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________________ [ ७० ] १०० वर्ष पहले भारवि विद्यमान था। आपहोल के शिलालेख से यह भी अनुमान हो सकता है कि भारवि दक्षिण का निवासी था। कीथ ने भारवि का समय ई० स० ५०० के लगभग माना है । दूसरे ५५० के लगभग मानते हैं । कालयवन यह बड़ा पराक्रमी राजा हुआ है । इसके जन्म के विषय में यह कथा प्रचलित है कि महर्षि गार्य को यादवों ने भरी सभा में नपुंसक कह कर अपमानित किया था। इससे क्षुब्ध हो गार्य ने बारह वर्ष तक केवल लोहचूर्ण खा कर पुत्रप्राप्ति के लिये शिव की घोर तपस्या की। इसी के फलस्वरूप गोपाली नाम की अप्सरा के गर्भ से कालयवन का जन्म हुआ। इसका पालन एक यवन राजा ने किया था, इसी से इसका नाम कालयवन पड़ा। काल बड़ा पराक्रमी था। इसने जरासंध के साथ यादवों पर आक्रमण किया, जिससे भयभीत हो सारे यादव कृष्ण के कहने से द्वारिका भाग गये । स्वयं कृष्ण भी हिमालय में जा छिपे। कालयवन भी कृष्ण का पीछा करता हुआ वहाँ पहुंचा, जहाँ मान्धाता का पुत्र मुचकुंद सो रहा था। इसने मुचकुंद को ही कृष्ण समझ कर पाँव की ठोकर मार कर उसे जगाया। निद्रा भंग होने पर मुचकुंद ने नेत्र उठा कर कालयवन की ओर देखा जिससे वह भस्म हो गया। किसनाजी पाढ़ा दुरसा आढ़ा का पुत्र महान् प्रतिभावान् कवि किसनाजी पाढ़ा महाराजा गजसिंह का कृपापात्र था । इसकी फुटकर रचनायें व गीतों का संग्रह मिलता है। इसकी कविता से प्रभावित हो कर महाराजा गज सिंह ने इसको सोजत तहसील का गांव पांचेटिया प्रदान किया। केसोदास गाडण यह गाडण शाखा का चारण कवि था। इसका जन्म जोधपुर राज्यान्तर्गत गाडणों की बासणी में सदामल के घर वि० सं० १६१० में हुआ था। यह सदैव साधुओं की तरह गेरुया वस्त्र पहिनता था। "बेलि कृष्ण रुक्मणी री" के रचयिता राठौड़ पृथ्वीराज ने इसकी प्रशंसा में यह दोहा कहा था 'केसौ' गोरख नाथ कवि, चेलौ कियौ चकार । सिध रूपी रहता सबद, गाडण गुण भंडार ॥१॥ केसोदास जोधपुर के महाराजा गजसिंह के कृपापात्रों में था। 'गुण रूपक बंध' की रचना पर प्रसन्न हो कर महाराजा गजसिंह ने इसको लाख पसाव का पुरस्कार दिया था। इसके रचित ग्रंथ (१) गुण रूपक बंध, (२) राव अमरसिंह रा दूहा, (३) नीसांणी विवेक वारता, (४) गज गुण चरित्र आदि हैं। माध कवि इसका समय ई० स० ६६० से ६७५ तक का माना है। संस्कृत साहित्य की प्राचीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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