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________________ [ ६२ ] और अकबर की सभा के नौ रत्नों में थे। यहाँ के कई फारसी लेख शहर के परकोटे की चुनाई में उल्टे-पुल्टे लगे हुए विद्यमान है। नाडोल (नाडूल) यह बहुत प्राचीन ऐतिहासिक नगर पश्चिमी रेलवे के राणी स्टेशन से १४ मील की दूरी पर है। यह गोड़वाड़ के जैनों के ५ तीर्थों में से एक है । यह नगर मारवाड़ के चौहानों की मूल राजधानी थी। कर्नल टॉड को इस नगर से वि० सं० १०२४ और १०३६ के चौहान वंश के संस्थापक राजा लक्ष्मण के समय के लेख मिले थे। उसने इनको लंदन की रॉयल सोसायटी को प्रदान कर दिया । पुरातत्व की दृष्टि से यहाँ का सूरजपोल नामक दरवाजा महत्त्वपूर्ण है । इसे राव लाखण ने बनवाया था। इसके पास ही नीलकंठ महादेव का मंदिर है जो बहुत प्राचीन है। नगर के बाहर उत्तरी किनारे पर सोमेश्वर का मंदिर है जिसमें वि० सं० ११४७ का चौहान राजा जोजलदेव के समय का लेख है जिसमें यहाँ का पद्मप्रभ का जैन मंदिर भी बहुत प्राचीन और दर्शनीय है। नगर के बाहर के मंदिर अब नष्ट प्रायः हो गये हैं। नारनौल पंजाब के पटियाला राज्य में महेन्द्रगढ़ निजामत के अन्तर्गत नारनोळ तहसील का मुख्य नगर जो २८०३" उत्तर अक्षांश और ७६०-१०' पूर्व देशान्तर पर छल्लक नदी के किनारे पर स्थित है। पटियाला राज्य में पटियाला के बाद दूसरा यही महत्त्वशाली नगर रहा है। कहते हैं कि राजा लूनकरन ने अपनी स्त्री नारलौन के नाम पर इस नगर का नाम नारनौळ रखा। किन्तु कई लोगों का मत है कि महाभारत-काल में दिल्ली के दक्षिणी भाग का देश नर-राष्ट्र कहलाता था। शायद इसी का अपभ्रंश नारनौल हो। मुसलमान इतिहासकारों का मत है कि यह अलतमस के द्वारा बसाया गया था। यह नगर इतिहास-प्रसिद्ध शेरशाह और इब्राहिम खान की जन्म-भूमि है । इसके दादा की मृत्यु यहीं हुई थी जिसका स्मारक अब भी इस नगर में मौजूद है । यह नगर अनेकों बार उजड़ा और बसा है । महाराजकुमार अभयसिंह ने भी इस नगर को लूटा था। पालनपुर यह नगर पाबू पर्वत से ३४ मील दूर पाटन जिले में धनेरा के पास माहीकाँटा, सिरोही और दाँता के पूरब में बनास नदी के किनारे पर स्थित है । इस नगर के आसपास सरस्वती आदि अन्य नदियां भी बहती हैं । यह नगर समतल मैदान में है। नगर से १२ मील दूर उत्तर में ऊँची पहाड़ियें हैं जो प्राबू तक चली गई हैं। प्राचीन समय में यह नगर प्रह्लादन पाटन के नाम से प्रसिद्ध था। चन्द्रावती के राजा धारावर्ष के भाई प्रह्लादनदेव ने इस नगर को बसाया था। किन्तु इसके नष्ट होने के बाद १४ वीं शताब्दी के मध्य में चौहान वंश के राजा पालनसी द्वारा पुनः बसाया गया। कई लोग इसे पाल परमार द्वारा बसाया हुआ मानते हैं । ई० स० १३०३ में। देवड़ा चौहानों ने प्राबू और चंदावती पर अधिकार कर लिया था। इसके बाद ई० स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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