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________________ [ ७२ ] इसी कारण से नैणसी को राजपूताने का अब्दुल फजल कहा जाता है । ऐसे वीर पुरुष ने वि. सं० १७२७ (ई० स० १६७० में) अपने पेट में कटार मार कर शरीरांत कर दिया। राजसिंहजी बारहठ महाराज गजसिंह के समय के प्रसिद्ध कवि राजसी गांव जालीवाड़ा के रहने वाले थे। इसकी मृत्यु पर महाराजा गजसिंह ने बहुत शोक प्रकट किया। एक समय दिल्ली जाते हुए महाराजा की सवारी जालीवाड़े से निकली तो महाराजा को बारहठ राजसिंह की याद आ गई । महाराजा हाथी से उतरे और चार दोहे मरसिए के कहे इण खूनी रहमांण सूं, परतन लागौ पांण । रतन अमोलक ‘राजसी,' जो किम दीजे जाण ।। १ हथ जोड़ा रहिया हमै, गढवी काज गरत्थ । ऊ 'राजड़' छत्रधारियां, गयौ जोडावरण हत्थ ।। २ 'रोहड़' रूपग रच्चरणौ, मो वस करणौ मन्न । मुरधर रयणायर माह, 'राजड़' गयौ रतन्न ।। ३ हेम सामोर कवि हेम, सामोर गोत्र का चारण बीकानेर राज्यान्तर्गत सीथल गांव का निवासी था। यह जोधपुर के महाराजा गजसिंह का कृपा-पात्र था। संस्कृत, प्राकृत और फारसी का विद्वान होने के कारण इसका विशेष सम्मान था। इसका रचनाकाल संवत् १६८५ के आसपास माना जा सकता है । इसका लिखा हुअा 'गुण भाखा चरित्र' नामक ग्रंथ मिलता है जिसमें महाराजा गजसिंह का चरित्र वर्णित है। लखौ बारहठ यह रोहड़िया शाखा के चारण मारवाड़ राज्य के साकड़ा परगने के गांव नानणियाई के रहने वाले थे । यह बादशाह अकबर के कृपापात्रों में थे। ऐसा कहा जाता है कि बादशाह अकबर ने इनको मथुरा के पास साढे तीन लाख की जागीर प्रदान की थी, और इसे 'वरण पातसाह' की उपाधि भी दी थी। इनका रचित 'पाबू-रासौ' प्रसिद्ध है। जोधपुर के महाराजा सूरसिंह ने इन्हें लाख पसाव दिया था। संकर बारहठ सतरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के कवियों में बारहठ संकर भी उल्लेखनीय कवि हुए हैं। ये रोहड़िया शाखा के चारण थे । वि० सं० १६४३ में जोधपुर के महाराजा उदयसिंहजी के समय राज्य के चारणों ने आऊवा गांव में धरना दिया था उसमें ये भी मौजूद थे। बोकानेर के प्रसिद्ध राजा रायसिंह द्वारा इनको सवा करोड़ का दान दिया गया था जो सर्व प्रसिद्ध है। जोधपुर महाराजा सूरसिंह ने इसकी रचनाओं से प्रभावित होकर इसको लाख पसाव दिया था। खेतसी लालस शेरगढ़ तहसील का गांव जुड़िया के रहने वाला था। महाराजा सूरसिंह और उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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