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[ ६१ ] जोधपुर तथा इस जूलफिकार खां को सहायता तथा सहानुभूति के कारण अजीमुश्शान को युद्ध में पराजित कर सका और बाद में अजीमुश्शान को मार कर दिल्ली के तख्त पर बैठा । इसने जुलफिकार खां को अपना मंत्री बनाया किन्तु कुछ दिनों के बाद ही सैयद भाइयों की सहायता से जहांदार शाह और जुलफिकार खां मारे गए और फर्रुखसियर बादशाह बना जो बंगाल का गवर्नर था। तरीन खां (तरियन खां)___ यह अफगान सरदार था और इसके साथ ही एक अफगान सरदार और । था जिसका नाम सैयद कयूम था। ये दोनों बड़े वीर तथा रण-कुशल थे। ये दोनों अपने अरबी घोड़ों पर सवार हो कर अहमदाबाद के युद्ध में लड़ रहे थे जहाँ वीर गति को प्राप्त हुए। जमालअली खां इनके शवों को शहर में ले आया। तरीन खां महाराजा अभयसिंह के विरुद्ध अहमदाबाद में फौज की एक टुकड़ी का सेनापति था। इसने अहमदाबाद के युद्ध में अपनी प्रबल वीरता का परिचय दिया था। तुरराबाज खां (तुराबाज बक्श)
यह बादशाह मुहम्मद शाह के बारहहजारी मनसबदारों में था और बड़ा वीर, उत्साही, नीतिज्ञ तथा कुशल व्यक्ति था। यह शाही सेना का सेनापति था और अनेक युद्धों में अपना रण-कौशल दिखा चुका था, फिर भी सर बुलन्द खां की शक्ति के सन्मुख यह भयभीत हो गया और अहमदाबाद पर आक्रमण करने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया । दलेल खां
यह लाहौर का सूबेदार था तथा शाही दरबार के मीर उमरावों में यह मुख्य था । बादशाह ने मर बुलन्द खां के विरुद्ध अहमदाबाद पर जाने का प्रस्ताव इसके सम्मुख रखा पर इसने अस्वीकार कर दिया। दांनयाल (शाहजादा)
यहसम्राट अकबर का छोटा पुत्र था । शाहजादा मुराद की मृत्यु के बाद इसे दक्षिण का सूबेदार बना कर भेजा था और उसकी सहायता के लिये सवाई राजा सूरसिंह को साथ भेजा था, किन्तु थोड़े ही समय बाद इसकी मृत्यु हो गई। दारासाह (दारा शुकोह)
यह बादशाह शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र तथा उत्तराधिकारी था। यह इलाहाबाद, पंजाब, मुल्तान आदि सूबों का शासक रह चुका था । अनेकों प्रांतों
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