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________________ परिशिष्ट ४ [सूरजप्रकाश के तीनों भागों में आये हुए ऐतिहासिक, पौराणिक और साहित्यिक व्यक्तियों का परिचय अंधक इसकी उत्पत्ति पार्वती के पसीने से बताते हैं । हिरण्याक्ष के तप से प्रसन्न होकर शिव ने इसे यही पुत्र दिया था। इसके सहस्र बाहु, सहस्र सिर और दो सहस्र नेत्र थे। यह अंधों की तरह झूम-झूम कर चलता था। इसीसे अंधक कहलाया। पार्वती की अवज्ञा के कारण शिव का इससे घोर युद्ध हुआ । इसके रक्त-बिन्दुओं से अनेकों राक्षस पैदा होने लगे। तब मातका की उत्पत्ति की गई जो रक्त को पी जाती थी। मातृका के तृप्त होने पर पुनः नये अंधक पैदा होने लगे । विष्णु की युक्ति से सारे अंधक विलीन हो गये । मुख्य अंधक को शिव ने त्रिशूल पर लटका दिया । स्तुति करने पर शिव ने उसको गनाधिपत्य बनाया। मतांतर से यह दिति का पुत्र था । जब दिति के समस्त पुत्रों का वध हो गया तब दिति की प्रार्थना पर अंधक की उत्पति हुई । यह इतना अत्याचारी हुआ कि इसके आतंक से त्रैलोक कॉप उठा । अंत में यह शिव के हाथों मारा गया। कल्याणदास मेहड़ ये डिंगल के कवि मेहड़, जाड़ा के पुत्र थे और जोधपुर के महाराजा गजसिंहजी के कृपापात्रों में थे। ये असाधारण गुण-सम्पन्न प्रतिभावान व्यक्ति थे। इनकी रचनाएँ अधिकतर वीर जातियों और वीर पुरुषों की प्रशंसा में लिखी मिलती हैं। इनकी असाधारण काव्यप्रतिभा के कारण ही महाराजा गजसिंहजी ने इनको लाख पसाव प्रदान किया था। ___ बूंदी के वीर हाड़ा राव रतनसिंह पर लिखी हुई कविता "राव रतनसिंह री वेलि" इनकी प्रसिद्ध रचना है। कवि भारवि जीवन परिचय :- पह्लव राजा सिंह विष्णु वर्मा का सभा-पण्डित था। इसका रचित ग्रन्थ किरातार्जुनीय महाकाव्य है। इसके चरित्र के विषय में लोगों को बहुत कम मालूम है । अवन्ति सुन्दरी कथा के अनुसार भारवि का दूसरा नाम दामोदर था। यह कौशिक गोत्रीय नारायन स्वामी का पुत्र था। यह एलिचपुर (Ellichpore) का था। इसका समय ई० सं० ५७० का अनुमान किया जाता है । ई० सं० ६३४ के पापहोल के शिलालेख में कालिदास के साथ इसका भी नाम खुदा है । इसलिये सप्तम शतक के प्रारंभ में भारवि की कीर्ति प्रसृत थी। कीथ के कथनानुसार ई० ६६० के लगभग रचित काशी के वृत्ति ग्रंथ में भारवि का निर्देश प्राया है। इसलिये यह मान लेना आवश्यक होगा कि ई० ६२४ के कम से कम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org WW
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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