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________________ [ २१ ] २७. भुजंगी - संस्कृत का भुजंगप्रयात वर्णवृत्त जिसकी संख्या ग्रन्थ में २८ मछिक, मछिका - संस्कृत का मल्लिका वर्णवृत्त जिसकी संख्या ग्रन्थ में २० है। २६. मत-मातंग लीलाकर दंडक - एक वर्णवृत्त जिसकी संख्या समूचे ग्रंथ में एक है। ___ ३०. मालती - संस्कृत का एक वर्णवृत्त जिसकी संख्या ग्रन्थ में ११ है । ३१. मोतीदाम - चार जगण का एक सम वर्णवृत्त जिसको संख्या ग्रंथ में ५८२ है। ३२. रसावला - एक मात्रिक छंद जिसकी संख्या समूचे ग्रंथ में १५ है । ३३. रूपमाला - यह एक मात्रिक छंद है । इसमें १४ और १० को यति से कुल २४ मात्राएँ होती हैं और अन्त में गुरु लघु होता है । यह निसांणी हंसगति से भिन्न है। इसकी संख्या ग्रन्थ में तीन है। ३४. रोमकंद - डिंगल (राजस्थानी) का एक वर्णवृत्त। इसके प्रत्येक चरण में ८ सगण होते हैं जिसमें ६, ६, ८ और ६ वर्गों की यति से कुल ३२ वर्ण होते हैं । इसका प्रत्येक चौथा चरण समान होता है जिसके अंतिम प्राधे भाग की पुनरावृत्ति होती रहती है। राजस्थानी के प्राप्त छंद-शास्त्र के ग्रन्थों में इसका उल्लेख नहीं मिला है । ग्रंथ में इसकी संख्या ६ है। . ३५ विरवेखक - एक वर्णवृत्त जिसको हिन्दी में विशेषक, नील, अश्वगति और लीला भी कहते हैं । समूचे ग्रन्थ में इसकी संख्या एक है। ३६. विराज - एक वर्णवृत्त जिसको हिन्दी में शंखनारी और सोमराजी भी कहते हैं । ग्रंथ में इसकी संख्या २५ है । ३७. वैताळ - एक मात्रिक छंद जिसको हिन्दी में कामरूप कहते हैं । ग्रंथ में इसकी संख्या एक ही है । ३८. सवैया - एक वर्णवृत्त जो समूचे ग्रंथ में एक ही है। ३६. सारसी - प्रत्येक चरण में १६ और १२ की यति के कुल २८ मात्राओं का एक राजस्थानी मात्रिक छंद जिसके मध्य में तीन बार अनुप्रास की आवृत्ति होती है तथा चरण के प्रारम्भ में और अंत में चार मात्राएँ होती हैं किन्तु ग्रंथ में प्रयुक्त छंद के चरण के प्रारम्भ में और अंत में प्रायः ५ मात्राएँ हैं । ग्रंथ में इसकी ३६ संख्या है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003388
Book TitleSurajprakas Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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