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________________ [ ७१ ] परम्परा में माघ कवि की अत्यन्त प्रशंसा की गई है। इसका विरचित 'शिशुपाल-वध' नामक एक महाकाव्य उपलब्ध है। माघ कवि ने अपने विषय में बहुत कुछ कहा है। इसके पिता दत्तक सर्वाश्रय और पितामह सुप्रभदेव थे । यह सुप्रभदेव राजा वर्मलात का मंत्री था । इस राजा का उल्लेख ई० स० ६२५ के एक शिलालेख में विद्यमान है इसलिए माघ कवि का समय इसके अनुसार सप्तम शतक का उत्तरार्ध (ई० स० ६५० से ७००) निश्चित होता है। यह कवि गुर्जर देश की उत्तर सीमा पर दक्षिण मारवाड़ में प्राबू पहाड़ और लूनी नदी के बीच में विद्यमान भीनमाल या श्रीमाल नगर में जन्मा था। इसी गांव का निवासी प्रसिद्ध ज्योतिषी ब्रह्मगुप्त भी था । यह माघ कवि चित्तौड़ के राजा द्वितीय भोज का समकालीन था। भोज नाम के तीन राजा हुए हैं। द्वितीय भोज चितौड़ में ई० स० ६५० से ६७५ तक राज्य करता था । माघ श्रीमाली ब्राह्मण था। यह बड़ा ही दानी था। इसने अन्त समय में भी दान देकर ही प्राण छोड़ा था। माधोदास दधवाड़िया __ केसोदास गाडण के समकालीन भक्त कवियों में माधोदास दधवाडिया का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है । इसका जन्म जोधपुर राज्य के बलूदा ग्राम में हुआ था। इसके पिता का नाम चूंडाजी था । इसका जन्मकाल निश्चित तो नहीं है पर कई विद्वान अपनी अटकल से वि० सं० १६१० और १६१५ के मध्य मानते हैं। जोधपुर के नरेश सूरसिंह इसके आश्रयदाता था । पृथ्वीराज राठौड़ से भी इसका परिचय था। 'वेलि' को सुन कर यह बड़ा प्रसन्न हुआ और मुक्त कंठ से इसकी प्रशंसा की, इस पर पृथ्वीराज ने भी इसकी प्रशंसा में यह दोहा कहा चूंडै चत्रभुज सेवियो, ततफळ लागौ तास । चारण जीवो चार जुग, मरौ न माधोदास ।। इसका रचनाकाल सत्रहवीं शताब्दी का मध्य माना जाता है किन्तु मिश्र बंधुओं ने वि० सं० १६६४ माना है। जीवन के अंतिम काल में यवन इसकी गायें चुरा कर ले गये। पता लगने पर अपने पुत्र सहित उनका पीछा किया और उनसे युद्ध करते हुए वि० सं० १६६० में वीरगति को प्राप्त हुआ। मुंणोत नैरणसी नैणसी का जन्म वि० सं० १६६७ (ई० स० १६१० ता० ६ नवम्बर) को हुआ था। इसका पिता जयमल महाराजा गजसिंह के शासनकाल में राज्य के दीवान था । नैणसी भी वीर, विद्यानुरागी, नीतिज्ञ और इतिहास-प्रेमी व्यक्ति था। इसने राज्य के विद्रोही सरदारों का दमन कर के अपनी वीरता का परिचय दिया। उसका लिखा हुआ ऐतिहासिक ग्रंथ 'नणसी री ख्यात' के नाम से प्रसिद्ध है । इसमें राजपूताना, गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, मध्यभारत, बघेलखंड और बुंदेलखंड के इतिहास की पूर्ण सामग्री है। नैणसी का अन्य ग्रंथ 'जोधपुर राज्य का गैजेटियर' है जिसमें इस राज्य के सारे परगनों का हाल है। यही नहीं नैणसी ने जोधपुर की फसलों और आमदनी के लिहाज से मर्दुमशुमारी कर रेखचाकरी नियत की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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