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________________ [ ६१ ] प्राचीन इतिहास के अनुसार 'शक' तूरानी जाति के ही थे, जिनका ईरान वाले प्राय से हमेशा युद्ध होता रहता था । ईरानियों ने तूरानियों को पराजित कर कई स्थानों पर अधिकार किया था । प्राचीन तूरानी अग्नि की पूजा करते थे और पशुओं की बलि चढ़ाते थे । वे प्रायों की अपेक्षा असभ्य थे । इन तूरानियों के उत्पातों से एक बार सारा यूरोप और एशिया तंग था । भारत पर आक्रमण करने वाले चंगेजखाँ, तैमूर, उसमान आदि इसी तूरानी जाति के अन्तर्गत थे, जिन्होंने सारे एशिया को अपने प्रत्यावारों से विचलित कर दिया था । दिल्ली भारत का बहुत प्राचीन और प्रसिद्ध नगर जो यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है और बहुत समय तक हिन्दू सम्राटों और मुसलमान बादशाहों की राजधानी रहा । यह नगर १९१२ ई० से ब्रिटिश भारत की राजधानी भी बनाया गया। दिल्ली नगर कई बार बसा और कई बार उजड़ा । कहते हैं कि इन्द्रप्रस्थ के मयूरवंशी राजा दिल ने सर्व प्रथम इसे बसाया था, इसी से इसका नाम दिल्ली पड़ा। यह भी प्रवाद है कि राजा अनंगपाल के पुरोहित द्वारा इस नगर की नींव रखने के पूर्व एक कीली शेष नाग के करण पर गाड़ी गई । राजा के द्वारा निकाले जाने पर लहू-धारा निकली तो राजा ने पुनः उस कील को गाड़ दिया पर वह ढीली रह गई जिससे उसका नाम ढीली पड़ गया जो बिगड़ कर दिल्ली हो गया। वर्तमान समय में यह भारत की राजधानी है । द्वारका यह गुजरात व काठियावाड़ की एक प्राचीन नगरी है । पुराणानुसार यह सात पुरियों में मानी जाती है । यह हिन्दुनों के चार धामों में है । हिन्दू तीर्थ-यात्री यहां आ कर बड़ी श्रद्धा से द्वारकानाथ की छाप लेते । राजस्थानी में इसे द्वारामती, द्वारावती भी कहते हैं। श्री कृष्ण भगवान जरासंध के उत्पातों के कारण मथुरा से यहां आ कर बस गये थे और इसे अपनी राजधानी बना ली थी। इसका दूसरा नाम कुशस्थली भी है । नागौर नागौर इसी विभाग का मुख्य नगर है और राजस्थान के बहुत प्राचीन नगरों में से एक है । संस्कृत ग्रंथों में इसे अहिछत्रपुर या नागपुर लिखा है । नाम से ही ज्ञात होता है कि यहाँ नागवंशियों का राज्य था और यह जांगल देश की राजधानी था । बिजोल्या 'मेवाड़' के वि० सं० १२२६ के शिलालेख से ज्ञात होता है कि यह चौहानों के भी अधिकार में रहा था । यहीं से जा कर चौहानों ने सांभर को अपनी राजधानी बनाया । प्राचीन काल में सांभर, अजमेर और नागौर आदि का राज्य सपादलक्ष कहलाता था, जिसका अपभ्रंश रूप सवाळक ( सवाळख) है। नागौर के आसपास के भाग को आज भी सवाळख कहते हैं । नागौर के बरमायों के मंदिर के स्तम्भों पर खुदे ई० स० १५६१ के और १५६४-६५ के हसन कुलीखाँ की मसजिद में और १६७७ के अकबरी मस्जिद के लेख इसकी प्राचीनता के प्रमाण हैं । श्राईन-ई-अकबरी के लेखक अब्बुल फजल और शेख फैजी नागौर के शेख मुबारक के पुत्र थे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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