। यह नगर तीन पोर पहाड़ियों से घिरा है । इसके उत्तर में तारागढ़ नामक सुदृढ़ दुर्ग बना हुआ है और इसके नीचे ही बून्दी नगर बसा हुआ है। इस दुर्ग को राव नरसिंह ने वि० सं० १४११ में बनवाया था।
भीनमाल (श्रीमाल नगर) यह जालोर जिले का प्राचीन नगर है जो जसवन्तपुरा से २० मील उत्तर पश्चिम
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[ ६५ ] में बसा हुआ है । इसको श्रीमाल नगर भी कहते थे । यहाँ के निवासी ब्राह्मण श्रीमाली नाम से अब तक प्रसिद्ध हैं । वि० सं०६९७ के करीब प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वानसांग गुजरात होता हुआ यहाँ आया था। उस समय यह नगर गुजरात की राजधानी था। यहाँ वैदिक धर्म को मानने वालों की संख्या अधिक थी। यह नगर विद्या की भी एक पीठ था। 'ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त' के रचियता ब्रह्मगुप्त ने वि० सं० ६८५ में इसी नगर में उपरोक्त ग्रन्थ की रचना की थी । 'शिशुपाल-वध' महाकाव्य का कर्ता माघ कवि यहीं का रहने वाला था। यहां प्रति प्राचीन जय स्वामी नामक सूर्य का मन्दिर है, जिसका जिर्णोद्धार वि० सं० १११७ में परमार वंशीय राजा कृष्णराज के समय में हुआ था। विक्रम की ११ वीं शताब्दी के आस-पास बने जैन मन्दिर भी देखने योग्य हैं।
मंडोर यह जोधपुर नगर से ५ मील उत्तर में है। यहां का किला पहाड़ी पर है। इसका प्राचीन नाम मांडवपुर मिलता है। कहते हैं कि जहाँ पंचकुण्ड स्थान है, वहाँ मांडव्य ऋषि का आश्रम था। पंचकुण्ड के पास ही राजकीय श्मशान हैं जहां प्राचीन राजाओं और रानियों के स्मारक बने हुए हैं। मंडोर में भी प्राचीन राजाओं के स्मारक बने हुए हैं। जिनमें महाराजा अजीतसिंहजी का देवल विशाल और दर्शनीय है । यहाँ से थोड़ी दूर महाराजा अभयसिंहजी के समय का बना तेतीस करोड़ देवी-देवताओं का देवालय है, जो एक पत्थर की चट्टान काट कर उसके नीचे बनाया गया है । यहाँ १६ मूर्तियाँ हैं जिनमें ७ देवताओं की और ६ बड़े वीर पुरुषों की हैं। इनके पास ही काळा-गोरा भैरू व गणेशजी की बड़ी प्रतिमायें हैं। मंडोर के भग्नावशेषों में एक जैन मन्दिर भी है जो दशवीं शती का प्रतीत होता है। मंडोर का बगीचा बड़ा सुन्दर है । यह पहले नागवंशी क्षत्रियों के अधीन रहा, इसी से इसके पास नागकुण्ड और नागाद्रि नदी है। यहाँ प्रतिवर्ष भादों कृष्णा ५ को नागपंचमी का मेला लगता है। बाद में यह प्रतिहारों (ईदों) और उनसे राठौड़ों को दहेज में मिला। तब से यहाँ राठोड़ों का अधिकार हुआ।
मांडलगढ मेवाड़ की राजधानी उदयपुर से १०० मील उत्तर पूर्व में मांडलगढ़ का किला है। इसको किसने बनवाया था यह अनिश्चित है । इसकी आकृति मंडल के समान होने से ही यह मांडलगढ़ कहलाया।
यह गढ़ पहले अजमेर के चौहानों के राज्य में था, किन्तु बाद में पृथ्वीराज के भाई हरिराज से कुतुबुद्दीन एबक ने छीन लिया । पुनः इसे हाडौती के चौहानों ने अपने अधिकार में कर लिया। हाड़ों से यह किला मेवाड़ के महाराणा खेता के अधिकार में आया । यह गढ़ १८५० फुट ऊँची पहाड़ी पर बना हुआ है। इसके चारों ओर प्राधा मील लम्बाई का कोट बना हुआ है । गढ़ में दो जलाशय भी हैं जो दुष्काल में सूख जाते थे, इस कारण इन जलाशयों में दो कुए खुदवा दिये, जिनमें जल कभी नहीं टूटता। यहाँ ऋषभदेव का जैन मन्दिर और ऊँडेश्वर और जलेश्वर के शिवालय दर्शनीय हैं।
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[ ६६ ].
मेड़ता
. यह एक प्राचीन नगर है। इसका प्राचीन नाम मेडन्तक मिलता है, जिसका अपभ्रंश मेड़ता है | मंडोवर के प्रतिहार सामन्त बाउक ने वि० सं० ८९४ में मेड़ते को अपनी राजधानी बनाया था। राव जोधाजी के पुत्र राव दूदाजी को यह नगर जागीर में मिला था । बाद में इसे राव मालदेव ने जैमल मेड़तिया से छीन कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था । अत्र यहाँ प्राचीन वस्तुनों में केवल १२ वीं शताब्दी के आसपास के दो स्तंभ, लक्ष्मी का मंदिर व उसकी प्राचीन मूर्तियें शेष हैं । मुसलमानों के समय को बहुत सी मस्जिदें भी हैं । यहाँ के जैन मंदिर नवीन हैं किन्तु उनकी मूर्तियें प्राचीन हैं जिन पर १५ वीं व १७ वीं शताब्दी के लेख खुदे हुए हैं ।
रेवा नदी ( नर्मदा )
अति वेगवान प्रवाह वाली यह नदी नर्मदा के नाम से प्रसिद्ध है । इसका प्राचीन ऐतिहासिक नाम रेवा है । यह विन्ध्याचल पर्वत की शाखा अमरकंटक पर्वत से निकल कर गुजरात के पश्चिमी भाग में बहती है। गुजरात प्रान्त का एक प्राचीन व्यापारिक नगर भड़ोंच इसी के किनारे पर स्थित है ।
लालकोट
इस नाम के दो प्राचीन किले हैं जिनमें से एक श्रागरे में और दूसरा दिल्ली में है । इनमें से प्रथम आगरे के किले का निर्माण सम्राट अकबर के समय में हुआ था किन्तु इस किले में कुछ इमारतें जहाँगीर और शाहजहाँ के समय में भी बनी थी। दूसरा किला दिल्ली में शाहजहाँ के समय में बनवाया गया था । ये लाल पत्थर के बने हुए हैं ।
विगिर (विन्ध्याचल पर्वत )
विन्ध्याद्रि प्रसिद्ध पर्वत श्रेणी जो भारतवर्ष के मध्य भाग में पूर्व से पश्चिम को फैली हुई है । यह पर्वत आर्यावर्त देश की दक्षिण सीमा पर है । इसके दक्षिण का प्रदेश दक्षिण पथ कहलाता है । इससे दो प्रसिद्ध नदियें नर्मदा और ताप्ती दक्षिण और पश्चिम दिशा में बह कर अरब की खाड़ी में गिरती हैं। इस पर्वत की अनेक शाखाएँ सतपुड़ा, हिन्दकुश श्रादि नाम से विख्यात हैं । पुराणानुसार यह सात कुल पर्वतों में है और मनु के अनुसार मध्य प्रदेश की दक्षिणी सीमा है । यह पर्वत अनेक प्रकार की वनस्पतियों और फल-फूलों से भरा पड़ा है। इसी पर्वत के भाग में एक टीले पर विन्द्यवासिनी का मंदिर है जो प्रति प्राचीन प्रतीत होता है ।
संखोधार (शंखोद्धार)
यह प्राचीन भू-भाग द्वारिकापुरी के निकट है और नोखा मंडल के नाम से प्रसिद्ध है । पहले यह प्रसिद्ध बंदरगाह था और नोखापोर्ट कहलाता था ।
राव श्रासनाथजी के तीसरे भाई अज ने यहाँ के शासक (स्वामी) भोजराजजी को मार कर अपना अधिकार कर लिया । अज ने स्वयं अपने हाथ से वहाँ के राजा का मस्तक
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[ ६७ ] काटा था, इसलिए उसके वंश के लोग बाढेल राठोड़ के नाम से प्रसिद्ध हुए जो अब भी उस भाग में कहीं-कहीं आबाद हैं।
सफरा (क्षिप्रा नदी) भारतीय इतिहास की यह प्रसिद्ध नदी विन्ध्याद्रि पर्वतमाला को क्षिप्र नामक झील से निकल कर मध्य भारत में बहती है। मालव प्रदेश का प्राचीन नगर उज्जयिनी इसी के किनारे है । राठौड़ वंश के देश-भक्त व पराक्रमी वीर दुर्गादास ने अपने जीवन का अंतिम समय यहीं व्ययतीत किया था और उनकी मृत्यु भी इसी के किनारे पर हुई थी। आज भी उनकी छत्री यहाँ मौजूद है।
सरस्वती नदी यह नदी माही काँटा से निकल कर पालनपुर के दक्षिणी भाग में सिद्धपुर के पास से बहती हुई कुछ दूर पाटण के पास भूमि के अन्दर ही अन्दर बहती है । वहाँ से बनास के साथ साथ अनवरपुर के दक्षिण में बहती हुई पाटण में आती है। ___ यह वर्षा ऋतु में तेजी से बढ़ती है । शेष समय में इसकी धारा बहुत क्षीण और मंद गति से चलती है और रेतीली भूमि के अन्दर ही अन्दर बहती हुई कच्छ के रन में गिरती है। इसे संस्कृत में अन्तः सलिला कहते हैं।
सांभर यह नगर जोधपुर और जयपुर राज्यों की सीमा पर राजपूताने में २६°-५५ 'उत्तर अक्षांश और ७५°११' पूर्व देशान्तर सांभर झील के किनारे बसा हुआ है। यहाँ की प्रमुख सांभर झील जो समुद्र की सतह से १२०० फुट ऊंचाई पर है, भरने पर इसका क्षेत्रफल ९० वर्गमील हो जाता है । यहाँ का नमक भारत में सब जगह प्रसिद्ध है। यहाँ चौहानों की कुल देवी शाकंभरी का प्राचीन मंदिर है। इसीलिए शाकंभरी का परिवर्तित रूप नाम साँभर पड़ा। यह नगर ८ वीं शताब्दी से ही चौहानों की प्रधान राजधानी माना जाता है। अतः आज भी चौहानों को साँभर राव, सांभरी, संभरी आदि से सम्बोधित करते हैं। यह १३ वीं शताब्दी से १७०८ ई० तक मुसलमानों के अधिकार में रहा । बाद में जोधपुर और जयपुर के शासकों ने पुनः इसे अपने अधिकार में कर लिया।
साहजहांपुर (शाहजहाँपुर) यह नगर प्रागरे के पास हरदोई जिले में है। प्राचीन समय में यह वैभवशाली नगरों में से एक था किन्तु अब यह साधारण नगर है । जोधपुर के महाराजकुमार अभयसिंहजी ने आगरे की ओर जाते हुए इस नगर को लूटा था और इसे बिलकुल नष्ट कर दिया था।
सिरोही शिवभाण के पुत्र सहस्रमल्ल गद्दीनशीन होकर सहसमल के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्होंने वि० सं० १४८२ (ई० सं० १४२५) में वैशाख सुदी २ को वर्तमान सिरोही नगर बसाया । यह शहर सिरणवा नामक पहाड़ी के नीचे बसाया हुआ है और पूर्व सिरोही
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राज्य की राजधानी है। यह पश्चिमी रेलवे के पिंडवाड़ा स्टेशन से १६ मील दूर है। महाराव सेसमल ने इसे बसाया था। राजमहल पहाड़ पर बसे हुए हैं जिनका सौन्दर्य दूर-दूर से दिखाई देता है । इनमें से मुख्य और पुराना हिस्सा (भाग) जो अपने सौंदर्य के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है महाराव अखेराज ने बनाया था। शेष हिस्से भिन्न-भिन्न समय में बने हुए हैं । राजमहलों के नीचे थोड़ी दूर पर जैन-मंदिरों का समूह है। जो देरासरी नाम से प्रसिद्ध है । इन जैन-मंदिरों में चौमुखीजी का मन्दिर मुख्य है जो विक्रम सं० १६३४ (ई० सं० १५७७) मार्गर्शीष सुदी ५ को बना था । यहाँ शिव और विष्णु के मन्दिर भी हैं। शहर के निकट मान-सरोवर नामक एक बड़ा तालाब भी है जो अति सुंदर है ।
सिवपुरी (शिवपुरी) महाराव सिवभाग ने जिनका नाम शोभा था सिरणवा नामक पहाड़ी के नीचे वि. सं० १४६२ में सिवपुरी नामक नगर बसाया और उक्त पहाड़ी पर किला भी बनवाया। यह शहर महाराव सिवभांरण के नाम से सिवपुरी कहलाया गया जो वर्तमान सिरोही से अनुमानतः दो मील पूर्व में खण्डहर के रूप में अद्यावधि विद्यमान है जिसको लोग पुरानी सिरोही कहते हैं । कालान्तर में यही सिवपुरी सिरोही कहलाया जाने लगा।
सूरत
- यह गुजरात का एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था। थेवनोट (Thevenot) के लेखानुसार १६६६ में इसकी आमदनी १२००००० थी। यह बड़ा समृद्धिशाली नगर था। इसका किला ताप्ती नदी पर बना हुआ है जो समुद्र तट से १२ मील दूर है । ह्वेनसांग के कथनानुसार 'सरत' या 'सौराष्ट्र' सातवीं सदी में उत्थान की चरम सीमा पर था। उस समय यह नगर इस प्रायद्वीप के सम्पूर्ण भाग को घेरे हुए था और बल्लभी नगर भी इसी के अन्तर्गत था। प्राचीन लेखानुसार इसकी ख्याति भी पूर्ण प्रायद्वीप के लिए सन् ६४० तक थी।
सोजत
इस तहसील का मुख्य नगर है। यह पश्चिमी रेलवे के सोजत रोड स्टेशन से करीब ६ मील दूर है । इसका सुदृढ़ प्राचीन किला पहाड़ी पर बना हुआ है । यहाँ प्राचीन समय में सोनगरा वंश के चौहानों का अधिकार था। बाद में महाराजा अजीतसिंह ने इसे अपने कब्जे में कर लिया जो बहुत समय से राठोड़ों के अधिकार में रहा ।
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परिशिष्ट ४
[सूरजप्रकाश के तीनों भागों में आये हुए ऐतिहासिक, पौराणिक और
साहित्यिक व्यक्तियों का परिचय
अंधक इसकी उत्पत्ति पार्वती के पसीने से बताते हैं । हिरण्याक्ष के तप से प्रसन्न होकर शिव ने इसे यही पुत्र दिया था। इसके सहस्र बाहु, सहस्र सिर और दो सहस्र नेत्र थे। यह अंधों की तरह झूम-झूम कर चलता था। इसीसे अंधक कहलाया। पार्वती की अवज्ञा के कारण शिव का इससे घोर युद्ध हुआ । इसके रक्त-बिन्दुओं से अनेकों राक्षस पैदा होने लगे। तब मातका की उत्पत्ति की गई जो रक्त को पी जाती थी। मातृका के तृप्त होने पर पुनः नये अंधक पैदा होने लगे । विष्णु की युक्ति से सारे अंधक विलीन हो गये । मुख्य अंधक को शिव ने त्रिशूल पर लटका दिया । स्तुति करने पर शिव ने उसको गनाधिपत्य बनाया। मतांतर से यह दिति का पुत्र था । जब दिति के समस्त पुत्रों का वध हो गया तब दिति की प्रार्थना पर अंधक की उत्पति हुई । यह इतना अत्याचारी हुआ कि इसके आतंक से त्रैलोक कॉप उठा । अंत में यह शिव के हाथों मारा गया।
कल्याणदास मेहड़ ये डिंगल के कवि मेहड़, जाड़ा के पुत्र थे और जोधपुर के महाराजा गजसिंहजी के कृपापात्रों में थे। ये असाधारण गुण-सम्पन्न प्रतिभावान व्यक्ति थे। इनकी रचनाएँ अधिकतर वीर जातियों और वीर पुरुषों की प्रशंसा में लिखी मिलती हैं। इनकी असाधारण काव्यप्रतिभा के कारण ही महाराजा गजसिंहजी ने इनको लाख पसाव प्रदान किया था। ___ बूंदी के वीर हाड़ा राव रतनसिंह पर लिखी हुई कविता "राव रतनसिंह री वेलि" इनकी प्रसिद्ध रचना है।
कवि भारवि जीवन परिचय :- पह्लव राजा सिंह विष्णु वर्मा का सभा-पण्डित था। इसका रचित ग्रन्थ किरातार्जुनीय महाकाव्य है। इसके चरित्र के विषय में लोगों को बहुत कम मालूम है । अवन्ति सुन्दरी कथा के अनुसार भारवि का दूसरा नाम दामोदर था। यह कौशिक गोत्रीय नारायन स्वामी का पुत्र था। यह एलिचपुर (Ellichpore) का था। इसका समय ई० सं० ५७० का अनुमान किया जाता है । ई० सं० ६३४ के पापहोल के शिलालेख में कालिदास के साथ इसका भी नाम खुदा है । इसलिये सप्तम शतक के प्रारंभ में भारवि की कीर्ति प्रसृत थी। कीथ के कथनानुसार ई० ६६० के लगभग रचित काशी के वृत्ति ग्रंथ में भारवि का निर्देश प्राया है। इसलिये यह मान लेना आवश्यक होगा कि ई० ६२४ के कम से कम
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[ ७० ] १०० वर्ष पहले भारवि विद्यमान था। आपहोल के शिलालेख से यह भी अनुमान हो सकता है कि भारवि दक्षिण का निवासी था। कीथ ने भारवि का समय ई० स० ५०० के लगभग माना है । दूसरे ५५० के लगभग मानते हैं ।
कालयवन
यह बड़ा पराक्रमी राजा हुआ है । इसके जन्म के विषय में यह कथा प्रचलित है कि महर्षि गार्य को यादवों ने भरी सभा में नपुंसक कह कर अपमानित किया था। इससे क्षुब्ध हो गार्य ने बारह वर्ष तक केवल लोहचूर्ण खा कर पुत्रप्राप्ति के लिये शिव की घोर तपस्या की। इसी के फलस्वरूप गोपाली नाम की अप्सरा के गर्भ से कालयवन का जन्म हुआ। इसका पालन एक यवन राजा ने किया था, इसी से इसका नाम कालयवन पड़ा। काल बड़ा पराक्रमी था। इसने जरासंध के साथ यादवों पर आक्रमण किया, जिससे भयभीत हो सारे यादव कृष्ण के कहने से द्वारिका भाग गये । स्वयं कृष्ण भी हिमालय में जा छिपे। कालयवन भी कृष्ण का पीछा करता हुआ वहाँ पहुंचा, जहाँ मान्धाता का पुत्र मुचकुंद सो रहा था। इसने मुचकुंद को ही कृष्ण समझ कर पाँव की ठोकर मार कर उसे जगाया। निद्रा भंग होने पर मुचकुंद ने नेत्र उठा कर कालयवन की ओर देखा जिससे वह भस्म हो गया।
किसनाजी पाढ़ा
दुरसा आढ़ा का पुत्र महान् प्रतिभावान् कवि किसनाजी पाढ़ा महाराजा गजसिंह का कृपापात्र था । इसकी फुटकर रचनायें व गीतों का संग्रह मिलता है। इसकी कविता से प्रभावित हो कर महाराजा गज सिंह ने इसको सोजत तहसील का गांव पांचेटिया प्रदान किया।
केसोदास गाडण यह गाडण शाखा का चारण कवि था। इसका जन्म जोधपुर राज्यान्तर्गत गाडणों की बासणी में सदामल के घर वि० सं० १६१० में हुआ था। यह सदैव साधुओं की तरह गेरुया वस्त्र पहिनता था। "बेलि कृष्ण रुक्मणी री" के रचयिता राठौड़ पृथ्वीराज ने इसकी प्रशंसा में यह दोहा कहा था
'केसौ' गोरख नाथ कवि, चेलौ कियौ चकार ।
सिध रूपी रहता सबद, गाडण गुण भंडार ॥१॥ केसोदास जोधपुर के महाराजा गजसिंह के कृपापात्रों में था। 'गुण रूपक बंध' की रचना पर प्रसन्न हो कर महाराजा गजसिंह ने इसको लाख पसाव का पुरस्कार दिया था। इसके रचित ग्रंथ (१) गुण रूपक बंध, (२) राव अमरसिंह रा दूहा, (३) नीसांणी विवेक वारता, (४) गज गुण चरित्र आदि हैं।
माध कवि इसका समय ई० स० ६६० से ६७५ तक का माना है। संस्कृत साहित्य की प्राचीन
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[ ७१ ] परम्परा में माघ कवि की अत्यन्त प्रशंसा की गई है। इसका विरचित 'शिशुपाल-वध' नामक एक महाकाव्य उपलब्ध है।
माघ कवि ने अपने विषय में बहुत कुछ कहा है। इसके पिता दत्तक सर्वाश्रय और पितामह सुप्रभदेव थे । यह सुप्रभदेव राजा वर्मलात का मंत्री था । इस राजा का उल्लेख ई० स० ६२५ के एक शिलालेख में विद्यमान है इसलिए माघ कवि का समय इसके अनुसार सप्तम शतक का उत्तरार्ध (ई० स० ६५० से ७००) निश्चित होता है। यह कवि गुर्जर देश की उत्तर सीमा पर दक्षिण मारवाड़ में प्राबू पहाड़ और लूनी नदी के बीच में विद्यमान भीनमाल या श्रीमाल नगर में जन्मा था। इसी गांव का निवासी प्रसिद्ध ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त भी था । यह माघ कवि चित्तौड़ के राजा द्वितीय भोज का समकालीन था। भोज नाम के तीन राजा हुए हैं। द्वितीय भोज चितौड़ में ई० स० ६५० से ६७५ तक राज्य करता था । माघ श्रीमाली ब्राह्मण था। यह बड़ा ही दानी था। इसने अन्त समय में भी दान देकर ही प्राण छोड़ा था।
माधोदास दधवाड़िया __ केसोदास गाडण के समकालीन भक्त कवियों में माधोदास दधवाडिया का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है । इसका जन्म जोधपुर राज्य के बलूदा ग्राम में हुआ था। इसके पिता का नाम चूंडाजी था । इसका जन्मकाल निश्चित तो नहीं है पर कई विद्वान अपनी अटकल से वि० सं० १६१० और १६१५ के मध्य मानते हैं। जोधपुर के नरेश सूरसिंह इसके आश्रयदाता था । पृथ्वीराज राठौड़ से भी इसका परिचय था। 'वेलि' को सुन कर यह बड़ा प्रसन्न हुआ और मुक्त कंठ से इसकी प्रशंसा की, इस पर पृथ्वीराज ने भी इसकी प्रशंसा में यह दोहा कहा
चूंडै चत्रभुज सेवियो, ततफळ लागौ तास ।
चारण जीवो चार जुग, मरौ न माधोदास ।। इसका रचनाकाल सत्रहवीं शताब्दी का मध्य माना जाता है किन्तु मिश्र बंधुओं ने वि० सं० १६६४ माना है। जीवन के अंतिम काल में यवन इसकी गायें चुरा कर ले गये। पता लगने पर अपने पुत्र सहित उनका पीछा किया और उनसे युद्ध करते हुए वि० सं० १६६० में वीरगति को प्राप्त हुआ।
मुंणोत नैरणसी नैणसी का जन्म वि० सं० १६६७ (ई० स० १६१० ता० ६ नवम्बर) को हुआ था। इसका पिता जयमल महाराजा गजसिंह के शासनकाल में राज्य के दीवान था । नैणसी भी वीर, विद्यानुरागी, नीतिज्ञ और इतिहास-प्रेमी व्यक्ति था। इसने राज्य के विद्रोही सरदारों का दमन कर के अपनी वीरता का परिचय दिया। उसका लिखा हुआ ऐतिहासिक ग्रंथ 'नणसी री ख्यात' के नाम से प्रसिद्ध है । इसमें राजपूताना, गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, मध्यभारत, बघेलखंड और बुंदेलखंड के इतिहास की पूर्ण सामग्री है। नैणसी का अन्य ग्रंथ 'जोधपुर राज्य का गैजेटियर' है जिसमें इस राज्य के सारे परगनों का हाल है। यही नहीं नैणसी ने जोधपुर की फसलों और आमदनी के लिहाज से मर्दुमशुमारी कर रेखचाकरी नियत की।
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[ ७२ ]
इसी कारण से नैणसी को राजपूताने का अब्दुल फजल कहा जाता है । ऐसे वीर पुरुष ने वि. सं० १७२७ (ई० स० १६७० में) अपने पेट में कटार मार कर शरीरांत कर दिया।
राजसिंहजी बारहठ महाराज गजसिंह के समय के प्रसिद्ध कवि राजसी गांव जालीवाड़ा के रहने वाले थे। इसकी मृत्यु पर महाराजा गजसिंह ने बहुत शोक प्रकट किया। एक समय दिल्ली जाते हुए महाराजा की सवारी जालीवाड़े से निकली तो महाराजा को बारहठ राजसिंह की याद आ गई । महाराजा हाथी से उतरे और चार दोहे मरसिए के कहे
इण खूनी रहमांण सूं, परतन लागौ पांण । रतन अमोलक ‘राजसी,' जो किम दीजे जाण ।। १ हथ जोड़ा रहिया हमै, गढवी काज गरत्थ । ऊ 'राजड़' छत्रधारियां, गयौ जोडावरण हत्थ ।। २ 'रोहड़' रूपग रच्चरणौ, मो वस करणौ मन्न । मुरधर रयणायर माह, 'राजड़' गयौ रतन्न ।। ३
हेम सामोर कवि हेम, सामोर गोत्र का चारण बीकानेर राज्यान्तर्गत सीथल गांव का निवासी था। यह जोधपुर के महाराजा गजसिंह का कृपा-पात्र था। संस्कृत, प्राकृत और फारसी का विद्वान होने के कारण इसका विशेष सम्मान था। इसका रचनाकाल संवत् १६८५ के आसपास माना जा सकता है । इसका लिखा हुअा 'गुण भाखा चरित्र' नामक ग्रंथ मिलता है जिसमें महाराजा गजसिंह का चरित्र वर्णित है।
लखौ बारहठ यह रोहड़िया शाखा के चारण मारवाड़ राज्य के साकड़ा परगने के गांव नानणियाई के रहने वाले थे । यह बादशाह अकबर के कृपापात्रों में थे। ऐसा कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने इनको मथुरा के पास साढे तीन लाख की जागीर प्रदान की थी, और इसे 'वरण पातसाह' की उपाधि भी दी थी। इनका रचित 'पाबू-रासौ' प्रसिद्ध है। जोधपुर के महाराजा सूरसिंह ने इन्हें लाख पसाव दिया था।
संकर बारहठ सतरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के कवियों में बारहठ संकर भी उल्लेखनीय कवि हुए हैं। ये रोहड़िया शाखा के चारण थे । वि० सं० १६४३ में जोधपुर के महाराजा उदयसिंहजी के समय राज्य के चारणों ने आऊवा गांव में धरना दिया था उसमें ये भी मौजूद थे। बोकानेर के प्रसिद्ध राजा रायसिंह द्वारा इनको सवा करोड़ का दान दिया गया था जो सर्व प्रसिद्ध है। जोधपुर महाराजा सूरसिंह ने इसकी रचनाओं से प्रभावित होकर इसको लाख पसाव दिया था।
खेतसी लालस शेरगढ़ तहसील का गांव जुड़िया के रहने वाला था। महाराजा सूरसिंह और उसके
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[ ७३ ]
बाद महाराजा गजसिंह का कृपापात्र रहा । महाराजा गजसिंह ने अपने समय के प्रसिद्ध व प्रतिभावान पन्द्रह कवियों को लाख पसाव प्रदान किए उनमें से एक यह भी था। इसको जोधपुर तहसील का गांव भाटिलाई प्रदान किया गया। यह गांव अब तक इसके वंशजों के अधिकार में रहा ।
चांणूर यह बड़ा पराक्रमी राक्षस हुआ है। यह कंस का अनुचर था। भागवत पुराण की कथा के अनुसार यह पिछले जन्म में मय नामक दानव था। यह मल्ल युद्ध में बड़ा निपुण था। कृष्ण को मारने के लिये कंस ने इसको धनुषयज्ञ के समय मुख्य द्वार पर रक्षक के रूप में रक्खा था, जहाँ इसने कृष्ण को मल्ल युद्ध के लिये ललकारा था। कृष्ण ने वहीं पर चाणूर का वध किया । इसीलिये कृष्ण को चाणूर-सूदन भी कहते हैं ।
जालंधर (जलंधर) शिव के तृतीय नेत्र की अग्नि से उत्पन्न एक अति पराक्रमी राक्षस था। एक समय इन्द्र शिव के दर्शनार्थ कैलाश गया, वहाँ एक भयंकर पुरुष को बैठे देखा, उससे पूछने पर कुछ भी उत्तर न मिला तो इन्द्र ने वज्र-प्रहार किया, जिससे वह नीलकंठ हो गया और भाल का तृतीय नेत्र खुल गया। उसकी ज्वाला इन्द्र को भस्म करने लगी। इन्द्र की प्रार्थना पर शिव ने वह ज्वाला समुद्र में फेंक दी। उससे एक बालक पैदा हया जिसके रोने की ध्वनि से संसार बहरा हो गया। उसे ब्रह्मा को सौंपा गया। उसने ब्रह्मा की गोद में लेटे-लेटे ब्रह्मा की मूंछ नोच दी। उसका नाम जालंधर रखा और वर दिया कि शिव के सिवाय उसे कोई मार न सके। इसकी उत्पत्ति गंगा के व समुद्र के संयोग से भी बताते हैं। ब्रह्मा ने इसे असुरों का राज्य दिया । मय दैत्य ने इसकी राजधानी की रचना की। वृन्दा के साथ इसका विवाह हुआ। पार्वती के रूप से मुग्ध हो इसने कैलाश पर आक्रमण किया। उस समय विष्णु ने जालंधर का रूप बना वृन्दा के सतीत्व को नष्ट कर के चक्र द्वारा इसका सिर छेदन किया । वृन्दा सती हो गई और शाप दिया कि त्रेता में विष्णु की पत्नी राक्षस द्वारा अपहरण की जायेगी और विष्णु को बन-बन भटकना पड़ेगा। जालंधर के शव से निसृत तेज शिव के तेज में विलीन हो गया ।
दक्ष प्रजापति सती इनकी पुत्री थी। ये कारणवश शिव से द्वेष रखते थे। एक समय दक्ष के द्वारा रचित यज्ञ में शिव का भाग नहीं रखा गया, न उन्हें निमन्त्रित ही किया गया। सती बिना निमन्त्रित किये भी अपने गणों को साथ लेकर पिता दक्ष के यज्ञ में गई। वहाँ शिव का भाग न देख कर अति क्रोधित हुई। उसी समय यज्ञ कुण्ड में कूद कर जीवन का अंत कर दिया। शिव के गणों ने दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर दिया।
दुरसौ बाढी दुरसा पाढ़ा गोत्र के चारण मेहा का पुत्र था। इसका जन्म संवत् १५९२ में जोधपुर राज्य के धुंदला गांव में हुआ था। इसकी माता धन्नीबाई ने जो बोगसा गोविन्द की बहिन
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[ ७४ ] थी, निर्धनता के कारण इसका पालन-पोषण बड़ी कठिनता से किया। बगड़ी ठाकुर प्रतापसिंह सूंडा द्वारा इसका पालन-पोषण व शिक्षा-दीक्षा हुई । इसी का एक दोहा निम्न है----
माथै मावीतांह, जनम तणौ क्यावर जितौ।
'सूडौं' सुध पाताह, पाळणहार प्रतापसी ।। इसको बीकानेर के राजा रायसिंह द्वारा चार गांव, एक करोड़ का पुरस्कार और एक हाथी प्राप्त हुआ था। काव्य रचना के फलस्वरूप दुरसा को धन, यश एवं सम्मान बहुत प्राप्त हुआ। अकबर के दरबार में भी इसकी बहुत प्रतिष्ठा थी। इसके रचित ग्रंथों में 'विरुद छिहत्तरी, किरतार बावनी, श्री कुमार अजाजीनी भूचरमोरी नी गजगत' प्रसिद्ध हैं। यह हिन्दू धर्म, हिन्दू जाति और हिन्दू संस्कृति का अनन्य उपासक था। राजस्थानी साहित्य में दुरसा का स्थान बहुत ऊँचा है।
नरहरदास (नरहरिदास) यह रोहड़िया गोत्र के चारण लक्खा का पुत्र था। इसका जन्म वि० संवत् १६०० के उत्तरार्द्ध में हुआ था। अठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल के भक्त कवियों में इसका नाम उल्लेखनीय है । इसका लिखा हुअा 'अवतार चरित्र' एक प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसके अतिरिक्त कवि की राजस्थानी मुक्तक रचनायें भी उपलब्ध हैं। 'अमरसिंह रा दूहा' और अनेक फुटकर गीत इसकी काव्य-प्रतिभा का प्रमारण देने में पूर्ण समर्थ हैं । भक्ति इसका मुख्य विषय था।
मल्लिनाथ प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ का समय ई० की १४वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना गया है। इसका पूरा नाम 'कोलाचल मल्लिनाथ सूरि' था। कृष्णमाचारी के अनुसार यह तेलगु ब्राह्मण था। इसने कई संस्कृत काव्यों की टीका की है। इसके रचित काव्यों में 'रघुवीर चरित' महाकाव्य है जिसमें राम के वनगमन से लेकर राज्याभिषेक तक की कथा है।
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परिशिष्ट ५
(यवन राज्य की कुछ विशेष बातें)
जेजियौ (जजिया कर) यह एक धार्मिक कर था जो इस्लाम को स्वीकार नहीं करने वाले नागरिकों पर लगाया जाता था। इस्लाम के अनुसार खलीफा धर्म और राज्य दोनों का संचालक माना जाता था। उनका धर्म-ग्रन्थ कुरान ही धर्म और कानून दोनों का प्रतिपादक ग्रन्थ माना जाता है। मुसलमान जिस देश को विजय करते थे वहाँ के नागरिकों से जो इस्लाम को मंजूर नहीं करते थे उनसे एक प्रकार का कर लिया जाता था, जो जजिया कहलाता था। .यह कर आमदनी के अनुसार लिया जाता था। यह अधिक आमदनी वालों को अधिक और कम आमदनी वालों को कम देना पड़ता था।
___ नवरोजी (नौ रोज का मेला ) यह मुसलमानों का धार्मिक उत्सव था, जो ईरानी प्रथा के अनुसार प्रति वर्ष, वर्ष के प्रारंभ के दिन से मनाया जाता था। पहले यह उत्सव ६ दिन तक चलता था। भारत में यह उत्सव अकबर ने ही अपने राज्य में प्रारंभ किया था और उसने १६ दिन तक बढ़ा दिया था। मुगल शाही के युग में यह उत्सव गर्मियों में मनाया जाता था। इस उत्सव में स्त्रियाँ और पुरुष समान रूप से सम्मिलित होते थे, किन्तु इनके स्थान अलग-अलग होते थे। उस उत्सव के अवसर पर सम्राट का शानदार दरबार लगता था। इस अवसर पर प्रदर्शनी भी लगती थी। इस नुमाइश में मुगल कारीगरी की अनेकों वस्तुएं बिकने आती थीं। इस उत्सव में मुगल साम्राज्य के अधीनस्थ राजा भी शरीक होते थे ।
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१ शर्याति २ कवि
३ घुष्ट
सुकन्या - च्यवन धाष्ट्र : कारूषा:
४ करुष
१क आनर्त १ख उत्तानवहिं १ भूरिषेण
रेवत
1
१क (१) ककुची १क (२) रेवती
आदि १०० पुत्र
परिशिष्ट ६ सूर्य वंश
[ग्रंथ के प्रथम भाग में आए हुए सूर्यवंश का पुराणानुसार वंश-वृक्ष ]
विवस्वान् संज्ञा
( श्राद्धदेव ) मनु = श्रद्धा
५ पृषध ६ नभग
- नाभाग
अबरीष
शूद्राः
-
६क शंभु ६ख केतुमान् ६ग विरूप
| पषदश्व
७क विकुक्षि (शशाद )
नांगिरस ब्राह्मण इन्हीं की भार्या से उत्पन्न हुए थे ।
७ख दंड
७ इक्ष्वाकु
==
रथीतर
इला (कन्या) सद्युम्न (पुत्र)
६ नृग
सुमति
1
एक उत्कल दख गय व विमल भूतज्योति
T
वसु
प्रतीक
T
६क ओघवान् हख प्रोघवती (दक्षिणापथ ) सुदर्शन
७ शकुनि ७६ निमि ७ङ अन्यान्य (उत्तरापथ ) T
१०० पुत्र
↑ इन्होंने एक हजार सांवत्सरिक सत्र किये थे ।
१० दिष्ट
( नाभाग)
मलंदन
वत्सप्रीति
I
प्रांशु
११ नरिष्यंत
चित्रसेन
I
दक्ष ( वक्ष )
प्रमति (प्रजनि)
T
खनित्र
L
चाक्षुष ( क्षुप )
T मीढ्वान्
कूर्च
इन्द्रसेन
T वीतिहोत्र
सत्यश्रवा
[ ७६ ]
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७क
७घ
ककुत्स्थ (पुरंजय)
मिथि (जनक)
विश
ऊरुश्रवा
अनेनाः
उदावसु
विविंश
देवदत्त अग्निवेश्य
या कानीन
पृथु
नन्दिवर्धन
खनीनेत्र
विश्वगश्व (विश्राश्व-विश्वगन्धि)
सुकेतु
करंधम
जातूकण्य
आद्र
देवरात
अविक्षित
बृहदुक्थ (वृहद्रथ)
मरुत्त (चक्रवर्ती)
युवनाश्व (प्रथम) शावस्त (श्रावस्त)
[ १० ]
महावीर्य
नरिष्यंत
बृहदश्व
धतिमंत
दम
कुवलयाश्व (धुंधुमार)
सुधति
राष्ट्रवर्धन (राज्यवर्धन)
धृष्टकेतु
सुधृति
७क(१) कपिलाश्व
क(२) भद्राश्व
७क (३) दृढ़ाश्व
हर्यश्व
नर
प्रमोद
---
केवल
हर्यश्व (प्रथम)
* इन्होंने एक हजार सांवत्सरिक सत्र किये थे ।
* श्रावस्ती नगरी बसाई।
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अंबरीष ७क (३|१| )
यौवनाश्व
1
हरित
७क ( ३।१) कृशाश्व ७क (३२) अक्षयाव
( रानी हैमवती )
७क (३)
निकुम्भ
संहताश्व ( बहुलाश्व )
देवमीढ़
विबुध (विश्रुत)
महाधृति
कृतिरात
महारोमा
स्वर्णरोमा
पुरुकुत्स ( नर्मदा )
मुचकुंद ५० कन्या ( सौभरि ) | ७क (३|१|श्रा) ७क ( ३।१।३) ७क (३|१|ई) ह्रस्वरोमा
प्रसेनजित (सेनजित ) I
युवनाश्व ( रानी गौरी )
(बिंदुमती)
मान्धाता ( बिंदुमती )
त्रसदस्यु
1
संभूत
T
हारीता:
* उत्तर-पूर्व एशिया में साइबेरिया के राजागरण ।
अनरण्य
७६
प्रतीपक (प्रतीक)
T
कृतिरथ
१५० सौभरेया + सीरध्वज (जनक)
-
कुशध्वज
धर्मध्वज
१०
1
बन्धुमान् ( धुंधुमान )
T
वेगवत्
I
बुध ( बंधु)
1
तृणाबदु (अलंबुषा अप्सरा )
विश्रवस्
विशाल
हेमचन्द्र
|
सुचन्द्र
1 धूम्राक्ष
सृजय (संयम )
सहदव
कृशाश्व
[ ७८ ]
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७क (३॥१॥त्रा)
७५
त्रसदश्व
सोमदत्त
७घ (क१) कृतध्वज ७घ (क२)मितध्वज
हर्यश्व (द्वितीय) हषद्वती
सुमति (स्वमति)
केशिध्वज
खांडिक्य
वसुमना (वसुमत)
जनमेजय
द्रुत (भीत) (ऋतु)
त्रिधन्वा
भानुमान्
श्रयारुण .
]
सत्यव्रत (त्रिशंकु) सत्यरता
10
हरिश्चन्द्र
[
रोहित
शतद्युम्न (प्रद्युम्न)
शुचि मुनि सनद्वाज (ऊर्जवह) ऊर्ध्वकेतु (शकुनि)
अज (अंजन) पुरुजित् (ऋतुजित्)
हरित
चंचु (चप)
अज
विजय ७क (३।१
।१)
सुदेव ७क (३३१२)
परिटनेमि
रुरुक (भरुक)
श्रुतायु
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--------------------------------------------------------------------------
________________
७१ (क)
सुपाश्र्वक
७क (३३१प्रा१)
वृक (धृतक) यादवी बाहु (असित) केशिनी सगर=सुमति
चित्ररथ
क्षेमधि
साठ हजार पुत्र
असमंजस
समरथ
अंशुमान् दिलीप (प्रथम)
२ ]
सत्यरथ
उफ्गुरु
[
भगीरथ
उपगुप्त
श्रुत
वस्वनंत
नाभ (नाभाग)
युयुध
अंबरीष
सुभाषण
सिंधुद्वीप
श्रुत
जय
अयुताश्व (अयुतायु, अयुताजित) ऋतुपर्ण सर्वकाम (आर्तपर्णी)
विजय
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--------------------------------------------------------------------------
________________
७क (३२१मा१)
७१ (क)
ऋतु
सुदास
सुनक
(कल्माषपाद) मित्रसहमदयंती
वीतहव्य
अश्मक
धृति
मूलक (नारिकवच)
बहुलाश्य
शतरथ
कृति
एलविल
विश्वसह
दिलीप (द्वितीय)-(खट्वांग) चक्रवर्ती दीर्घबाहु
कोसल्या-दशरथ
सुमित्रा
कैकेयी
राम
लक्ष्मण
शत्रुघ्न
भरत
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--------------------------------------------------------------------------
________________
७क (३-१-या१क)
७क (३-१-प्रा१ख)
७क(३-१-प्राग)
७क (३-१-१५).
लव
कुश
अंगद चन्द्रकेत सुबाहु सूरसेन
तक्ष
पुष्कर । ७क (३-१-या१ख-१) ७क (३-१-प्रा१ख-२) ७क (३-१-प्रा१ग-१) ७क (३-१-आग-२) ७क (३-१पारघ-१) ७क( -१-१२-२) वननाथ
सुसंधि भानुरथ (भानूमान्
रणंजय
अतिथि
शंखन
मर्ष (मर्षण)
प्रतीकाश्व
सजय
निषध
घ्युषिताश्व
सहस्वान्
सुप्रतीक
शुद्धोधन
नल (नभ)
विश्वसह
विश्रुतवान्
मरुदेव
शाक्य
पुंडरीक
हिरण्यनाभ
बृहद्वलX
सुनक्षत्र
लांगल (राहुल)
क्षेमधन्वा
पुष्य
वृहद्रथ
किन्नर
प्रसेनजित
[ ८२ ]
देवानीक
ध्रुवसन्धि
बृहत्क्षय
अंतरीक्ष
क्षुद्रक
सुदर्शन
क्षय
सुतपा (सुपर्ण)
रणक (क्षुलिक)
अहिनगु (अहीन) पारियात्र (पारिपात्र)
अग्निवर्ण
वत्सव्यूह
अमित्रजित
सुरथ
दल
शीघ्र
दिवाकर
वृहद्राज
सुमित्र
बल
सहदेव
बहि (धर्मी)
प्रसुश्रुत (शेष कालम २ पर) (शेष कालम ३ पर) x यह महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के द्वारा मारा गया।
बृहदश्व (शेष कालम ४ पर)
कृतंजय (शेष कालम ५ पर)
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________________
[ ८३ ] पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकु वंश सुमित्र से समाप्त हो जाता है । उसके प्रागे वंशवृक्ष निम्न प्रकार चलता है
1
.
नैणसी की ख्यात
बीकानेर का शिलालेख
सं० १६५०
प्राचीन ख्यात सं० १७२५ वपुल ननपाल सीतुंग भरत
प्राचीन ख्यात सं० १७१५ पपुल्ली नरपाल सेतुंग भरत पंज
तुंगनाथ भरत पंजराज
बंभ
बंभ
बंभ
तुंगनाथ भरत पुंजराज बंभ अजेय चंद्र अभड यश्व विजयचंद्र जयचंद्र
अचंद्र अभैचंद विचंद जैचंद
अभयचंद विजयचंद जयचंद
अभचंद उदैचंद नरपति कनकसेन सहजसेत (सेन) मेधसेन वीरभद्र देवसेन विमलसेन दानसेन मुकुंदसेन भूधरसेन राजसेन थिरपाल श्रीपुंज वरदाईसेन सेतराम
वरदायीसेन सीतराम सीह
वरदाईसेन सेतराम सीहो
वरदाईसेन सेतराम
सीहो
सीहो
आसथान
ग्रासथान
प्रासथान
nagens
१ उपर्युक्त वंशवृक्ष का संबंध दान-पत्रों से मिलने वाले शुद्ध वंशवृक्ष से जोड़ने के साथ दिया गया है । यहां से आगे महाराजा अभयसिंह व महाराजकुमार रामसिंह तक का वंशवृक्ष दान-पत्रों के अनुसार है जो शुद्ध माना जाता है ।
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________________
[ ८४ ] * दान-पत्रों के अनुसार शुद्ध वंशावली
१ यशोविग्रह
(वि० संवत्) ? २ महीचन्द्र (नं० १ का पुत्र) - वि० संवत ? ३ चन्द्रदेव (नं० २ का पुत्र) वि० सं० ११४८-११५६ ४ मदनपाल (नं. ३ का पुत्र) वि० सं० ११५४ ५ गोविन्दचन्द्र (नं. ४ का पुत्र)
, ११६१-१२११ ६ विजयचन्द्र (नं० ५ का पुत्र)
__, १२२४ ७ जयचन्द्र (नं० ६ का पुत्र)
, १२२६-१२५० ८ हरिश्चन्द्र हिरसू, वरदाईसेन, प्रहस्त (नं. ७ का पुत्र) वि० सं० १२५३ ९ सेतराम (नं० ८ का पुत्र)
वि० स०? १० राव सीहो (नं. ६ का पुत्र)
, १२६९-१३३० ११ पासथान (नं. १० का पुत्र)
१३३०-१३४८ १२ धूहड़ (नं० ११ का पुत्र)
१३४८-१३६६ १३ रायपाल (नं० १२ का पुत्र) १४ कनपाल (नं० १३ का पुत्र) १५ जालणसी (नं० १४ का पुत्र) १६ छाड़ो (नं० १५ का पुत्र) वि० सं० १३८५-१४०१ १७ तीड़ो (नं० १६ का पुत्र)
१४०१-१४१४ १८ सलखो (नं० १७ का पुत्र)
१४२२-१४३१ १६ वीरम (नं० १८ का पुत्र) २० चूंडो (नं० १६ का पुत्र)
१४५१-१४८० २१ रणमल्ल (नं० २० का पुत्र)
१४८४-१४६५ . २२ जोधो (नं० २१ का पुत्र)
१५१०-१५४५ २३ सातल (नं० २२ का पुत्र)
१५४५-१५४८ २४ सूजो (नं० २३ का भाई)
१५४८-१५७२ २५ राव गांगो (नं० २४ का पुत्र)
१५७२-१५८८ २६ मालदेव (नं० २५ का पुत्र)
१५८८-१६१६ २७ चंद्रसेण (नं० २६ का छोटा पुत्र)
१६१६-१६३७ २८ राजा उदैसिंह (नं० २६ का ज्येष्ठ पुत्र)
१६४०-१६५१ २६ सूरसिंह (नं० २८ का पुत्र)
१६५१-१६७६ ३० गजसिंह (नं० २६ का पुत्र)
१६७६-१६६५ ३१ महाराजा जसवन्तसिंह (नं० ३० का पुत्र)
१६९५-१७३५ ३२ अजीतसिंह (नं० ३१ का पुत्र)
१७६३-१७८१ ३३ अभैसिंह (नं० ३२ का पुत्र)
१७८१-१८०५ ३४ रामसिंह (नं० ३३ का पुत्र)
१८०५-१८०८
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राजस्थान पुरातन ग्रन्थ-माला
प्रधान सम्पादक - पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य
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प्रकाशित ग्रन्थ
१. संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश
१. प्रमाणमंजरी, तार्किकचूड़ामणि सर्वदेवाचार्यकृत, सम्पादक पं० पट्टाभिरामशास्त्री, विद्यासागर ।
२. यन्त्रराजरचना, महाराजा सवाई जयसिंह - कारित । ज्योतिर्विद्, जयपुर |
३. महर्षि कुलवैभवम्, स्व० पं० मधुसूदनग्रोमा प्ररणीत, भाग १, पं० गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी ।
४. महषिकुल वैभवम्, स्व० पं० मधुसूदन ओझा प्रणीत, भाग २, मूलमात्रम्
।
मीमांसान्यायकेसरी
मूल्य - ६.०० सम्पादक - स्व० पं० केदारनाथ
-
श्री
५. तर्कसंग्रह, अन्नंभट्टकृत, सम्पादक - डॉ. जितेन्द्र जेटली, एम.ए., पी-एच. डी., ६. कारक संबंधोद्योत, पं० रभसनन्दीकृत, सम्पादक - डॉ० हरिप्रसाद शास्त्री, पी. एच. डी. ।
७. वृत्तिदीपिका, मौनिकृष्ण भट्टकृत, सम्पादक - स्व. पं. पुरुषोत्तमशर्मा चतुर्वेदी,
८. शब्दरत्नप्रदीप, अज्ञातकर्तृक, सम्पादक - डॉ. हरिप्रसाद शास्त्री, एम. ए.,
मूल्य - २.००
६. कृष्णगीति, कवि सोमनाथविरचित, सम्पादिका - डॉ. प्रियबाला शाह, एम. ए., पी-एच. डी., डी. लिट् । १०. नृत्तसंग्रह, अज्ञातकर्तृक, सम्पादिका-डॉ. प्रियबाला शाह, एम. ए., पी-एच. डी., डी.लिट् ।
मूल्य - १.७५
मूल्य - १.७५
मूल्य - २.७५
११. शृङ्गारहारावली, श्रीहर्ष कवि-रचित, सम्पादिका - डॉ. प्रियबाला शाह, एम. ए., पी-एच.डी., डी.लिट् । १२. राजविनोद महाकाव्य, महाकवि उदयराजप्रणीत, सम्पादक- पं० श्रीगोपालनारायण बहुरा, एम. ए., उपसञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर । मूल्य - २.२५ १३. चक्रपाणिविजय महाकाव्य, भट्टलक्ष्मीधरविरचित, सम्पादक-पं० श्री केशवराम काशीराम शास्त्री । मूल्य - ३.५० १४. नृत्य रत्नकोश ( प्रथम भाग ), महाराणा कुम्भकर्णकृत, सम्पादक-प्रो. रसिकलाल छोटालाल पारिख तथा डॉ० प्रियबाला शाह. एम. ए., पी-एच. डी., डी. लिट् । मूल्य - ३.७५ १५. उक्तिरत्नाकर, साधसुन्दर गरिविरचित, सम्पादक - पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजयजी, पुरातत्त्वाचार्य, सम्मान्य संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर । मूल्य - ४.७५ १६. दुर्गापुष्पाञ्जलि, म०म० पं० दुर्गाप्रसादद्विवेदिकृत, सम्पादक- पं० श्रीगङ्गाधर द्विवेदी, साहित्याचार्य । मूल्य - ४.२५ १७. कर्णकुतूहल, महाकवि भोलानाथविरचित, इन्हीं कविवर की अपर संस्कृत कृति श्रीकृष्णलीलामृत सहित सम्पादक - पं० श्रीगोपालनारायण बहुरा. एम. ए., मूल्य - १.५० १८. ईश्वरविलास महाकाव्य, कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट विरचित, सम्पादक- भट्ट श्रीमथुरानाथशास्त्री, साहित्याचार्य, जयपुर। स्व. पी. के. गोड़े द्वारा अंग्रेजी में प्रस्तावना सहित ।
१६ रसदधिका, कविविद्यारामप्रणीत, सम्पादक - पं० श्रीगोपालनारायण
मूल्य - ११.५० बहुरा, एम.ए. मूल्य - २.००
२०. पथमुक्तावली, कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्टविरचित, सम्पादक- भट्टश्रीमथरानाथशास्त्री, साहित्याचायें ।
मूल्य - ४.००
२१ काव्यप्रकाशसंकेत भाग १ भट्टसोमेश्वरकृत, सम्पा० - श्री रसिकलाल छो० पारीख, अंग्रेजी में विस्तृत प्रस्तावना एवं परिशिष्ट सहित
मूल्य - १२.००
मूल्य - १.७५ सम्पादक-म० म०
मूल्य - १०.७५ सम्पादक - पं०
मूल्य - ४.००
मूल्य - ३.००
एम. ए.,
मूल्य - १.७५ साहित्याचार्य ।
मूल्य - २.०० पी.एच.डी. ।
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[ २ ] २२. काव्यप्रकाशसंकेत, भाग २ भट्टसोमेश्वरकृत, सम्पा०-श्रीरसिकलाल छो० पारीख,
मूल्य-८.२५ २३. वस्तुरत्नकोष, अज्ञातकर्तृक, सम्पा०-डॉ. प्रियबाला शाह ।
मूल्य-४-०० २४. दशकण्ठवधम्, पं० दुर्गाप्रसादद्विवेदिकृत, सम्पा०-५० श्रीगङ्गाधर द्विवेदी । मूल्य-४.०० २५. श्रीभुवनेश्वरीमहास्तोत्र, सभाष्य, पृथ्वीधराचार्यविरचित, कवि पद्मनाभकृत भाष्य
सहित पूजापञ्चाङ्गादिसंवलित । सम्पा०-पं. श्रीगोपालनारायण बहुरा। मूल्य-३.७५ २६. रत्नपरीक्षादि-सप्तग्रन्थ-संग्रह, ठक्कुर फेरू विरचित, संशोधक-पद्मश्री मुनि जिनविजय, पुरातत्त्वाचार्य।
मूल्य-६.२५ २७. स्वयंभूछन्द, महाकवि स्वयंभूत, सम्पा० प्रो० एच. डी. वेलणकर । विस्तृत भूमिका (अंग्रेजी में) एवं परिशिष्टादि सहित
मूल्य-७.७५ २८. वृत्तजातिसमुच्चय कवि विरहाङ्करचित, , , , मूल्य-५.२५ २६. कविदर्पण, अज्ञातकर्तृक,
मूल्य-६.०० ३०. कर्णामतप्रपा, भट्टसोमेश्वरकृत सम्पा.-पद्मश्री मुनि जिनविजय ।।
मूल्य-२.२५ ३१. त्रिपुराभारती लघुस्तव, लघुपण्डितविरचित, सम्पा०
मूल्य-३.२५ ३२. पदार्थ रत्नमञ्जूषा, पं० कृष्णमिश्रविरचिता, सम्पा०
मूल्य-३.७५ ३३. वृत्तमुक्तावली, कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट कृत; सं० पं० भट्टश्रीमथुरानाथ शास्त्री।
मूल्य-३.७५ २. राजस्थानी और हिन्दी ३४. कान्हडदेप्रबन्ध, महाकवि पद्मनाभविरचित, सम्पा०-प्रो० के.बी. व्यास, एम. ए.।
मूल्य-१२.२५ ३५, क्यामखां-रासा, कविवर जान-रचित, सम्पा०-डॉ. दशरथ शर्मा और श्रीनगरचन्द नाहटा।
मूल्य-४.७५ २६. लावा-रासा, चारण कविया गोपालदानविरचित, सम्पा०-श्रीमहताबचन्द खारैड़।
मूल्य-३.७५ ३७. वांकीदासरी ख्यात, कविराजा वांकीदासरचित, सम्पा-श्रीनरोत्तमदास स्वामी, एम. ए., विद्यामहोदधि ।
मूल्य-५.५० ३८. राजस्थानी साहित्यसंग्रह, भाग १, सम्पा०-श्रीनरोत्तमदास स्वामी, एम.ए.। मूल्य-२.२५ ३६ राजस्थानी साहित्यसंग्रह, भाग २, सम्पाo-श्रीपुरुषोत्तमलाल मेनारिया, एम. ए., साहित्यरत्न ।
मूल्य-२.७५ ४० कवीन्द्र कल्पलता, कवीन्द्राचार्य सरस्वतीविरचित, सम्पा०-श्रीमती रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत ।
मूल्य-२.०० ४१. जुगलविलास, महाराज पृथ्वीसिंहकृत, सम्पा०-श्रीमती रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत।
मूल्य-१.७५ ४२. भगतमाळ, ब्रह्मदासजी चारण कृत, सम्पा०-श्री उदराजजी उज्ज्वल । मूल्य-१.७५ ४३. राजस्थान पुरातत्त्व मन्दिरके हस्तलिखित ग्रंथोंकी सूची, भाग १। मूल्य-७.५० ४४. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानके हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची, भाग २। मूल्य-१२.०० ४५ मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग १, मुंहता नैणसीकृत. सम्पा०-श्रीबद्रीप्रसाद साकरिया।
मूल्य-८.५० ४६. , , , २, ,
मूल्य-६.५० ४७. रघुवरजसप्रकास, किसनाजी पाढाकृत, सम्पा०-श्री सीताराम लाळस । मूल्य-८.२५ ४८. राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची, भाग १ सं० पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय । मूल्य-४.५० ४६. राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ-सूची, भाग २-सम्पा०-श्री पुरुषोत्तमलाल मेनारिया ___ एम.ए., साहित्यरत्न।
मूल्य-२.७५ ५०. वीरवाण, ढाढ़ी बादरकृत, सम्पा०-श्रीमती रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत । मूल्य-४.५० ५१. स्व० पुरोहित हरिनारायणजी विद्याभूषण-प्रन्थ-संग्रह-सूची, सम्पा०-श्रीगोपालनारायण बहुरा, एम. ए. और श्रीलक्ष्मीनारायणगोस्वामी दीक्षित ।
मूल्य-६.२५
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५२. सूरजप्रकास, भाग १-कविया करणीदानजी-कृत, सम्पा०-श्री सीताराम लाळस।
मूल्य-८.०० ५३. " " २ ,
"
मूल्य-६.५०
मूल्य-६.७५ ५५. नेहतरंग, रावराजा बुधसिंहकृत-सम्पा०-श्रीरामप्रसाद दाधीच, एम.ए. मूल्य-४.७० ५६. मत्स्यप्रदेश की हिन्दी-साहित्य को देन, प्रो. मोतीलाल गुप्त एम.ए..पी-एच.डी. मल्य-७.०० ५७. वसन्तविलास फागु, अज्ञातकर्तृक, सम्पा०-श्री एम. सी. मोदी। _ मूल्य-५.५० ५८. राजस्थान में संस्कृत साहित्य की खोज-एस. आर. भाण्डारकर, हिन्दी-अनुवादक श्री ब्रह्मदत्त त्रिवेदी, एम. ए., साहित्याचार्य, काव्यतीर्थ
मूल्य-३.०० ५६. समदर्शी प्राचार्य हरिभद्र, श्रीसुखलालजी सिंघवी,
मूल्य ३.०० प्रेसों में छप रहे ग्रंथ
संस्कृत १. शकुनप्रदीप, लावण्यशरिचित, सम्पा०-पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय । २. बालशिक्षाव्याकरण, ठक्कुर संग्रामसिंहरचित, सम्पा०-पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय। ३. नन्दोपाख्यान, अज्ञातकर्तृक, सम्पा०-डॉ. बी.जे. सांडेसरा। ४. चान्द्रव्याकरण, प्राचार्य चन्द्रगोमिविरचित, सम्पा०-श्रा बी. डी. दोशी। ५. प्राकृतानन्द, रघुनाथकवि-रचित, सम्पा०-पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय । ६. कविकौस्तुभ, पं० रघुनाथरचित, सम्पा०-श्री एम. एन. गोरे । ७. एकाक्षर नाममाला-सम्पा०-मुनि श्रीरमणिकविजय । ८. नृत्यरत्नकोश, भाग २, महाराणा कुंभकर्णप्रणीत, सम्पा०-श्री आर. सी. पारिख और
डॉ. प्रियबाला शाह ।। ६. इन्द्रप्रस्थप्रबन्ध, सम्पा०-डॉ. दशरथ शर्मा । १०. हमीरमहाकाव्यम्, नयचन्द्रसूरिकृत, सम्पा०-पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय। ११. स्थूलिभद्रकाकादि, सम्पा०-डॉ० आत्माराम जाजोदिया। १२. वासवदत्ता, सुबन्धुकृत, सम्पा०-डॉ० जयदेव मोहनलाल शुक्ल । १३. प्रागमरहस्य, स्व० पं० सरयूप्रसादजी द्विवेदी कृत, सम्पा०-प्रो० श्रीगङ्गाधर द्विवेदी ।
राजस्थानी और हिन्दी १४. मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग ३, मुंहता नैणसीकृत, सम्पा०-श्रीबद्रीप्रसाद साकरिया । १५. गोरा बादल पदमिणी चऊपई, कवि हेमरतनकृत सम्पा०-श्रीउदयसिंह भटनागर, एम.ए. १६. राठोडारी वंशावली, सम्पा०-पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय । १७. सचित्र राजस्थानी भाषासाहित्यप्रन्थसूची, सम्पा०-पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय । १८. मीरां-बृहत्-पदावली, स्व० पुरोहित हरिनारायणजी विद्याभूषण द्वारा संकलित, ___सम्पा०-पद्मश्री मुनि श्रीजिनविजय। १६. राजस्थानी साहित्यसंग्रह, भाग ३, संपादक-श्रीलक्ष्मीनारायण गोस्वामी। २०. रुक्मिणी-हरण, सांयांजी झूला कृत, सम्पा० श्री पुरुषोत्तमलाल मेनारिया, एम.ए.,सा.रल २१. सन्त कवि रज्जब : सम्प्रदाय और साहित्य डॉ० व्रजलाल बर्मा। २२. पश्चिमी भारत की यात्रा, कर्नल जेम्स टॉड, हिन्दी अनु० श्रीगोपालनारायण बहुरा, एम.ए. २३. बुद्धिविलास, बखतराम शाहकृत, सम्पा०-श्रीपद्मधर पाठक, एम. ए.
अंग्रेजी
24. Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part I, R.O.RI.
(Jodhpur Collection ), ed., by Padamashree Jinvijaya Muni,.
Puratattvacharya. 25. A List of Rare and Reference Books in the R.O.R.I., Jodhpur,
compiled by P.D. Pathak, M.A. विशेष-पुस्तक-विक्रेताओं को २५% कमीशन दिया जाता है।
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