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________________ [ ७३ ] बाद महाराजा गजसिंह का कृपापात्र रहा । महाराजा गजसिंह ने अपने समय के प्रसिद्ध व प्रतिभावान पन्द्रह कवियों को लाख पसाव प्रदान किए उनमें से एक यह भी था। इसको जोधपुर तहसील का गांव भाटिलाई प्रदान किया गया। यह गांव अब तक इसके वंशजों के अधिकार में रहा । चांणूर यह बड़ा पराक्रमी राक्षस हुआ है। यह कंस का अनुचर था। भागवत पुराण की कथा के अनुसार यह पिछले जन्म में मय नामक दानव था। यह मल्ल युद्ध में बड़ा निपुण था। कृष्ण को मारने के लिये कंस ने इसको धनुषयज्ञ के समय मुख्य द्वार पर रक्षक के रूप में रक्खा था, जहाँ इसने कृष्ण को मल्ल युद्ध के लिये ललकारा था। कृष्ण ने वहीं पर चाणूर का वध किया । इसीलिये कृष्ण को चाणूर-सूदन भी कहते हैं । जालंधर (जलंधर) शिव के तृतीय नेत्र की अग्नि से उत्पन्न एक अति पराक्रमी राक्षस था। एक समय इन्द्र शिव के दर्शनार्थ कैलाश गया, वहाँ एक भयंकर पुरुष को बैठे देखा, उससे पूछने पर कुछ भी उत्तर न मिला तो इन्द्र ने वज्र-प्रहार किया, जिससे वह नीलकंठ हो गया और भाल का तृतीय नेत्र खुल गया। उसकी ज्वाला इन्द्र को भस्म करने लगी। इन्द्र की प्रार्थना पर शिव ने वह ज्वाला समुद्र में फेंक दी। उससे एक बालक पैदा हया जिसके रोने की ध्वनि से संसार बहरा हो गया। उसे ब्रह्मा को सौंपा गया। उसने ब्रह्मा की गोद में लेटे-लेटे ब्रह्मा की मूंछ नोच दी। उसका नाम जालंधर रखा और वर दिया कि शिव के सिवाय उसे कोई मार न सके। इसकी उत्पत्ति गंगा के व समुद्र के संयोग से भी बताते हैं। ब्रह्मा ने इसे असुरों का राज्य दिया । मय दैत्य ने इसकी राजधानी की रचना की। वृन्दा के साथ इसका विवाह हुआ। पार्वती के रूप से मुग्ध हो इसने कैलाश पर आक्रमण किया। उस समय विष्णु ने जालंधर का रूप बना वृन्दा के सतीत्व को नष्ट कर के चक्र द्वारा इसका सिर छेदन किया । वृन्दा सती हो गई और शाप दिया कि त्रेता में विष्णु की पत्नी राक्षस द्वारा अपहरण की जायेगी और विष्णु को बन-बन भटकना पड़ेगा। जालंधर के शव से निसृत तेज शिव के तेज में विलीन हो गया । दक्ष प्रजापति सती इनकी पुत्री थी। ये कारणवश शिव से द्वेष रखते थे। एक समय दक्ष के द्वारा रचित यज्ञ में शिव का भाग नहीं रखा गया, न उन्हें निमन्त्रित ही किया गया। सती बिना निमन्त्रित किये भी अपने गणों को साथ लेकर पिता दक्ष के यज्ञ में गई। वहाँ शिव का भाग न देख कर अति क्रोधित हुई। उसी समय यज्ञ कुण्ड में कूद कर जीवन का अंत कर दिया। शिव के गणों ने दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर दिया। दुरसौ बाढी दुरसा पाढ़ा गोत्र के चारण मेहा का पुत्र था। इसका जन्म संवत् १५९२ में जोधपुर राज्य के धुंदला गांव में हुआ था। इसकी माता धन्नीबाई ने जो बोगसा गोविन्द की बहिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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