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महाराजा अभयसिंह . इस ग्रन्थ की रचना महाराजा अभयसिंह के समय में ही हुई थी, अतः कवि ने महाराजा के जन्म-काल से लेकर अहमदाबाद की विजय तक इनके जीवन की विभिन्न घटनाओं का चित्रण बड़ी कुशलता से किया है । जन्म-कुंडली, नक्षत्रों, हस्तरेखाओं तथा अन्य ज्योतिष-सम्बन्धी विषयों का वर्णन करके महाराजा के भावी जीवन पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। बाल-चरित्रः -
चूंकि इनके पिता महाराजा अजीतसिंहजी ने अपने समय में कई बादशाहों को बदल दिया था, अतः बालक अभयसिंह भी इन बातों से प्रभावित हुआ। कवि ने इनके द्वारा खेले जाने वाले खेलों में इनका बादशाह बनाना, फिर हटाना, किले जीतना, युद्ध करना आदि बातों का वर्णन करके इनके बाल-चरित्र में उदीयमानता के लक्षण व्यक्त किए हैं। इसके लिए निम्न पंक्तियां देखिये
तेजपुंज नप सुतण, हुवी जस वेस झळाहळ । सांईनां साथियां, मिळं खेले मझि मंडळ । हुवै बाळ हेक सा', बिखम गढ़ कोट बणावै । प्रोप साह ऊपरा, 'अभी' दळ बळ सझि पावै । सझियास कोट गढ़ साहरा, धूम लूटि धन ऊधमै । ऊगती भांण बाळक 'अभी' राय प्रांगण इण विध रमै ।
सू.प्र. भाग २, पृ. ४६, ५० सिसु उथापि इक साह, साह सिसु अवर सथप्पै । सिसु सुभड़ां हित सझ, पट गढ देस समप्पै । सिसु इक मंत्री सरूप, धार दफतर भर धार।
सिसु दुज करै सरूप, एक सिसु कथा उचारै। कवि होय एक सिसु गुण कहै, सांसण गज दै तिण सम। ससि वेस 'प्रभो''अगजीत' सुत, राय प्रांगण इण विध रमै ।
सू.प्र. भाग २, पृ. ५१ युवावस्था के प्रारम्भ में पराक्रम दिखाना :
बादशाह मुहम्मदशाह महाराजा अजीतसिंह की बढ़ती हुई शक्ति से बहुत घबराया, क्योंकि उन्होंने अजमेर पर भी अपना अधिकार कर लिया था। अतः बादशाह ने उनका दमन करने के लिए तीस हजार यवन-दल के साथ मुदफर खाँ को भेजा । महाराजा अजीतसिंह ने राजकुमार को उसका सामना
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