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[ ४१ । एक स्थान पर कवि ने बारह हजार सेना का उल्लेख किया है जिसके अन्तर्गत अलग-अलग टुकड़ियों के साथ यूरोपियन भी थे, यथा
जुदा मिसल जंग हंत, असल्ल विल्लायत वाळा । इसड़ा बार हजार, चूंच चढ़िया कळिचाळा ॥
सू. प्र. भाग ३, पृ. २७ एक स्थान पर कवि ने लिखा है कि सर बुलन्द की सेना में शीशा, बारूद, दो हजार तो आदि युद्ध की सामग्री के साथ चार हजार सुतर नालें, तीन हजार रेहकले, बारह हजार बंदूकें अथवा बंदूकधारी तथा तो चलाने वाले अंगरेज थे, यथा
सीसा जांमंग सोर, भार गाडा बांणां भर । चव हज़ार सुत्रनाळ, हबस उसताज बहादर । पण हजार रहकळा, अरब उसताज अचूकां।
सुकर नरां बगसरां, बार हज्जार बंदूकां । बि हजार तोप कठठी बडी, गोळमदाज फिरंगरा । करि अजर क्रोध कीधा किलम, जबर मसाला जंगरा ॥
सू. प्र. भाग ३, पृ. २८ ग्रंथ में एक स्थान पर पाया जाता है कि सर बुलन्द ने नगर के बारह दरवाजों के प्रत्येक द्वार पर दो-दो हजार बंदूकधारी तथा दस-दस तोपें रख दी थीं। इनके अतिरिक्त प्रत्येक बुर्ज़ और कंगूरे पर सैनिक तैनात कर दिये, यथा
दुय दुय सहस बंदूक, सहति बगसरा सकाजां। ते दस दस भरि तोप, डहै बारह दरवाजां । भुरज भुरज पारबा, दुगम जुथ गोळदाजां।
मतिवाळां मेलिया, कंगुरे कंगुरे सकाजां। फिरणिया चहूतरफां फिरै, काळ रूप अरबा चकां। काढ़िया खगां किलकां कर, डका ढोल तबलां डकां ॥
सू. प्र. भाग २, पृ. ३५० उक्त छप्पय के अनुसार प्रत्येक द्वार पर दो-दो हजार के हिसाब से बारह दरवाजों पर २४ हजार तो बंदूकधारी ही थे तथा तोपें चलाने वाले, बुों व कंगूरों पर तैनात सैनिक उनसे अलग थे ।
कवि के कथनानुसार सर बुलन्द के एक सौ पालकीनशीन, पाठ हाथीनशीन और तीन सौ ऐसे जो दीवाने-ग्राम नामक सभा में जाते समय सम्मान के अधिकारी थे, मारे गये। साथ ही ४४६३ सैनिक भी मारे गये। इनके अतिरिक्त युद्ध में कितने ही घायल हुए । यथा
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