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लिया, राणा ने विजयी होना असंभव जान कर संधि प्रस्ताव रखा। इस पर वि० सं० १६७१ (ई० सन् १६१४ ) में महाराजकुमार गजसिंह राजकुमार करण को लेकर अजमेर प्राये | बादशाह जहांगीर, जो उस समय अजमेर में ही था, से मिला दिया और सुलह करवा दी। महाराणा करणसिंह वि०सं० १६७६ ( ई० सन् १५२० ) में गद्दी पर बैठा और वि० सं० १६८४ ( ई० सन् १६२७) में इसका देहान्त हो गया ।
करणसिंह (चांपावत)
यह पाली के ठाकुर राजसिंह का पुत्र बड़ा वीर, पराक्रमी तथा युद्ध · कुशल व्यक्ति था । यह महाराजा अभयसिंह की सेना की एक टुकड़ी का सेनानायक था । महाराजा ने अहमदाबाद के युद्ध के समय शहर पर गोलाबारी करने के लिये ५ मोर्चे कायम किये थे, जिनमें पहले मोर्चे पर यह था । वि० सं० १७८७ प्राश्विन सुदि १० ( ई० सं० १७३० ता० १० अक्टूबर) शनिवार को सर बुलन्द ने शेरसिंह ( सरदारसिंहोत के मोर्चे पर आक्रमण किया । प्रभयकरण और चांपावत करण उसकी (शेरसिंह) सहायता को गये । घमासान युद्ध हुआ जिसमें मुसलमानों के ३०० आदमी और महाराजा की सेना के चांपावत करण, मेड़तिया भोपसिंह, जोधा हठीसिंह, धांधल भगवानदास और पुरोहित केसरीसिंह लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए । करणीदान (बारहठ करनीदान) -
यह बारहठ केसरीसिंह का छोटा पुत्र था । यह बड़ा बुद्धिमान था । जब महाराजा अभयसिंह ने नागौर का राज्य राव अमरसिंह के पोते इन्द्रसिंह से छीन कर अपने भाई बखतसिंह को दे दिया तब यह अवसर पाकर महाराजा बखतसिंह के पास चला गया। कुछ दिनों बाद गुजरात के नबाब सर बुलंद खां पर महाराजा अभयसिंह ने चढ़ाई की तो उस समय करनीदान महाराजा बखतसिंह के साथ था । युद्ध में अत्यधिक पराक्रम दिखाने पर महाराजा बखतसिंह ने इसको रामस्या गांव दे दिया । वि०सं० १८०८ में जब महाराजा बखतसिंह महाराजा रामसिंह को जोधपुर से निकाल कर मारवाड़ के अधिपति हो गये तब करनीदान को मूंदियाड़ का पट्टा दिया और सिरायत सरदारों के बराबर मान दिया।
करीमदाद खां
यह बादशाह मुहम्मदशाह के विश्वासपात्र व्यक्तियों में था । इसे पहले पालनपुर का फौजदार बना कर भेजा गया था । इसकी महाराजा
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